Sunday, November 17, 2024
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केजरीवाल रावण से ज्यादा घमंडी: अलका लाम्बा का आरोप, AAP में घमासान

चाँदनी चौक से विधायक अलका लाम्बा ने आम आदमी पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री के खिलाफ फिर से मोर्चा खोल दिया है। केजरीवाल को रावण से ज्यादा घमंडी बताते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि पार्टी का भविष्य खतरे में है; इतना घमंड तो रावण को भी नहीं था लेकिन उसका घमंड उसे ले डूबा। उन्होंने आरोप लगाया कि केजरीवाल पार्टी को बाँट रहे हैं, और कार्यकर्ताओं को पार्टी या विधायक (लाम्बा) में से किसी एक को चुन लेने के लिए कह रहे हैं

ट्विटर पर घमासान, अप्रैल से लाम्बा के बागी तेवर

ट्विटर पर अलका लाम्बा ने केजरीवाल पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया:

इस आरोप का फ़िलहाल केजरीवाल या आम आदमी पार्टी की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। लेकिन अलका लाम्बा का यह पार्टी या केजरीवाल के साथ पहला टकराव नहीं है। इससे पहले अप्रैल में भी ग्रेटर कैलाश के विधायक सौरभ भरद्वाज से उनकी तीखी नोंक-झोंक हुई थी। उस समय उन्होंने जामा मस्जिद पर जनता के सामने खुली बहस की चुनौती भरद्वाज को दी थी। उसके पहले भरद्वाज ने उनपर पार्टी छोड़ने का तंज़ किया था।

लाम्बा का आरोप था कि उनके पार्टी छोड़ कॉन्ग्रेस में लौटने की अफवाह फैला कर उन्हें राजनीतिक रूप से कमज़ोर किया जा रहा है। इसके लिए उन्होंने पार्टी नेतृत्व को ही दोषी करार दिया था। बता दें कि केजरीवाल के साथ आने से पहले अलका लाम्बा महिला कॉन्ग्रेस में थीं

लापता विमान AN-32 की जानकारी देने पर ₹5 लाख का इनाम, IAF ने दिए फोन नंबर

भारतीय वायु सेना के लापता विमान AN-32 का सुराग अभी तक नहीं मिल पाया है। विमान की खोज में जुटी विभिन्न एजेंसियों के काफी प्रयासों के बावजूद अब तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी है। शुक्रवार (जून 7, 2019) की सुबह भारतीय नौसेना के पी8आई विमान ने तमिलनाडु के अरक्कोणम से सर्च ऑपरेशन शुरू किया, लेकिन उसे भी असफलता ही हाथ लगी। जिसके बाद भारतीय वायु सेना ने विमान के संबंध में पुख्ता जानकारी देने वाले को ₹5 लाख के पुरस्कार की घोषणा की है। एयर मार्शल आरडी माथुर, AOC इस्टर्न एयर कमांड ने विमान का सुराग देने वाले किसी भी व्‍यक्ति या दल को ₹5 लाख का नकद पुरस्कार देने की बात कही। इस संबंध में फोन नंबर भी जारी किया गया है।

विमान की जानकारी देने वाले भारतीय वायुसेना से 0378-3222164, 9436499477/ 9402077267/ 9402132477 नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। वायु सेना के प्रवक्ता विंग कमांडर रत्नाकर सिंह ने बताया कि इसरो के उपग्रहों सहित विभिन्न एजेंसियों के उन्नत तकनीक और सेंसर के साथ विमान का पता लगाने की कोशिश कर रही है। गौरतलब है कि, विमान सोमवार (जून 3, 2019) को चालक दल के 8 सदस्य और 5 यात्रियों समेत 13 लोगों के साथ लापता हुआ था। विमान के लापता हुए 6 दिन बीत चुके हैं।

इस बीच वायु सेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने जारी खोज अभियान की समीक्षा के लिए वायु सेना स्टेशन जोरहाट का दौरा किया। उन्हें संचालन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई और अब तक प्राप्त इनपुट से अवगत कराया गया। उन्होंने विमान में सवार अधिकारियों और हवाई यात्रियों के परिवारों के साथ बातचीत भी की।

बंगाल में 3 BJP कार्यकर्ता की हत्या, चुनाव बाद भी राजनीतिक हिंसा जारी

पश्‍च‍िम बंगाल में लोकसभा चुनाव के दौरान से शुरू हुई राजनीतिक हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। चुनाव परिणाम आने के बाद भी पश्चिम बंगाल में लगातार सियासी हिंसा जारी है। शनिवार (जून 8, 2019) की देर शाम पश्चिम बंगाल के 24 परगना में टीएमसी और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई। जिसमें चार लोगों की मौत की खबर है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि उसके तीन कार्यकर्ताओं को टीएमसी के लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी है, वहीं टीएमसी का आरोप है कि उनके एक कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई है।

भाजपा नेता मुकुल रॉय ने इस घटना के बाद ट्वीट कर बताया कि उनके 3 कार्यकार्ताओं को टीएमसी के गुंडों ने संदेशखली में गोली मार दी है। उन्होंने लिखा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ हो रही हिंसा के लिए सीएम ममता बनर्जी सीधे तौर पर जिम्मेदार है। उन्होंने लिखा कि इस पूरे मामले की शिकायत वो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से करेंगे। खबर के अनुसार, मुकुल रॉय ने अमित शाह से मुलाकात की और उन्हें बंगाल की घटना से अवगत कराया। घटना की गंभीरता को देखते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल बीजेपी नेताओं से फोन पर बात की और गृह सचिव राजीव गाबा को राज्य सरकार से संवाद करने के निर्देश दिए।

