Wednesday, October 9, 2024
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‘बिहार के शहीदों को मेरा नमन, देश उनके परिवार के साथ खड़ा है’: संकल्‍प रैली में PM

बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में एनडीए की संकल्प रैली में आज 10 साल बाद पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के सीएम व जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार एक साथ किसी राजनीतिक मंच पर दिखाई दिए।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत भारत माता की जय और बिहार के शहीदों को नमन करते हुए की। इसके बाद उन्होंने अपने सरकार की उपलब्धियों को गिनाया। उन्होंने कहा कि बिहार के लिए एनडीए सरकार ने कई योजनाएँ चलाई। उन्होंने कहा कि एनडीए की सरकार ये सुनिश्चित करने में जुटी है कि बिहार में विकास की पंचधारा यानि बच्चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुजुर्गों को दवाई, किसान को सिंचाई और जन-जन की सुनवाई, ये सुनिश्चित हो।

PM मोदी ने कहा कि बिहार ने विकास की जिस रफ्तार को पकड़ा है, वो और गति पकड़े इसके लिए केंद्र की NDA सरकार ने निरंतर प्रयास किया है। कुछ दिन पहले ही बरौनी में ₹30 हज़ार करोड़ से अधिक की परियोजनाओं की सौगात बिहार को दी गई थी। ये बिहार के विकास के लिए किए जा रहे निरंतर प्रयासों की एक झलक भर थी। यहाँ गांव और शहरों की सड़कों और नेशनल हाईवे का चौड़ीकरण हुआ है। जो पुराने पुल हैं, उनको सुधारा जा रहा है, नए फ्लाइओवर्स का निर्माण किया जा रहा है। रेलवे की पुरानी व्यवस्थाओं में सुधार किया गया है, उनका बिजलीकरण हो रहा है। पटना रेलवे जंक्शन को नए रंग-रूप में आप सभी देख ही रहे हैं।

पीएम मोदी ने कहा कि चारे के नाम पर क्या-क्या हुआ है, ये बिहार के लोग बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं। ये जो लूट-खसोट, चोरी-चकारी, बेनामी प्रॉपर्टी और बिचौलियों की संस्कृति बिहार और देश की राजनीति में दशकों तक आम बात हो चुकी थी, उसको बंद करने की हिम्मत हमने दिखाई है। जो गरीबों का हक छीन कर अपनी दुकान चला रहे थे, वे चौकीदार से परेशान हैं। इसीलिए चौकीदार को गाली देने की साजिश चल रही है। आप यकीन रखिए, आपका चौकीदार हर तरीके से चौकन्ना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली की कुछ और प्रमुख बातें

  • एनडीए सरकार ने बिना किसी वर्ग के आरक्षण को छेड़े हुए सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण दिया।
  • किसानों को बीज, कीटनाशक, चारा, खाद के लिए कर्ज लेने की जरूरत नहीं होगी। बिहार के लोग जानते हैं कि चारा के नाम पर क्या-क्या हुआ है।
  • देश के अन्न दाताओं के लिए किसान सम्मान योजना को जमीन पर उतार दिया गया है। जिसमें बिहार में करीब डेढ़ करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा।
  • सौभाग्य योजना के तहत गरीबों को मुफ्त बिजली देने का काम किया गया है। और बिहार में नीतीश कुमार ने इस काम को बखुबी करते हुए घर-घर तक बिजली पहुँचाया है।
  • पटना एयरपोर्ट को 1200 करोड़ रुपये के खर्च से विस्तार दिया जा रहा है। इसे उड़ान योजना से जोड़ा जा रहा है। रेल के साथ हवाई यात्रा को सस्ता किया जा रहा है।
  • बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता दी जा रही है। अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, रोड पुल और रेल की व्यवस्था में सुधार किया जा रहा है।
  • पटना में मेट्रो व्यवस्था शुरू किया गया है। पटना के लोगों को पाइप लाइन से गैस मिलेगा। और नीतीश कुमार ने नल से जल देने का संकल्प किया है। यह बदलाव नीतीश कुमार और सुशील मोदी समेत एनडीए के सभी लोग धन्यवाद के पात्र हैं।
  • पीएम मोदी ने कहा नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री ने बिहार को पुराने दौर से बाहर निकाला। नीतीश कुमार और सुशील की जोड़ी ने बिहार के विकास के लिए अद्भूत काम किया है।
  • पीएम मोदी ने संबोधन में शहीदों के परिवार और शुक्रवार को शहीद हुए बेगूसराय के सीआरपीएफ जवान पिंटू सिंह को सलाम किया।
  • एनडीए की संकल्प रैली में पीएम मोदी ने गांधी मैदान में संबोधन से पहले भारत माता की जय का नारा लगवाया।
  • नीतीश कुमार ने कहा बिहार में बिजली अब घर-घर पहुँच गई है और अब लालटेन की कोई जरूरत ही नहीं रह गई है।
  • नीतीश कुमार ने विपक्षों पर निशाना साधते हुए कहा महात्मा गांधी ने कहा था सिद्धांत पर राजनीति करनी चाहिए, लेकिन यहाँ सिद्धांत को ताख पर रखकर लोग राजनीति कर रहे हैं।
  • वृद्धों का सम्मान परिवार में बना रहे। इसके लिए बिहार सरकार की ओर से मुख्यमंत्री वृद्धा पेंशन योजना लागू किया गया है। जिसमें 60 साल की उम्र में बिना नौकरी पेशा वाले लोगों को पेंशन दिया जाएगा। एक अप्रैल से इसका लाभ मिलने लगेगा।
  • नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से वादा किया कि 2 अक्टूबर 2019 तक बिहार के हर घर में शौचालय होगा।
  • नीतीश कुमार ने किसानों को लेकर शुरू की गई योजना के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया।
  • एयरफोर्स के विंग कमांडर अभिनंदन को लेकर नीतीश कुमार ने कहा कि मोदी सरकार ने उन्हें जिस तरह से पाकिस्तान से वापस लाने का काम किया है। यह काफी काबिले तारीफ है। अभिनंदन ने जिस तरह से बहादुरी दिखाई है इसके लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूँ।
  • एनडीए के संकल्प रैली में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पुलवामा अटैक और उस पर मोदी सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के लिए उन्हें बधाई देता हूँ और सेना को भी सलाम करता हूँ।

