Thursday, October 10, 2024
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अमेठी राइफल फैक्ट्री: राहुल गाँधी का महाझूठ, देशी कट्टे और AK-47 के बीच अंतर भूले

राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनसे क्रेडिट छीनने का आरोप लगाया है। मामला रूस के सहयोग से अमेठी में स्थापित कलाश्निकोव राइफल फैक्ट्री से जुड़ा है। यहाँ अत्याधुनिक एक-47 राइफल्स का निर्माण किया जाएगा। कलाश्निकोव 203 दुनिया की आधुनिकतम एके-47 राइफल्स में से एक है। पीएम मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगाने वाले राहुल गाँधी इस दौरान स्वयं झूठ बोल गए। मामले को समझने से पहले पूरे घटनाक्रम पर एक नज़र डाल कर इसकी तह तक जाना ज़रूरी है।

रविवार (मार्च 4, 2019) को अमेठी के कौहर स्थित सम्राट मैदान में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कोरवा मुंशीगंज में राइफल फैक्ट्री के उद्घाटन को लेकर लोगों को जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘मेड इन अमेठी’ AK-203 राइफलों से आतंकियों और नक्सलियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों में हमारे सैनिकों को निश्चित रूप से बहुत बढ़त मिलने वाली है। उन्होंने इस फैक्ट्री से अमेठी के युवाओं को रोज़गार मिलने की भी बात कही।

इस दौरान प्रधानमंत्री ने राहुल गाँधी और पिछली यूपीए सरकार पर इस फैक्ट्री को लेकर निशाना साधते हुए कहा:

आपके सांसद ने जब 2007 में इसका शिलान्यास किया, तब ये कहा गया था कि साल 2010 से इसमें काम शुरू हो जाएगा लेकिन काम शुरू होना तो दूर, तीन साल में पहले की सरकार ये तय ही नहीं कर पाई कि अमेठी की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में किस तरह के हथियार बनाए जाएँ। इतना ही नहीं, ये फैक्ट्री बनेगी कहाँ, इसके लिए ज़मीन तक उपलब्ध नहीं कराई गई। हमारे देश को आधुनिक राइफल ही नहीं, आधुनिक बुलेटप्रूफ जैकेट ही नहीं, आधुनिक तोप के लिए भी इन्हीं लोगों ने इंतजार कराया है।”

इसके बाद राहुल गाँधी ने ट्वीट कर उनके द्वारा किए गए कार्यों का श्रेय लेने का आरोप पीएम मोदी पर लगाया। राहुल ने इस फैक्ट्री के 2010 में शिलान्यास करने की बात कही। उन्होंने कहा कि कई वर्षों से वहाँ छोटे-छोटे हथियारों का उत्पादन चल रहा है। इस दौरान राहुल देशी कट्टे और अत्याधुनिक कलाश्निकोव 203 एके-47 राइफल्स के बीच का अंतर भूल गए। उन्होंने छोटे हथियारों की बात कह अपनी उस ‘बुद्धिमत्ता’ का परिचय दिया, जिसके लिए वह जाने जाते हैं। अखिलेश पी सिंह जैसे कॉन्ग्रेसी नेताओं ने भी राहुल के इस बयान को आगे बढ़ाया।

अगर संक्षिप्त में इस फैक्ट्री की टाइमलाइन खीचें तो 2005 में ही सेना ने तत्कालीन यूपीए सरकार से अत्याधुनिक राइफल्स ख़रीदने की माँग की थी। इसके बाद 2 वर्ष सरकार को यह निर्णय करने में ही लग गए कि इस फैक्ट्री को कहाँ स्थापित किया जाएगा। 2007 में अमेठी में राइफल फैक्ट्री के निर्माण का निर्णय लिया गया। इसके बाद 3 वर्ष सरकार को ये तय करने में लगा कि इस फैक्ट्री में किस प्रकार का हथियार बनेगा। कुल मिला कर देखें तो इन सबके बावजूद भी यूपीए सरकार इसको अमली जामा पहनाने में नाकाम साबित हुई। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गाँधी के इस झूठ पर से पर्दा उठाने के लिए 2010 के एक न्यूज़ रिपोर्ट का हवाला दिया। ‘TOI’ के इस रिपोर्ट में लिखा गया है:

“अत्याधुनिक कार्बाइन निर्माण के लिए प्रस्तावित फैक्ट्री का शिलान्यास कर दिया गया लेकिन यह नहीं तय किया गया कि यहाँ कौन सी नयी तकनीक की राइफल्स बनेंगी। अनुचित साइट का चयन और अपर्याप्त मॉनिटरिंग की वजह से ये परियोजना काफ़ी धीमी गति से आगे बढ़ी। कैग रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना में बुरी तरह से देरी होने की संभावना है, जिससे सेना को तत्काल आवश्यक कार्बाइन की आपूर्ति नहीं हो पाएगी।”

राहुल गाँधी अब कैग सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते रहते हैं लेकिन उन्हीं की सरकार के दौरान कैग ने जो बातें कहीं, उन्हें वह कैसे झूठलाएँगे? कैग ने साफ़-साफ़ कहा है कि एक नहीं बल्कि कई स्तरों पर हुई देरी के कारण ये फैक्ट्री अधर में लटकी रही। इसके लिए 60 एकड़ भूमि की ज़रूरत थी लेकिन इसके उलट सिर्फ़ 34 एकड़ ज़मीन का ही इंतजाम हो सका। ये मसला वर्षों तक उत्तर प्रदेश सरकार के साथ पेंडिंग रहा। 2006 में एक ‘साइट सिलेक्शन कमिटी’ की गठन के बावजूद इस तरह की देरी पिछली केंद्र सरकार के ढुलमुल रवैये को प्रदर्शित करता है।

