पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम को सुप्रीम कोर्ट ने अपने संसदीय क्षेत्र पर ध्यान देने की सलाह दी है। दरअसल, आइएनएक्स मीडिया केस और एयरटेल मैक्सिस केस में आरोपित कार्ति चिदंबरम ने अपने 10 करोड़ रुपए वापस पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। ये रुपए इस वर्ष की शुरुआत में उनके द्वारा विदेश जाने से पहले जमानत राशि के तौर पर जमा कराए गए थे। उन्होंने इसे वापस रिफंड कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। हालाँकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने उनकी याचिका खारिज़ कर दी।
कार्ति चिदंबरम की दलील थी कि उन्हें ये रुपए वापस किए जाने चाहिए क्योंकि वो बताई गई तारीख पर विदेश से वापस लौट आए। कॉन्ग्रेस के नव-निर्वाचित सांसद कार्ति चिदंबरम का प्रतिनिधित्व कर रहे उनके काउंसल को जस्टिस गोगोई ने कहा, “अपने संसदीय क्षेत्र पर ध्यान दीजिए।” कार्ति के ख़िलाफ़ सरकारी एजेंसियाँ जाँच चला रही हैं और इससे पहले वह 2 बार अदालत से विदेश जाने की इज़ाज़त माँग चुके हैं।
“Pay attention to your Constituency”, Supreme Court dismisses plea by Karti Chidambaram for refund of security deposit @KartiPChttps://t.co/npmdO4feVm
इससे पहले जनवरी 2019 में कार्ति चिदंबरम ने फरवरी और मार्च में विदेश दौरे की इजाज़त माँगी थी। इसके बाद अप्रैल में उन्होंने फिर से इजाज़त माँगी कि उन्हें मई व जून में विदेश जाने दिया जाए। मई के शुरुआत में उन्होंने अपने द्वारा डिपोजिट की गई राशि वापस पाने के लिए याचिका दाखिल की। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष कार्ति चिदंबरम की तरफ़ से दलील दी गई थी कि उन्होंने क़र्ज़ लेकर सिक्यूरिटी डिपोजिट की व्यवस्था की थी। उन्होंने अदालत को कहा था कि उन्हें उस कर्ज़े का ब्याज भी देना पड़ रहा है।
पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने शपथ ग्रहण से एक दिन पूर्व ही नई सरकार में स्वास्थ्य कारणों से कोई भी पद स्वीकार करने में अपनी असमर्थता जता दी है। अरुण जेटली ने अपने फैसले की जानकारी नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर दे दी है। उन्होंने इस फैसले के पीछे स्वास्थ्य कारणों को ही बताया है।
I have today written a letter to the Hon’ble Prime Minister, a copy of which I am releasing: pic.twitter.com/8GyVNDcpU7
सोशल मीडिया में कई दिनों से उनके ख़राब स्वास्थ्य की खबरें बहुत तेजी से फैलाई जा रही थीं। जिसका दो दिन पहले PIB ने खंडन भी किया था। उसके एक दिन पहले ही उन्हें AIIMS से डिस्चार्ज किया गया था। लेकिन शायद डॉक्टर्स की सलाह पर अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह निर्णय लिया है।
हालाँकि, खबर लिखे जाने तक सरकार की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अब ये भी देखना लाज़मी होगा कि अरुण जेटली की अनुपस्थिति में अगला वित्तमंत्री किसे बनाया जाता है।
हिंदी सिनेमा की सबसे लोकप्रिय पार्श्व गायिका लता मंगेशकर ने वीर सावरकर की प्रशंसा की है, जिसके बाद वह कॉन्ग्रेस के निशाने पर आ गईं। आठ दशकों से हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में सक्रिया लता मंगेशकर ने कहा कि वीर सावरकर की आलोचना करने वालों को राष्ट्रवाद की समझ नहीं है। बता दें कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि सावरकर राष्ट्र के विभाजन का विचार लेकर आने वाले पहले व्यक्ति थे, जिस पर जिन्ना ने अमल किया और परिणाम स्वरूप भारत दो हिस्सों में बँट गया। सावरकर की आलोचना से आहत लता ने उनकी जयंती पर मंगलवार (मई 29, 2019) को एक ट्वीट के माध्यम से लिखा:
“नमस्कार, आज स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जयंती है। मैं इस अवसर पर उनके व्यक्तित्व को, उनकी देशभक्ति को प्रणाम करती हूँ। आजकल कुछ लोग सावरकर जी के विरोध में बातें करते हैं। वे लोग यह नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे।”
Namaskar. Aaj Swatantrya Veer Savarkar ji ki jayanti hai.Main unke vyaktitva ko,unki desh bhakti ko pranam karti hun.Aaj kal kuch log Savarkar ji ke virodh mein baatein karte hai,par wo log ye nahi jaante ki Savarkar ji kitne bade deshbhakt aur swabhimaani the.
