Saturday, July 12, 2025
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PFI के ‘रिपोर्टर विंग’ ने बनाई थी 977 लोगों की हिट लिस्ट, रिटायर्ड जज के साथ अधिकांश हिंदुओं के नाम: NIA ने कोर्ट में पेश किए सबूत, कॉन्ग्रेस-लेफ्ट देते रहे हैं राजनीतिक समर्थन

कॉन्ग्रेस ने कहा कि अगर PFI पर बैन लगाया जा सकता है, तो RSS को भी बैन किया जाना चाहिए। यानी आतंकवाद के गंभीर आरोपों पर भी कॉन्ग्रेस की राजनीति चलती रही।

केरल की एक स्पेशल कोर्ट में सुनवाई के दौरान NIA ने बड़ा खुलासा किया है। एजेंसी ने बताया कि बैन हो चुके इस्लामी संगठन PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने करीब 977 लोगों की हिट लिस्ट तैयार की थी। इन लोगों को संगठन ने अपना दुश्मन माना था और मौका मिलते ही मारने की योजना बनाई थी। हिट लिस्ट में एक रिटायर्ड जिला जज का नाम भी शामिल है।

यह जानकारी NIA ने चार आरोपितों की ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दी। ये चारों आरोपित मुहम्मद बिलाल, रियासुद्दीन, अंसार के पी और सहीर के वी केरल के पालक्कड़ जिले से हैं। एजेंसी ने बताया कि ये लोग हिंसा फैलाने, हत्या की साजिश रचने और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हैं।

कहाँ से मिली इतनी बड़ी हिट लिस्ट?

NIA ने कोर्ट में बताया कि उन्होंने केरल में कई जगहों पर छापेमारी की। खासकर पेरियार वैली कैंपस, अलुवा में की गई रेड के दौरान उन्हें सबसे अहम सबूत मिले। यह जगह हथियारों की ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही थी।

इसमें से PFI के कार्यकर्ता सिराजुद्दीन के पास से 240 नामों वाली एक लिस्ट मिली, जिसमें सभी गैर-मुस्लिम समुदाय के लोग (अधिकाँश हिंदू) थे। एक फरार PFI कार्यकर्ता अब्दुल वहाब के बटुए से 5 लोगों के नाम और उनकी जानकारी थी। उसमें भी एक रिटायर्ड जिला जज का नाम शामिल है। इसके अलावा एक अन्य आरोपित जो अब सरकारी गवाह बन गया है, उसके पास से 232 लोगों की एक अलग लिस्ट मिली। वहीं अयूब टी ए नाम के शख्स के घर से 500 नामों की एक और लिस्ट मिली।

NIA ने कहा कि ये सभी लिस्ट्स मिलाकर यह साफ होता है कि PFI एक सुनियोजित रणनीति के तहत देशभर में अपने दुश्मनों को मारने की योजना बना रहा था।

कैसे काम करता था PFI का आतंक नेटवर्क?

NIA ने कोर्ट में बताया कि PFI का नेटवर्क बहुत गहराई से फैला हुआ था। इस संगठन के पास अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग टीमें थीं-

  1. रिपोर्टर विंग : यह टीम टारगेट बनने वाले लोगों की रेकी करती थी, उनके घर, ऑफिस, दिनचर्या और तस्वीरें जुटाती थी।
  2. सर्विस विंग: ये लोग हत्या को अंजाम देते थे।
  3. फिजिकल और आर्म्स ट्रेनिंग विंग: ये विंग नए लड़कों को ट्रेनिंग देती थी कि कैसे हथियार चलाने हैं और फिजिकल फिटनेस कैसे बनाए रखना है।

PFI के पास एक पूरी रणनीति थी- पहले रेकी, फिर ट्रेनिंग और आखिर में हत्या।

PFI का ‘India 2047’ प्लान और श्रीनिवासन की हत्या

NIA ने कोर्ट को बताया कि PFI का लक्ष्य केवल विरोधियों की हत्या करना नहीं था, बल्कि उनका एक लंबा प्लान था जिसे उन्होंने नाम दिया था ‘India 2047’। इस योजना का मकसद था – भारत में इस्लामी शासन की स्थापना करना।

