गृह मंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर में सीमा पार व्यापार को निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए हैं। सरकार ने ये कदम उन रिपोर्ट्स को बाद उठाया है, जिनमें बताया जा रहा है कि पाकिस्तान में रहने वाले कुछ लोग नियंत्रण रेखा (LOC) के रास्ते होने वाले व्यापार मार्गों का दुरुपयोग कर रहे हैं और इसके जरिए अवैध हथियार, मादक पदार्थों और नकली मुद्रा आदि भेज रहे हैं। गृह मंत्रालय के द्वारा जारी किए गए नोटिस में कहा गया कि जम्मू-कश्मीर में 19 अप्रैल से सरहद पार व्यापार नहीं किया जाएगा।
MHA: So it’s decided to suspend LoC trade at Salamabad & Chakkan-da-Bagh in J&K. Meanwhile, stricter regulatory&enforcement mechanism is being worked out & will be put in place in consultation with various agencies. The issue of reopening of LoC trade will be revisited thereafter https://t.co/kl9KSI3Uno
NIA द्वारा कुछ मामलों की चल रही जाँच के दौरान यह सामने आया है कि LOC के रास्ते होने वाले व्यापार में कुछ चिंताजनक व्यापारिक कार्यों को अंजाम देने वाले लोग आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से बहुत करीब से जुड़े हैं, इसलिए जम्मू और कश्मीर में सलामाबाद और चक्कां-दा-बाग में LOC व्यापार को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है। इस बीच, विभिन्न एजेंसियों के परामर्श के बाद सख्त विनियामक और प्रवर्तन तंत्र विकसित कर लागू किया जाएगा। इसके बाद LOC पर व्यापार को खोलने के मुद्दे पर फिर से विचार किया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर सीमा पर होने वाले व्यापार के जरिए सामान्य उपयोग की चीजों-उत्पादों का आदान-प्रदान होता है। सप्ताह में 4 दिन होने वाला यह व्यापार बार्टर सिस्टम और जीरो ड्यूटी पर आधारित है। व्यापार के दो केंद्र हैं, इनमें बारामूला के उरी और सलामाबाद, पूंछ का चक्कां-दा-बाग शामिल है।
गौरतलब है कि पुलवामा हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान से MFN का दर्जा वापस ले लिया था। इस दौरान भी सरकार को व्यापार के जरिए अनैतिक गतिविधियों के संचालन की सूचनाएँ मिल रही थीं। इसी के मद्देनजर सरकार ने तत्काल प्रभाव से जम्मू-कश्मीर में मौजूद सलामाबाद और चक्कां-दा-बाग से व्यापार को स्थगित कर दिया है।
राजनीति में बॉलीवुड की सक्रियता लगातार बढ़ती ही जा रही है। आजकल बॉलीवुड अभिनेत्री पायल रोहतगी को भी लोकसभा चुनावों के बीच सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को प्रोपगैंडा फैलाने वाले लोगों के खिलाफ जागरूकता फैलाते हुए देखा जा रहा है। इस क्रम में इस बार पायल रोहतगी के निशाने पर हैं आलिया भट्ट और उनकी मम्मी सोनी राजदान। ये वही सोनी राजदान हैं, जिन्होंने हाल ही में भारत में असहिष्णुता का हवाला देकर भारत छोड़कर पाकिस्तान जाकर रहने की बात कही थी।
पायल रोहतगी ने एक नया वीडियो जारी करते हुए कहा है कि सोनी राजदान इंडियन नहीं बल्कि ब्रिटिश मुस्लिम है और भड़काऊ बातें बोलकर लोगों के बीच डर फैलाती हैं, फिर घृणा के विरोध में वोट करने की अपील का नाटक करती हैं। साथ ही, सोनी राजदान को दादी बोलते हुए उन्होंने कहा कि वो सठिया गई हैं।
पायल रोहतगी का कहना है कि आलिया भट्ट और उनकी माँ सोनी राजदान देश में वोट नहीं डाल सकतीं। पायल ने एक वीडियो जारी कर इस बारे में बताया था। पायल ने सोनी राजदान पर आरोप लगाते हुए कहा, “वह देश में चुनावों के बीच मतदाताओं को भटकाने की कोशिश कर रही हैं।”
पायल का अब एक और नया वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में पायल कहती हैं कि सोनी राजदान ने ट्विटर पर पायल को ब्लॉक कर दिया है। पायल अपने वीडियो में कहती हैं, “सोनी राजदान कह रही हैं कि प्यार के लिए वोट कीजिए और मुझे ब्लॉक कर के वह प्यार का संदेश दे रही हैं। क्योंकि मैंने उनकी सिटीजनशिप के बारे में कहा है।”
पायल अपने वीडियो के साथ कैप्शन में लिखती हैं, “British Muslim दादी जी सठिया गई है।” पायल इसके साथ ही लिखती हैं, “मैं भारतीय मुस्लिमों से प्यार करती हूँ, लेकिन रोहिंग्या मुस्लिम, बंगलादेशी मुस्लिम, पाकिस्तानी मुस्लिम से इतना प्यार नहीं करती कि भारत में रहने वाले भारतीय नागरिकों का हक छीन के उनको दे दूँ। भारत पर सभी भारतीय नागरिकों का हक बनता है जिनके पूर्वज यहाँ थे।”
पायल अपने वीडियो में कह रही हैं, “जुनैद नाम के लड़के को ट्रेन में सीट शेयर करने के नाम पर हुए बवाल में लिंच किया गया था, जबकि जुनैद की मौत ट्रेन में यात्रा कर रहे उन लोगों से फाइट के दौरान हुई थी, जो लोग उनके साथ यात्रा कर रहे थे। मामला सीट शेयरिंग का ही था, लिंचिंग या बीफ का नहीं। हमारे देश में सोनी राजदान जैसे कुछ ऐसे लोग हैं, जो भारतीय नागरिक न होने के बावजूद भी भड़काऊ ट्वीट करते हैं।”
पायल आगे कहती हैं, “सोनी राजदान और आलिया भट्ट दोनों ही भारत में वोट नहीं कर सकते हैं। लेकिन वह कह रही हैं कि वोट करते समय जुनैद को याद रखें, वह जुनैद जो आपसी झगड़े के दौरान गुजर गया था, जो कि ठीक बात नहीं थी। जुनैद की मौत को वह जबरदस्ती लिंचिंग और बीफ से जोड़कर दिखाने की कोशिश कर रही हैं। लोकसभा इलेक्शन की पोलिंग शुरू हो गई है। जिनको सच्चाई नहीं पता, वह इस तरह के भड़काऊ और गलत जानकारी वाले ट्वीट से अपना विचार बदल सकते हैं।”