लता मंगेशकर के इस बयान के बाद कॉन्ग्रेस ने उनका विरोध किया। मुंबई कॉन्ग्रेस के उपाध्यक्ष चरण सिंह सापरा ने कहा कि लता मंगेशकर को सावरकर के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है। पूर्व विधान पार्षद सापरा ने कहा कि लता मंगेश्कर को यह भी नहीं पता होगा कि सावरकर ने महात्मा गाँधी के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का विरोध किया था। उन्होंने दावा किया कि सावरकर ने हिन्दुओं को उस आन्दोलन में शामिल न होने के लिए एक ‘फतवा’ भी जारी किया था। कॉन्ग्रेस के मीडिया पैनलिस्ट चरण ने आगे कहा कि लता मंगेशकर को इतिहास नहीं पता है। उन्होंने एक ट्वीट के माध्यम से नाथूराम गोडसे और सावरकर की तुलना भी की। सपरा ने लिखा कि सावरकर उतने ही ‘देशभक्त’ थे, जितने नाथूराम गोडसे थे।
Savarkar ji ke baare mein rishitulya Atal ji ne kya kaha hai wo main aap ko sunaati hun. https://t.co/3vcrG7ryUH
लता मंगेशकर ने एक विडियो शेयर किया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सावरकर पर अपने विचार रख रहे हैं। भाजपा की जीत के बाद 23 मई को लता मंगेशकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को अलग-अलग ट्वीट कर के बधाई भी दी थी।
वैसे यह पहली बार नहीं है जब मुंबई कॉन्ग्रेस के नेताओं द्वारा भारत रत्न से सम्मानित गायिका लता मंगेशकर को लेकर बुरा-भला कहा गया हो। इससे पहले जब नवम्बर 2013 में लता मंगेशकर ने नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया था, तब जनार्दन चांदुरकर ने कहा था कि उनका भारत रत्न पुरस्कार छीन लेना चाहिए। उन्होंने लता मंगेशकर को देशहित में सोचने की सलाह दी थी। नरेन्द्र मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे और लता मंगेशकर ने कहा था कि वह नरेन्द्र मोदी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं। इस पर बौखलाए कॉन्ग्रेस नेता जनार्दन ने कहा था कि लताजी को ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ का समर्थन करना है तो पहले अपना सम्मान वापस करें।
लता मंगेशकर स्वास्थ्य और उम्र की वजह से अब गायिकी में सक्रिय नहीं रहती हैं लेकिन कुछ अवसरों पर ट्विटर के माध्यम से अपने प्रशंसकों से जुड़ी रहती हैं। लता मंगेशकर बताती हैं कि वह इस उम्र (89 वर्ष) में रियाज करना नहीं भूलतीं और युवा गायकों को भी ऐसा करने की सलाह देती हैं। भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री के अपने पुराने साथियों, जैसे किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी इत्यादि के जन्मदिवस पर लता मंगेशकर उनसे जुड़ी यादें शेयर करती रहती हैं।
अंतरराष्ट्रीय मैगज़ीन ‘टाइम’ ने एक महीने के भीतर बड़ा यू-टर्न लिया है। कुछ दिनों पहले प्रकाशित संस्करण में टाइम ने मोदी को ‘Divider In Chief’ कहा था। इसका अर्थ हुआ- विभाजित करने वालों या बाँटने वालों का मुखिया। पूर्वग्रह से भरे उस लेख में नरेन्द्र मोदी पर समाज को बाँटने के आरोप लगाए गए थे। चुनाव के दौरान इस लेख की ख़ूब चर्चा हुई थी और कई विपक्षी नेताओं ने मोदी पर भारत की छवि बिगाड़ने का आरोप भी लगाया था। अब एक ताज़ा लेख में टाइम ने पलटी मारी है। अब मोदी के लिए ‘Divide’ की जगह ‘Unite’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इंडिया इंक के सीईओ मनोज लडवा द्वारा लिखे इस लेख में कहा गया है कि भारतीय मतदाताओं को आज तक इस तरह किसी ने ‘Unite’ नहीं किया, जैसे नरेन्द्र मोदी ने किया है।
टाइम के इस लेख में लिखा है कि मोदी का दोबारा जीत कर आना प्रतिभा की जीत है, अवसरों की जीत है और ग़रीबों के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की वजह से यह संभव हो पाया है। इस लेख में बताया गया है कि मोदी ने हिन्दू-मुस्लिम में भेदभाव किए बिना दोनों ही समाज के ग़रीबों को उनकी बुरी अवस्था से पिछली पीढ़ियों के मुकाबले काफ़ी तेज़ी से बाहर निकाला, दोनों के लिए ही सामाजिक रूप से विकासपरक योजनाएँ बनाई गईं। लेख में बताया गया है कि मोदी द्वारा टेक्नोलॉजी को आत्मसात करने के कारण यूनिवर्सल हेल्थकेयर, हाउसिंग, वित्तीय समरसता और क्लाइमेट के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव हुए हैं। इस लेख में आगे लिखा गया है:
“नोटबंदी से भले ही कुछ तात्कालिक परेशानियाँ हुईं लेकिन इसके लॉन्ग-टर्म फायदे हुए हैं। लोगों पर टैक्स का भार कम हुआ है लेकिन टैक्स कलेक्शन दोगुना से भी अधिक हो चुका है। ज्यादा टैक्स रेवेन्यु का फायदा यह हुआ कि जनहित के कार्यों को ज्यादा फंडिंग मिली और इससे बिजली एवं स्वच्छता के क्षेत्र में काफ़ी अच्छे कामकाज हुए। 20 करोड़ नए बैंक खातों के खुलने से वो लोग भी भारत की औपचारिक वित्तीय व्यवस्था का हिस्सा बने, जिन्होंने कभी बैंकों का मुँह तक नहीं देखा था। डायरेक्ट ट्रान्सफर से सरकारी योजनाओं में दलाली कम हुई है और लाभार्थियों तक वित्तीय सहायता या अनुदान सीधे पहुँच रही है। जीएसटी से पूरे भारत में सामान टैक्स व्यवस्था है।”