5 महीने में जन्म, वजन सिर्फ 492 ग्राम: मौत को मात दे अब घर लौटी बच्ची – मेडिकल साइंस का RECORD

“जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोई” इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया कर दिखाया है अहमदाबाद में जन्मी नन्ही सी जान जिआना ने। जिआना का बचना किसी चमत्कार से कम नहीं है और इस बात को डॉक्टर भी मान रहे हैं।

दरअसल अहमदाबाद में जन्मी इस बच्ची को लेकर एक अनोखा मामला सामने आया था। यहाँ एक बच्ची का जन्म 22 हफ्ते के बाद ही हो गया। जिसका वजन महज 492 ग्राम और लंबाई 500 एमएल दूध के पाउच जितनी थी। इस बच्ची के साथ इसके जुड़वा भाई का भी जन्म हुआ था। जिसका वजन 530 ग्राम था।

इन दोनों बच्चों के जन्म लेते ही डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई दवा या इलाज नहीं है जिससे इन प्री मैच्योर बच्चों को बचाया जा सके। मगर बच्चों के माता- पिता ने डॉक्टर से निवेदन किया कि उनके बच्चे बचेंगे या नहीं, ये तो उनकी किस्मत में है। मगर उनके बच्चों का इलाज किया जाए। जिसके बाद डॉक्टरों ने नवजातों का इलाज शुरू किया। दोनों बच्चों को एनआईसीयू में रखा गया, जहाँ बच्ची के भाई ने तो 102 दिन बाद दम तोड़ दिया, लेकिन बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है।

बच्ची का इलाज करने वाले डॉ. आशीष मेहता ने बताया कि इंडियन कलैबरेटिव में जो आँकड़े मौजूद हैं, उसके अनुसार जिआना सबसे कम उम्र और सबसे छोटी ऐसी बच्ची है, जो जिंदा है। इससे पहले भारत के इस रिकॉर्ड में मुंबई के एक बच्चे का नाम था, जिसका जन्म 22 हफ्ते में हुआ था। हालाँकि उसका वजन 620 ग्राम था। वहीं हैदराबाद की एक बच्ची ने 25 हफ्ते में जन्म लिया था, जो कि 375 ग्राम की थी।

बच्ची की माँ दीनल ने कहा कि उनकी बेटी का बचना मुश्किल था लेकिन उन्हें भगवान पर पूरा भरोसा था। दीनल कहती हैं कि इससे पहले वो दो बार माँ बनने से वंचित रह गई थी। वो जानती थीं कि इस बार अगर उनके गर्भ से बच्चों का जन्म होगा तो उन्हें मातृत्व का सुख अवश्य मिलेगा। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी का नाम जिआना रखा है, जिसका अर्थ होता है- ईश्वर का कृपा पूर्ण जीवन।