पायल ने आगे कहा, “कुछ दिन पहले अमित शाह जी ने कहा था कि देश में NRC लागू करेंगे, जिसके बाद अवैध मुसलामानों को भारत से निकाल दिया जाएगा। शायद अमित शाह के इस फैसले की वजह से सोनी राजदान इस तरह के ट्वीट कर नफरत फैलाने की कोशिश कर रही हैं। अगर NRC लागू होता है, तो सोनी राजदान को भारत से वापस जाना पड़ सकता है, क्योकि सोनी राजदान और आलिया भट्ट के पास ब्रिटिश पासपोर्ट है।”
पायल आगे कहती हैं, “सोनी राजदान हमें ट्विटर पे ब्लॉक कर के ‘Vote against Hate’ कर के ट्वीट करती है, कितनी दोगली इंसान है। वो माफी नहीं माँगती कि कैसे वो जुनैद की नकली मॉब लिंचिंग वाली कहानी शेयर कर लोगों को गुमराह कर रही हैं और मानवता का ड्रामा कर रही हैं। यह मानवता इनको कश्मीरी पंडितो की उजड़ी हुई जिंदगी में नहीं दिखती। महबूबा मुफ्ती के ऊपर कश्मीर में पत्थरबाज पत्थर फेंकते हैं और हमें यह सुनकर अच्छा लगता है, क्योंकि वो पत्थरबाज को मासूम बच्चे मानती है।”
उत्तराखंड पुलिस ने कथित रूप से एक करोड़ रुपये के नोटों से भरे एक बैग को लूटने के आरोप में एक कॉन्ग्रेस नेता और तीन पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया है। लूटपाट की वारदात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से एक दिन पहले 4 अप्रैल की रात हुई थी। पुलिसकर्मिंयों को विभाग से बर्खास्त भी किया जा सकता है। पुलिस पकड़े गए चारों आरोपितों से लगातार पूछताछ कर रही है।
पुलिस महानिदेशक (कानून व व्यवस्था) अशोक कुमार ने कहा कि चारों को मंगलवार (अप्रैल 16, 2019) रात को गिरफ्तार किया गया, जिनकी पहचान कॉन्ग्रेस नेता अनुपम शर्मा, सब इंस्टपेक्टर दिनेश नेगी, कांस्टेबल मनोज अधिकारी, पुलिस ड्राइवर हिमांशु उपाध्याय के रूप में हुई है।
चारों पर विभिन्न आरोपों समेत प्रॉपर्टी डीलर अनुरोध पंवार को लूटने के आरोप लगाए गए हैं, जिसके पास एक काले थैले में कथित रूप से ₹1 करोड़ थे। यह घटना 4 अप्रैल की है। अनुरोध पंवार ने शुरुआत में जाँच अधिकारी को कहा था कि पैसे का प्रयोग उत्तराखंड में 11 अप्रैल को होने वाले चुनाव के लिए किया जाना था।
IG गढ़वाल की सरकारी गाड़ी में सवार होकर दिया लूट को अंजाम
प्रॉपर्टी डीलर अनुरोध पंवार निवासी कैनाल रोड, बल्लूपुर को WIC में आरोपित अनुपम शर्मा ने प्रॉपर्टी से संबधित रकम लेने के लिए बुलाया। अनुरोध जब वहाँ से बैग लेकर लौट रहे थे, तो रास्ते में होटल मधुबन के पास एक सफेद रंग की स्कॉर्पियो में बैठे तीन लोगों ने ओवरटेक कर उन्हें रोक लिया। उनके रुकते ही स्कॉर्पियो से दो वर्दीधारी पुलिसकर्मी उतरे। चुनाव की चेकिंग के नाम पर उन्होंने कार की तलाशी ली और उसमें रखा बैग कब्जे में ले लिया। 6 अप्रैल को अनुरोध ने दून पुलिस से शिकायत की। पुलिस ने जाँच शुरू की तो पाया कि स्कॉर्पियो IG गढ़वाल के नाम आवंटित है और उसमें बैठे दारोगा दिनेश नेगी, सिपाही हिमांशु उपाध्याय और मनोज अधिकारी ने वारदात को अंजाम दिया है।
प्रारंभिक जाँच से पता चला कि चुनाव उद्देश्यों के लिए कालेधन की तलाशी के नाम पर तीनों पुलिसकर्मियों ने पंवार का बैग जब्त कर लिया। पुलिसकर्मियों ने पंवार को धमकाया और उसे वहाँ से भाग जाने के लिए कहा।
2-3 दिनों के बाद पीड़ित अनुरोध पंवार ने पैसे के बारे में पता लगाना शुरू किया और विभिन्न पुलिस स्टेशनों के चक्कर लगाए। हालाँकि, कोई सूचना नहीं मिलने के बाद, पंवार ने एक FIR दर्ज कराई और पूरी घटना के बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सूचित कर दिया।
अशोक कुमार ने कहा कि उन्होंने रिद्धिम अग्रवाल की अगुवाई में विशेष कार्य बल (SIT) को जाँच सौंप दी थी। एक सप्ताह की जाँच के बाद, SIT ने 4 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। कुमार ने कहा, “तीनों पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। उन्हें संभवत: सेवा से हटाया जा सकता है, क्योंकि यह मामला पुलिस विभाग के लिए शर्मिदगी का विषय है।”
आज लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के शुरू होते ही पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर राजनीतिक हिंसा और चुनावी हिंसा की ख़बरें सामने आ रही हैं। इस बीच, एक ख़बर सामने आई है कि राज्य के रायगंज निर्वाचन क्षेत्र में एक मुस्लिम बहुल गाँव के हिन्दू निवासियों को मतदान करने से रोक दिया गया।
न्यूज़ चैनल के दल ने बूथ के प्रभारी और पहचान अधिकारी के साथ-साथ उन लोगों को भी सामने किया, जिन्होंने आरोप लगाया था कि उनके नाम पर छद्म-वोट (proxy-vote) डाले गए हैं। बूथ के स्टाफ ने कोई जवाब नहीं दिया।
टाइम्स नाउ की ख़बर बताती है कि रायगंज निर्वाचन क्षेत्र के बूथ संख्या 191 पर पीठासीन अधिकारी को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि वे लोग कौन थे जिन्होंने अपना वोट डाला, जबकि गाँव के लगभग 600 हिन्दुओं ने यह दावा किया कि वे अपना वोट डालने में असमर्थ थे।
ख़बर में यह भी स्पष्ट किया गया कि इलाक़े में बड़े पैमाने पर छद्म वोटिंग हुई है। कुछ हिन्दुओं ने आरोप लगाया है कि उन्हें पुरुषों के समूहों द्वारा मतदान केंद्र के पास जाने से रोका गया। अन्य हिन्दुओं ने दावा किया है कि जब वे मतदान केंद्र तक पहुँचने में कामयाब रहे, तो उन्हें पता चला कि उनके नाम पर पहले ही डाले जा चुके हैं।
पहला मतदान अधिकारी, जो पहचान अधिकारी भी है, इस बात पर कोई जवाब नहीं दे पाया कि इस तरह का छद्म वोटिंग कैसे हुई। पीठासीन अधिकारी ने कथित तौर पर दावा किया है कि मतदाताओं की पहचान की पुष्टि करना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है।