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) May 29, 2019
टाइम के इस लेख में मोदी सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। मनमोहन काल में 12% रही महंगाई को सीधे 3% पर लाने के लिए मोदी सरकार की पीठ थपथपाई गई है। लिखा गया है कि मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे सभी कार्य अभी ‘Work In Progress’ हैं, यानी इन सभी क्षेत्रों में और भी कार्य होने बाकी हैं। टाइम के इस लेख में मोदी को भारत में समाज के विभाजन की मूल समस्या को हल करने वाला बताया गया है, यानी मोदी ने इस चुनाव में जाति के बैरियर को तोड़ दिया। भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी को रास्ते पर लाने के लिए मोदी की प्रशंसा की गई है। कुल मिला कर देखें तो टाइम के पिछले पूर्वग्रह से ग्रसित लेख में आँकड़ों व तथ्यों का अभाव था, इस लेख को आँकड़ों, योजनाओं व तुलनात्मक अध्ययन के जरिए तथ्यपरक बनाया गया है।
Time के पिछले लेख पर ऑपइंडिया ने आपत्ति जताते हुए यह लेख लिखा था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण का आधिकारिक समय गुरुवार (मई 30, 2019) को शाम 7 बजे तय किया गया है। राष्ट्रपति भवन के जयपुर गेट के पास आयोजित इस कार्यक्रम में 7000 लोगों के शिरकत करने की बात कही जा रही है। पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं और भाजपा ने इस बीच एक ऐसा निर्णय लिया है, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में अच्छा सन्देश जा रहा है। दरअसल, भाजपा ने बंगाल में चुनावों के दौरान हुई हिंसा में मारे गए कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का न्यौता दिया है।पश्चिम बंगाल में पिछले साल हुए पंचायत चुनाव और इस साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कई भाजपा कार्यकर्ताओं की जानें गई हैं।
भाजपा ने उन कार्यकर्ताओं को सम्मान देने का निर्णय लेते हुए उनके परिवारों को मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है। इन कार्यकर्ताओं के परिवारों को भाजपा पदाधिकारियों की देखरेख में ट्रेन से दिल्ली लाया जाएगा। ये पदाधिकारी दिल्ली में भी इन लोगों का ख्याल रखेंगे। जिन कार्यकर्ताओं के परिवारों को आमंत्रित किया गया है, उनमें से 46 ऐसे हैं, जो पिछले वर्ष हुए पंचायत चुनावों के दौरान हुई राजनीतिक हिंसा में मारे गए थे। इनमें 5 ताज़ा लोकसभा चुनाव के दौरान हुई हिंसा में मारे गए कार्यकर्ताओं के परिवार हैं। दिल्ली में इन परिवारों के ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था भी पार्टी ही कर रही है।
मारे गए कार्यकर्ताओं में से अधिकतर बैरकपुर, कृष्णानगर, नदिया, पुरुलिया, मालदा, बाँकुरा, मिदनापुर, झरगाम और वीरभूम के रहने वाले थे। इनमें से कुछ कार्यकर्ताओं के परिवारों ने दिल्ली भाजपा मुख्यालय आकर अपनी पूरी आपबीती सुनाई थी। उन्होंने बताया था कि कैसे वह अब भी डर के साए में जी रहे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस क़दम से पार्टी अपने कार्यकर्ताओं व उनकी परिवारों को यह सन्देश देना चाहती है कि उन्हें डरने की ज़रूरत नहीं है, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके सुख-दुःख में साथ खड़ा है। भाजपा लगातार कहती आ रही है कि 2018 में हुए पंचायत चुनाव से लेकर अब तक बंगाल में उनके 68 कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।
पिछले वर्ष हुए पंचायत चुनाव में 20,000 सीटों पर तृणमूल के प्रत्याशी निर्विरोध जीत गए थे। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था और पार्टी को मात्र 2 सीटें आई थीं। उस चुनाव में राज्य में भाजपा का वोट शेयर 17% था। लेकिन, 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीत कर सबको चौंका दिया है। इस वर्ष पार्टी का वोट शेयर भी बढ़ कर 40% के क़रीब पहुँच गया है। मृत कार्यकर्ताओं के परिवारों का इस समारोह में शामिल होना इसीलिए भी अहम है क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इसमें शामिल होने वाली हैं।
तृणमूल सुप्रीमो ने कहा कि उन्होंने अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की है और वे सभी पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने वाले हैं। उन्होंने कहा कि चूँकि यह एक समारोह है, इसमें वह जाएँगी। बता दें कि चुनाव के दौरान ममता ने कहा था कि फ़ोनी तूफ़ान के लिए वह मोदी से इसीलिए नहीं मिलीं क्योंकि वह उन्हें प्रधानमंत्री नहीं मानतीं। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और ममता बनर्जी के बीच बड़ी खींचतान देखने को मिली।
