Tuesday, October 8, 2024
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अरब देशों में हिन्दुओं के खिलाफ साजिश रचने वाले कौन? इस्लामोफोबिया को किसने बनाया हथियार

भारत को इस्लामोफोबिक (इस्लाम से नफरत करने वाला) साबित करने के लिए पाकिस्तान से सोशल मीडिया पर एक सुनियोजित तरीके से मिशन चलाया जा रहा है। भारतीयों को उकसाने के लिए पाकिस्तानी फर्जी ट्विटर एकाउंट्स से अपनी पहचान अरब देश का नागरिक बताकर...

एक ओर जब सारा विश्व कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा है, ऐसे समय में पाकिस्तान अपने चिर प्राचीन एजेंडा, यानी भारत में आतंकी और मजहबी घृणा को बढ़ावा देकर इसी वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचाने के प्रोपेगेंडा में मशगूल है।

हाल ही में देखा गया है कि भारत को इस्लामोफोबिक (इस्लाम से नफरत करने वाला) साबित करने के लिए पाकिस्तान से सोशल मीडिया पर एक सुनियोजित तरीके से मिशन चलाया जा रहा है। भारतीयों को उकसाने के लिए पाकिस्तानी फर्जी ट्विटर एकाउंट्स से अपनी पहचान अरब देश का नागरिक बताकर निरंतर भारत और भारतीयों को इस्लामोफ़ोबिया से ग्रसित बताना चाह रहे हैं।

क्या है इस ‘प्रायोजित इस्लामोफ़ोबिया’ का मकसद

सोशल मीडिया पर पाकिस्तानियों द्वारा खुद को अरब बताकर भारत को इस्लामोफोबिक (Islamophobic) साबित करने का पहला उद्देश्य अरब देशों और इस्लामिक देशों की नजरों में भारत की छवि को नुकसान पहुँचाना ही है। इन एकाउंट्स की वास्तविकता इन चित्रों के माध्यम से समझी जा सकती है। भारत को इस्लामोफोबिक बताने वाले यह ‘अरबी एकाउंट्स’ पाकिस्तान के लोगों द्वारा चलाए जाते हैं।

प्रमुख ट्विटर एकाउंट्स

पाकिस्तान से ये एकाउंट्स ऑपरेट होते हैं

आरएसएस से लेकर इस्लामोफ़ोबिया और मोदी घृणा पर किए गए ट्वीट

अरब देशों के खिलाफ भारतीयों को उकसाना है पहला लक्ष्य

भू-राजनीति विश्लेषक वैभव सिंह, जिनका यूट्यूब पर ‘ऑफेंसिव-डिफेन्स‘ नाम का चैनल भी है, का इस बारे में कहना है कि पाकिस्तानियों के द्वारा इस प्रायोजित कैम्पेन का नतीजा यह हो रहा है कि उनके उकसाने में फँस कर कुछ भारतीयों ने प्रतिक्रिया में अरब देशों के विरोध में कहना शुरू कर दिया है, जो कि ऐसे कैम्पेन का पहला मकसद है।

इसका सूत्रधार है पाकिस्तान का एक तथाकथित पत्रकार मोईद पिरज़ादा; जो पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई की पीआर एजेंसी ISPR के लिए काम करता है। उसके पास दुबई में अच्छी-खासी संपत्ति है। यही मोईद पीरज़ादा अपने पिता के जाली हस्ताक्षर करने के कारण दुबई में पकड़ा भी गया था।

आईएसआई की भूमिका

मोईद पीरज़ादा एक प्रोपेगेंडा वेबसाईट चलाता है, जिसे शाहीनबाग़ के ‘उजड़ते’ ही भारत भर में मुस्लिमों से हिन्दुओं की घृणा की ‘बुद्धिजीवी वर्ग’ की ‘कल्पना’ को किसी ना किसी प्रकार से साबित करने का प्रोजेक्ट मिला हुआ है। इस सब के पीछे CAA और NRC के लागू होने को लेकर पाकिस्तान की कुछ एजेंसियों का बड़ा समर्थन प्राप्त है।

हम सबने देखा है कि किस प्रकार लगभग तीन महीने से ज्यादा समय तक देशभर में CAA-NRC पर सरकार के फैसले के विरोध में समुदाय विशेष ने व्यापक स्तर पर हिंसक प्रदर्शन और विरोध किए। इस काम में सोशल मीडिया पर बैठे हुए हिन्दुफोबिया से ग्रसित ‘फैक्ट चेकर्स‘ ने भी इनका खूब साथ दिया। लेकिन शाहीन बाग के उजड़ते ही आईएसआई जैसी एजेंसियों ने अब दूसरी रणनीतियों के जरिए भारत को घेरने का काम शुरू किया है।