यह बात तब सामने आई थी जब बिहार के फुलवारी शरीफ में 2022 में हुई छापेमारी में मुहम्मद जमालुद्दीन नाम के आरोपित के पास से 6 पेज का दस्तावेज मिला था, जिसमें इस योजना की पूरी जानकारी थी।

NIA ने ये भी बताया कि पालक्कड़ में RSS नेता श्रीनिवासन की हत्या कोई इत्तेफाक नहीं थी। बल्कि यह भी इसी ‘India 2047’ प्लान का हिस्सा थी। PFI के कैडरों के पास से ऐसे ऑडियो क्लिप और गवाहों के बयान मिले हैं जो यह साबित करते हैं कि संगठन के भीतर यह योजना कई स्तरों पर फैलाई जा चुकी थी।

कोर्ट ने क्यों खारिज की जमानत?

स्पेशल कोर्ट के जज पी के मोहनदास ने आरोपियों की ज़मानत याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है। आरोप Prima Facie यानी पहली नजर में ही सही लगते हैं। इसलिए UAPA की धारा 43D(5) लागू होती है, जिसके तहत गंभीर आरोपों वाले आतंकवादियों को जमानत नहीं दी जा सकती। जज ने कहा कि अब इस मामले में ट्रायल शुरू करने के लिए सबूत और गवाह पूरी तरह तैयार हैं।

PFI को लेकर कॉन्ग्रेस और लेफ्ट पर उठे सवाल

साल सितंबर 2022 में जब भारत सरकार ने PFI पर प्रतिबंध लगाया, तो लेफ्ट पार्टियों खासकर CPI(M) ने इसका खुलकर विरोध किया। उनका कहना था कि किसी संगठन को बैन करने से कुछ हासिल नहीं होता। CPI(M) ने यहाँ तक कह दिया कि जैसे कभी RSS पर भी बैन लगा था, वैसे ही PFI को बैन करना कोई बड़ी बात नहीं।

कॉन्ग्रेस ने बैन का खुला विरोध तो नहीं किया, लेकिन उसका रुख भी संदिग्ध रहा। कॉन्ग्रेस ने कहा कि अगर PFI पर बैन लगाया जा सकता है, तो RSS को भी बैन किया जाना चाहिए। यानी आतंकवाद के गंभीर आरोपों पर भी कॉन्ग्रेस की राजनीति चलती रही।

SDPI ने कॉन्ग्रेस को दिया चुनावी समर्थन

बता दें कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में PFI की राजनीतिक शाखा SDPI ने कॉन्ग्रेस को केरल में समर्थन दिया। इसके बाद बीजेपी ने कॉन्ग्रेस को जमकर घेरा। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि एक ओर कॉन्ग्रेस आतंकवाद की बात करती है और दूसरी ओर उन्हीं के सहयोग से चुनाव लड़ती है।

कॉन्ग्रेस ने बाद में सफाई दी कि उन्हें SDPI का कोई समर्थन नहीं चाहिए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बाद में केरल के पालक्कड़ उपचुनाव में बीजेपी के राज्य अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस और SDPI के बीच गुप्त समझौता हुआ है। उन्होंने कहा कि SDPI की ‘ग्रीन आर्मी’ नाम की टीम घर-घर जाकर UDF (कॉन्ग्रेस गठबंधन) के लिए वोट माँग रही थी।

क्या यह सिर्फ आतंक की कहानी है?

ये मामला सिर्फ PFI की साजिश तक सीमित नहीं है। इसमें देश की राजनीति का एक खतरनाक चेहरा भी उजागर होता है। जब एक संगठन देश में इस्लामी शासन की साजिश रच रहा था, तब कुछ राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के लिए उसी संगठन से सहानुभूति रखते दिखाई दिए। कॉन्ग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियों ने या तो इनपर चुप्पी साधी या फिर बैन का विरोध कर अपनी मंशा साफ कर दी। सवाल ये है कि क्या आतंकवाद से लड़ाई सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है? क्या राजनीतिक दल सिर्फ चुनाव के वक्त ही देशभक्ति दिखाएँगे?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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