केरल के कन्नूर से सांसद रहे एपी अब्दुल्लाकुट्टी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ की है। उन्होंने पीएम मोदी द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा में एक फेसबुक पोस्ट किया। इसके बाद नाराज़ कॉन्ग्रेस पार्टी ने उनसे स्पष्टीकरण माँगा है। अब्दुल्लाकुट्टी ने लिखा कि ताज़ा लोकसभा चुनाव में भाजपा की भारी जीत आम जनता के बीच पीएम मोदी की विकास योजनाओं की स्वीकार्यता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की सफलता का सबसे बड़ा राज उनकी गाँधीवादी विचारधारा है, जो उन्हें औरों से अलग बनाती है। इसके अलावा उन्होंने मोदी की स्वच्छ भारत योजना की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि इससे शहर, गाँव व कस्बों में साफ़-सफाई हुई है, कई टॉयलेट्स बने हैं और लोगों को खुले में शौच से मुक्ति मिली है।
अब्दुल्लाकुट्टी कन्नूर लोकसभा क्षेत्र से 2 बार जीत दर्ज कर चुके हैं। इसके अलावा वह कन्नूर विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रह चुके हैं। जानने वाली बात यह है कि कुछ वर्षों पहले तक सीपीएम में रहे अब्दुल्लाकुट्टी को पार्टी ने इसीलिए निकाल दिया था क्योंकि उस समय भी उन्होंने नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा की थी। उन्हें 2009 में सीपीएम ने पार्टी का अनुशासन भंग करने का आरोप लगा कर निकाल दिया था। मोदी उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अब्दुल्लाकुट्टी ने मोदी को लेकर मीडिया पर पक्षपाती होने का भी आरोप लगाया। पूर्व सांसद ने कहा कि मीडिया व राजनीतिक विशेषज्ञों ने पक्षपाती रवैये से मोदी की जीत का विश्लेषण किया है।
2009 में गुजरात मॉडल की प्रशंसा करने वाले अब्दुल्लाकुट्टी ने अब कहा है कि राजनीतिक विश्लेषकों व नेताओं को पीएम मोदी की आलोचना करते वक़्त कुछ वास्तविकताएँ ध्यान में रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी ने 9.16 करोड़ परिवारों को टॉयलेट्स की सुविधा उपलब्ध कराई और 6 करोड़ परिवारों को एलपीजी गैस कनेक्शन भी दिए। गाँधीजी को याद करते हुए अब्दुल्लाकुट्टी ने बताया, “हमारे राष्ट्रपिता ने कहा था कि किसी भी योजना की रूपरेखा तैयार करने से पहले यह सोचना ज़रूरी है कि इससे सबसे ग़रीब व्यक्ति को क्या लाभ पहुँचेगा? मोदी ने इसे काफ़ी अच्छी तरह से वास्तविकता का रूप दिया है।“
Kerala Congress leader AP Abdullakutty has courted controversy by praising #PMModi for the massive victory in #LokSabhaElections2019. He also said the secret of PM’s success was that he had adopted Gandhian values.https://t.co/7vbQ5ID8fj
— The New Indian Express (@NewIndianXpress) May 28, 2019
अब्दुल्लाकुट्टी ने स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन सहित मोदी की कई ड्रीम योजनाओं की तारीफ की। केरल कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने कहा कि उनके ख़िलाफ़ मज़बूत एक्शन लिया जाएगा और उन्हें नोटिस भेज दिया गया है। केरल में कॉन्ग्रेस के नव निर्वाचित सांसद के मुरलीधरन ने कहा कि किसी कॉन्ग्रेस के व्यक्ति द्वारा पीएम मोदी की प्रशंसा करना अस्वीकार्य है और ग़लत है। वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता ने कहा इस मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। सीपीएम ने भी अब्दुल्लाकुट्टी के इस बयान पर तंज कसा है।
केरल यूथ कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष और नव निर्वाचित सांसद डीन कुरिआकोसे ने भी अब्दुल्लाकुट्टी के इस बयान का विरोध किया। कई नेताओं ने कहा कि अब्दुल्लाकुट्टी को कॉन्ग्रेस में लेकर आने वाले नेताओं को भी जवाब देना चाहिए। एक अन्य नव निर्वाचित सांसद राजमोहन उन्नीथन ने कहा कि अब्दुल्लाकुट्टी कभी भी पार्टी के प्रति वफादार नहीं रहे हैं और वो अपने लिए बेहतर मौके की तलाश में हैं। केरल में कॉन्ग्रेस की जीत के बावजूद इस तरह के बयान आना पीएम मोदी की पैन इंडिया लोकप्रियता को दर्शाता है।
