Saturday, November 16, 2024
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जानिए कैसे एक महिला डॉक्टर की लाश पर गिरोह विशेष ने खेला अपना गन्दा खेल, छुपाई असलियत

डॉक्टर पायल तड़वी आत्महत्या मामला पूर्णतः रैगिंग ने जुड़ा है और इसका ‘जाति’ या जातिवाद’ से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं, जिससे पता चले कि पायल को जातिगत भेदभाव से गुज़रना पड़ा हो या उसकी जाति को लेकर उस पर कोई अत्याचार किया गया हो। इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं है कि जो हुआ वो सही है, बल्कि यह बिकुल ही ग़लत है। लेकिन, जो नहीं हुआ, उसे लेकर हाय-तौबा मचाने वाले ‘डर का माहौल’ गैंग ने जो किया, वो भी समाज में ज़हर फैलाने जैसा है। पायल की उसकी तीन सीनियरों ने रैगिंग की, ऐसा राज्य सरकार द्वारा गठित कमिटी की जाँच से निष्कर्ष निकला है। आगे बढ़ने से पहले जरा मामले को समझ लें। (नोट- इस लेख में संलग्न सारे व्यक्तिगत ट्वीट्स गिरोह विशेष के सदस्यों के हैं, जो जाँच से पहले अपना निर्णय देने और मनगढ़ंत मुद्दों पर चर्चा छेड़ने के आदि हैं।)

मुंबई स्थित टोपीवाला मेडिकल कॉलेज की छात्रा डॉक्टर पायल तड़वी ने कॉलेज से जुड़े बीवाईएल नायर अस्पताल परिसर में स्थित हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। यह घटना 22 मई की है। इसके बाद उनकी माँ ने अपनी एक शिकायत में सीनियरों द्वारा प्रताड़ित किए जाने और जातिगत भेदभाव करने का आरोप लगाया था। इसके बाद नायर अस्पताल ने अपनी एक रिपोर्ट में रैगिंग किए जाने की पुष्टि की थी। उस रिपोर्ट में आरोपितों द्वारा पायल को सार्वजनिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने की बात तो पता चली लेकिन जातिगत भेदभाव या जाति को लेकर प्रताड़ना सम्बन्धी कोई बात सामने नहीं आई। भील-मुस्लिम समुदाय से आने वाली तड़वी ने एसटी कोटे के लिए आरक्षित सीटों के अंतर्गत कॉलेज में दाखिला लिया था।

इस संबंध में राज्य सरकार ने एक कमिटी गठित कर के मामले की जाँच सौंपी, जिसमें सामने आया कि यह मामला जाति-उत्पीड़न से जुड़ा नहीं है। हालाँकि, इससे पहले ‘डर का माहौल’ गैंग अपना काम कर चुका था। जो उनका गन्दा अजेंडा था, उन्होंने जो घृणित उद्देश्य पाल रखे थे, उनका पालन कर इस गैंग ने मृत डॉक्टर की लाश पर अपना हथकंडा अपनाया और अपना उल्लू सीधा किया। जैसा कि सर्वविदित है, ‘मोदी सरकार के कार्यकाल में मुस्लिमों पर अत्याचार’ वाला माहौल बनाने वाले इन दोमुँहे साँपों ने जब देखा कि अब यह हथकंडा पुराना हो रहा है और इसकी पोल खुलती जा रही है, तब उन्होंने ‘दलितों पर जाति को लेकर अत्याचार’ वाला माहौल बनाना शुरू कर दिया।

पायल तड़वी आत्महत्या मामले में गिरोह विशेष ने जो किया, उससे असल मुद्दा छिप गया। वास्तविक समस्या पर बातें नहीं हुईं और जो मनगढ़ंत कहानी थी, उसके आधार पर सोशल मीडिया में चर्चा छेड़ दी गई। जैसा कि जाँच कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाया है, रैगिंग को रोकने के लिए हर तीन महीने पर छात्रों, उनके अभिभावकों व पढ़ाने वाले शिक्षकों की एक नियमित बैठक बुलाई जानी चाहिए। लेकिन, इस पर बात नहीं हुई। बात हुई तो ‘कथित उच्च जाति के लोगों द्वारा दलितों के साथ किए जा रहे अन्याय’ के बारे में। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि छात्रों की काउंसलिंग व्यवस्था तगड़ी की जानी चाहिए। लेकिन, इस पर चर्चा क्यों हो? यह तो वास्तविक मुद्दा है न। चर्चा हुई तो ‘Brahmanical Patriarchy’ पर।

अपनी रिपोर्ट में कमिटी ने सुझाया है कि क्लिनिकल विषयों में समय प्रबंधन को लेकर प्रोफेसरों को छात्रों की मदद करनी चाहिए। किसी भी घटना के बाद उसे अपने मनपसंद और मनगढ़ंत दिशा में मोड़ कर ज़हरीली फसल उगाना जिस गिरोह का पेशा है, उसकी इस हरकत से नुकसान यह हुआ कि मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग को लेकर समाज में, सोशल मीडिया में और प्रशासन में चर्चा होनी चाहिए थी, वो नहीं हुई। होगी भी कैसे, इसे जातिवादी रंग से पोत कर वास्तविक मुद्दे को ही गौण कर दिया गया। इससे समाज को नुकसान हुआ। आज जब जाँच समिति की रिपोर्ट में जाति आधारित प्रताड़ना के कोई सबूत नहीं मिले हैं, तो गिरोह विशेष चुप है। लेकिन वे अन्दर ही अन्दर ख़ुश भी हैं, उनका काम जो पूरा हो गया।

जाति की बात तो हर जगह की गई, वास्तविक समस्या रैगिंग को किसी ने छुआ भी नहीं, शायद बिकाऊ नहीं था

