अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने विवादास्पद बयानों और साहसिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में उन्होंने फिर से पनामा नहर और ग्रीनलैंड को लेकर चर्चा छेड़ दी। ट्रंप ने न केवल पनामा नहर को अमेरिका के नियंत्रण में लेने की इच्छा जताई बल्कि ग्रीनलैंड को अमेरिका में शामिल करने का भी प्रस्ताव रखा। यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने इन मुद्दों पर अपनी दिलचस्पी दिखाई है। इस लेख में हम इन दोनों स्थानों की सामरिक और आर्थिक महत्ता को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।
पनामा नहर: एक ऐतिहासिक और सामरिक धरोहर
पनामा नहर एक 82 किलोमीटर लंबा जलमार्ग है जो अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है। यह नहर समुद्री व्यापार का एक मुख्य केंद्र है, जो वैश्विक व्यापार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पनामा नहर बनाने का सपना 16वीं सदी से देखा जा रहा था। 1513 में वास्को नुनेज़ डी बाल्बोआ ने इस विचार को जन्म दिया। उन्होंने पाया कि एक ऐसा जलमार्ग जो अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ सके, व्यापार और यात्रा को सरल बना सकता है। क्योंकि अगर किसी को पानी के रास्ते एशिया से अमेरिका महाद्वीपों के पूर्वी इलाकों में जाना होता तो उसके लिए एकमात्र विकिल्प यही थी की वह पहले दक्षिणी अमेरिका के निचले सिरे तक जाता और फिर उत्तर की ओर जाता। इसमें उसे हजारों किलोमीटर का सफर करना होता था, लेकिन नहर बनने के बाद 12874 किलोमीटर का सफर बचने लगता। ऐसे में फ्रांस ने 1881 में इस परियोजना को शुरू किया, लेकिन कठिन भौगोलिक स्थितियों, बीमारियों और वित्तीय समस्याओं के कारण इसे पूरा नहीं कर सका।
साल 1904 में अमेरिका ने इस परियोजना को अपने हाथ में लिया और 10 वर्षों की कड़ी मेहनत और 375 मिलियन डॉलर के निवेश के बाद 1914 में इसे पूरा किया गया। इस नहर के निर्माण में 5,609 मजदूरों ने अपनी जान गंवाई। इसे बनाने में गेट और लॉक सिस्टम जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जो जलस्तरों के अंतर को संतुलित करने के लिए उपयोगी साबित हुई। नहर के जरिए एशिया और अमेरिका के बीच व्यापारिक दूरी 12,874 किलोमीटर तक घट जाती है।
पहले अमेरिका ही करता था नहर का संचालन
इस नहर का संचालन पहले अमेरिका ही करता था, लेकिन साल 1977 में अमेरिका और पनामा के बीच हुए टोरीजोस-कार्टर संधि के तहत धीरे-धीरे साल 1999 से नहर का संचालन पूरी तरह से पनामा को सौंप दिया गया। पनामा नहर प्राधिकरण (Panama Canal Authority) इसका प्रबंधन करता है। यह नहर पनामा की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है, जिससे देश को वार्षिक आय का लगभग पाँचवाँ हिस्सा मिलता है। हर साल लगभग 14,000 जहाज इस नहर से गुजरते हैं। मोटे अनुमानों के मुताबिक, वैश्विक समुद्री व्यापार का 6% हिस्सा इस नहर से होकर गुजरता है।
पनामा नहर का सामरिक महत्व: पनामा नहर केवल व्यापार के लिए ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह नहर समुद्री मार्गों की लंबाई को हजारों किलोमीटर तक घटा देती है। इसके अलावा, इसका उपयोग युद्धपोतों और आपातकालीन राहत सामग्री को जल्दी से ले जाने के लिए किया जा सकता है।
दरअसल, अमेरिकी दक्षिणी कमान ने इन चीनी निवेशों के बारे में चिंता व्यक्त की थी। उसका कहना है कि पीपीसी के माध्यम से नहर के दोनों छोर की बंदरगाहों पर चीन के नियंत्रण ने इन चिंताओं को और बढ़ा दिया है। पीपीसी एक हांगकांग स्थित कंपनी है, जिसका बीजिंग के साथ मजबूत संबंध है। इस नियंत्रण से चीन को नहर पर पर्याप्त नियंत्रण मिलता है।
