Wednesday, November 20, 2024
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कॉन्ग्रेसियों पर दर्ज 50000 मुकदमे वापस लेगी कमलनाथ सरकार

कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं पर दर्ज केस वापस लेने का निर्णय किया है। मध्य प्रदेश सरकार ऐसे 50,000 मुकदमे वापस लेगी जो पिछले 15 साल में भाजपा सरकार के कार्यकाल में पूरे प्रदेश में कॉन्ग्रेसी नेताओं पर दर्ज हुए। मध्य प्रदेश के कानून मंत्री पी सी शर्मा ने इस बाबत दिसंबर 2018 में बयान दिया था

इस वर्ष जनवरी में मुख्यमंत्री कमलनाथ की कैबिनेट ने यह निर्णय लिया था। सभी मुकदमों की पहचान के लिए 3 सदस्यों वाली एक जिला स्तरीय कमिटी बनाई गई थी जिसमें जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और जिला प्रॉसिक्यूटर सम्मिलित थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट राज्य के गृह मंत्रालय को सौंपी थी जिसके बाद यह निर्णय लिया गया। 

एशियन एज की खबर के अनुसार समिति ने ऐसे 50,000 मुकदमे चिन्हित किए जो पिछले 15 वर्षों में भाजपा सरकार के कार्यकाल में कॉन्ग्रेसी कार्यकर्ताओं व नेताओं पर दर्ज किए गए थे। मप्र में विपक्ष में बैठी भाजपा ने इसका विरोध किया है।    

तबरेज अंसारी की भीड़ हत्या पर पूरा देश लज्जित नहीं है क्योंकि हमारे लिबरल खोखले और हिपोक्रिट हैं

तबरेज अंसारी कथित तौर पर मोटरसायकिल चुराने एक घर में घुसा और पकड़े जाने पर लोगों ने उसे पोल से बाँध दिया और पीटते रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उसके पास से चोरी के कुछ और सामान भी मिले। पुलिस जाँच कर रही है। जहाँ तक आ रहे विडियो का सवाल है, उसमें यह भी दिखा कि लोगों ने उससे ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ भी कहलवाया। इसके बाद इसे मजहबी हेट क्राइम, यानी घृणाजन्य अपराध, कह कर तमाम जगहों पर प्रचारित किया गया।

महबूबा मुफ्ती से लेकर असद ओवैसी ने बताया कि देश में समुदाय विशेष के लोगों को घेर कर मारा जा रहा है, और इसमें एक पैटर्न है। हालाँकि एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार यह इस साल की 11वीं ऐसी हेट क्राइम की घटना है। ऐसी घटनाओं की किसी भी सभ्य समाज में कोई जरूरत नहीं है, न ही इसे किसी भी तर्क से डिफेंड किया जा सकता है। साथ ही, ओवैसी का ऊपरी कहना उतना ही गलत है जितना यह कहना कि दिल्ली के फ्लायओवर टमाटरों से बने हुए हैं। चंद अपराधों के कारण समुदाय विशेष का हर आदमी असुरक्षित नहीं हो जाता।

इस पर वापस दोबारा आएँगे लेकिन पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि जिस इलाके में यह हुआ वहाँ चोरों के साथ लोग गैरकानूनी तरीके से क्या-क्या करते हैं। जहाँ तक मेरे इलाके की बात है, जो कि झारखंड से बहुत अलग नहीं है, चोर अगर पकड़ा जाता है तो पुलिस के आने तक उसे भीड़, उसकी धर्म/मजहब/जाति/गाँव जाने बगैर ही इतना मारती है कि वो या तो मर जाता है, या मरने की कगार पर पहुँच जाता है।

चोरों को लेकर यही प्रतिक्रिया होती है हमारे समाज में। अगर उस गाँव में कुछ समझदार लोग हों, तो वो उस चोर की जान तो बचा लेते हैं, लेकिन उसे भीड़ के द्वारा बुरी तरह पीटे जाने से नहीं रोक सकते। तबरेज के साथ सबसे पहले तो यही हुआ होगा। फिर, अगर भीड़ ने उसकी पहचान जान ली हो, कि ये समुदाय विशेष से है, तो फिर इसमें कोई दोराय नहीं कि वहाँ खड़े कुछ उचक्कों ने उससे बेवजह ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ भी कहलवाया हो।

आप इसे इस तरह से देखिए कि एक भीड़ है जिसने किसी चोर को मार कर अधमरा कर दिया है। वहीं कुछ लोग हैं जो विडियो बनाना चाहते हैं, या उस चोर की निरीह स्थिति पर मजे लेना चाहते हैं, तो वो उसके मजहब को निशाना बनाते हैं और उससे ‘जय श्री राम’ का नारा लगवाते हैं। ये कोई समझदारी की बात नहीं है, लेकिन ऐसा होना असंभव तो छोड़िए, मुश्किल भी नहीं है। ये गैरकानूनी है लेकिन भीड़ चोरों के साथ ऐसा करती है।

समाज में हर तरह के लोग रहते हैं, और उन्हीं में से कोई किसी मृतप्राय चोर से ‘जय श्री राम’ कहलवाता है, और दूसरा अपने मजहबी नेता होने की खानापूर्ति के चक्कर में यह बोल देता है कि देश में मजहब विशेष के लोगों को शंका के आधार पर मार दिया जा रहा है। देश में बीस करोड़ के लगभग ‘डरे हुए लोग’ हैं। ओवैसी को सारे ‘डरे हुए समुदाय’ का वकील बन कर यह बोलने में दो सेकेंड नहीं लगे कि ‘हमें अब संदेह के आधार पर मारा जा रहा है’।