द टाइम्स नाउ के दल ने बड़े पैमाने पर छद्म मतदान का खुलासा किया, जिसमें पीठासीन अधिकारी द्वारा कथित रूप से दुर्व्यवहार और धमकी भी दी गई थी। ख़बर में कहा गया है कि हिन्दुओं के छद्म-वोटिंग और ज़बरदस्ती उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करने से रोकने जैसे मामले निर्वाचन क्षेत्र के अन्य कई गाँवों में भी हुए हैं।
Violence marred polling in Raiganj as BJP candidate Debasree Chaudhuri alleged that TMC workers tried to capture a polling booth
Police lobbed tear gas shells after stones were pelted and bombs were hurled by unknown miscreants in Chopra
भाजपा पश्चिम बंगाल ने इस मुद्दे को उठाया है और इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग में गए हैं। यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि रायगंज निर्वाचन क्षेत्र से पहले भी हिंसा और चुनावी कदाचार की खबरें आ रही थीं। भाजपा उम्मीदवार देबाश्री चौधरी ने आरोप लगाया था कि TMC कार्यकर्ता मुस्लिमों के समूह के साथ प्रचार कर रहे थे और उन्होंने वहाँ एक बूथ पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश भी की थी।
महबूबा मुफ़्ती कश्मीर की हैं। महबूबा जी महिला हैं। महबूबा जी मजहब विशेष की हैं। महबूबा जी कश्मीरी आतंकियों की हिमायती हैं। महबूबा जी, इनसे सबसे अलग, एक नेत्री हैं। नेत्री शब्द नेता का स्त्रीलिंग है, लेकिन इस में भी नेता या ‘नेत्ता’ वाले सारे गुण होते हैं। यही गुण आपको मजबूर करता है कि आप वाहियात बातें लिखती रहें ताकि अपने जनाधार को किसी भी क़ीमत पर बचाया जा सके।
महबूबा जी जानती हैं कि कश्मीर में उनकी पार्टी की पोजिशन कैसी है, इसलिए वो कभी आतंकियों को माटी के पूत तो कभी आतंकियों को नेता बताती रहती हैं। साथ ही, महबूबा जी यह भी कहती रहती हैं कि धारा 370 हटा तो पूरा देश जल उठेगा, कोई तिरंगा नहीं उठाएगा और यहाँ तक कि कश्मीर हिन्दुस्तान से अलग हो जाएगा और उनके हाथ काट दिए जाएँगे जो ऐसी कोशिश करेंगे। हालाँकि, महबूबा मुफ़्ती ने यह नहीं बताया कि वो कश्मीर को हिन्दुस्तान से अलग कराएँगी कैसे।
अब कल की बात करते हैं जब श्रीमती महबूबा ने ट्वीट के माध्यम से जीवन-दर्शन दिया कि हर मानव, चाहे वो आतंकी ही क्यों न हो, मृत्यु के बाद मर्यादा का पात्र होता है। आगे उन्होंने भारतीय सेना को आदतानुसार घेरते हुए कहा कि उन्हें पता चला है कि सेना आतंकियों के लिए रसायनों का प्रयोग करती है जिससे लाश बिगड़ जाती है। महबूबा लिखती हैं कि सोचिए उस बालक की स्थिति जो अपने भाई की जली-कटी लाश देखेगा। क्या वह लड़का बंदूक उठा ले तो कोई आश्चर्य होगा हमें?
Every human even a militant deserves dignity after death. Armed forces use of chemicals in encounters disfiguring their bodies is inhuman.Imagine the emotions that’ll overcome a boy who sees his brother’s mutilated charred body. Would you be surprised if he picked up a gun? https://t.co/nzBYxyHk6z
महबूबा जी, ऐसा है कि आप कई मायनों में गलत हैं। पहली बात तो यह है कि यह ज्ञान अपने पास रखिए कि आतंकियों की लाश भी मर्यादित व्यवहार का पात्र होती है। ये किसने कहा, और कहाँ कहा, और क्यों कहा, यह मुझे पता नहीं लेकिन मेरे लिए आतंकी और मर्यादा, टेररिस्ट और डिग्निटी, दोनों शब्द एक पंक्ति में आने योग्य नहीं हैं। दूसरी बात, फर्जी बातों कहते हुए सेना पर लांछन तो मत लगाओ देवी! क्योंकि इस सेना ने जितने जवान खोए हैं, जिस हालात में खोए हैं, और फिर भी जिस सहिष्णुता का परिचय दिया है, उसके मत्थे कैमिकल इस्तेमाल करने की बातें अविश्वसनीय ही लगती हैं।
किस सेना पर इस तरह के आरोप लगा रही हैं आप? भारतीय सेना पर जो सिर्फ सहती आई है, जिन्होंने ग़ज़ब का धैर्य दिखाया है, जिन्होंने हर बाढ़ और आपदा में उन्हीं लोगों को सहारा दिया है जिनकी गलियों में उनकी गाड़ियों पर पत्थर, और उनके जवानों के पैदल जाने पर थप्पड़ तथा गालियाँ सही हैं। इस सेना के तो पाँव भी चूमो तो जन्नत मिल जाए जिन्होंने हर तरह के दुर्व्यवहार के बाद भी, असीम धैर्य का परिचय दिया है।
जिसने मानवता के खिलाफ, अपने मज़हब के नाम पर, या किसी और कारण से निर्दोषों को मारने के लिए हथियार उठा लिए हों, उसके लिए मेरे पास कोई दया, करूणा, क्षमा आदि नहीं। एक आतंकी सिर्फ मारता ही नहीं, वो ख़ौफ़ भी पैदा करता है, वो पूरे समाज को नकारात्मकता की ओर धकेल देता है। आतंकी वारदातों के बाद लोगों की दिनचर्या बदल जाती है, ज़िंदगियाँ बुरी तरह से प्रभावित होती हैं।
इसलिए, आतंकियों के लिए किसी भी तरह के मर्यादित व्यवहार की बात उनके ऊपर ही रहने दीजिए जिनके दोस्त, देशवासी, सहकर्मी, जवान या संबंधी उनका शिकार बने हैं। उनकी मर्ज़ी कि वो आतंकियों में ख़ौफ़ कैसे पैदा करें कि अगर कोई बच्चा अपने भाई की जली-कटी लाश देखे तो वो बंदूक न देखे, वो यह देखे कि बारह सालों के भीतर उसे भी सेना खोज कर मार देगी, अगर उसने गलत राह चुनी।
आखिर आतंकियों के सम्मान का कोई सोच भी कैसे सकता है? फिर याद आता है कि ये तो नेत्री भी हैं, इनको तो वोट भी वही लोग देते हैं जो आतंकियों के जनाज़े में टोपियाँ पहन कर पाकिस्तान परस्ती और भारत को बाँटने की ख्वाहिश का नारा लगाते शामिल होते हैं। आखिर महबूबा इन आतंकियों के सम्मान के लिए नहीं लड़ेगी तो कौन लड़ेगा!
