काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए वाराणसी पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माँ गंगा में डुबकी लगाई और जलाभिषेक किया। इस दौरान पीएम मोदी को लाल वस्त्रों में नदी में डुबकी लगा कर मंत्रोच्चार करते हुए देखा गया। इस दौरान उन्होंने अपने हाथों में माला और लोटा ले रखा था। इसके बाद पीएम मोदी ने मंदिर में जाकर अंजलि दी। मुख्य मंदिर परिसर में नया गलियारा बनाया गया है, जहाँ दीवारों में भगवा शिव से सम्बंधित श्लोक और इतिहास लिखा हुआ है।
#Varanasi: PM @narendramodi takes a holy dip in river Ganga #KashiVishwanathDham pic.twitter.com/Qwg3wMAgeW
— DD News (@DDNewslive) December 13, 2021
इस दौरान पूरे काशी को सजाया गया है। कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में लोग वहाँ उपस्थित थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत उत्तर प्रदेश मत्रिमंडल के कई सदस्य इस कार्यक्रम में शामिल हैं। कहा जाता है कि काशी में ही भगवान विष्णु ने भी तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव के मस्तक हिलाने के कारण उनके कान से जो कर्णिका गिरी, उसे ही मणिकर्णिका कहा गया। काशी में ‘आनंद वन’ भी है, जिसके बारे में भगवान शिव ने कहा था कि ऐसी जगह विश्व में कहीं और नहीं होगी।
कैसा है कॉरिडोर?
ललिता घाट और विश्वनाथ मंदिर परिसर के बीच वाले कॉरिडोर के हिस्से को ‘मंदिर चौक’ का नाम दिया गया है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के सूचना जनसंपर्क अधिकारी पीयूष तिवारी ने ऑपइंडिया को बताया, “प्रधानमंत्री यहीं से कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। ये कॉरिडोर का सबसे बड़ा हिस्सा है। ज्यादा भीड़ होने पर हम इस हिस्से में श्रद्धालुओं को रोक भी सकते हैं ताकि मंदिर में अव्यवस्था न हो। इसी हिस्से में एम्पोरियम बनाए गए हैं।”
5.2 लाख वर्ग फीट में फैला है कॉरिडोर
कॉरिडोर 5.2 लाख वर्ग फीट में फैला हुआ है। इसमें 33,075 वर्ग फीट में काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर है। इस कॉरिडोर में एक साथ 02 लाख लोग जमा हो सकते हैं। निर्माण में मकराना, चुनार के लाल बलुआ पत्थर समेत 7 विशेष पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। विश्राम गृह, संग्रहालय, सुरक्षा कक्ष और पुस्तकालय भी कॉरिडोर का हिस्सा हैं। पूरे कॉरिडोर में वृक्षारोपण के लिए जगह बनाई गई है। इनमें परिजात, रुद्राक्ष, अशोक, बेल इत्यादि पेड़ लगेंगे ताकि पूरा परिसर हरा-भरा रहे।
तिवारी ने बताया, “पहले जो मंदिर का परिसर था, वह केवल 3500 स्क्वायर फीट था। कॉरिडोर के लिए जब हमने घरों की खरीद शुरू की तो पहले ड्रोन सर्वे करवाया। इसमें कई पुराने मंदिर दिखे। जब हमने निर्माण शुरू किया तो इस बात का ध्यान रखा कि परिसर में अगर कोई श्रद्धालु बाहर से आए तो उसे वह हर सुविधा दी जाए जो एक धार्मिक स्थल में उसे मिलना चाहिए।” वे बताते हैं, “मेन गेट के बगल में यात्री सुविधा केंद्र बनाया गया है। सुरक्षा जाँच के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे। इसमें चार द्वार बनाए गए हैं, जो चारों दिशाओं में हैं। यह परिसर चुनार के लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है और इसका फर्श मकराना के सफेद संगमरमर से बना है। इस परिसर में अभी वृक्षारोपण होना है। इसी तरह गंगा की तरफ से भी प्रवेश की सुविधा है।”
सुविधा केंद्र से लेकर वैदिक केंद्र तक
तिवारी ने बताया कि पूरे कॉरिडोर में तीन यात्री सुविधा केंद्र बनाए गए हैं। इसके अलावा गेस्ट हाउस, धार्मिक पुस्तकों की बिक्री का केंद्र, जलपान केंद्र, सिटी म्यूजियम, वाराणसी गैलरी, मुमुक्षु भवन इत्यादि भी हैं। योग साधना के लिए वैदिक केंद्र है। सिटी म्यूजियम और वाराणसी भवन दोनों संग्रहालय हैं और तिवारी के अनुसार अलग-अलग उद्देश्यों से बनाए गए हैं। कॉरिडोर में कैफे बिल्डिंग है। गंगा व्यू गैलरी है, जहाँ बैठकर गंगा का पूरा दृश्य देखा जा सकता है। इसके अलावा एम्पोरियम है। उन्होंने बताया, “एम्पोरियम वाले हिस्से में जीआई उत्पादों के बड़े-बड़े शोरूम होंगे।” वे कहते हैं, “इस परियोजना को बनाने का जो मुख्य उद्देश्य था वह यह है कि सावन के सोमवार और शिवरात्रि पर करीब ढाई से तीन लाख लोग आते हैं। उस दौरान पूरा शहर, पूरी गलियाँ ठसाठस भरी होती हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए लोगों को कम से कम तीन से चार किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी। अब गंगा स्नान कर श्रद्धालु सीधे कॉरिडोर में प्रवेश करेंगे। बाबा का जलाभिषेक करेंगे और शहर में निकल जाएँगे। मंदिर परिसर वाले ही हिस्से में एक वक्त में कम से कम 10 हजार लोग अब आ सकते हैं।”