अब इसमें बात यह आती है कि किसी चोर से, जो कि दूसरे मजहब का है, उससे ‘जय श्री राम’ कहलवा कर क्या हासिल हो जाएगा? इस पर दो सेकेंड सोचिए कि अगर ये दो-चार लड़कों की शरारत या मजहब से घृणा नहीं तो और क्या है। सिवाय एक विडियो पर मिनट भर के मजे के लिए ऐसा करवाया गया, और अचानक से एक चोर के पिटने की घटना, हेट क्राइम बन कर बाहर आ गई। यहाँ पर, यह जानना भी ज़रूरी है कि अभी जाँच चल रही है और यह बात हमें नहीं पता कि तबरेज को शुरु से ही मजहब के आधार पर पीटा गया, या चोरी करते पकड़े जाने पर भीड़ द्वारा पीटने के बाद, उसका नाम आदि पूछ कर उससे नारेबाजी कराई गई।

लिबरलों का क्रोध और उनका ‘लिंचिंग प्रेम’

चूँकि मरने वाला समुदाय विशेष से है, तो ज़ाहिर है कि लिबरलों में क्रोध ज़्यादा होगा। लिबरल शब्द सुन कर, उसके मायने जान कर हमें लगता है कि अच्छा शब्द है, ऐसे लोग अच्छे और खुले विचार रखते होंगे। लेकिन आज की दुनिया में इन लिबरपंथियों ने इतनी नकली बातें की हैं, और झूठे मुद्दों को साम्प्रदायिक रंग दिया है कि भले ही तबरेज की भीड़ हत्या उसके मजहब के कारण हुई हो, भले ही वो चोर न हो, रास्ते से जा रहा हो, और पीट कर मार दिया गया हो एक उन्मादी भीड़ के द्वारा अपने मजहब के कारण, लेकिन आम आदमी एक मृतक के प्रति सहानुभूति दिखाने से पहले सोच रहा है कि वो कैसे प्रतिक्रिया दे।

कारण सीधा है कि लिबरपंथियों की बातों से विश्वास उठ चुका है। इन्हें ऐसी मृत्यु पर अफसोस नहीं होता, इन्हें ऐसे अपराध पर कोई दर्द नहीं होता, इन्हें खास तरह के अपराधों, जिसमें खास तरह के नाम हों, उन्हीं संदर्भों में दर्द होता है। वस्तुतः दर्द भी नहीं होता, ये बस दिखाते हैं कि इन्हें दर्द हो रहा जबकि ये भीतर से वो गिद्ध हैं जो ऐसी मौतों का इंतजार करते हैं।

हमारे देश के लिबरल और वामपंथी, जो अचानक से संवदेनशील हो कर पूरे समाज की सामूहिक चेतना और करुणा के भाव पर ही सवाल उठा देते हैं, दरअसल बहुत बड़े धूर्त हैं जो इस इंतजार में रहते हैं कि इनके मतलब का कोई मरे, मार दिया जाए, गायब हो जाए। वरना, आप गूगल पर सर्च कीजिए कि रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद जो चुनाव हुए, उसी के बाद केरल में ही कितने विद्यार्थियों ने, जिसमें दलित और दूसरे मजहब के शामिल हैं, आत्महत्या की, और कितनों पर रोहित वेमुला वाला कवरेज हुआ।

ये लोग ही वो कारण हैं कि आज कोई समुदाय विशेष का कोई आदमी सच में जब किसी उन्मादी भीड़ की घृणा का शिकार होता है तो आम जनता यह सोचने लगती है कि ज़रूर इसमें कोई झूठ छुपा होगा। इनकी क्रेडिबिलिटी इतनी गिर चुकी है कि व्यक्ति मर जाता है और समाज उसके प्रति अपने ईमानदार भाव तक प्रकट नहीं कर पाता क्योंकि उसे डर होता है उस संवेदना के झूठे हो जाने का।

हाल ही में प्रतापगढ़ में एक दलित को खाट में लोहे के तार से बाँध कर, हाथ पाँव काट कर जला दिया गया। इसमें परिवार वाले भी परेशान हैं कि कोई ऐसा क्यों करेगा। क्या आपने यह खबर सुनी? शायद नहीं। क्योंकि इसमें दलित की हत्या तो हुई है, लेकिन पता नहीं चल रहा कि किसने की। इसलिए लिबरलों को शायद इंतजार है कि इसमें किसी सवर्ण जाति के अपराधी का नाम आए वरना अगर किसी मुस्लिम या दूसरे दलित का नाम आ जाएगा तो इनका क्रोध और नकली संवेदना तो बेकार ही हो जाएगी।

यह तो अभी हुई एक घटना मात्र है, मैं आपको पचास घटनाओं की लिस्ट देता हूँ जो सारे हेट क्राइम हैं लेकिन उसमें अपराधी समुदाय विशेष से है और ये घटनाएँ बहुत पुरानी नहीं, बल्कि 2016 के बाद की हैं। आपने इनमें से एक पर भी लिबरपंथियों का क्रोध न तो ट्विटर पर देखा होगा, न ही प्रेस क्लब में, न न्यूज़ चैनलों को स्टूडियो में, न पत्रकारिता के स्वघोषित मानदंडों के तीन एकड़ में फैली हुई फेसबुक पोस्टों पर।

