बीते लगभग एक दशक से भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान अब अपनी फ़ौज पर खर्च फिर बढ़ाने जा रहा है। IMF, विश्व बैंक और सऊदी अरब जैसे देशों की चौखट पर कर्ज के लिए खड़ा रहने वाला पाकिस्तान फ़ौज पर खर्च वित्त वर्ष में 2025-26 के लिए अपने 18% बढ़ाने जा रहा है।
पाकिस्तान का रक्षा बजट अब 2.5 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये (लगभग 14 अरब डॉलर) होगा। पाकिस्तान पर पहले से ही करीब 22 लाख 80 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। पाकिस्तान का कर्ज और GDP के बीच अनुपात लगभग 65% है। यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक माना जाता है।
पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा भंडार भी इतना ही बचा है कि वह केवल तीन महीने का आयात कवर कर सकता है। पाकिस्तान में महँगाई भी बहुत ज्यादा है और आर्थिक हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं। अब भारत से कम्पटीशन करने की होड़ में, पाकिस्तान ऐसे फैसले ले रहा है जो उसकी आर्थिक स्थिति को और पतला कर सकते हैं।
हाल ही में भारत द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान के शेयर बाजार में 10% की गिरावट दर्ज की गई थी, इससे उसकी अर्थव्यवस्था को और झटका लगा था। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भले ही कमजोर हालत में हो, लेकिन इसके बावजूद इस्लामाबाद ने अपने बजट का करीब 18% हिस्सा फ़ौज को दे दिया है।
पाकिस्तान ने अपनी फ़ौज का यह पैस गरीबी हटाने, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे ज़रूरी क्षेत्रों के बजट में कटौती करके दिया है। इसका सीधा अर्थ यह है कि पाकिस्तान की फ़ौज रोटी से ज्यादा महत्वपूर्ण बंदूकों को देती है।
हालाँकि, यह फैसला हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि हाल ही में पाकिस्तान के फ़ौज प्रमुख असीम मुनीर को फील्ड मार्शल का पद मिला है। इससे यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान अब केवल नाम का लोकतंत्र रह गया है, असल में वहाँ फ़ौज की चलती है और देश एक तरह से फौजी तानाशाही में बदल चुका है।
डरा हुआ पाकिस्तान अब आतंकियों को दे रहा बढ़ावा
पाकिस्तान में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (PMLN) गठबंधन सरकार वर्तमान में सत्ता में है, जिसने रक्षा बजट में तेज़ी से बढ़ोतरी करने का फैसला किया है। पाकिस्तानी सरकार ने इसका कारण उनके फौजी ठिकानों पर हुए भारत के हमलों को बताया है। पाकिस्तान को इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी।
खास बात यह रही कि इन हमलों के वक्त पाकिस्तान की रक्षा व्यवस्था सतर्क नहीं थी। वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान का रक्षा बजट 2122 अरब (2.122 लाख करोड़ रुपए) था, जो उससे पिछले साल के मुकाबले 15% ज़्यादा था।
अब 2025-26 के लिए इसमें और बढ़ोतरी की गई है। ऐसे में 2 वर्ष में कुल 35% की बढ़ोतरी रक्षा बजट में हुई है। हालाँकि, मौजूदा हालात और बढ़ती सैन्य गतिविधियों को देखते हुए इस साल का असली रक्षा खर्च इससे कहीं ज़्यादा होने की संभावना है।
पाकिस्तान की चिंता और हताशा इस बात से साफ झलकती है कि उसके योजना मंत्री अहसान इकबाल ने रक्षा बजट में बढ़ोतरी को भारत द्वारा सिंधु जल संधि को खत्म करने के फैसले से जोड़ दिया है। पाकिस्तान इस संधि को अपनी ‘जीवन रेखा’ मानता है और भारत की अपस्ट्रीम बांध परियोजनाओं को ‘जल आक्रमण’ बता रहा है।
पाकिस्तान लगातार भारत से अपील कर रहा है कि वह इस फैसले पर पुनर्विचार करे। वहीं इस बीच उसने चीन की मदद से एक नई बाँध परियोजना पर काम तेज कर दिया है। इसके लिए वह चीन की मदद लेने वाला है।
पाकिस्तान रक्षा बजट को ऐसे समय में बड़ी प्राथमिकता दे रहा है, जब देश का सार्वजनिक कर्ज मार्च 2024 तक बढ़कर रिकॉर्ड 76 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपए (22 लाख 80 हजार करोड़ रुपए) तक पहुँच चुका है, यह बात सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में भी बताया गया है।
पिछले दस वर्षों में पाकिस्तान का कुल कर्ज पाँच गुना बढ़ चुका है। 2020-21 में यह 39.8 ट्रिलियन रुपए से लगभग दोगुना होकर बढ़ा। इस कर्ज में 24.5 ट्रिलियन रुपए की विदेशी उधारी और 51.5 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपए की घरेलू देनदारियाँ शामिल हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इतना ज़्यादा कर्ज और उसका सही ढंग से प्रबंधन न होना पाकिस्तान की आर्थिक और राजकोषीय स्थिरता के लिए बड़ा खतरा बन गया है। पाकिस्तान इस समय IMF के कर्ज पर निर्भर है। मई 2025 में IMF ने पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर (₹8500 करोड़) का कर्ज दिया था।