जानकारी के मुताबिक, उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र के संदेशखली इलाके में भाजपा का झंडा खोलने को लेकर तृणमूल व भाजपा समर्थकों के बीच विवाद शुरू हुआ। देखते ही देखते विवाद गहराता चला गया। इस बीच वहाँ दोनों गुटों के लोगों के बीच हाथापाई शुरू हो गई, जिससे पूरा इलाका रणक्षेत्र में तब्दील हो गया। इस दौरान जमकर गोलीबारी हुई। जिसमें सुकांत मंडल, प्रदीप मंडल और तपन मंडल की गोली लगने से मौत हो गई, वहीं कई पार्टी कार्यकर्ताओं के घायल होने की खबर है।

पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रमुख विजयवर्गीय ने भी इस झड़प और पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या पर दुख जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “अभी अभी मिली दुःखद ख़बर के अनुसार पश्चिम बंगाल के बशीरहाट लोकसभा के क्षेत्र संदेशखली में भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं की तृणमूल के गुंडों ने हत्या कर दी।” इसके साथ ही आसनसोल से सांसद और मंत्री बाबुल सुप्रीयो ने ट्वीट कर कहा कि अब बंगाल की जनता सब कुछ समझ चुकी है और जल्द ही टीएमसी का अंत होने वाला है।

राहुल के वायनाड जाते ही ‘टोंटी-चोर’ के भुट्टे पर मर-मिटा मीडिया

लोकसभा चुनावों के बाद ‘लगभग’ बेरोजगार चल रहे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की आज एक अँधेरे को चीरती हुई सनसनी जैसी खबर सामने आई है और ये खबर लाने का काम किया है ‘आज तक’ नाम के न्यूज़ चैनल ने। इसके बाद अन्य कई समाचार चैनल्स ने इस खबर को हवा देने का काम किया।

आज तक ने ट्विटर पर अखिलेश यादव का एक ‘एक्सक्लूसिव’ वीडियो शेयर करते हुए बड़े ही मार्मिक शब्दों में लिखा है – “U.P के पूर्व मुख्यमंत्री @yadavakhilesh का काफिला आज सड़क किनारे ठेले पर भुट्टा देखकर अचानक रुक गया। अखिलेश ने ठेले पर भुट्टा बेच रहे व्यक्ति से भुट्टे का रेट पूछा और एक भुट्टा भी लिया। उनकी ये सादगी देखकर बाराबंकी की जनता उनकी कायल हो गई।”

गठबंधन के भविष्य पर मंडरा रहे संकट के बादलों से पर्दा हटाते हुए अब बुआ-बबुआ संबंधों से भी मीडिया की उम्मीदें ध्वस्त हो चुकी हैं। ऐसे में आज तक वाले अगर ‘टोंटी-चोर’ के भुट्टों की रिपोर्टिंग करते नजर आ जाएँ, तो समझ जाइए कि मीडिया के लिए राहुल गाँधी अब प्रासंगिक नहीं रहे।

आज तक ने अखिलेश यादव की भुट्टे का भाव पता करने की इस मार्मिक घटना को सनसनी बनाकर साबित कर दिया है कि मीडिया को अपने केजरीवाल तलाशने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। वर्तमान राजनीति केजरीवालों से भरी पड़ी है। चुनाव से पहले कुछ निष्पक्ष पत्रकार जब राहुल-प्रियंका नामक भाई-बहनों की क्यूट तस्वीरों द्वारा माहौल बनाकर थक गए, तब उन्होंने गठबंधन के मंच पर चढ़कर बुआ-बबुआ के ऐतिहासिक क्षण को अपनी आँखों से देखकर कवर करने का फैसला लिया था और उनका फोटोग्राफर बनना तक पसंद किया।

लेकिन तैमूर की दिनचर्या और राजनीति के खानदान विशेष के मोह से निकलकर अखिलेश यादव के भुट्टों की ओर पलायन कर लेना एक सकारात्मक बदलाव है। आज तक को इस तरह के बदलाव के लिए पुरस्कार भी मिलना चाहिए। अगर अब भुट्टों की ओर नहीं बढ़ेंगे तो मीडिया के लाडले अरविन्द केजरीवाल आखिर कब तक सड़कों पर यहाँ-वहाँ रैपट खाकर खबरों में बने रहेंगे? चुनाव में भी अभी काफी समय बाकी है।

अखिलेश यादव इसी तरह सड़कों पर भुट्टे और खीरा का भाव पूछकर मीडिया का नया युवराज बन सकें तो यह मोदी सरकार के दौरान जनता को एक और सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकता है। हालाँकि, आज तक भी ये बात खूब जानता है कि अगर उनके प्यारे युवराज को अमेठी की जनता वायनाड न भगाती तो आज वो भुट्टों के भाव पूछने के लिए कहीं और खड़े होते। खैर, आजादी के बहुत साल बाद ही सही, लेकिन मीडिया को इस तरह से एक विशेष परिवार से बाहर निकलते हुए देखना अच्छा अनुभव है।

वैसे हकीकत तो ये भी है कि जनता भुट्टों की नहीं बल्कि ‘चाय’ की दीवानी है। फिर भी अगर मीडिया अभी भी भुट्टों के पीछे भाग रही है तो हो सकता है अभी भी एक आखिरी उम्मीद बाकी हो।

हिन्दू-बहुल इलाके में भी डरा हुआ, पुलिस से निराश ‘काफिर’ लाठियाँ रखने को मजबूर

मथुरा हिन्दू-बहुल है- पत्रकारिता के समुदाय विशेष, ‘शैम्पेन लिबरल्स’ और वामपंथियों के हिसाब से यहाँ मजहब विशेष वालों को डर कर रह रहा होना चाहिए। मथुरा जिस उत्तर-प्रदेश में है, वहाँ भाजपा का शासन है- भाजपा और मीडिया दोनों बताते हैं कि हिन्दू भाजपा-शासन में भयमुक्त हैं (दोनों का मतलब अलग-अलग होता है “भयमुक्त” या “बेख़ौफ़” का, लेकिन दावा एक ही होता है)। लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि हिन्दू-बहुल, भाजपा-शासित मथुरा के चौक बाजार में पंकज और भरत यादव की इस्लामी भीड़ का एक झुंड भरपूर पिटाई करता है, “बेख़ौफ़” होकर करता है, लोकसभा निर्वाचन जब चल रहे होते हैं, हर तरफ कड़ा पहरा होता है, तब कर देता है? कैसे उस झुण्ड में मौजूद औरत कह देती है कर दे एफआईआर, नहीं डरते, छूट जाएँगे?