मिसाल: देश के लिए बलिदान हुए दीपक, BJP के मंत्री चुकाएँगे उनका होमलोन

वीरगति को प्राप्त हुए सुरक्षाबलों को लेकर वैसे तो कई नेताओं ने अपने-अपने तरीके से संवेदनाएँ व्यक्त की हैं, मगर उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने इनके सम्मान में जो कदम उठाया है, वह बेहद सराहनीय है। सतीश महाना के इस कदम ने राजनेताओं के लिए एक मिसाल पेश कर दी है।

यूपी के मंत्री सतीश महाना ने वीरगति को प्राप्त हुए दीपक पांडेय का 20 लाख रुपए का होम लोन व्यक्तिगत तौर पर चुकाने का ऐलान किया है। बता दें कि दीपक, कानपुर के चकेरी स्थित मंगला विहार के रहने वाले थे। वो बुधवार को बड़गाम में आतंकियों का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। दीपक को शुक्रवार को हजारों लोगों ने नम आँखों से अंतिम विदाई दी। देश के लिए बलिदान हुए इस वीर की एक झलक पाने के लिए यहाँ जनसैलाब उमड़ पड़ा था। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और कैबिनेट मंत्री सतीश महाना भी यहाँ उनके परिजनों को ढाढस बंधाने पहुँचे थे।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट

इसी दौरान मंत्री सतीश महाना को पता चला कि दीपक ने घर बनवाने के लिए किसी बैंक से होम लोन लिया था। इस ख़बर को दैनिक जागरण ने प्रकाशित किया था। ख़बर में इस मानवीय पहलू का जिक्र किया गया कि इकलौते बेटे दीपक ने तो देश के लिए बलिदान दिया, लेकिन उनके माता-पिता बैंक का यह कर्ज कैसे चुकाएँगे। इस खबर पर कैबिनेट मंत्री सतीश महाना ने तुरंत संज्ञान लिया और दीपक के परिजनों से मिले। उन्हें पता चला कि दीपक ने एलआईसी हाउसिंग से होम लोन लिया था। इसके बाद मंत्री ने कहा कि वो स्टेटस निकालकर देखेंगे कि लोन की कितनी राशि बकाया है। उसके बाद से खुद उसे चुकाएँगे।

होम लोन चुकाने की बात पर सतीश महाना का कहना है कि दीपक पांडेय ने देश के लिए बलिदान दिया है, इस का कर्ज तो कोई नहीं उतार सकता। मगर वो उनके माता-पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने ये होमलोन चुकाने की जिम्मेदारी ली है।

‘खलनायकों’ और ‘डरे’ हुए ख़ानों से आगे का नाम है अभिनंदन, पर्दे के हीरो से आगे आ चुके हैं हम

फ्लेमिंग की जेम्स बॉन्ड श्रृंखला किताबों के रूप में प्रसिद्ध रही, लेकिन उससे ज्यादा प्रसिद्धि शायद फिल्मों की वजह से मिली होगी। जैसा कि सबको पता है, इसमें जेम्स बॉन्ड एक ऐसे ब्रिटिश जासूस बने होते हैं जो साजिशों से देश-दुनियाँ को बचा रहा होता है। जेम्स बॉन्ड श्रृंखला की प्रसिद्धि के ही समय का कॉन्ग्रेसी जुमला, “इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है!” संभवतः कॉन्ग्रेसियों ने अपने बगलबच्चा कॉमरेडों से सीखा होगा। हर कामयाबी का श्रेय खुद ले लेना और नाकामियों के लिए किसी बेचारे मासूम को कुर्बान करना उनकी आदतों में शुमार रहा है।

शुरुआत की दौर की फिल्मों में जब जेम्स बॉन्ड का किरदार साव्न कॉनरी निभा रहे होते थे, तब किताब पर आधारित जेम्स बॉन्ड की कहानी होती थी मगर बाद में अलग से भी, सिर्फ फिल्मों के लिए कहानियाँ गढ़ी गईं। हर बार जेम्स बॉन्ड विदेशी साजिशों से भी नहीं निपट रहा होता। एक-आध फ़िल्में ऐसी भी हैं, जिसमें उसका शत्रु उतना स्पष्ट नहीं है। ऐसी एक फिल्म थी “टूमोरो नेवर डायज़” जिसका खलनायक एक बड़ी सी मीडिया कंपनी का मालिक होता है। वो अपने फायदे के लिए तीसरा विश्व युद्ध करवाने पर तुला होता है।

मीडिया के बड़े आदमी इलियट कार्वर को खलनायक के रूप में दिखाती इस फिल्म की ख़ास बात इसके किरदारों के नाम, उनकी भूमिका में भी दिखेंगे। खलनायक के साथ जो साइबर-टेररिस्ट काम कर रहा होता है, उसका नाम हेनरी गुप्ता, जी हाँ, गुप्ता था। इसमें जो लड़की जेम्स बॉन्ड की मदद कर रही होती है, वो चीनी जासूस थी। कंप्यूटर-इन्टरनेट जगत में बढ़ते भारतीय प्रभाव और चीन के प्रति बदल रहे नजरिये की झलक दिखती है। फिल्म की शुरुआत में ही खलनायक कहता है, “अच्छी खबर वो है जो बुरी खबर हो!”

