Tuesday, October 1, 2024
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जानिए कौन सी संस्था है ISI से भी ज्यादा खतरनाक और कैसे पाकिस्तान लड़ रहा है इन्फॉर्मेशन युद्ध

दुनिया के देशों ने अपने देश की सुरक्षा के लिए फौज रखी हुई है, लेकिन पाकिस्तान की फौज ने अपने लिए एक देश रखा हुआ है जिसके संसाधनों का उपयोग वह अपने हिसाब से करती है। पाकिस्तानी फ़ौज के मातहत जहाँ ISI का काम ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना है वहीं ISPR का काम है अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पाकिस्तान की अच्छी इमेज बनाना। यह संस्था नए जमाने का इन्फॉर्मेशन युद्ध लड़ने का काम करती है। प्रस्तुत लेख में यह बताया गया है कि ISPR भारत के लिए क्यों ख़तरनाक है।

14 फ़रवरी को पुलवामा, कश्मीर में CRPF के काफ़िले पर हुए आतंकी हमले ने देश की जनता व् सरकार दोनों को हिला कर रख दिया। हमले के तुरंत बाद देश में जनाक्रोश उमड़ पड़ा। लोगों ने भारी संख्या में वीरगति को प्राप्त जवानों की अंतिम यात्रा में शामिल होने की फोटो और विडियो सोशल मीडिया पर भरी संख्या में पोस्ट कर पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई करने की मांग की। मोदी सरकार ने भी 14 फ़रवरी को ही उच्च स्तरीय सुरक्षा मीटिंग में सेना को रणनीति बनाने की अनुमति दे दी।

पुलवामा हमले के 12 दिन बाद 26 फ़रवरी को सवेरे 3:30 बजे भारत के 12 मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने LoC पार कर पाकिस्तान की जमीन पर पल रहे जैश ए मोहम्मद के 3 आतंकी ठिकानों पर हमला कर पुलवामा हमले का जवाब पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी संगठनों को दे दिया। बाद में ANI न्यूज़ एजेंसी के हवाले से खबर आई कि विंग कमांडर अभिनन्दन ने अपने मिग-21 लड़ाकू विमान से पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-16 को मार गिराया। लेकिन अचानक मिग-21 में तकनीकी खराबी आ जाने के कारण वह अपने विमान सहित पाकिस्तानी सीमा में जा गिरे और उनको पाकिस्तानी आर्मी ने अपनी हिरासत में ले लिया।

27 फ़रवरी को पाकिस्तानी अधिकारी मेजर जनरल आसिफ ग़फूर ‏ने विंग कमांडर अभिनन्दन के पाकिस्तान में होने की खबर अपने आधिकारिक ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर उनका विडियो और फ़ोटो पोस्ट कर दी। साथ ही अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा कि पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय वायुसेना के 2 लड़ाकू विमानों को मार गिराया और एक भारतीय पायलट को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ लिया है। लेकिन पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-16 और जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी ठिकाने पर हुई भारतीय कार्रवाई को ख़ारिज कर दिया और कुछ पेड़ों के गिरने कि खबर दी।

इस सबके बाद पाकिस्तान के मीडिया ने जश्न मानते हुए 2 भारतीय विमान मार गिरने की फर्जी खबर को अपनी वेबसाइट और चैनल पर दिखाना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी सेना के आधिकारिक बयान के हवाले से ही इस्लामिक न्यूज़ चैनल अल-जज़ीरा से लेकर ब्रिटिश अख़बार मेल टुडे तक ने अपनी वेबसाइट पर पाकिस्तान द्वारा भारतीय लड़ाकू विमाग मिग-21 मार गिराने की फर्जी खबर पोस्ट कर दी। सबसे आश्चर्य की बात ये है कि दुनिया के तमाम देशों की मीडिया ने बिना जाँच पड़ताल किए, बिना भारतीय पक्ष जाने इस तरह की फर्जी खबर अपने न्यूज़ चैनल पर चला दी और अपनी वेबसाइट पर भी पोस्ट की। सोशल मीडिया पर चारों तरफ पाकिस्तानी सेना की बहादुरी की पोस्ट की जा रही थी और अभी भी की जा रही है।

आखिर क्यों इस तरह कि खबर डाली गयी और कौन था इस खबर के पीछे ? शायद किसी ने इस विषय में नहीं सोचा। शायद आप यह भी नहीं जानते हैं कि मेजर जनरल आसिफ ग़फूर ‏कौन है और किस पाकिस्तानी संस्था के लिए काम करता है। विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी की जानकारी भारतीय सेना, नेवी और वायुसेना के अधिकरियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के पाकिस्तानी संसद में दिए गए बयान का उल्लेख करते हुए पाकिस्तानी मीडिया ने बहुत ही नाटकीय अंदाज में अपने न्यूज़ चैनल और अख़बार में खबर छापी कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने “Good Gesture” के लिए विंग कमांडर अभिनन्दन को भारत वापस भेजने की अनुमति दे दी है।

इस खबर के आने के 10 मिनट के अन्दर ही विदेशी न्यूज़ एजेंसी की न्यूज़ वेबसाइट्स पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को शांतिदूत बना कर और अंतरराष्ट्रीय कानून को नज़रअंदाज़ करते हुए बड़े-बड़े आर्टिकल लिखे गए जिसमें जापान टाइम्स, अलजज़ीरा, वॉशिंगटन पोस्ट से लेकर तमाम भारतीय अख़बार शामिल थे।

अब सवाल आता है कि पाकिस्तान इतने अच्छे से मीडिया कैसे मैनेज कर रहा है? क्या पाकिस्तान बहुत पहले से अपनी सेना की कायरता छुपाने के लिए काम कर रहा है? कौन उसके लिए योजना बना रहा है? आखिर इतने आतंकी हमले के बाद में पाकिस्तान में आन्दोलन क्यों नहीं होते?

दरअसल पाकिस्तान ने 1949 में एक संस्था बनाई थी जिसका नाम है Inter Services Public Relations (ISPR); इस संस्था के डायरेक्टर जनरल पाकिस्तानी सेना, वायुसेना, नेवी और मरीन के प्रवक्ता होते हैं। इन डायरेक्टर जनरल का काम आर्म्स फोर्सेज, पब्लिक और सिविल अधिकारियों के बीच तालमेल बनाए रखना होता है। इस संस्था के पहले डायरेक्टर जनरल पाकिस्तानी आर्मी के कर्नल शाहबाज़ खान थे।

इसके हेडक्वॉर्टर में पब्लिक, मीडिया और पाकिस्तानी आर्म्ड फोर्सेज के बीच रिश्ते मजूबत को लेकर रणनीति बनती है और इसके लिए वहाँ लगभग हर रोज पब्लिक वर्कशॉप, सेमिनार, कॉन्फ्रेंस व् प्रशिक्षण चलाया जाता है जिनमें सेना, मीडिया व् पब्लिक से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती रहती है। इन सभी कार्यक्रमों में देशी और विदेशी दोनों स्तर पर पाकिस्तानी फौज के लिए समर्थन जुटाने, फर्जी न्यूज़ फ़ैलाने से लेकर जियो पॉलिटिक्स तक शामिल है।

ISPR देशी-विदेशी संस्थाओं में मीडिया पॉलिसी बनाने से लेकर पत्रकारिता, फिल्म निर्माण, रेडियो ब्रॉडकास्ट, पब्लिक कैंपेन और कई तरह के सामाजिक कार्यक्रम करने के लिए पैसे देता है। पाकिस्तान के कई फिल्म अभिनेता, रेडियो जॉकी, पत्रकार ISPR के लिए काम करते हैं। अभिव्यक्ति और पत्रकारिता की आज़ादी के लिए पाकिस्तान की ह्यूमन राईट कार्यकर्ता और वकील असमा जहाँगीर ने ISPR पर सवाल उठाया थाऔर ISPR के खिलाफ कोर्ट में एक पेटिशन भी डाली थी।