न्यूज़ पोर्टल्स में बड़े-बड़े ओपिनियन लिखे गए। इसमें ‘दलितों पर हो रहे अत्याचार’ पर चर्चा की गई, पायल आत्महत्या मामले का उदाहरण देते हुए बताया गया कि कैसे भारतीय कॉलेजों में दलितों पर अत्याचार हो रहा है। इसे रोहित वेमुला सहित अन्य मामलों से जोड़ कर देखा गया। लाइवमिंट जैसे मीडिया संस्थानों ने अपनी वेबसाइट पर ऐसे लेख को जगह दी, जिसमें पायल आत्महत्या कांड को ‘दलित एवं आदिवासी छात्रों के प्रति अन्य छात्रों का पूर्वग्रह’ की बात की गई थी। इस लेख में दलित छात्रों से उनके अनुभव पूछे गए कि कैसे उनकी जाति को लेकर उन पर अत्याचार किया जाता है। हाँ, इस लेख में रैगिंग (जो मौत की वास्तविक वजहों में से है) की समस्या को लेकर कोई बात नहीं की गई क्योंकि यह अजेंडे को सूट नहीं करता था।

अब आगे ‘द न्यूज़ मिनट’ के एक लेख की बात करते हैं। इस लेख में दावा किया गया कि आरोपितों के माता-पिता ने उन्हें जाति, धर्म, रंग और वर्ग को लेकर भेदभाव करने के विरुद्ध कोई शिक्षा नहीं दी। इसमें मेडिकल क्षेत्र में ‘जातिगत भेदभाव’ की बात की गई और लिंचिंग वगैरह का जिक्र करते हुए इसे पूरी तरह जाति वाला मामला बताया गया। इसका कोई सबूत? कुछ नहीं। अब जब कमिटी की रिपोर्ट में इनकी पोल खुल गई है, क्या ये माफ़ी माँगेंगे? यह इसी तरह है जैसे ज़मीन के विवाद में हुई मौत को कुत्ता काटने से हुई मृत्यु बताना और उसके बाद पूरे सोशल मीडिया में यह चर्चा करना कि कुत्ता काटने से कैसे बचा जाए, कुत्ता काटने के बाद कौन सी दवाएँ इस्तेमाल की जाएँ, किस डॉक्टर से दिखाया जाए, इत्यादि-इत्यादि।

जबकि उपर्युक्त उदाहरण में असल मामला तो ज़मीन से जुड़ा विवाद था। चर्चा तो होनी चाहिए थी कि ज़मीन से जुड़े विवादों को कैसे सुलझाया जाए? ठीक इसी तरह, इस मामले में भी रैगिंग के कारण हुई मृत्यु में चर्चा का रुख अपने हिसाब से मोड़ कर जाति, धर्म और वर्ग को लाया गया। यह नया नहीं है। आजकल हर एक घटना में ऐसा ही मोड़ दिया जा रहा है, जिससे जब तक वास्तविकता साफ़ हो, तब तक अपना अलग ही निर्णय सुना दिया जाए और इसे लेकर चर्चा छिड़ जाए और लोगों को ऐसा लगे कि वास्तविक समस्या पर बात हो रही है। कुछ लोग समर्थन करेंगे, कुछ विरोध करेंगे और इस तरह पूरी की पूरी चर्चा का रुख उसी तरफ मुड़ जाता है, जिधर गिरोह विशेष की इच्छा हो।

यहाँ हम उन लेखों के स्क्रीनशॉट्स शेयर कर रहे हैं और गिरोह विशेष के ट्वीट्स भी संलग्न कर रहे हैं, जो पायल तड़वी की आत्महत्या और जाँच कमिटी की रिपोर्ट आने के बीच हुआ। आजकल की हर घटना में इनकी ऐसी भागीदारी को देखते हुए यह अनिवार्य हो जाता है कि किसी भी घटना पर टिप्पणी करने या प्रतिक्रिया देने से पहले हम वास्तविकता से पूरी तरह रूबरू हो जाएँ।

सोशल मीडिया पोस्ट के लिए पत्रकारों (या आम नागरिकों) की गिरफ़्तारी पर कहाँ खड़े हैं आप?

नेहरू बाबा ने पहले संविधान संशोधन में ही ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर अस्पष्ट शब्दों का सहारा लेकर ऐसे ब्रेक लगाए थे जो सरकारें और न्यायालय अपने हिसाब से समझ सकती हैं, और उस पर कार्रवाई कर सकती हैं। नेहरू बाबा को संपूर्ण स्वतंत्रता से भय रहा हो या वो आलोचना का गला घोंटना चाहते हों, मुझे नहीं पता, लेकिन सत्य यह है कि भारतीय संविधान में ‘एब्सलूट फ़्रीडम’ नहीं है। आपकी स्वतंत्रता वहाँ ख़त्म हो जाती है, जहाँ से दूसरे की शुरू होती है।

राहुल गाँधी ट्वीट कर रहे हैं कि पत्रकारों को छोड़ा जाए और यूपी सरकार ने जो किया है वो मूर्खतापूर्ण है क्योंकि उनके हिसाब से राहुल गाँधी पर जितने फेक न्यूज और प्रोपेगेंडा फैलाए गए हैं, सब पर कार्रवाई की जाए तो हर न्यूज पेपर में स्टाफ़ की कमी हो जाएगी। ये ट्वीट राहुल गाँधी का है जिनकी पार्टी उस सरकार में हिस्सेदार है जहाँ हाल ही में कुमारस्वामी पर आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए एक पत्रकार को गिरफ़्तार किया गया है।

