प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज बुधवार (मार्च 26, 2019) को भारत के अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि भारत ने आज एक अभूतपूर्व सिद्धि हासिल की है। भारत ने आज अपना नाम ‘स्पेस पॉवर’ के रूप में दर्ज करा लिया है। अब तक रूस, अमेरिका और चीन को ये दर्जा प्राप्त था, अब भारत ने भी यह उपलब्धि हासिल कर ली है।
भारत ने आज अपना नाम ‘स्पेस पावर’ के रूप में दर्ज करा दिया है। अब तक दुनिया के 3 देशों अमेरिका, रूस, और चीन को ये उपलब्धि हासिल थी। अब भारत चौथा देश है, जिसने आज यह सिद्धि प्राप्त की है: PM @NarendraModi जी #MissionShakti pic.twitter.com/GraQf4VWJS
— Chowkidar Piyush Goyal (@PiyushGoyal) March 27, 2019
मोदी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा में राष्ट्र को बताया कि भारत ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (एएसएटी) विकसित किया है जिससे अंतरिक्ष में दुश्मन के उपग्रहों को मार गिराया जा सकता है।
लेकिन भारत में बैठे कॉन्ग्रेस के कुछ नेताओं, लिबरल पत्रकारों ने इस उपलब्धि पर भी नेहरू, इंदिरा से लेकर पूरा कॉन्ग्रेसी खानदान को श्रेय दे डाला। कुछ ने तो इसे सिर्फ DRDO की उपलब्धि बता डाला। ठीक वैसे ही जैसे सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना और एयर फोर्स को पूरा क्रेडिट देने के चक्कर में, प्रधानमंत्री के नेतृत्व को पूरी तरह नकारना चाहा।
While a successful A-SAT launch is a bold strategic move, PM making such a big deal of it personally shows a poll-eve desperation we hadn’t yet detected/suspected. It’s just a frantic new national security headline as Balakot has faded in a month.
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) March 27, 2019
कॉन्ग्रेस के राजनेता और चाटुकार पत्रकार तो चरण वंदना में इतने प्रवीण हैं कि आज के इस शानदार उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों और वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व के बजाय जवाहरलाल नेहरू को श्रेय देने में अपनी पूरी ऊर्जा झोंक रहे हैं। अगर अभी उन्हें याद दिलाया जाए कि कश्मीर में जो हो रहा है, चीन ने भारत का भूभाग हड़प लिया, भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य किसकी वजह से नहीं बना… तो इन्हें नेहरू और कॉन्ग्रेस के नाम पर साँप सूँघ जाता।
I congratulate our space scientists in ensuring that we continue to reach new heights in space missions!
— Priyanka Chaturvedi (@priyankac19) March 27, 2019
Burn moment for bhakts who keep cursing Pt. Nehru,it was his&Dr.Homi Bhabha’s far sightedness that has got us where we are today,in shorter span of time than any other nation.
यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने डीआरडीओ को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर व्यंग्य कर उनके योगदान को ख़ारिज करना चाहा।
Well done DRDO, extremely proud of your work.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 27, 2019
I would also like to wish the PM a very happy World Theatre Day.
जबकि सदैव चरण वंदन में संलग्न उन लिबरल पत्रकारों और कॉन्ग्रेस के नेताओं को ये अच्छी तरह पता है कि उन्होंने हर क्षेत्र में लूटपाट और घोटालों की संस्कृति को बढ़ावा देकर भारत के संभावित विकास को कितना पीछे धकेल दिया है। कॉन्ग्रेस शासन का पूरा इतिहास ऐसे काले अध्याओं से भरा है कि भारत की लगभग हर स्वायत्त संस्था को बर्बाद करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अगर आपने न पढ़ा हो तो पढ़िएगा इसरो वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन के बारे में कि कैसे कॉन्ग्रेसियों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनकी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी और वैज्ञानिक शोध को वर्षों पीछे धकेल दिया।
आज की कामयाबी, DRDO और ISRO के साथ ही यह वर्तमान सरकार की वैश्विक राजनीति में भारत के बढ़ते कद को भी दर्शाता है कि वह इस तरह की कोशिश करने का साहस भी कर सकता है। हमारे वैज्ञानिक 2010 से कह रहे हैं कि हमारे पास ASAT मिसाइलों को विकसित करने के लिए अपेक्षित क्षमताएँ हैं लेकिन उन्हें इस पर काम करने का मौका नहीं दिया गया। स्पष्ट रूप से, यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी।