हाल ही में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (रिटायर्ड) ने इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्ट्रेटेजिक स्टडीज (लंदन) के एक सेमिनर में बोलते हुए आईएसआई से ज्यादा ख़तरनाक ISPR को बताया और कहा कि ISPR इनफार्मेशन वॉरफेयर में बहुत ही अच्छा काम कर रहा है। उन्होंने अपने व्याख्यान में ISPR को पूरे नंबर देते हुए कहा कि भारतीय सेना इनफार्मेशन वॉर में ISPR के मुकाबले पिछड़ चुकी है और जिस तरह से ISPR इनफार्मेशन रणनीति बना कर पाकिस्तान के लिए काम कर रही है वह तारीफ के काबिल है।

भारत में ISI के बारे में सब जानते हैं लेकिन ISPR के विषय में बहुत कम लोग जाते हैं और कश्मीर में हो रहे हमले के पीछे ISPR का बहुत बड़ा हाथ है। हाल ही में हुए पुलवामा हमले के बाद सेना की कार्रवाई को लेकर आई तमाम फर्जी मीडिया रिपोर्ट में ISPR का बहुत बड़ा हाथ है। इसी संस्था की इनफार्मेशन वॉर रणनीति के कारण भारत में कई बार दंगे और सांप्रदायिक घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है।

जिस तरह भारत के कुछ अभिनेता और कला क्षेत्र से जुड़े लोग, NGO कार्यकर्ता तथा पत्रकार पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित मुशायरों और अन्य कार्यक्रमों में जाकर भारत विरोधी बयानबाजी करते हैं ऐसे में आप को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ISPR ही उन सबके पीछे काम कर रही है और इसके लिए उनको पैसे भी दे रही है।

भारत भी अब चुप नहीं बैठा है और पाकिस्तान की इनफार्मेशन वॉर रणनीति व् सोशल मीडिया पर सेना को लेकर फैलाई जा रही फर्जी न्यूज़ को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने भारतीय सेना को इनफार्मेशन वारफेयर ब्रांच खोलने की अनुमति दे दी है

TV अभिनेत्रियों भार्गवी और अनुषा की सड़क दुर्घटना में मौत, 2 अन्य घायल

तेलंगाना के विकाराबाद ज़िले में बुधवार तड़के एक सड़क दुर्घटना में दो तेलुगु टीवी अभिनेत्रियों की मौत हो गई। मृतकों की पहचान 20 वर्षीय भार्गवी और 21 वर्षीय अनुषा के रूप में हुई है। ये हादसा बुधवार सुबह विकाराबाद एरिया में हुआ। हादसे के समय कार में चार लोग थे। एक्ट्रेस भार्गवी और अनुषा हैदराबाद में अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट की शूटिंग खत्म कर घर लौट रही थीं, और एक्सीडेंट का शिकार हो गईं।

20 वर्षीया भार्गवी की मौक़े पर मौत हो गई

ख़बर के अनुसार, कार में ड्राइवर चकरी और विनय कुमार नामक एक अन्य व्यक्ति मौजूद था। भार्गवी की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं अनुषा को गंभीर हालत में हैदराबाद के सरकारी उस्मानिया अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। चकरी और विनय इस दुर्घटना में घायल हुए हैं।

चकरी विकाराबाद से हैदराबाद वापस लौट रहे थे, क्योंकि अनंतगिरी के जंगल में एक शूट हुआ था। घर वापस आते समय, सामने से आ रहे ट्रक से बचने के लिए पतली सड़क पर गाड़ी को साइड लेने की कोशिश में कार का बैलेंस बिगड़ा और गाड़ी सीधे जाकर एक पेड़ से टकरा गई। टक्कर इतनी जोरदार थी कि अभिनेत्रियों की मौत हो गई।

छोटे पर्दे की इन दोनों एक्ट्रेस में भार्गवी टीवी शो मुत्याला मुग्गू में निगेटिव भूमिका में थीं और अपने काम के लिए लोकप्रिय थीं, वहीं अनुषा एक नवोदित अभिनेत्री थीं।

मतदान कर्तव्य ही नहीं, अब नैतिक बाध्यता भी: मुट्ठी भर ‘अभिजात्यों’ से माइक और लाउडस्पीकर छीनने का मौका

संसद में लगते एक विद्रूप अट्टहास पर प्रधानमंत्री महोदय ने कहा था, “लगाने दीजिए, ऐसी हँसी रामायण सीरियल के बाद से नहीं सुनी!” वो बड़े राजनीतिज्ञ हैं, प्रधानमंत्री भी। सुरक्षा व्यवस्था की मजबूरियाँ उन्हें चौक-चौराहों पर खड़े होकर लोगों की बातें नहीं सुनने देती होगी। समय शायद इतना नहीं मिलता होगा कि टीवी पर भारत के “तथाकथित” न्यूज़ चैनल देख पाएँ। वरना ऐसी हँसी कोई बरसों न सुने ऐसा कैसे हो सकता है? जनता के हितों को बूटों तले रौंदकर जनतंत्र के चार खम्भों में से किसी न किसी खम्भे के एक पुर्जे की ऐसी हँसी तो रोज ही सुनाई देती है!

बालकनी में काटे जाते बकरों का खून एक खम्भे को सफाई लगता है और साथ ही जब होली के रंगों में वो दाग ढूंढते हैं, तब न्यायपालिका से ऐसा ही अट्टहास सुनाई देता है। जब इन्दिरा जयसिंह को सुप्रीम कोर्ट के चैम्बर में शराब पर पाबन्दी के लिए आन्दोलन चलाना पड़ता है, उस वक्त किसका अट्टहास सुनाई देता है? एक खम्भा जब छत से फेंके गए किसी गुब्बारे के वीर्य से भरे होने की खबर गढ़ लेता है तब अट्टहास ही तो सुनाई देता है। उसी स्तम्भ को महान बताते तमाम प्रगतिशील चेहरों पर से जब #मी_टू अभियान में नकाब नुचता है, तब खोजी पत्रकारिता पर कौन हँसा था?

आज सत्य, अहिंसा और न्याय की बात करने वालों को ये भी बताना चाहिए कि हाथों में कलावा बांधे एक जेहादी कसाब के जिन्दा पकड़े जाने से अगर पोल न खुली होती तो वो जिस किताब का विमोचन कर रहे थे, उसके जरिए कौन से सत्य, कैसी अहिंसा और कहाँ के न्याय की पैरोकारी कर रहे थे? मुंबई आतंकी हमलों में बेगुनाहों के खून में न्याय ही तो बहा था! निहत्थों पर हमले में अवश्य अहिंसा हुई होगी! शायद उनका कहा ही सत्य होता है, इसलिए एक पाकिस्तानी के जेहादी हमले को आरएसएस की साजिश बताकर #हिन्दूआतंकवाद का नैरेटिव ही शायद उनका #पोस्टट्रुथ वाला सत्य होगा!

ऐसे ही किसी अट्टहास के डर से तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात पर राजनीति में उतरे #आआपा समर्थक भी चुप्पी लगा जाते हैं। अगर ऐसा अट्टहास न सुनाई देता होता, तो #आआपा समर्थक प्रोफेसर आनंद प्रधान के खामोश हो जाने के पीछे क्या राज है? कसाब के साथी आतंकियों के जो टूरिस्ट गाइड बने जो भट्ट उन्हें मुंबई दर्शन करवा रहे थे, उनकी बहन पूजा भट्ट जब आतंकवाद का भय दिखाती हैं तब भी तो ऐसा ही अट्टहास सुनाई देता है। तथाकथित आजादी के सात दशकों में हिन्दुओं के #मानवाधिकार छीनते रहने वालों का अट्टहास हर ओर तो सुनाई देता है!

