Saturday, July 27, 2024
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जब कंधार-कंधार रटने वालों ने 25 खूंखार आतंकियों को रिहा कर दिया था.. जानिए क्या हुए उसके दुष्परिणाम

2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने 25 आतंकियों को Goodwill Gesture दिखाते हुए रिहा कर दिया था। आतंकियों से सद्भावना जताने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी क्या आज उन 25 आतंकियों को रिहा करने के बाद हुए दुष्परिणामों को लेकर कुछ कहेगी?

कॉन्ग्रेस पार्टी विरोधाभासों का प्रतीक है, विडंबनाओं की प्रतिमूर्ति है और धीरे-धीरे झूठ की भी अचल प्रतिमा बनती जा रही है। पार्टी के अध्यक्ष का तो कहना ही क्या। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों से उन्होंने ऐसा खेल खेला है कि मीडिया से लेकर राजनीतिक दल, सब अपनी गोटियाँ वहीं फिट कर रहे हैं। अब राहुल गाँधी एक फोटो को लेकर भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। इस फोटो में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कंधार विमान हाईजैक के दौरान तीन आतंकियों को छोड़ने जा रहे हैं, जिसमें मसूद अज़हर भी शामिल है। वही मसूद अज़हर, जिसने भारत में पठानकोट और पुलवामा सहित कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर हमारे जवानों का रक्त बहाया। उस समय क्या परिस्थितियाँ थीं और किन कारणों से ऐसा करना पड़ा उसकी हम संक्षेप में चर्चा करेंगे लेकिन, यहाँ हम आपको एक ऐसी बात बताएँगे, जिसे जानकार आप चौंक जाएँगे।

दरअसल, जो कॉन्ग्रेस आज भाजपा पर आतंकियों को रिहा करने का आरोप मढ़ रही है, उसी पार्टी की सरकार ने 2010 में एक, दो, तीन नहीं बल्कि 25 पाकिस्तानी आतंकियों को जेल से रिहा कर दिया था। उन्होंने इसे ‘Goodwill Gesture’ नाम दिया था। 24 दिसंबर 1999 को काठमांडू और नयी दिल्ली को जोड़ने वाले इंडियन एयरलाइन्स के विमान IC814 को हाईजैक कर लिया गया था। इस प्लेन को अफ़ग़ानिस्तान ले जाया गया, जहाँ उस समय तालिबान का राज था। आईएसआई और हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के इस संयुक्त आतंकी अभियान के बारे में अजीत डोभाल ने कहा था कि अगर उस समय आतंकियों को आईएसआई का समर्थन नहीं रहता तो परिस्थितियाँ कुछ अलग हो सकती थीं। डोभाल उस टीम का हिस्सा थे जो आतंकियों के साथ नेगोशिएशन कर रही थी।

कॉन्ग्रेस का ये कृत्य अख़बारों की सुर्खियाँ बना था

इस घटना के एक दशक पहले कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारुक़ अब्दुल्ला की बेटी रुबैया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था, जिसे छुड़ाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने पाँच आतंकियों को रिहा किया था। लोगों के मन में वो यादें ताज़ा थी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर देश भर में दबाव था और चर्चा चल रही थी कि अगर एक बड़े नेता की बेटी को छुड़ाने के लिए आतंकियों को रिहा किया जा सकता है तो 150 के क़रीब आम लोगों को छुड़ाने के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? सर्वदलीय बैठक में सभी पार्टियों की सहमति से निर्णय लिया गया कि तीनों आतंकियों को छोड़ा जाएगा। उस बैठक में सोनिया गाँधी ने भी हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं, डॉक्टर मनमोहन सिंह भी उस बैठक में शामिल थे।

आज कंधार-कंधार की रट लगाने वालों को अपनी पार्टी के दोनों सुप्रीम नेताओं- सोनिया गाँधी और डॉक्टर मनमोहन सिंह से पूछना चाहिए कि क्या उस बैठक में उन्होंने आतंकियों को रिहा करने और फँसे नागरिकों को छुड़ाने का विरोध किया था? अगर नहीं, तो राहुल गाँधी सहित आज के नेताओं को अपने सीनियर्स से कोचिंग लेकर उस समय की परिस्थितियों से अवगत होना चाहिए। रुबैया के अपहरण के बाद 5 आतंकी छोड़े गए थे। इसके एक दशक बाद 150 के लगभग यात्रियों की सकुशल वापसी के लिए 3 आतंकी छोड़े गए। अब एक दशक और आगे बढ़ते हैं। 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने 25 आतंकियों को यूँ ही रिहा कर दिया। ये उनके लिए ‘सद्भावना का संकेत’ था। आतंकियों से सद्भावना जताने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी क्या आज उन 25 आतंकियों को रिहा करने के बाद हुए दुष्परिणामों को लेकर कुछ कहेगी?

