Friday, May 3, 2024
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निर्भया के गुनहगारों को फॉंसी देने के लिए जल्लाद को मिलेंगे ₹1 लाख, अब तक का सबसे बड़ा मेहनताना

निर्भया के साथ दरिंदगी को सात साल हो गए हैं। इस मामले के चार दोषियों को फॉंसी की सजा सुनाई गई थी। उन्हें जल्द से जल्द फॉंसी देने की मॉंग की जा रही है। इस बीच, एनआरसीबी ने बताया है कि देश में बलात्कार के मामलों में दोषसिद्धि दर 32.2 प्रतिशत ही है।

दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद निर्भया के कातिलों को जल्द से जल्द फाँसी देने की माँग हो रही है। कहा जा रहा है कि 16 दिसंबर 2012 की रात दरिंदगी को अंजाम देने वाले चारों दोषियों को इसी हफ्ते फँदे पर लटकाया जाएगा। खबरों के अनुसार निर्भया के कातिलों को फाँसी देने वाले जल्लाद को अब तक का सबसे अधिक मेहनताना दिया जाएगा। यह 70 हजार से 1 लाख रुपए तक हो सकता है।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस बात की सूचना खुद तिहाड़ के एक अधिकारी ने दी है। अधिकारी ने बताया कि पुराने समय में फाँसी देने के लिए जल्लाद को 500 रुपए से 5000 रुपए तक दिए जाते थे। लेकिन महंगाई देखते हुए प्रत्येक दोषी को फाँसी पर लटकाने के लिए जल्लाद को 25 हजार रुपए तक भी दिया जा सकता है। बता दें जल्लादों की सैलरी (वन टाइम मेहनताना) इस बात पर निर्भर करती है कि जिस राज्य से जल्लाद को बुलाया जाएगा वह उसके लिए प्रति फाँसी कितना पैसा तय करता है। ऐसे में निर्भया के चार दोषियों को फाँसी देने वाले जल्लाद के लिए माना जा रहा है कि 1 लाख रुपए तक मिल सकती है।

नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर

जानकारी के लिए बता दें, इससे पहले इन चारों दोषियों को फँदे पर लटकाने के लिए बक्सर जेल से 10 रस्सियाँ मँगाईं जा चुकी हैं। जिनमें प्रत्येक की कीमत सवा 2 हजार रुपए है। अब तिहाड़ में इन्हें लटकाने की तैयारी चालू है। जेल प्रशासन दोषियों को फाँसी देने के लिए देश भर से जल्लाद ढूँढ रहा है। जिसके मद्देनजर यूपी से ही 2 जल्लादों को इस काम के लिए ग्रीन सिग्नल मिला है। अगर फाँसी का समय नजदीक आते-आते कहीं और से जल्लाद नहीं मिलता तो मेरठ से पवन जल्लाद ही इस काम को पूरा करेंगे।

पवन मेरठ जेल (Meerut Jail) से जुड़े अधिकृत जल्लाद हैं। जिसके कारण उन्हें हर महीने एक तय रकम वेतन के रूप में भी मिलती है। इसके अलावा वे साइकिल पर कपड़ा बेचने का भी काम करता है। उनकी उम्र वर्तमान में 56 साल है और फाँसी देने के काम को वो महज एक पेशे के तौर पर देखते हैं। उनका मानना है कि कोई व्यक्ति न्यायपालिका से दंडित हुआ होगा और उसने वैसा काम किया होगा, तभी उसे फाँसी की सजा दी जा रही होगी, लिहाजा वो केवल अपने पेशे को ईमानदारी से निभाने का काम करता है।

हालाँकि, जेल अधिकारियों का ये भी कहना है कि नियमानुसार बिना जल्लाद के भी फाँसी दी जा सकती हैं। क्योंकि संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरु को बिना जल्लाद के ही फाँसी पर लटकाया गया है। जिसके चलते इस कार्य को कोई स्टाफ सदस्य भी कर सकता है।

बलात्कार दोषसिद्धि दर केवल 32 प्रतिशत

गौरतलब है कि पूरे देश को हिलाकर रखने वाले निर्भया कांड के बाद देश के कोने-कोने से महिला सुरक्षा पर सवाल उठे थे। ढीली न्यायप्रक्रिया पर लोगों ने आवाज उठाई थी और उसी दौरान यौन उत्पीड़न पर सख्त कानून बनाए गए थे। लेकिन बावजूद इन सबके आज भी देश में बलात्कार के मामलों में दोषसिद्धि दर 32.2 प्रतिशत है। जिसकी पुष्टि खुद एनसीआरबी के आँकड़ों ने की है। दरअसल,वर्ष 2017 के लिए उपलब्ध राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार उस वर्ष बलात्कार के मामलों की कुल संख्या 1,46,201 थी, लेकिन उनमें से केवल 5,822 लोगों की दोषसिद्धि हुई। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2017 में बलात्कार के मामलों में आरोप-पत्र की दर घटकर 86.4 प्रतिशत रह गई जो 2013 में 95.4 प्रतिशत थी। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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