महबूबा जी, अगर कोई बच्चा अपने भाई की लाश देख कर बंदूक उठाता है, और आपको आश्चर्य नहीं होता तो उस बच्चे की और आपकी अपनी परवरिश में समस्या है। मुझे दुःख होता है हर उस बच्चे के लिए जो आतंकी भाई की लाश को देख कर यह नहीं सोच पाता कि किसी निर्दोष की हत्या करना पूरी मानवता के खिलाफ अपराध है, बल्कि यह सोचता है कि उसके भाई को किसी ने मार दिया, तो वो भी किसी की जान ले लेगा।
इसके बाद आप आतंक और उसके कुत्सित चक्र को जस्टिफाय कर रही हैं कि चोर का बेटा चोर बने, रेपिस्ट का भाई पुलिस वाले के घर में बम फोड़ दे, और आतंकी के घर वाले उसकी मौत पर घर से आतंकी होने का कैम्पस सेलेक्शन लेकर एरिया कमांडर बन जाएँ। अगर ऐसा करना एक प्राकृतिक चुनाव होता कि अपराधी के घर वाले, अपराधी की फाँसी पर राष्ट्र के खिलाफ होकर हथियार उठा लेते, तो अपराध कभी कम ही नहीं होते।
लेकिन, कश्मीरी परिवारों का तो पता नहीं, सामान्य बुद्धि का इंसान यह समझता है कि अगर सेना या पुलिस ने किसी आतंकी को, चाहे वो उसका घर वाला ही क्यों न हो, सजा दी है, या एनकाउंटर में वो मारा गया, तो वो एके सैंतालीस लेकर नमाज़ तो पढ़ नहीं रहा होगा, या प्रवचन तो दे नहीं रहा होगा। वो तो इसी फेर में होगा कि सैनिक दिखें तो उसको गोली मार दे। कभी वो गोली मार देता है, कभी सेना उसे घेर कर मार देती है। इसलिए, उसे सगे-संबंधी यह कहते हैं कि उसे वही मिला, जो उसने बोया था। ये न्याय है।
जबकि, आप या आपके राज्य के नेता जब इन आतंकियों की पैरवी में आवाज उठाते हैं, उन्हें एक मौका देने की बात करते हैं, शांति की पहल करने को कहते हैं, तो आप यह भूल जाते हैं कि सरकार ने हर संभव कोशिश कर ली लेकिन भारतीय लोगों की असमय मृत्यु पर रोक नहीं लगी। हर दूसरे दिन सेना के जवान, या आम आदमी को इनके आतंक ने निगल लिया। फिर इनके लिए कैसी दया?
इसलिए महबूबा जी, यह ध्यान रखिए कि लाशों का सम्मान तो ज़रूरी है, लेकिन उन लाशों का जिन्होंने समाज की रक्षा के लिए, उसकी बेहतरी के लिए, देश की सीमा और आंतरिक सुरक्षा के लिए जान दी हो। उन लाशों का सम्मान ज़रूरी है जिन्होंने गाँव-घर में एक अच्छा जीवन जिया, जिन्होंने कुछ वैसा नहीं किया जिससे समाज नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ हो। सम्मान उस सामान्य व्यक्ति के शव का होना चाहिए जो एक अच्छा व्यक्ति हो, अच्छा पिता हो, अच्छी माँ हो, बहन हो, भाई हो, पति हो, पत्नी हो, किसी का अच्छा मित्र रहा हो, और मानव जीवन की छोटी कमियों के बावजूद उसकी अच्छाई उसके अवगुणों पर भारी पड़ती हो।
आतंकी की लाश इनमें से किसी भी परिभाषा के दायरे में नहीं आती। आतंकियों को ठिकाने लगाने में सरकार का खर्चा होता है। पैसे भी जाते हैं, समय भी, वरना उत्तम तो यही होता जो मैं लिख या बोल नहीं सकता। वैसे भी, जब आतंकी कोई वारदात करता है, तो यही लोग तो सबसे पहले कहते हैं कि वो सच्चा मजहबी नहीं था, आतंक का मज़हब नहीं होता आदि। फिर मरने के बाद उसकी लाश को मज़हब की ज़रूरत क्यों पड़ जाती है?