राहुल गाँधी वर्तमान में जीने वाले व्यक्ति हैं। अंग्रेज़ी में जिसे ‘लिविंग इन द मोमेंट’ कहा जाता है। फ़र्क़ बस इतना है कि कई लोग इस दर्शन को जीवन में निजी चुनाव के कारण उतारते हैं, वहीं कई लोग स्मृतिदोष के कारण ऐसा करने को मजबूर होते हैं। राहुल गाँधी वर्तमान में सिर्फ इसलिए जीते हैं क्योंकि उन्हें अपने ही पार्टी, परिवार या देश के इतिहास का तो छोड़िए, एक दिन पहले की घटना तक का भी भान नहीं होता।

राहुल गाँधी को इंडियन एक्सप्रेस पर कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा की गई छापेमारी की याद कैसे होगी भला जब उनके पिता की सरकार ने लगातार, एक के बाद एक दफ़्तरों पर सरकारी अफ़सरों की टोली भेज कर रेड्स किए थे क्योंकि अख़बार सरकार और रिलायंस के बीच के धंधे पर लिख रहा था। राहुल को जब यही याद नहीं रहता कि अमेठी के वो सांसद थे, तो इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी और पिता के कारनामे क्यों याद रहेंगे!

उसके बाद राजदेव रंजन जैसे पत्रकारों की राजद-जदयू सरकार में हत्या से लेकर, लगभग हर दिन बंगाल में हो रही राजनैतिक हत्याओं पर चुप्पी साधने वाले पत्रकार एक पत्रकार की गिरफ्तारी पर प्रेस क्लब में जा रहे हैं। ये लोग गौरी लंकेश कांड पर भी प्रेस क्लब में गए थे, लेकिन उसी समय के आसपास बाईस और पत्रकारों को भी अलग-अलग राज्यों में मार दिया गया था, उस पर न ट्वीट आए, न पोस्ट लिखे गए।

बेचारों-सी शक्ल लेकर धूर्तता भरी बात करने वाले रवीश कुमार लेख लिख रहे हैं कि अनुपम खेर ‘इंसाफ़’ माँग रहे हैं जबकि उन्हें ये कहना चाहिए था, वो कहना चाहिए था। बात यह है कि रवीश जी खुद को ज्ञान का सागर समझ कर अवसाद में डूब चुके हैं। वो जो अनुपम खेर को करने कह रहे हैं, बेचारे खुद ही नहीं कर पाते। अनुपम खेर अगर अपनी तख्ती पर रवीश द्वारा सुझाए शब्द नहीं लिख पा रहे तो सवाल यह भी है कि रवीश ने कब अपनी विचारधारा के विपरीत जा कर ममता बनर्जी को लताड़ा और इस्तीफा माँगा कि आपके राज्य में कानून व्यवस्था बर्बाद है, नहीं सँभल रही तो छोड़ दीजिए?

रवीश ने कितनी बार ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों में हुई पत्रकारों की हत्याओं को लेकर डभोलकर, पनसरे, कलबुर्गी आदि का दोष निवर्तमान सरकारों पर डाला है? शून्य बार। इसलिए रवीश जो कर रहे हैं वो पत्रकारिता नहीं है, और यही कारण है कि मैं इन लोगों के पीछे तब तक लगा रहूँगा जब तक ये अपनी लिबरपंथी से बाज़ नहीं आ जाते।

ये कहना बहुत आसान होता है कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा रही है जब आपके मालिक के घर पर टैक्स चोरी के केस में छापे पड़ते हैं। समुदाय विशेष के प्रतीकों पर दो शब्द बोलने वाला यूपी की जेल में पड़ा हुआ है और त्रिशूलों पर कंडोम बनाने वाले, ‘सेक्सी दुर्गा’ फिल्म बनाने वाले, हिन्दू प्रतीकों को बलात्कार का पर्याय बताने वाले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ ले लेते हैं, और आप डिफ़ेंड करते हैं।

किसी भी नागरिक को सोशल मीडिया पोस्ट आदि के लिए जेल में ले जाना अनुचित है। ये ग़ैरक़ानूनी नहीं है, लेकिन क़ानूनों को बदलने की ज़रूरत है। सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोग हमेशा आलोचना, गाली और कट्टर विरोध झेलेंगे क्योंकि वो प्रकृति है विरोध की। इसमें हर तरह की घृणित गालियाँ दी जाएँगी, अफ़वाह फैलाए जाएँगे। ये मानवीय प्रकृति है जिसे आप पूरी तरह से दबाने पर उतरेंगे तो शायद हर पाँच साल पर हर व्यक्ति एक बार जेल में होगा।

आज ही किसी ने मुझे कुछ स्क्रीनशॉट्स भेजे जिसमें फेसबुक पर एक मजहब विशेष का व्यक्ति और एक ईसाई यह लिख रहा है कि वो रेप करना चाहता है, रेप की धमकी दे रहा है। ये कैसी मानसिकता है और इस विचार को बढ़ावा कौन दे रहा है? ऐसा नहीं है कि हिन्दू ऐसा नहीं करते। संदर्भ बदलते ही इस तरह के लोग ऐसी कुत्सित विचारधारा का प्रदर्शन करते हैं।

इसका समाधान, या पब्लिक फ़िगर को लेकर की गई टिप्पणियों पर पुलिसिया प्रतिक्रिया सही नहीं है। यहाँ दिन भर में अरबों कमेंट टाइप होते हैं, करोड़ों बातें लिखी जाती हैं, लाखों सत्ता-विरोधी बातें पोस्ट होती हैं, और हजारों लोग बहुत ही घटिया शब्दों का प्रयोग करते हैं। आप कितनों को पकड़ेंगे? क्या आपके जेल में जगह है? क्या आपकी पुलिस के पास प्राथमिकताएँ हैं ऐसी कि वो कमेंट या पोस्ट के लिए जेल में डाले?