इस बात से इनकार नहीं किया जा रहा है कि भारत को अपने इस महत्वाकांक्षी मिशन को आगे बढ़ाने से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता था। फिर भी ये नरेंद्र मोदी जैसे ग्लोबल पहुँच वाले नेता के नेतृत्व क्षमता की ही बात है कि वैश्विक दबाव को अपने पक्ष में मोड़ते हुए आज भारत को सफलता के इस शिखर पर पहुँचाया। जहाँ भारत एक वैश्विक शक्ति बनकर उभरा है। इससे पहले एलिट मानसिकता के लोग हमारे मंगल जैसे बेहद सस्ते और सफल प्रोजेक्ट का मजाक उड़ाने से नहीं चुके थे। आज उनमें भी हलचल होगा और ये डर भी कि मोदी अगर इसी तरह देश को आगे बढ़ाता रहा तो आने वाले दिनों में कोई भी हमारी तरफ आँख उठा कर देखने से पहले सौ बार सोचेगा।
लाइवफिस्ट के अनुसार, 2010 में, भारत के एडवांस्ड सिस्टम्स लेबोरेटरी (एएसएल) के निदेशक डॉ अविनाश चंदर ने कहा था, “हमने ऐसे प्रौद्योगिकी ब्लॉक विकसित किए हैं, जिन्हें एक उपग्रह-रोधी हथियार (anti-satellite weapon) बनाने के लिए एकीकृत किया जा सकता है। अंतरिक्ष में ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए हमें जो तकनीक चाहिए वह है, जिसे हमने अग्नि मिसाइल कार्यक्रम के साथ बहुत मजबूती से साबित किया है।” फिर भी कॉन्ग्रेस ने इस तरह के शोध और भारत को शक्तिशाली बनाने पर ध्यान न देकर घोटालों से खुद की झोली भरने पर ध्यान दिया।
डीआरडीओ प्रमुख डॉ वीके सारस्वत ने कहा था, ”हमारे पास पहले से ही इस तरह के एक हथियार का डिजाइन है, लेकिन इस स्तर पर, देश को अपने सामरिक शस्त्रागार में इस तरह के हथियार की आवश्यकता है या नहीं, यह निर्णय सरकार को करना होगा। इस तरह के हथियार का परीक्षण करने पर बहुत सारे परिणामों का सामना करना पड़ सकता हैं, जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए। लेकिन परीक्षण एक मुद्दा नहीं है- हम हमेशा सिमुलेशन और जमीनी परीक्षण पर भरोसा कर सकते हैं। हम भविष्य में देख सकते हैं कि क्या सरकार ऐसा कोई हथियार चाहती है। यदि हाँ, तो हमारे वैज्ञानिक इसे देने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं।”
2012 में, इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में, डॉ सारस्वत ने रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कुछ साल पहले दिए गए बयानों को दोहराया था। उन्होंने कहा था, “आज, भारत में जगह-जगह एक एंटी-सैटेलाइट सिस्टम के लिए सभी बिल्डिंग ब्लॉक्स मौजूद हैं। हम अंतरिक्ष को हथियार नहीं बनाना चाहते हैं लेकिन बिल्डिंग ब्लॉक्स जगह पर होना चाहिए। क्योंकि आप उस समय इसका उपयोग कर सकें जब आपको इसकी आवश्यकता होगी।”I
चीन ने 2007 में जब ऐसी क्षमता हासिल कर ली थी तब से भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा ASAT मिसाइलों के निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही थी। जबकि सारस्वत ने कहा था कि भारत के पास आवश्यक क्षमताएँ हैं। लेकिन भारत की स्पेस क्षमता के आलोचकों को संशय था। इसके अलावा, यह कहा जा रहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत के साथ बहुत अलग तरह से व्यवहार करेगा जबकि चीन के साथ ऐसे परीक्षणों के बाद भी व्यवहार बहुत नहीं बदला था।
पड़ोसी देश की बढ़ती ताकत को देखते हुए भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान को अंतरिक्ष में चीन की क्षमताओं का मुकाबला करने के लिए ASAT मिसाइलों को विकसित करने की आवश्यकता महसूस हुई थी। डीआरडीओ प्रमुख ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया था कि भारत के पास ऐसी मिसाइलों को विकसित करने और परीक्षणों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक क्षमताएँ हैं। ASAT मिसाइलों का निर्माण करने की क्षमताओं के बावजूद, इस मिशन पर तत्कालीन नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया।
वास्तव में, अप्रैल 2012 में, सारस्वत ने कहा था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने उन्हें इस तरह के कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए अनुमति नहीं दी थी। जबकि उन्होंने तत्कालीन नेतृत्व को बार-बार यह यकीन दिलाया था कि अग्नि-V का सफल प्रक्षेपण करने बाद, भारतीय वैज्ञानिकों में एंटी-सैटेलाइट मिसाइल विकसित करने की क्षमता थी।
Former DRDO Chief Dr VK Saraswat on #MissionShakti: We made presentations to National Security Adviser&National Security Council, when such discussions were held, they were heard by all concerned, unfortunately, we didn’t get positive response (from UPA), so we didn’t go ahead. pic.twitter.com/qJDMtc3Kf2