ऐसे लोग तो उदाहरण बनाए जाने चाहिए ताकि इन्हें देख कर आने वाली पीढ़ी उन्हें हीरो की तरह नहीं, एक आतंकवादी की तरह देखे। माफ कीजिएगा, कश्मीर में तो दोनों शब्द पर्यायवाची हैं। मेरे कहने का अर्थ है कि इन्हें अपनी ही आबादी, अपने ही समाज, अपने ही राज्य और राष्ट्र का दुश्मन समझा जाए ताकि परिवार वाले भी इन्हें नकार दें।
जब आपके जैसे लोग ऐसे ट्वीट करते हैं, और जब हजारों लोग उन आतंकियों के जनाज़े में जाते हैं तब संदेश यही जाता है कि आतंकी ही सही था। अच्छा लगा कि कम से कम आपके लिए इस ट्वीट के हिसाब से आतंकी गलत तो है। लेकिन जब आप उसे मर्यादा और सम्मान देने की बात करते हैं तो आप उन लोगों को मंसूबों का हवा दे रही होती हैं जो इसे आज़ादी की लड़ाई मानता है, जिसके लिए इस्लाम का परचम लहराना मुख्य लक्ष्य है, जिसके लिए पूरी दुनिया पर ख़िलाफ़त के लिए लड़ना शहादत है।
इसलिए, एक ज़िम्मेदार जगह से इस तरह की भाषा का प्रयोग, और यह कहना कि आतंकी के भाई का बंदूक उठा लेना नेचुरल सी बात है जिस पर किसी को आश्चर्य नहीं होगा, तो आप उसी व्यवस्थित आतंक की बात के पक्ष में खड़ी हो रही हैं, जहाँ हर परिवार का हर व्यक्ति आतंक के सहारे, आज़ादी और इस्लामी शासन की तथाकथित लड़ाई लड़ रहा है। ये जस्टिफिकेशन कश्मीरी जनता को तीस सालों से साल रहा है क्योंकि जिस आवाम के नेता और नेतृत्व आतंकियों के भाई के आतंकी हो जाने पर आश्चर्य नहीं कर पा रहे हों, वहाँ की जनता के लिए तो सच में यह एक नेक कार्य है।
व्यापक हिंसा होने की आशंकाओं के चलते पश्चिम बंगाल में चुनाव सात चरणों में सम्पन्न कराए जाने का निर्णय लिया गया, ताकि मतदान के लिए अधिकतम सुरक्षा बल तैनात किए जा सकें। लेकिन लगता है कि इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है, क्योंकि राज्य में आज दूसरे चरण के मतदान के दौरान हिंसा की कई ख़बरें सामने आई हैं।
ख़बर के अनुसार, दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र के चोपरा में व्यापक हिंसा देखी गई, जहाँ उपद्रवियों ने मतदाताओं को वोट डालने से रोकने की कोशिश की। स्थानीय लोगों ने इसके विरोध में बाहर आकर राजमार्ग को अवरुद्ध किया। सुरक्षा बलों को आँसू गैस के गोले दागने पड़े और लोगों पर लाठीचार्ज भी करना पड़ी, जिससे भीड़ पर क़ाबू पाया जा सके। चुनाव अधिकारियों के अनुसार, बाद में स्थानीय लोगों को सुरक्षा बलों के संरक्षण में मतदान करने की अनुमति दी गई।
उसके बाद, TMC के कार्यकर्ताओं ने चोपरा में दिघीरपार पोलिंग बूथ के अंदर भाजपा कार्यकर्ताओं से मार-पीट की। इस झड़प के दौरान, एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को तोड़ दिया गया।
इस वीडियो को देखने से पता चलता है कि पूरे पोलिंग बूथ पर काफ़ी बर्बरता की गई थी, और VVPAT मशीन और बैलट यूनिट सहित EVM ज़मीन पर पड़ा था। इस घटना के बाद चोपरा के बूथ नंबर 112 पर मतदान रोक दिया गया।
दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र की एक अन्य घटना में, EVM में हेराफेरी की घटना सामने आई। बागडोगरा के एक मतदान केंद्र में, भाजपा उम्मीदवारों को वोट ना पड़े, इसके लिए दिमाग लगाया गया। यहाँ EVM पर भाजपा के प्रतीक चिन्ह के आगे और उम्मीदवार के नाम पर भी काला टेप चिपका हुआ पाया गया। इस बात के पता चलने के बाद बूथ में आधे घंटे के लिए मतदान रोक दिया गया। टेप हटाने के बाद बूथ में मतदान फिर से शुरू किया गया और अधिकारियों द्वारा EVM की जाँच की गई।
बीबीसी पत्रकार तुफ़ैल अहमद ने दो साल पहले एक लेख का लिंक देकर कर ट्वीट किया था- ‘Hindu Terrorism is a valid Concept’ अर्थात हिन्दू आतंकवाद कोई अफवाह नहीं बल्कि सत्य और वास्तविक परिघटना है। तुफ़ैल अहमद ने MEMRI की वेबसाइट पर 2010 में प्रकाशित अपने लेख में यह सिद्ध करने का भरसक प्रयास किया था कि हिन्दू भी आतंकवादी हो सकता है। अपने तर्कों के समर्थन में उन्होंने मीडिया में प्रकाशित ढेर सारी रिपोर्ट का संदर्भ दिया था।
तुफ़ैल अहमद निस्संदेह एक सम्मानित पत्रकार हैं और उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद पर गहन शोध भी किया है। लेकिन आज उनके नौ वर्ष पुराने उस लेख की चर्चा प्रासंगिक इसलिए हो जाती है क्योंकि अहमद की जमात में शामिल लोग आज फिर से सक्रिय हो गए हैं जो यह कहते हैं कि हिन्दू भी आतंकी हो सकता है। गत कुछ महीनों में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित और असीमानंद को कोर्ट से आंशिक राहत मिलने पर कुछ पत्रकार हद दर्ज़े तक असहिष्णु हो गए हैं। और जब से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है तब से उन्हें ‘आतंकी’ प्रत्याशी कहकर संबोधित किया जा रहा है।
बहरहाल, तुफैल अहमद ने वास्तव में कुछ मीडिया रिपोर्ट को इकट्ठा कर लेख लिखा था। उन्हें शायद यह पता नहीं है कि मीडिया प्रचार का माध्यम है न कि किसी समुदाय को आतंकी घोषित करने की स्थापना करने का। मीडिया में आई रिपोर्ट से यह स्थापित नहीं किया जा सकता कि हिन्दू आतंकवाद वास्तविकता है अथवा नहीं। हिन्दू आतंकवाद मिथक है अथवा वास्तविकता इस पर विचार करने से पहले यह सोचना जरूरी है कि आतंकवाद की क्या परिभाषा है।