स्वराज्य पत्रिका की संवाददाता स्वाति गोयल शर्मा जब ग्राउंड रिपोर्टिंग करने उतरतीं हैं 18 मई को हुई दो भाईयों की उनकी ही लस्सी दुकान पर हुई ‘मॉब-लिंचिंग’ की, तो रूह फना कर देने वाली चीज़ें उनके कैमरे में कैद होतीं हैं। भरत की तो एक हफ्ते बाद सिर पर लगी गंभीर चोटों से मृत्यु हो गई, लेकिन पंकज बच गए। स्वाति के कैमरे पर वह बताते हैं कि कैसे उस झुण्ड में शामिल औरत उन्हें काफ़िर कह रही थी, कैसे गल्ले से ₹10,000 उठा लिए गए, माँ-बहन की गालियाँ दी गईं, हाथ-पैर जोड़कर माफ़ी माँगने और वहाँ से चले जाने की गुज़ारिश की भाईयों ने।

एक चश्मदीद गवाह कैमरे के सामने तो नहीं आते, लेकिन माइक पर वह भी वही ब्यौरा देते हैं, कि कैसे समुदाय विशेष वालों ने खुद ही “मोदी-योगी से हम नहीं डरते” कह कर मारपीट की।

मुस्लिम महिला को पूरा विश्वास था, आसानी से मिल जाएगी जमानत।

भाजपा- राज में भी क्या सुरक्षित हैं हिन्दू?

अपने राज में सबको सुरक्षा देने का दावा करने वाली भाजपा को भी यह सोचना होगा कि क्या उसकी “सबका” की परिभाषा से हिन्दू गायब हो रहे हैं? यह कैसी विडंबना है कि एक ओर मीडिया मोदी-राज, योगी-राज, भाजपा-राज को हिन्दुओं की गुंडागर्दी का पर्याय बता रहा है, दूसरी ओर हिन्दू बता रहे हैं कि उन्हें थाने से भगाने को उत्सुक पुलिस “मोहम्मडन लेडीज़” की आवभगत में लग गई? मथुरा के हिन्दुओं को भाजपा-राज में पुलिस पर इतना भी भरोसा नहीं कि अब वह अपनी सुरक्षा के लिए लाठी-डंडे दुकानों में रख रहे हैं।

हिन्दुओं के अच्छे दिन कब आने वाले हैं?

अक्षय पात्र विवाद पर The Hindu में दोफाड़, दो बड़े नाम पब्लिक में फेंक रहे कीचड़

अक्षय पात्र फाउंडेशन के विवाद में The Hindu के अंदर से ही दो तरह की आवाज़ें आनी शुरू हो गईं हैं। एक तरफ सह-चेयरपर्सन और सम्पादकीय निदेशक मालिनी पार्थसारथी हैं, जिन्होंने अक्षय पात्र पर हुई ‘हिट जॉब’ कवरेज को गलती बताते हुए इसके लिए स्तम्भ लेखिका अर्चना नातन और दैनिक सम्पादन देखने वाले सुरेश नंबात को दोषी ठहरा दिया। वहीं दूसरी ओर चेयरमैन और पूर्व मुख्य सम्पादक एन राम ने इन दोनों के बचाव में आ कर विरोध करने वालों को साम्प्रदायिक और कट्टर करार दे दिया।

नूराकुश्ती/दोफाड़ राउंड- 1

इस नूराकुश्ती या दोफाड़ का पहला चरण तब प्रारंभ हुआ जब PGurus पोर्टल के संपादक श्री अय्यर ने ‘संघी’ अक्षय पात्र फाउंडेशन के सह-संस्थापक टीवी मोहनदास पई से The Hindu के हिट-जॉब के बारे में यूट्यूब पॉडकास्ट कर उसे ट्विटर पर डाला। उसके जवाब में उसे रीट्वीट करते हुए मालिनी पार्थसारथी ने उक्त ट्वीट में उस लेख के छपे को तो गलती माना, लेकिन उसकी जिम्मेदारी से खुद को किनारे कर लिया।

दूसरी ओर फोटोशॉप से राफेल में घोटाला साबित करने को लेकर (कु)चर्चित एन राम ने एक के बाद एक (देखें ऊपर) तीन अलग-अलग ट्वीट से लेखिका अर्चना नातन और सम्पादक सुरेश नंबात सहित लेख का बचाव और उसे गलत ठहराने, या उस पर सवाल खड़ा करने वालों को कोसना शुरू कर दिया। इस प्रहसन पर कटाक्ष करते हुए पत्रकार शेफाली वैद्य ने ट्विटर पर इसे कोरा नाटक करार दिया:

नूराकुश्ती/दोफाड़ राउंड- 2

दूसरे राउंड में एन राम के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए मालिनी पार्थसारथी ने अपनी बात दोहराई। साथ ही अपने ओहदे का हवाला देते हुए यह भी साफ़ कर दिया कि अक्षय पात्र विवाद पर उनकी राय और विचार महज़ उनके निजी तौर पर नहीं है, बल्कि हिन्दू ग्रुप के सम्पादकीय निदेशक के हैं। उसके बाद एन राम ने The Hindu की सम्पादकीय मूल्यों की संहिता (Code of Editorial Values) से कॉपी-पेस्ट कर ताबड़तोड़ ट्वीट करने शुरू कर दिए।

