26 फरवरी की सुबह लोगों को पता चला कि आधी रात भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट कर पुलवामा आतंकवादी हमले का बदला लिया है। इस ऑपरेशन के लिए भारतीय वायुसेना ने 12 मिराज 2000 फाइटर जेट इस्तेमाल किए।
इस एयर स्ट्राइक के बारे में लिखते हुए कई पत्रकारिता के धूर्त गिरोह ने दावा किया कि भारतीय वायुसेना के मिराज 2000 जेट का निर्माण ‘दसों एविएशन’ (Dassault Aviation) से लाइसेंस के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा किया गया है। कई मीडिया आउटलेट, जैसे CNN News 18, Wion News, स्क्रॉल, इंडिया टाइम्स आदि ने अपनी रिपोर्ट्स में यही दावा किया है।
Wion के लेख का शीर्षक था, “आप सभी को मिराज-2000 फाइटर जेट्स के बारे में जानना चाहिए, जिन्होंने LOC के पार आतंकी कैंप को नष्ट कर दिया।” इंडिया टाइम्स का लेख था, “मिराज-2000, IAF के प्रमुख फाइटर, जो 20 साल से पाकिस्तान को पछाड़ रहे हैं, के बारे में पूरी जानकारी।” Scroll के लेख का शीर्षक था, IAF के मिराज 2000 की झलक, आतंकी शिविरों पर हवाई हमले में इस्तेमाल किया गया विमान।”
ये लेख ऑपरेशन में भारत द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फाइटर जेट्स के बारे में विस्तृत जानकारी देने का दावा कर रहे थे, लेकिन इन सभी ने एक गलत जानकारी दी कि फ़्रांस में ‘दसों’ (Dassault) से लाइसेंस के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा भारत में ये जेट्स बनाए गए हैं।
जबकि, हक़ीक़त यह है कि HAL कम्पनी मूल निर्माताओं से लाइसेंस के तहत कुछ लड़ाकू जेट तो बनाती है, लेकिन मिराज 2000 उनमें से एक नहीं है। भारत के पास मिराज 2000 के 3 स्क्वाड्रन हैं, जिसका अर्थ है 54 विमान, और ये सभी फ़्रांस में Dassault द्वारा बनाए गए थे। जब भारत ने पहली बार 40 मिराज 2000 विमानों, 36 सिंगल सीटर फाइटर जेट्स और 4 ट्विन-सीट ट्रेनर जेट्स को खरीदा था, तो 110 अतिरिक्त जेट्स खरीदने की योजना थी, और उन्हें HAL द्वारा लाइसेंस के तहत बनाया जाना था। लेकिन उस योजना को कभी अमल में नहीं लाया गया और इसलिए HAL ने कभी भी मिराज 2000 को नहीं बनाया। इसके बाद, भारत ने 10 और मिराज 2000 जेट विमानों को Dassault से मँगवाए।
हालाँकि, HAL मिराज 2000 को नहीं बनाता है, लेकिन वह भारतीय वायु सेना के लिए जेट को अपग्रेड करने का काम कर रही है, और जो विमान इस महीने की शुरुआत में बेंगलुरु में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, वह हाल ही में HAL द्वारा अपग्रेड किया गया मिराज-2000 ही था। इस हादसे में 2 IAF ट्रेनर पायलटों द्वारा स्वीकृति परीक्षण के दौरान विमान ‘टेक-ऑफ’ से ठीक पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिससे दोनों की मौत हो गई थी।
वर्तमान में, HAL रूस से लाइसेंस के तहत सुखोई Su-30 MKI लड़ाकू विमान का निर्माण करता है। HAL द्वारा बनाए गए जेट की लागत रूसी निर्माता कम्पनी द्वारा चार्ज किए जाने वाले खर्च के मुकाबले लगभग ₹150 करोड़ अधिक है। HAL यूनाइटेड किंगडम में BAE सिस्टम्स से लाइसेंस के तहत ‘हॉक ट्रेनर’ भी बनाता है।
CNN न्यूज 18 की इस रिपोर्ट को ठीक कर लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि मिराज 2000 को Dassault द्वारा बनाया गया है, लेकिन ऊपर दिए गए स्क्रीनशॉट से पता चलता है कि रिपोर्ट पहले कुछ और ही कह रही थी। अन्य मीडिया हाउस अभी भी HAL को जेट बनाने के बारे में गलत जानकारी दे रहे हैं।
यह दावा, कि वायुसेना द्वारा पाकिस्तान में की गई इस सर्जिकल स्ट्राइक में इस्तेमाल किए जाने वाले जेट विमानों को HAL ने बनाया है, यह केवल मीडिया घरानों द्वारा की गई एक सामान्य त्रुटि नहीं है, बल्कि यह राहुल गाँधी द्वारा प्रचारित राफेल सौदे की मनगढंत कहानी का भी हिस्सा है।
So now pseudo-nationalists are attacking HAL so that the Ambanis get all future defence contracts instead of the Indian public sector company which has played a crucial role in India’s defence over the years . For those claiming that HAL has nothing to do with #Mirage2000pic.twitter.com/TcGblI6ex1
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष दावा करते रहे हैं कि राफेल सौदा HAL से छीन लिया गया था और अनिल अंबानी को दिया गया था। साथ ही, समय पर जेट पहुँचाने में HAL के खराब रिकॉर्ड के बावजूद यह भी साबित करने की लगातार कोशिश की गई कि HAL कम्पनी जेट बनाने में पूरी तरह से सक्षम है। कुछ पत्रकारों ने भी राहुल गाँधी द्वारा की जा रही इस बात को सही साबित करने के लिए इस झूठे दावे का इस्तेमाल किया।
भारतीय वायु सेना ने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद द्वारा संचालित आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। यह बताया गया था कि वायुसेना के जेट विमानों ने बालाकोट (पाकिस्तान), मुजफ्फराबाद (पीओके) और चाकोटी (पीओके) में आतंकी शिविरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। भारत के आज की एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की सियासत में भूचाल तो आना ही था।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से ही पाकिस्तान सशस्त्र बल के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने सर्जिकल स्ट्राइक से हुए नुकसान को कम कर दर्शाने की कोशिश की। गफूर ने दावा किया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के भीतर मुजफ्फराबाद सेक्टर में LOC के पार भारतीय विमानों की घुसपैठ हुई है। उन्होंने अपने देश की रक्षा विफलता को यह कहते हुए छिपाने की कोशिश की कि IAF मिराज-2000 द्वारा गिराए गए ’पे-लोड’ खुले क्षेत्र में गिर गए थे, उससे पाकिस्तान के बुनियादी ढाँचे को कोई नुकसान नहीं हुआ, न ही कोई हताहत हुआ।
लेकिन सच्चाई ज़्यादा देर तक छिप नहीं सकी। पहले स्थानीय निवासियों ने सर्जिकल स्ट्राइक की पुष्टि की। उसके बाद रही-सही कसर विपक्षी नेताओं से लेकर पाकिस्तानी मीडिया ने भी इमरान खान सरकार और पाकिस्तानी सेना को घेर कर निकाल दी। इतना ही पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने इमरान खान पर करारा हमला बोलते हुए मुल्क में आपातकाल जैसे हालात बताए हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तान सरकार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को तीखे सवालों का सामना करना पड़ा।
सुबह से ही पाकिस्तान सरकार के मंत्री जवाबी कार्रवाई के दावे किये जा रहे थे। और पाकिस्तान सरकार के प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पाकिस्तानी पत्रकार ने रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री से सवाल पूछ लिया, “बताइए हमारी एयर फोर्स ने कौन सी जवाबी कार्रवाई की है? यहाँ तक कि भारत के किसी भी जहाज को खरोंच तक नहीं आई? क्या यह मुमकिन नहीं था कि हम उन्हें मार के गिरा देते?”