बुरी खबरों से टीआरपी ज्यादा मिलती, इसलिए मीडिया वाला बुरी खबर फैलाना चाहता था। ये बिलकुल भारत और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ (ना)पाकिस्तान के हालिया घटनाओं में दिख जाएगा। सीआरपीएफ के जवानों का मारा जाना उनके लिए अच्छी खबर थी, क्योंकि वो हमारे लिए बुरी खबर थी। एक विंग कमांडर के जहाज का शत्रु सीमा में दुर्घटनाग्रस्त होना उनके लिए अच्छी खबर थी, क्योंकि वो हमारे लिए बुरी खबर थी। गिद्ध और बच्चे वाली तस्वीर जैसा ही वो घात लगाए इंतजार करते रहे ताकि लाशों से बोटियाँ नोची जा सके।

आतंकियों का हमला हम पर लगातार 1947 से ही जारी है। सीधी लड़ाई में बार-बार हार जाने वाला पड़ोसी ऐसे जेहादियों को चुनता है, जो परोक्ष युद्ध जारी रख सके। हम हमलों का जवाब दें तो वो बेशर्मी से #SayNoToWar भी कहते हैं! युद्ध चाहने वालों को सीमा पर क्यों जाना चाहिए? अक्षरधाम, मुम्बई तो क्या सीधा संसद पर भी तो हमला कर चुके हैं। मैं सीमाओं से बहुत दूर भी युद्ध क्षेत्र से बाहर कहाँ हूँ? शांति और अमन का ये सन्देश लेकर आप लश्कर और जैश-ए-मुहम्मद के कैंप में क्यों नहीं जाते ये तो #शांतिदूतों को बताना चाहिए!

फिल्मों से बात शुरू हुई थी तो “फ़िल्में समाज का आईना होती हैं” वाला जुमला भी याद आता है। एकतरफा मुहब्बत में जैसे मासूम लड़कियों पर एसिड अटैक होता है, वैसी ही फिल्म “डर” के आने के बाद से काफी कुछ बदला था। लोग उस दौर में “खलनायक” वाले संजय दत्त और शाहरुख़ जैसे बाल रखने लगे थे। कई बच्चों का नाम भी “डर” के उस दौर में “राहुल” पड़ गया था। कल जब अभिनन्दन लौटे तो कई बच्चों का नाम अभिनन्दन रखे जाने की खबर भी आने लगी। रील लाइफ से मुँह मोड़कर भारत अब रियल लाइफ के नायकों को “हीरो” मानने लगा है।

बाकी जिन्हें ये असहिष्णुता लगती हो उन्हें समझना होगा कि आबादी में युवाओं-युवतियों का प्रतिशत बढ़ते ही भारत अब बदल गया है। इमरान के लिए अगर क्रिकेट भी जिहाद है तो उनके जुल्मो-सितम पर ही नहीं, ऐसी हरकतों के समर्थकों के दोमुँहेपन के लिए भी असहिष्णुता बरती जाएगी। अन्याय के प्रति असहिष्णु होना ही चाहिए।

Pak पीएम इमरान को बताया शांति का मसीहा, सस्पेंड हुए मास्टर साब

भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच एक शिक्षक ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान को शांति का मसीहा बता दिया। मास्टर साब सोचे होंगे कि वाहवाही मिलेगी, लेकिन मिला सस्पेंशन लेटर। इन दिनों सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पणियों का सिलसिला जारी है और ऐसे ही मामले में ये शिक्षक भी लपेटे में आ गए।

दरअसल ये मामला उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर का है। यहाँ के एक शिक्षक ने पाकिस्तान की तरफ से भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने के बाद किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में इमरान खान को शांति का मसीहा बताते हुए उन्हें सलाम किया। इस मैसेज को लेकर जब किसी ने शिकायत की तो मास्टर साब को संबंधित जाँच के बाद तत्काल सस्पेंड कर दिया गया।