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के समर्थकों द्वारा दलितों की पिटाई किए जाने की बात सामने आई है। अमर उजाला में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, मैनपुरी के नगला मान्धाता गाँव में यह घटना हुई। बता दें कि सपा के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक कर्मभूमि मुख्य रूप से मैनपुरी ही रही है और वह यहाँ से 5 लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज कर चुके हैं। पिछली लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने यहाँ से जीत दर्ज की थी लेकिन 2 सीटों पर चुनाव लड़ने के कारण उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ी थी। मुलायम ने ताज़ा लोकसभा चुनाव में भी यहाँ से जीत दर्ज की है। इसके बाद इलाक़े में यादवों की गुंडागर्दी शुरू हो गई है।
ग्राम पंचायत उनवा संतोषपुर के मजरा उनवा निवासी प्रेम सिंह सोमवार (मई 27, 2019) को खेतों में जानवर चराने गए थे। उनके पिता का नाम रामदास है। उनके साथ उनके परिवार का एक बच्चा भी था। उसी दिन शाम 4 बजे प्यास लगने पर वे एक ट्यूबवेल पर पानी पीने चले गए। यह ट्यूबवेल गाँव के किसी यादव की है। एक दलित को अपने ट्यूबवेल पर पानी पीते देख भड़के यादवों ने प्रेम सिंह को धमकाया। यादवों ने कहा “एक तो तुम लोगों ने लोकसभा चुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी को वोट नहीं दिया और ऊपर से हमारे ही ट्यूबवेल में पानी पीते हो।” इसके बाद प्रेम सिंह के साथ मारपीट की गई। बच्चे को भी नहीं बख्शा गया।
जब वे अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास पहुँचे तो पुलिस ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद जब प्रेमसिंह का भतीजा रिंकू उर्फ फौजी मंगलवार की सुबह क़रीब 8 बजे ट्यूबवेल के पास खेत में भूसा उठाने गया, तब यादवों ने उस पर भी हमला बोल दिया। जब शोर सुनकर रिंकू के घर के लोग पहुँचे तो हमलावरों ने उन सबकी लाठी-डंडे से पिटाई की। इतना ही नहीं, दहशत फैलाने के लिए हवाई फायरिंग भी की गई। पीड़ित पक्ष ने 100 नंबर पर पुलिस को सूचना दे दी। इसके कुछ देर बाद 100 नंबर वाली और चौबिया थाना पुलिस मौके पर पहुँची।
हमलावर अभी तक पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आए हैं। पुलिस ने मौके पर पहुँच कर उन्हें खदेड़ा लेकिन वे कई किलोमीटर तक भागने के बाद निकल गए। घायल रिंकू बीएसफ जवान है और उसके पिता का नाम रामनरेश है।मारपीट में प्रेम सिंह की पत्नी सीता देवी, गुलाब सिंह पुत्र लज्जाराम, उनकी पत्नी बीनू देवी, शशि पत्नी सुखबीर सिंह घायल हो गए। कहा जा रहा है कि जिस गाँव में प्रेम और रिंकू रहते हैं, उस गाँव में स्थित बूथ पर मुलायम सिंह यादव को कम वोट पड़े थे, यही यादवों की बौखलाहट का कारण है। यहाँ तक की दलित महिलाओं से भी मारपीट की गई, जिसमें कई महिला एवं पुरुष घायल हुए।
मैनपुरी में इस घटना के बाद लगातार तनाव बना हुआ है। दलितों की शिकायत पर पुलिस आगे की कारवाई करने में लगी हुई है। जिस तरह से दलितों, महिलाओं और यहाँ तक की बीएसएफ जवान तक को अपनी गुंडागर्दी का शिकार बनाया गया, उसे लेकर दलित समाज में आक्रोश है।
सोशल मीडिया पर एक वीडियो मिला है। एक ईसाई कोयंबटोर स्थित सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के प्रांगण में स्थापित आदियोगी शिव की प्रतिमा के आगे जाता है और वहाँ भगवन शिव का दर्शन और उन्हें नमन कर रहे हिन्दू भक्तों से चिल्ला कर तमिल में कुछ कहता है, जिसमें से मुझे खुद केवल एक शब्द समझ में आया- येसु। तमिल मित्रों को पूछा तो पता चला कि वह कह रहा है, “ध्यान से सुनो, सब लोग। योग, योगी या साँप इंसानों को नहीं बचा सकते। येसु ने तुम्हारे लिए खून बहा दिया। मैं अपना संदेश हिंदुस्तान को और इस प्रतिमा का अनावरण करने वाले पीएम को दे रहा हूँ। केवल येसु इंसानों के पापों को साफ कर सकता है। येसु, कृपया इंसानों की आँखें खोलो और हिंदुस्तान को बचाओ।”
स्कूलों में सुना था, मंदिर में, आश्रम में उम्मीद नहीं थी
यह पहली बार नहीं सुना है कि ‘तुम्हारे भगवान नकली हैं, इनसे कुछ नहीं होने वाला’, ‘सब मूर्ति-वूर्ति अन्धविश्वास है’, ‘आँख बंद करके बैठने (ध्यान मुद्रा) या शरीर ऐंठने (हठ योग) से क्या होता है? ऐसे भला शरीर ठीक हो सकता है?’, ‘येसु ही असली परमेश्वर हैं’- कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने से यह सब गाहे-बगाहे सुनने को मिल ही जाता था। वह भी इतने आहिस्ते-आहिस्ते हिन्दूफ़ोबिया का जहर भरा जाता था कि पता ही नहीं चलता था कब तर्क और विज्ञान पढ़ते-पढ़ते हम हिन्दुओं के तिलक-पूजा-तंत्र से लेकर राम-कृष्ण-पुनर्जन्म-योग सभी को एक झाड़ू से बकवास मानकर बुहारने लगते थे।