इसके जवाब में कुरैशी ने कहा कि यह पाकिस्तानी एयरफोर्स की काबिलियत पर सवाल करने का वक्त नहीं है। उन्होंने कहा, “आप पाकिस्तानी हैं और मैं आपका सम्मान करता हूँ।” कुरैशी ने दावा किया कि पाकिस्तान सरकार भारत की कार्रवाई जवाब देने में सक्षम है और वो यह करके रहेंगे।
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य पत्रकार ने कुरैशी से सवाल पूछा, “क्या पाकिस्तान सेना को जवाब देने में देरी हुई क्योंकि भारतीय जवान काफी अंदर घुस आए थे?”
इसके जवाब में कहा गया कि ‘पाकिस्तान की एयर फोर्स पूरी तरह तैयार थी, अगर ऐसा नहीं होता तो हम भारतीय विमानों को कैसे वापस भेज पाते।’
पाकिस्तान पत्रकार ने पूछा, “भारत ने क्या हमारे डिफेंस सिस्टम को जैम कर दिया था, इसलिए हमें इस कार्रवाई के बारे में नहीं पता चल सका?”
इसके जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा, “कार्रवाई के बारे में हमें पता चल गया था, लेकिन शुरुआत में नुकसान की बारे में खबर नहीं थी।”
This is the Defence minister of Naya Pakistan: "Our air force was ready but it was dark.." Guys, ghabrana nahi hai. #okbye pic.twitter.com/QqNYU7QoCI
इतने के बाद भी पाकिस्तान की ओर से दावा किया गया कि बालाकोट में कोई नुकसान नहीं पहुँचा है और इसके लिए पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मीडिया को ले जाकर मौके का मुआयना कराएगा। लेकिन उससे पहले की जानकारी के अनुसार, ख़बर ये भी है कि पाकिस्तानी सेना ने बालाकोट के इलाके को घेर लिया है और माना जा रहा है कि वहाँ से भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मिटाने का काम जारी है।
पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना की आक्रामक कार्रवाई से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। एक तरफ पीएम इमरान खान की आपात बैठक के बाद वहाँ की फौज और विदेश मंत्री की तरफ से बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, तो दूसरी तरफ LOC पर पाकिस्तानी फौज ने अकारण गोलीबारी शुरू कर दी है।
जम्मू-कश्मीर: अखनूर, नौशेरा और कृष्णा घाटी सेक्टरों में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से भारी गोलाबारी; भारतीय सेना दे रही है करारा जवाब#JammuAndKashmirpic.twitter.com/gqtGeSmMwT
पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर मंगलवार शाम में नौशेरा, राजौरी और अखनूर सेक्टर में सीजफायर का उल्लंघन किया गया है। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना ने मेंढर और पुंछ जिले की कृष्णा घाटी सेक्टर में भी गोलीबारी की है। पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा किए जा रहे सीजफायर उल्लंघन का भारतीय सेना मुँहतोड़ जवाब दे रही है।
आज सुबह की शुरुआत भारतीय वायु सेना के मिराज-2000 द्वारा पुलवामा आतंकी हमले में बलिदान सैनिकों की मौत का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के अंदर घुसकर कई आतंकवादी शिविरों को नष्ट कर देने के साथ हुई। भारतीय वायु सेना ने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद द्वारा संचालित आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। यह बताया गया था कि वायुसेना के जेट विमानों ने बालाकोट (पाकिस्तान), मुजफ्फराबाद (पीओके) और चाकोटी (पीओके) में आतंकी शिविरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। आज की सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय वायुसेना के जेट विमानों और अन्य सैन्य जेट विमानों का बेड़ा शामिल था।
फ़िलहाल, यह रिपोर्ट अब पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमलों के दावों की पुष्टि कर रही है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, बालाकोट के निवासियों में से एक ने सुबह लगभग 3 बजे हुए हमले की पुष्टि की है।
“मैंने सुबह 3 बजे के आसपास विस्फोटों की आवाज़ सुनी, ऊपर उड़ रहे जेट विमानों के शोर के बीच एक साथ 4-5 बड़े विस्फोट हुए थे। हालाँकि, 10 मिनट के बाद वे चले गए थे।” बालाकोट के निवासियों में से एक ने यह भी कहा कि बाद में जब वे उन जगहों में से एक में गए जहाँ बम गिराया गया था, 4-5 इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं थी और कुछ लोग भी घायल हुए हैं।
First confirmation from Pakistan of Strike by Indian Air Force. BBC Urdu video from Jaba Post, Balakot, KPK where a local says that there were 5 big blasts after 3am at night followed by Jets leaving within 10 minutes. Many casualties and several injured. How can Pakistan deny? pic.twitter.com/izac7IGFsR
हालाँकि, पाकिस्तान सशस्त्र बल के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने सर्जिकल स्ट्राइक से हुए नुकसान को कम कर दर्शाने की कोशिश की। गफूर ने दावा किया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के भीतर मुजफ्फराबाद सेक्टर में LOC के पार भारतीय विमानों की घुसपैठ हुई है। उन्होंने अपने देश की रक्षा विफलता को यह कहते हुए छिपाने की कोशिश की कि IAF मिराज-2000 द्वारा गिराए गए ’पेलोड’ खुले क्षेत्र में गिर गए थे, उससे पाकिस्तान के बुनियादी ढाँचे को कोई नुकसान नहीं हुआ, न ही कोई हताहत हुआ। यह प्रतिक्रिया सर्जिकल स्ट्राइक-1 के बाद की पाकिस्तान की प्रतिक्रिया से बहुत अलग नहीं है।
Indian aircrafts’ intrusion across LOC in Muzafarabad Sector within AJ&K was 3-4 miles.Under forced hasty withdrawal aircrafts released payload which had free fall in open area. No infrastructure got hit, no casualties. Technical details and other important information to follow.
लेकिन, खैबर पख्तूनख़्वा के बालाकोट के निवासियों द्वारा किए गए खुलासे ने पाकिस्तान में एक और सर्जिकल स्ट्राइक की पुष्टि कर दी, साथ ही पाकिस्तान सशस्त्र बल के प्रवक्ता द्वारा शुरू की गई लीपापोती को ध्वस्त भी। स्थानीय लोगों की ओर से की गई पुष्टि का यह भी मतलब है कि भारतीय वायु सेना ने दशकों में पहली बार अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान के अंदर घूसकर आतंकी ठिकानों पर इतना घातक हमला किया है।
बालाकोट में नष्ट किया गया आतंकी शिविर जैश-ए-मुहम्मद का एक अल्फा-3 आतंकी शिविर था। इस आतंकी शिविर की देखरेख जैश-ए-मुहम्मद प्रमुख मसूद अजहर का बहनोई मौलाना यूसुफ अजहर कर रहा था। इस सर्जिकल स्ट्राइक में अभी तक की सूचना के अनुसार, मौलाना यूसुफ़ अज़हर के साथ, उसके ख़ास कमांडरों सहित क़रीब 300 आतंकियों के मारे जाने की ख़बर है।
भारतीय वायु सेना द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर हमले के बाद दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने घोषणा की है कि वो 1 मार्च से होने वाली अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल को फिलहाल टाल रहे हैं।
केजरीवाल ने ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान की बीच की परिस्थिति को देखते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य की मांग के लिए की जाने वाली अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल को फिलहाल स्थगित कर दिया है।
In view of prevailing Indo Pak situation, I am postponing my upwas for full statehood of Delhi. We all stand as one nation today.
