बीबीसी ने एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज की है। इसमें गुजरात दंगों को लेकर पीएम मोदी के कार्यकाल पर हमला किया गया है। दंगों के दौरान मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जारी इस विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री की निंदा की है। विदेश मंत्रालय ने इसे भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने की कोशिश करार दिया।
इस डॉक्यूमेंट्री में गोधरा कांड में इस्लामवादियों की भूमिका पर पर्दा डालने की कोशिश की गई है। गोधरा कांड में 59 हिंदू मारे गए थे।
इस डॉक्यूमेंट्री में 9:12 मिनट पर, यह दावा किया गया है कि इसमें आग का कारण विवादित था। लेकिन इसके बाद भी इस घटना के लिए मुस्लिमों को दोषी ठहराया गया था।
बीबीसी की पूर्व रिपोर्टर जिल मैकगिवरिंग ने इस डॉक्यूमेंट्री में कहा है, “गोधरा कांड एक ऐसे राज्य में हुआ था जहाँ हिंदू बहुसंख्यकों और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच तनाव का लंबा इतिहास रहा है। यहाँ सांप्रदायिक हिंसा और घृणित हिंसा का भी इतिहास रहा है।’
मैकगिवरिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दंगों का बदला लेने वाले कट्टरपंथी हिंदू के रूप में दिखाने की कोशिश है। जिसने कथित तौर पर चीजों को ऐसे पेश किया जिससे लगे गोधरा कांड के कारण हिंदुओं के बीच में गुस्सा था। इस गुस्से के कारण ही यह सब हुआ।
इस तरह से बीबीसी ने साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने वाले कट्टरपंथियों की भूमिका पर पर्दा डालने का असफल प्रयास किया है।
2002 के गोधरा ट्रेन कांड का सच
दरअसल, 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस को गोधरा स्टेशन पर लगभग सुबह 3:30 बजे पहुँचना था। उस दिन ट्रेन चार घंटे देरी से चल रही थी। इसलिए ट्रेन सुबह 7:40 बजे मिनट पर गोधरा पहुँची।
करीब 8 मिनट बाद, 2000 इस्लामवादियों की भीड़ ने गोधरा के मुस्लिम बहुल क्षेत्र – सिग्नल फलिया में ट्रेन के कोच एस 6 में आग लगा दी। इस कोच में 25 महिलाओं और 15 बच्चों सहित 59 हिंदू बैठे थे। इस्लामवादियों द्वारा लगाई गई आग में झुलस कर ये सभी मौत के मुँह में समा गए।
22 फरवरी, 2011 को निचली अदालत ने 31 इस्लामवादियों को गोधरा नरसंहार का दोषी करार दिया था। इसके बाद कोर्ट ने 11 लोगों को मृत्युदंड और 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालाँकि, अक्टूबर 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने सभी को आजीवन कारावास की सजा दे दी थी। इस केस में गोधरा कांड के प्रत्यक्षदर्शियों और जीवित बचे गवाहों के बयानों के आधार पर, कोर्ट में यह सिद्ध हो गया था कि इस्लामवादियों ने ही ट्रेन में आग लगाई थी।
एक आरोपित ने फरवरी 2003 में, कोर्ट में इस बात को स्वीकार किया था कि गोधरा कांड प्लानिंग के तहत किया गया हमला था। उसने यह भी कहा था कि वह इस हमले में शामिल था। इस तरह के बयान सबसे बड़े सबूत होते हैं। इनसे यह साबित होता है कि गोधरा कांड निर्दोष कारसेवकों पर सुनियोजित हमला था।
मार्च 2006 में आउटलुक में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट में गोधरा कांड को लेकर दो पैराग्राफ में महत्वपूर्ण बातें कहीं गईं थीं;
अहमदाबाद की रहने वाली गायत्री पाँचाल, 27 फरवरी, 2002 को हुई इस घटना में बच गईं थी। लेकिन उन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। गायत्री ने कहा है, “बनर्जी आयोग की रिपोर्ट बिल्कुल गलत है। मैंने सब कुछ अपनी आँखों से देखा है और मुश्किल से खुद से बचा पाई। लेकिन, अपने माता-पिता दोनों को खो दिया।”