बाकी ये भी ध्यान रखिए कि ऐसे अट्टहास हमें सुनाई इसलिए देते हैं क्योंकि उन्होंने यूनिवर्सिटी, समाचारपत्र, रेडियो, टीवी चैनल जैसे संसाधनों पर कब्ज़ा कर रखा है। अभिजात्यों के हाथ से ये माइक छीन लिए जाएँ तो उनके अट्टहास की दशा “जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?” की सी हो जाएगी। मतदान इन मुट्ठी भर अभिजात्यों से ये माइक और लाउडस्पीकर छीनने का मौका भी देता है। मतदान कर्तव्य ही नहीं, अब नैतिक बाध्यता भी है। सुधार की कोशिशें न करने वालों को शिकायत का नैतिक अधिकार नहीं रहता, ये तो याद ही होगा।

वंशवादी राजनीति के कारण ही देश के कई राज्यों का विकास हुआ: कुमारस्वामी

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने वंशवाद को मुद्दा मानने से इनकार कर दिया है। रामनगर में अपना वोट डालने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कुमरस्वामी ने कहा कि वंशवाद देश के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है, देश की समस्याएँ महत्वपूर्ण मुद्दा है। उन्होंने एक क़दम और आगे बढ़ते हुए कहा कि वंशवादी और क्षेत्रीय राजनीति के कारण ही देश के कई राज्यों का विकास हुआ। उन्होंने कर्नाटक के मुख्य विपक्षी दल पर निशाना साधते हुए कहा कि वो भाजपा द्वारा उनकी आलोचना पर ध्यान नहीं देते। आज दक्षिण कर्नाटक की 14 लोकसभा सीटों पर मतदान चल रहा है। जेडीएस के नेताओं पर हुए इनकम टैक्स छापे के बीच चल रहे चुनाव में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है।

कर्नाटक में राजनीतिक बयानबाज़ी काफ़ी तेज़ हो गई है। सीएम कुमरस्वामी ने जब प्रधानमंत्री मोदी और उनके मेक-अप को लेकर तंज कसा तो एक भाजपा विधायक ने भी उनपर कमेंट किया। कुमारस्वामी ने कहा था कि मोदी रोज़ सुबह उठते हैं और मेक-अप कर के कैमरे के सामने बैठ जाते हैं। उन्होंने मोदी के चेहरे की चमक के पीछे का राज़ बताते हुए ख़ुद से उनकी तुलना की थी। कुमारस्वामी ने कहा था कि मोदी वैक्सिंग कराते हैं। कुमारस्वामी के इस बयान पर पलटवार करते हुए भाजपा विधायक राजू कागे ने कहा:

“आप कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार अपने कपड़े बदलते हैं। अरे, वह गोरे और आकर्षक हैं इसलिए लगातार कपड़े बदलते हैं। लेकिन अगर आप (कुमारस्‍वामी) दिन में सौ बार भी नहाते हैं तो भी काले भैंस जैसे ही दिखेंगे।”

एचडी कुमारस्वामी ने भाजपा विधायक के इस बयान का जवाब देते हुए शिवमोग्गा में एक रैली के दौरान कहा कि वो ग़रीबों के बीच रहते हैं और ग़रीबों से हाथ मिलाने के बाद हाथ नहीं धोते। उन्होंने उस रैली में कहा, “ये लोग (भाजपा विधायक) कहते हैं की मैं दिन भर में 20 बार नहा लूँ फिर भी मेरा काला भैंस वाला रंग नहीं जाएगा। मैं तुम्हारे मोदी की तरह नहीं हूँ जो रोज़ सुबह अपने चेहरे की वैक्सिंग करा कर बाहर निकलते हैं।” कर्नाटक में चेहरे के रंग को लेकर चल रही राजनीति के बीच अब कुमारस्वामी ने वंशवाद की राजनीति का बचाव किया है।

अगर देवेगौड़ा परिवार की बात करें तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा अभी जेडीएस के अध्यक्ष हैं। उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं। कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा मांड्या से लोकसभा प्रत्याशी हैं। हासन लोकसभा सीट से कुमारस्वामी के भतीजे प्रज्वल रेवन्ना मैदान में हैं। कुमारस्वामी के भाई एचडी रेवन्ना कर्नाटक सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। ऐसे में, कुमारस्वामी द्वारा वंशवादी राजनीति का गुणगान करने के पीछे का कारण समझा जा सकता है।

IAS मोहम्मद मोहसिन निलंबित, PM मोदी के हेलीकॉप्टर की तलाशी दिशा-निर्देशों के खिलाफ, लापरवाही भरा

चुनाव आयोग ने बुधवार (अप्रैल 17, 2019) की देर रात ओडिशा की संबलपुर सीट के पर्यवेक्षक आईएएस अधिकारी मोहम्मद मोहसिन को निलंबित कर दिया। जिसके बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग इस निलंबन के पीछे प्रधानमंत्री को दोषी बता रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि मोहसिन को केवल प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ के हेलीकॉप्टर की जाँच करने के कारण निलंबित किया गया है। जबकि चुनाव आयोग की मानें तो मोहसिन को ड्यूटी में लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार (अप्रैल 16, 2019) को संबलपुर में रैली के लिए पहुँचे थे। जहाँ पर्यवेक्षक मोहसिन ने उनके हेलीकॉप्टर की जाँच की। यह निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के तहत नहीं था।

जिला कलेक्टर और पुलिस महानिदेशक की रिपोर्ट मिलने के बाद चुनाव आयोग ने मोहसिन को निलंबित कर दिया। आयोग की ओर से कहा गया है कि मोहम्मद मोहसिन ने एसपीजी सुरक्षा प्राप्त गणमान्य व्यक्तियों के लिए नियत निर्देशों का पालन नहीं किया है।

मोहसिन का निलंबन तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। इस कारण से मोहसिन को अगले निर्देशों तक संबलपुर में ही रुकना होगा। मोहसिन कर्नाटक कैडर के 1996 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।

मीडिया की खबरों के मुताबिक, एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि संबलपुर में प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर की जाँच करना निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के ख़िलाफ़ है। उनकी मानें तो एसपीजी सुरक्षा प्राप्त लोगों को ऐसी जाँच से छूट प्राप्त होती है।

बताते चलें कि निर्वाचन आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के मद्देनज़र सभी संसदीय क्षेत्रों में सामान्य पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है। पारदर्शिता और स्थानीय प्रशासन से दूरी सुनिश्चित करने के लिए ये हमेशा राज्य के बाहर के अधिकारी होते हैं।

16 घंटे लगातार नींद में… या 4 बजे सुबह भाभी को कॉल: ND Tiwari के बेटे की मौत के पीछे कई राज़

तीन बार उत्तर प्रदेश व एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण दत्त तिवारी का निधन हुए अभी 6 महीने ही हुए हैं, तभी उनके बेटे रोहित शेखर की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। ख़बरों के अनुसार, रोहित की नाक से ख़ून आ रहा था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी पुलिस फिलहाल तो किसी नतीजे पर नहीं पहुँची है लेकिन हर एंगल से इस घटना की छानबीन की जा रही है। आज गुरुवार (अप्रैल 18, 2019) को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी आनी है, जिसके बाद काफ़ी कुछ पता चल जाएगा। फिलहाल रोहित के पार्थिव शरीर को उनके परिवार को सौंप दिया गया है। डॉक्टरों की टीम भी इस बात से हैरान है कि रोहित की नाक से ख़ून क्यों आ रहा था?

सबसे पहले जानते हैं कि रोहित मौत से पहले कहाँ थे और उन्होंने क्या-क्या किया था। दरअसल, रोहित और उनका पूरा परिवार वोट डालने उत्तराखंड के कोटद्वार गए थे। वहाँ से वो लोग रात के 11 बजे डिफेंस कॉलोनी स्थित अपने घर लौटे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रोहित ने शराब भी पी रखी थी। घर पहुँच कर वो सो गए। अगले दिन शाम 4 बजे तक वो सोए ही रहे। उसी समय किसी नौकर ने देखा कि उनकी नाक से ख़ून निकल रहा था। इसकी जानकारी उनकी माँ और मैक्स अस्पताल को दी गई। पुलिस का सीधा सवाल है कि एक व्यक्ति 16 घंटे तक सोया रहता है और घर में कोई उसकी सुध भी नहीं लेता, क्यों?