केजरीवाल ने अपने ट्वीट में भारतीय वायु सेना के पायलटों की बहादुरी को सलाम किया जिन्होंने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को बर्बाद कर पूरे देश को गौरवान्वित किया है।
I salute the bravery of Indian Air Force pilots who have made us proud by striking terror targets in Pakistan
केजरीवाल द्वारा अनशन टालने की घोषणा पर कुमार विश्वास ने एक बार फिर से तंज कसा है। कुमार विश्वास ने कहा है कि जिस समय पर पूरा देश शहीदों के शोक में था उस समय आत्ममुग्ध बौना बोला कि वो नौटंकी करेगा। लेकिन, जब पूरा देश सैनिकों के शौर्य पर जोश में है तो वो आत्ममुग्ध बौना बोल रहा है कि नौटंकी नहीं करेगा।
जब पूरा देश अपने शहीदों के शोक में था तो आत्ममुग्ध बौना बोला- “नौटंकी करूँगा “ जब पूरा देश अपने सैनिकों के शौर्य पर जोश में है तो आत्ममुग्ध बौना कह रहा है-“नौटंकी नहीं करूगाँ” ??
कुमार विश्वास के अलावा आम आदमी पार्टी के विधायक कपिल मिश्रा ने भी केजरीवाल के बयान पर ट्वीट किया है कि जब भारत के 50 सैनिक शहीद हुए थे तब भूख हड़ताल की घोषणा की गई और कोई प्रोग्राम कैंसिल नहीं किए गए। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी आतंकी मरे, तुरंत ही सभी प्रोगम कैंसिल कर दिए गए।
केजरीवाल ने अपनी भूख हड़ताल रद्द कर दी
भारत के 50 सैनिक शहीद हुए तब भी भूख हड़ताल की घोषणा की, कोई प्रोग्राम कैंसिल नहीं किया
जैसे ही पाकिस्तान के आतंकी मरे, तुरंत सारे प्रोग्राम कैंसिल
सच ये हैं कि जनता AAP के साथ नहीं हैं, फ्लॉप शो के डर से कैंसिल की भूख हड़ताल https://t.co/yQ8SqKw8TG
आज भारतीय वायुसेना ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी क्षेत्र में घुस कर कई आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। इसे सोशल मीडिया पर लोगों ने सर्जिकल स्ट्राइक-2 नाम दिया है। आज मंगलवार (फरवरी 26, 2019) को तड़के साढ़े 3 बजे भारतीय वायुसेना के मिराज लड़ाकू विमानों के एक समूह ने सीमा पार जैश के कैम्पों पर बम बरसाए। पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा स्थित बालाकोट में स्थित आतंकी संगठन जैश के कैम्पों पर भीषण बमबारी की गई। हर तरफ लोग भारतीय वायुसेना और भारत सरकार की प्रशंसा कर रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक इच्छाशक्ति की दाद दे रहे हैं। भारत ने पुलवामा हमले का बदला तो ले लिया लेकिन कुछ ऐसे सवाल भी हैं, जिसे उठाने का यह सही समय है।
इस समय एक ऐसे सवाल पर से पर्दा उठाना बहुत ज़रूरी हो जाता है क्योंकि अगर उसका जवाब समय रहते मिल जाता तो पठानकोट, उरी, पुलवामा सहित कई आतंकी घटनाओं को शायद टाला जा सकता था। इसके लिए दो चीजों की ज़रुरत होती है- सेना की तैयारी और राजनीतिक इच्छाशक्ति। भारतीय सेना हमेशा से आतंकियों व आतंक के पोषकों पर कार्रवाई करने के लिए तैयार रही है लेकिन अफ़सोस यह कि भारतीय शासकों की राजनीतिक इच्छाशक्ति ही इतनी कमज़ोर रही है कि एक शक्तिशाली और शौर्यवान सेना तक के हाथ बाँध कर रख दिए गए।
जब पूर्व पीएम डॉ सिंह ने ठुकराई वायुसेना प्रमुख की सलाह
नवंबर 2008 के अंतिम सप्ताह में मुंबई को आतंकियों ने ऐसा दहलाया था कि भारत की सुरक्षा एवं ख़ुफ़िया व्यवस्था पर गंभीर संदेह पैदा हो गए थे। इस हमले में 174 लोग मारे गए थे व 300 से भी अधिक घायल हुए थे। इस दिल दहला देने वाले हमले में अपनी जान गँवाने वालों में 26 विदेशी व 20 भारतीय सुरक्षाबल के जवान थे। हमलावर 10 आतंकियों में से 9 को मार गिराया गया था व एक पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को नवंबर 2012 में फाँसी दे दी गई।
उस हमले के बाद भी लोगों में उतना ही आक्रोश था, जितना कि पुलवामा हमले के बाद देखने को मिला। उस हमले के बाद भी दोषियों पर कार्रवाई की माँग की गई थी। हमले में क़रीब पौने दो सौ लोगों के मारे जाने के बावजूद भारत सरकार ने सैन्य विकल्प का प्रयोग नहीं किया। इतना ही नहीं, तब भारत के प्रधानमंत्री रहे डॉक्टर मनमोहन सिंह ने तत्कालीन वायुसेना प्रमुख की सलाह को भी नज़रअंदाज़ कर दिया था। ऐसा स्वयं पूर्व वायुसेना प्रमुख ने रेडिफ को दिए गए इंटरव्यू में बताया था। आगे बढ़ने से पहले उस इंटरव्यू की ख़ास बातों को जान लेना आवश्यक है।
If it worth remembering that after 26/11, the Indian Air Force presented the option of surgical airstrikes on terror camps in Pakistan to Prime Minister Manmohan Singh, who, for reasons unknown, shied away. This was revealed by (retd) Air Chief Marshal Fali Homi Major in 2017.
उस इंटरव्यू में पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर ने कहा था कि भारतीय वायुसेना युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार थी लेकिन सरकार ने इस विषय में अपना मन नहीं बनाया। वायुसेना प्रमुख होमी ने कहा था:
“किसी ने युद्ध को लेकर अपना मन नहीं बदला (26/11 के बाद) बल्कि सरकार ही अपना मन नहीं बना सकी। मैं जनता के क्रोध और नाराज़गी की भावना को समझता हूँ। भारतीय वायु सेना पाकिस्तान पर हमला करने के लिए तैयार थी। हालाँकि, सरकार क्या चाहती थी? हम तो किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए तैयार थे।”
एयर चीफ मार्शल ने यह भी कहा कि सीमा पार जिहादी कैम्पों को तबाह करने के लिए एयर स्ट्राइक की भी योजना थी लेकिन भारत सरकार इसके पक्ष में नहीं थी क्योंकि उसे डर था कि सीमा पार आतंकियों पर की गई कोई भी कार्रवाई ‘पूर्ण युद्ध’ का रूप धारण कर सकती है।
किस बात का डर सता रहा था डॉक्टर सिंह को?