सबसे पहले ही ट्वीट में “आंतरिक हस्तक्षेप” का ज़िक्र यूँ ही नहीं है। यह मालिनी पार्थसारथी की ही ओर इशारा है, जिनके “बतौर संपादकीय निदेशक” ट्वीट का अर्थ यह लगाया जा रहा था कि शायद वे इस बतौर संपादकीय निदेशक अक्षय पात्र की स्तम्भकार और लेख को पास करने वाले संपादक पर कार्रवाई करें, या आगे से ऐसे किसी लेख को बतौर सम्पादकीय निदेशक रोक दें।

अगर दोफाड़ है तो पहली नहीं है

दोनों पक्षों (एन राम और मालिनी पार्थसारथी) की भाषा से साफ है कि यह महज़ एक संस्था के भीतर दो विभिन्न मतों का मसला नहीं है। या तो The Hindu का प्रबंधन इस मुद्दे पर सच में दोफाड़ है, या यह केवल एक नूरा कुश्ती चल रही है। शेफाली वैद्य ने जहाँ इसे नूरा कुश्ती मानते हुए तंज किया है, वहीं इसे The Hindu में अंदरूनी संघर्ष और अक्षय पात्र वाली ‘भूल’ को एक-दूसरे के गुट के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किए जाने से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

इससे पहले भी तत्कालीन संपादक सिद्धार्थ वरदराजन (द वायर वाले) को The Hindu के शेयरधारक परिवारों की खींचतान में इस्तीफ़ा देना पड़ा था। वह The Hindu Group के शेयरधारक परिवारों के बाहर के पहले संपादक थे। लेकिन 2.5 वर्ष के भीतर ही उन्हें भी बाहर का रास्ता तलाशना पड़ा। मजे की बात यह है कि उन्हें लाने और बाहर करने वाले, दोनों ही एन राम थे

कुल मिलाकर…

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चाहे यह नूरा कुश्ती हो या सच में इस मुद्दे ने The Hindu में एक और शक्ति-संघर्ष और सत्ता-परिवर्तन का मौका पैदा कर दिया हो, पत्रकारिता के समुदाय विशेष को शायद यह अब समझ में आने लगा है कि हिन्दू अपने ऊपर और हिट-जॉब बर्दाश्त नहीं करेंगे। बेहतर होगा कि वह इस सबक को हमेशा के लिए याद रखें। बाकी रही The Hindu की बात, तो ट्विटर यूज़र नयनिका का निम्न ट्वीट एक वाक्य में उनकी कवायद का साराँश है…

अलीगढ़ काण्ड: शाहिस्ता के दुपट्टे में बाँध फ्रीज़ में रखा, कूड़े के ढेर में फेंक दिया… SIT जाँच में खुलासा

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची की बेरहमी से हत्या के मामले में SIT जाँच में कई बड़े ख़ुलासे हुए हैं। इस मामले में आरोपित मोहम्मद ज़ाहिद और मोहम्मद असलम ने यह बात क़बूल कर ली कि उन्होंने मासूम बच्ची की हत्या उसके परिवार से बदला लेने के लिए की थी। ख़बर के अनुसार, इस बात का ख़ुलासा हुआ है कि इस हत्याकांड में ज़ाहिद के छोटे भाई मेहंदी और ज़ाहिद की पत्नी शाहिस्ता (सबुस्ता) ने भी हत्या को अंजाम देने के लिए ज़ाहिद और असलम की मदद की थी। दोनों को भी गिरफ़्तार कर लिया गया है।

आरोपितों से हुई पूछताछ के बारे में पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश असलम के घर में भूसे में रखी गई थी। लेकिन, पुलिस को अंदेशा है कि लाश को नमी वाली जगह पर या फ्रिज़ में रखा गया था। ढाई साल की बच्ची की हत्या गला घोंटकर की गई थी और फिर बच्ची के शव को जिस दुपट्टे से लपेटा गया था वो ज़ाहिद की पत्नी शाहिस्ता का था।

SIT की जाँच में इस बात का भी ख़ुलासा हुआ कि बच्ची के साथ दरिंदगी करने वाला मोहम्मद ज़ाहिद पक्का जुआरी है इसलिए उसके दोस्त उसे सट्टा किंग बुलाते हैं। असलम के बारे में पता चला है कि इससे पहले भी वो कई वारदातों को अंजाम दे चुका है। उसने अपने ही रिश्तेदार की बच्ची का बलात्कार किया था जिसके लिए उसे साल 2014 में गिरफ़्तार भी किया गया था। दूसरा मामला, दिल्ली के गोकुलपुरी का है जब उस पर 2017 में छेड़छाड़ और अपहरण का मामला दर्ज हुआ था।

मीडिया में आई अन्य ख़बर के अनुसार, पुलिस को घटना स्थल का मुआयना करने के बाद ऐसा लगा जैसे कि बच्ची के शव को फेंकने के बाद फ्रिज़ को साफ़ किया गया हो। पुलिस सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ज़ाहिद की पत्नी और मेहंदी से पूछताछ में जुटी हुई है। इससे पहले, अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने बताया था, “हम इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में ले जाने की कोशिश करेंगे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किसी भी एसिड पदार्थ या बलात्कार का उल्लेख नहीं है। परिवार चाहता है कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले।”

अलीगढ़ और रवीश: शाह ने नोचा इंटरनेट का तार, मोदी ने तोड़ा टावर, नहीं हो रहा दुखों का अंत

जैसा कि हम सब जानते हैं कि रवीश कुमार के ग्रह, नक्षत्र, गोचर और दशा के साथ-साथ कुंडली के हर घर के स्वामी गलत जगहों पर बैठे हुए हैं, अतः समस्या यह हो रही है कि वो फेसबुक पोस्ट करते हैं, और वो गायब हो जाता है। उन्होंने राजीव गाँधी द्वारा कंधे पर ढो कर लाए गए ओरिजनल कंप्यूटर से भी पोस्ट करने की कोशिश की, वो भी नहीं हुई। फिर उन्होंने नेहरू जी द्वारा स्थापित एक अनुसंधान संस्थान की टेक्नॉलॉजी से निर्मित फोन से पोस्ट करने की कोशिश की, तो वो भी उड़ गई।