किसी भी शब्द की परिभाषा दो प्रकार से वैध मानी जाती है- या तो वह शब्द अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा परिभाषित हो अथवा अकादमिक जगत में उसकी सर्वमान्य परिभाषा होनी चाहिए। दोनों ही न होने पर घटनाओं का एक इतिहास होना चाहिए जो उस ‘phenomena’ की व्याख्या करने में सहायक हो। दुर्भाग्य से आतंकवाद की कोई एक परिभाषा अंतरराष्ट्रीय कानून में नहीं लिखी है। अभी तक केवल तीन देशों- जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका के विभिन्न कानूनों में ही आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक Comprehensive Convention on International Terrorism नामक संधि विचाराधीन है जिसपर अभी तक सदस्य देशों की सहमति नहीं बन पाई है।
ऐसी स्थिति में हमें आतंकवाद की अकादमिक परिभाषा से काम चलाना पड़ेगा। लेकिन अकादमिक जगत भी आतंकवाद की किसी एक परिभाषा से सहमत नहीं है। तो क्या यह मान लिया जाए कि आतंकवाद कुछ होता ही नहीं है? यह तो संभव नहीं। बिना आग के धुँआ नहीं होता। आधुनिक युग में आतंकवाद का स्वाद पहली बार संभवतः ब्रिटेन ने चखा था जब वहाँ आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के लड़ाके राजनैतिक हत्याएँ करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में और युद्ध के बाद अमेरिका में कम्युनिस्टों को आतंकवादी कहा जाता था। सन 1964 में फ़लस्तीन को मुक्त करवाने के लिए बने संगठन PLO को आतंकी संगठन का दर्जा दिया गया था।
सोवियत संघ के विघटन के बाद अफ़ग़ानी मुजाहिद जब पाकिस्तान की रणनीति के तहत भारत में खून खराबा करते तो विश्व उसे भारत की आंतरिक कानून व्यवस्था की समस्या बताता था। लेकिन 9/11 के बाद आतंकवाद किसी एक देश की ‘आंतरिक’ समस्या नहीं रह गया था। जब अमेरिका ने आतंकवाद का स्वाद चखा तब उसने ग्लोबल वॉर ऑन टेररिज्म प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य अमेरिका के हित साधना ही था।
बहरहाल, आतंकवाद के इतिहास से हमें यह समझ में आता है कि आज के वैश्विक परिदृश्य में आतंकवाद एक ऐसी परिघटना है जिसमें राजनैतिक हितों को साधने के लिए सामान्य जीवन जी रहे निर्दोष लोगों का खून बहाया जाता हो। यहाँ ‘राजनैतिक हित’ का लक्ष्य किसी देश की सत्ता से सीधा टकराव हो सकता है। इसकी प्रेरणा राजनैतिक स्वार्थ भी हो सकती है और मजहबी उन्माद भी हो सकता है। जब विशुद्ध राजनैतिक कारण हों तब ‘किसी के लिए आतंकवादी, किसी दूसरे के लिए क्रांतिकारी’ बन जाता है। उसी तरह जैसे क्रांतिकारी भगत सिंह जो अपनी मातृभूमि के लिए लड़े थे, अंग्रेजों के लिए आतंकवादी थे।
लेकिन जब मजहबी उन्माद जैसे कारण हों तब क्रांतिकारी और आतंकवादी एक ही सिक्के के दो पहलू नहीं हो सकते। जब 9/11 की घटना को अंजाम देने वाले मोहम्मद अट्टा की ज़ुबान पर क़ुरआन की आयतें हों तब वह केवल आतंकवादी ही हो सकता है। क्योंकि मजहब व्यक्तियों के समूहों को जीवन जीने का तरीका सिखाता है। यदि उस तरीके को गलत रूप में पेश करने वाले लोग दूसरे मत या मजहब को मानने वालों की निर्मम हत्या करना सिखाते हों तो ऐसे लोगों को क्रांतिकारी नहीं कहा जा सकता।
अब यदि हम इस कसौटी पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ के जुमले को कसें तो पाएंगे कि हिन्दू आतंकवाद न तो आतंकवाद की किसी कानूनी परिभाषा पर सही बैठता है न अकादमिक पुस्तकों में लिखी किसी परिभाषा से मेल खाता है और न ही ऐसा कोई इतिहास रहा है जो यह कहता हो कि हिन्दू समाज कभी आतंकी रहा है। ऐसे में जो लोग यह कहते हैं कि हिन्दू आतंकवाद एक वास्तविक परिघटना है उन्हें अपनी बौद्धिक क्षमता पर पुनर्विचार करना चाहिए।
हिन्दू आतंकवाद वास्तव में भारत की एक राजनैतिक पार्टी द्वारा एक समुदाय विशेष के तुष्टिकरण के लिए गढ़ा गया नैरेटिव था जिसकी बुनियाद ही झूठ पर रखी गई थी। इस पूरी कहानी की पोल गृह मंत्रालय के पूर्व अधिकारी आर वी एस मणि ने अपनी पुस्तक The Myth of Hindu Terror में खोली थी। मणि अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि NIA ने 2008 के मुंबई हमले के बाद 2009-10 तक जितनी भी जाँच की वह हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को प्रमाणित करने के उद्देश्य से की। समझौता, मालेगाँव और अजमेर शरीफ ब्लास्ट से जुड़े हर केस की हर जाँच में प्राथमिक साक्ष्य छोड़कर हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने की दिशा में जाँच की गई। गृह मंत्रालय में अधिकारी रहते हुए मणि पर भी दबाव डाला जाता था कि वे हिन्दू आतंकवाद को सिद्ध करने में साथ दें नहीं तो उनकी जान को खतरा था।
स्थिति यह थी कि गोवा में जब एक जगह हिन्दू जागरण मंच और सनातन संस्था ने दिवाली पर पुतले जलाने का कार्यक्रम किया तो NIA ने उसकी जाँच कर निष्कर्ष निकाल लिया कि वे लोग IED प्लांट करने की योजना बना रहे थे। मणि ने लिखा है कि किस तरह 26/11 के हमले को कथित हिन्दू आतंकवादियों के सिर मढ़ने का षड्यंत्र गृह मंत्रालय में चलाया जा रहा था। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, असीमानन्द और कर्नल पुरोहित समेत संघ के भी बड़े नेताओं को इसमें फँसाने की पूरी साज़िश थी।
आज भले ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के ऊपर से मामला पूरी तरह खतम न हुआ हो लेकिन यह भी सच है कि कॉन्ग्रेस के कार्यकाल में ऐसा कोई भी व्यक्ति दंडित नहीं किया जा सका जिसे हिन्दू आतंकी कहा गया। यदि साक्ष्य और प्रमाण मौजूद थे तो मोदी सरकार आने से पहले कथित हिन्दू आतंकियों को सज़ा क्यों नहीं मिल सकी? आज जब साध्वी प्रज्ञा अपने ऊपर किए गए टॉर्चर को बताती हैं तो कोई पुलिस अधिकारी सामने आकर क्यों नहीं कहता कि यह झूठ है?