क्या हमारे पास इतना समय है कि ऐसे सड़कछाप पत्रकारों के ट्वीट पर उसके घर दो पुलिस वाले को भेज कल उठवा लिया जाए जबकि हर मिनट बलात्कार हो रहे हैं? क्या सरकारों की पुलिस या कोर्ट जैसी संस्थाओं के पास ऐसी बातों के लिए समय है जबकि करोड़ से अधिक गंभीर केस लंबित पड़े हैं?

समाधान फेसबुक या ट्विटर लाएगा जब उनकी एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) की तकनीक हिन्दी सहित तमाम भाषाओं में लिखे जा रहे शब्दों को स्वतः ब्लॉक करने लगेगी। अभी यह तकनीक शैशवावस्था में है और अंग्रेज़ी के शब्दों पर ही थोड़ा-बहुत काम कर पा रही है। यह तस्वीरों को देखकर अब हिंसक तस्वीरें, विडियो आदि को पोस्ट होने के पहले ही सेकेंड में डिलीट करने में सक्षम है। लेकिन भाषा को समझना, शब्दों को समझना और उनके संदर्भ में उनका अर्थ निकाल कर उन्हें ब्लॉक कर पाना, अभी टेक्नॉलॉजी की दुनिया में एक बहुत बड़ा चैलेंज है।

इसे आप तकनीक से ही सुलझा सकते हैं क्योंकि लोकतंत्र में गालियाँ देने वाले हर घर में हैं, और आपके जेल पहले से ही क्षमता से कई गुणा ज्यादा भरे हुए हैं। साथ ही, क्या सरकारों के पास इतना समय है कि वो किसी नेता को मिल रही गालियों पर अपना समय व्यर्थ करे? ये पत्रकार आदि जो काम कर रहे हैं, उनके पोस्ट्स का अगर बहुत व्यापक असर न हो रहा हो, तो इन्हें लिखने की छूट होनी चाहिए।

अगर इनके ट्वीट या पोस्ट से दंगे भड़कने का डर हो, लोगों को क्षति पहुँच सकती हो, लोगों में द्वेष फैलने की आशंका हो तो इस पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन, अगर वो प्रधानमंत्री मोदी को या मुख्यमंत्री योगी को गाली दे रहा हो, कुछ अश्लील कमेंट कर रहा हो तो उस पर पुलिस भेजना हर लिहाज से गलत है। आप चाह कर भी ऐसे मामलों में कुछ भी नहीं कर सकते। आप हर व्यक्ति तक नहीं पहुँच सकते। मुझे कोई यह बताए कि क्या उस पत्रकार ने जो शेयर किया वो ज़्यादा घटिया है या सोनिया, राहुल, ममता, केजरीवाल समेत दसियों नेता द्वारा मोदी को दरिंदा, हरामखोर, हत्यारा, चोर आदि कहना?

पुलिसों ने इन नेताओं को क्यों गिरफ़्तार नहीं किया? क्योंकि आप नहीं कर सकते। मोदी जी खुद ही कहते हैं कि रैलियों में ये सब चलता रहता है। जब रैलियों में यह सब चलता रहता है तो फिर आम जनता को विरोध हेतु गाली देने का अधिकार क्यों नहीं है? अगर कानून लगाना है तो पहले तो नेता लोगों पर लगाया जाए जिनकी बातें करोड़ों लोग सुनते हैं। ये टुटपुँजिए पत्रकार, जिन्हें दस लोग ठीक से पढ़ते नहीं, जिनकी उपलब्धियों में वाहियात पोस्ट लिखना, गाली-गलौज, अज्ञानता और मूर्खतापूर्ण बातें शामिल हैं, उसे पकड़ कर सरकार बेकार के हीरो ही पैदा कर रही है।

नेता हैं तो गालियाँ पड़ेंगी। ऐसा करना ग़ैरक़ानूनी जरूर है लोकिन 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में, कोर्ट और पुलिस दोनों ही ओवरटाइम कर रही है, वहाँ इन टुटपुँजिया केसों पर सरकार द्वारा ध्यान देना बताता है कि सरकारों की प्राथमिकताएँ हिली हुई हैं। बहुत सी बातें गलत हैं लेकिन उपेक्षा करनी होती है उनकी। हर सोशल मीडिया ट्रोल से सरकार भिड़ नहीं सकती, न ही ऐसा करना सही है।

इन बातों से कितना नुकसान हो रहा है, किसका नुकसान हो रहा है, क्या इसका प्रभाव व्यापक है, क्या इससे सही में समाज को क्षति पहुँच सकती है आदि प्रश्नों का जवाब सोचने के बाद ही ऐसी कार्रवाई करने की बात होनी चाहिए। मुझे लगता है कि देश में रवीश कुमार जैसों के पाँच साल के अजेंडाबाजी के बाद भी मोदी का बहुमत पा जाना बहुत कुछ कहता है। इस बहुमत का सीधा मतलब यह है कि जब रवीश कुमार जैसे लोगों के लगातार लिखने-बोलने से जनता पर कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा तो ये दो कौड़ी के इंटरनेट ट्रोल किसी सरकार या नेता की छवि क्या ख़ाक बिगाड़ेंगे।

इसलिए सरकारों को थोड़ा चिल करना चाहिए। ट्रोलों से ट्रोल निपट लेंगे। सोशल मीडिया पर हर विचारधारा के ट्रोल उचित मात्रा में उपलब्ध हैं और अपने विरोधियों को दिन-रात अपने इंटरनेट और बिजली के ख़र्चे पर धोते रहते हैं। इसमें सरकार को उलझना ही नहीं चाहिए क्योंकि कानूनन जिसने आपको गाली दी, वो गलत है तो आपको डिफ़ेंड करते हुए जिसने उस पत्रकार की माँ-बहन को गोली दी, वो भी तो गलत ही है। क्या सरकार इस एक ट्वीट के ही दायरे में आए हर ट्रोल को जेल भेज सकती है? उत्तर है: नहीं।