आपको यह भी बताता चलूँ कि इससे पहले भी ब्रह्मांड रत्न रवीश जी को प्राइम टाइम के सिग्नल भी मोदी सरकार के पहले दौर में गायब होते रहे हैं। सीबीआई से जाँच कराने पर पता चला कि जिन दो-चार दर्शकों ने उन्हें यह शिकायत की थी, उन्होंने उनका अपना सेट टॉप बॉक्स रीचार्ज ही नहीं कराया था। लेकिन सीबीआई तो केन्द्र सरकार का तोता है तो असली वजह, सूत्रों के हवाले से, यह आई है कि वहाँ मोदी जी ने अपने होलोग्राम को डिश की छतरी पर बिठा दिया था जो कि एनडीटीवी के सिग्नल को छतरी में घुसने से पहले ही कैच कर लेते थे और बग़ल में बैठे अमित शाह की जेब में डाल देते थे।

आगे सूत्रों ने बताया कि अमित शाह उन सिग्नलों को अम्बानी को बेच कर पैसा बना लेते थे जिसका उपयोग भाजपा ने चुनाव की फ़ंडिंग के लिए किया। इसी गुस्से में एक बार रवीश जी ने स्क्रीन काली करने की योजना बनाई, जिसका पता मोदी-शाह द्वय को चल गया। ऐन दिन, जब रवीश ऐसा करने वाले थे, तो उन्हें यह अक़्ल आ गई कि स्क्रीन काली करने से कोई आपातकाल के समय का इंडियन एक्सप्रेस नहीं बन जाता। साथ ही, एनडीटीवी के स्टूडियो में चाय के कप में बिस्कुट के टूट जाने को आपातकाल नहीं माना जाता।

खैर, हुआ यूँ कि रवीश जी ने सोच लिया कि वो काली स्क्रीन नहीं करेंगे लेकिन अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के होलोग्रामों ने मिल कर उनके इस आत्मावलोकन के मौक़े को बेकार कर दिया जब उन्होंने विदेशी तकनीक से रवीश की आवाज काट-छाँट कर ‘यह अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है’ वाला लेख खुद चला दिया। चूँकि डिश पर बैठ कर वो रंगीन सिग्नल चुरा रहे थे, क्योंकि अम्बानी उसके ज़्यादा पैसे देते हैं, तो सिर्फ काला सिग्नल ही एंटेना में घुस पाया और फिर जो हुआ वो पूरे देश ने देखा।

हाल की ख़बर यह कि रवीश जी की आवाज को दबाने की भरपूर कोशिश जारी है। वो अलीगढ़ वाले मामले पर कुछ लिखना चाह रहे हैं लेकिन चाहे वो लैपटॉप से लिखें, या मोबाइल से, पोस्ट गायब हो जाता है। साथ ही, उन्होंने पाठकों से यह भी पूछा कि उन्होंने जो अनुपम खेर वाला लिखा था, वो लोगों को दिख रहा है कि नहीं। अच्छी बात यह है कि रवीश कुमार ने अभी तक सीधे या परोक्ष तौर पर मोदी सरकार को इसका ज़िम्मेदार नहीं बताया है जो कि उनके कई प्रशंसकों को ठीक नहीं लग रहा। खैर रवीश जी के प्रशंसकों को तो आज कल बहुत कुछ ठीक नहीं लग रहा होगा लेकिन ‘सेड रीएक्ट्स ओनली’ तो दे ही रहे हैं पोस्ट पर।

कुछ दिनों पहले रवीश जी ने इसी तरह लोगों को बताया था कि टीवी का टीआरपी जो भी रहे, उन्हें यूट्यूब पर खूब लोग देख रहे हैं। यूट्यूब पर तो दीपक कल्लाल भी अपनी पसलियों को सहलाते हुए विराट कोहली से शादी करना चाहता है, जिसके व्यूज़ रवीश जी से तो ज़्यादा ही हैं, तो क्या यह माना जाए कि कल्लाल भाई बेहतर पत्रकारिता कर रहे हैं?

बात जो भी हो, निजी तौर पर मैं पत्रकारों की गायब होती पोस्ट को लेकर चिंतित हूँ। इसके तीन कारण हैं, जिसमें से एक ही बता पाऊँगा। ‘तीन कारण हैं’ कहने से ऐसा प्रतीत होता है कि आदमी जानकार है, और रवीश जी की तरह गंभीर चेहरा बना कर, कुटिल चवन्नियाँ मुस्कान देते हुए ऐसा कहा जाए तब तो मुझे वामपंथी भी आदर से देखेंगे। गायब होती पोस्ट की चिंता का कारण यह है कि अगर रवीश जी प्रोपेगेंडा न फैलाएँ, वो यह न लिखें कि अलीगढ़ की बच्ची के साथ जो हुआ वो जघन्य है लेकिनसमुदाय विशेष के पक्ष में लोग तिरंगा यात्रा तो नहीं निकाल रहे, तो हमें कैसे पता चलेगा कि पत्रकारिता का यह स्तम्भ क्षरण का शिकार हो कर, आतंरिक कुंठा से भीतर ही भीतर घुलता जा रहा है!