समझौता, मालेगाँव और अजमेर ब्लास्ट में पाए गए विस्फोटक भी पाकिस्तान की तरफ इशारा करते थे लेकिन जानबूझकर आज से दस साल पहले इस प्रकार का नैरेटिव गढ़ा गया ताकि हिन्दू आतंकवाद का एक इतिहास लिखा जा सके जिसके बल पर इस थ्योरी को प्रमाणित किया जा सके। संयोग से कॉन्ग्रेस के जाते ही इस नैरेटिव की बखिया उधड़नी प्रारंभ हो गईं। आज जो बुद्धिजीवी साध्वी प्रज्ञा के चुनाव लड़ने पर आतंकी कह कर सवाल उठा रहे हैं उनके प्रयास सफल नहीं होने वाले। हिन्दू आतंक का शिगूफा बहुत जल्दी ही जनता की स्मृति से ओझल हो चुका है क्योंकि किसी भी प्रोपगैंडा को जीवित रहने के लिए घटनाओं की एक शृंखला खड़ी करनी पड़ती है। दुर्भाग्य से तीन चार घटनाओं को छोड़कर हिन्दू आतंक को प्रमाणित वाली कोई घटना घटी ही नहीं।
#WATCH: Alleging torture by jail officials, Sadhvi Pragya Singh Thakur, BJP Lok Sabha candidate from Bhopal, breaks down while addressing the party workers pic.twitter.com/UVUomvmJZ2
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और कन्नौज से प्रत्याशी डिंपल यादव ने बुधवार (अप्रैल 17, 2019) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आजम खान को डिफेंड करते हुए उनकी ‘अंडरवियर’ वाली टिप्पणी को “छोटी सी बात” बताया।
रामपुर के प्रत्याशी और विवादित बयानों के ब्रांड अम्बैसडर बन चुके आजम खान के बचाव में बात करते हुए डिंपल यादव ने कहा कि बीजेपी जनता का असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए तरह-तरह की बातें बना रही है। उनकी मानें तो मीडिया को इन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
इस कॉन्फ्रेंस के दौरान डिंपल यादव ने भाजपा पर आरोप मढ़ा कि वे महिलाओं के सम्मान को लेकर गंभीर नहीं हैं। उनकी मानें तो भाजपा महिलाओं को लेकर गंभीर होती तो वह बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती पर टिप्पणी करने वाले दयाशंकर को दोबारा उपाध्यक्ष नहीं बनाती।
राजनीति में सराबोर हो चुकीं डिंपल यादव ने इस दौरान एक बार भी जया प्रदा के पक्ष में या आजम खान के इस बयान पर प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं समझा, बल्कि वे इस बात को छोटी सी बात बताकर दूसरी पार्टियों पर निशाना साधती रहीं।
उनका कहना है कि उनके ख़िलाफ़ और प्रियंका गाँधी के ख़िलाफ़ भी अभद्र बातें की गईं, लेकिन तब मीडिया में इन बातों को तूल नहीं दिया गया। उनकी मानें तो आजम खान के इस बयान पर मीडिया में बात होने के सिवा इस पर बात होनी चाहिए कि भाजपा ने 5 साल में क्या काम किए।
It is matter of deep regret that this kind of politician is present in the field of election,she doesn’t feel griefnes of a women, canजयाप्रदा पर आजम खान की बदजुबानी को डिंपल यादव ने कहा- छोटी बात https://t.co/hFywQn4C9U via @aajtak
भाजपा की कमियों को हाइलाइट करते हुए डिंपल यादव ने इस दौरान अपने पति अखिलेश द्वारा शुरू की गई महिला कल्याण हेतु योजना का भी जिक्र किया। हालाँकि इस दौरान (शायद) वे भूल गईं कि आजम खान के विवादित बयान पर एक्शन लेने की जगह उनके पति अखिलेश भी उन्हीं की तरह उनके पक्ष में बात कर चुके हैं।
उन्होंने आजम की गलती स्वीकारने की जगह जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि वे वहाँ जया प्रदा के बारे में नहीं बल्कि किसी और के बारे में बात कर रहे थे। अखिलेश की मानें तो समाजवादी पार्टी के लोग महिलाओं के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग कर ही नहीं सकते हैं।
याद दिला दें कि अखिलेश यादव और डिंपल यादव से पहले सपा के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को मामूली गलती करार दिया था और बलात्कारियों के लिए बेचारा शब्द इस्तेमाल करते हुए अपनी ओछी सोच का प्रमाण दिया था। कहना गलत नहीं होगा कि डिंपल यादव पर उनके ससुराल की सोच का असर दिखने लगा है। जिसमें उन्हें सिर्फ़ राजनीति में मौजूद गंदगी ही प्राथमिकता लग रही है। उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि इन बयानों के चलते और आजम खान जैसे व्यक्ति के सपा से जुड़े होने के कारण उनकी पार्टी का स्तर किस हद तक नीचे गिर चुका है।
कथित तौर पर लीक हुए एक ऑडियो टेप के वायरल होने की ख़बर का ख़ुलासा हुआ है। यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि इस ऑडियो में जो आवाज़ है वो एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले की है, इसमें वो हाल ही बीजेपी में शामिल हुए राहुल शेवाले को गुस्से में धमकी दे रही हैं कि वो उनके घर जाएँगी और उन्हें मार देंगी।
ख़बर के अनुसार, एक टेलीफोनिक बातचीत का ऑडियों बीजेपी द्वारा शेयर किया गया। सुले द्वारा कथित तौर राहुल के अपमान की ख़बरें मराठी दैनिक समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुईं। इस घटना पर आपा खोते हुए सुले ने कहा, “क्या मैंने कभी तुम्हारा अपमान किया है? मेरे साथ पंगा मत लो। आप एनसीपी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं लेकिन मुझे परेशान मत करो। मैं आपके घर आऊँगी और आपको ख़त्म कर दूँगी और मैं इस बारे में गंभीर हूँ।”
अपनी भड़ास को बाहर निकालते हुए सुले ने आगे कहा कि अगर वह उसे बदनाम करना जारी रखते हैं तो वह राहुल शेवाले के ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा दायर करेंगी। धमकी भरे लहज़े में सुप्रिया ने कहा, “इस एक बात को ध्यान में रखो। मैं कोई ठेकेदार नहीं हूँ। मुझसे बुरा कोई नहीं है। मेरे साथ कभी धोखा न करें। यदि आप चाहते हैं तो इसे रिकॉर्ड कर लें। मेरा व्यवहार आपके साथ बहुत अच्छा रहा है, लेकिन अगर आप मुझे बदनाम करना जारी रखेंगे, तो मैं यह तय करूँगी कि मुझे क्या करना चाहिए।”