बता दें कि प्राथमिक विद्यालय इसौंली के सहायक शिक्षक अमरेंद्र कुमार आजाद ने यूपीपीएसएस लम्भुआ नाम से बने व्हाट्सऐप ग्रुप में एक पोस्ट डाली थी। इसमें उन्होंने इमरान खान को शांति का मसीहा तो बताया ही और साथ ही देशभक्ति के विरोध में और भी कई सारे पोस्ट डाले थे।

इस मामले के सामने आने के बाद खंड अधिकारी बल्दीराय ने जाँच करते हुए शिक्षक अमरेंद्र से उनके पोस्ट के लिए स्पष्टीकरण मांगा और जब वो अमरेंद्र की स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुए तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। इसके साथ ही मामले पर आगे की जाँच के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को फाइल बढ़ा दी गई है। उन्हें ये रिपोर्ट 15 दिनों के अंदर देनी होगी और फिर आगे की कार्रवाई जाँच रिपोर्ट के सामने आने के बाद की जाएगी।

राष्ट्रवाद है, सिगरेट नहीं कि अल्ट्रा और माइल्ड होगा

‘नफ़रतों का दौर है’, ये एक ऐसा जुमला है जो आमतौर पर माओवंशी कामपंथी छद्मबुद्धिजीवी गिरोह द्वारा लगातार इस्तेमाल होता रहता है ये बताने के लिए कि इस देश की बहुसंख्यक जनसंख्या, इस देश के करोड़ों राष्ट्रवादी और वैसे सारे लोग जो देश की अखंडता बचाने का हर प्रयास करते हैं, वो लोग नफ़रत फैला रहे हैं। 

हालाँकि, इन पाक अकुपाइड पत्रकारों (Pak Occupied Patrakaar) ने इतनी नफ़रत फैलाई है सोशल मीडिया पर कि अगर आदमी कुछ वर्षों से देश में न रह रहा हो, और अचानक आए, तो वो शायद हवाई जहाज पर फोन ऑन करके यहाँ के ख़बरों को पढ़ने लगे, या यहाँ की पत्रकारिता के समुदाय विशेष के ट्वीट आदि पढ़ ले तो एयरपोर्ट से ही लौट जाएगा। उसे यह लगने लगेगा कि बाहर में टैक्सी वाला उससे उसका नाम पूछेगा, और कहीं सुनसान में ले जाकर काट देगा।

ये विषाक्त वातावरण बहुत ही क़ायदे से, व्यवस्थित तरीके से, गिरोह के पूरे विश्व में फैले नेटवर्क के द्वारा बनाया गया है। हमारे देश के ऊपर जो सहिष्णुता का ओज़ोन लेयर था, उसमें हमारे इन कामपंथी गिरोह के लोगों ने अपनी हानिकारक बातों से ऐसा छेद किया है कि वो अभी तो रिपेयर होने से रहा। जब लगता है कि अब ये कौन सा मुद्दा लाएँगे, तब पता चलता है कि इन्होंने नई परिभाषाएँ और शब्दावली तैयार कर ली हैं। 

पुलवामा हमला हुआ, पूरा देश एकजुट होकर खड़ा हो गया। इन्होंने पहले पीएम को कोसा कि कैसे हो गए हमले, उसने क्या किया है। उसके बाद गिरोह के छुटभैये लोगों ने जवानों की जाति पता कर ली। उसके बाद उन्होंने ‘राष्ट्रवाद’ को एक गाली या नकारात्मक भाव की तरह दिखाते हुए इसे चुनाव से जोड़ा, और साथ ही, इसमें भी जाति निर्धारण कर दी कि ‘भारत माता की जय’ बोलने वाले और कैंडल लेकर मार्च करने वाले लोग, बड़े शहरों में रहने वाले ऊँची जाति के हिन्दू हैं। 

चालीस जवानों की बलि चढ़ गई, और देश अपनी संवेदना प्रकट कर रहा था तो देश और सेना के साथ खड़े होने को गाली की तरह डीलेजिटिमाइज करने की तमाम कोशिशें होती रहीं। आम जनता ऐसे मौक़ों पर पार्टी, विचारधारा से ऊपर आकर जवानों के साथ खड़ी हो जाती है। लेकिन इस समय जीभ लपलपाती धूर्त गिरोह उन्हें नकारने में लग जाता है कि ‘भारत माता की जय’ बोलना ‘हायपर नेशनलिज्म’ है। 