यहाँ इसका विश्लेषण करना आवश्यक है कि आख़िर क्या कारण था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने आतंकियों पर कार्रवाई करने की ज़रूरत नहीं समझी। क्या डॉक्टर मनमोहन सिंह को इस बात का डर था कि आतंकियों पर किए गए किसी भी प्रकार के हमले का पाकिस्तान कड़ा प्रत्युत्तर दे सकता है? जैसा कि पूर्व वायुसेना प्रमुख ने बताया, उन्हें ‘पूर्ण युद्ध’ का डर था। या तो डॉक्टर सिंह को सेना की तैयारी पर भरोसा नहीं था या फिर सेना के पास उचित संसाधन की कमी थी। दोनों ही स्थितियों में दोषी सरकार ही थी क्योंकि यह राजनेताओं का कार्य होता है कि सेना की भावनाओं को समझ कर उनकी ज़रूरतों के अनुरूप निर्णय लें।
एक ज़िंदगी की इतनी क़ीमत होती है कि उसका मोल नहीं चुकाया जा सकता। मुंबई हमले में तो लगभग पौने दो सौ लोग मारे गए थे। उरी हमले में हमारे 19 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस दौरान भारत सरकार ने सेना के साथ उच्च स्तरीय समन्वय बना कर योजना तैयार की और उस पर अमल किया, जिस से बहुचर्चित सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया जा सका। सेना वही थी, ब्यूरोक्रेसी भी वही थी लेकिन निर्णय लेने वाले लोग अलग थे। मोदी सरकार के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति थी, जिससे सुरक्षाबलों की सलाह को ध्यान से सुना गया और उस पर अमल किया गया।
डॉक्टर सिंह के वक़्त ऐसा नहीं था। सर्जिकल स्ट्राइक तो दूर, सीमा पार आतंकियों पर छोटे-मोटे एयर स्ट्राइक करने से भी बचते रहे तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का सेना के साथ समन्वय सही नहीं था। अतीत में एक साल में कम से कम 3-4 बार तीनों सेना प्रमुखों के साथ पीएम की बैठक हुआ करती थी। लेकिन डॉक्टर सिंह के कार्यकाल में ऐसा समय भी आया जब पूरे साल में (2011) उन्होंने तीनों सेनाओं के प्रमुखों से सिर्फ़ 1 बार मुलाक़ात की। वो भी उस दौर में, जब सेना के आधुनिकीकरण की बात चल रही थी। ऐसे में, सेना और सरकार का समन्वय न होना आतंकियों का मनोबल बढ़ाने वाला साबित हुआ।
आपको याद होगा कैसे यह ख़बर उछाली गई थी कि सेना की एक टुकड़ी दिल्ली में सत्तापलट के लिए निकल गई थी। बाद में जनरल वीके सिंह सहित सेना के कई उच्चाधिकारियों ने इसका खंडन किया। जिस सरकार के कार्यकाल में सेना पर ऐसे आरोप लगते रहे हों, उस समय सेना युद्ध या स्ट्राइक्स के लिए कैसे तैयारी कर पाएगी? अगर थोड़ा और पीछे जाएँ तो हम पाएँगे कि यह मानसिकता कॉन्ग्रेसी सत्ताधीशों में शुरू से रही है।
नेहरू के भारतीय सेना से थे तल्ख़ रिश्ते
कॉन्ग्रेस पार्टी की सरकार और भारतीय सेना के बीच के रिश्तों को समझने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की लचर रक्षा नीति को देखना पड़ेगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभ भाई पटेल- ये दो ऐसे नेता थे जिन्हें सेना, मिलिट्री व रक्षा नीतियों की अच्छी समझ थी। बोस आज़ादी से पहले असमय चल बसे जबकि 1950 में सरदार के निधन के साथ भारत में एक राजनीतिक शून्य सा पैदा हो गया था। कैसे? इतिहास के इस उदाहरण से समझें- भारतीय सेना के पहले कमाण्डर-इन-चीफ सर रॉब लॉकहार्ट नेहरू के पास एक औपचारिक रक्षा दस्तावेज़ लेकर पहुँचे, जिसे पीएम के नीति-निर्देश की आवश्यकता थी, तो नेहरू ने उन्हें डपटते हुए कहा:
“बकवास! पूरी बकवास! हमें रक्षा नीति की आवश्यकता ही नहीं है। हमारी नीति अहिंसा है। हम अपने सामने किसी भी प्रकार का सैन्य ख़तरा नहीं देखते। जहाँ तक मेरा सवाल है, आप सेना को भंग कर सकते हैं। हमारी सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पुलिस काफ़ी अच्छी तरह सक्षम है।”
इस पर काफ़ी चर्चा हो चुकी है कि कैसे कश्मीर, हैदराबाद और फिर चीन युद्ध के दौरान नेहरू को इसी सेना का सहारा लेना पड़ा था। इसीलिए हम इस पर न जाकर अपने उसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे कि क्या अगर कॉन्ग्रेसी सत्ताधीश पहले से ही सेना की सुनते, उनकी बात मानते और सैन्य संसाधनों की ज़रूरतें पूरी करने के साथ-साथ सरकार और सेना का समन्वय सही से बना कर रखते तो शायद आतंकियों या उनके पोषकों की हिम्मत ही नहीं होती कि भारत की भूमि पर ख़ूनी हमले करें।
हिंदुस्तान टाइम्स में शिव कुणाल वर्मा की पुस्तक के हवाले से बताया गया है कि कैसे जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन सेना प्रमुख केएस थिमैया के ख़िलाफ़ साज़िश रची थी। उस पुस्तक में यह भी बताया गया है कि नेहरू सशस्त्र बलों के साथ कभी भी सहज नहीं थे। इसमें कहा गया है कि सार्वजनिक तौर पर तो नेहरू थिमैया की प्रशंसा करते लेकिन पीठ पीछे उनके ख़िलाफ़ साज़िश रचते थे।
Karnataka is synonymous with valour. But, how did the Congress Govts treat Field Marshall Cariappa and General Thimayya? History is proof of that. In 1948 after defeating Pakistan, General Thimayya was insulted by PM Nehru and Defence Minister Krishna Menon: PM Modi pic.twitter.com/OGOUaQDvEe
थिमैया यह जानते थे कि नेहरू को सेना पर तनिक भी भरोसा नहीं है। जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन के दौरान अपने किरदार के लिए सम्मानित थिमैया के साथ देश के सबसे बड़े नेता का ऐसा व्यवहार दुःखद था। ऐसे में नेहरू से तंग जनरल थिमैया ने अपना इस्तीफ़ा पत्र लिख कर भेज दिया था। हालाँकि, इसे अस्वीकार कर दिया गया लेकिन बाद में इसका क्रेडिट भी नेहरू ने ही लूटा कि कैसे उन्होंने जनरल थिमैया को पद पर बने रहने के लिए मनाया।
अब भारत जवाब देता है क्योंकि…
अब भारत अपनी ज़मीन पर हुए हर एक आतंकी हमले का पुरजोर जवाब देता है, प्रत्युत्तर में आतंकियों को मार गिराता है व सीमा पार ऑपरेशन करने से भी नहीं हिचकता। यह सब इसीलिए संभव हो पाता है क्योंकि सरकार सेना की सुनती है, सुरक्षा बलों की सलाह को गंभीरता से लेती है व सेना का मनोबल बढ़ाने वाला कार्य करती है। सबसे बड़ी बात तो यह कि सरकार जनता के आक्रोश को भी समझती है और उचित निर्णय लेती है।
इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि सरकार आनन-फानन में कार्रवाई कर जनता के आक्रोश को ठंडा कर देती है। बात तो यह है कि सेना व संबंधित संस्थाओं को पूरी आज़ादी दी जाती है ताकि वो बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के अपनी कार्ययोजना तैयार कर सकें। सरकार और सेना का समन्वय सही है और प्रधानमंत्री अक्सर सेना के तीनों प्रमुखों से बैठक करते हैं।