नवभारत टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, रोहित की पत्नी व परिवार के अन्य लोग घर में ही थे। पुलिस को पता चला है कि रोहित नींद की गोलियाँ भी लेते थे। पुलिस इसे पॉइज़निंग (ज़हर) वाले एंगल से भी देख रही है। उनके कमरे के अंदर ढेर सारी दवाओं के रैपर मिले हैं। हाल ही में उनकी बाईपास सर्जरी हुई है। उनके कमरे में इतनी सारी दवाइयाँ थी, जैसे कि वो कोई छोटा सा मेडिकल स्टोर हो। परिवार की तरफ से हत्या जैसी कोई बात नहीं कही गई है। पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराई गई है। रिपोर्ट की मानें तो रोहित के नौकर ने यह भी बताया कि उसने सुबह 9 बजे भी उनके कमरे में जाने की कोशिश की थी।

वहीं अगर रोहित की माँ के बयान को देखें तो वो अवसादग्रस्त थे। राजनीतिक करियर परवान न चढ़ पाने के कारण रोहित शेखर तिवारी डिप्रेशन में थे। वो अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाना चाहते थे। जबकि आजतक की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, रोहित ने सुबह 4 बजे अपनी भाभी कुमकुम को फोन किया था। वह उन्हें कुछ बताना चाहते थे। अगर रोहित उस दिन शाम तक सोए रहे थे (जैसा कि नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है) तो उन्होंने सुबह कॉल कैसे किया? अगर उन्होंने कॉल किया तो क्या घर वालों की तरफ से वापस कॉलबैक आया था?

आजतक की रिपोर्ट में कहा गया है कि आमतौर पर रोहित जिस कमरे में सोते थे, उस दिन वो वहाँ न सोकर दूसरे कमरे में सोए हुए थे। इस बारे में घर वालों का कहना है कि उनकी पत्नी को दिक्कत न हो, इसीलिए वो दूसरे कमरे में सोए थे। रोहित के परिवार का मानना है कि ये प्राकृतिक मौत है। अमर उजाला ने पुलिस अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि रोहित के घर के आसपास कई सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे लेकिन उनमें से एक भी चालू नहीं था। क्या किसी ने सीसीटीवी बंद कर दिया था या वो लम्बे समय से बंद था?

बता दें कि रोहित शेखर को एनडी तिवारी को अपना पिता साबित करने के लिए लम्बी क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। सालों तक ना-नुकुर के बाद तिवारी ने उन्हें अपना बेटा स्वीकार कर अपने घर में जगह दी थी। उन्होंने रोहित की माँ से 88 वर्ष की उम्र में शादी भी की थी। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे एनडी तिवारी पिछले वर्ष 18 अक्टूबर 2018 को अपने जन्मदिवस के दिन ही चल बसे थे।

नक्सलियों ने की महिला निर्वाचन अधिकारी की हत्या, कंधमाल में फूँके वाहन

ओडिशा में नक्सलियों का प्रकोप एक बार फिर बढ़ता दिख रहा है। राज्य के कंधमाल ज़िले में नक्सलियों ने एक महिला निर्वाचन अधिकारी की हत्या कर दी। आज गुरुवार को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान है। यहाँ पर नक्सलियों ने लोगों को चुनाव बहिष्कार करने की भी धमकी दे रखी है। ज़िले में एक अन्य घटना में नक्सलियों ने चुनावी कार्य के लिए प्रयोग होने वाले वाहन में भी आग लगा दी। वोटिंग के ठीक एक दिन पहले नक्सलियों द्वारा इस तरह की घटनाओं को अंजाम देना राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

घटना कुछ यूँ घटी। सेक्टर अधिकारी संजुक्ता दिगल चुनाव कराने के लिए एक बूथ की तरफ जा रही थीं। उनके साथ अन्य मतदानकर्मी भी थे। जब उनकी गाड़ी गूदपाड़ा पुलिस स्टेशन के नजदीक बालंदपाड़ा के पास एक जंगल से गुज़र रही थी तो रास्ते में उन्हें कोई संदिग्ध वस्तु पड़ी दिखी। जब उस संदिग्ध वस्तु की जाँच करने के लिए वो लोग नीचे उतरे, तभी नक्सलियों ने संजुक्ता की गोली मार कर हत्या कर दी। गाड़ी में चार अन्य मतदानकर्मी भी थे, जो इस हमले में बाल-बाल बच गए। यह कंधमाल लोकसभा के अंतर्गत आने वाले फूलगनी विधानसभा क्षेत्र की घटना है।

वहीं एक अन्य घटना में नक्सलियों ने मतदान अधिकारियों के लिए प्रयोग किए जाने वाले वाहन को आग के हवाले कर दिया। फिरंगिया पुलिस स्टेशन के गाँव में घटी इस घटना में किसी के हताहत होने की जानकारी नहीं मिली है। नक्सलियों ने गाड़ी में आग लगाने से पहले उसमें बैठे मतदानकर्मियों को नीचे उतार दिया था। सभी अधिकारी सुरक्षित हैं। हालाँकि, ईवीएम सहित अन्य चुनावी उपकरण व चीजें कहाँ हैं, इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता। स्थानीय प्रशासन ने अंदेशा जताया है कि इन दोनों घटनाओं के पीछे भाकपा (माओवादी) के केकेबीएन (कालाहांडी-कंधमाल-बौध-नयागढ़) खंड का हाथ है। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब माओवादियों ने ज़िले में पोस्टर और बैनर लगाकर लोगों से चुनाव का बहिष्कार करने को कहा था।

कंधमाल ज़िले में माओवादी घटनाओं को देखते हुए चुनाव आयोग ने मतदान का समय सुबह सात बजे से शाम चार बजे तक रखा है। ओडिशा में 4 चरण में मतदान कराए जा रहे हैं। राज्य में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी चल रहे हैं। ताजा जानकारी के अनुसार, कंधमाल में मतदान शुरू हो गया है और नक्सली ख़तरे के बावजूद लोग भारी संख्या में निकल रहे हैं। सुरक्षा के भी यहाँ ख़ास इंतज़ाम किए गए हैं। 2014 में उग्रवाद प्रभावित इलाक़ा होने के बावजूद यहाँ 74% मतदान हुआ था। कंधमाल में बीजद, कॉन्ग्रेस, बसपा, सीपीआई (एमएल) और भाजपा ने उम्मीदवार उतारे हैं। यहाँ से कोई भी निर्दलीय उम्मीदवार नहीं खड़ा है।

4 करोड़ की पहुँच वाले दक्षिणपंथी का अकाउंट अकारण सस्पेंड, ताली पीट रहे आपिए

लोकसभा चुनावों के बीच दक्षिणपंथी और गैर-वामपंथी सोशल मीडिया यूजर्स की आवाज़ सोशल मीडिया कम्पनियों द्वारा दबाया जाना बदस्तूर जारी है। अंशुल सक्सेना को फेसबुक ने सस्पेंड किया, समाचार पोर्टल mynation का फेसबुक पेज डिलीट कर दिया गया और अब ट्विटर ने ऋषि बागड़ी (@rishibagree) का ट्विटर अकाउंट बिना कोई कारण बताए सस्पेंड कर दिया है।

फेसबुक पर दी जानकारी

भाजपा समर्थक और दक्षिणपंथी ऋषि ने यह जानकारी अपने फेसबुक पेज से दी। उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट की पहुँच का विश्लेषण भी साझा किया, जिससे पता चलता है कि उनकी पहुँच लगभग 4 करोड़ ट्विटर यूजर्स तक थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि कॉन्ग्रेस और अन्य विपक्षी दल उनकी पहुँच और लोकप्रियता को लेकर चिंतित थे।

तीन हफ्ते में तीसरी घटना

तीन हफ्ते के अन्दर यह भारतीय राजनीतिक आवाजों को विदेशी सोशल मीडिया कम्पनियों द्वारा दबाए जाने की तीसरी घटना है। इससे पहले दक्षिणपंथी अंशुल सक्सेना का फेसबुक पेज भी ‘नग्नता फैलाने’ के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया था, जबकि वे दरअसल नग्न पेंटिंगों की एक प्रदर्शनी का विरोध कर रहे थे। उन्होंने जब अपना विरोध जताया तो फेसबुक ने माफ़ी माँगते हुए उनका अकाउंट वापिस करने की बात कही। लेकिन उन्हें एक सप्ताह लटकाने के बाद ही उनका पेज चालू हुआ, जबकि ट्रोल ध्रुव राठी का पेज महज घंटों में चालू कर दिया गया

इसके बाद फेसबुक ने भारतीय राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करते हुए सैकड़ों कॉन्ग्रेस समर्थक और कुछेक भाजपा समर्थक पेजों और समाचार पोर्टल mynation के पेज को डिलीट कर दिया। उस समय फेक न्यूज़ फ़ैलाने का आरोप लगाया गया, लेकिन ऑपइंडिया ने जब फेसबुक द्वारा दिए गए ‘सबूतों’ की पड़ताल की तो पाया कि न ही भाजपा और न ही कॉन्ग्रेस के उक्त पेज किसी भी प्रकार की फेक न्यूज़ फैला रहे थे।

और अब यह तीसरी घटना है जब प्रभावशाली राजनीतिक पेज/अकाउंट अकारण या गलत कारण देकर बंद किए जा रहे हैं। यह भारत की संप्रभुता के साथ हस्तक्षेप नहीं तो क्या है?