लिंचिंग किसी भी की भी हो, हर तरह से गलत है

खैर, मुद्दा यह नहीं है कि लिबरल क्या करते हैं, मुद्दा यह है कि तबरेज को भीड़ ने इतना मारा कि वो हॉस्पिटल में मर गया। चाहे यहाँ उसके मजहब के कारण उसे मारा गया हो, या उसके चोर होने के कारण, किसी भी सूरत में यह हत्या उचित नहीं है। ऐसी हर घटना पर हमारी और आपकी एक समान, संवेदनशील और समझदारी वाली प्रतिक्रिया होनी चाहिए कि हमारे समाज में भीड़ को किसी भी कारण से, चाहे वो गाय चुरा कर भाग रहा हो, गोमांस खा रहा हो, चोरी कर रहा हो, राह चलते अपना काम कर रहा हो, भाजपा के झंडे लगा रहा हो, उस व्यक्ति की जान लेना तो छोड़िए, उस पर एक थप्पड़ उठाने की भी इजाज़त नहीं होनी चाहिए।

इस पर विचार रखने के लिए आपको उस व्यक्ति की जाति, धर्म या मजहब जानने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। अगर आपको तबरेज की हत्या पर समाज में दोष दिखता है, तो आपको विनय की भी हत्या पर विचलित होना पड़ेगा। अगर आपको किसी चोर की भीड़ हत्या पर संवेदनशील होने का मन करता है तो आपको जीटीबी नगर मेट्रो स्टेशन के बाहर इस्लामी भीड़ द्वारा लिंच किए गए ई-रिक्शा चालक की भी मौत का गम करना चाहिए।

अगर आप ऐसा करने में अक्षम हैं, अगर आपको गलती सिर्फ हिन्दुओं में ही दिखती है, अगर आप एक बेकार सी वेबसाइट के ‘हेट क्राइम वॉच’ के आँकड़ों को पढ़ कर विचलित हो रहे हैं, तो आप निश्चित ही वैचारिक स्तर पर दोगले व्यक्ति हैं जो अपने दोस्तों को बीच, यह कहता पाया जाता होगा कि ‘यार समुदाय विशेष में कोई मार ही नहीं रहा आज कल, मुझे हिन्दुओं को गरियाते हुए कुछ पोस्ट करने की इच्छा हो रही है’।

राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी ने मोहसिन से किया प्यार, बदले में मिला – दोस्त के साथ Rape और जबरन निकाह

उत्तर प्रदेश में आए दिन बलात्कार की हो रही घटनाओं से प्रदेश प्रशासन व पुलिस की लगातार पोल खुल रही है। अब एक राष्ट्रीय खिलाड़ी को अपने प्रेमी के साथ ही निकाह करना भारी पड़ गया। जिस प्रेमी पर उसने भरोसा जताया और उसके साथ जीवन व्यतीत करने के लिए अपना घर तक छोड़ दिया, उसी प्रेमी ने उसके साथ दरिंदगी को अंजाम दिया। मामला अलीगढ़ का है। अभी हाल ही में बच्ची गुड़िया (बदला हुआ नाम) की हत्या से क्षेत्र उबरा भी नहीं था कि अब गाँधी पार्टी थाना क्षेत्र में नई वारदात सामने आई है। यहाँ एक राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी के घर मोहसिन नामक युवक का आना-जाना था।

युवती की माँ बीमार रहती थी, इसीलिए मोहसिन उसकी माँ के उपचार हेतु नियमित रूप से आया करता था। मोहसिन दूसरे समुदाय का है। युवती के घर आने-जाने के क्रम में दोनों के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए। इसी बीच युवती की माँ की मृत्यु हो गई। इसके बाद मोहसिन और युवती साथ-साथ बाहर भी आने-जाने लगे। घर वालों को यह नागवार गुज़रा और युवती के पिता ने इसका विरोध किया। विरोध करने पर घर में कलह बढ़ गई। जब बात थाने पहुँची तो युवती ने पुलिस के समक्ष लिखित में दिया कि वह अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकती है।

इसके बाद युवती ने मोहसिन के साथ रहने का फ़ैसला लिया। लेकिन, मोहसिन उर्फ़ बिलाल के इरादे कुछ और ही थे। युवती का आरोप है कि मोहसिन ने एक अन्य दोस्त के साथ मिल कर उसके साथ बलात्कार किया। दूसरे दोस्त का नाम जलाल है। तीन महीने तक अपने साथ रखने के बाद मोहसिन ने युवती को किसी महिला के घर छोड़ दिया। वहाँ युवती को बेचने तक की भी कोशिश की गई। इसके बाद वह किसी तरह भाग कर अपने एक दोस्त के यहाँ पहुँची और वहीं रहने लगी।

मोहसिन तब भी नहीं माना और युवती को फिर से जबरदस्ती उठा कर ले गया। मंगलवार (जून 25, 2019) को उसका मोहसिन के साथ जबरन निकाह कराया जा रहा था। पुलिस द्वारा दबिश देने के बावजूद अभी तक किसी भी आरोपित को गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है। थाने में अपहरण की धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने युवती को अभी महिला थाने में रखा है। उसे बेचने की कोशिश करने वाली आरोपित महिला को भी हिरासत में ले लिया गया है। पुलिस ने पीड़िता का बयान दर्ज कर लिया है। प्रेमी मोहसिन और उसका दोस्त जलाल- दोनों ही फरार हैं।

बताया जा रहा है कि पीड़ित युवती की बरामदगी में स्थानीय भाजपा नेताओं ने अहम भूमिका निभाई। पूर्व मेयर शकुंतला भारती, भाजपा महानगर महामंत्री मानव महाजन सहित अन्य नेताओं ने फुर्ती दिखाते हुए जबरन निकाह की सूचना मिलते ही पुलिस को इससे अवगत कराया और घटनास्थल पर पहुँच कर पीड़िता की मदद की। युवती की उम्र क़रीब 20 वर्ष है। वहीं आरोपित मोहसिन नगला पटवारी का रहने वाला है। उसका परिवार उससे सम्बन्ध तोड़ चुका है। मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि होते ही मामला दर्ज किया जाएगा, ऐसा पुलिस ने कहा है।