40 ऐसे मंदिर मिले जो घरों में दब गए थे
वाराणसी के आयुक्त दीपक अग्रवाल बताते हैं कि इस कॉरिडोर के लिए जिस बोर्ड का गठन किया गया था, उसने कुल 314 घरों की खरीद की थी। जब कॉरिडोर निर्माण के लिए इन घरों को तोड़ने का काम शुरू किया गया तो करीब 40 ऐसे प्राचीन मंदिर मिले जो अतिक्रमण की वजह से लुप्त हो चुके थे। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती कॉरिडोर वाले हिस्से में जिनलोगों की संपत्ति आ रही थी उन्हें अपनी जगह छोड़ने के लिए तैयार करना था। लेकिन लोग इसके लिए तैयार हुए, क्योंकि इस परियोजना में उनकी आस्था थी। हमने पारदर्शी और आकर्षक वित्तीय प्रस्ताव मुहैया कराया। कई परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति देखते हुए उन्हें कम जगह के एवज में भी अच्छा-खासा मुआवजा प्रदान किया गया। जिन्होंने अतिक्रमण कर रखा था उनके भी हितों का ध्यान रखा गया। अग्रवाल ने बताया कि जो प्राचीन मंदिर इस दौरान मिले उन्हें संरक्षित किया गया है और जल्द ही श्रदालु इनमें दर्शन कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि मंदिर परिसर में मुख्य मंदिरों के अलावा कई छोटे मंदिर बनाए गए हैं। इनमें से कुछ में देवताओं की पुर्नस्थापना हो चुकी है। कई ऐसे मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल भी गए हैं। शेष में काम अंतिम दौर में है।
प्रोपेगेंडा बनाम हकीकत
जब से काशी कॉरिडोर की बात शुरू हुई कॉन्ग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल, उसकी पालतू मीडिया और लिबरल-सेकुलर गैंग इस दुष्प्रचार में जुटा है कि काशी के मूल स्वरूप के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा है। यह दुष्प्रचार अब भी जारी है। राम के अस्तित्व को नहीं मानने वाले लोगों की जलन समझी जा सकती है। उन्हें भला कैसे कबूल हो कि जो मंदिर कल तक दृष्टिगोचर नहीं था, वह अब भव्य दिखे। हिंदू गौरव की पुर्नस्थापना हो। हमसे बातचीत में स्थानीय लोगों के भाव भी कुछ इसी तरह प्रकट हुए।
‘विपक्ष को पच नहीं रहा’
पंकज दुबे बनारस की सड़कों पर 25 साल से ऑटो चला रहे हैं। वे कहते हैं, “काशी कॉरिडोर अति सुंदर है। जो हुआ है, अच्छा हुआ है। सही है। ऐसा बहुत पहले हो जाना चाहिए। बाहर से भी जो लोग आ रहे हैं उनको यह आकर्षित करता है। इससे यह भी संदेश जा रहा है कि बनारस विकास कर रहा है।” वे कहते हैं, “इससे टूरिस्ट बढ़ेंगे। धंधा बढ़ेगा।” निर्माण के दौरान मंदिरों को तोड़ने की बात पर वे कहते हैं, “यह सब विपक्ष चिल्ला रहा है। उनको पच नहीं रहा है। बजट तो उनके पास भी था, लेकिन काम नहीं किए। अब काम दिख रहा है तो वे झूठा प्रचार कर रहे हैं।”https://www.youtube.com/embed/aqppwUOHlj8
‘मोदी-योगी राज में धरोहरों का विकास’
रोशनी वर्मा काशी की दुर्लभ शिल्पकला ‘गुलाबी मीनाकारी’ का प्रशिक्षण ले रही हैं। वे काशी के गायघाट की रहने वाली हैं और युवा हैं। उनका कहना है, “हमारे काशी के हर गली में मंदिर हैं। पहले बहुत सारे मंदिरों का हमें पता नहीं था। कॉरिडोर के निर्माण से हमें उनके बारे में पता चला है। पहले मंदिर के बिल्कुल पास में घर थे, जिससे मंदिर का पता ही नहीं चलता था। अब मंदिर के बास बहुत स्पेस है। कितने भी लोग जुट जाए भीड़भाड़ नहीं होती। दर्शन करने में भी सहूलियत रहती है।” वे कहती हैं, “मोदी-योगी सरकार में हमारी मिट्टी से जुड़ी चीजों, धरोहरों और क्राफ्ट को संरक्षण दिया जा रहा है। उनका विकास हो रहा। उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा। अब लोग उनके बारे में जान रहे हैं और रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।”