लेकिन वह स्कूल ‘उनका इलाका’ था- उनकी मर्जी जो पढ़ाएँ; हमारी गलती थी, हमारे माँ-बाप की गलती थी, हिन्दू समाज की गलती थी कि मिशनरियों जैसे उच्च-गुणवत्ता की शिक्षा तुलनात्मक रूप से कम दाम में मुहैया करने वाले स्कूल उतनी तादाद में नहीं खुले जितना होना चाहिए था। पर यह मामला वह नहीं है- यहाँ हमारे पवित्र, धार्मिक स्थल में आकर, हमारे गुरु के आश्रम में, हमारे महादेव की मूर्ति के सामने उसे फर्जी कहा जा रहा है। और बोलने वाले के हावभाव से साफ़ है कि वह अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त है- पता है उसे किसी ने टोक भी दिया तो पत्रकारिता का समुदाय विशेष “ऑल रिलीजंस आर ईक्वल” से लेकर “हिन्दू फासीवाद फैलना चालू; बेचारे मिशनरी को हिन्दू ‘पर्यटन’ स्थलों पर अपना प्रचार नहीं करने दिया जा रहा” का नाटक शुरू करने के लिए गिद्ध की तरह बैठा ही है।
कहाँ से आती है इतनी हिम्मत? कहाँ से आता है इतना दुस्साहस कि किसी के धार्मिक स्थल पर घुस कर उनके धर्म को नकली कहा जाए, उसका मजाक उड़ाया जाए? और कहीं से नहीं, हमारी तथाकथित ‘सेक्युलर’ व्यवस्था से ही, जहाँ हिन्दुओं के मंदिरों को सरकारें हड़प कर उनके खजाने निगल सकती हैं और अपने साहबों की सुविधा से मंदिर की परम्पराओं को बदल सकतीं हैं। जहाँ अदालत देश की लगभग 80% आबादी को बताती है कि उनकी परम्पराओं के लिए संविधान में सुरक्षा नहीं है, वह अनुच्छेद 25-30 केवल अल्पसंख्यकों को देते हैं ,जहाँ मीडिया गिरोह हिन्दुओं को Characterological Evil (चरित्र से ही बुरे, और ‘सुधार’ की सर्वथा आवश्यकता में) के रूप में प्रचारित करते हैं, जहाँ हिन्दुओं की आस्था और परम्परा से नफरत, उसका अपमान ‘प्रगतिशीलता’ की पहली शर्त है, और उनके सम्मान की बात भर करना आपको ‘कम्युनल’, ‘फासिस्ट’ और न जाने क्या-क्या बना देता है। यह दुस्साहस ऐसे ही हिन्दूफ़ोबिक ‘इकोसिस्टम’ से आता है।
मिशनरी की साम्राज्यवादी भाषा
इस मिशनरी की भाषा पर अगर गौर करें तो यह वही बोली बोल रहा है जो हिंदुस्तान को 190 साल अपने बूटों के तले रौंदने वाले अंग्रेज बोलते थे। और उनके संरक्षण में यहाँ की स्थानीय संस्कृति को लील लेने वाले मिशनरी पादरियों की यह बोली थी। हिंदुस्तान को (केवल) “साँप-मदारियों का देश” बताना महज नस्ली या चमड़ी के रंग पर आधारित नहीं, मज़हबी, पंथिक प्रपोगंडा था; वाइट सुप्रीमेसी की जड़ ईसाईयत में ही हैं- और यह वाइट क्रिश्चियन सुप्रीमेसी है। आज ईसाईयत दुनिया फैला लेने के बाद यह क्रिश्चियन सुप्रीमेसी है। इनके लिए हम हिन्दू हमेशा नरकोन्मुख अभिशप्त लोग होंगे, और हमें अपमानित कर, प्रताड़ित कर, भेदभाव कर भी ‘बचाना’ इनका “पवित्र कर्तव्य”- जैसे पिछली सदी में चमड़ी के पीछे छिपा वाइट मैन्स बर्डेन था, इस सदी में खुल कर क्रिश्चियन मैन्स बर्डेन है कि हम बेचारे हिन्दुओं को मूर्ति-पूजा के पाप से बचाएँ।
हमारी संस्कृति का हमारे विरुद्ध प्रयोग, साथ देने में हिन्दू भी कम नहीं
एक ओर ईसाईयत का मूल आधार ही मूर्ति-पूजा और देवताओं की अवैधता है, मूर्ति और देवता के पूजकों को कयामत के दिन नर्क में भेजने का ईसा का वादा है, दूसरी ओर ईसाई अपना पंथ हिंदुस्तान में फ़ैलाने के लिए हमारी संस्कृति और हमारे देवताओं के प्रयोग से पीछे नहीं रहते। नीचे कुछ ऐसी ही तस्वीरें हैं जिनमें ईसा मसीह को तो हिन्दू देवताओं मुरुगन (कार्तिकेय), दक्षिणमूर्ति शिव, देवी इत्यादि के रूप में दिखाया गया है, देवताओं का साथी (यानि “बस एक और देवता”) दिखाया गया है, ईसाई मिथक (माइथोलोजी) में घटी घटनाओं को हिन्दू शृंगार, रूप आदि दिए हैं- यानि ईसाईयत के आईने में हिन्दुओं को उतारने के लिए पिछले दरवाजा बनाया गया है। अधिकाँश चित्र स्वराज्य के लेख से हैं, बाकी गूगल पर “jesus appropriation” इमेज सर्च कर पाए जा सकते हैं।
उनका साथ देने में हिन्दू (या शायद हिन्दू नामधारी छद्म-हिन्दू?) भी पीछे नहीं हैं। कर्नाटक संगीत के मशहूर गायक टीएम कृष्णा को इस विकृत सेक्युलरिज्म के कीड़े ने ऐसा काटा कि वह चर्चों में घूम-घूमकर श्री राम की वंदना और प्रशंसा में लिखे गए त्यागराजा, मुत्तुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री के कीर्तनों को जीसस घुसेड़ कर गाने लगे। विरोध बढ़ा तो उन्होंने संघ परिवार के बहाने हिन्दुओं को चिढ़ाने के लिए घोषणा कर दी कि अब तो हर महीने जीसस और अल्लाह के लिए एक कर्नाटक संगीत का भजन जारी होगा।
तिस पर भी मानसिक ही नहीं आत्मा के स्तर तक से दिवालिया कुछ लोग इसे हिन्दुओं का ही दूसरे मतों के पवित्र प्रतीकों को ‘हड़पना’ बताने में लगे हैं।
सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दुओं पर थोपी गई इस विकृत विचारधारा का अंत जरूरी है। आखिर हिन्दू ही क्यों पंथ-निरपेक्षता को ढोएँ? जिन्हें लगता है कि कभी-न-कभी दूसरे समुदाय (विशेष तौर पर अब्राहमी इस्लाम और ईसाईयत) हमें पलट के सम्मान देंगे, उनकी जानकारी के लिए ईशा फाउंडेशन के इस योग मंदिर के बाहर ॐ और सिखों के पवित्र चिह्न के अलावा ईसाई क्रॉस, समुदाय विशेष का चाँद सितारा भी बने हैं। उसके बावजूद जग्गी वासुदेव को आदियोगी प्रतिमा बनाने से लेकर उसका मोदी से अनावरण कराने तक हर कदम पर उनके खिलाफ दुष्प्रचार हुआ- उनकी जमीन को आदिवासियों से हड़पी हुई बताया गया (जबकि उन्होंने दस्तावेज सामने रखकर जब चुनौती दी तो सब गायब हो गए), उन्हें मोदी के तलवे चाटने वाला बताया गया, जेएनयू में उनकी मौजूदगी के खिलाफ प्रपोगंडा हुआ और अब उनके ही आश्रम में उनके इष्ट देवता का अपमान हुआ है।