अब भारत जवाब देता है क्योंकि अब हमारा सुरक्षा तंत्र किसी भी प्रकार के पलटवार के लिए तैयार बैठा है। अब भारत जवाब देता है क्योंकि प्रधानमंत्री सेना के अधिकारियों की सलाह को अनसुनी नहीं करते। अब भारत जवाब देता है क्योंकि पीएम सेनाध्यक्ष के पीठ पीछे उनके ख़िलाफ़ साज़िश नहीं रचते। अब भारत जवाब देता है क्योंकि राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत है।
बीसीसीआई की प्रशासनिक समिति (CoA) के अध्यक्ष विनोद राय ने कुछ दिन पहले कहा कि क्रिकेट खेलने वाले देशों को पाकिस्तान का उसी प्रकार बहिष्कार करना चाहिए जैसे कभी विश्व समुदाय ने रंगभेद के कारण दक्षिण अफ्रीका का बहिष्कार किया था। भारत और पाकिस्तान के बीच वैसे भी लंबे समय से क्रिकेट शृंखला नहीं हो रही है। भारत केवल वर्ल्ड कप जैसे आयोजनों में ही पाकिस्तान की टीम के साथ खेल रहा है। लेकिन ताज़ा आतंकी घटनाओं को देखते हुए अब आवश्यकता है कि विश्व समुदाय प्रत्येक खेल आयोजन से पाकिस्तान का बहिष्कार करे।
ध्यातव्य है कि रंगभेद के दौर में खेल ही नहीं अकादमिक बिरादरी से भी दक्षिण अफ्रीका का बहिष्कार किया जा चुका है। सन 1965 में 34 ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के 496 प्रोफेसरों ने दक्षिण अफ़्रीकी विश्वविद्यालयों का बहिष्कार किया था। सन 1981 में यूरोपीय देशों ने दक्षिण अफ्रीका से तेल का व्यापार करना बंद कर दिया था। सन 1959 में रंगभेद के कारण दक्षिण अफ्रीका को आर्थिक बॉयकॉट झेलना पड़ा था। अस्सी और नब्बे के दशक में विश्व समुदाय ने दक्षिण अफ्रीका के कलाकारों का बहिष्कार किया था।
उस दौर में दक्षिण अफ्रीका के फिल्म कलाकारों के साथ कोई काम नहीं करना चाहता था। भारत और संयुक्त राष्ट्र ने 1988 में रंगभेद की नीति के विरुद्ध दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलने से मना कर दिया था। उस समय विजय अमृतराज ने कहा था कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलने के लिए ढेर सारे पैसे ऑफर किए गए थे लेकिन उन्होंने उस देश के साथ खेलने से मना कर दिया था जहाँ रंगभेद की नीति अपनाई जाती थी।
रंगभेद की नीति मानवता के विरुद्ध अभिशाप थी। यह मानव इतिहास में गोरे लोगों द्वारा अपनाई गई सबसे घृणास्पद और क्रूर नीति थी जिसके तहत करोड़ों अश्वेतों को निर्ममता से मारा गया था। ग़ुलामी प्रथा के दौर में अमेरिका में अश्वेत महिलाओं की कोई इज्जत नहीं होती थी। उनका मालिक उनके शरीर को किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकता था। एक ग़ुलाम के शरीर पर उसके मालिक का पूरा क़ानूनी अधिकार हुआ करता था।
मालिक अपने ग़ुलाम के साथ यौन हिंसा से लेकर मारकाट तक किसी भी प्रकार का सलूक कर सकता था। यहाँ तक कि किसी ग़ुलाम द्वारा बात न मानने पर उसका मालिक उसे ज़िंदा कुत्ते को भी खिला दे तो वह ग़ैरकानूनी नहीं माना जाता था। ग़ुलामी प्रथा और रंगभेद की नीति के ख़िलाफ कई सौ सालों तक लड़ाई लड़ी गई।
अंतरराष्ट्रीय खेलों के परिदृश्य में एक घटना बहुत प्रसिद्ध है। सन 1968 मेक्सिको ओलंपिक की बात है। 200 मीटर की रेस में दो अश्वेत टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस क्रमशः स्वर्ण और कांस्य पदक विजेता थे। उन दोनों ने अमेरिका में अश्वेतों की गरीबी को विश्व समुदाय के सामने लाने के लिए बिना जूते पहने पदक ग्रहण किए थे। तब ऑस्ट्रेलिया के रजत पदक विजेता पीटर नॉर्मन ने श्वेत होने के बावजूद उनका साथ दिया था।
यह वह दौर था जब अमेरिका में सिविल राइट्स मूवमेंट चरम पर था। अमेरिका में अश्वेत अधिकारों का आंदोलन सिविल राइट्स मूवमेंट कहलाता है। सिविल राइट्स मूवमेंट की पृष्ठभूमि में अमेरिका में अश्वेत अधिकारों की लड़ाई का इतिहास देखना आवश्यक है। सन 1864 में अमेरिका में गृहयुद्ध के बाद दासता समाप्त कर दी गई थी परंतु यह अश्वेतों पर अत्याचारों का अंत नहीं था।
ग़ुलामी प्रथा समाप्त करने के बाद भी अमेरिका में अनेक ऐसे कानून बनाए गए जिससे अमेरिकी समाज में अन्याय और भेदभाव का प्रभुत्व बना रहा। इन कानूनों को ‘जिम क्रो’ कानून कहा गया। ‘जिम क्रो’ कोई व्यक्ति नहीं था, यह अश्वेतों के प्रति अनादर व्यक्त करने वाला शब्द था। इन कानूनों के अनुसार अमेरिकी समाज में श्वेत और अश्वेत अलग-अलग रखे गए।
वे अलग-अलग बसों और ट्रेनों में चलते थे। श्वेतों के रेस्टोरेंट में अश्वेत प्रवेश नहीं कर सकते थे। कुछ कानूनों के तहत एक अश्वेत को सिद्ध करना होता था कि वह रोज़गार में है, अन्यथा उसे जेल या लेबर कैम्प्स में डाला जा सकता था। उनके वोटिंग के अधिकार भी सीमित थे। सन 1969 तक इंटर-रेशियल शादियाँ गैरकानूनी थीं।
भेदभाव यहीं तक सीमित नहीं था। समाज के लोगों के व्यवहार में जो भेदभाव था, वह इन कानूनी भेदभाव तक सीमित नहीं था। अमेरिका में, खासतौर से दक्षिणी राज्यों में स्थिति विकट थी। यदि किसी श्वेत व्यक्ति को किसी अश्वेत व्यक्ति का व्यवहार पर्याप्त सम्मानजनक नहीं लगता था तो इसके परिणाम कुछ भी हो सकते थे। यदि किसी अश्वेत व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लग जाये तो दंड का निर्धारण आम सहमति से होता था। दंड का निर्धारण न्यायिक प्रक्रिया से ही हो यह आवश्यक नहीं था।
अगर पब्लिक को न्यायिक प्रक्रिया से निर्धारित न्याय पसंद नहीं आता था तो यह भीड़ न्याय कर देती थी। ऐसी हज़ारों घटनाएँ हैं जिसमें उत्तेजित श्वेत भीड़ ने किसी अश्वेत आरोपित को पकड़ कर उसे मारा-पीटा, नाक कान काट लिए, आंखें फोड़ दीं और फाँसी दे दी या ज़िंदा जला दिया। अगर आरोपी जेल में बंद हो तो भीड़ ने उसे जेल से निकाल कर मार डाला। उसके बाद उस भीड़ ने मृत व्यक्ति के साथ गर्व से फ़ोटो खिंचवाई और ऐसे फोटोग्राफ्स उस समय के अमेरिकी अखबारों में मज़े से छपा करते थे। ऐसी घटनाओं को ‘लिंचिंग सक्सेस’ भी बताया जाता था। अखबारों में छपे उन फोटोग्राफ्स के बावजूद किसी भी श्वेत व्यक्ति को ऐसी घटनाओं के लिए सज़ा हुई हो ऐसा नहीं है।
रंगभेद की नीति को धीरे-धीरे अमेरिका बहुत पीछे छोड़ आया लेकिन दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नब्बे के दशक तक चला था। इसी कारण क्रिकेट खेलने वाले कई देशों ने दक्षिण अफ्रीका का दशकों तक बहिष्कार किया था। नब्बे के दशक में जाकर के ही यह बहिष्कार ख़त्म हुआ था।
आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो रंगभेद और जेहादी आतंकवाद में कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई पड़ता। आइसीस (ISIS) द्वारा औरतों को सेक्स स्लेव बनाना, पाकिस्तान में आतंकी संगठन जमात-उद-दावा की शरिया अदालतों द्वारा अमानवीय दंड देने वाले फैसले सुनाना जैसे कारनामें जेहाद को रंगभेद से अलग नहीं करते बल्कि दोनों विचारधाराएँ एक ही प्रतीत होती हैं। एक मुस्लिम औरत को किसी दूसरे मर्द के साथ दिख जाने पर पत्थरों से मार दिया जाना ‘लिंचिंग सक्सेस’ जैसा ही है।
जिस प्रकार रंगभेद में श्वेत खुद को अश्वेतों से ऊपर मानते हैं उसी प्रकार जेहाद में भी इस्लाम को सभी आस्थाओं में सर्वोपरि मानकर हिंसा की जाती है। रंगभेद और जेहाद में बस इतना ही अंतर है कि गोरे रंग वाला व्यक्ति काले में ‘कन्वर्ट’ नहीं हो सकता जबकि जेहाद इतनी सहूलियत देता है, अन्यथा वास्तव में ग्लोबल जेहाद से अधिक हत्याएँ रंगभेद की नीति के कारण हुई थीं। ऐसे में दुनिया के पहले जेहादी इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान का विश्व क्रिकेट समुदाय से बहिष्कार होना ही चाहिए।
पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार और भारतीय सेना से, मीडिया से लेकर आम जनमानस तक यही उम्मीद लगाए बैठा था कि मोदी सरकार इस बार आतंकवादियों को जरूर कोई सबक सिखाएगी। मंगलवार (फरवरी 26, 2019) की सुबह देशवासियों को सबसे पहली यही खबर मिली कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के घर में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के अड्डे पर ‘एयर स्ट्राइक’ से 1000 किलो बमबारी कर तहस-नहस कर दिया, जिसमें 300 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। इसके बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
भारतीय वायुसेना के 12 मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने बालाकोट, चाकोटी और मुजफ्फराबाद में आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को इस हमले में ध्वस्त कर दिया।
पुलवामा हमले के जवाब में भारत की एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान से लेकर भारतीय मीडिया के समुदाय विशेष में बौखलाहट देखने को मिल रही है। देशभर के लोगों में जहाँ एक बड़ा वर्ग भारतीय वायुसेना के इस जज़्बे से उत्साहित है वहीं एक ऐसा वर्ग भी है, जो आतंकवादियों पर हुई इस दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक से सदमे में चला गया है।
देखते हैं सोशल मीडिया पर क्या रही लोगों की प्रतिक्रिया
भारतीय वायुसेना की इस प्रतिक्रिया पर भारतीय सेना ने भी ट्वीट किया है। इंडियन आर्मी के ट्विटर हैंडल से इस कविता को ट्वीट किया गया है, ”क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही।”
‘क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनीत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही।
भारतीय वायुसेना की इस विजय गाथा पर प्रियंका गाँधी के भाई और कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी ट्वीट कर सिर्फ भारतीय वायुसेना के ‘पायलेट्स’ को सैलूट करते हुए ट्वीट किया। जिसके जवाब में ऑपइंडिया CEO राहुल रौशन ने कटाक्ष करते हुए लिखा, “क्या आप उन्हीं ‘पायलेट्स’ को सैलूट कर रहे हैं, जिन्हें आप नहीं चाहते कि आधुनिक फाइटर जेट्स दिया जाए, क्योंकि आपके परिवार को ‘कमीशन’ नहीं मिल रहा था?” राहुल रौशन का इशारा कॉन्ग्रेस पार्टी के राफ़ेल विमान को लेकर कॉन्ग्रेस की असहमति को लेकर था।
पूर्व सेनाध्यक्ष और वर्तमान भाजपा संसद जनरल वीके सिंह ने अपने ट्विटर एकाउंट पर भारतीय वायुसेना को धन्यवाद देते हुए एक ऐसी तस्वीर के ज़रिए अपनी बात रखी है, जिसमें बाज साँप को दबोच रहा है। इसके साथ उन्होंने लिखा है, “वो कहते हैं कि वो इंडिया को 1000 घाव देना चाहते हैं, हम कहते हैं कि जब भी तुम हम पर हमला करोगे, हम हर बार और मजबूती और ताकत से तुम्हें सबक सिखाएँगे।”
They say they want India to bleed with a 1000 cuts. We say that each time you attack us, be certain we will get back at you, harder and stronger. Salute the brave pilots of the @IAF_MCC that carried out the strikes. #JaiHindpic.twitter.com/3dLvr5oX0B
वरुण गाँधी ने भी ट्वीट के माध्यम से सेना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आतंकवादी अड्डों को तबाह करने के लिए बधाई दी है।
Today is a good day to be a patriot… To feel loyalty and allegiance to a force larger than oneself. As a citizen, I feel immense pride in the armed forces and Prime Minister @narendramodi ji for defending our honour. Jai Hind.
सामाजिक मुद्दों पर अक्सर मुखर रहने वाले लोगों के चाहते वीरेंद्र सहवाग ने अपने ही अंदाज में वायुसेना के इस पराक्रम पर ट्वीट किया है। सहवाग ने लिखा है, “लड़कों ने बहुत अच्छा खेला, सुधर जाओ, वरना सुधार देंगे।”
@Oyevivekk नाम के ट्विटर यूज़र ने 2009 में हुए मुंबई आतंकी हमले से पुलवामा हमले की तुलना करते हुए कॉन्ग्रेस सरकार और मोदी सरकार की तुलना की है। विवेक ने लिखा है कि 2009 में सरकार को कड़ा एक्शन लेने की राय दी गई थी लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसमें असमर्थता जताई थी। जबकि वर्तमान सरकार ने तुरंत सैनिकों की मौत का बदला लिया और सैनिकों के मनोबल को बढ़ाया है, इसलिए देश को नरेंद्र मोदी की जरूरत है।
@rishibagree ने अपने ट्वीट में लिखा है कि पाकिस्तानी आतंकवादियों को मरने के लिए अब LOC पार करने की जरूरत नहीं है, हमारी वायुसेना अब ‘होम डिलीवरी’ कर के अपना लक्ष्य पूरा कर रही है।
Dear Pakistani terrorists, you don’t need to cross LOC for getting killed#IndianAirForce has started special home delivery to fulfill its year end target #Surgicalstrike2
ट्विटर सेलिब्रिटी @Gabbbarsingh ने पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर के ट्वीट पर जबरदस्त व्यंग्य करते हुए लिखा कि घटनास्थल पर तुम्हारे एयरक्राफ्ट से पहले तुम्हारा फोटोग्राफर पहुँच गया है। गफूर ने आज सुबह घटनास्थल की तस्वीरें ट्वीट कर ये बताया था कि मुजफ्फराबाद सेक्टर में भारतीय विमानों ने घुसपैठ की कोशिश की।
Your photographers reached the bomb site faster than your aircrafts.