सोशल मीडिया पर ताली पीट रहे आपिए

हमने अभी आपको ऊपर बताया कि कॉन्ग्रेस की नीतियों के विरोध में रहते हुए भी ऑपइंडिया ने कॉन्ग्रेस के पेज हटाए जाने का विरोध किया था, क्योंकि यह विदेशी ताकतों द्वारा किया गया था, और गलत आधार पर था। पर ऋषि बागड़ी का भी मामला बिलकुल ऐसा ही होने के बावजूद आम आदमी पार्टी की सोशल मीडिया टीम के सदस्य कपिल इस कदम के समर्थन में ‘थम्सअप’ दे रहे हैं।

इस बीच पत्रकार शेफाली वैद्य और mynation के संपादक अभिजित मजुमदेर ने इसका विरोध करते हुए ट्वीट किया।

चारा घोटाला कमज़ोर कर दो, नितिश सरकार गिरा दूँगा, यह था लालू का भाजपा को ऑफर

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने चारा घोटाले में दोषी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पर गंभीर आरोप लगाया है। प्रेस को संबोधित करते हुए उन्होंने दावा किया कि लालू ने भाजपा को यह ‘ऑफर’ दिया था कि यदि चारा घोटाले में उनके खिलाफ मामला कमजोर कर दिया जाए तो वह नीतीश कुमार की तत्कालीन बिहार सरकार को बदले में गिराने के लिए तैयार हैं। जिस समय का यह दावा है, उस समय नीतीश-लालू महागठबंधन की बिहार सरकार के साझेदार थे और भाजपा विपक्ष में बैठी थी।

तीन-चार बार भेजा ‘दूत’, फिर खुद पहुँचे जेटली के द्वार

सुशील मोदी के दावा के मुताबिक लालू यादव ने पहले तो तीन-चार बार केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास ‘दूत’ के रूप में प्रेमचंद गुप्ता को भेजा। प्रेमचंद गुप्ता राजद के राज्यसभा सदस्य हैं। बकौल सुशील मोदी, यह वाकया तब का है जब झारखण्ड उच्च न्यायलय ने सीबीआई की चारा घोटाले के 6 मामलों में लालू पर बाकी आरोपियों से अलग मामला चलाने की अर्जी ठुकरा दी थी। अलग से मामला चलने का मतलब था कि लालू की मुसीबतें और बढ़ना।

सुशील मोदी की मानें तो गुप्ता ने जेटली से कहा कि लालू यादव बिहार की नीतीश कुमार सरकार को गिराने के लिए तैयार हैं, पर वह यह चाहते हैं कि या तो सीबीआई उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील न करे, और अगर करे तो जाँच एजेंसी का वकील मामले में कमजोर बहस करे ताकि उच्च न्यायालय का फ़ैसला पलटा न जाए और लालू अलग मुकदमे का सामना करने से बच जाएँ।

पर जब जेटली ने यह पेशकश हर बार ठुकरा दी तो, सुशील मोदी के मुताबिक, लालू अंत में खुद चल कर जेटली से मिलने पहुँचे।

जेटली फिर भी न पिघले, पर नीतीश को हो गया था शक  

सुशील मोदी ने यह भी दावा किया कि इतने के बावजूद अरुण जेटली ने लालू को कोई भी राहत देने से साफ़ मना कर दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि सीबीआई स्वायत्त, स्वतंत्र संस्था है, और उनकी सरकार उसके कार्य में कोई दखल नहीं देती।

सुशील मोदी ने यह भी जोड़ा कि उन्हें लगता है नीतीश कुमार को लालू के इरादों और प्रयासों की भनक जरूर पड़ गई होगी, और यह दोनों दलों के रिश्तों के अंत में एक कारण रहा होगा। इसके अलावा 2015 का चुनाव जीतने के बाद भी लालू ने नीतीश को यह जताना कभी बंद नहीं किया कि नीतीश उन्हीं की ‘दया’ से मुख्यमंत्री हैं।

गौरतलब है कि 2015 का चुनाव राजद के साथ जीतने के बाद भी नीतीश ने 2017 में उनसे सम्बन्ध तोड़ कर तत्कालीन सरकार को भी भंग कर दिया, और भाजपा-नीत राजग में शामिल हो उसके समर्थन से दोबारा मुख्यमंत्री बने।

सजायाफ्ता हैं लालू   

फ़िलहाल लालू यादव सजायाफ्ता चल रहे हैं। तीन मामलों में उन्हें कुल 13.5 साल की सजा का ऐलान किया जा चुका है, और दो मामलों में फैसला आना बाकी है। इसके अलावा उन पर रेलवे टेंडर घोटाले के मामले में भी पटियाला कोर्ट में केस चल रहा है। हाल ही में उनकी जमानत याचिका भी ख़ारिज की जा चुकी है

तेजस्वी की प्रतिक्रिया

राजद नेता और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने इस आरोप पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। बिहार विधानसभा के नेता विपक्ष और नीतीश-राजद सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद पाने वाले तेजस्वी ने ट्विटर पर दावा किया कि देश के लोग सुशील मोदी का खुलासा सुनकर हँस रहे हैं, और यह प्रेसवार्ता लोकसभा चुनावों में भाजपा के हार के डर को उजागर कर रही है। उन्होंने सुशील मोदी को मानसिक रूप से दीवालिया भी कहा।

क्या सच में मोदी ने संस्थाओं को कमज़ोर किया? आंकड़े और तथ्य तो कुछ और ही कहते हैं

यदि हम ध्यान से देखें, तो पिछले 5 वर्षों में विपक्षी दलों, विशेषकर कॉन्ग्रेस, के द्वारा लगातार एक साजि़श की गई है। जैसे ही कॉन्ग्रेस ने देखा कि मोदी सरकार अनेक योजनाओं के माध्यम से अच्छे परिणाम दे रही है, उन्होंने योजनाओं, लोगों, प्रणालियों, संस्थानों, सुधारों को ही बदनाम करना शुरू कर दिया और इनका गलत प्रचार किया।

अपने किए गए पहले के गलत कार्यों की जवाबदेही से खुद को बचाने की कोशिश के अलावा, इनका उद्देश्य मोदी सरकार को मिलने वाले राजनीतिक लाभ को भी कम करना है। फिर चाहे इससे संस्थाओं की अवमानना या देशहित को नुकसान ही क्यों न हो। और तो और, अपनी गलत मंशा को छुपाने के लिए, इन्होंने मोदी सरकार पर ही संस्थाओं की अवमानना और संविधान की अवहेलना का आरोप लगाना शुरू कर दिया। विपक्ष के गलत प्रचार एवं मीडिया के एक वर्ग के विपरीत, यह लेख, तर्क व तथ्यों के आधार पर मोदी सरकार के द्वारा संस्थानों की सुदृढ़ता के लिए किए गए अथक प्रयासों पर प्रकाश डालता है।

जरा सोचिए, कॉन्ग्रेस व अन्य विपक्षी दल अगर विपक्ष में रहकर देशहित का इतना नुकसान कर सकते है, तो सत्ता में रहकर कितना विनाश किया होगा।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी पर अपने गलत बयान को माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला बताकर पेश करना ये दिखाता है कि अब कॉन्ग्रेस जिस अवस्था में है, वो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

इस लेख के माध्यम से विभिन्न स्थितियों में महत्वपूर्ण संस्थानों के प्रति मोदी सरकार व विपक्षी दृष्टिकोण को आँकने का प्रयास किया गया है। इस लेख को 7 भागों में विभाजित किया गया है एवं संस्थागत सम्मान व अवमानना किसके द्वारा की गई, यह अंको से दर्शाया गया है।