अमेठी में राइफल फैक्ट्री पर भाजपा का पोस्टर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही कहा कि उन्होंने ‘राइफल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट’ का उद्घाटन किया है लेकिन राहुल इन तकनीकी चीजों को समझे बिना आक्षेप लगाने में महारत रखते हैं। राहुल को आयुध फैक्ट्री और राइफल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के बीच का अंतर ही नहीं पता। राहुल को यह भी नहीं पता कि शिलान्यास और उद्घाटन में क्या फ़र्क़ होता है। उन्होंने ये जानने की भी कोशिश नहीं की कि पिछली सरकारों द्वारा शिलान्यास की गई कई परियोजनाएँ वर्षों तक धूल फाँकती रही, जिनमें से कई को वर्तमान सरकार ने पूरा कराया।

कलाश्निकोव राइफल उत्पादन को लेकर भी मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद कार्य शुरू हुआ। रूस के साथ इस बाबत करार किया गया, जिससे यहाँ साढ़े सात लाख अत्याधुनिक राइफल्स का निर्माण होगा, देशी कट्टे और गुल्ली-डंडे का नहीं। राहुल गाँधी ने जिस फैक्ट्री का शिलान्यास किया था, उसके लिए ₹400 करोड़ के क़रीब का बजट प्रस्तावित था जबकि नरेंद्र मोदी द्वारा की गई ताज़ा घोषणा में ₹12,000 करोड़ की लागत आएगी ‘मेड इन फलाना’ से लेकर ‘मेड इन ढिंगना’ तक की बात करने वाले राहुल को ‘मेड इन अमेठी’ आख़िर पच क्यों नहीं रहा?

महाभारत-कालीन शिव मंदिर जो मृत को भी देता है जीवन: #महाशिवरात्रि पर उत्तराखंड से Exclusive रिपोर्टिंग

उत्तराखंड का आदिकालीन सभ्यताओं से गहरा नाता रहा है। यहाँ ऐसे अनेक स्थान मौजूद हैं, जहाँ ऐतिहासिक एवं पौराणिक काल के अवशेष बिखरे पड़े हैं। इन्हीं में एक स्थल है देहरादून जिले के जौनसार-बावर का लाखामंडल गाँव। माना जाता है कि द्वापर युग में दुर्योधन ने पाँचों पांडवों और उनकी माता कुंती को जीवित जलाने के लिए यहाँ लाक्षागृह का निर्माण किया था। एएसआइ को खुदाई के दौरान यहाँ मिले सैकड़ों शिवलिंग व दुर्लभ मूर्तियाँ इसकी तस्दीक करती हैं। युवा पत्रकार आशीष नौटियाल की यह फोटो-फीचर रिपोर्ट लाखामंडल पर ही है।

यमुना नदी के उत्तरी छोर पर स्थित देहरादून जिले के जौनसार-बावर का लाखामंडल गाँव ऐतिहासिक ही नहीं पौराणिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है। समुद्रतल से 1372 मीटर की ऊँचाई पर स्थित लाखामंडल गाँव देहरादून से 128 किमी, चकराता से 60 किमी और पहाड़ों की रानी मसूरी से 75 किमी की दूरी पर है। लाखामंडल की प्राचीनता को कौरव-पांडवों से जोड़कर देखा जाता है।

गढ़वाल की पारंपरिक शैली में बना मंदिर परिसर
मुख्य मंदिर जिसे युधिष्ठिर ने बनाया था
मंदिर का रक्षक प्रहरी
रक्षक प्रहरी की सामने से ली गई तस्वीर

मान्यता है कि कौरवों ने पांडवों व उनकी माता कुंती को जीवित जलाने के लिए ही यहाँ लाक्षागृह (लाख का घर) का निर्माण कराया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि लाखामंडल में वह ऐतिहासिक गुफा आज भी मौजूद है, जिससे होकर पांडव सकुशल बाहर निकल आए थे। लोगों का कहना है कि इसके बाद पांडवों ने ‘चक्रनगरी’ में एक माह बिताया, जिसे आज चकराता कहते हैं। लाखामंडल के अलावा हनोल, थैना व मैंद्रथ में खुदाई के दौरान मिले पौराणिक शिवलिंग व मूर्तियाँ गवाह हैं कि इस क्षेत्र में पांडवों का वास रहा है।

लोग इन्हें भीम की गदा बताते हैं। ASI की ख़ुदाई में यहाँ लगातार ऐसी आकृतियाँ और भगवान की मूर्तियाँ निकलती हैं
पांडव गुफा का द्वार
पांडव गुफा के अंदर बैठकर बाबा ‘चिल’ करते हुए
बाबाजी ‘calm’ मूड में

कहते हैं कि पांडवों के अज्ञातवास काल में युधिष्ठिर ने लाखामंडल स्थित लाक्षेश्वर मंदिर के प्रांगण में जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वह आज भी विद्यमान है। इसी लिंग के सामने दो द्वारपालों की मूर्तियाँ हैं, जो पश्चिम की ओर मुँह करके खड़े हैं। इनमें से एक का हाथ कटा हुआ है। शिव को समर्पित लाक्षेश्वर मंदिर 12-13 वीं सदी में निर्मित नागर शैली का मंदिर है।

यात्रियों को मंदिर के बारे में समझाते हुए स्थानीय बुजुर्ग। यह यूट्यूब पर भी मंदिर के बारे में बताते हुए दिख जाते हैं। हालाँकि यह मंदिर से ज्यादा यह बताते हैं कि ‘उटूब’ पर भी आता हूँ।
मंदिर में श्रद्धालु करा रहे फोटो सैशन
मंदिर के बाहर का दृश्य- शांति और सुकून देने वाला
शिवलिंग का जलाभिषेक करते श्रद्धालु
मंदिर के द्वार की शोभा बढ़ाती हुई घंटिया