रवीश कुमार बड़ी ही ख़ूबसूरती से ‘इज़ इक्वल टू’ करते नजर आए। बात है अलीगढ़ की, रवीश जी की गाड़ी कठुआ क्यों जा रही है? क्या कठुआ की बच्ची के केस में रवीश जी और उनके गिरोह ने पुलिस की रिपोर्ट, कोर्ट के फ़ैसले या फ़ोरेंसिक और मेडिकल जाँच के आने का इंतजार किया था या ख़बर आने के पहले ही घंटे में भारत को रेपिस्तान और हिन्दुओं को बलात्कारी धर्म बता दिया था? आधे घंटे नहीं लगे थे तब इन लोगों को।

आज रवीश कुमार ज्ञान दे रहे हैं कि अफ़वाह न फैलाएँ। ऐसा है रवीश जी कि अगर यहाँ पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट पर डॉक्टरों की राय पढ़ दूँ तो आपकी रूह काँप जाएगी क्योंकि आप भी एक पिता हैं। बात बलात्कार हुआ या नहीं, यह तो है ही नहीं क्योंकि जिस हालत में लाश मिली है, उससे न तो रेप कन्फर्म किया जा सकता है, न नकारा जा सकता है। इसलिए, इसमें कठुआ घुसाने का मतलब है कि आप चर्चा को कहीं और ले जाना चाह रहे हैं।

चर्चा कहीं और जाएगी नहीं क्योंकि टाइप करना और आवाज उठाना अब वामपंथियों या कॉन्ग्रेस-पोषित पत्रकारों की बपौती नहीं रही। इस केस में आप जो लिखना चाह रहे हैं वो वैसे भी हवाबाज़ी ही है तो गायब हो रही है तो आपको समझना चाहिए कि फर्जी बातें हवा में ऐसे ही 0-1 बन कर गायब हो जाती है। जब उस समय इस केस में हिन्दू, भाजपा, वकील, नेता सब घसीट लिए गए थे, और सत्य आप आज भी नहीं बता पा रहे क्योंकि वो आपके नैरेटिव को सूट नहीं करता, तो आपकी मजबूरी है कि योगी सरकार पर प्रश्नवाचक चिह्न के साथ ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ जैसी ग़ज़ब की बात भी लिख देते हैं।

आपने जो ज्ञान देते हुए पूछा है कि क्या उन दरिंदों के साथ आप में से कोई खड़ा था, कठुआ की तरह किसी ने रैली निकाली, उससे आप स्वयं ही नग्न हो रहे हैं। आपने लिखा है कि यह कम जघन्य नहीं है लेकिन यह साम्प्रदायिक कैसे हो गया? सही बात है, मैं भी यही कहता हूँ। लेकिन फिर याद आता है कि आपने जिस तरह से कठुआ में रैली की बात की है, उससे आप ऐसे दिखाना चाह रहे हैं कि वो साम्प्रदायिक था, और उसका भार उन सारे लोगों को लेना चाहिए जो ‘आप में से’ नहीं है।

लेकिन किसी सौ-पचास लोगों की भीड़ का, किसी रैली का होना ही उसे साम्प्रदायिक कैसे बना देता है? क्या रवीश कुमार ने कठुआ की उस रैली में भाग लेने वालों से पूछा कि वो वहाँ क्यों थे? रिपोर्ट पढ़ने से पता चलता है कि स्थानीय पुलिस कथित तौर पर किसी को भी पूछताछ के लिए ले जा रही थी, और इसी के विरोध में लोगों ने रैली निकाली कि केस की जाँच सीबीआई करे। लेकिन रवीश कुमार के इंटरनेट की तार तो अमित शाह ने काट दी और मोदी के होलोग्राम ने मोबाइल फोन के टावर को तोड़ दिया तो इंटरनेट आते-आते रह गया। यहाँ पर तो रवीश जी ने दूसरा पक्ष जानने की कोशिश भी नहीं की और कठुआ के मामले को साम्प्रदायिक बता दिया।

हर ऐसे मुद्दे पर ये गिरोह इसी तरह की बेहूदगी ले आता है। बंगाल के दंगों की कवरेज पर जब लोगों ने सवाल किए तो कहा गया था कि इससे बाहरी इलाकों में अशांति फैल सकती है, इसलिए मीडिया ने संयम दिखाया है। जबकि यही संयम भाजपा शासित प्रदेशों में होने वाले सामाजिक अपराध को भी राजनैतिक या मजहबी रंग देते वक्त नहीं दिखाया जाता।

ये मुद्दा बिलकुल साम्प्रदायिक नहीं है, न ही कठुआ वाला मुद्दा था। लेकिन, इसके साम्प्रदायिक न होने की वजह से अब भारत के मजहब विशेष वाले शर्मिंदा नहीं हैं, न ही बॉलीवुड की लम्पट हस्तियाँ शर्मिंदगी के बोझ से मेकअप पिघला पा रही हैं, न ही पत्रकारों में वो मुखरता देखने को मिल रही है कि वो अपनी बेटी से नज़रें नहीं मिला पा रहे कि हम तुम्हारे लिए कैसा समाज छोड़े जा रहे हैं।

मतलब, रवीश और उनके गिरोह के सदस्य तभी संवेदनशील हो पाते हैं जब मामला इनके हिसाब से साम्प्रदायिक हो। और इनका हिसाब क्या है? इनका हिसाब है कि पीड़ित या पीड़िता समुदाय विशेष से, या दलित हो, अपराध करने वाला हिन्दू या सवर्ण हो। इस पोस्ट के ज़रिए रवीश ने यह बताया है कि वो कब-कब संवेदनशील होते हैं और कब ऐसी जघन्य हत्याएँ, क्रूरतम अपराध बस इसलिए चर्चा में नहीं आने चाहिए क्योंकि उसका एंगल सही नहीं बैठ रहा… क्योंकि उसमें आरोपितों के नाम जाहिद, असलम और मेंहदी हसन है।

मुझे चिंता अब पत्रकारिता की नहीं है क्योंकि इन सबकी दुकानें बंद हो रही हैं। मुझे चिंता उनके घरों की औरतों, बच्चियों, लड़कियों की है कि वो आखिर ऐसे बापों, भाइयों, दोस्तों और पतियों से किस तरह की उम्मीद लगाती होंगी। मुझे चिंता इस बात की है कि हमारे समाज में जिन लोगों को कुछ लोग आदर्श मानते हैं, वो ऐसे मामलों में नैरेटिव सूट नहीं करने पर उसकी क्रूरता से भागते हैं और चर्चा को पटरी से उतारने की हर संभव कोशिश करते हैं।

ऐसे समाज में रहने का ख़तरा असलम, जाहिद और मेंहदी हसन से तो है ही, लेकिन उसी समाज को रवीश और उसके गिरोह से भी डरना चाहिए जो बलात्कार में साम्प्रदायिकता ढूँढता है, जो बताता है कि ये कम जघन्य नहीं है लेकिन कहीं योगी सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण तो नहीं कर रही थी!