जरा सोचकर देखिए कि किसी चर्च या मस्जिद में अगर कोई हिन्दू ईसा या मोहम्मद पर सवाल भर पूछ दे तो लिबरल मीडिया गिरोह कितने दिन बवाल काटेगा? फिर यह सोचकर देखिए कि इसी मिशनरी ने अगर किसी मस्जिद, मजार या किसी मुस्लिम-बहुल इलाके में भी उनके मज़हब और पैगंबर का अपमान किया होता तो उसका क्या हाल होता? हिन्दुओं का भी धैर्य अंतिम छोर पर है- परीक्षा कम ही हो तो बेहतर होगा…
दी लल्लनटॉप की हालत देखकर बचपन की याद आती है, जब मेले में शाम ढलते ही आइसक्रीम, खिलौनों, चूड़ियों और मिठाई वाला चिल्लाता था – “बिक गया माल” और इस ‘बिक गया माल’ में वो 1 आइसक्रीम माँगने वाले को भी अपना सारा बचा हुआ स्टॉक भी थमाकर बस किसी भी तरह से वहाँ से भाग जाना चाहता था।
फेकिंग न्यूज़ की एक खबर का फैक्ट चेक किए हुए अभी महीना भी नहीं बीता था कि हिटलर के लिंग की नाप-छाप रखने वाला और महिलाओं की योनि में कसाव पर ‘गद्य’ लिखने वाले ‘दी लल्लनटॉप’ नामक पत्रकारिता के संक्रामक रोग ने एक नया कीर्तिमान रचा है। इस बार अपने पाठकों को मारक मजा देने की कसम को निभाते हुए दी लल्लनटॉप ने बहुत ही चतुराई से फेकिंग न्यूज़ की खबर का फैक्ट चेक तो नहीं किया लेकिन ‘वायरल’ ख़बरों के कच्चे माल के अभाव में एक ऐसी वेबसाइट की खबर का फैक्ट चेक किया जो व्यंग्य लेख लिखती है। इस वेबसाइट का नाम है ‘द फॉक्सी।’
सितंबर 12, 2018 को द फाक्सी द्वारा प्रकाशित किया गया यह व्यंग्य लेख फ़ूड ब्लॉगर्स पर लिखा गया था। लेकिन द फॉक्सी को तब शायद यह विचार नहीं आया होगा कि जर्नलिज़्म में दी लल्लनटॉप नाम की मीडिया गिरोहों की इस घातक टुकड़ी ने अपने पाठकों की तार्किक क्षमता को हल्के में लेकर मारक मजा देने की कसम खा रखी है।
फैक्ट चेक के लिए बाजार जब कोई खबर ना हो तो लल्लनटॉप और उन्हीं की तरह की एक विचाधारा रखने वाले स्टाकर से फैक्ट चेकर बने ऑल्ट न्यूज़ ने यह सबसे आसान तरीका बना लिया है कि फेकिंग न्यूज़ का ही फैक्ट चेक कर के जीवनयापन किया जाए। वैसे भी चुनाव नतीजों से हतोत्साहित दी लल्लनटॉप को फैक्ट चेक के नाम पर गोभी के पत्तों में कीड़ों तक को ढूँढता हुआ भी देखा गया है।
क्या है मामला?
हास्य-व्यंग्य लिखने वाली वेबसाइट द फॉक्सी ने अपनी वेबसाइट पर सितंबर 12, 2018 को एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था – “Delhi Police Arrests Food Blogger; Accused Of Enjoying Meals Without Even Having A Food Blog” यानी, दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जो अपने आप को फ़ूड ब्लॉगर बताकर कैफे और रेस्टॉरेंट्स से फ्री में खाना खाता था, जबकि उसका कोई फ़ूड ब्लॉग था ही नहीं।
Delhi Police Arrests Food Blogger; Accused Of Enjoying Meals Without Even Having A Food Blog https://t.co/dHZOo0PlGN
इस हेडलाइन को देखकर ही प्रथमद्रष्ट्या यह स्पष्ट हो जाता है कि यह कोई व्यंग्य होगा। लेकिन जब बात ‘दी लल्लनटॉप’ की आती है तो मामला जरा दूसरा हो जाता है। दी लल्लनटॉप ने इस हेडलाइन को चुनाव के बाद समय निकालकर बेहद मार्मिक तरीके से इसका फैक्ट चेक अपने कर्मचारी से करवाया और फिर उसे यह यूट्यूब पर पढ़वाया भी गया क्योंकि अगर पकड़े भी गए तो दी लल्लनटॉप शायद जानता है कि जवाब में अपने पाठकों को ‘ही ही ही’ कर के अपनी विश्वसनीयता साबित कर सकता है और साहित्यिक तरीके से अपने पाठक को वो कसम याद दिला सकता है, जिसमें उन्हें मारक मजा दिलवाने की अटूट कसम खाई थी।
लगभग नौ महीने पुरानी इस फेकिंग न्यूज़ को दी लल्लनटॉप ने गंभीरता से लेते हुए इसे यूट्यूब पर भी बेचकर अपने पाठकों को जमकर उल्लू बनाया है। द फॉक्सी द्वारा अपने लेख में लिखे गए काल्पनिक नाम, स्वाति आदि को बेहद मार्मिक तरीके से दी लल्लनटॉप ने पड़ताल करते हुए अंत में निष्कर्ष भी निकालते हुए बताया कि इस फ़ूड ब्लॉगर को ऐसा करने के लिए जेल भी हुई।
निम्न तस्वीरों में आप ‘फैक्ट चेक’ की निर्मम हत्या होते हुए अपनी नग्न आँखों से देख सकते हैं
बता दें कि दी लल्लनटॉप में ऐसा चलता रहता है। अक्सर इन्हें ट्रैफिक जुटाने के लिए MEME बनाने वाले पेजों पर 10 पेजों के गद्य लिखते हुए भी पाया जाता है, जिसमें किसी न किसी तरीके से ये ब्राह्मणवाद से लेकर पितृसत्ता और मनुवाद को ठूँसकर ज्ञान देते हुए पाए जाते हैं। इसी तरह से हाल ही में दी लल्लनटॉप ने फेकिंग न्यूज़ की भी एक खबर का फैक्ट चेक किया था और अपने पाठकों को समझाया था कि यह फेकिंग न्यूज़ उन्हें फेक लगी इसलिए इसका फैक्ट चेक किया गया।