कर्नाटक: कॉन्ग्रेस MLA उमेश जाधव ने दिया इस्तीफ़ा, थाम सकते हैं BJP का हाथ

लोकसभा चुनाव नज़दीक आते ही कर्नाटक में एक बार फिर से सियासी हलचल शुरू हो गई है। यहाँ कॉन्ग्रेस के विधायक उमेश जाधव ने विधानसभा स्पीकर केआर रमेश कुमार को आज (मार्च 4, 2019) को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है। हालाँकि इस्तीफ़ा देने का कारण अभी तक सामने नहीं आया है। लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि इस कदम के बाद वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं।

आपको बता दें कि 6 मार्च को कुलबर्गी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक रैली को संबोधित करने वाले हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस मौक़े पर जाधव को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दी जा सकती है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो यदि जाधव भाजपा से जुड़ते हैं तो यह लगभग निश्चित है कि कुलबर्गी से भाजपा उन्हें ही कॉन्ग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के ख़िलाफ़ अपना उम्मीदवार बनाकर उतारेगी। बता दें कि कुलबर्गी की चिंचोली विधानसभा सीट से उमेश जाधव दो बार विधायक चुने जा चुके हैं।

विधायक जाधव के इस फ़ैसले के साथ ही कुल 225 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में कॉन्ग्रेस के विधायकों की संख्या अब 80 से घटकर 79 रह गई है।

इसके अलावा बताते चलें कि उमेश जाधव कॉन्ग्रेस के उन चार विधायकों में से एक हैं, जो पिछले दो बार से कॉन्ग्रेस विधायकों की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। यही कारण था कि कॉन्ग्रेस ने उनकी शिकायत विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार से की थी। साथ ही उनके ख़िलाफ़ दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई करने की माँग भी की गई थी।

47 साल की माँ, 28 की बेटी… साथ जाती थीं कोचिंग, एक ही साथ मिली नौकरी

तमिलनाडु के थेनी जिले की 47 वर्षीय महिला ने अपनी 28 वर्षीय बेटी के साथ राज्य सेवा आयोग की परीक्षा पास करके ये साबित कर दिया है कि पढ़ने या सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मन में अगर ललक और मजबूत इच्छाशक्ति हो तो उम्र या परिस्थितियाँ मायने नहीं रखतीं।

तीन बच्चों की माँ एन शांतिलक्ष्मी और उनकी बेटी आर तेनमोजी ने राज्य सेवा आयोग ग्रुप-4 की परीक्षा पास करके सरकारी नौकरी हासिल की है। शांतिलक्ष्मी की नियुक्ति स्वास्थ्य विभाग में हुई है जबकि तेनमोजी की नियुक्ति धर्मस्व विभाग में।

5 साल पहले तक शांतिलक्ष्मी एक गृहिणी थीं। लेकिन 2014 में पति के निधन के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारियाँ उन पर आ गईं। इसके बाद कला में स्नातक (बीए) व बीएड कर चुकीं शांतिलक्ष्मी ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी।

वो दिन जब बदल गई शांतिलक्ष्मी की सोच

एक दिन शांतिलक्ष्मी अपनी बड़ी बेटी आर तेनमोजी का दाखिला एक नि:शुल्क कोचिंग में करवाने गईं। वो वहाँ पर गई तो थीं अपनी बेटी का दाखिला करवाने मगर किस्मत को कुछ और मंजूर था। बातचीत में जब उस कोचिंग के संचालक जी. सेंथिलकुमार ने उन्हें बताया कि वो भी परीक्षा दे सकती हैं तो शांतिलक्ष्मी ने भी बेटी के साथ कोचिंग जाने का मन बना लिया। फिर दोनों माँ-बेटी एक साथ कोचिंग जाने लगीं।

जब कभी किसी पारिवारिक जिम्मेदारियों या फिर किसी अन्य कारणों से माँ कोचिंग नहीं जा पाती थीं, तो बेटी ही माँ को घर पर पढ़ा देती थी। कोचिंग के सँचालक के मुताबिक इस पद के लिए दसवीं तक की योग्यता अनिवार्य थी और उम्र सीमा में असीमित छूट भी। आयुसीमा में यही छूट शांतिलक्ष्मी के लिए वरदान साबित हुआ। सेंथिलकुमार बताते हैं कि कक्षा में अन्य छात्र शांतिलक्ष्मी की बेटी के उम्र के थे, लेकिन शांतिलक्ष्मी ने प्रश्न पूछने में कभी हिचकिचाहट महसूस नहीं की।

हाल ही में तमिलनाडु राज्य सेवा आयोग की परीक्षा के परिणाम घोषित हुए हैं। इसमें दोनों माँ- बेटी का चयन हो गया है। शांतिलक्ष्मी को उम्मीद है कि उनकी पोस्टिंग होम-टाउन में ही होगी। लेकिन वो दृढ़संकल्प से यह भी कहती हैं कि अगर ऐसा ना भी हुआ तो भी वो नौकरी को ना नहीं कहेंगी।

#महाशिवरात्रि: भारत का कोई श्रद्धालु नहीं करेगा इस मंदिर जाकर भगवान शिव के दर्शन, जानें वजह!