— ANI (@ANI) March 27, 2019
चूँकि, यूपीए सरकार ने इस तरह के कार्यक्रमों को मंजूरी नहीं दी। इसलिए, आज हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि यूपीए शासन के लिए उस समय की प्राथमिकता कुछ और थी या वे उस समय घोटालों और देश को दिवालिया करने में इतने व्यस्त थे कि देश को आगे बढ़ाने वाले कार्यक्रमों के लिए नैतिक बल खो चुके थे। और आज जब वैश्विक स्तर पर मजबूती से अपना स्थान बनाने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री ने इस शोध, निर्माण और परीक्षण को उसके मुकम्मल अंजाम तक पहुँचाया तो कॉन्ग्रेस अपनी विफलता छिपाने के लिए देश को बरगलाने की कोशिश कर रही है। और उसके इस काम में उसके सभी दरबारी लिबरल पत्रकार जी जान से जुट गए हैं।
भारत ने प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में परमाणु क्षमता विकसित की। भारत ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में अन्य उन्नति के साथ ASAT मिसाइलों का विकास किया। दोनों ही मिशन अपार राजनीतिक जोखिम से जुड़े थे। वाजपेयी ने तब और नरेंद्र मोदी ने अब, दोनों ने अपनी काबिलियत के भरोसे राजनीतिक जोखिम लिया। दोनों बार रिस्क बड़ा था, अगर कुछ भी गड़बड़ हो जाता तो नुकसान बड़ा होता।
पर अब जब यह साफ दिखने लगा है कि यह एक बड़ी सफलता है, अचानक से, हर कॉन्ग्रेसी चाटुकार पत्रकार और नेता सक्रीय हो गए हैं। क्रेडिट लूटने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। कॉन्ग्रेस ने 60 सालों तक देश का बेड़ा गर्क किया। हर जगह सत्ता और वोट बैंक की राजनीति करते रहे। देश को कंगाली के कगार पर खड़ा कर दिया और वह भी इसमें न सिर्फ अपना हिस्सा चाहती है बल्कि सारा श्रेय ही नेहरू, इंदिरा तक सीमित कर देना चाहती है। हर्रे लगे न फिटकरी रंग चोखा, कुछ करना भी न पड़े और श्रेय पूरा। पर अब देश उनके इस छल को समझता है। अब जनता कॉन्ग्रेस की हर चाल को विफल करने में देर नहीं लगा रही।
मिशन शक्ति वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती धाक का भी एक वसीयतनामा है। नरेंद्र मोदी ने पिछले पाँच वर्षों के दौरान जिन कूटनीतिक रिश्तों को मजबूती दी है, वे सभी सरकार को परीक्षण करने का विश्वास दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया क्या होगी, ये अभी देखना बाकी है। लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि नरेंद्र मोदी अपने विशेष कौशल से मुश्किल परिस्थितियों में भी रास्ता निकाल लेंगे। हालाँकि, विश्व ये भली-भाँति जानता है कि अब भारत की स्थिति 5 साल पहले वाली नहीं रही। आज नेतृत्व हर मोर्चे पर सशक्त और तैयार है। बेशक, आज इस उपलब्धि का श्रेय काफी हद तक नरेंद्र मोदी की विदेश नीति को जाना चाहिए।
कुछ लोग जो सवाल कर रहे हैं कि ठीक चुनाव से पहले इसका परीक्षण क्यों किया गया। उनके लिए बता दें कि भारत के परीक्षण की घोषणा का समय भी महत्वपूर्ण है। वर्तमान में जिनेवा में 25 देशों द्वारा एक अंतरिक्ष शस्त्र संधि (Space Arms Treaty) पर चर्चा की जा रही है। इस बात की बहुत अधिक संभावना व्यक्त की जा रही थी कि अगर इस तरह की संधि पर बातचीत किसी अंजाम तक पहुँचती है तो पहले से परीक्षण कर चुके 3 देशों के अलावा किसी अन्य राष्ट्र के लिए एएसएटी बनाने और परीक्षण का रास्ता बहुत कठिन होगा। क्योंकि ये 3 राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा ऐसे किसी भी निर्माण-परीक्षण को अवैध बना देंगे। लेकिन अब, ऐसे किसी भी प्रयास को अंजाम देने से पहले भारत को भी ध्यान में रखना होगा।
ये सही मायने में राष्ट्र के प्रति समर्पित, दूरदृष्टि से युक्त राजनेता के लक्षण हैं। जिस समय लोग वोट बैंक और चुनावी गणित में उलझे हैं, उस समय भी कोई है जिसके लिए देश सर्वोपरि है। सही मायने में प्रधानमंत्री वैज्ञानिकों के साथ पूरे क्रेडिट के हक़दार हैं। प्रधानमंत्री ने मिशन में शामिल सभी वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा, “आपने अपने कार्यों से दुनिया को ये सन्देश दिया है कि हम भी कुछ कम नहीं हैं।”
#WATCH: PM Narendra Modi interacts with scientists involved with “Mission Shakti”; says, “you have given this message to the world “ki hum bhi kuch kam nahin hai.” pic.twitter.com/IJ3Bzo4CbS
— ANI (@ANI) March 27, 2019