इसके साथ ही IMF ने पाकिस्तान पर 11 नई शर्तें भी लगा दीं। अब कुल मिलाकर IMF की शर्तों की संख्या 50 हो गई है, जो 7 बिलियन डॉलर के कर्ज के बदले में लगाई गई हैं। IMF ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर भारत के साथ तनाव बढ़ा, तो इससे पाकिस्तान की आर्थिक हालत और खराब हो सकती है।
IMF के अनुसार, 2025 में पाकिस्तान की बेरोजगारी दर 8.5% है। वहीं गरीबी दर भी बढ़ रही है, 2017 में जहाँ 39.8% लोग गरीबी में थे, 2021 में यह बढ़कर 44.7% हो गए। गरीबी का माप प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 4.2 डॉलर आय के आधार पर किया गया है।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में गरीबों की स्थिति लगातार खराब हो रही है। देश में इस समय गरीबी दर 42.4% है और 2024-25 में करीब 19 लाख (1.9 मिलियन) और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाएँगे। पाकिस्तान की 2.6% आर्थिक विकास दर इतनी कम है कि इससे गरीबी में कोई खास कमी नहीं हो पा रही है।
पाकिस्तान की एक गंभीर सच्चाई यह है कि जहाँ देश की 45% आबादी गरीबी में और 16.5% आबादी बेहद गरीबी (अत्यधिक गरीबी) में जी रही है, वहाँ की सेना-समर्थित सरकार गरीबी घटाने और युवाओं को रोजगार देने पर ध्यान देने के बजाय रक्षा बजट को 18% बढ़ाने को ज़्यादा जरूरी मान रही है।
इस बीच, भारत द्वारा सिंधु जल संधि को रद्द करने के बाद पाकिस्तान के सिंधु नदी बेसिन में पानी का बहाव कम हो गया है, जिससे देश का कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अनुमान है कि इससे फसलों की पैदावार में कपास के लिए 29.6% और चावल के लिए 1.2% तक की गिरावट आ सकती है। इससे क्षेत्रीय विकास दर 2% से भी नीचे रह सकती है।
इसके अलावा, पाकिस्तान को खाद्य सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर ग्रामीण इलाकों में लगभग 1 करोड़ (10 मिलियन) लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति में हैं।
पिछले 25 वर्षों में IMF ने पाकिस्तान को करीब 22 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद दी है। इसके बावजूद, पाकिस्तान की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अब भी बेहद गंभीर बनी हुई है। ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि यह सारा पैसा आखिर जा कहाँ रहा है।
यह सवाल और भी गंभीर हो जाता है जब यह सामने आता है कि पाकिस्तान ने अब तक अपनी सेना पर 185 बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च किए हैं, जो कि IMF से मिली मदद से 5 से 10 गुना ज़्यादा है।
ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि दुनिया, खासकर वो देश और संस्थाएँ जो पाकिस्तान को कर्ज देती हैं, यह सवाल करें कि जब पाकिस्तान इतनी बड़ी रकम रक्षा पर खर्च कर सकता है, तो फिर उसे बार-बार आर्थिक संकट से उबरने और भुगतान संतुलन बनाए रखने के लिए कर्ज की ज़रूरत क्यों पड़ रही है।

पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिले कर्ज का गलत इस्तेमाल किया है। इस पैसे का उपयोग देश के अंदर इस्लामी आतंकवादियों को पालने, उन्हें सुरक्षा देने और उन्हें फंड करने में किया गया, जो बाद में पाकिस्तानी सेना के इशारे पर भारत में आतंकी हमले करते हैं।
पाकिस्तान में सेना का दबदबा इतना ज़्यादा है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास जैसी ज़रूरी नागरिक ज़रूरतों को बार-बार नजरअंदाज किया गया है। यह सिर्फ इस साल नहीं, बल्कि कई सालों से हो रहा है। यह एक शर्मनाक और पुराना पैटर्न बन चुका है।
भारत को नुकसान पहुँचाने और एक तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था से प्रतिस्पर्धा करने का पाकिस्तान का जुनून उसकी नीतियों और सोच को बिगाड़ चुका है। यह मानसिकता उसे खुद के विकास से भटका रही है।
पाकिस्तान की स्थिति आज घोर कुप्रबंधन, राजनीतिक अस्थिरता, भारी कर्ज और एक ऐसी सेना की वजह से खराब है जो देश के संसाधनों का बड़ा हिस्सा ले जाती है लेकिन बदले में देश को बहुत कम देती है। पाकिस्तान लगातार IMF और चीन से कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने भारी कर्ज के बावजूद, उसका रक्षा बजट हर साल बढ़ रहा है।
यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में श्रद्धा पांडे ने लिखी है, इसे यहाँ क्लिक करके विस्तार से पढ़ सकते हैं।