आज मंदिरों में लगी लंबी कतारें इस बात का प्रमाण हैं कि महाशिवरात्रि के पावन मौक़े पर हर शिव श्रद्धालु अपने प्रभु की भक्ति में लीन है। लेकिन इस शुभ अवसर पर शिव का एक मंदिर ऐसा भी है, जहाँ भारत से कोई भी श्रद्धालु दर्शन के लिए नहीं पहुँच रहा है।

हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के लाहौर से 280 किमी दूर पहाड़ियों पर स्थित भगवान शिव के कटासराज मंदिर की। यहाँ आज महाशिवरात्रि पर भारत से कोई भक्त शिव दर्शन के लिए नहीं पहुँचा है। ज़ाहिर है इसका कारण दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव ही हैं। जिसके कारण श्रद्धालुओं ने पाकिस्तान जाने का वीजा ही नहीं लिया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि इन दोनों देशों के बीच बढ़ते तनावों के कारण श्रद्धालुओं की भक्ति पर असर पड़ा हो, इससे पहले भी ऐसी स्थिति 1999 के कारगिल युद्ध और 2008 के मुंबई हमले के बाद पैदा हुई थी।

दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट में लगातार 36 साल से भारतीय लोगों को कटासराज लेकर जाने वाले संयोजक शिवप्रताप बजाज ने बताया कि भारत के 141 श्रद्धालुओं ने कटासराज जाने के लिए वीजा की अर्जी लगाई थी। लेकिन पुलवामा हमले के बाद उन्होंने वहाँ न जाने का फैसला किया है। शिवप्रताप बताते हैं कि सिंध के कुछ हिंदू उनकी ओर से भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे।

भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक 1000 साल से भी ज्यादा पुराने इस मंदिर को महाशिवरात्रि के लिए साफ़ किया गया है। कुछ समय पहले इसके पास लगी सीमेंट फैक्ट्रियाँ बोरवेल से पानी निकाल रही थीं। जिससे जमीनी पानी का स्तर घटता गया और सरोवर सूखने की हालत पर पहुँच गया था। लेकिन फिर सिंध के हिंदुओं की याचिका पर पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय ने सरोवर को ठीक करने के आदेश दिए। साथ ही इन फैक्ट्रियों पर 10 करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया और सरोवर के पास से इन्हें हटाने के विकल्प पर भी विचार करने को कहा गया। अब 150 फीट लंबे और 90 फीट चौड़े पवित्र सरोवर का पानी शीशे की तरह साफ़ है। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद से ही पाक सरकार इस मंदिर को यूनेस्को की हैरिटेज लिस्ट में लाने के लिए भी प्रयासरत है।

इस मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता है कि माता सती की मृत्यु होने पर जब शिव रोए थे तो उनके अश्रुओं से एक नदी बन गई थी। इस नदी से दो सरोवर बने। एक तो भारत के पुष्कर में है और दूसरी पाकिस्तान के कटासराज में।

‘अल्लाह जो फैसला करेगा, वो मोदी करेगा’ – PM से प्रभावित एक व्यक्ति के शब्द, वीडियो Viral

पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में हुई एनडीए की संकल्प रैली कई मायनों में अहम रही। सबसे अहम तो यह रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करीब नौ साल बाद किसी चुनाव रैली में एक साथ मंच साझा किया।

इस दौरान पीएम मोदी ने अपने भाषण से विपक्ष को तो करारा जवाब दिया ही, साथ ही एयर स्ट्राइक का सबूत माँगने वाले लोगों को भी आइना दिखाया। लोग पीएम मोदी के भाषण से काफी प्रभावित दिखे। यहाँ प्रधानमंत्री ने 850 भारतीय बंदियों को सऊदी अरब से छोड़े जाने और पूरे विश्व में सिर्फ भारत का हज कोटा बढ़ा कर दो लाख करने की भी बात भी कही।

संकल्प रैली के दौरान अपनी प्रतिक्रिया रखते लोग (साभार: प्रभात ख़बर)

मोदी की इस बात पर यहाँ भाषण सुनने आए लोगों ने अपने विचार रखे। इन्हीं में से एक थे अब्दुल जब्बार कासमी। इन्होंने पीएम मोदी की तुलना अल्लाह से कर दी। अब्दुल जब्बार ने कहा कि मोदी जी अल्लाह तो नहीं है। मोदी जी इंसान है और इंसान अल्लाह से बढ़कर तो नहीं होता। लेकिन अल्लाह जो फैसला करेगा, मोदी वही करेगा। वहीं जब उनसे प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछा गया कि मोदी और राहुल में से किसे पीएम बनना चाहिए तो उन्होंने इसे भी अल्लाह के ऊपर छोड़ते हुए कहा जो अल्लाह चाहेगा, वही होगा।

इस मौके पर एक महिला भी पीएम मोदी का पूर्ण समर्थन करती दिखीं। महिला का कहना था कि जब पीएम मोदी ने इतनी बड़ी बात सुलझा दी तो हम उन्हें एक बार नहीं, पाँच बार जिताएँगे और आगे बढ़ाएँगे। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है और उन्हें ही आगे भी जिताना चाहिए।

बता दें कि पीएम मोदी ने भाषण देते हुए कहा कि 50 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत को इस्लामिक कॉन्फ्रेंस में गेस्ट ऑफ ऑनर का सम्मान मिला है। पीएम ने कहा कि हाल में भारत दौरे पर आए सऊदी अरब के प्रिंस क्राउन से अरब के जेलों में छोटी-मोटी गलती के कारण बंद भारतीय बंदियों की रिहाई पर बात हुई। जिसके बाद उन्होंने 850 बंदियों को छोड़ने का फैसला भी कर लिया है। इसके साथ ही हज पर जाने वाले भारतीयों का कोटा बढ़ाते हुए दो लाख कर दिया गया। ऐसा सिर्फ भारत के लिए ही हुआ है।

मुर्तजा अली: नेत्रहीन लेकिन सोच हम सबसे आगे की… पुलवामा के वीरों के नाम करेंगे ₹110 करोड़