आर्टिकल-370 और नागरिकता कानून के बाद से पाकिस्तान के साथ काफी सारी प्रत्यक्ष अवरोध आने के बाद तबलीगी जमाती पकड़े जाने लगे, जो कि मस्जिदों से पकड़े गए, जहाँ कि पहचान पत्र तक दिखाने उनके लिए जरूरी नहीं होते। आईएसआई का हाथ इसलिए भी है क्योंकि भारतीयों को लेकर उनकी राय सकारात्मक है जबकि पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों की छवि उनकी नजरों में अच्छी नहीं है।

प्रायोजित ‘इस्लामोफ़ोबिया’ का मकसद

ऐसा करने के पीछे पाकिस्तान के पास प्रमुख कारण भारत और साथ ही साथ यहाँ के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गल्फ देशों से लेकर इस्लामिक बहुलता वाले देशों में बढ़ती हुई लोकप्रियता को नुकसान पहुँचाना है। इस काम के लिए पाकिस्तान के लोगों ने माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाईट ट्विटर को चुना है, जहाँ पर वो लोग ऐसे फर्जी एकाउंट्स को अपना हथियार बना रहे हैं, जिनकी राष्ट्रीयता अरब और अन्य इस्लाम देश बताकर भारत विरोधी ट्वीट किए जाते हैं।

CAA से लेकर आर्टिकल 370 से बौखलाया है पाकिस्तान

दरअसल पाकिस्तान तभी से बौखलाया हुआ है, जब से भारत की संसद में शरणार्थी हिन्दुओं को नागरिकता देने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक ने कानून (CAA) की शक्ल ली। इसके बाद से ही पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के भारत में जासूसी से लेकर आतंकी गतिविधियों की साजिश पर बड़े स्तर पर लगाम लगते जा रही है। यही नहीं, नागरिकता रजिस्टर के कारण ऐसे लोग भी स्वतः चिह्नित हो जाएँगे, जो पाकिस्तान या अन्य देशों से यहाँ किसी अन्य मकसद से आए हुए हैं।

पाकिस्तान और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसियों की मुश्किलें उसी दिन से बढ़ गईं थीं, जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चले आ रहे आर्टिकल-370 के कुछ प्रावधानों को निष्क्रिय कर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने का पहला कदम उठाया था।

सदियों से पाकिस्तान ने बेख़ौफ़ होकर कट्टरपंथियों की मदद से जिस तरह से चाहा, उस तरह से घाटी में आतंकवाद को विकसित करने का काम किया। लेकिन आर्टिकल-370 के निष्क्रिय होते ही घाटी में मौजूद तमाम पाकिस्तान-परस्त संस्थाएँ और साधन बदल गए, जिससे कि पाकिस्तान की साजिशों को बड़े स्तर पर विराम लगता गया।

इस्लामिक देशों में PM मोदी का बढ़ता हुआ वर्चस्व

विगत कुछ सालों में भारत में मौजूद कट्टरपंथी (वामपंथी-उदारवादी) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व को इस्लामिक देशों द्वारा मिलती स्वीकार्यता से चिंतित नजर आया है। सऊदी अरब (ऑर्डर ऑफ़ जायेद) से लेकर बहरीन (द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ़ द रेनेशां) ने भारत के प्रधानमंत्री को अपने देशों के सर्वोच्च नागरिक अलंकरणों से सम्मानित किया है।

पाकिस्तान ने विशेष तौर पर सऊदी अरब द्वारा नरेन्द्र मोदी को सम्मानित करने पर चिंता व्यक्त की थी। इस विरोध के पीछे पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल- 370 को पंगू बनाने का तर्क दिया था। लेकिन हर बड़ी अर्थव्यवस्था इसे भारत का आंतरिक मसला बताकर पाकिस्तान की ‘चिंता’ को ठोकर मारता आया है।

PM मोदी को इस्लामिक देशों की ओर से मिलने वाले ये सर्वोच्च सम्मान इसलिए भी बड़ी उपलब्धियाँ और पाकिस्तान के लिए चिंता बनी रही हैं क्योंकि आज तक भी कई देश नरेन्द्र मोदी की पहली पहचान ‘गुजरात 2002’ को ही साबित करने का निरर्थक प्रयास करते आए हैं। इस कारण राणा अयूब से लेकर तमाम ‘विचारक वर्ग’ ने 2002 तक को हवा देने की कोशिशें की लेकिन, दिन-रात के प्रयासों के बाद भी यह वर्ग खुद के द्वारा तैयार किए गए इस मिथक को आज तक स्थापित करने में विफल ही रहा है।

बेहतर यही है कि इनके उकसाने पर इनके एजेंडे में ना पड़कर अरब देशों को सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी से बचना चाहिए। इसका नकारात्मक प्रभाव किसी ना किसी रूप से उन लोगों की नौकरी पर पड़ सकता है, जो कि गल्फ देशों में नौकरी कर रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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