गायत्री पाँचाल ने यह भी कहा कि बनर्जी आयोग की रिपोर्ट सही नहीं है क्योंकि आग दुर्घटनावश नहीं लगी, एस-6 कोच में कोई खाना नहीं बना रहा था और यह यात्रियों से भरा हुआ था। उन्होंने कहा है, “भीड़ ने काफी देर तक कोच पर पथराव किया और फिर जलते हुए चीथड़े फेंके और कुछ ज्वलनशील पदार्थ भी डाला ताकि कोच में आग लग जाए। मुझे इस बारे में जहाँ भी बयान देने के लिए बुलाया जाएगा, मैं वहाँ जाऊँगी।”
ये स्पष्ट है कि चश्मदीदों के मुताबिक, कोच एस -6 में आग तब लगी जब मुस्लिमों ने गैसोलीन डालकर आग लगाई। साथ ही, कार सेवक भाग न पाएँ इसलिए ट्रेन को चारों ओर से घेर लिया।
यहाँ यह जानना जरूरी है कि ट्रेन में आग लगने के कारणों लेकर मुस्लिमों और लिबरलों ने जितने भी दावे किए थे, उन सभी को नानावती-मेहता आयोग ने खारिज कर दिया था। इन दावों को खारिज करने के लिए आयोग ने फोरेंसिक साईंस लेबोरेट्री की रिपोर्ट का हवाला दिया था।
यही नहीं, आयोग ने कारसेवकों और स्थानीय मुस्लिमों के बीच हुई किसी प्रकार की हिंसा और हिंदुओं द्वारा मुस्लिम लड़की के साथ छेड़छाड़ जैसी किसी भी घटना की बात को झूठ करार दिया गया था।
आयोग ने कहा था, सभी गवाहों के बयान और पेश किए गए सबूतों से यह स्पष्ट है कि ट्रेन में क्षमता से अधिक भीड़ थी। ट्रेन के अंदर तथा बीच के स्टेशनों के प्लेटफार्मों पर कभी-कभार नारेबाजी करने के अलावा रामसेवकों ने कुछ भी नहीं किया था। साथ ही, पहले ऐसी कोई घटना भी नहीं हुई थी जो गोधरा में हुई घटना का कारण बन सकती थी। रास्ते में किसी भी तरह की घटना होने का सबूत नहीं मिला है।
ऐसे में, आयोग बिना किसी हिचकिचाहट के इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा यह कहा जाना कि उज्जैन रेलवे स्टेशन पर रामसेवकों और दुकानदारों के बीच झगड़ा हुआ था, पूरी तरह से आधारहीन है। अयोध्या से गोधरा तक की उसकी यात्रा में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई थी।
आग लगने के बारे में डीवी तलाटी ने नानावटी-मेहता आयोग को बताया था;
डीवी तलाटी ने कहा था, “उस कोच को जलाने में करीब 60 लीटर ज्वलनशी पदार्थ का इस्तेमाल किया गया होगा। कुछ जगहों पर कोच का फर्श पूरी तरह से जल गया था। खुली जगह में आग और सीमित स्थान पर आग लगने के बीच अंतर को समझाने के बाद, उन्होंने कहा कि आग फैलने की घटना एक ऐसी जगह पर हो सकती है जो छोटी और पूरी तरह से बंद है।”
उन्होंने कहा था, “साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच का आकार काफी बड़ा था। इसका कुल क्षेत्रफल 5000 स्क्वेयर फिट था। इसलिए, उस कोच में आग फैलने की कोई संभावना नहीं थी। आग कोच के नीचे से शुरू नहीं हुई थी। कोच को जलाने के लिए जितने ज्वलनशील पदार्थ की आवश्यकता थी, उसे बाहर से नहीं फेंका जा सकता था। ना ही बाहर से फेंके गए जलते हुए कपड़ों के टुकडों के आग लग सकती थी। चूँकि कोच के पूर्वी हिस्से में अधिक नुकसान हुआ था, इसलिए यह कहा गया था कि आग उस कोच के पूर्वी हिस्से में लगाई गई थी।”
निष्कर्ष
गोधरा नरसंहार इस्लामवादियों की निर्ममता और क्रूरता का सबसे बड़ा उदाहरण है। हालाँकि, इसके बाद भी इस्लामवादी क्रूर अपराधियों को लेकर अपनी सहानुभूति पेश करते हैं।
बीबीसी की यह डॉक्यूमेंट्री गुजरात दंगों को लेकर झूठ फैलाने की कोशिश है। इससे वह देश में बने शांति के माहौल को सांप्रदायिक हिंसा के माहौल में बदलना चाहता है। वास्तव में, बीबीसी ने पहले भी ऐसे प्रयास किए हैं। हालाँकि, देश साम्प्रदायिक हिंसा का माहौल बनाने वालों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।