मतलब सरकार की पुलिस जब स्वतः संज्ञान ले या किसी की सूचना पर कार्रवाई करे, तो उसी पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि अगर उस चोर के भी अधिकारों का हनन हुआ है, उस पर भी व्यक्तिगत टिप्पणियाँ की गई हैं, तो उसे भी कानूनी सहायता मिलनी चाहिए। इसलिए, मेरा कहना यही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकार थोड़ा आराम से फ़ैसले ले, क्योंकि कविवर रहीम ने दोहे में (नहीं) कहा है:

जैसे को तैसा मिले, मिले नीच को नीच 
पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच
वामी को कामी मिले, जिनका नहीं है मोल
ज्ञानी को ज्ञानी मिले, मिले ट्रोल को ट्रोल

सोशल मीडिया पोस्ट पर 2 कोर्ट के 2 फैसले: पत्रकार करे तो ठीक, नेता पर सख्ती

आज माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत कनौजिया को तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, “हम उसके (कनौजिया की) ट्वीट की सराहना नहीं करते हैं लेकिन उसे (कनौजिया को) सलाखों के पीछे नहीं डाला जा सकता।”

बता दें कि पत्रकार प्रशांत कनौजिया को उनके एक ट्वीट के मामले में गिरफ्तार किया गया था जिसमें एक वीडियो है। वीडियो में एक महिला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में आपत्तिजनक बातें कह रही थी। इसी ट्वीट को पुलिस ने मुख्यमंत्री की छवि खराब करने वाला माना और प्रशांत कनौजिया को गिरफ्तार कर लिया।

हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोर्ट में प्रस्तुत हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने यह दलील दी कि कनौजिया को इसलिए गिरफ्तार किया गया ताकि यह एक उदाहरण बन सके और भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को ख़ारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 और 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं हो सकता।

जहाँ एक ओर उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को आपत्तिजनक ट्वीट करने के मामले में तुरंत जमानत दे दी वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे लेकिन मिलते-जुलते मामले में एक वर्ष पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने भाजपा नेता एस वी शेखर को अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया था

दरअसल शेखर ने अपने फेसबुक अकॉउंट पर एक पोस्ट शेयर की थी जिसमें महिला पत्रकारों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। हालाँकि शेखर ने अदालत में यह दलील दी थी कि वह पोस्ट उन्होंने बिना पढ़े ही शेयर की थी। लेकिन उनकी इस दलील को कोर्ट ने नहीं माना था और कहा कि पोस्ट को शेयर करना उसका समर्थन करने जैसा है।

यहाँ दो अदालतों के दो जजमेंट सामने हैं जिनमें एक ही जैसा मामला है लेकिन इसे न्याय व्यवस्था की विडंबना ही कहा जाएगा कि एक मामले में एक पत्रकार सब कुछ जानते हुए एक नेता और मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट ट्वीट करता है जिसपर उसे उच्चतम न्यायालय से जमानत मिल जाती है। लेकिन उच्च न्यायालय एक नेता को पत्रकारों के खिलाफ अनजाने में शेयर किए गए एक पोस्ट के लिए जमानत देने से मना कर देता है।

मजेदार बात यह भी है कि एक साल पहले आए मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले में न्यायालय ने कहा था कि सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड किया गया कोई मेसेज या पोस्ट उसका समर्थन करने जैसा है। लेकिन एक साल बाद माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में इस पक्ष को नजरअंदाज कर दिया।

नेताओं पर आपत्तिजनक ट्वीट करने की बात की जाए तो कुछ दिन पहले ऐसे ही मामले में प्रियंका शर्मा को बंगाल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था जब शर्मा ने ममता बनर्जी का मीम (meme) शेयर किया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता लेकिन यह किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों से नहीं टकराना चाहिए।

World Cup 2019: अंगूठे में चोट के कारण धवन 3 हफ़्तों के लिए बाहर, ऋषभ को मिलेगा मौका?

क्रिकेट विश्व कप 2019 में विजयी रथ पर सवार भारत को बड़ा झटका लगा है। शक्तिशाली ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ शतक जड़ने वाले शिखर धवन तीन हफ़्तों के लिए टीम से बाहर हो गए हैं। अर्थात, सलामी बल्लेबाज़ ‘गब्बर’ अब इस विश्व कप में नहीं खेल पाएँगे। फॉर्म में चल रहे धवन का बाहर जाना टीम के लिए बड़ा झटका है। अंगूठे में चोट के कारण धवन टीम से बाहर हुए हैं। उन्हें यह चोट रविवार (जून 9, 2019) को ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मैच में लगी थी। इसके बावजूद उन्होंने 117 रन बना कर एक विजयी पारी खेली।

वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल मैच 9 जुलाई और 11 जुलाई को होने वाला है, ऐसे में यह देखना होगा कि धवन उन मैचों में खेल पाते हैं या नहीं। रविवार को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ओपनर शिखर धवन को तेज गेंदबाज नाथन कुल्टर नाइल की उछाल लेती गेंद लगी थी। सोशल मीडिया पर लोगों ने ऋषभ पन्त को उनकी जगह टीम में बुलाने की माँग तेज़ कर दी है।

BJP सांसद वीरेंद्र कुमार होंगे लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर, 17 जून से शुरू होगा नया सत्र