उसके बाद आने वाले कुछ दिनों में नेशनलिज्म को गाली बनाने के लिए ‘हायपर’, के बाद ‘अल्ट्रा नेशनलिज्म’, ‘नीयो नेशनलिज्म’, ‘मसकुलर नेशलिज्म’, और ‘जिंगोइज्म’ नामक जुमले फेंके जाते हैं। आप देखेंगे कि जब देश संवेदना प्रकट कर रहा होता है, जब देश भावुक होता है, तब ये ट्विटर के शेर, इनमें से एक-एक विशेषण बाँट लेते हैं, और धिक्कारने लगते हैं वैसे तमाम लोगों को, जिनके लिए ‘भारतीयता’ ही एकमात्र पहचान रह जाती है। 

उसके बाद इनके विश्लेषण आते हैं कि ‘भारत की माता की जय बोलने से कौन मना कर रहा है, लेकिन इतना जोर से क्यों बोलना?’ ये आपको बताएँगे कि आप अपनी भावनाएँ उन सैनिकों के लिए मुँह के फैलाव को कितने सेंटीमीटर तक रखकर, कितने डेसिबल में चिल्लाएँगे तो वो नेशनलिज्म रहेगा, और कितने के बाद वो ‘अल्ट्रा’ हो जाएगा।

ऐसे समय में ऐसे लोग भी खूब निकल कर आते हैं जो ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ से लेकर आतंकियों को शुक्रिया कहते नज़र आते हैं। अब इन दीमकों को कोई पुलिस के सुपुर्द कर देता है तो वो गुंडा कैसे हो गया? गुंडा तो वो है जो इस देश का खाता है, यहाँ की सुविधाएँ लेता है, और ऐसे मौक़ों पर आतंकियों का हिमायती बना फिरता है। 

ये तो निचले स्तर के गुंडे हैं, लेकिन इन्हीं मौक़ों पर आपको देश के तथाकथित ओपिनियन मेकर्स भी दिख जाएँगे, जो हमेशा ‘नया एंगल’ ले आते हैं। पाकिस्तान की मजबूरी और आतंकी देश का तालिबानी प्रधानमंत्री इनके लिए ‘मोरल हाय ग्राउंड’ लेने वाला और ‘स्टेट्समेन’ इमरान खान हो जाता है। वो क्यूट और कूल हो जाता है क्योंकि उसने धूर्तता की चाशनी में डुबोकर कुछ शब्द बोले हैं, जो उसकी मजबूरी थी।

उसके बाद जब देश में पाकिस्तान को गाली पड़ती है तो ये विशेषणों की फ़ैक्टरी चालू हो जाती है। हर तरफ से ऐसे नैरेटिव बनाने की कोशिश होती है, जहाँ राष्ट्रवादी गुंडा और लुच्चा हो जाता है! मतलब, इस देश में मातृभूमि के लिए जान देने की क़समें खाना लफुआगीरी हो जाती है! आप जरा सोचिए, कि भारत छोड़कर दुनिया में कोई और देश होगा जहाँ पाकिस्तानी आतंकी ब्लास्ट करके चालीस जवानों की हत्या कर देते हैं, और हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी जो देश-विदेशों में आख्यान देते हैं, अख़बारों में कॉलम लिखते हैं, उन्हें घेरते हैं जो देश के लिए खड़ा होता है। 

इनसे जब आप पूछिएगा कि इन विशेषणों से सज्जित राष्ट्रवाद की परिभाषा बताएँ, इसको विस्तार से बताएँ, तो वो वही बात करेंगे, एक ही बात कि ‘भारत माता की जय’ इतने जोर से क्यों बोलना, दूसरों से क्यों बुलवाना, जो आतंकियों को इंशाअल्लाह लिखता है उसको क्यों पीटना… 

जब एक ही परिभाषा है, और वो भी बेकार ही है, तो इतने वैरिएशन क्यों गढ़ना? सेक्सी लगता है सुनने में? जीभ ऐंठ के ‘मस्कुलर नेशनलिज्म’ बोलने में अलग चरमसुख मिलता है। वैसे भी वरायटी तो जीवन का मसाला है, एक ही बात को तीस तरह से कहते रहिए। 

लेकिन सत्य यही है कि आपके ‘हायपर’, ‘अल्ट्रा’, ‘मस्कुलर’ आदि के चिल्लाने की आवाज़ का डेसिबल ‘भारत माता की जय’ बोलने वालों से ज़्यादा ही होता है। लेकिन याद रहे चोर जितना भी चिल्ला ले कि वो चोर नहीं है, उससे साबित कुछ नहीं होता। 

राष्ट्रवाद अपने हर रूप, हर रंग, हर तरीके में सुंदर है। अगर अपनी मातृभूमि के लिए चिल्लाना गुनाह है तो लोगों को अपना गला हर दिन खराब करना चाहिए। ऐसे गुनाह होते रहने चाहिए। इन्हीं गुनाहों ने इस देश को एकजुट किया है। ऐसे हजार गुनाह भारत माता के नाम! 