मुस्लिम अगर नाली में रहना चाहते हैं तो उन्हें वहीं रहने दो: मोदी ने याद दिलाया कॉन्ग्रेस नेता का कथन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (जून 25, 2019) को लोकसभा में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर संसद को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में शाह बानो केस का जिक्र करते हुए कॉन्ग्रेस पर निशाना साधा।

अल्पसंख्यकों की बात करने वाली कॉन्ग्रेस की असलियत को बताते हुए मोदी ने कहा कि, “शाह बानो केस के दौरान कॉन्ग्रेस के एक मंत्री ने कहा था कि मुस्लिमों को सुधारने का ठेका सिर्फ कॉन्ग्रेस पार्टी ने नहीं ले रखा है, अगर वो नाली में रहना चाहते हैं तो उन्हें रहने दो।”

पीएम मोदी के ऐसा कहने के बाद ही विपक्ष ने हंगामा करना शुरू कर दिया और उनसे इस बात का सबूत माँगने लगे। जिसके बाद उन्होंने कहा कि हम आपको यूट्यूब का वो लिंक दे देंगे, ताकि ये बात आप भी जान सकें।

पीएम मोदी द्वारा जिस कॉन्ग्रेस नेता का जिक्र किया गया है उस पर विस्तृत रूप से इंडिया स्पेंड (India Spend) नाम की अंग्रेजी वेबसाइट में बताया गया है कि, कॉन्ग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके मोहम्मद आरिफ ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था –

“मुझे इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा है कि राजीव गाँधी ने अपने दम पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने का निर्णय लिया था। वो एक आधुनिक सोच वाले व्यक्ति थे वो रूढ़िवादिता को नहीं पसंद करते थे। वास्तव में मैने राजीव गाँधी की फाइलों पर ध्यान दिया था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा था कि उन्हें प्रगतिविरोधी और रूढ़िवादी तत्वों के साथ समझौता नहीं करना है। पी. वी. नरसिम्हा राव, अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी (तत्कालीन सरकार में मंत्री) की तरफ से उन्हें ऐसा करने के लिए दबाव डाला गया था। उनकी राय थी कि मुस्लिमों को सुधारना कॉन्ग्रेस पार्टी का काम नहीं था, (उन्होंने कहा) “अगर वो नाली में रहना चाहते हैं तो उन्हें रहने दें।”

पीएम नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि कॉन्ग्रेस समान नागरिक संहिता और शाहबानो मामले से चूक गई, आज फिर एक अवसर आया है, हम महिला सशक्तीकरण के लिए एक विधेयक लाए हैं, कृपया इसे धर्म से न जोड़ें।

शाह बानो प्रकरण: राजीव गाँधी ने कर दिया था मुस्लिम महिलाओं का अदालत जाने का अधिकार खत्म

आपको बता दें कि साल 1986 में शाह बानो प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने 68 वर्षीय तलाकशुदा शाह बानो बेगम के पक्ष में फैसला दिया और उनके शौहर को 179.20 रुपए का मासिक शाह बानो और उनके बच्चों के रख रखाव के लिए दिया जाए, ये फैसला सुनाया। इसके विरोध में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट कर फरवरी 25, 1986 को राजीव गाँधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) विधेयक, 1986 को लोकसभा में पेश कर दिया।

विपक्ष ने इसका जबरदस्त विरोध किया था। इसके बावजूद मई आते-आते यह राज्यसभा से भी पास होकर कानून का रूप ले चुका था। इसके जरिए तलाक के बाद गुजारा-भत्ता के लिए अदालत जाने का मुस्लिम महिलाओं का अधिकार खत्म हो गया। इस कानून में यह भी साफ कर दिया गया था कि तलाकशुदा बीवियों को उनके शौहर से केवल इद्दत (तीन महीने) तक का ही गुजारा-भत्ता मिलेगा। इसके बाद आरिफ मोहम्मद ने इस कानून के विरोध में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी सरकार की कॉन्ग्रेस सरकार को छोड़ दिया था।

जमीन से उखड़ गया है विपक्ष

कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, “आपकी ऊँचाई आपको मुबारक हो। आप इतने ऊँचे चले गए हैं कि जमीन दिखना बंद हो गई है। आप इतने ऊँचे चले गए हैं कि आप जड़ों से उखड़ गए हैं। आप इतने ऊँचे चले गए हैं कि आपको जमीन के लोग तुच्छ लगने लगे हैं। आपका और भी ऊँचा होना मेरे लिए संतोष और आनंद की बात है।”

‘किसी को जमानत मिलती है तो वो इंजॉय करे, हम बदले की भावना से काम नहीं करेंगे’

आपातकाल का जिक्र करते हुए हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज 25 जून है, 25 जून की वो रात जब देश की आत्मा को कुचल दिया गया था। भारत में लोकतंत्र संविधान के पन्नों से पैदा नहीं हुआ है, भारत में लोकतंत्र सदियों से हमारी आत्मा है। किसी की सत्ता चली न जाए सिर्फ इसके लिए, उस आत्मा को कुचल दिया गया था।

पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, “हमें इसलिए कोसा जा रहा है क्योंकि हमने फलाने को जेल में क्यों नहीं डाला। ये इमरजेंसी नहीं है कि किसी को भी जेल में डाल दिया जाए, ये लोकतंत्र है। ये काम न्यायपालिका का है। हम कानून से चलने वाले लोग हैं और किसी को जमानत मिलती है तो वो इंजॉय करे। हम बदले की भावना से काम नहीं करेंगे।”