17वीं लोकसभा के गठन के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। मंगलवार (जून 11, 2019) को सरकार ने भाजपा सांसद डॉ वीरेंद्र कुमार को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया है, जो नए सांसदों को शपथ दिलवाएँगे। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार सभी सांसदों को शपथ दिलाएँगे। मध्य प्रदेश के दलित नेता वीरेंद्र कुमार 7वीं बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने हैं और 1996 से लगातार जीत रहे हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वीरेंद्र कुमार को महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री बनाया गया था।

दरअसल, प्रोटेम स्पीकर उन्हें कहा जाता है, जो चुनाव के बाद पहले सत्र में स्थायी अध्यक्ष का चुनाव होने तक लोकसभा का संचालन करते हैं। सामान्यतः सदन के वरिष्ठतम सदस्य को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। प्रोटेम स्पीकर तब तक अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक सदन द्वारा स्थायी अध्यक्ष का चुनाव न हो जाए।

जानकारी के मुताबिक, 17वीं लोकसभा का पहला सत्र 17 जून से 26 जुलाई तक आयोजित किया जाएगा। सत्र के पहले दो दिनों तक नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई जाएगी। पहले दो दिनों में नए सांसदों के शपथ लेने के बाद 19 जून को अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। जिसके बाद 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे। संसद का यह सत्र 40 दिनों तक चलेगा और और इसमें 30 बैठकें होंगी।

तैयार करें $5 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनने का रोडमैप: सचिवों के साथ बैठक में PM ने दिया मन्त्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर सभी मंत्रालयों के सचिवों के साथ एक बड़ी बैठक की। अपने दूसरे कार्यकाल में सचिवों के साथ पहली बार बैठक कर रहे पीएम ने अगले पाँच वर्षों के लिए विचार-विमर्श किया और ज़रूरी निर्देश दिए। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को सामने रखा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि लोगों का जीवन कैसे बेहतर बनाना है, इस पर ध्यान केन्द्रित करें। इस बैठक में प्रधानमंत्री के साथ अमित शाह, राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण और जीतेन्द्र सिंह जैसे केंद्रीय मंत्रीगण भी उपस्थित रहे। इस बैठक में पीएम मोदी ने अधिकारियों के अच्छे कार्यों की तारीफ भी की।

बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार अबकी ग़रीबी उन्मूलन और पानी से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने वाली है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विस्तार की बात करते हुए इसके 5 लाख डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा। उन्होंने इसके लिए रोडमैप तैयार करने की ज़रूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि लोगों ने एक बार फिर से भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया है, यह दिखाता है कि लोग हमारी सरकार के कामकाज के तौर-तरीकों से ख़ुश हैं। इसका श्रेय उन्होंने उन अधिकारियों को दिया, जिन्होंने बीते पाँच वर्ष में सरकार के विभिन्न लक्ष्यों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई है।

अधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा:

“हमें लोगों की आकांक्षाओं को एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए, जिसके लिए हमें और कठोर मेहनत करनी है। उम्मीदों से पता चलता है कि लोग उत्सुक हैं और उनमें देश को बदलने की चाहत भी है। हमारा उद्देश्य भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है। इसके लिए हम में से हर व्यक्ति को अपने विभाग के लिए एक रोडमैप तैयार करना चाहिए और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए काम करना चाहिए। आप लोग समाज के हर तबके का परामर्श लें और नीतिगत मुद्दों पर ताज़ा विचार लें।”

सरकारी कामकाज में तकनीक की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए मोदी ने अधिकारियों से कहा कि इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी और कार्यक्षमता में भी इजाफा होगा। नरेन्द्र मोदी ख़ुद सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय हैं और डिजिटल इंडिया के सपने के साथ सभी सुविधाओं को इन्टरनेट के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रयास भी करते रहे हैं। भीम यूपीआई और वन विंडो रजिस्ट्रेशन इसके उदाहरण हैं। इस बैठक के दौरान अधिकारियों ने भी सरकारी कामकाज को लेकर अपने विचार सामने रखे और पीएम ने उन सभी को ध्यान से सुना।

‘मेक इन इंडिया’ की बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इस दिशा में अभी ठोस प्रगति की ज़रूरत है। उन्होंने छोटे कारोबारियों व उद्यमियों के लिए सहूलियत वाला माहौल तैयार करने पर जोर देते हुए इस दिशा में कार्य करने की बात कही। कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा ने कहा कि सभी मंत्रालयों में महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने चाहिए और इन निर्णयों को 100 दिन के भीतर मंज़ूरी भी मिलनी चाहिए। पीएम ने कहा कि उन्हें अपनी टीम पर गर्व है। उन्होंने आह्वान किया कि जनता की उम्मीदों को मौके के तौर पर लेना चाहिए।

राजस्थान कॉन्ग्रेस में उठापटक: CM गहलोत ने दिल्ली में डाला डेरा, पायलट ने खेत में बिताई रात

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही राजस्थान की राजनीति करवट बदल रही है। इन दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच अनबन की खबरें जगजाहिर हैं। अशोक गहलोत जहाँ अपने बेटे वैभव गहलोत की हार के लिए सचिन पायलट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं सचिन पायलट के समर्थक मंत्री, विधायक और पार्टी पदाधिकारी प्रदेश की सभी 25 सीटों पर हार के लिए गहलोत को जिम्मेदार ठहराते हुए इस्तीफे की माँग कर चुके हैं। इसके साथ ही पायलट के समर्थक अशोक गहलोत की जगह सचिन पायलट को सीएम बनाने के स्वर बुलंद कर रहे हैं।

मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए गहलोत को अपनी कुर्सी जाने का भय सता रहा है। इसलिए वो इस सियासी तूफान के थमने का इंतजार कर रहे हैं और दिल्ली में लगातार कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। गहलोत पिछले तीन दिनों से दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और पार्टी नेतृत्व को प्रदेश में हुई हार के कारण गिनाने में जुटे हैं। इसके साथ ही वो अहमद पटेल, मुकुल वासनिक व अविनाश पांडे से मुलाकात कर उनकी मदद से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं।

वहीं, सचिन पायलट इन दिनों राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में घूम रहे हैं। इसी सिलसिले में वो रविवार (जून 9, 2019) देर शाम जालोर जिले के कासेला गाँव में जनता के बीच पहुँचे। पायलट ने कासेला गाँव के ही एक किसान जय किशन के खेत में रात गुजारी। इस दौरान वो उप मुख्यमंत्री होने के बावजूद एक आम नागरिक की तरह नजर आए। सचिन पायलट ने किसानों के बीच न केवल वक्त गुजारा बल्कि उन्होंने खुले आसमान में खाट पर बैठकर खाना भी खाया। सचिन पायलट ने अपने इस दौरे पर स्थानीय जनता से बातचीत भी की। पायलट गहलोत के राजनीतिक कार्यक्षेत्र के विधायकों व कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करके पार्टी काडर के बीच अपनी जमीन और मजबूत करने में लगे हुए हैं।

सचिन पायलट ने ट्वीट में लिखा, “सांचोर के ग्राम कासेला में रात्रि विश्राम के दौरान ग्रामीणों से मुलाकात करके बहुत खुशी हुई। किसान जयकिशन जी एवं उनके परिवार और यहाँ की जनता से मेरा मन पूरी तरह से जुड़ा हुआ है, दो साल पहले भी मैं इसी गाँव में रूका था। आपके द्वारा किए गए आदर-सत्कार एवं स्नेह के लिए मैं आभारी हूँ।”

SC ने गिरफ्तार पत्रकार प्रशांत कनौजिया को फौरन रिहा करने का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने को लेकर यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रकाश कनौजिया को फौरन रिहा करने का आदेश दिया है। यही नहीं, मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर प्रशांत को किन धाराओं के तहत अरेस्ट किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रशांत कनौजिया ने जो शेयर किया और लिखा, इस पर यह कहा जा सकता है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन, उसे अरेस्ट किस आधार पर किया गया था?

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की भी याद दिलाई। कोर्ट ने कहा कि एक नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है, उसे बचाए रखना जरूरी है। गौरतलब है कि प्रशांत कनौजिया पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक टिप्पणी करने का आरोप है। पुलिस के मुताबिक, उन्होंने एक विडियो को शेयर करते हुए एक विवादित कैप्शन लिखा था।

प्रशांत की पत्नी जिगीशा अरोड़ा ने सोमवार (जून 10, 2019) को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए इस गिरफ्तारी को चुनौती दी थी। उनकी अर्जी में कहा गया है कि पत्रकार पर लगाई गई धाराएँ जमानती अपराध में आती हैं। ऐसे मामले में कस्टडी में नहीं भेजा जा सकता। याचिका पर तुरंत सुनवाई की जरूरत है, क्योंकि यह गिरफ्तारी अवैध और असंवैधानिक है। जिगिशा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (जून 11, 2019) को सुनवाई करते हुए प्रशांत की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया और तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के जज ने सोशल मीडिया पर टीका-टिप्पणी को लेकर एडिशनल सॉलिशिटर जनरल को कहा कि हम जज लोगों को भी यहाँ काफी कुछ सुनने को मिलता है, इसका मतलब यह नहीं कि हम किसी को भी उठा कर जेल में डाल दें।

इस्लामिक बैंकिंग और हलाल निवेश के नाम पर ₹2000 करोड़ ऐंठने के बाद मंसूर खान करना चाहता है ख़ुदकुशी

बेंगलुरु में एक निवेशक फर्म का मालिक निवेशकों का सैकड़ों करोड़ रुपया लेकर चंपत हो गया है। कंपनी के मालिक के खिलाफ पुलिस विभाग में महज 5 घंटों में 3300 शिकायत दर्ज हुई। शिकायतकर्ताओं में अधिकतर बेंगलुरु के मुस्लिम समुदाय के लोग हैं।

दरअसल, सन 2006 में खाड़ी से लौटे मोहम्मद मंसूर खान ने इस्लामिक बैंकिंग और हलाल निवेश के नाम पर एक फर्म बनाई जिसका नाम रखा ‘आई मॉनेटरी एडवाइजरी’ (I Monetary Advisory). इस्लामिक बैंकिंग के नाम पर मंसूर खान ने अपने समुदाय के लोगों से इस फर्म में निवेश करने को कहा। उसने उन मुस्लिमों को निशाना बनाया जो इस्लामिक कानून के डर से किसी वित्तीय फर्म में निवेश करने से कतराते हैं। निवेश आने पर मंसूर खान ने उस पैसे से ज्वेलरी, रियल एस्टेट, बुलियन ट्रेडिंग, फार्मेसी, प्रकाशन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में जमकर व्यवसाय किया और धन कमाया। आई मॉनेटरी एडवाइजरी में निवेशकों का 2000 करोड़ रुपया लग चुका है

मुस्लिम समाज से पैसे निवेश करवा कर और उन्हें 14% से 18% के लाभ का सपना दिखाकर अब मंसूर खान चंपत हो गया है। निवेशक जब बेंगलुरु के शिवाजीनगर स्थित IMA के दफ्तर में अपना पैसा माँगने पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं मिला। अब मंसूर खान कहाँ है यह किसी को नहीं पता।