मदरसों में धाँधली: इतिहास पढ़ा व्यक्ति दे रहा गणित की शिक्षा, उर्दू वाला पढ़ा रहा अंग्रेजी

मदरसे इस्लामी शिक्षा के प्रमुख केंद्र लेकिन वहाँ की गतिविधियों और शिक्षा के स्तर, और फर्ज़ीवाड़े पर बहुत कम बात होती है। हालाँकि, मदरसों के फर्जीवाड़े पर कई बार जाँच हुई। लेकिन जाँच रिपोर्ट पर आज तक कार्रवाई शून्य है।

अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक बार फिर, चार माह पहले जिलाधिकारी के आदेश पर कई मदरसों की जाँच हुई, जिसमें कुछ मदरसों में पता चला कि उनके यहाँ जिस विषय को पढ़ाने के लिए शिक्षक नियुक्त हैं, उसकी शैक्षणिक योग्यता उस विषय की न होकर दूसरे विषय की है। इन अयोग्य शिक्षकों के नाम पर मदरसा संचालक सरकार से मानदेय भी वसूल रहे हैं। लेकिन विभाग ने जाँच रिपोर्ट आने के बाद भी आज तक कार्रवाई नहीं की है।

मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत स्नातक योग्यता वाले शिक्षक को 8 हजार रुपए और स्नातकोत्तर योग्यता वाले शिक्षक को 15 हजार रुपए प्रति माह मानदेय मिलता है। ये सभी मदरसा संचालक विषय से विपरीत योग्यता के शिक्षक नियुक्त कर सरकार से मानदेय ले रहे हैं। यह सभी जाँच रिपोर्ट अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में जा चुकी है। लेकिन आज तक भी इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

जिलाधिकारी अनिल ढींगरा ने डायट प्राचार्य छोटा मवाना मेरठ को छह मदरसों की जाँच सौंपी थी। पाँच मदरसों की जाँच में जिला प्रोबेशन अधिकारी को शिक्षक नियुक्ति में बड़ा खेल नज़र आया। 

मदरसा इरफानउल उलूम अमरौली में दो शिक्षकों की नियुक्ति दर्शायी है। एक शिक्षक बीए अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र और हिंदी विषय में है, लेकिन उन्हें गणित विषय पढ़ाने के लिए नियुक्त किया है। एक शिक्षिका बीए समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र और उर्दू के साथ एमए उर्दू है, लेकिन उन्हें अंग्रेजी विषय पढ़ाने के लिए नियुक्त किया है।

इसी तरह मदरसा फैज-ए-आम नंगला हरेरू में विज्ञान विषय के लिए नियुक्त शिक्षक की योग्यता बीए हिंदी, अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र है। गणित के शिक्षक की योग्यता बीए अंग्रेजी, समाजशास्त्र और शिक्षा है। मदरसा फैजुल इस्लाम मवाना खुर्द में हिंदी के शिक्षक की योग्यता एमए इतिहास है।

अंग्रेजी विषय के शिक्षक की योग्यता बीए समाजशास्त्र, उर्दू व राजनीति शास्त्र है। मदरसा हुसैनिया नंगला ऐजदी में शिक्षक एमए राजनीति शास्त्र में है और हिंदी विषय के लिए नियुक्त है। सामाजिक अध्ययन की शिक्षिका की योग्यता एमए उर्दू है तो अंग्रेजी विषय की शिक्षिका की योग्यता एमए हिंदी है।

मदरसा हमीदियाँ महलका में विज्ञान के शिक्षक की योग्यता एमए बीएड है। मदरसा मेहमूदियाँ में गणित के शिक्षक की योग्यता एमए बीएड है। मदरसा हुसैनिया इस्लामिया अरबिया कैली में भी गणित के शिक्षक एमए है तो मदरसा हाफिज सदररुद्दीन रूहासा गणित के शिक्षक ही हिंदी पढ़ा रहे हैं। मदरसा अरबिया रसीदुल कुरआन सरधना में अँग्रेजी के शिक्षकों की योग्यता एमकॉम है।

डियर रवीश कुमार, क्यों?