आरिफ़ मोहम्मद खान का एक इंटरव्यू:

सलमान खान ने छीना सायकिल चलाते हुए फोन, लूटपाट और बदसलूकी पर पत्रकार ने कर दी FIR दर्ज

बॉलीवुड के कलाकार सलमान खान एक बार फिर मुश्किलों में घिर गए हैं। मुंबई में उनके खिलाफ एक शख्स ने मामला दर्ज कराया है। शिकायत में शख्स ने अपना फोन छीनने और अपने साथ बदसलूकी करने की बात कही है। इस शिकायत के बाद सलमान खान के बॉडीगार्ड ने मुंबई पुलिस में क्रॉस एप्लिकेशन दी है। 

इस पत्रकार ने सलमान खान पर मुंबई मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष 25 जून को धारा 323, 392, 426, 506, और 34 के तहत लूट, मारपीट और आपराधिक धमकी के लिए शिकायत दर्ज की है। यह शिकायत वरिष्ठ पत्रकार अशोक पांडे ने की है। अशोक पांडेय के अनुसार, सलमान खान ने अप्रैल 19, 2019 को एक इवेंट के दौरान उनका मोबाइल छीना था।

रिपोर्ट्स के अनुसार, अप्रैल के माह सलमान खान सुबह जुहू से कांदिवली की ओर साइकिल से जा रहे थे। इस दौरान अशोक पांडेय ने मोबाइल से सलमान खान का वीडियो शूट करने की कोशिश की। ये बात सलमान को अच्छी नहीं लगी और वो भड़क गए। इसी विवाद पर पत्रकार ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। हालाँकि,
सलमान के बॉडी गार्ड ने अपनी शिकायत में पुलिस को बताया है कि वह शख्स सलमान खान की इजाजत के बिना उनका पीछा कर रहा था। साथ ही उनका विडियो भी बना रहा था।

पत्रकार के वकील का कहना है कि सलमान खान ने उनके मोबाइल से उनका डाटा भी डिलीट कर दिया था।

कॉन्ग्रेस समर्थक तहसीन पूनावाला ने लाइव डिबेट में अय्यर को लगाई लताड़, हार के लिए ठहराया जिम्मेदार

तहसीन पूनावाला को कॉन्ग्रेस पार्टी का बड़ा समर्थक माना जाता है, लेकिन एक लाइव न्यूज़ डिबेट के दौरान उन्होंने पार्टी और पार्टी के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के ऊपर जमकर हमला बोला। दरअसल, हाल ही में एक न्यूज डिबेट में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर और तहसीन पूनावाला हिस्सा ले रहे थे। इस दौरान उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता को जमकर घेरा और साथ ही उन पर पार्टी की हार का कारण होने का भी आरोप लगाया। पूनावाला ने कॉन्ग्रेस में युवाओं को मौका न देने पर भी सवाल उठाया।

पूनावाला ने इस दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने मिलिंद देवड़ा और राजीव शुक्ला जैसे नेताओं को बाहर कर कुमार केतकर जैसे बेकार और फालतू नेता को राज्यसभा में भेजने के लिए पार्टी की आलोचना की। इसके साथ ही उन्होंने कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा के पूर्वी उत्तर प्रदेश के महासचिव बनाने के फैसले को भी गलत बताया।

तहसीन पूनावाला ने कॉन्ग्रेस की हार के लिए मणिशंकर को जिम्मेदार ठहराया और घमंडी बताया। उन्होंने कहा कि वो बीते जमाने में रहते हैं, उन्हें नए भारत, नए युग की समझ नहीं है। पूनावाला ने अय्यर द्वारा 2014 लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के लिए चायावाला शब्द इस्तेमाल करने का भी जिक्र किया और कहा कि इनके इस शब्द की वजह से प्रधानमंत्री को सहानुभूति मिली, जो कि कॉन्ग्रेस की हार और भाजपा की जीत का कारण बनी। 

गौरतलब है कि, पूनावाला इससे पहले भी मणिशंकर को पार्टी के लिए बोझ कह चुके हैं। 2018 में कॉन्ग्रेस नेता के राज्य सभा में प्रधानमंत्री के भाषण पर हँसने के बाद उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा था, “कॉन्ग्रेस का कट्टर समर्थक होने के नाते मैं ईमानदारी से स्वीकार करता हूँ कि रेणुका चौधरी और मणिशंकर अय्यर पार्टी के लिए बोझ हैं। इनके घमंड के कारण कॉन्ग्रेस को नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह गाँधी और नेहरू जैसों की पार्टी है। ऊपरी सदन में इस हँसी से मैं छटपटा गया।”

सांसद नुसरत जहाँ और मिमी के साथ हुई संसद के बाहर धक्का-मुक्की

मंगलवार (जून 25, 2019) को तृणमूल कॉन्ग्रेस की सांसद नुसरत जहाँ रूही जैन और मिमी चक्रवर्ती ने लोकसभा सदस्यता की शपथ ली। नुसरत बंगाल की बशीरहाट लोकसभा सीट से जीतीं हैं, जबकि मिमी बंगाल की जाधवपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित हुईं। अभिनेत्री से सांसद बनीं नुसरत और मिमी ने बांग्ला भाषा में लोकसभा सदस्यता की शपथ ली। लेकिन संसद से बाहर निकलते समय दोनों को धक्का-मुक्की का सामना करना पड़ा।

नुसरत और मिमी चक्रवर्ती को संसद के बाहर मीडिया ने घेर लिया। इस दौरान उनके साथ थोड़ी धक्का-मुक्की हो गई, इस पर दोनों सांसदों ने कहा- ‘धक्का न दें।’