वाह रवीश जी, वाह! एक ही ज़मीर है, कितनी बार बेचोगे?

AltNews ने किया अंतरराष्ट्रीय फैक्ट चेकिंग नेटवर्क के मानदंडों का गंभीर उल्लंघन

स्वघोषित फैक्ट चेकर साइट AltNews ने द इंटरनेशनल फैक्ट चेकिंग नेटवर्क (IFCN) के मानदंडों का गंभीर उल्लंघन किया है। बता दें कि AltNews, IFCN जो एक वैश्विक नेटवर्क है मास मीडिया और सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिए, द्वारा वेरीफाइड है। लेकिन, AltNews पिछले काफी समय से फैक्ट चेकिंग के नाम पर कई बार खुद ही फेक न्यूज़ फैलाता हुआ पकड़ा गया है।

साथ ही फैक्ट चेक के नाम पर भी AltNews की एक खास राजनीतिक पार्टी से घृणा और एक खास पार्टी और विचारधारा के प्रति पक्षधारिता किसी से छिपी नहीं है। फैक्ट चेक के नियमों के उल्लंघन में बेशक आज यह संस्था रडार पर हो लेकिन AltNews फैक्ट चेक के नाम पर जिस तरह की अजेंडाबाजी कर रहा है उसे निष्पक्षता नहीं कहा जा सकता। ‘निष्पक्षता’ फैक्ट चेकिंग के लिए अपने आप में एक सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय मानदंड है।

जिस प्रमुख शर्त का फैक्ट चेकर AltNews उल्लंघन कर रहा है उसमें है संस्था की ‘निष्पक्षता’ का क्लॉज अर्थात किसी भी राजनीतिक-वैचारिक संस्था से सम्बद्ध न होना। ऐसी ही विसंगतियों से IFCN को अवगत कराने के लिए 7 जून को एक ट्विटर यूजर @attomeybharti ने IFCN का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि AltNews के को-फॉउंडर प्रतीक सिन्हा निष्पक्षता के क्लॉज़ का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं क्योंकि प्रतीक सिन्हा के ट्विटर बायो में ही इस बात का उल्लेख है कि वह ‘जन संघर्ष मंच’ के सदस्य हैं। कहने को यह संस्था प्रतीक सिन्हा के पिता मुकुल सिन्हा द्वारा स्थापित एक ‘सिविल राइट संस्था’ है।

वैसे, यहाँ यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि ‘जन संघर्ष मंच’ तमाम राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न है और उन्हें संचालित करती है। इस संस्था का सम्बन्ध वामपंथी राजनीतिक पार्टी ‘न्यू सोशलिस्ट मूवमेंट’ से है। साथ ही ‘जन संघर्ष मंच’ का भारत में सत्ता पक्ष अर्थात बीजेपी के अंधविरोध का खुला स्टैंड है। और ऐसे में ऐसी संस्था के सदस्य से निष्पक्षता की उम्मीद करना क्या अपने आप में बेहद हास्यास्पद नहीं है?

किसी भी राजनीतिक समूह से असम्बद्धता की IFCN की नीति के अनुसार फैक्ट चेकिंग नेटवर्क से सम्बंधित कोई भी संस्था और उसके सदस्य का सीधा सम्बन्ध किसी भी राजनीतिक पार्टी, राजनीतिक विचारधारा और ऐसी ही किसी पक्षधारिता या किसी खास विचारधारा की वकालत करने वाली संस्था से नहीं होना चाहिए। नियम यह भी है कि फैक्ट चेकिंग संस्था किसी भी चुनाव में किसी भी कैंडिडेट का सपोर्ट नहीं करेगी और न ही किसी अन्य संस्था, पार्टी का पक्ष लेगी जब तक कि उसका सम्बन्ध सीधे-सीधे किसी फैक्ट चेक से नहीं है।


Nonpartisanship clause of IFCN code

साथ ही फैक्ट चेकिंग संस्था को अपने कर्मचारियों को भी ऐसी राजनीतिक सम्बद्धता से अलग रखना होगा। चूँकि, ‘जन संघर्ष मंच’ ऐसी ही एक राजनीतिक वामपंथी संस्था है। जिसकी एक राजनीतिक विचारधारा है। जिसका सदस्य होने का सीधे-सीधे उल्लेख प्रतीक सिन्हा के बायो में भी है। यह अपने आप में सबसे बड़ा प्रमाण है कि वह खुलेआम IFCN के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।


Pratik Sinha’s Twitter bio

इस मुद्दे पर, IFCN द्वारा जो पहला मूल रूप से ट्वीट किया गया था उसमें AltNews के नाम का सीधे-सीधे जिक्र नहीं था। केवल यह लिखा गया था भारत में उनके द्वारा वेरिफाइड ‘एक संस्था’ संदेह के घेरे में है। जिसकी जाँच की जा रही है। लेकिन, बाद में @attomeybharti ने इस मुद्दे को उनके ऑरिजिनल ट्वीट के साथ उठाया तो कन्फर्म हो गया कि बात AltNews की ही हो रही है।

यहाँ अभी यह देखना दिलचस्प होगा कि IFCN, AltNews के साथ बातचीत के बाद उस पर क्या एक्शन लेती है? गौरतलब है कि अभी IFCN इस मुद्दे को लेकर ‘स्वघोषित’ फैक्ट चेकर AltNews की जाँच कर रही है।

