90 के दशक में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और उनके पलायन के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। उस वक्त घाटी में तैनात नौकरशाह फारूक रेंजू शाह (Farooq Renzu Shah) ने कश्मीरी पंडितों पर जुल्म और उनके पलायन के पीछे की साजिशों पर पर्दा उठाते हुए अब्दुल्ला को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ के साथ बातचीत में कहा कि अगर तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला चाहते तो कश्मीरी पंडितों का नरसंहार रुक सकता था।
अगर मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला चाहते तो क्या कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार और उनका पलायन रोका जा सकता था? इसके जवाब में शाह ने कहा, “हाँ, हाँ, बिल्कुल रुक सकता था। पिछले 700 साल से कश्मीर के मुसलमानों और पंडितों के बीच जबर्दस्त तालमेल और दोस्ती देखने को मिली, लेकिन उसे जहरीले सियासी बयानों से तार-तार कर दिया गया।”
#NewsKiPathshala: 1987 में हुए चुनाव के बाद विस्फोटक हुए थे कश्मीर में हालात, केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर सरकार के बीच पिस रहा था कश्मीर@SushantBSinha के साथ न्यूज़ की पाठशाला’ में देखिए ‘पूर्व नौकरशाह #FarooqRenzuShah ने क्या खुलासा किया’ #TheKashmirFiles pic.twitter.com/nh9414XZDg
— Times Now Navbharat (@TNNavbharat) March 21, 2022
पूर्व डीजीपी डॉ. वैद के एक बयान का हवाला देते हुए पूर्व नौकरशाह ने कहा कि वर्ष 1989 में पाकिस्तान से प्रशिक्षित 70 आतंकियों को घाटी में उतारा गया था। दो दिन पहले डॉ. वैद ने कहा था कि 70 प्रशिक्षित आतंकवादियों को एक गुप्त गलियारे से लाकर राजनीतिक संरक्षण में रखा गया। फिर उन्हें आम लोगों के बीच भेज दिया गया। वो 70 प्रशिक्षित आतंकी कौन थे?”
Many people in the country do NOT know this #KashmirFiles fact: first batch of 70 terrorists trained by ISI were arrested by J&K Police but ill-thought political decision had them released & same terrorists later on lead the many terrorist organizations in J&K. #KashmirFilesTruth
— Shesh Paul Vaid (@spvaid) March 16, 2022
वे आगे कहते हैं कि हम लोगों को केवल पाँच से छह आतंकियों के बारे में ही पता था, जिन्हें मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद की फिरौती में छोड़ा गया था। उनका मानना है कि इन्हीं पाँच-छह आतंकियों ने घाटी को बर्बाद कर दिया, ये सोचना कोरा झूठ है। उनके अनुसार, वहाँ पाकिस्तान में प्रशिक्षित 70 आतंकियों को लाया गया था। शाह यह भी बताते हैं कि उस वक्त मैंने देखा कि आतंकियों ने टिकलाल टपलू को मारा, फिर भी कोई एक्शन नहीं लिया गया। ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। उसके बाद आतंकियों ने मकबूल भट्ट को फाँसी की सज़ा सुनाने वाले जज को मार दिया।
शाह का दावा है कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके लिए वहाँ की सियासी साजिश जिम्मेदार है। उन्होंने कहा, “हर कश्मीरी मुसलमान ने अत्याचार नहीं किया। एक समूह ने किया, जिसके नियंत्रण में अल सफा अखबार था। उसने ही अल सफा के पहले पन्ने पर बैनर न्यूज लगाया था कि 48 से 72 घंटे के अंदर तमाम कश्मीरी पंडित यहाँ से भाग जाएँ, नहीं तो मारे जाएँगे। अल सफा का चीफ एडिटर बाद में मारा गया, लेकिन अखबार में धमकी छपने के बाद ही कश्मीरी पंडित रातोंरात सब कुछ छोड़कर भागने लगे थे।”
शाह ने बताया, “जो शख्स इस अखबार को कंट्रोल कर रहा था, वह बाद में 98 हजार वोटों के साथ संसद पहुँचा। उसने ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराई थी।” आपको बता दें कि वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नैशनल कॉन्फ्रेंस का सांसद सैफुद्दीन सोज था। उसी ने पार्टी लाइन से हटकर विश्वास मत के विरोध में वोट डाला था, जिससे वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई थी। बाद में सैफुद्दीन सोज कॉन्ग्रेस में शामिल हो गया था।
बता दें कि साल 1989 में जुलाई और दिसंबर के बीच फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने 70 कट्टर इस्लामी आतंकियों को छोड़ दिया था। बाद में ये पाकिस्तान का समर्थन पाकर खूंखार आतंकी बने और हिंदुस्तान में कई आतंकी वारदातों को अंजाम दिया। घाटी में हिंदुओं के खिलाफ विरोध और इस्लामिक उग्रवाद को बढ़ावा देने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।