मीडिया के सवालों का जवाब देने के बाद नुसरत और मिमी, दोनों सदन में वापस लौटने की कोशिश करने लगीं। इस दौरान सुरक्षाकर्मियों ने उनके लिए रास्ता बनाया। लेकिन उनके सिक्योरिटी वालों को धक्का लगा, इस पर उन्होंने कहा, “आप धक्का नहीं मार सकते सर, समझिए बात को।” (You cannot push us sir, please try to understand) इसके बाद नुसरत और मिमी ने मीडिया को दूर कर के वहीं से तस्वीर लेने को कहा।

जब मीडियाकर्मियों ने निकलने का रास्ता नहीं दिया तो मिमी चक्रबर्ती नुसरत के पीछे जाकर खड़ी हो गईं। इस दौरान दोनों सांसद वापस संसद में लौटने लगीं। ऐसे में सुरक्षा बलों ने हस्तक्षेप करके उन्हें निकलने का रास्ता दिया।

सांसद नुसरत जहाँ के सिंदूर, मेंहदी, वंदे मातरम पर इस्लामिक चिरकुट नाराज, दी गंदी गालियाँ

इस बार के लोकसभा चुनाव में तमाम चर्चा के बीच एक सांसद भी चर्चा का विषय बनी रहीं। कारण चाहे राजनीति में ग्लैमर कहिए या फिर पार्टी, लेकिन अभिनेत्री से सांसद बनीं TMC की सांसद नुसरत जहाँ लगातार मीडिया में बनी हुई हैं। नुसरत ने बंगाल की बशीरहाट लोकसभा सीट से जीत हासिल की।

TMC की 2 सांसद, नुसरत जहाँ और मिमी चक्रबर्ती, ने मंगलवार (जून 25, 2019) को लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण की। इस दौरान उन्होंने जय हिंद-वंदे मातरम-जय बांग्ला के नारे भी लगाए। साथ ही, लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला के पैर भी छुए। अपनी शादी के चलते नुसरत जहाँ 17 और 18 जून को सदन में मौजूद नहीं थीं। ऐसे में उन्होंने मंगलवार (जून 25, 2019) को शपथ ग्रहण की।

सिन्दूर-शपथ-वन्दे मातरम: इन 3 वजहों से कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं नुसरत

शपथ लेने के लिए लोकसभा पहुँचीं नुसरत ने गुलाबी और सफेद रंग की खूबसूरत साड़ी पहन रखी थी। वहीं, उनके दोनों कलाइयाँ चूड़ियों से भरी हुई थीं। माँग में सिंदूर और हाथों में मेहंदी सजी हुई थी। उन्होंने अपने शपथ भाषण की शुरुआत ‘अस-सलाम वालेकुम, नमस्कार’ से की। इसके बाद उन्होंने पूरा भाषण बांग्ला में दिया।

उसके बाद नुसरत अचानक से कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गई हैं। कारण है उनका एक जैन व्यक्ति से शादी कर लेना और उसके बाद संसद में वन्देमातरम के साथ शपथ लेना। अक्सर देखा गया है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों की ओर से वन्दे मातरम कहने के प्रति विरोध का स्वर रहा है। इसका सबसे ताजा उदाहरण भी इसी बार, इसी संसद में देखने को मिला जब लोकसभा में सांसद पद की शपथ लेते वक्त समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान ने ‘वन्दे मातरम’ कहने से इनकार कर दिया।

उन्होंने वन्दे मातरम को ‘इस्लाम के खिलाफ’ करार दिया है। लेकिन वन्दे मातरम को इस्लाम के खिलाफ करार देने वाले वो अकेले व्यक्ति नहीं हैं। नुसरत जैन के खिलाफ सोशल मीडिया पर लगातार आपत्तिजनक व्यंग्य और टिप्पणियाँ की जा रही हैं। उन्हें हिन्दू से शादी करने के लिए भद्दी गालियों के साथ ही जन्नत में जगह ना मिलने तक की दुआएँ की जा रही हैं।

19 जून को नुसरत जहां रूही जैन कोलकाता के बिजनेसमैन निखिल जैन से शादी के बंधन में बंध गईं। उन्होंने तुर्की में शादी की। इस वजह से नुसरत कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं।

दलित को पीड़ित दिखाना हो तब वह ‘दलित’ है और अपराधी दिखाना हो ‘हिन्दू’ बताया जाएगा

आजकल एक नया ट्रेंड सा चल पड़ा है। कुछ नेताओं ने अंग्रेजों के ‘फूट डालो-राज करो’ की तर्ज पर हिन्दुओं को आपस में ही बाँटने की कोशिशें शुरू कर दी है। बाँटने और राज करने की राजनीति के सिरमौर बन चुके नेताओं ने मुस्लिमों और दलितों को एक साथ रख कर हिन्दुओं को उनसे अलग रखना शुरू कर दिया है। यह ऐसा ही है जैसे हाथी की सूँड़ में अगर चोट लगती है तो कहा जाए कि ये चोट हाथी को थोड़े लगी है, उसकी सूँड़ को लगी है। ये प्रयास इसीलिए किए जा रहे हैं ताकि दलित ख़ुद को हिन्दुओं से अलग देखने लगें, जो कि असंभव है। यह ऐसा ही है, जैसे क़ुरैशियों को कहना कि तुम मुस्लिम नहीं हो। यह ऐसा ही है, जैसे पठानों और मुस्लिमों को अलग कर के देखना।

