Saturday, November 23, 2024
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71 वर्षों में पहली महिला प्रधान: UP में रीता वर्मा ऐसे लड़ रहीं कोरोना से, 20000 लोगों में फैला रहीं जागरूकता

जनता ने पुरुष प्रत्याशियों के मुकाबले एक पढ़ी-लिखी योग्य महिला को अपना प्रधान चुना। अब वही महिला प्रधान गाँव की सुरक्षा के लिए घूम-घूम कर लोगों को कोविड नियमों के पालन, बचाव और स्वास्थ्य संबंधी जानकारियाँ दे रही हैं।

लखनऊ-सुल्तानपुर हाइवे पर गोसाईंगंज विकासखंड की ग्राम पंचायत है कबीरपुर। पिछले दिनों हुए त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत चुनावों में कबीरपुर ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित इस ग्राम पंचायत की जनता ने पुरुष प्रत्याशियों के मुकाबले एक पढ़ी-लिखी योग्य महिला को अपना प्रधान चुना। 33 वर्षीय स्नातक रीता वर्मा ने आजादी के बाद से पहली महिला ग्राम प्रधान के रूप में गाँव की कमान सँभाली। 

शपथ लेने के बाद ही रीता वर्मा ने गाँव के विकास की कमान सँभाल ली है। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार वे गाँव की सुरक्षा के जिम्मे के साथ ही गाँव में घूम-घूम कर लोगों को कोविड नियमों के पालन, बचाव और स्वास्थ्य संबंधी जानकारियाँ दे रही हैं।

दरअसल चुनाव के बाद गाँव के कई लोग बीमार पड़ने लगे थे। जिसके बाद रीता वर्मा ने मोर्चा सँभाला। वह कहती हैं, “चुनाव के तुरंत बाद, कई लोग बीमार हो गए। कई बुखार से पीड़ित थे, लेकिन वे कोविड टेस्ट कराने में संकोच कर रहे थे। तब मैंने लगभग 20,000 लोगों के अपने गाँव में कोरोना वायरस के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक अभियान शुरू किया।”

उन्होंने कहा, “मैंने निवासियों, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को परीक्षण के महत्व के बारे में प्रेरित किया ताकि संक्रमण आगे न फैले, और कीमती जीवन बच जाए। उठाए गए इन कदमों की वजह से आज हमारा गाँव लगभग कोरोना मुक्त हो गया है।”

उनके पति, उमेश कुमार वर्मा ने कहा, “जब उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की तो मैं हैरान रह गया। आप सोच सकते हैं कि वह एक औसत गृहिणी है, लेकिन वह हमेशा स्वच्छता, सड़कों और गाँव में स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे की कमी की समस्याओं के बारे में मुखर रही हैं। उन्होंने महिलाओं में स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरूकता पैदा किया।”

जानकारी के मुताबिक वर्मा को लगभग 50% वोट मिले और उन्होंने मौजूदा प्रधान को भारी अंतर से हराया। अगले दिन से, उन्होंने कोविड के उचित व्यवहार के महत्व के बारे में ग्रामीणों को शिक्षित करने के लिए अपना अभियान शुरू किया। उन्होंने हर गली में टीमों का गठन किया, जो बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने वाले निवासियों की आवाजाही पर रोक लगाती हैं।

उनका अगला एजेंडा कबीरपुर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) या एक औषधालय खोलना है। वह कहती हैं, “वर्तमान में, जो कोई भी बीमार पड़ता है उसे इलाज के लिए गोसाईंगंज जाना पड़ता है। मैंने PHC या एक औषधालय की आवश्यकता के लिए अधिकारियों को लिखा है ताकि चिकित्सा बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण लोगों की मृत्यु न हो। इसके अलावा, मैंने वर्तमान परीक्षण समय के दौरान लोगों को लॉकडाउन, सामाजिक दूरी और स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए हर गली में समूह बनाए हैं। मैंने नालों और गलियों को साफ रखने के लिए अतिरिक्त सफाई कर्मियों को भी कहा है। अगर मुझे वे नहीं मिले, तो हम इसे स्वयं करने के लिए कार सेवा करेंगे।”

बता दें कि वर्ष 1952 में पंचायत का गठन होने के बाद से कबीरपुर कभी महिला सीट नहीं हुई। इसके चलते महिलाओं को चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं मिला। 1799 वोटरों वाली कबीरपुर की सीट इस बार भी पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हुई थी। इस बार युवाओं ने पंचायत की कमान महिला के हाथों में सौंपने का इरादा बनाकर पुरुष प्रत्याशी के खिलाफ महिला प्रत्याशी के रूप में रीता वर्मा को उतारा। 

मतदाताओं ने उमेश वर्मा की पत्नी रीता वर्मा पर दाँव लगाया। राजनीति में भाग्य आजमाने चुनावी दंगल में कूदीं रीता ने महिलाओं की टोली के साथ घर-घर जाकर समर्थन माँगा। गाँव की महिलाओं ने महिला प्रधान बनाकर इतिहास रचने की ठानी और उनकी टोली में शामिल हो गईं।

दो मई को परिणाम घोषित होने पर रीता वर्मा ने चुनाव जीतकर नया कीर्तिमान बनाया। आखिरकार गाँव को पहली बार महिला प्रधान मिली। कोरोना संक्रमण के दौरान रीता गाँव में लोगों को जागरूक कर रही हैं। उन्हें कोविड नियमों का पालन करने की सीख दे रही हैं और साथ ही उनकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का हल भी बता रही हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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