वक्फ के माध्यम से जमीन हड़पना कोई कल्पना नहीं है। ऐसी खबरें आये दिन सुनने को मिलती रहती हैं, जहाँ वक्फ बोर्ड ने सार्वजनिक या निजी भूमि को वक्फ के रूप में पंजीकृत करने की माँग की है। इसमें तमिलनाडु में एक पूरा हिंदू गाँव, सूरत में सरकारी इमारतें, बेंगलुरु में तथाकथित ईदगाह मैदान, हरियाणा में जठलाना गाँव, हैदराबाद का पाँच सितारा होटल आदि शामिल हैं।
भूमि हड़पने के तीन सबसे सामान्य रूप हैं- किसी भूमि पर कब्रिस्तान के रूप में दावा करना, मजार/दरगाह बनाना और सार्वजनिक भूमि पर नमाज पढ़ना शामिल है। सार्वजनिक जमीनों पर शायद इसलिए नमाज पढ़ी जाती है, ताकि उसे वक्फ संपत्ति के रूप में दावा किया जा सकता है। पिछली कुछ स्थितियाँ एवं दावे इनसे संबंधित और इससे भी बढ़कर मिले हैं।
इन घटनाओं से पता चलता है कि गैर-समायोजित कानून और इसके द्वारा बनाया गया भूमि हड़पने वाला भ्रष्ट अभिजात वर्ग सामाजिक संघर्ष और सांप्रदायिक वैमनस्य के लिए हिन्दुओं की सम्पतियों के खिलाफ एक सोचा-समझा तंत्र है। वक्फ संस्था कानूनी रूप से अनावश्यक है। वक्फ की कानूनी संस्था और बोर्ड की नौकरशाही का अस्तित्व सिर्फ इस्लामवादी राजनीति के लिए एक गढ़ के रूप में ही समझ में आता है।
हालाँकि, यहाँ ध्यान दिया जा सकता है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में केवल एक तर्कसंगत कानूनी प्रणाली को आम हित में काम करना चाहिए, सिर्फ ‘पहचान को चिह्नित करने वाले’ के रूप में नहीं। वक्फ का कानून आज जिस स्थिति में है, वह सार्वजनिक शांति, सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरनाक है। यह निजी संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है और संभावित रूप से चरमपंथी राजनीति को प्रोत्साहित करता है।
वक्फ अधिनियम 1995 और वक्फ न्यायशास्त्र आज जिस स्थिति में है, वह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन है। यह अधिनियम एक समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक प्रतिष्ठानों के एक वर्ग को बहिष्कृत करने के लिए प्रक्रियात्मक और वास्तविक सुरक्षा की एक विशेष प्रणाली बनाता है।
वक्फ मशीनरी कैसे काम करती है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लीजिए कि मिस्टर X का मिस्टर Y की ज़मीन के पास एक ज़मीन है। भूमि का अच्छी तरह से सीमांकन नहीं किया गया है और संभवतः विवादित भी है, क्योंकि इसे वक्फ उपयोगकर्ता द्वारा विवादित बनाया जा सकता है। इसके लिए किसी दस्तावेज़ की आवश्यकता भी नहीं है। फिर वह इसे वक्फ बोर्ड में पंजीकृत कराता है।
बोर्ड भूमि के बारे में पूछताछ करने के लिए बाध्य है और यदि मिस्टर X को पता चलेगा तो वह पंजीकरण का विरोध भी कर सकता है। हालाँकि, एक बार फिर बोर्ड के पास यह निर्णय लेने की पूरी शक्ति है कि वह भूमि वास्तव में वक्फ संपत्ति है या नहीं। जैसा कि पहले निर्दिष्ट किया गया है, वक्फ बोर्ड एक राजनीतिक निकाय है, जिसे वक्फ की रक्षा और बढ़ावा देने का अधिकार है।
इसलिए, निकाय के समक्ष कार्यवाही का मध्यकालीन व्यवस्था क़ाज़ी के समक्ष की तुलना में उचित परिणाम निकलने की अधिक संभावना नहीं है। राज्य प्रशासन वक्फ बोर्ड के निर्देश का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है। ऐसे में मिस्टर X के पास ट्रिब्यूनल में एक छोटी सी अपील होगी। यह इकाई भारी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होगी। इसके निर्णय के खिलाफ कोई और वैधानिक अपील नहीं है।
ऐसे में मिस्टर X के लिए यह विशेष रूप से कठिन होगा, यदि भूमि को अधिनियम की धारा 4 के तहत वक्फ के राज्य सर्वेक्षण द्वारा (बोर्ड द्वारा पंजीकरण के आधार पर) वक्फ के रूप में सीमांकित किया गया है। इस सबके बीच, मिस्टर X का सामना न केवल मिस्टर Y से होगा, बल्कि वक्फ फंड और हजारों कर्मचारियों द्वारा समर्थित पूरी वक्फ नौकरशाही से होगा।
इस दौरान मिस्टर X को आपराधिक मुकदमे से भी डराया जाएगा और बताया जाएगा कि यह साल 2013 के संशोधनों को अधिनियम में जोड़ा गया है। बेशक, मिस्टर X वक्फ अधिकारियों को रिश्वत की पेशकश कर सकते हैं और इस लहर से बाहर निकल सकते हैं या फिर उन्हें अपनी जमीन को मिस्टर Y के हाथ में जाते हुए देखते रह जाना होगा।
वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार का एक अद्भुत स्रोत है। भारत में इस्लाम फैलाने के लिए कॉन्ग्रेस की सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड का गठन किया था। इतिहास के अनुसार, इस्लाम की उत्पत्ति 7वीं शताब्दी ईस्वी में मक्का और मदीना में इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद के मिशन से हुई थी। 622 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद यतुरिब शहर (अब मदीना कहा जाता है) चले गए। वहाँ उन्होंने अरब की जनजातियों को एकजुट करना शुरू किया।
इस्लाम के तहत नियंत्रण लेने के लिए वे साल 630 में मक्का लौट आए और सभी बुत (मूर्तियों) को नष्ट करने का आदेश दे दिया। लगभग 632 ईस्वी में जब उनकी मृत्यु हुई तब तक अरब की लगभग सभी जनजातियाँ नष्ट हो चुकी थीं। शुरुआती मुस्लिम कबीले इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व भर मे फैलने के लिए निकले।
8वीं शताब्दी ईस्वी तक उमय्याद खिलाफत में इस्लाम पश्चिम में लाइबेरिया से लेकर पूर्व में सिंधु नदी तक फैल गया। वहीं, सनातन इस्लाम के आने से सदियों पुराना है। ये वही सनातन धर्म है, जिसके मुख्य मंदिरों पर मुस्लिमों का कब्ज़ा है। आज के समय मे वे हमारे मंदिरों को वक़्फ़ की प्रॉपर्टी कहते हैं। जैसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि, श्री काशी विश्वनाथ का असली स्वयंभू शिवलिंग, जो ज्ञानवापी परिसर में स्थित है।
देश भर में ऐसे हज़ारों मंदिर एवं धर्मस्थान हैं, जिन्हें खंडित करके उन पर मस्जिद थोप दिए गए। मथुरा का शाही ईदगाह, वाराणसी का ज्ञानवापी मस्जिद, अयोध्या में कभी रहा बाबरी मस्जिद, धार का भोजशाला आदि ये सब जगह नमाज पढ़ने के लिए नहीं थी, बल्कि मुस्लिम आक्रांताओं की विजय की निशानियों में हमारे मुख्य तीर्थस्थलों को परिवर्तित किया गया था। आज ये सब वक़्फ़ के कब्जे मे है।