इसी तरह से गाड़ियों पर EVM भरकर ले जाने का भी झूठ दी लल्लनटॉप ने जमकर बेचा लेकिन फिर भी राहुल गाँधी की EVM हैक होने से नहीं रोक पाए। यह मीडिया का इतना बेशर्म पहलू है कि स्पष्टीकरण के बाद भी दी लल्लनटॉप के द्वारा यह खबर सोशल मीडिया से लेकर बाकायदा यूट्यूब तक पर दिखाकर जमकर भ्रांतियाँ, अफवाह और फेक न्यूज़ फैलाई गई।
हमारी सलाह
दी लल्लनटॉप को एवेंजर्स से समय में पीछे जाने वाली मशीन लाकर हिटलर और तमाम समकालीन लोगों के अंग विशेष की नाप-छाप पर ही ध्यान देना चाहिए और इस फैक्ट चेक के टंटे में नहीं पड़ना चाहिए। या फिर अपना नाम भी फेकिंग न्यूज़ वर्जन 2.0 कर लेना चाहिए। फिर भी अगर समय बिताने के लिए कुछ काम करना ही हो तो जेसीबी की खुदाई देखकर जीवनयापन कर सकते हैं। यदि हिटलर के लिंग की नाप रखने से दी लल्लनटॉप को फुरसत मिले, तो उसे समय निकालकर नरेंद्र मोदी द्वारा जारी की गई कुछ योजनाओं का लाभ भी उठाना चाहिए, (यदि नरेंद्र मोदी की योजनाओं को इस्तेमाल करने में उन्हें कोई आपत्ति ना हो तभी) और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना द्वारा कुछ लोन लेकर स्वरोजगार की राह अपनानी चाहिए। लोन के लिए अप्लाई करने की विस्तृत प्रक्रिया इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।
अभी हटा ली वीडिओ और अपडेट कर दिया आर्टिकल
हालाँकि, अब लल्लनटॉप ने विडियो हटा दिया है और आर्टिकल को भी अपडेट किया है। लेकिन, मूर्खता पकड़े जाने पर भी उन्होंने अपनी प्रकृति नहीं त्यागी और खुद को दोष देने की जगह फेक न्यूज़ के फैलाव पर दोष मढ़ा। जो लोग meme तक के फैक्ट चेक करते हों, उनके द्वारा ऐसा लंगड़ा कुतर्क रखना ठगी ही है। आप भी मूर्खतापूर्ण ‘नोट’ को यहाँ पढ़ लीजिए कि अपने आलस्य से इन्होंने न सिर्फ सितम्बर 2018 की ‘ख़बर’ का फैक्ट चेक किया बल्कि, ये भी नहीं देखा कि जब फैक्ट चेक कर रहे हैं तो कम से कम उसका उद्गम तो जान लें। फैक्ट चेक के समय तो आम लेख से कहीं ज्यादा सतर्कता होनी चाहिए, लेकिन लल्लनटॉप को क्या, वो तो मारक मज़ा देते हैं।
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद से ही कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड़े हुए हैं। उन्होंने पिछले दिनों हुई कॉन्ग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में इस्तीफे की पेशकश भी की थी, मगर उसे नामंजूर कर दिया गया। इसके बावजूद राहुल गाँधी इस्तीफा देने की जिद पकड़े हुए हैं और तमाम कॉन्ग्रेसी नेता उन्हें मनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसी बीच भाजपा नेता हिमांत विश्व शर्मा ने इस पर चुटकी ली है। उन्होंने कहा कि राहुल गाँधी का अध्यक्ष पद पर बने रहना भाजपा के लिए अच्छा है, मगर लोकतंत्र के लिए नहीं। उनका कहना है कि जीवंत लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना बेहद जरूरी होता है।
14 साल तक कॉन्ग्रेस में रहने के बाद 2015 में भाजपा में शामिल हुए नेता हिमांत ने कहा, “अगर राहुल गाँधी अध्यक्ष पद पर बने रहते हैं, तो विपक्ष के लिए कोई उम्मीद नहीं है, मगर यदि भाजपा के नजरिए से देखें, तो अगर राहुल गाँधी अगले 50 वर्षों तक अध्यक्ष रहेंगे, तो हमें खुशी होगी।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के लिए एक जीवंत विपक्ष की आवश्यकता होती है, और जब तक राहुल गाँधी विपक्ष और कॉन्ग्रेस का चेहरा हैं, ऐसा होना संभव नहीं है। यदि विपक्ष के चेहरे के रूप में राहुल गाँधी न हो तो इसकी संभावना है कि आने वाले दिनों में एक उभरता हुआ जीवंत विपक्ष देखने को मिले।
बता दें कि, हिमांत विश्व शर्मा ने पूर्वोत्तर के लिए भाजपा की रणनीति को तैयार किया था जिससे पार्टी को सभी सात राज्यों में जीत हासिल करने में मदद मिली। असम में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने विपक्षी कॉन्ग्रेस पर स्पष्ट बढ़त ले ली थी और जून में खाली हो रही दो राज्यसभा सीटों को जीतने की उम्मीद की थी। इनमें से एक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सीट भी है।
गौरतलब है कि, हिमांत विश्व शर्मा ने रविवार (मई 26, 2019) को कहा कि भाजपा और उसके सहयोगी असोम गण परिषद (एजीपी) 14 जून को खाली होने वाले दो राज्यसभा सीटों के लिए एक-एक उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्रीय मंत्री और लोजपा नेता रामविलास पासवान को असम से राज्य सभा की सीट मिल सकती है। रामविलास पासवान ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा था।