भाग 1 – न्यायालय व जाँच संस्थाएँ

सत्ता में रहते हुए कॉन्ग्रेस द्वारा जाँच संस्थाओं का उपयोग स्वयं के हित के लिए करना कोई नई बात नहीं है। एक उदाहरण- UPA के कार्यकाल के अंतर्गत 2G मामले की जाँच (जिसके सबूतों की जाँच UPA के कार्यकाल मे ही पूरी हुई), जिसमें अपराधियों को रिहा कर दिया गया। यह बताना आवश्यक है कि माननीय कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा (नोट कीजिए कि ये हिस्सा इंग्लिश से हिंदी ट्रांसलेट किया हुवा है, कोशिश की गई है कि अर्थ वही हो)- “यह एक अच्छी तरह से कोरियोग्राफ की गई चार्जशीट थी, जिसमें गलत तथ्य थे और वे स्वतंत्र होने के हकदार बन गए”।

“मैं यह भी कह सकता हूँ कि पिछले लगभग 7 वर्षों से, मैं रोज़ सुबह 10 से शाम 5 बजे तक कोर्ट में बैठे रहता था, इस इंतज़ार में कि किसी के पास ऐसा सबूत हो जिसे कानून स्वीकार करे ,लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।”

मोदी सरकार को 2G घोटाले के मामले को फिर से खोलने की अपील करनी पड़ी। बल्कि, पहले दिन से ही मोदी सरकार की भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई, सभी के लिए स्पष्ट थी।

कॉन्ग्रेस को यह शुरुआत में ही समझ आ गया था कि उनके द्वारा किए गए गलत कार्यों (भ्रष्ट सौदे, फ़ोन बैंकिंग द्वारा दिए हुए बैंक ऋण, NPA आदि) का खुलासा होने वाला है तथा कई बड़े नेताओं के जेल जाने की संभावना भी है, और जिसका पूरा राजनीतिक श्रेय भी NDA को मिलेगा। इससे बचने के लिए, कॉन्ग्रेस ने पिछले 5 वर्षों में BJP नेताओं के तथाकथित भ्रष्टाचार की झूठी कहानियों का प्रचार किया।

बल्कि, ठीक इसके विपरीत, मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार व आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए कई कदम उठाए व संस्थाओं को सशक्त बनाया।

1. IBC के रूप में कानून पारित करके NCLT (एक महत्वपूर्ण संस्था) को सशक्त बनाया और कई NPA खातों का समाधान किया। NPA से निपटने का यह तरीका, कॉन्ग्रेस की अस्पष्ट नीतियों और तरीकों से पूर्णतया विपरीत है।

2. भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए संस्थाओं को सशक्त बनाया गया। जिससे कि, नीरव मोदी, चौकसी, माल्या आदि भगोड़ों की संपत्ति (विदेशी संपत्ति सहित) को जब्त किया। मोदी सरकार ने भगोड़ों के प्रत्यर्पण के लिए लगातार प्रयास किया एवं सफलता प्राप्त की या सार्थक प्रगति की।

मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई देखकर कॉन्ग्रेस ने अधिकारियों को यह धमकी दी (संस्थागत अवमानना का एक रूप) कि उन्हें यह याद रखना चाहिए, कॉन्ग्रेस कुछ समय में सत्ता में आ जाएगी और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।

(स्कोर- मोदी +1, विपक्ष -1)

मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं भ्रष्टाचार व अपराधियों पर सही कार्रवाई के लिए संस्थाओं को दी गई छूट अच्छे परिणाम दिखा रही है, जो इस प्रकार है-

1. इतिहास में पहली बार, पिछले 5 वर्षों में 18 भगोड़ों को भारत वापस लाया गया। यह एक तरह से संस्थागत स्वतंत्रता का ही परिणाम है।

2. गाँधी, वाड्रा, यादव, चिदंबरम आदि के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों की जाँच जारी है

3. लालू यादव को कई घोटालों के लिए जेल भेजा गया

4. माननीय दिल्ली HC ने अपने फैसले में यह निष्कर्ष निकाला कि सोनिया और राहुल गाँधी ने नेशनल हेराल्ड मामले में देश को धोखा दिया। एक अन्य मामले में दोनों ज़मानत पर बाहर हैं। इसके अलावा, बड़ी मात्रा में करों का भुगतान नहीं करने के कारण, अब अदालतों द्वारा कर जमा करने के निर्देश दिए गए है।

5. रोबर्ट वाड्रा से संबंधित कुछ हरियाणा भूमि सौदे रद्द कर दिए गए हैं। वाड्रा के मामलों में ED की कठोर पूछताछ चल रही है।

कई बड़े दिग्गजों की ईमानदारी से जाँच की जा रही है जिससे कानूनी संस्थाएँ मज़बूत व सशक्त बनेंगी एवं भविष्य में भ्रष्टाचार करने से पहले कोई भी दस बार सोचेगा।

(स्कोर- मोदी +2, विपक्ष -1)

जाँच अधिकारियों को धमकाने में मिली असफलता के पश्चात कॉन्ग्रेस ने संस्थानों में आंतरिक झगड़ों का सहारा लिया। CBI/ SC के आंतरिक लड़ाई के माध्यम से, संस्थानों को सार्वजनिक रूप से खुले तौर पर बदनाम करने व मोदी सरकार पर दोषारोपण करने का प्रयास किया गया। इसके अलावा ED, CAG, CVC को बदनाम करने की कोशिश की गई और दोष मोदी सरकार पर डाला गया। ऐसा इन संस्थानों की विश्वसनीयता को कानूनी तौर पर/ राजनैतिक रूप से नष्ट करने के लक्ष्य से किया गया ताकि किसी भी प्रतिकूल खुलासे (ED द्वारा), आदेश (अदालतों द्वारा) या रिपोर्ट (CAG द्वारा Rafale पर, CVC द्वारा CBI पर) से स्वयं को बचाया जा सके।

(स्कोर- मोदी +2, विपक्ष -6)

मोदी सरकार ने विभिन्न समस्याओं एवं विपरीत परिस्थितियों को बहुत अच्छे से नियंत्रित किया, जिसकी कल्पना कॉन्ग्रेस ने नहीं की थी। SC के 4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के मामले में, मोदी सरकार ने न्यायिक संस्थागत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, समस्या को आंतरिक रूप से हल करने पर जोर दिया। लेकिन जब हस्तक्षेप की ज़रूरत पड़ी, जैसे CBI के मामले, तो मोदी सरकार पीछे नहीं हटी, क्योंकि वह जानती है कि आखिर में लोकतंत्र में जबाबदेही सरकार की है, किसी और की नहीं। और अंत में मोदी सरकार सही सिद्ध हुई जब SC द्वारा आलोक वर्मा को हटाने की मंज़ूरी मिल गई। CBI निर्देशकों पर भ्रष्टाचार का आरोप व आंतरिक झगड़े के कारण विश्वसनीयता में कमी आने के बावजूद मोदी सरकार ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि संस्थागत अवमानना एवं किसी भी स्तर पर गलतियाँ स्वीकार्य नहीं होंगी। इसके फलस्वरूप, संस्थानों को मज़बूत बनाकर, भविष्य के लिए सही पथ निर्धारित हुआ है।

वाड्रा व चिदंबरम से पूछताछ और कोलकाता पुलिस कमिश्नर प्रकरण के बाद, विपक्ष और मीडिया में एक वर्ग यह प्रचारित कर रहा है कि CBI व ED, मोदी सरकार के आदेशानुसार काम कर रही है। लेकिन वे यह भूल रहे है कि यदि यह सच होता तो मोदी सरकार इतनी आसानी से CBI निर्देशक को निकाल नहीं पाती।

(स्कोर- मोदी +4, विपक्ष -6)

अब जब और कुछ काम नही किया तो कॉन्ग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से न्यायालयों को अपने पक्ष में निर्णय देने के लिए इस प्रकार धमकी दी-

1. विपक्ष की पसंद के न्यायधीषों को जज लोया मामले को सौंपने के लिए अदालतों पर दबाव डाला