ग्रीनलैंड में भी डोनाल्ड ट्रंप की दिलचस्पी
पनामा नहर ही नहीं, डोनाल्ड ट्रंप की नजर ग्रीनलैंड पर भी है। दरअसल, ग्रीनलैंड, आर्कटिक महासागर के पास स्थित, दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है। यह डेनमार्क का एक स्वायत्त क्षेत्र है और प्राकृतिक संसाधनों, जैसे खनिज, तेल और गैस के लिए जाना जाता है। ग्रीनलैंड का भौगोलिक महत्व इसकी आर्कटिक स्थिति के कारण है। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सुरक्षा के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
साल 2019 में डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसे डेनमार्क ने खारिज कर दिया। ट्रंप का तर्क था कि ग्रीनलैंड के प्राकृतिक संसाधन और भू-राजनीतिक स्थिति अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। दरअसल, ग्रीनलैंड में तेल, गैस और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों के बड़े भंडार हैं। यह भविष्य में वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। वहीं, आर्कटिक क्षेत्र में ग्रीनलैंड की स्थिति इसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है। अमेरिका इस क्षेत्र में चीन और रूस के प्रभाव को कम करना चाहता है।
पनामा नहर को लेकर डोनाल्ड ट्रंप के दी कैसी धमकी?
दरअसल, अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा से पनामा नहर पर शुल्क कम करने और इसे अमेरिकी नियंत्रण में वापस करने की माँग की है। उन्होंने मध्य अमेरिकी देश पर अमेरिकी शिपिंग और नौसैनिक जहाजों से ‘अत्यधिक कीमत’ वसूलने का आरोप लगाया।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रविवार को एरिजोना में समर्थकों की भीड़ से उन्होंने कहा, “पनामा द्वारा लगाए जा रहे शुल्क हास्यास्पद और बेहद अनुचित हैं।” उन्होंने कहा, “हमारे देश के साथ यह पूरी तरह से धोखा तुरंत बंद हो जाएगा।” उनका इशारा अगले महीने पदभार ग्रहण करने पर था। इससे पहले शनिवार को उन्होंने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा कि पनामा नहर अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा में ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ निभाती है।
पनामा के राष्ट्रपति होजे राउल मुलिनो ने ट्रंप के बयान को उनकी संप्रभुता पर हमला बताया। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने कहा कि नहर ‘पनामा के हाथों में बनी रहेगी।’ उन्होंने कहा कि नहर का हर इंच पनामा का है और रहेगा। पनामा नहर प्राधिकरण ने भी ट्रंप के आरोपों को खारिज किया और कहा कि शुल्क का निर्धारण व्यावसायिक जरूरतों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर किया जाता है।
ट्रंप की विदेश नीति और कूटनीतिक प्रभाव
ट्रंप का बयान उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा है। वैसे, ट्रंप का यह कदम चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। हांगकांग स्थित कंपनियों का नहर के प्रवेश द्वारों पर नियंत्रण अमेरिका के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
पनामा नहर और ग्रीनलैंड दोनों ही सामरिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ये दोनों स्थान भू-राजनीतिक रणनीतियों के केंद्र में हैं। भले ही डोनाल्ड ट्रंप के बयान महत्वपूर्ण हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अमेरिका द्वारा अब पनामा नहर को वापस लेना संभव नहीं है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप के ये बयान अमेरिका-पनामा, अमेरिका-डेनमार्क के बीच के संबंधों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।