दुनिया में सबसे ज्यादा सजायाफ्ता और विचाराधीन भारतीय कैदी सऊदी अरब और UAE में हैं। इन दोनों मुस्लिम देशों में 2000 से ज्यादा भारत के लोग कैद हैं। दूसरे खाड़ी देशों की बात करें तो बहरीन, कुवैत और कतर में बड़ी संख्या में भारतीय कैद हैं। इसके अलावा नेपाल में 1317, मलेशिया में 338 और चीन में 173 भारतीय अलग अलग जेलों में बंद हैं। कुल मिलाकर दुनियाभर में 10,152 भारतीय 86 देशों में कैद हैं। इनमें सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर, नेपाल, चीन जैसे 12 देश अहम हैं जहाँ कुल भारतीय कैदियों में से क़रीब तीन-चौथाई कैद हैं।
2 साल में 10 कैदी आए स्वदेश
इसका खुलासा विदेश मंत्रालय ने संसद की एक समिति के सामने किया है। कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर की अगुवाई वाली संसदीय स्थाई समिति ने अपनी छठी रिपोर्ट में ये जानकारी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, 12 देशों में से 9 देशों के साथ कैदियों के लिए प्रत्यर्पण संधि है, फिर भी पिछले 2 सालों में यानी 2023 से मार्च 2025 तक सिर्फ 10 कैदियों को ही स्वदेश लाया जा सका है। इनमें ईरान और यूके से 3-3, रूस और कंबोडिया से 2-2 कैदी शामिल हैं।
31 देशों से कैदियों के ट्रांसफर का समझौता
विदेश मंत्रालय ने समिति को बताया है कि 31 देशों के साथ भारत का कैदियों के प्रत्यर्पण को लेकर द्विपक्षीय समझौता है। इनमें सऊदी अरब, यूएई, क़तर, ईरान, इजरायल, ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, बांग्लादेश, बोस्निया, ब्राजील, बुलगारिया, कंबोडिया, मालदीव्स, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, सोमालिया, कज़ाकिस्तान, उज़बेकिस्तान, एजिप्ट, हॉगकॉग, यूके वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड शामिल हैं। लेकिन, प्रक्रिया में वक्त लगता है क्योंकि TSP समझौते के तहत मेजबान देश और मूल देश के बीच सहमति जरूरी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्रालय ने कहा है, “भारत ने सजायाफ्ता व्यक्तियों के स्थानांतरण पर दो बहुपक्षीय सम्मेलनों पर भी हस्ताक्षर किए हैं। इसका अर्थ है कि इंटर-अमेरिकन सम्मेलन और सजायाफ्ता व्यक्तियों के स्थानांतरण पर यूरोप परिषद सम्मेलन के आधार पर सदस्य राज्यों और अन्य देशों के सजायाफ्ता व्यक्ति अपनी सजा की शेष अवधि पूरी करने के लिए अपने मूल देशों में स्थानांतरण की माँग कर सकते हैं।”
कैदियों को दी जा रही निःशुल्क कानूनी सहायता
रिपोर्ट में कहा गया है, “भारतीय कैदियों को वापस लाने में मिल रहा ‘कम सक्सेस रेट’ के कारण हमें इन प्रयासों की समीक्षा करनी होगी।” हालाँकि, मंत्रालय ने जानकारी दी है कि कई विचाराधीन कैदियों की मदद भारतीय काउंसलर कर रहे हैं। कैदियों को जरूरत पड़ने पर कानूनी सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए कैदियों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
विदेशी जेलों में बंद कैदियों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए, समिति ने कहा कि वह चाहती है कि सरकार समझौतों और सम्मेलनों को लागू करने में आ रहीं बाधाओं का अध्ययन करे और यदि जरूरी हो, तो कैदियों के सुगम प्रत्यर्पण की सुविधा के लिए मौजूदा समझौतों में संशोधन करे या नए समझौते बनाए। पैनल ने कैदियों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को आसान बनाने और विदेशी जेलों में भारतीय नागरिकों के साथ अच्छा व्यवहार हो इसके लिए उन देशों के साथ ‘कूटनीतिक प्रयास’ करने पर जोर दिया।
रिपोर्ट में अवैध तरीके से रह रहे भारतीय नागरिकों को अमेरिका द्वारा निकाले जाने का भी उल्लेख किया गया है। समिति का कहना है कि अमेरिका से लौटे इन भारतीयों को फिर से बसाने की जिम्मेदारी उन राज्य सरकारों की है जहाँ से ये लोग आते हैं।