2. महाभियोग प्रस्ताव

3. अदालतों में विशेष प्रस्तावों की अस्वीकृति पर, कॉन्ग्रेस के वकीलों ने बहिष्कार की धमकी दी।

2017 में राम मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान, माननीय CJI व SC ने कॉन्ग्रेस व उनके समर्थित वकीलों (सिब्बल, दवे, धवन) को फटकार लगाते हुए कहा कि “जब वकील संवैधानिक भाषा के अनुरूप वाद नहीं करते, तो हम इसे कब तक सहन करेंगे? यदि स्वयं नियमित नहीं करते, तो मजबूरन हमें इसे नियंत्रित करना होगा”।

इसी प्रकार, जज लोया मामले में, माननीय SC की वकील दुष्यंत दवे पर टिप्पणी- “याचिकाकर्ताओं का प्रयास पक्षपात पैदा करना और न्यायाधीशों की गरिमा को खराब करना है”।

कॉन्ग्रेस द्वारा उपरोक्त रणनीति के बावजूद, सरकार ने कोई जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं की। विपक्ष के गलत कार्यों एवं NDA के खिलाफ झूठे मामलों को देखते हुए, अदालतों के निर्णय विपक्ष के पक्ष में नहीं थे ( जैसे राफ़ेल, जज लोया, CBI, साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद आदि) और सुनवाई के लिए राम मंदिर मामले को सूचीबद्ध किया गया।

2017 में ज़मानत के बाद, साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि UPA के दौरान उनकी गिरफ्तारी के बाद- “मुझे हिरासत में 24 दिनों के लिए दिन-रात पुरुष अधिकारियों द्वारा एक मज़बूत बेल्ट से बेरहमी से पीटा गया। मेरे हाथ-पैर सूज गए थे, जिन्हें नमक वाले गरम पानी में डालने के पश्चात, मारपीट फिर से शुरू की जाती। हिरासत में अधिकारियों ने मुझे गंदी गालियांँ दी एवं आपत्तिजनक CD देखने के लिए मजबूर किया। वे RSS के वरिष्ट नेताओं को फँसाने के लिए मुझसे जबरन दोष स्वीकृत करवाना चाहते थे”।

(स्कोर- मोदी +4, विपक्ष -7)

कॉन्ग्रेस ने राम मंदिर मामले में विलंब करने की पूरी कोशिश की, इस उम्मीद से कि मोदी सरकार SC में सुनवाई के दौरान, कुछ कानूनी रूप से चुनौतिपूर्ण कदम उठाए। जिससे वे यह झूठी मंशा बनाना चाहते थे कि मोदी सरकार संविधान और न्यायपालिका का सम्मान नहीं करती। साथ ही मोदी सरकार के पिछले 4.5 वर्षों के राष्ट्र-शांति के रिकॉर्ड में बाधा डालने का भी इनका लक्ष्य था।

हालाँकि, कॉन्ग्रेस राम मंदिर मामले में देरी करने में सफल रही है, लेकिन मोदी सरकार ने संविधान और न्यायपालिका के प्रति अत्यंत संयम व सम्मान दर्शाया जिसके फलस्वरूप कॉन्ग्रेस की मोदी सरकार को बदनाम करने व देश में अशाँति की चाह पूरी नहीं हुई।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -7)

फिर, कॉन्ग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से राम मंदिर निर्माण आरंभ तिथि की घोषणा करके, प्रेरित समूहों को उत्तेजित करने का प्रयास किया। लक्ष्य फिर से देश की शांति को भंग करके, दोष मोदी सरकार पर डालने का था। यह पूर्ण रूप से संविधान के खिलाफ था। मोदी व योगी सरकार ने इस समस्या को भी बहुत अच्छी तरह से संभाला।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी पर अपने गलत बयान को माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला बताकर पेश करना यह दिखाता है कि अब कॉन्ग्रेस जिस अवस्था में है, वो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -8)

भाग 2- चुनाव आयोग*

2014 के बाद , BJP को एक के बाद एक, चुनावों में जीत मिलती रही, जिसे देखकर विपक्ष को अपने राजनैतिक अस्तित्व पर संदेह होने लगा। उन्होंने चुनाव आयोग एवं EVM को बदनाम करना शुरू कर दिया ताकि मतदान प्रक्रिया के बारे में लोगों के मन में संदेह पैदा हो जाए। लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला, एवं यदि थोड़ा भी संदेह था, वह राजस्थान, MP, CG चुनाव में कॉन्ग्रेस की जीत के बाद खत्म हो गया। फिर भी विपक्ष ने, माननीय कोर्ट्स के द्वारा अपने अनेक याचिकाओं को खारिज करने के बावजूद, EVMs के खिलाफ गलत प्रचार जारी रखा है।

कुछ दिन पहले के गुजरात HC निर्णय के कुछ अंश-

“हमें EVMs की विश्वसनीयता और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर पूर्ण विश्वास है”।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -9)

भाग- 3 संसद

PM मोदी ने अपनी लोकसभा यात्रा की शुरुआत संसद में शीश झुकाकर की एवं सख्ती से सांसदों व अधिकारियों को अधिक से अधिक उत्पादकता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का आदेश दिया। इससे जनता व संसद के प्रति सम्मान स्पष्ट दिखाई दिया। संसद की कार्यवाही में बाधा डालने का हर प्रयास विपक्ष द्वारा किया गया। इसके बावजूद, 16वीं लोकसभा सबसे सफल रही।

(स्कोर- मोदी +6, विपक्ष -10)

भाग 4- सैन्यबल

मोदी सरकार ने सशस्त्र बलों की संस्था को कई माध्यमों से मज़बूत करने के प्रयास किए हैं

1. सैन्यबलों को कार्यवाही करने की खुली छूट

2. राफ़ेल, S400, एवं अन्य आवश्यकताओं (बुलेट प्रूफ जैकेट आदि) की प्राप्ति

3. वन रैंक वन पेंशन

4. PM ने सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए हर दिवाली सेना के साथ मनाई

कॉन्ग्रेस ने सेना के मनोबल को कम करने व मोदी सरकार को सेना के प्रति लापरवाह दर्शाने का पूरा प्रयास किया-

1. जब JNU में टुकड़े गैंग ने भारत व सेना के खिलाफ नारे लगाए, तब राहुल गाँधी एवं अधिकांश विपक्षी दलों ने उनका समर्थन किया

2. सेना प्रमुख को “सड़क का गुंडा” कहा

3. सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के लिए प्रमाण माँगा

4. शत्रु देश व उसके PM की प्रशंसा

5. कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन से प्रेरित रिपोर्ट को बढ़ावा

6. भारत के रक्षा खर्च को कम दिखाने के लिए गलत प्रचार का समर्थन

7. राफ़ेल सौदे को रद्द करने के लिए हर संभव कोशिश करना

8. मोदी सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए सुरक्षा बलों के उपयोग का आरोप लगाना

लेकिन, दी गई स्वतंत्रता एवं ऊँचे मनोबल के फलस्वरूप, सेना ने पिछले 5 वर्ष में प्रतिकूल परिस्थितियों में अभूतपूर्व परिणाम दिए हैं।

1. पहली बार दुश्मन के इलाके में घुसकर सर्जिकल एवं एयर स्ट्राइक का संचालन करना

2. हमारी सीमाओं (कश्मीर, नक्सलियों व अन्य राज्यों में आतंकवादियों) के भीतर आतंकवादियों को खत्म करना

मोदी सरकार के तहत खुफिया एजेंसियों को भी मज़बूत किया गया है, जिससे देश भर में आतंक के कई प्रयासों को रोका गया। परिणाम स्वरूप, कश्मीर के अलावा, भारत ने पिछले 5 वर्षों में कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं देखा।

जैसा कि सब जानते है कि पहले रक्षा खर्च का प्रमुख हिस्सा बिचौलियों, राजनेताओं आदि के पास जाता था। लेकिन अब, बिचौलियों को हटाने के बाद, बहुत सारा पैसा बचाया जा रहा है। विरोधी भी इस बात से सहमत हैं कि PM मोदी धन के अभाव में राष्ट्रीय सुरक्षा पर समझौता नहीं करेंगे।