यह सब चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है। इसे समझने के लिए कुछ दिन पीछे कर्नाटक चुनाव से पहले वाले समय को देखने चलते हैं। उस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री रहे सिद्धारमैया ने लिंगायत और वीरशैव समुदाय को अलग रिलिजन के रूप में का मान्यता देने की योजना बनाई। इसका सीधा अलक्ष्य था- लिंगायतों को यह एहसास दिलाना कि वे अलग रिलिजन से सम्बन्ध रखते हैं और वे हिन्दू धर्म के अंतर्गत नहीं आते। ‘अलग पहचान’ की इस राजनीति को केंद्र सरकार ने रिजेक्ट कर दिया। मामला हाईकोर्ट में गया और वहाँ मोदी सरकार ने साफ़-साफ़ कहा कि बसवन्ना के अनुयायी अलग धर्म में नहीं आते।

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के भीतर आने वाले अधिकतर लोग अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं और अगर उन्हें हिन्दू धर्म से अलग दर्जा दे दिया जाता तो वे अनुसूचित जाति का दर्जा भी खो देते। लिंगायत समुदाय के गुरु माने जाने वाले बसावा या बसवन्ना 12वीं सदी के भक्ति काल के एक लोकप्रिय कन्नड़ कवि थे। लिंगायत समुदाय का संस्थापक उन्हें ही माना जाता रहा है। बसवन्ना भगवान शिव के परम भक्त थे। अब आप सोचिए, शिवभक्तों को हिन्दुओं से अलग दर्जा देने की कोशिश करने वाले ये नेता दलितों को अलग साबित करने के लिए क्या नहीं करेंगे? एपीजे अब्दुल कलाम ने 2003 में वाजपेयी काल के दौरान संसद में बसावा की प्रतिमा का अनावरण किया था, प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 लंदन में टेम्स नदी के किनारे उनकी प्रतिमा का अनावरण किया।

लेकिन, भाजपा के कार्यकाल में लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने की कोशिश नहीं की गई। ठीक ऐसे ही, आज मंगलवार (जून 25, 2019) को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने हिन्दुओं व दलितों को अलग-अलग रखते हुए उन्हें ऐसे साबित करने की कोशिश की, जैसे हिन्दू और मुस्लिम अलग धर्म और मज़हब हैं। उन्होंने उस कथित पुराने भारत की बात की, जहाँ ‘दलितों और हिन्दुओं’ को एक-दूसरे की फ़िक्र थी। अब ‘दलितों और मुस्लिमों’ पर कथित अत्याचार की बात करते हुए ‘डर का माहौल’ पैदा करने की कोशिश चल रही है ताकि ऐसा प्रतीत हो कि अत्याचार करने वाले हिन्दू हैं और पीड़ित मुस्लिम और दलित। जबकि असल में, अगर अत्याचारी हिन्दू है तो दलित भी उसके अंदर आ गया।

बात-बार पर संविधान की बात करने वाले ऐसे नेताओं व पत्रकारों की जमात को सबसे पहले संविधान की याद दिलानी ही ज़रूरी है। भारत में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों को दलित कहा जाता है। अगर ये नेता मानते हैं कि दलित और हिन्दू अलग-अलग हैं तो फिर मुस्लिमों में किसी जाति को एससी-एसटी का दर्जा क्यों नहीं प्राप्त है? The Constitution (SC) Order, 1950 के मुताबिक़, हिन्दू, जैन और बौद्ध- इन तीन धर्मों के लोगों को छोड़ कर किसी अन्य धर्म से सम्बन्ध रखने वाले किसी भी व्यक्ति को एससी केटेगरी के अंदर नहीं रखा जा सकता। कहने को तो अगर अर्थ लगाया जाए तो हर धर्म के दबे-कुचले लोगों को दलित कहा जा सकता है क्योंकि दलित शब्द का संविधान में कहीं वर्णन नहीं है।

अगस्त 7, 2018 को भारतीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर मीडिया को ‘दलित’ शब्द के बदले ‘अनुसूचित जाति’ का प्रयोग करने कहा था। यहाँ बात यह है कि आख़िर हिन्दुओं में फूट डालकर अगर वोट मिल भी जाते हैं तो क्या इससे देश और समाज नहीं बँट जाएगा? जो नेता इस तरह के कार्य करते हैं, उन्हें अंग्रेजों से अलग कैसे माना जाए? उदाहरण देखिए। कई मीडिया संस्थानों ने सर्वे के आधार पर यह बताया कि कैसे भारत में मुस्लिमों व दलितों पर अत्याचार हो रहा है, उनसे भेदभाव किया जा रहा है। इसी तरह बीबीसी अपने लेख में कहता है कि नरेंद्र मोदी के भारत में मुस्लिम और दलित अपनी जान के लिए चिंतित हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट्स वाच ने लिखा कि हिन्दू लोग मुस्लिमों व दलितों पर अत्याचार करते हैं।

यह सब किसलिए? जो दलित हिन्दू समाज का ही अंग है, उस अनुसूचित जाति को उसके ही धर्म से अलग पहचान बनाने की कोशिश कर पूरे हिन्दू समुदाय को अलग-थलग करने की कोशिश चल रही है, जिसमें ईसाई मिशनरी, लोभी नेता और हिंदुत्व-विरोधी ताक़तों के साथ-साथ भारत विरोधी ताक़तें भी शामिल हैं। इन्हें आइना दिखाने के लिए दो ऐसी घटनाओं का ज़िक्र करना ज़रूरी है, जहाँ इनके मुँह बंद हो जाते हैं। मई 2018 में तमिलनाडु के थेनी जिले में एक दलित बस्ती में किसी वृद्ध दलित महिला की मौत हो गई। जब वे उस महिला का अंतिम क्रिया कर्म करने के लिए जा रहे थे, तभी मुस्लिमों से उनकी झड़प हुई।