जिस आतंकी को रिहा किया, उसने पठानकोट में ख़ून बहाया

जिन 25 आतंकियों को डॉक्टर सिंह (अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गाँधी) के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने रिहा किया था, उसमे एक नाम शाहिद लतीफ़ का भी था। लतीफ़ पठानकोट हमले को अंजाम देने वाले फिदायीन गुट का प्रमुख हैंडलर था। पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने के लिए जिसे यूपीए सरकार ने रिहा किया, उसने एक झटके में हमारे सुरक्षा बल के 7 जवान और 1 नागरिक को मौत के घात उतार दिया था। 28 मई 2010 को पाकिस्तान को ख़ुश करने के लिए लतीफ़ सहित 25 आतंकियों को सीमा से वापस भेज दिया गया। न कोई मज़बूरी थी और न कोई दबाव। मुंबई हमले को अभी डेढ़ वर्ष ही हुए थे और 150 से भी अधिक लोगों के ख़ून को भारत सरकार इतनी जल्दी भूल गई। जब आतंकियों का सफाया होना चाहिए था, तब उन्हें छोड़ दिया गया। इसी लतीफ़ को कंधार काण्ड के दौरान वाजपेयी सरकार ने रिहा करने से मना कर दिया था। इतना ही नहीं, अटल सरकार ने लतीफ़ सहित 31 आतंकियों को रिहा करने से साफ़ इनकार कर दिया था।

आपको यह जान कर हैरानी होगी कि लतीफ़ को रिहा करने की माँग वही आतंकी कर रहे थे, जिन्होंने 1999 में भारतीय विमान को हाईजैक किया था। इतने खूंखार आतंकी को यूं छोड़ दिया गया जैसे कि वह कोई चोरी-चकारी का मुजरिम हो। कंधार काण्ड के बाद तो राजग सरकार और सतर्क हो गई थी। उसने लतीफ़ को कश्मीर से निकाल कर वाराणसी के जेल में स्थानांतरित कर दिया ताकि उसे छुड़ाने के लिए आतंकी फिर से कोई ऐसी-वैसी हरकत न करें। अव्वल तो यह कि बदले में पाकिस्तान ने किसी एक भी भारतीय क़ैदी को रिहा नहीं किया। यह कैसा सद्भावना सन्देश या Goodwill Gesture था जहाँ भारत ने उन्हीं आतंकियों को रिहा किया जिन्होंने बदले में हमारे जवानों व नागरिकों को मारा। पाकिस्तान ने भारत की बेइज्जती करते हुए इस सद्भावना का कोई पॉजिटिव प्रत्युत्तर नहीं दिया।

डोवाल के इसी चित्र को आधार बना कर राहुल गाँधी भाजपा पर हमले कर रहे हैं

ऐसा नहीं था कि कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के इस कथित सद्भावना वाले कार्य के बाद आतंकी हमले होने बंद हो गए। इसके बाद मुंबई, बनारस, पुणे, दिल्ली, पटना, गया, बंगलुरु और हैदराबाद सहित तमाम धमाके हुए और केंद्र सरकार हाथ मलती रही। बता दें कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश के प्रमुख शहरों में इस तरह के आतंकी धमाके नहीं हुए। कंधार-कंधार का रट लगाने वाली कॉन्ग्रेस को याद करना चाहिए की वो आतंकी तो देश से बाहर अपने सुरक्षित ठिकाने पर जा चुके थे लेकिन मुंबई हमलों के दौरान तो आपकी आर्थिक राजधानी में घुसकर 10 आतंकियों ने 3 दिन तक पूरे देश को एक तरह से बंधक बनाए रखा। अगर ख़ून का हिसाब होगा, तो कॉन्ग्रेस के दाग इतने गहरे हैं कि सर्फ एक्सेल भी न छुड़ा पाए।

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते देश की संपत्ति पर पहला हक़ समुदाय विशेष का बताया था। शायद यही कारण था कि उन्होंने उन 25 आतंकियों को रिहा किया जिनमें सभी पाकिस्तानी थे। क्या उनमें से कोई सुधरा? क्या पाकिस्तान सुधरा? इसका हिसाब दीजिए, तब कंधार का नाम भी लीजिए।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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