PM मोदी ने ISRO और DRDO को भी मज़बूत बनाया। इसका नतीजा भी हमने हाल ही में देखा जब स्पेस स्ट्राइक (मिशन शक्ति) की गई और भारत, स्पेस वारफेयर क्षमता में, वर्ल्ड के टॉप 4 देशो में शामिल हो गया। उससे पहले स्पेस में एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च करके भारत ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

(स्कोर- मोदी +10, विपक्ष -12)

भाग 5- राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन

मोदी सरकार का शुरू से ही लक्ष्य बडे़ पैमाने पर ऐसी योजनाओं को प्रारंभ करने का रहा है जिनके माध्यम से जनता एकजुट होकर प्रेरित हो (जैसे स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ, आदि)। यह भारत जैसे विशाल व विविध आबादी वाले देश में कम समय में कुछ बड़ा करने का नया, सटीक एवं सही प्रयास साबित हुआ। PM मोदी की सोच व क्षमता ने इन प्रयासों को सफल बनाया।

मोदी सरकार के पिछले सरकारों के मुकाबले में नए दृष्टिकोण के तहत मिलने वाली सफलता को आँकने में कॉन्ग्रेस को काफी समय लगा। इसीलिए, शुरुआत में विपक्ष ने सरकार की योजनाओं का मजा़क उड़ाया। लेकिन जब उन्हें इन  की सफलता का एहसास हुआ तब उन्होंने इन योजनाओं की निंदा करना और गलत भ्रांति फैलाना प्रारंभ कर दिया, यह कहकर कि सब सिर्फ दिखावा है, असल में कुछ नहीं हो रहा है।

लेकिन सामने आए अधिकतर आँकड़ो ने मोदी सरकार के अर्थव्यसवस्था के विकास, नौकरियों का सृजन, बिजली, स्वच्छता, LPG कवरेज और बडे़ पैमाने पर कई अन्य उपलब्धियों के दावों का समर्थन किया। इसे देखकर, विपक्ष ने नेशनल स्टैटिस्टिकल कमिशन (NSC) को बदनाम करना शुरू कर दिया एवं भारत के आँकड़े मोदी सरकार के तहत विश्वसनीय नहीं है, ऐसा गलत प्रचार किया।

लेकिन विश्व स्तर पर प्रसिद्ध संगठनों ने विभिन्न मापदंडों पर भारत का उन्नयन किया- क्रेडिट रेटिंग, व्यवसाय करने में आसानी, बिजली पहुँच, गरीबी मिटाने आदि और भी काफी सारे पैमानों पर भारत आगे बढ़ता नज़र आया। पिछले 5 वर्षों में रिकॉर्ड मात्रा में FDI व FII ने मोदी सरकार की विश्वसनीयता का अप्रत्यक्ष रूप से प्रमाण दिया। ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध है जहाँ मोदी सरकार के तहत भारत के विकास को पहचाना और सराहा गया है।

लेकिन यहाँ भी, भारत की प्रशंसा करने पर वैश्विक संस्थानों की निंदा करके, विपक्ष ने स्वयं अपने गलत प्रचार का पर्दाफाश किया।

(स्कोर- मोदी +10,  विपक्ष -13)

भाग 6- अन्य कार्य में असफल, लेकिन ‘विपक्ष’ को बदनाम करने में सफल

संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश में विपक्ष ने अपनी ही विश्वसनीयता एवं सम्मान को खो दिया है। अब, असहाय होने के कारण, विपक्ष अब मोदी पर बार बार वही झूठे आरोप (संस्थाओं को नष्ट करना, संविधान खतरे में, EVM में गड़बड़ी, राफ़ेल आदि) रिपीट कर रहा है  इस आशा में कहीं शायद कभी कोई तुक्का लग जाए।

PM मोदी की विश्वसनीयता तो पहले से बढ़ ही रही है, लेकिन विपक्ष खुद खुले आम जहाँ-जहाँ उसकी सरकार है, वहाँ संस्थाओं को नष्ट करने एवं संविधान की अवलेहना करने के कई काम कर रहा है उसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं—-

1. ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर के साथ धरने पर बेठी, जो साफ दर्शाता है कि पुलिस TMC के लिए काम करती है, राज्य के लिए नहीं।

2. ममता बनर्जी ने राज्य में विपक्षी नेताओं को चुनाव प्रचार की अनुमति न देकर, संविधान की अवलेहना की

3. अखिलेश यादव ने अप्रत्यक्ष रूप से पत्रकारों को अपने बारे में सब अच्छा लिखने को कहा, जिसका भुगतान वे सरकार बनने के बाद करेंगे

4. कर्नाटक पुलिस ने ‘मोदी’ का नाम बार बार लेने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया

5. कई विपक्षी राज्यों ने CBI जाँच पर प्रतिबंध लगाया (बंगाल, आंध्र, छत्तीसगढ़)

6. कई विपक्षी नेताओं ने सरकारी मकानों पर, बिना किसी हक़ व अदालत के निर्देशों के बावजूद, कब्जा बनाए रखा है

7. कॉन्ग्रेस खुलेआम टुकड़े गैंग का समर्थन कर रही है, जो भारत को तोड़ने का आह्वान कर रहे हैं। अफज़ल गुरू को न्यायिक शोषण का शिकार बताकर, आतंकवादियों का भी समर्थन कर रही है।

8. राहुल गाँधी ने HAL को सरकार के खिलाफ करने का प्रयास किया

9. नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान गए और बिना किसी अधिकार के संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत की

10. पिछले 5 वर्षों में कई बार विपक्ष के द्वारा देश में हलचल मचाने के लक्ष्य PSU बैंको व ATMs में पैसे नहीं होने का गलत प्रचार किया गया

(स्कोर- मोदी +10,  विपक्ष -25)

भाग 7- क्या मोदी सरकार द्वारा संस्थाओं की अवलेहना का कोई विशेष उदाहरण है?

मैंने खोजने का बहुत प्रयास किया, लेकिन PM मोदी द्वारा कोई भी ऐसा बयान या कार्य नहीं मिला जो संविधान और संस्थाओं की अवलेहना करता हो।

कुछ लोग कह रहे हैं कि जो अमित शाह ने केरल में सबरीमला पर कहा, वो माननीय SC की अवलेहना है। असल में, उन्होंने जो कहा, वह भविष्य में किसी के भी द्वारा अवलेहना से बचाने के लिए कहा। कठोर सत्य यह है कि SC के कई आदेश पिछले कई वर्षों से लागू नहीं किए गए हैं। ऐसे मामलों में SC की विश्वसनीयता कम हो जाती है और भविष्य में आदेशों का पालन नहीं करना आसान हो जाता है।

साथ ही मोदी सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए सेना का उपयोग करने के आरोप के विषय में हमें सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या सेना ने जो किया, वो नहीं किया जाना चाहिए था? सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, देश में रहे आतंकवादियों को मारना, आतंकी हमलों को रोकना?

यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि सशस्त्र बलों ने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया, जो गलत हो या नहीं करना था। ऐसे में सेना का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए कैसे किया जा सकता है? वे तो सिर्फ देश की रक्षा के लिए, जो उपयुक्त है, वही कर रहे है। और यदि कोई सोचे कि मोदी सरकार को इन कार्यों से राजनीतिक लाभ मिल रहा है, तो यह उनकी मूर्खता है।

जाहिर है कि यदि कोई सरकार सख्त निर्णय लेगी तो उसे सराहा जाएगा, ठीक इसी प्रकार यदि कुछ गलत हो जाता तो सरकार को ही दोषी माना जाता। इसलिए, यदि समझदारी से विचार किया जाए तो मोदी सरकार द्वारा किया गया कोई भी ऐसा कार्य, जो संविधान के विरुद्ध हो, मिल पाना मुश्किल है।

अब यदि विपक्ष के द्वारा संवैधानिक अवहेलना एवं संस्थागत अवमानना पर विचार किया जाए, तो कई सारे उदाहरण और मिल जाएँगे। और यदि उनके इतिहास के बारे में सोचा जाए, तो ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं होगी।

अंतिम स्कोर- मोदी +10, विपक्ष -25 (गिनती जारी है)

एक भारतीय के रूप में हमें इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान व संस्थाएँ, दोनो ही मोदी सरकार मैं पूर्ण रूप से संरक्षित हैं।