पुलवामा हमले में बलिदान हुए सीआरपीएफ जवानों के लिए देश के कोने-कोने से लोग मदद भेजने में जुटे हुए हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कोटा के निवासी मुर्तजा अली ने भी वीरगति को प्राप्त हुए सुरक्षाबलों के नाम ₹110 करोड़ देने की इच्छा जताई है।

एक तरफ जहाँ कुछ राजनेता अपनी राजनीति में डूबकर वायुसेना हमले का सबूत माँगने में व्यस्त हैं वहीं एक आम शख्स ने ऐसा कदम उठाकर पूरे देश का दिल जीत लिया। इस 110 करोड़ रुपए की राहत राशि को मुर्तजा ने प्रधानमंत्री राहत कोष में भेजने का फैसला किया है। अपनी जीवन भर की पूँजी को बलिदान हुए जवानों के परिवार वालों के नाम करने वाला यह मुर्तजा अली नामक दिलेर शख्स आखिर है कौन?

मुर्तजा अली मूलत: कोटा के निवासी हैं। लेकिन इस समय वह मुंबई में बतौर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। बलिदान हुए जवानों के परिवार की मदद के लिए मुर्तजा ने पीएम कार्यलय में ईमेल करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय माँगा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी उन्हें 2-3 दिन में पीएम के साथ मिलने का आश्वासन दिया है।

खबरों के अनुसार मुर्तजा पीएम मोदी से उनके कार्यालय में मिलकर उन्हें ₹110 करोड़ का चेक देंगे। इसके लिए उन्होंने पहले से हर कागजी कार्यवाई भी कर रखी है। आपको जानकार हैरानी होगी कि मुर्तजा जन्म से ही नेत्रहीन हैं। बावजूद इसके वो एक जाने-माने वैज्ञानिक हैं। कुछ समय पहले वह फ्यूल बर्न रेडिएशन तकनीक की मदद से जीपीएस, कैमरा या किसी भी अन्य उपकरण के बिना किसी वाहन को ट्रेस करने का आविष्कार कर चुके हैं।

मुर्तजा ने कोटा के कॉमर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। साथ ही उनका ऑटोमोबाइल का पुराना बिजनेस भी है। फिलहाल अपने इस कदम से लोगों के दिलों में घर कर जाने वाले यह वैज्ञानिक PMO के बुलावे का इंतजार कर रहे हैं ताकि बलिदान हुए जवानों के परिवारों तक मदद पहुँचाई जा सके।

UPA-2 ने क्रिश्चियन मिशेल के दबाव में टाला था राफेल डील: रिपोर्ट्स

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले मामले के आरोपित क्रिश्चियन मिशेल का नाम अब राफेल डील में भी सामने आ रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को शक है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 के दौरान राफेल लड़ाकू विमान के सौदे में हुई देरी के लिए वैश्विक डिफेंस डील का चर्चित बिचौलिया क्रिस्चन मिशेल का हाथ हो सकता है। इस संबंध में ईडी अब जाँच कर सकती है। यह जाँच इसलिए भी की जाएगी क्योंकि अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर डील की कथित सफलता के बाद क्रिस्चन मिशेल की पहुँच काफी बढ़ गई थी।

प्रवर्तन निदेशालय के एक सूत्र (उच्च पदस्थ) ने बताया कि 2012 में राफेल डील को लेकर तब की केंद्र सरकार बहुत उत्‍सुक नहीं थी। और यह तब हुआ था जबकि दसॉ (राफेल बनाने वाली कंपनी) को सबसे कम बोली लगाने वाला (L1) घोषित किया जा चुका था। इस कारण से केंद्र सरकार की बातचीत कंपनी के साथ बहुत आगे बढ़ गई थी। लेकिन अचानक से कुछ मुद्दों पर मतभेद काफी बढ़ गया था। इसके बाद मनमोहन सरकार ने इस डील को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया था। प्रवर्तन निदेशालय की नज़र राफेल डील में हुई देरी को लेकर क्रिस्चन मिशेल पर इसलिए भी टिक गई है क्योंकि उसने राफेल के प्रतिस्‍पर्द्धी यूरोफाइटर में अपनी दिलचस्‍पी बढ़ा ली थी।

‘मिशेल को डिफेंस पर कैबिनेट मीटिंग और गुप्त फ़ाइलों का पता’

10 जनवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “अगस्ता वेस्टलैंड के मामले में आरोपित बिचौलिया मिशेल को रक्षा मामले में कैबिनेट की मीटिंग और रक्षा से जुड़ी सरकार की गुप्त फ़ाइलों के बारे में कैसे पता चल जाता था?”

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि देश की जनता कॉन्ग्रेस से यह जानना चाहती है कि मिशेल ने देश की सुरक्षा से जुड़े इन मामलों में कैसे हस्तक्षेप किया। वैश्विक ताकतें अक्सर यह चाहती हैं कि अपने देश की सैन्य ताकत मजबूत नहीं हो। ऐसे में रक्षा सौदे में एक विदेशी बिचौलिए की भूमिका निश्चित रूप से देश के लिए खतरनाक है।

मिशेल की पहुँच CCS, PMO ही नहीं बल्कि जाँच एजेंसियों तक भी!