दरअसल, मृत दलित महिला की शवयात्रा मुस्लिम बस्ती से गुज़र रही थी, जिसपर मुस्लिमों ने आपत्ति जताई। बाद में दोनों के बीच लाठी-डंडे से लड़ाई हुई और 30 से अधिक लोग घायल हो गए। इसे क्या कहा जाएगा? इसे हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच लड़ाई कहा जाएगा या फिर दलितों और समुदाय विशेष के बीच, ऐसा हिन्दुओं और दलितों को अलग-अलग देखने वाले विद्वानों को जवाब देना चाहिए? यह निर्भर करता है। अगर दलितों ने नुक़सान पहुँचाया तो इसे हिन्दुओं द्वारा मुस्लिमों पर अत्याचार बना कर पेश किया जा सकता है। अर्थात यह, कि यही दलित तब तो हिन्दू हो जाते हैं (जो कि सही है) जब पीड़ित कोई मुस्लिम हो और यही दलित हिन्दू तब नहीं होते जब मुस्लिमों के साथ उन्हें एक कर के बात की जाती है।

अब दूसरी घटना पर आते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को 1981 में ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ का दर्जा दिया गया, जिसे 2005 मे इलाहबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। यूपीए सरकार इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई लेकिन राजग सरकार ने सत्ता में आने के बाद इस अपील को वापस ले लिया। अभी हाल ही में ख़बर आई कि एससी-एसटी कमीशन ने एएमयू से पूछा है कि संस्थान अनुसूचित जाति एवं जनजाति को एडमिशन के दौरान नियमानुसार आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता? इस विवाद पर मुस्लिमों व दलितों पर कथित अत्याचार की बात करने वाले किसका पक्ष लेंगे? एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा जब भंग कर दिया गया है तो फिर वहाँ एससी-एसटी को आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा?

यकीन मानिए, अगर किसी अन्य विश्वविद्यालय में ऐसा होता तो इसे मोदी सरकार द्वारा दलितों पर अत्याचार के रूप में पेश किया जाता। यूनिवर्सिटी के कुलपति की जाति देखी जाती कि कहीं वह कथित उच्च जाति का तो नहीं है। इसीलिए, यह निर्भर करता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि पीड़ित कौन है और अपराधी किसे दिखाना है? अक्सर ख़बरों में अगर दलित परिवारों में लड़ाई हुई हो फिर भी इसे दलितों पर अत्याचार के रूप में ही पेश किया जाता है। दलित को जब पीड़ित दिखाना हो तब उसे दलित कहा जाएगा और जब उसे अपराधी दिखाना हो तो उसे हिन्दू बताया जाएगा। ध्यान दीजिए, आज ये दलितों को हिन्दू धर्म से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं, कल इनकी ज़हर बुझी तलवार ओबीसी जातियों तक पहुँचेगी और ‘मुस्लिमों और ओबीसी’ पर अत्याचार का रोना रोया जाएगा।

नक्सलियों ने जवानों को मारने का बनाया था प्लान, ‘आसमानी बिजली’ ने किया फेल

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर से बम ब्लास्ट की ख़बर सामने आई है। दरअसल, सामरी क्षेत्र के माओवादी प्रभावित क्षेत्र पुंदाग में माओवादियों द्वारा चुनाव के दौरान जवानों को निशाना बनाते हुए IED की सीरीज़ बिछाई गई थी। घटना की जानकारी मिलते ही सामरी थाना क्षेत्र से SI विनोद पासवान अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुँचने के लिए रवाना हुए, लेकिन बारिश के चलते वहाँ नहीं पहुुँच सके, लेकिन CRPF जवानों की टीम बाइक से वहाँ पहुँचने में क़ामयाब रही। इस ब्लास्ट से क्षेत्र तो ज़रूर दहल गया, लेकिन माओवादियों की मंशा पर पानी भी फिर गया।

ख़बर के अनुसार, शुक्रवार (21 जून) की शाम को बारिश के साथ आकाशीय बिजली के सम्पर्क में आने से सड़क पर बिछाए गए सभी 56 IED बम ब्लास्ट हो गए। इतनी भारी मात्रा में IED बिछाने का मक़सद किसी बड़ी घटना को अंजाम देना था। इस घटना के बाद सामरी पुलिस के साथ सामरी, सबाग व बंदुरचुआ में तैनात CRPF के जवान एलर्ट हो गए हैं। फ़िलहाल सुरक्षा की दृष्टि से एक एन्टी लैंड माइंस वाहन भी ज़िले से भेजा गया है।

हालाँकि, इस बम ब्लास्ट में किसी के हताहत होने की कोई ख़बर नहीं है। जानकारी के अनुसार, बलरामपुर-रामानुजगंज ज़िले के चुनचुना-पुंदाग क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शासन-प्रशासन द्वारा कई काम कराए जा रहे हैं। इनमें से एक सबाग से पुंदाग तक सड़क निर्माण कार्य भी है और इस कार्य में माओवादी बाधा बन रहे हैं। उन्होंने इस सड़क निर्माण कार्य में लगी मशीनों और वाहनों को आग लगा दी थी। इतना ही नहीं माओवादियों ने निर्माण कार्य में लगे इंजीनियर और मुंशी का अपहरण तक कर लिया था। 

माओवादियों ने जवानों की जान से मारने के मक़सद से कई बार उन जगहों पर IED बिछाई जहाँ से वो गुजरते हैं। कई बार इन बमों का शिकार स्थानीय चरवाहे और उनके मवेशी हो जाते हैं। ऐसी हरक़तों से माओवादियों ने सड़क निर्माण कार्य में बाधाएँ उत्पन्न की।