हैदराबाद में बिजनेस की तरह चल रही ‘शेख मैरिज’ और ‘मुताह निकाह’ कॉन्सेप्ट पर आज (29 नवंबर 2024) फिर आजतक पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। मृदुलिका झा ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट के आखिरी हिस्से में बताया है कि कैसे हैदराबाद में शेख मैरिज का चलन शुरू हुआ और कैसे आज इसे संचालित किया जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, हैदराबाद में शेख मैरिज की नींव निजामों के काल से पड़ी। उस समय निजामों ने अपनी दौलत की रखवाली के लिए यमन से जो सैनिक ( जिन्हें चाऊश कहते थे) बुलाए थे, उन्होंने निजाम की फौज खड़ी करने के लिए हैदराबादी महिलाओं से निकाह करके बच्चे किए, जिनमें से कुछ के वंशज आज मुताह निकाह कराने के ‘ब्रोकर और एजेंट’ है।
बताया जाता है कि चूँकि चाऊशों के अपने मुल्क लौटने के बाद उनके वंशज को अरब देशों में नागरिकता नहीं मिली, इसलिए उन्होंने शेखों से अपनी बेटियों का निकाह करना शुरू कर दिया। शुरू में ये शेख मैरिज शॉर्ट-टर्म नहीं थी, मगर बाद में धीरे-धीरे ये निकाह मजे के लिए किए जाने लगे, और निकाह के साथ तलाक की तारीखें भी पक्की होने लगीं। चाऊश के वंशज खुद अपनी बेटियों के लिए ब्रोकर-एजेंट बनने लगे।
वहीं शेखों को भी पता चल गया कि उनकी जरूरत पूरा करने के लिए हैदराबाद में पूरे इंतजाम हैं। उनके मजहब के हिसाब से सेक्स वर्क के पास जाना हराम था इसलिए उन्होंने भारत में इसका विकल्प खोजा। उन्होंने निकाह करके लड़कियों को अपने साथ रखना शुरू किया। 10-15 दिन जब तक मन न भरे ये निकाह करके उनके साथ रहते, फिर उन्हें छोड़कर चले जाते। इस तरह वो अपने मजहब के मुताबिक कुछ हराम भी नहीं करते थे और उनकी जरूरत भी पूरी हो जाती थी।
मृदुलिका अपनी रिपोर्ट में इस्लामी स्कॉलरों के हवाले से बताती हैं कि चूँकि अरब में लड़की से निकाह के लिए शर्तें अलग हैं और खर्चा भी ज्यादा इसलिए हैदराबाद में अरब देशों के बूढे शेख मेडिकल वीजा पर आते हैं, यहाँ आकर वह सस्ते दामों में लड़कियाँ खरीदते हैं और फिर अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं।
इन शेखों का हैदराबाद में कितनी खातिरदारी होती है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि क्षेत्र में स्थानीय लोग तेलुगु और उर्दू बोलते हैं, लेकिन अस्पतालों में निर्देश अरबी भाषा में लिखे गए हैं ताकि अमीर शेखों को कोई परेशानी न हो।
रिपोर्ट बताती हैं कि रमजान के वक्त हैदराबाद में शेखों का आना-जाना ज्यादा हो जाता है। वो इस महीने में भी जो मन हो वो करते हैं। वो मानते हैं जवान या वर्जिन लड़कियों के साथ संबंध बनाकर उनकी जवानी लौट आएगी। कई शेख को नब्ज देखकर आँकते हैं कि लड़की वर्जिन है या नहीं।
मालूम हो कि मुताह निकाह में लड़की का बालिग होना एक शर्त होती है, मगर बालिग होने का अर्थ 18 साल की उम्र पार करना नहीं बल्कि लड़की को पीरियड का आना है। अब ये उम्र 13 भी हो सकती है और 15 भी।
बता दें कि हैदराबाद में कई घर हैं जो मुताह निकाह के बूते अपना घर पाल रहे हैं। वो लड़कियों को कम उम्र में बेचते हैं और फिर घर चलाते हैं। हैदराबाद के बारकस इलाके को लेकर तो रिपोर्ट कहती है कि वहाँ के 100 घरों में से 33 घर में ये शेख मैरिज हुई और अब भी ये सिलसिला जारी है।
अजीब बात ये हैं कि इस मुताह निकाह को इस्लामी स्कॉलर एक तरह की लिबर्टी मानते हैं। जैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शिया थियोलॉजी के एक्सपर्ट डॉ अब्बास कहते हैं कि अगर किसी को स्थायी रिश्ते में जाने से पहले पार्टनर को परखना है तो मुताह एक तरीका हो सकता है। बशर्ते इसमें दोनों की सहमति हो।
गौरतलब है कि इससे पहले मुताह निकाह पर प्रकाशित दो रिपोर्ट में मृदुलिका झा ने पीड़िताओं की आपबीती को बताया था। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने उस बच्ची के दर्द को उजागर किया था जिसे एक शेख प्रेगनेंट करके वापस चला गया था और बाद में उसे बच्ची को जन्म देना पड़ा था। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने बताया था कि कैसे शेखों को हैदराबाद में ब्रोकर 20-25-50 हजार में बच्चियाँ मुहैया करवा देते हैं। परेड करवाकर लड़कियों को चुना जाता है। उनका शरीर नापा जाता है और फिर निकाह कराकर लड़कियाँ उन्हें इस्तेमाल के लिए दे दी जाती हैं। इसके अलावा रिपोर्ट में उन हैदराबादी आंटियों के बारे में भी बताया था जो अरब देशों में रहकर लड़कियों का शोषण करवाने में शेखों की मदद करती हैं या फिर हैदराबाद में रहकर लड़कियों की जानकारी मुहैया कराती हैं।