आपको बता दें कि यह आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन मिशेल के 2009 के डिस्पैच के आधार पर किया गया है, जिसे उसने अपने साथी बिचौलिए, गुइडो राल्फ हाश्के को लिखा था। 6 दिसंबर 2009 के इस डिस्पैच में, हाश्के को अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाले के एक सह-अभियुक्त वकील गौतम खेतान से दूरी बनाने की बात लिखी गई है।

इसका कारण बताते हुए क्रिश्चियन मिशेल ने हाश्के को लिखा था कि खेतान ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के भीतर अपने ‘दोस्त’ के साथ मिलकर रियल एस्टेट फर्म एम्मार एमजीएफ़ के ख़िलाफ़ छापा मारने की कोशिश की थी। उस समय कंपनी अपना पहला इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) शुरू करने वाली थी। लेकिन एमजीएफ़ के लोगों को इसके बारे में पता चल गया था और उन्होंने हाश्के के लोगों को ‘गेट लॉस्ट’ कहा था।

त्रयम्बक, नटराज, आदियोगी… शिव के कई नाम, विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला जिन्हें करती है सलाम!

शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ऐसे शायद शिव आपको भी पहेली लगें इसलिए संसार ने अपनी सुविधा के लिए शिव को कई अलग नाम और गुणधर्म दिए। सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग व्याख्याएँ पर मूल रूप में सभी का मूल एक कल्याण। शिव अर्थात एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और भी कई अन्य अलग-अलग नाम और रूप। क्या कभी आपने सोचा कि क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किए थे भगवान शिव ने?

त्रयंबक

शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है क्योंकि उनकी एक तीसरी आँख है। तीसरी आँख का यह मतलब नहीं है कि माथे में कोई दरार है, जहाँ एक और आँख उग आई है। इसका मतलब बस यह है कि उनका बोध या अनुभव अपनी चरम संभावना पर पहुँच गया है। तीसरी आँख भौतिक नहीं अंतर्दृष्टि की आँख है।

त्रयम्बक शिव

दोनों भौतिक आँखे सिर्फ इन्द्रियाँ हैं। वे आपके मन को हर तरह की फालतू बातों से भरती हैं क्योंकि हम जो देखते हैं, वह सत्य नहीं है। सद्गुरु कहते हैं कि आप किसी इंसान को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। इसलिए एक और आँख को खोलना जरूरी है, जो और गहराई में देख सके।

आपने भी अनुभव किया होगा कि कितना भी सोचने से या दार्शनिक चिंतन से कभी आपके मन को स्पष्टता नहीं मिल पाती है। बहुत सोचकर, कुछ तथाकथित प्रमाण इकठ्ठा कर हम कुछ मान लेते हैं। जिसके बल पर जानने का दावा करते हैं पर सच्चाई यही है कि कोई भी आपकी तार्किक स्पष्टता को बिगाड़ सकता है, मुश्किल हालात आपकी सोच और हर मान्यता को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर सकते हैं। जब आपकी भीतरी दृष्टि खुल जाती है, जब आपके पास एक आंतरिक दृष्टि होती है, तभी आपको पूर्ण स्पष्टता मिलती है। जिसे हम शिव कहते हैं, वह और कुछ नहीं, बस चरम बोध का साकार रूप है।

भोलेनाथ, भोले भंडारी

वैसे तो शिव को हमेशा से एक बहुत शक्तिशाली प्राणी के रूप में देखा जाता रहा है। साथ ही, यह भी समझा जाता रहा कि वह सांसारिक रूप से बहुत चतुर नहीं हैं। इसलिए, शिव के एक रूप को भोलेनाथ, भोले भंडारी भी कहा जाता है, क्योंकि वह किसी बच्चे की तरह हैं। ‘भोलेनाथ’ का मतलब है, मासूम या अज्ञानी।

शिव भोले भंडारी

आपने आम जीवन में भी देखा होगा कि सबसे बुद्धिमान लोग बहुत आसानी से मूर्ख बन जाते हैं, क्योंकि वे छोटी-मोटी चीजों में अपनी बुद्धि नहीं लगा सकते। बहुत कम बुद्धिमत्ता वाले चालाक और धूर्त लोग दुनिया में आसानी से किसी बुद्धिमान व्यक्ति को पछाड़ सकते हैं। यह धन-दौलत के अर्थ में या सामाजिक तौर पर मायने रख सकता है, मगर जीवन के संबंध में इस तरह की जीत का कोई महत्व नहीं है।

ध्यान रहे, बुद्धिमान से हमारा मतलब यहाँ स्मार्ट होने से नहीं है। इसका मतलब उस आयाम को स्वीकार करने से है, जो जीवन को पूर्ण रूप से घटित होने देता है, विकसित होने देता है। शिव भी ऐसे ही हैं। ऐसा नहीं है कि वह मूर्ख हैं, मगर वह हर छोटी-मोटी चीज में बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते। जो ऐसा करते हैं उनको आपने अपने आस-पास भी जीवन या आसान काम को भी जटिल बनाते देखा होगा।

नटराज

नटराज अर्थात नृत्य के देवता, शिव के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है। शिव का लयात्मक रूप, क्रुद्ध हुए तो रूद्र अर्थात महाविनाशक।

नाभिकीय प्रयोगशाला (CERN) स्थित नटराज की प्रतिमा

आपको स्विटजरलैंड में स्थित नाभिकीय प्रयोगशाला (CERN) याद होगा। यह धरती पर भौतिकी की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है, जहाँ अणुओं की सारी तोड़-फोड़ हो रही है। वहाँ के प्रवेशद्वार के सामने नटराज की एक मूर्ति है। क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि मानव संस्कृति में इसके सिवाए ऐसा कुछ नहीं है, जो उनके अभी के काम से मिलता-जुलता हो, उसके करीब हो। लय में हैं तो सृजन, क्रुद्ध हुए, लय बिगड़ा तो रूद्र अर्थात महा विनाशक। परमाणु और अणुओं से ही सृष्टि का कण-कण निर्मित है और वही परमाणु जब मुक्त हो जाता है तो महाविनाशक परमाणु बम।