अपनी स्वीकारोक्ति के साथ बेशक AltNews की पक्षधारिता अब सामने आई हो लेकिन तमाम मीडिया रिपोर्ट और AltNews लगातार जिस तरह का और जैसे फैक्ट चेक कर रहा है वह संदेह से परे नहीं रहा है। पिछले काफी समय से Altnews खुद भी फेक न्यूज़ फ़ैलाने का काम कर रहा है और कई बार ‘स्वघोषित’ फैक्ट चेकर फेक न्यूज़ फैलाते हुए पकड़ा गया है।

अभी हाल की ही बात है जब AltNews ने यह कहते हुए कि ‘अलीगढ़ में 3 साल की बच्ची का रेप नहीं हुआ, उसकी बाँह उखड़ी हुई नहीं थी’, जघन्य हत्या की गंभीरता को कम करने की कोशिश की क्योंकि यहाँ आरोपित समुदाय विशेष से है जो AltNews नैरेटिव को बढ़ावा नहीं दे रहा था। जबकि, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में था रेप ‘अभी तक’ कन्फर्म नहीं हुआ है। इस मामले में अभी आगे भी जाँच जारी है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि AltNews ने मात्र पुलिस के बयान के आधार पर खुद जज बनकर अपना फैसला सुना दिया जबकि AltNews के क्लेम के ठीक एक दिन बाद ही इस मामले में POCSO लगा दिया गया। जो अपने आप में इस तथ्य को सूचित करता है कि ‘सेक्सुअल असॉल्ट’ की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं गया है। AltNews अलीगढ़ मामले में ही फैक्ट चेक के नाम पर जिस तरह ‘पक्षधारिता’ पर उतर आया और एक तरह से ज़ाहिद और असलम के पापों को धोने की कोशिश की। उससे वह यहाँ सिर्फ एक फैक्ट चेकर न होकर कुछ और ही नज़र आता है। खैर, यहाँ एक लम्बी लिस्ट है कि किस तरह से ‘स्वघोषित’ फैक्टचेकर AltNews खुद लम्बे समय से फेक न्यूज़ फ़ैलाने में संलग्न रहा है।

बच्ची के पिता ने देशवासियों को धन्यवाद देकर कहा- उम्मीद नहीं थी देश इस तरह उनके साथ खड़ा होगा

अलीगढ़ में करीब तीन साल की बच्ची की हत्या की झकझोर देने वाली वारदात में मृतक मासूम बच्ची के पिता बनवारी लाल ने सरकार से माँग की है कि दोषी को फाँसी की सजा दी जाए। इसके साथ ही वो इस पूरे प्रकरण में साथ देने के लिए देशवासियों को धन्यवाद देना नहीं भूले।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टप्पल में बच्ची के परिवार से मिलने के लिए डीएम भी पहुँचे। उन्होंने पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया। साथ ही बाल आयोग की टीम भी मौके पर पहुँची। इस दौरान जिला प्रशासन ने पीड़ित परिवार को एक लाख रूपए का चेक दिया। पीड़ित परिवार को इससे पहले भी दो लाख रुपए का चेक दिया जा चुका है। बच्ची के पिता ने देश को धन्यवाद देते हुए कहा कि, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि देश इस तरह उनके साथ खड़ा होगा।

अलीगढ़ के जिलाधिकारी चंद्र भूषण सिंह के साथ आज अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि टप्पल क्षेत्र में पीडि़त परिवार से मिलने गाँव में उनके घर पहुँचे। डीएम के साथ ही एसएसपी भी करीब डेढ़ घंटा तक पीडि़त परिवार के साथ रहे। डीएम चंद्र भूषण सिंह ने कहा कि यह घटना तो बेहद ही दुखद है। इस मामले में जिला तथा पुलिस प्रशासन पीड़ित परिवार के साथ है। उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवार ने जिनके ऊपर आरोप लगाया था, उन चारों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

वहीं सबूत जुटा रही पुलिस को आरोपित जाहिद के घर एक फ्रिज मिला है वो भी एक दम साफ सुथरी हालत में। ऐसे में पुलिस सम्भावना जता रही है कि बच्ची की हत्या के बाद उसके शव को फ्रिज में रखा गया होगा। मौके पर फ्रिज को देख कर लग रहा है कि शव को फेंकने के बाद फ्रिज को साफ किया गया है। पुलिस सभी बिंदुओं को लेकर जाहिद की पत्नी और भाई मेहंदी हसन से पूछताछ कर रही है।

अलीगढ़ में ढाई साल की मासूम बच्ची की नृशंस हत्या के मामले में पुलिस ने एक और गिरफ्तारी की है। इस बार पुलिस ने आरोपित को पत्नी को गिरफ्तार किया है। इस मामले में पुलिस ने अभी तक कुल चार लोगों को पकड़ा है। पकड़े गए लोगों में साजिशकर्ता आरोपित की पत्नी, भाई और एक दोस्त शामिल हैं। इधर मामले को लेकर एसएसपी का बयान सामने आया है।

बच्ची का शव जाहिद की पत्नी सबुस्ता के दुपट्टे में लिपटा हुआ था

एसएसपी आकाश ने बताया कि मुख्य आरोपित जाहिद और उसकी पत्नी सबुस्ता, असलम और मेंहदी हसन निवासी ऊपरकोट थाना टप्पल, अलीगढ़ समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने कहा जाँच में पाया गया है कि बच्ची का शव जाहिद की पत्नी के दुपट्टे में लिपटा हुआ था।

अलीगढ़ में हुई इस दिल दहला देने वाली घटना में सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर जमकर विरोध और आक्रोश देखने को मिला है। हालाँकि, स्वयं को निष्पक्ष कहने वाली मीडिया का एक पहलू ऐसा भी है, जो इस प्रकरण में आरोपितों के नाम में मजहब तलाशकर उन्हें बचाने की पूरी कोशिश करता नजर आ रहा है।