अक्षय कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया में ट्वीट किया है कि आतंकवादियों के ठिकानों को खत्म करने पर हमें अपनी भारतीय वायुसेना पर गर्व है। साथ ही कि ‘अंदर घुस के मारो!’
पुलवामा हमले के बाद से ही देश के हर व्यक्ति के सीने में बदले की आग जल रही थी। हर कोई देश की सेना से और सरकार से उम्मीद लगाए बैठा था कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जल्द से जल्द कुछ किया जाए। ऐसे में IAF द्वारा पाकिस्तान में किए गए इस मेजर ऑपरेशन से न केवल जवानों को सच्ची श्रद्धांजलि मिली है, बल्कि आम जनता के आक्रोश को भी शांति मिली है।
देश के हर नागरिक में इस समय उत्साह की लहर है। लेकिन, IAF की इस उपलब्धि के बाद एक तरफ जहाँ पाकिस्तान में हलचल मच गई, वहीं हमारे देश में भी मीडिया समुदाय के कुछ लोग हैं जो एक्शन में आ गए।
IAF के एक्शन के बाद सोशल मीडिया पर लगातार लोगों की प्रतिक्रिया देखकर इन लोगों में खलबली मचनी शुरू हो गई। IAF समेत केंद्र सरकार की बड़ी कामयाबी पर तो इस ‘टुकड़ी’ से कुछ बोला नहीं जा रहा है, लेकिन लोगों के पूरे मामले को तोड़-मरोड़कर अलग-अलग दिशा में दिखाने के लिए यह लोग प्रयासरत हैं।
सागरिका घोष, प्रोपेगेंडा पत्रकारिता जगत की एक बड़ी हस्ती हैं। एक तरफ जहाँ पूरा देश इस कामयाबी को सराहने में जुटा है, वहीं सागरिका ट्वीट करके सवाल दाग रही हैं कि कौन से बालाकोट में IAF द्वारा बम गिराए गए हैं? पीओके के बालाकोट में या फिर पखतूनख्वा के बालाकोट में? सागरिका अपने सवाल के लिए आधिकारिक पुष्टि का इंतजार कर रही हैं।
Which Balakot was hit, Balakot in Pakhtunkhwa or Balakot in PoK? Await official response from @IAF_MCChttps://t.co/oRJh7CCNjA
इनके अलावा सोशल मीडिया पर और भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो बेतुके सवाल पैदा करके अपने फॉलोवर्स को बरगलाने की कोशिशें कर रहे हैं। मुशर्रफ ज़ैदी इसका ही उदाहरण हैं। इन्हीं के ट्वीट पर सागरिका ने अपना सवाल किया है।
The debate about which Balakot the DG ISPR mentions in his tweet needs to be resolved by him, through a clarification.
But if you look at the map, the “other” Bala Kote, in Poonch, is nowhere near Muzaffarabad, which he mentions.
कुछ दिन पहले तक जम्मू-कश्मीर के लोगों के प्रति शांति बनाए रखने की गुहार लगाते उमर अब्दुल्ला ने अपने ट्वीट के ज़रिए पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के लिए चिंता जताई है और कहा है कि अब दिक्कत इमरान के लिए है क्योंकि उन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि भारत के एक्शन लेने पर पाकिस्तान भी जवाब देगा। अपने ट्वीट में वो पूछ रहे हैं कि इस कदम की क्या प्रतिक्रिया होगी? साथ ही संशय की स्थिति में हैं कि क्या भारत को पाकिस्तान के हमले का जवाब देना चाहिए था?
The problem now becomes PM Imran Khan’s commitment to his country – “Pakistan will not think about responding, Pakistan WILL respond”. What shape will response take? Where will response be? Will India have to respond to Pakistan’s response?
अक्सर सरकार विरोधी बयानों के लिए चर्चा में रहने वाली राणा अयूब ने इस मौक़े पर पीएम मोदी पर सवाल उठाया है कि पहले मोदी गाँधी पीस अवार्ड में शामिल हुए और कुछ मिनट बाद वो चुरू में जनसभा को संबोधित करेंगे। आज के दिन राणा के इस तरह के पोस्ट को क्या समझा जाए?
This morning Modi attended the Gandhi Peace awards, in a few minutes he will address a rally in Churu with a large population of serving and ex-servicemen. Interesting choice of events for a day like today.
मौकापरस्ती का घोर उदाहरण पेश करने वाले शाह फैसल भी इस मौके पर चुप नहीं बैठ पाए। IAF की बड़ी कामयाबी पर अपनी राजनीति करते हुए ट्वीट करके पूछ रहे हैं कि इन सबसे कौन हार रहा है और किसे फायदा हो रहा है?
Pulwama attack:
45 lives lost and as many families destroyed.
Targetted violence against thousands of Kashmiris.