खैर, नटराज रूप सृष्टि के उल्लास और नृत्य यानी कंपन को दर्शाता है, जिसने शाश्वत स्थिरता और नि:शब्दता से खुद को उत्पन्न किया है। चिदंबरम मंदिर में स्थापित नटराज की मूर्ति बहुत प्रतीकात्मक है। क्योंकि जिसे आप चिदंबरम कहते हैं, वह पूर्ण स्थिरता है। इस मंदिर के रूप में यही बात प्रतिष्ठित की गई है कि सारी गति पूर्ण स्थिरता से ही पैदा हुई है। शास्त्रीय कलाएँ इंसान के अंदर यही पूर्ण स्थिरता लाती हैं। स्थिरता के बिना सच्ची कला नहीं आ सकती। स्थिरता, लय और गति का सुन्दर तालमेल देखना हो तो महसूस करिए भारतीय संगीत परम्परा में छिपे जीवन के अनहदनाद को।

अर्धनारीश्वर

आम तौर पर, शिव को परम या पूर्ण पुरुष माना जाता है। मगर अर्धनारीश्वर रूप में, उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का होता है। कहा जाता है कि अगर आपके अंदर की पौरुष यानी पुरुष-गुण और स्त्रैण यानी स्त्री-गुण मिल जाएँ, तो आप परमानंद की स्थायी अवस्था में रहते हैं। अगर आप बाहरी तौर पर इसे करने की कोशिश करते हैं, तो वह टिकाऊ नहीं होता और उसके साथ आने वाली मुसीबतें कभी खत्म नहीं होतीं। पौरुष और स्त्रैण का मतलब पुरुष और स्त्री नहीं है। ये खास गुण हैं।

अर्धनारीश्वर शिव

मुख्य रूप से यह दो लोगों के मिलन की चाह नहीं है, यह जीवन के दो पहलुओं के मिलन की चाह है, जो बाहरी और भीतरी तौर पर एक होना चाहते हैं। अगर आप भीतरी तौर पर इसे हासिल कर लें, तो बाहरी तौर पर यह सौ फीसदी अपने आप हो जाएगा। वरना, बाहरी तौर पर यह एक भयानक विवशता बन जाएगी।

यह रूप इस बात को दर्शाता है कि अगर आप चरम रूप में विकसित होते हैं, तो आप आधे पुरुष और आधी स्त्री होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि आप नपुंसक होंगे, बल्कि एक पूर्ण विकसित पुरुष और एक पूर्ण विकसित स्त्री होंगे। तभी आप एक पूर्ण विकसित इंसान बन पाते हैं।

कालभैरव, महाकाल

कालभैरव शिव का एक मारक या जानलेवा रूप है, जब उन्होंने समय के विनाश की मुद्रा अपना ली थी। सभी भौतिक हकीकतें समय के भीतर मौजूद होती हैं। अगर समय नष्ट हो जाए तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा।

महाकाल कालभैरव शिव

शिव भैरवी-यातना को पैदा करने के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करके कालभैरव बन गए। ‘यातना’ का मतलब है, घोर पीड़ा। कहा जाता है, जब मृत्यु का पल आता है, तो बहुत से जीवनकाल पूरी तीव्रता में सामने आ जाते हैं, आपके साथ जो भी पीड़ा और कष्ट होना है, वह एक माइक्रोसेकेंड में ‍घटित हो जाएगा। उसके बाद, अतीत का कुछ भी आपके अंदर नहीं रह जाएगा।

सद्गुरु कहते हैं कि अपने ‘सॉफ्टवेयर’ को नष्ट करना कष्टदायक है। मगर मृत्यु के समय ऐसा होता है, इसलिए आपके पास कोई चारा नहीं होता। लेकिन वह इसे जितना हो सके, छोटा बना देते हैं। कष्ट को जल्दी से खत्म करना चाहते हैं। ऐसा तभी होगा, जब हम इसे अत्यंत तीव्र बना देंगे। अगर वह हल्का होगा, तो हमेशा चलता ही रहेगा।

आदियोगी

योगिक परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती है। वह आदियोगी, यानि पहले योगी और आदिगुरु, यानि पहले गुरु हैं, जिनसे योगिक विज्ञान जन्मा। दक्षिणायन की पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा होती है, जब आदियोगी ने इस विज्ञान को अपने पहले सात शिष्यों, सप्तऋषियों को सौंपना शुरू किया।

शांत चित्त आदियोगी

सद्गुरु कहते हैं कि यह किसी भी धर्म से पहले की बात है। इंसान ने मानवता को तोड़ने-फोड़ने के विभाजनकारी तरीके ढूँढे, उससे पहले मानव चेतना को बढ़ाने के लिए जरूरी और सबसे शक्तिशाली साधनों को पहचाना और प्रचारित किया गया। उसकी गूढ़ता आश्चर्यजनक है। उस समय लोग इतने प्रबुद्ध थे या नहीं, इस सवाल का कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह किसी खास सभ्यता या विचार प्रक्रिया से नहीं जन्मा था। यह एक आंतरिक ज्ञान से उपजा था। उन्होंने बस अपने आप को उड़ेल दिया। आप आज भी एक चीज तक नहीं बदल सकते क्योंकि जो कुछ भी कहा जा सकता है, उन्होंने वह सब बहुत ही सुंदर और समझदारी भरे रूपों में कहा। आप बस उसे समझने की कोशिश में अपना पूरा जीवन बिता सकते हैं।

आज महाशिवरात्रि के अवसर पर, शिव के कई नामों और उसके पीछे के रहस्यों से परिचय के साथ-साथ, शिव कृपा को साक्षात अनुभव करने के लिए, आज की रात आपके लिए सिर्फ घोर निद्रा की रात बनकर न रह जाए बल्कि इसे अपने लिए तीव्र जीवंतता और जागरूकता की रात बना दें। आज चाहें तो आप महाशिवरात्रि के इस अद्भुत उपहार का लाभ उठा सकते हैं, जो प्रकृति स्वयं इस दिन मानवता को प्रदान करती है।

शिव एक अघोरी हैं, भयंकरता से परे… सबसे सुंदर, सबसे भद्दे और गृहस्थ भी!