मजेदार बात यह भी है कि व्हाट्सप्प पर मंसूर खान की आवाज वाली एक ऑडियो क्लिप घूम रही है जिसमें मंसूर खान यह कह रहा है कि वह नेताओं और बाबुओं को रिश्वत देते तक गया है इसलिए आत्महत्या करना चाहता है। ऑडियो क्लिप में मंसूर खान ने यह भी कहा कि बेंगलुरु के एक कॉन्ग्रेसी विधायक रोशन बेग ने उसके 400 करोड़ रुपए हड़प लिए हैं। हालाँकि रोशन बेग ने ऑडियो क्लिप के वास्तविक होने पर संदेह प्रकट किया है। पुलिस भी जाँच में जुटी है कि कहीं मंसूर खान ने सचमुच में आत्महत्या तो नहीं कर ली।

खबर के अनुसार पुलिस अधिकारी डीसीपी राहुल कुमार शाहापुरवाड़ ने बताया कि पुलिस मंसूर खान की खोज कर रही है और यह भी पता लगाने का प्रयास कर रही है कि ऑडियो क्लिप वास्तव में मंसूर खान की है या नहीं। मंसूर खान की आवाज के दावे वाली ऑडियो क्लिप मोहम्मद खालिद अहमद नामक मंसूर के एक पार्टनर की शिकायत के एक दिन बाद सामने आई थी। मोहम्मद खालिद अहमद ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि मंसूर ने उसे 1.3 करोड़ रुपए की चपत लगाई है।

वहीं दूसरी तरफ कॉन्ग्रेस विधायक रोशन बेग भी साइबर पुलिस में केस दर्ज करवाने वाले हैं। इससे पहले एक अन्य ऑडियो क्लिप में भी IMA फर्म के साथ उनका नामा जोड़ा जा चुका है।     

1 दिन में Encephalitis ने ली 25 बच्चों की जान, 1 हफ्ते में 56 मौत: CM ने कहा ‘जागरूकता की कमी’

बिहार के मुजफ्फरपुर व आसपास के क्षेत्र में ‘एक्यूट इन्सेफ़लाईटिस सी सिंड्रोम (AIS)’ नामक बीमारी बच्चों पर कहर बन कर टूट रहा है। पिछले एक सप्ताह में 56 बच्चों की मौत के बाद राज्य के स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया है। मुजफ्फरपुर व वैशाली के विभिन्न अस्पतालों में इस बीमारी से एक दिन के भीतर 25 बच्चों के मरने की ख़बर के बाद क्षेत्र में हाहाकार मच गया है। अस्पतालों में कई बच्चे अब भी इस बीमारी से पीड़ित हैं, जिन्हें इलाज के लिए भर्ती कराया गया है। सोमवार (जून 10, 2019) को आलम यह रहा कि हर कुछ मिनटों के अंतराल पर बच्चों की जान जाती रही।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इतनी मौतों की वजह जागरूकता की कमी है। मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि इस बीमारी से इस वर्ष पिछले साल के मुकाबले ज्यादा मौतें हुई हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि स्थानीय स्तर पर इस बीमारी की रोकथाम को लेकर बनी गाइडलाइन्स के अनुपालन में कमी है। मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया है कि लोगों को पहले से अलर्ट रखा जाए। कुल मिला कर देखा जाए तो सूबे के 25 जिले अब तक इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पताल एसकेएमसीएच की स्थिति यह है कि पीआईसीयू भर जाने के कारण एक ही बेड पर दो-तीन बच्चों का इलाज़ होता रहा।

लगातार पीड़ित बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हॉस्पिटल प्रशासन तीसरी यूनिट खोलने की तैयारी कर रहा है। गंभीर मरीजों को भी लाइन में लगाकर पीआईसीयू में भर्ती होना पड़ रहा है। एसकेएमसीएच में सोमवार को 44 में से 20 बच्चाें की माैत हाे गई। डॉक्टरों ने बताया कि चमकी बुखार (Encephalitis के लिए स्थानीय बोलचाल का शब्द) से पीड़ित बच्चों की उम्र 5-15 साल के बीच है। इस बीमारी के लक्षण तेज़ बुखार और शरीर में ऐंठन के रूप में दिखते हैं। 2012 में इस बीमारी से 120 बच्चों की मौत हो गई थी। पिछले वर्ष यह आँकड़ा 7 था, जो इस साल बढ़ कर 56 पहुँच चुका है।

प्रमंडलीय आयुक्त नर्मदेश्वर लाल ने अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान तैयारियों को आधा-अधूरा बताया। उन्होंने साफ़-साफ़ कहा कि इस बीमारी को लेकर प्रचार-प्रसार में कोताही बरती गई है। नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश शर्मा ने अस्पतालों में जाकर पीड़ितों का हालचाल जाना। स्थिति यह थी कि मुजफ्फरपुर और वैशाली के अस्पताल एक सप्ताह से परिजनों के चीत्कार से गूँज रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार, चमकी बुखार से ग्रस्त बच्चों के शरीर में चीनी की कमी पाई गई। अस्पतालों में मरीजों के मुकाबले चिकित्सकों की भी भारी कमी है।

इस बीमारी से बचाव की बात करते हुए वरिष्ठ चिकित्सक ने सलाह देते हुए कहा:

“बच्चों को धूप में नही जाने दें। दिन में दो से तीन बार बच्चों को स्नान जरूर कराएँ। रात को भूखे पेट नहीं सोने दें। पानी व नींबू की शर्बत पर्याप्त मात्र में पीने के लिए दें। तेज बुखार होने पर पानी से स्नान कराते हुए सर पर पानी की पट्टी दें। इसके साथ जल्द से जल्द निकट के अस्पताल में बच्चों को लेकर पहुँचना चाहिए। किसी ओझा-गुणी के चक्कर में समय नही गँवाना चाहिए। जितना जल्द अस्पताल पहुँचेंगे, बच्चा उतना ही जल्द स्वस्थ होगा।”