Monday, May 6, 2024
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लौंडा नाच को जीवनदान देने वाले रामचंद्र मांझी, डायन प्रथा के खिलाफ लड़ रही छुटनी देवी: दोनों को पद्मश्री सम्मान

भिखारी ठाकुर के साथ काम करने वाले रामचंद्र मांझी 94 साल की उम्र में भी मंच पर जमकर थिरकते हैं। जबकि डायन कह जिस छुटनी देवी को गाँव ने खिलाया था मल, उनको भी मोदी सरकार ने...

गणतंत्र दिवस के अवसर पर 7 हस्तियों को पद्म विभूषण, 10 को पद्म भूषण और 102 को पद्मश्री पुरस्कार देने का ऐलान हुआ है। कुल 119 नामों की इस सूची में कई ऐसे नाम हैं, जिनके संघर्ष की कहानी लंबी है। इन्हीं में दो नाम रामचंद्र मांझी और छुटनी देवी के हैं। 

दोनों को सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इनमें से एक ने लौंडा नाच के नाम पर समाज में एक गायब होती परंपरा को जीवनदान दिया है और दूसरी ने डायन जैसी कुरीति की भुक्तभोगी होने के बाद उसके ख़िलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है। 

आइए आज जब मोदी सरकार ने 26 जनवरी के इस अवसर पर इन्हें सम्मान से नवाजने के लिए कदम बढ़ाया है, तो इन दोनों के संघर्षों के बारे में बात करें और समझें कि कैसे एक सामान्य नागरिक से सम्मानित नागरिक का सफर इन्होंने तय किया।

94 साल में लौंडा नाच करने वाले रामचंद्र मांझी

भोजपुरी के मशहूर लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के साथ काम करने वाले रामचंद्र मांझी स्वयं एक समय के बेहद चर्चित कलाकार हैं। वह 94 साल की उम्र में भी मंच पर जमकर थिरकते हैं। ऐसे में जब उन्हें पता चला कि सरकार ने उनके काम के लिए उन्हें पद्मश्री देने का ऐलान किया है, तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। लोग उनके आवास पर उन्हें बधाई देने जाने लगे

उन्होंने पद्मश्री मिलने की बात जानकर सरकार का आभार व्यक्त किया। वहीं लौंडा नाच के बारे में बताया कि भिखारी ठाकुर द्वारा चर्चित लोक नृत्य आज हाशिए पर खड़ा है। गिनी-चुनी मंडलियाँ ही बची हैं, जो इस विधा को जिंदा रखे हुए हैं, लेकिन उनका भी हाल खस्ता ही है। नाच मंडली में अब बहुत कम ही कलाकार बचे हैं। जबकि बिहार में आज भी लोग इसे पसंद करते हैं।

बता दें कि इससे पूर्व मांझी को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 2017 से भी नवाजा जा चुका है।  राष्ट्रपति ने उन्हें प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपए की पुरस्कार राशि भी प्रदान की थी। वह बताते हैं कि मात्र 10 वर्ष की उम्र में ही वह भिखारी ठाकुर के दल में शामिल हुए थे। 1971 तक उन्होंने ठाकुर के नेतृत्व में काम किया और उनके मरणोपरांत गौरीशंकर ठाकुर, शत्रुघ्न ठाकुर, दिनकर ठाकुर, रामदास राही और प्रभुनाथ ठाकुर के नेतृत्व में काम किया।

डायन कह छुटनी देवी को गाँव ने खिलाया था मल, आज सैंकड़ों महिलाओं की उम्मीद

झारखंड की छुटनी देवी को जब इस सम्मान के मिलने की बात पता चली, तब उन्हें यही नहीं पता था कि आखिर ‘पद्मश्री’ क्या होता है। उन्हें जब प्रधानमंत्री कार्यालय से बार-बार फोन आया तो उन्हें पता चला कि ये कोई बड़ी चीज जरूर है, तभी फोन आ रहा है

उन्होंने कहा कि उन्हें एक दिन दोपहर के 11 बजे फोन आया और बताया गया कि उन्हें पद्मश्री मिलने वाला है। उन्हें कुछ समझ नहीं आया, बस उन्होंने यह कह कर फोन काट दिया कि उनके पास टाइम नहीं है, एक घंटे बाद फोन करें। इसके बाद दोबारा 12:15 फोन आया। फोन करने वाले ने उन्हें समझाया कि उनका नाम, फोटो, सभी अखबार टीवी में आएगा। वह कहती हैं कि उनके गाँव वालों को जबसे यह पता चला है, तब से उनके गाँव के सभी लोग खुश हैं।

झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के भोलाडीह गाँव निवासी छुटनी महतो आज 62 साल की हैं। एक समय था कि घर वालों ने डायन के नाम पर न सिर्फ उन्हें प्रताडि़त किया, बल्कि घर से बेदखल भी कर दिया था। 8 महीने के बच्चे के साथ पेड़ के नीचे रहने वाली छुटनी के लिए वो समय इतना कठिन था कि न पति ने उनका साथ दिया और न घरवालों ने।

इसी के बाद वह अपने जैसी कई महिलाओं की ताकत बनीं। आज वह एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) के सौजन्य से संचालित पुनर्वास केंद्र चलाती है, जहाँ वह बतौर आशा की निदेशक (सरायकेला इकाई) कार्यरत हैं।

वह बताती हैं कि साल 1995 में एक तांत्रिक के कहने पर उन्हें उनके गाँव ने डायन मानकर वहाँ से निकाल दिया था। उनकी गलती बस ये थी कि उन्होंने अपनी भाभी के गर्भवती होने पर कहा था कि बेटा होगा, जबकि हुई बेटी। इसके बाद ही उन्हें डायन करार देकर मल खिलाने की कोशिश हुई और उन्हें पेड़ से बाँध कर अर्धनग्न करके उनकी पिटाई की गई।

एक दिन जब लोग उनकी हत्या की योजना बनाने लगे तो वह पति को छोड़ कर चारों बच्चों के साथ गाँव छोड़ कर भाग गईं। इसके बाद आठ महीने वह जंगल में रहीं। जब आरोपितों के खिलाफ वह केस करने गईं, तो पुलिस ने भी उनकी मदद नहीं की।

अपनी दुर्गति के बाद वह अपने जैसी महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए खुद खड़ी हुईं। उन्होंने अपनी जैसी पीड़ित 70 महिलाओं का एक संगठन बनाया। आज ये संगठन इतना सशक्त है कि उन्हें जैसे ही सूचना मिलती है, उनकी टीम मौके पर पहुँच जाती है।

आरोपितों और अंधविश्वास फैलाने वाले तांत्रिकों पर प्राथमिकी दर्ज कराती हैं और पीड़िता को अपने साथ ले आती हैं। कानूनी कार्रवाई के बाद सशर्त घर वापसी कराती हैं। अब तक कुल 100 से अधिक महिलाओं की घर वापसी हो चुकी है। उनका संगठन आरोपितों के खिलाफ कोर्ट में भी लड़ाई लड़ता है। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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