अध्यात्म और अनुभव की दुनिया में तर्क नहीं होते, अगर कोई भी सिर्फ़ तथ्य और तर्क के जाल में उलझा हुआ है, तो यह तर्क उसे जीवन का जादू नहीं देखने देगा। जीवन का जादू आख़िर है क्या? अगर आपने ध्यान दिया तो आपको हर जगह जादू दिखेगा; एक बीज का पौधा होना; एक फूल का फल हो जाना और दो कोशिकाओं के मिलने से नए जीवन की शुरुआत- यह सब अद्भुत जादू ही तो है।

भारत केवल भूगोल का हिस्सा ही नहीं, यह एक जीवंत स्पंदन है। यह उन लोगों की धरती है, जो तर्क के जटिलतम रूप को समझने और समझाने के बावजूद कभी उसमें उलझे नहीं। वे तर्क को उस बिंदु तक ले गए जो अस्तित्व के रहस्यवादी और जादुई आयामों तक जाने की राह बन गया।

आदियोगी शिव इन दो विपरीत दिखने वाले आयामों के उच्चतम प्रतिनिधि हैं। वे इन दोनों आयामों में बिना किसी परेशानी के रहते हैं। संकीर्ण तर्कों में बंधे लोग इसे नहीं जान पाते। बेशक, तर्क हमें खड़े होने का आधार देता है। यह हमारा चुनाव होगा कि तर्क को सराहें, उससे चकित हों या इसे अस्तित्व से परे जाने के लिए पंखों की तरह इस्तेमाल करें। हम सब तर्कों के पंखों पर उड़ सकते हैं पर यह याद रखिए कि हर किसी को वापस अग्नि के पास आना ही होता है। चाहे वह श्मशान की अग्नि हो या फिर जीती-जागती चेतना की अग्नि।

शिव अर्थात एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और भी कई अन्य अलग-अलग नाम और रूप। क्या कभी आपने सोचा कि क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किए थे भगवान शिव ने?

शिव पुराण में भयावह और सुंदर दोनों हैं शिव

आमतौर पर पूरी दुनिया में लोग जिसे भी दैवीय या दिव्य मानते हैं, उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते हैं। लेकिन अगर आप शिव पुराण को पूरा पढ़ें तो आपको उसमें कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे के तौर पर नहीं मिलेगा। उनका जिक्र सुंदरमूर्ति के तौर पर हुआ है, जिसका मतलब ‘सबसे सुंदर’ है। लेकिन इसी के साथ शिव से ज्यादा भयावह भी कोई और नहीं हो सकता।

जो सबसे ख़राब चित्रण संभव हो, वह भी उनके लिए मिलता है। शिव के बारे में यहाँ तक कहा जाता है कि वह अपने शरीर पर मानव मल मलकर घूमते हैं। उन्होंने किसी भी सीमा तक जाकर हर वो काम किया, जिसके बारे में कोई इंसान कभी सोच भी नहीं सकता था। अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। अगर आपने शिव को स्वीकार कर लिया तो आप जीवन से परे जा सकते हैं।

इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फिर आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।

योगी, नशेड़ी और अघोरी शिव

वह सबसे सुंदर हैं तो सबसे भद्दे और बदसूरत भी। अगर वो सबसे बड़े योगी व तपस्वी हैं तो सबसे बड़े गृहस्थ भी। वह सबसे अनुशासित भी हैं, सबसे बड़े पियक्कड़ और नशेड़ी भी। वे महान नर्तक हैं तो पूर्णत: स्थिर भी। इस दुनिया में देवता, दानव, राक्षस सहित हर तरह के प्राणी उनकी उपासना करते हैं। शिव के बारे में तमाम हजम न होने वाली कहानियों व तथ्यों को तथाकथित मानव सभ्यता ने अपनी सुविधा से हटा दिया, लेकिन इन्हीं में शिव का सार निहित है। उनके लिए कुछ भी घिनौना व अरुचिकर नहीं है। शिव ने मृत शरीर पर बैठ कर अघोरियों की तरह साधना की है। घोर का मतलब है भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।

शिव स्वयं जीवन हैं

कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। शिव हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के कारण नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है।

वर्तमान में कैलाश स्वयं शिव है

समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएँ व किसे छोड़ें और यह समस्या मानसिक समस्या है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहाँ तक कि अगर आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो साँस छोड़ता है, उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई साँसे आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई साँसों से बेहतर नहीं होती है। दिक्कत सिर्फ मानसिक या कहें मनोवैज्ञानिक स्तर पर है। अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो कोई समस्या नहीं है।

प्रेम और करुणा से भी परे

सद्गुरु कहते हैं कि एक अघोरी कभी भी प्रेम की अवस्था में नहीं रहता है। दुनिया के इस हिस्से की आध्यात्मिक प्रक्रिया ने कभी भी आपको प्रेम करना, दयालु या करुणामय होना नहीं सिखाया। यहाँ इन भावों को आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक माना जाता है। दयालु होना और अपने आसपास के लोगों को देखकर मुस्कुराना, पारिवारिक व सामाजिक शिष्टाचार है। एक इंसान में इतनी समझ तो होनी ही चाहिए, इसलिए यहाँ किसी ने सोचा ही नहीं कि ये चीजें भी सिखानी जरूरी हैं।

एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी-सँवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फँसना चाहता।