Sunday, November 10, 2024
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वायनाड से संसद की राह ‘जलेबी’ जैसी सीधी, यह समीकरण देख लीजिए राहुल G

देखा जाए तो राहुल गाँधी की स्थिति को लेकर कॉन्ग्रेस दोनो ही सीटों पर डरी हुई है। कहीं उनका हाल ऐसा न हो जाए कि ‘चौबे गए छब्बे बनने दुब्बे बनकर आ गए।’

उत्तरी केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से ही यह पहाड़ी जिला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गया है। करीब एक हफ्ते के संशय के बाद कॉन्ग्रेस ने रविवार (मार्च 31, 2019) को औपचारिक रूप से घोषणा कर दी है कि राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश में अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनावी मैदान में उतरेंगे। राहुल पहली बार किसी दक्षिण भारतीय राज्य से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

सोमवार को एनडीए ने भी केरल के वायनाड लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी की घोषणा कर दी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट कर कहा कि तुषार वेल्लापल्ली को वायनाड सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। बता दें कि तुषार भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) के अध्यक्ष और केरल में एनडीए के संयोजक हैं। इसके साथ ही तुषार केरल के इजावा समुदाय के शक्तिशाली संगठन श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) के उपाध्यक्ष भी हैं।

राजनीतिक तौर पर मजबूती की बात करें तो केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने इस क्षेत्र से भाकपा के पीपी सुनीर को चुनावी मैदान में उतारा है। वह अपने स्कूल के दिनों में सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हुए थे और बाद में पार्टी के युवा संगठन ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन के राज्य उपाध्यक्ष बने। राहुल के नाम के ऐलान के बाद वाम दलों में हलचल मच गई। वाम दलों ने इसे भाजपा के ख़िलाफ़ लड़ाई को कमजोर करने का प्रयास बताते हुए राहुल को हराने का दावा किया है। भाकपा महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने राहुल गाँधी के इस फैसले पर ऐतराज जताया और साथ ही कहा कि इस चुनाव में वाम मोर्चा राहुल गाँधी को हराने के सभी प्रयास करेंगे।

यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि इस सीट पर भाजपा की तरफ से उतारे गए प्रत्याशी तुषार वेल्लापल्ली वहाँ के लोकल प्रत्याशी हैं। तो जाहिर सी बात है कि उनकी उस क्षेत्र के लोगों पर अच्छी पकड़ होगी और इस वजह से उन्हें वहाँ के दक्षिणपंथियों का पूर्ण समर्थन मिलने की संभावना है। वहीं अगर बात करें, वाम दल की तरफ से उतारे गए कैंडिडेट पीपी सुनीर की, तो वो भी वहाँ के लोकल हैं। वहाँ के वाम राजनीति को समर्थन देने वाले वोटरों पर सुनीर की पकड़ मजबूत होगी, इसमें कोई दो राय नहीं। शायद यही वजह रही होगी कि उन्होंने राहुल गाँधी को हराने की चेतावनी भी दी थी।

अब यहाँ पर सवाल ये उठता है कि अगर राहुल गाँधी को वहाँ के वामपंथियों का भी वोट नहीं मिला, तो फिर वो किस आधार पर चुनाव जीतने का ख्वाब देख रहे हैं? राहुल गाँधी की इस समय हालत कुछ ऐसी हो गई है, जिससे वो न तो घर के दिख रहे हैं और न घाट के। वो इसलिए क्योंकि एक तरफ तो अमेठी में स्मृति ईरानी उन्हें कड़ी टक्कर दे रही हैं। और दूसरी तरफ कॉन्ग्रेस ने राहुल को जिस चाल के तहत वायनाड सीट से चुनाव लड़ाने का फ़ैसला लिया, अब वो उल्टा पड़ता दिख रहा है। देखा जाए तो राहुल की स्थिति को लेकर कॉन्ग्रेस दोनो ही सीटों पर डरी हुई है। कहीं राहुल का हाल ऐसा न हो जाए कि ‘चौबे गए छब्बे बनने दुब्बे बनकर आ गए।’

गौरतलब है कि वायनाड सीट 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है। वायनाड लोकसभा के तहत सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से तीन वायनाड जिले के, तीन मल्लापुरम जिले के और एक कोझीकोड जिले से हैं। यहाँ 2009 में कॉन्ग्रेस के एमआई शाहनवाज़ ने जीत हासिल की थी। उन्होंने सीपीआई के उम्मीदवार को सीधी मात दी थी। 2014 में भी उन्होंने इस सीट से जीत हासिल की थी, मगर 2018 में उनके निधन के बाद से यह सीट खाली है। यहाँ पर 23 अप्रैल को मतदान होना है।

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