राहुल गाँधी ने भी अपने ट्वीटर हैंडल से एक ट्वीट किया जिसमें वो IAF के पॉयलटों को सैल्यूट कर रहे हैं। इस ट्वीट से मालूम पड़ता है कि वंशवाद की थ्योरी पर चल रही पार्टी के अध्यक्ष यही सोचते हैं कि IAF में बिना टीम के पायलट ही पूरी ऑपरेशन को मुमकिन कर आए।
बता दें इस समय सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट और ट्वीट करने वाला गिरोह पूर्ण रूप से सक्रिय हो रखा है। अपनी विचारधारा में लपेट कर इस कामयाबी पर सवालों की झड़ी लगाने वाले यह वहीं लोग हैं, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत माँगे थे। हर बार युद्ध के नाम पर अपनी कथित संवेदनाओं को जगा देने वाले तमामों लोग पुरजोर कोशिशें कर रहे हैं कि किसी भी तरह से चुनाव में सरकार को इसका फायदा न हो जाए।
If India’s claim of massive damage is correct, it’s not clear why large number of terrorists would be at a well known place whose existence Indian intelligence had publicly acknowledged–when it was clear India was likely to hit back in the wake of Pulwama. https://t.co/Eswip6uOij
जब अपने ही नींव में मट्ठा डालने पर आमादा हो तो उन्हें कौन समझाए? कभी यहाँ के चैनल्स पुलवामा के बाद पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता के गलत बयानों वाले प्रेस कॉन्फ्रेंस का प्रसारण कर पाकिस्तान को नैतिक सम्बल देते हैं कि देखो तुम्हारी बात सही है तभी तो हम (भारत के चैनल) तुम्हे दिखा रहे हैं, बिना किसी विरोध के। हाँ, इसके पीछे की मानसिकता यही है कि हर हाल में देशहित का विरोध और राष्ट्रविरोधियों का समर्थन करना है। कभी यहाँ के नेताओं के बयानों का, तो कभी कुछ विरोधी पोर्टलों और मीडिया चैनलों के रिपोर्टों का प्रयोग पाकिस्तान न सिर्फ़ अपनी जनता को यकीन दिलाने के लिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में बतौर सबूत भी इस्तेमाल करता है।
ख़ैर, अभी बात जम्मू-कश्मीर के पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती की, जिन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खुली छूट का गलत प्रयोग करते हुए एक बार फिर आतंकियों को उकसाने वाला बयान दे दिया है, मुफ़्ती ने खुलेआम कहा “आग से मत खेलो, अनुच्छेद -35 A के साथ छेड़छाड़ न करें, अन्यथा आप वो देखेंगे जो आपने 1947 से अभी तक नहीं देखा है। अगर उस पर (अनुच्छेद-35 A) हमला होता है तो मुझे नहीं पता कि जम्मू-कश्मीर में तिरंगे की जगह कौन से झंडे लोग लहराने को मजबूर होंगे।”
PDP leader Mehbooba Mufti: Don’t play with fire; don’t fiddle with Article-35A, else you will see what you haven’t seen since 1947, if it’s attacked then I don’t know which flag people of J&K will be forced to pick up instead of the tricolour. pic.twitter.com/8we431nID5
मुफ़्ती जी, आपका यह बयान, भारत सरकार को धमकी है या आप बता रही हैं कश्मीर में छिपे पाकिस्तानी आतंकियों को कि क्या करना है? आप ये बताइए कि क्या कश्मीर इस देश का हिस्सा नहीं, जो वहाँ के कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हैं? एक अच्छे लोकतान्त्रिक देश की पहचान होती है कि समय के साथ वह भी परिवर्तनशील हो। वहाँ कानून वक़्त की ज़रूरत के हिसाब से न्यायसंगत हों, न कि किसी तरह के तुष्टिकरण को बढ़ावा देते हुए अपने ही देश के दूसरे लोगों के साथ अन्याय करें।
आपसे तो पहला सवाल यही है कि क्या आप नहीं चाहतीं कि कश्मीरियों का भला हो? या सिर्फ़ राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता की लालसा में लगातार कश्मीर को आतंक और देशद्रोह की फैक्ट्री बनाए रखना चाहती हैं?
मुफ़्ती जी, माना कि आप अभी भी अपने पिता के विरासत को सँभालने में लगी हुई हैं। सत्ता के लिए राजनीति ठीक है लेकिन उसका स्तर इतना नीचे मत गिराइए कि आप कश्मीर को पाकिस्तान परस्त आतंकी राज्य में ही बदल डालिए।
याद है पिछले दिनों बिजबिहाड़ा में आपने अपने पिता के आत्मा की शांति के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में सेना की कार्रवाई में मारे गए आतंकी को शहीद का दर्ज़ा दे डाला था। आपने कश्मीर के नौजवानों से कहा था कि मैं आपकी माँ समान ही हूँ। अच्छा है! बहुत ख़ूब! लेकिन जब आपको घाटी को जहन्नुम बनाने पर आमादा आतंकियों के मर जाने पर पीड़ा होने लगी तो क्या तब आप उसी कश्मीर के अपने दूसरे बेटों को भूल गईं, जो इन आतंकियों के गोलियों का, पत्थरों का लगातार शिकार और लहूलुहान होते रहें।
जानती हैं, आप जैसे नेताओं की वजह से ही कश्मीर में आतंक न सिर्फ पनप रहा है बल्कि फल-फूल भी रहा है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद एक तरफ जहाँ सरकार आतंक की नर्सरी पर लगाम लगाने के मूड में है। वहीं आप लगातार आतंक, आतंकियों और उसके सरंक्षण कर्ताओं को प्रश्रय दे रही हैं।
सरकार जिस समय अलगाव वादी और घाटी में अशांति फैलाने वाले नेताओं पर कार्रवाई कर रही थी तो आप ट्वीट कर सरकार से पूछ रही थी कि किस कानून के तहत हुर्रियत नेताओं और जमात के कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया है? आपने तो एक कालजयी डॉयलाग भी दे मारा कि ‘आप लोगों को कैद कर सकते हैं, लेकिन उनके विचारों को क़ैद नहीं कर सकते।’
In the past 24 hours, Hurriyat leaders & workers of Jamaat organisation have been arrested. Fail to understand such an arbitrary move which will only precipitate matters in J&K. Under what legal grounds are their arrests justified? You can imprison a person but not his ideas.
आपको तो पता ही होगा जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने शाह महमूद कुरैशी ने भारत को घेरने के लिए किया। लेकिन आपको राजनीति से फुरसत हो तब न देशहित की बात सोंचे।
कितना याद दिलाऊँ आपने तो आतंक के प्रति अपनी मुहब्बत का इज़हार करते हुए यहाँ तक कह दिया था, “मैं हमेशा से कहती रही हूँ कि कश्मीरी आतंकी (लोकल मिलिटेंट) मिट्टी के लाल हैं। हम लोगों का प्रयास हर हाल में लोकल मिलिटेंट को बचाने का होना चाहिए न सिर्फ़ हुर्रियत बल्कि जम्मू-कश्मीर के ‘बंदूकधारी लड़ाकों’ के पक्ष में हूँ।”
PDP Chief and former J&K CM Mehbooba Mufti: I’ve always said that the local militant is the son of the soil. Our attempts should be to save him. I believe, in Jammu and Kashmir, not only Hurriyat but those with the guns should also be engaged with, but not at this time. pic.twitter.com/zMcMGp3jda
याद है आपको, आपका यह बयान भी ऐसे समय में आया था, जब राज्य में आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए सेना लगातार छापेमारी कर रही थी। गर सेना ने मौत के घाट उतार दिए होते उन आतंकियों को तो शायद पुलवामा में 40 CRPF के जवानों की जान नहीं गई होती!
आप कहती हैं कि आतंकियों से बातचीत की जाए, बातचीत अच्छी बात है लेकिन तब जब आतंक पर लगाम लगे। एक तरफ कोई निर्दोष लोगों को जान से मार देने पर आमादा हो और आप कहें कि इन आतंकियों को मत मारिए, इनसे बातचीत कीजिए। क्या यह सही है?
बातचीत तब होगी जब वह बातचीत के लिए तैयार हो, इस देश ने आतंकियों को जितने मौके दिए उतना किसी ने नहीं दिया। बार-बार पाकिस्तान को मौका देने के बावजूद भी क्या वह अपनी हरकतों से बाज आया है? नहीं, आज भी वहाँ आतंक की खेती जारी है। और जब अब उस पर लगाम कसने की तैयारी हो रही तो सब पिनपिना रहें हैं जो कहीं न कहीं उसके प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थक हैं।
ख़ैर, आपको कितना याद दिलाया जाए, उससे कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं होने वाला, लेकिन फिर भी 30 दिसंबर 2018 की एक घटना याद दिला रहा हूँ जब आप एक संदिग्ध आतंकी के परिवार से मिलकर भारतीय सेना व गवर्नर को चेतावनी दे रहीं थी। आपने कहा था कि यदि आतंकवादियों के परिजनों के साथ उत्पीड़न नहीं रुका तो इसके ‘ख़तरनाक परिणाम’ होंगे। क्या अभी तक घाटी के आम लोग और सुरक्षा बल जो भुगत रहें वो कम ख़तरनाक है?
चुनाव आने वाले हैं महबूबा जी, आपकी भी मजबूरी होगी आतंक और आतंकियों को प्रश्रय देना, लगातार उनके पक्ष में बयान देना। शायद आपको भी शांति अच्छी नहीं लगती होगी।