मुझे लगता है कि ये आदमी पागल है! बताइए भला जिस राज्य में चुनाव सर पर हों, वहाँ क्या घोषणाएँ की जाती हैं? अरे सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते बढ़ाने की बात करता तो समझ में भी आता। चलिए वो नहीं करना था तो किसी फैक्ट्री पुल वगैरह का शिलान्यास कर देता और कहता कि इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा।
तालियाँ बजतीं, अख़बारों में छपता, वाह-वाही होती, विरोधियों को बोलने को कुछ ना मिलता। मगर नहीं! ये तो तीन सौ करोड़ के लगभग की योजनाएँ किसानों के लिए लेकर आ रहा है! बताइए, 300 करोड़? अरे किसानों के मुद्दे पर किसने इस देश में चुनाव लड़ा है आजतक?
उसमें भी कैसी-कैसी चीज़ें हैं? सीधे कृषि की होती तो “अन्नदाता” वाला जुमला उछालते और काम बन जाता। लेकिन यहाँ तो 5 करोड़ की लागत से डुमरा, सीतामढ़ी में बखरी मछली बीज फार्म खोला जा रहा है!
दस करोड़ लगाकर किशनगंज के मत्स्य पालन कॉलेज, पूसा में समेकित उत्पादन प्रौद्योगिकी और मधेपुरा में एक करोड़ की लागत से मत्स्य चारा मिल लगाया जा रहा है। किसी ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ के तहत 107 करोड़ की लागत की परियोजना के शुरुआत भी होने वाली है।
पटना में एक बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय है, जहाँ के हॉस्टल में कभी लालू रहते थे, जो आजकल चारा घोटाले में जेल में हैं। वहाँ जलीय रेफरल प्रयोगशलाएँ बनेंगी और पटना के ही मसौढ़ी में 2 करोड़ की लागत से फिश ऑन व्हील्स और 2.87 करोड़ की लागत से कृषि विश्वविद्यालय का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री मोदी करेंगे।
अब ये फिश इन वाटर तो हमको बुझाता है, लेकिन ई ससुरा फिश ऑन व्हील्स क्या है? इतने कार्यक्रम होंगे तो हम दावे से कह सकते हैं कि इनमें से किस परियोजना में होता क्या है, ये तो खुद अख़बार वाले भी हमें नहीं बता पाएँगे!
इनके अलावा डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर में कुल 74 करोड़ की विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास होने वाला है। सबसे पहले तो 11 करोड़ की लागत से बने स्कूल ऑफ एग्रीबिजिनेस एंड रूरल मैनेजमेंट के भवन का उद्घाटन होगा।
इसके साथ ही ब्वायज हॉस्टल (27 करोड़), स्टेडियम (25 करोड़), और इंटरनेशनल गेस्ट हाउस (11 करोड़) का शिलान्यास भी प्रधानमंत्री मोदी करेंगे।
पशुपालन की तरफ आएँ तो ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ के तहत 84.27 करोड़ की लागत से पूर्णिया सीमेन स्टेशन, 8.06 करोड़ की लागत से बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना में इम्ब्रयो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी (ईटीटी) एवं आईवीएफ लैब और 2.13 करोड़ की लागत से समस्तीपुर, नालंदा, बेगूसराय, खगड़िया और गया में तैयार सेक्स सॉर्टेड सीमेन परियोजना की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी करेंगे।
अगर हम याद करने की कोशिश भी करें तो याद नहीं आता कि पिछले डेढ़-दो दशकों में हमने कभी एक राज्य में एक साथ सिर्फ कृषि क्षेत्र के लिए इतनी अलग-अलग परियोजनाओं का नाम सुना हो।
सच बताएँ तो हमें “एवरीबॉडी लव्स ए गुड ड्राउट” वाले पी. साईंनाथ के बाद से किसी ऐसे पत्रकार और किसी ऐसे अख़बार का नाम भी नहीं पता, जो इन सारी योजनाओं की साधारण जानकारी भी हमें दे सके। स्थानीय पत्रकारों में से कोई ये करेगा, या उसे करने दिया जाएगा, ये भी शंका का विषय है।
इन छोटी-मोटी समस्याओं को छोड़ भी दें तो हमें एक बड़ी चिंता सता रही है। इन गरीब किसानों की गरीबी के नाम पर दादी से लेकर पोते तक की तीन पीढ़ियों ने अपनी राजनीती चलाई है। उनके अलावा भी तथाकथित एक्टिविस्ट, सोशल वर्कर, एडवोकेसी पार्टनर जैसे कई लोग/संस्थाएँ हैं, जो इनके ही नाम पर चंदा माँग-माँग कर खाते हैं।
अगर इस किस्म की परियोजनाएँ आती रहीं तो फिर उन बेचारों का क्या होगा? क्या बड़ी बिंदी और झोला-कुर्ता, जीन्स-चप्पल वाले सिर्फ टीवी और इतिहास की बातें बनकर रह जाएँगे? नहीं-नहीं, ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए!
साथी हमारा आह्वान है कि इससे पहले कि सारे मुद्दे छीन लिए जाएँ, चाँद को रोटी बताने वाली कविताएँ बचाने के लिए हमें लड़ना चाहिए! आओ, हम लड़ेंगे साथी! हम विकास के मुद्दों से लड़ेंगे! हम मछली को दिए जा रहे पानी के लिए लड़ेंगे! अन्नदाता को अनाज क्यों नहीं, मछली वाले को शोध का पैसा क्यों कहकर लड़ेंगे! ठहरो, मैं जरा पौव्वा गटक कर गला तर कर लूँ, फिर हम लड़ेंगे साथी!