शीर्ष नेतृत्व की मोदी घृणा ने कॉन्ग्रेस को इतना कुंठित कर दिया है कि वह राजनीति के सामान्य तकाजे से भी दूर जा चुकी है। इस नियति को उसने खुद चुना है। अतीत के अनुभवों से नहीं सीखा। न ही यह याद रख पाई कि दिल्ली की सत्ता में AAP उसे बेदखल कर आई थी न कि BJP को।
मुफ्त में चीजें देने के बल पर राजनीति हर जगह नहीं चल सकती। ये ट्रेंड दक्षिण भारत से चला लेकिन आज वहीं फेल हो रहा है। ये चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं लड़ा गया, ये स्पष्ट है। फिर मुद्दे क्या थे? जब चुनाव में कोई बड़ा चेहरा आता है, तो दिल्ली उस पर भरोसा जताती है।
राहुल गाँधी की नर्वसता उस दिन साफ़ देखी गई कि, जब राहुल गाँधी दिल्ली की इकलौती अपनी जनसभा में बोल बैठे, "6 महीने बाद मोदी को देश के युवा डंडा मारेंगे।" दिल्ली में कॉन्ग्रेस की इकलौती जनसभा में दिया राहुल गाँधी का यह बयान पार्टी के गले की फाँस बन गया, जिसे लेकर कॉन्ग्रेस पार्टी के कई बड़े नेताओं को सफाई तक देनी पड़ी।
अब फिर से पत्रकार अरविन्द केजरीवाल को पीएम मोदी के टक्कर का चेहरा बना कर पेश करेंगे। उनका महिमामंडन किया जाएगा, बावजूद इसके कि क्षेत्र और जनसंख्या के हिसाब से देखें तो दिल्ली की उनकी जीत का ये अर्थ कतई नहीं निकलता कि यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों में भी AAP पाँव पसार ही लेगी।
दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाक़ों के ट्रेंड्स पर नज़र डालें तो बहुत कुछ साफ हो जाता है। ओखला, सीलमपुर, मटिया महल और बल्लीमरान विधानसभा क्षेत्रों से आम आदमी पार्टी आगे चल रही है। इन चारों ही क्षेत्रों से AAP ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे।
रुझानों में दिल्ली में लगातार तीसरी बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार बनती दिख रही है। AAP ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा पर एक आरामदायक बढ़त बना ली है।
"मैं अपनी हार स्वीकार करते हुए, विकासपुरी विधानसभा क्षेत्र के सभी मतदाताओं व कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं का आभार व्यक्त करता हूँ और आशा करता हूँ कि क्षेत्र का चौमुखी (चहुमुखी) विकास होगा। मैं भविष्य में भी दिल्ली, विकासपुरी व उत्तम नगर विधानसभा क्षेत्र के चौमुखी विकास के लिए लड़ाई लड़ता रहूँगा।"
AAP अभी तक 51 सीट और बीजेपी 19 सीट पर आगे चल रही है। हालाँकि, चुनाव आयोग के आधिकारिक रुझानों के मुताबिक फिलहाल बीजेपी और आम आदमी पार्टी 10-10 सीट पर आगे चल रही हैं।
2014 में मोदी की लोकप्रियता भुना कर अपना उल्लू सीधा करने के बाद प्रशांत किशोर बिहार पहुँचे। मीडिया ने ऐसा प्रचारित किया कि वो राजनीति 'चाणक्य' हो गए हैं और उनसे बड़ा चुनावी रणनीतिकार कोई है ही नहीं। अब सवाल उठता है कि क्या उन्होंने मीडिया को बड़े स्तर पर मैनेज किया?