बातचीत के दौरान, हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए राहुल शेवाले ने यह कहते हुए सुले को शांत करना जारी रखा कि उन्होंने सुले या उनके पिता शरद पवार के बारे में कोई अपमानजनक बातें नहीं की हैं। क्षेत्रीय समाचार पत्रों में उन्हें ग़लत तरीके से प्रदर्शित किया गया। उनमें प्रकाशित ख़बर में उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर छापा गया है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि स्व-घोषित ‘लिबरल्स’ शायद सबसे नॉन-लिबरल्स का नमूना होता है, जो हमेशा केवल अपने दृष्टिकोण को ही सर्वोपरि रखते हैं। इनके द्वारा बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्याओं का न केवल समर्थन किया गया बल्कि जश्न भी मनाया गया। इसका उदाहरण हम एक ट्वीट के ज़रिए नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं। इस ट्वीट में हत्याओं का समर्थन तब किया गया जब मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) के गुंडों ने नागरिकों को पीटा और इस पर ‘पत्रकार’ प्रीतिश नंदी ने अपनी ख़ुशी प्रकट की।
प्रीतिश नंदी ने एक वीडियो का हवाला दिया, जिसमें मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा मुंबई निवासी को पिटते हुए देखा जा सकता है। मनसे प्रमुख द्वारा एक रैली के बाद उक्त निवासी ने फेसबुक पर राज ठाकरे की आलोचना की थी, और यह भी कहा था कि राज ठाकरे राष्ट्रविरोधी हैं। उस व्यक्ति ने केवल एक सार्वजनिक नेता की आलोचना करते हुए फेसबुक पर कुछ टिप्पणियाँ की थीं और ऐसा कुछ भी नहीं कहा था जो क़ानून के ख़िलाफ़ हो, जैसे कि हिंसा की धमकी देना। लेकिन राज ठाकरे के ख़िलाफ़ उनकी टिप्पणियों ने नेता जी के समर्थकों को इतना नाराज कर दिया कि वे उनके घर तक पहुँच गए और उन्हें शारीरिक रूप से चोट पहुँचाना शुरू कर दिया। इस वीडियो में यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि वह व्यक्ति अपनी टिप्पणियों के लिए माफ़ी माँग रहा था, लेकिन भीड़ उस पर लगातार हमला करती रही।
Mumbai resident Modi-bhakt who targeted Raj Thackeray after Raj’s Padawa rally and called Raj an anti-national on FB faces Raj Thackeray’s “army” at his doorstep. pic.twitter.com/5boXWTjZLY
प्रीतिश नंदी ने राज ठाकरे की प्रशंसा करते हुए वीडियो को यह कहते हुए संदर्भित किया कि कोई तो है, जो यह जानता है कि कैसे भक्तों को उसी की भाषा में सूद सहित वापस दिया जाए। मतलब नेता राज ठाकरे के साथ कोई पंगा नहीं ले सकता।
Someone knows how to give it back to the bhakts. Don’t mess with MNS leader Raj Thackeray. https://t.co/0U39wTkV7e
यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस व्यक्ति की पिटाई की गई थी, उसने केवल अपने निजी फेसबुक पेज पर अपना विचार पोस्ट किया था, जिसमें उसने किसी को शारीरिक हिंसा पहुँचाने की कोई धमकी नहीं दी थी। फिर भी, प्रीतिश नंदी जैसे ‘बुद्धिजीवियों’ ने सोचा कि राजनीतिक गुंडों द्वारा एक नागरिक की लिखित विचार का जवाब उसे शारीरिक क्षति पहुँचाकर दिया जाना चाहिए। वे बिना किसी प्रमाण के ‘मोदी समर्थकों’ पर इसका आरोप मढ़ते हैं और दावा करते हैं कि मोदी के भारत में, बोलने की स्वतंत्रता हमेशा ख़तरे में है। लेकिन, ख़ुद प्रीतिश नंदी किसी व्यक्ति की राय के लिए उसे शारीरिक रूप से पिटाई करवाए जाने को ‘एक सबक सिखाना’ मानते हैं।
फेसबुक पर अपनी राय रखने के बदले में मनसे के गुंडों द्वारा एक व्यक्ति को धमकाना और उसकी पिटाई करने की घटना को NDTV के पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने कोई महत्व नहीं दिया। MNS कार्यकर्ताओं द्वारा इस हिंसा की निंदा करने के लिए जैन ने टिप्पणी की थी, “हिंसात्मक गतिविधि का जवाब हिंसात्मक गतिविधि नहीं हो सकता।” यह जानते हुए कि मोदी समर्थक ने केवल फेसबुक पर अपनी राय व्यक्त की थी, जैन ने शारीरिक हिंसा को सही ठहराया। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जैन ने ऐसा सिर्फ़ इसलिए लिखा क्योंकि उस व्यक्ति के राजनीतिक विचार उनसे मेल नहीं खाते थे।
एक बार ऐसा भी मामला सामने आया था कि एक संपादक ने दारू पार्टी के साथ RSS प्रमुख की मृत्यु का जश्न मनाया था। लंबे समय से यह अफ़वाह है कि जब हिंदू कार्यकर्ताओं को मार दिया जाता था, तब तथाकथित लिबरल्स नियमित रूप से जश्न में शामिल होते थे। हिंसा के लिए इस तरह का खुला समर्थन इस तरह की घटनाओं को पैर पसारने का मौक़ा देता है।
@GappistanRadio@rahulroushan U guys remember I once mentioned an editor who celebrated death of RSS chief with Daru Party at IIC? #Clue
राजदीप सरदेसाई ने कम्युनिस्टों द्वारा प्रशांत पूजारी की निर्मम हत्या को ‘राजनीतिक संदर्भ’ से जोड़ दिया था। बजरंग दल के कार्यकर्ता को केवल उसकी राजनीतिक विचारधारा के लिए निर्दयता से काट दिया गया था। इस पर राजदीप सरदेसाई ने बेशर्मी से एक लेख लिखा था, “प्रशांत पूजारी की हत्या के राजनीतिक संदर्भ, दादरी गोमांस की हत्या के साथ तुलना नहीं की जा सकती है” जिससे प्रशांत पूजारी और अन्य लगभग हिंदू कार्यकर्ता के हत्यारों को बौद्धिक रूप से सक्षम करार दिया गया।
दूसरी ओर, बरखा दत्त ने नाज़ियों का हवाला तब दिया जब उन्होंने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन का उदाहरण दिया। जब उन्होंने कहा कि मुस्लिम आबादी में गुस्सा था क्योंकि हिंदू धनवान थे और उनके पास बेहतर आर्थिक अवसर थे।
हिंदुओं पर किए गए अत्याचार में घिरी दारुबाज एलीट का सबसे घृणित उदाहरण शायद साध्वी प्रज्ञा के साथ हुआ, उनकी यातना और उनकी दुर्दशा के बारे में ‘लिबरल’ चुप हैं। हाल ही में, जब साध्वी प्रज्ञा बीजेपी में शामिल हुईं और उन्हें भोपाल से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया, तो उन पर अपमानजनक टिप्पणी की गई क्योंकि उनकी पोशाक का रंग भगवा था।
हिंदुओं के लिए घृणा और ‘लिबरल्स’ की विचारधारा से असहमत होने वाले व्यक्ति अपमान, पिटाई और अमानवीयता के ही योग्य हैं। यही वो संदेश है, जो प्रीतिश नंदी और श्रीनिवासन जैन जैसे ‘लिबरल्स’ समाज में प्रचारित करना चाहते हैं।