रवीश कुमार ने पिछले दिनों ‘द वायर’ के एक प्रोग्राम में काफी बातें की। उस एक घंटे में उन्होंने 38 बातें बोलीं, जिस पर बात करना ज़रूरी है।

तीसरी पीढ़ी की AK राइफलें बनेंगी अमेठी में, PM करेंगे 3 मार्च को प्लांट का उद्घाटन

हाल ही में भारत ने रूस के साथ मिलकर लगभग 7,47,000 क्लाशनिकोव राइफ़लों के निर्माण का समझौता किया था। इन राइफ़लों के निर्माण के लिए प्लांट उत्तर प्रदेश के अमेठी में लगाया जाना तय हुआ था। जिसका उद्घाटन अब कल (मार्च 3, 2019) को प्रधानमंत्री द्वारा होने वाला है। रक्षा उत्पादन क्षेत्र में केंद्र द्वारा उठाया गया यह फैसला बेहद अहम और जरूरी बताया जा रहा है।

भारत-रूस के बीच हुए करार के अनुसार अमेठी के इस प्लांट में क्लाशनिकोव कंसर्न और भारत की ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड जॉइंट वेंचर के तहत AK-47 की तीसरी पीढ़ी की राइफ़लें AK-103/203 तैयार करेंगे।

सुरक्षा के लिहाज़ से उठाया गया यह कदम दर्शाता है कि 2014 में शुरू की गई मेक इन इंडिया योजना आज बुलंदियों पर हैं क्योंकि राइफल्स बनाने का पूरा प्रोग्राम इसी योजना के तहत भारत में पूरा होगा।

इन राइफल्स के लिए पहली प्राथमिकता सेना को दी जाएगी, उसके बाद भारत के अन्य सुरक्षा बलों के लिए इसे उपलब्ध कराया जाएगाा और उसके बाद निर्यात पर गौर किया जाएगा।

इसके अलावा रक्षा मंत्रालयय के अधिकारियों के अनुसार फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट (एफटीपी) के तहत एसआईजी जॉर असॉल्ट राइफ़लों के लिए US के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किए हैं। अमेरिकी कंपनी एसआईजी जॉर से 72,400, 7.62 एमएम राइफलें साल के अंदर मिलने की उम्मीद है। फ़िलहाल भारतीय सुरक्षाबल 5.56×45 एमएम इनसास राइफ़लों से लैस है।

लोकसभा चुनाव के 48 घंटे पहले सोशल मीडिया पर लग सकती है पाबंदी : चुनाव आयोग

लोकसभा चुनाव से पहले जहाँ राजनीतिक दलों के बीच हलचल बढ़ गई है, वहीं चुनाव आयोग ने भी कमर कस ली है। चुनाव में आचार संहिता को लेकर चुनाव आयोग बड़ा फैसला ले सकता है और इसका राजनीतिक दलों पर खासा असर पड़ने की उम्मीद है।

दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर 48 घंटे पहले पाबंदी लग सकती है। इस पर  फैसला चुनाव की तारीख सामने आने से पहले लिया जाएगा। अगर यह फैसला लागू होता है तो फिर कोई भी चुनाव होने के 48 घंटे पहले इससे संबंधित किसी भी तरह की कोई जानकारी साझा नहीं कर पाएगा।

बता दें कि चुनाव आयोग ने इस बारे में एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी को जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 के तहत सुझाव दिया है कि फेसबुक, व्हाट्सऐप और ट्विटर को किसी भी लोकसभा चुनाव क्षेत्र में इससे संबंधित किसी भी तरह की जानकारी को देने से 48 घंटे पहले रोक लगा दी जाए। इसके साथ ही ये रोक मतदान समाप्त होने तक लागू रखा जाए।

इस कमेटी का कहना है कि चुनाव आयोग के अलावा सभी दलों और विधि आयोग में इस बारे मेंं एक राय है। ऐसा इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया मतदान से पहले मतदाता के मन पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। किसी भी उम्मीदवार अथवा पार्टी के बारे में झूठी पोस्ट या फिर फर्जी वीडियो वोटरों पर आखिरी वक्त में गलत प्रभाव डाल सकता है। इसलिए इस पर रोक लगाने की बात चल रही है।

गौरतलब है कि सेक्शन 126 के तहत अब तक सिर्फ जनसभा, रैली या चुनाव प्रचार पर ही रोक है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या सिनेमेटॉग्राफी के जरिए भी प्रचार पर पाबंदी है। हालाँकि आयोग ने हाल ही में प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया को इसमें शामिल करने का सुझाव दिया है। आयोग ने अपने सुझाव में तर्क देते हुए कहा है कि राजनीतिक पार्टियाँ प्रिंट में पाबंदी ना होने की वजह से साइलेंट पीरियड और मतदान के दिन भी विज्ञापन दे देते हैं।