कुछ दिनों पहले अमेरिका में एक हिन्दू मंदिर में हुई तोड़-फोड़ की ख़बर आई। यह घटना अमेरिका के केंटकी राज्य की है। इस घटना में भगवान की मूर्ति पर काला पेंट छिड़का गया, साथ ही मुख्य सभा में रखी हुई कुर्सियों पर चाकू भी गोदा गया।
यह घटना संभवतः रविवार से मंगलवार के बीच हुई है। घटना लुइविले शहर में स्थित स्वामीनायारण मंदिर में घटी। वहाँ की स्थानीय मीडिया से मिली ख़बर के अनुसार इस घटना के दौरान मंदिर में तोड़-फोड़ के अलावे भगवान की मूर्ति पर काला पेंट भी डाला गया। मंदिर की खिड़कियाँ तोड़ी गई और दीवारों पर संदेश (Jesus Is the only lord) के साथ कई चित्र भी बनाए गए।
इस मामले को वहाँ के अधिकारियों ने घृणा अपराध मानकर जाँच शुरू कर दी है। इस घटना की निंदा करते हुए लुइविले के मेयर ग्रेग फिशर ने शहर के सभी निवासियों से अपराध के ख़िलाफ़ खड़े होने की अपील की है।
अमेरीका में हुई यह घटना बेहद शर्मनाक है। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह काम सिर्फ़ अमेरिका में ही होता है। भारत में ऐसी घटनाएँ अक्सर सुनाई पड़ती हैं। जब हमारे देश के ही लोग एक दूसरे के धर्म की इज्ज़त करने से कतराते हैं तो विदेश के लोगों से क्या उम्मीद की जाए, जिन्हें न हमारी भावनाओं की कदर है और न ही हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान है।
साल 2016 में जहाँ जम्मू में मंदिर की तोड़-फोड़ की ख़बरें आईं थी, वहीं 2018 में भी यह सिलसिला थमा नहीं और पश्चिम बंगाल के हावड़ा में हिन्दू मंदिर में तोड़-फोड़ की आई। इसमें कुछ बदमाशों द्वारा नाली में भगवा झंडा फेंका गया और साथ में मंदिर की त्रिशूल भी तोड़ी गई। इसके अलावा अभी हाल ही में यूपी में विशेष समुदाय के एक शख़्स ने अल्लाह का हुकूम बताते हुए हनुमान की मूर्ति को खंडित कर दिया था।
उत्तर प्रदेश के बहराइच में एक प्राचीन राम मंदिर से अष्टधातु की तीन मूर्तियाँ चोरी कर ली गई हैं, जिनकी कीमत करोड़ों रुपए आँकी गई है। ख़बरों के अनुसार, चोरों ने हरदी थाना क्षेत्र के रमपुरवा गाँव में स्थित 300 वर्ष पुराने राम-जानकी मंदिर के दरवाज़ों व खिड़कियों के ताले तोड़ कर तीनों मूर्तियों की चोरी कर ली। सुबह में पुजारी जब मंदिर में दैनिक पूजा करने पहुँचे, तब उन्हें मूर्तियों के चोरी होने की जानकारी मिली।
चोरी की सूचना मिलते ही मंदिर के बाहर ग्रामीण इकट्ठे हो गए, जिसके बाद पुलिस को ख़बर की गई। पुलिस ने घटनास्थल पर पहुँच कर छानबीन शुरू कर दी है। फिंगरप्रिंट टीम ने मंदिर पहुँच कर वहाँ से कुछ नमूने भी इकट्ठे किए। जाँच के बाद इस विषय में कुछ और जानकारी मिलने की उम्मीद है। ग्रामीणों ने बताया कि मंदिर में भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियाँ थी। एसपी रविंद्र सिंह ने कहा कि चोरों को जल्द से जल्द धर-दबोचने की कोशिश की जा रही है।
ज्ञात हो कि 1952 में भगवान राम की मूर्ति खंडित हो गई थी, जिसके बाद दूसरी धातु की मूर्ति मँगाई गई थी। पुजारी तीरथ राम पाठक प्रतिदिन की तरह, मूर्तियाँ चोरी होने से 1 दिन पूर्व शाम को मंदिर का कपाट बंद कर घर चले गए थे। मंदिर के प्रबंधक कनीराम अवस्थी के अनुसार, सबसे पहले तो चोरों ने मंदिर की दाहिनी खिड़की के दरवाज़े को तोड़ डाला, इसके बाद उन्होंने मंदिर के अंदर दाख़िल होने के लिए चैनल गेट के ताले काटे।
चोरी हुई मूर्तियाँ लक्ष्मण, सीता और हनुमान की है। उनका वजन 35 किलोग्राम के क़रीब बताया जा रहा है। ताज़ा सूचना मिलने तक पुलिस ने टीम गठित कर छापेमारी शुरू कर दी थी। हरदी थाना ने ऑपइंडिया को बताया कि चोरी हुई मूर्तियों की क़ीमत करोड़ों में है और उनकी बरामदगी के लिए अब तक सात-आठ जगहों पर छापेमारी की जा चुकी है।
हाल के समय में मंदिरों से मूर्तियों व अन्य कीमती चीजों के गायब होने की ख़बरें बढ़ गई है। सोमवार (फरवरी 4, 2019) को प्रकशित एक अन्य ख़बर में हमने बताया था कि आंध्र के तिरुपति स्थित प्राचीन गोविंदराजा मंदिर से तीन हीरे जड़ित स्वर्ण मुकुट चोरी हो गए हैं। गोविंदराजा स्वामी मंदिर को 12वीं शताब्दी में संत रामानुजाचार्य द्वारा बनवाया गया था।
“बचपन के दिन चार, ना आयेंगे बार बार जी ले जी ले मेरे यार, जेब खाली तो उधार जी ज़िन्दगी”
बचपन हम सबकी ज़िन्दगी का वो हिस्सा होता है, जिसे हम जीवन की आपाधापियों के बीच कहीं रखकर भूल जाते हैं। लोग अक्सर कहते हैं कि बचपन बीत चुका है, जबकि मेरा मानना है कि एक बच्चा हर वक़्त हमारे भीतर मौजूद होता है। अगर ऐसा न हो तो ऑफिस से घर लौटते वक़्त, गली में क्रिकेट खेलते हुए बच्चों को देखकर या गाँव में कंचे और पिठ्ठू ग्राम खेलते बच्चों को देखकर हमारे पैर रुक नहीं जाते। हमारे पैरों के थम जाने का कारण वही बचपन होता है, जिसे उम्र और जिम्मेदारियों के साथ हम नकारने लगते हैं।
‘चप्पल’ नामक उपकरण अब तक घर पर सिर्फ मम्मी ही इस्तेमाल किया करती थी, वो भी बागड़ बच्चों की चर्बी घटाने के लिए। लेकिन आज इन बच्चों ने सदियों से चली आ रही इस परम्परा को तोड़ते हुए चप्पल से नया यंत्र तैयार कर कीर्तिमान स्थापित किया है।
आज सुबह से सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रही इस तस्वीर की ओर ध्यान गया, जो बेहद खूबसूरती से सन्देश देती है कि हमें खुश रहने के लिए पैसे, गाड़ियाँ और महलों पर निर्भर होने की जरूरत नहीं, बल्कि बस कुछ दोस्तों की ज़रूरत होती है, जिनके साथ आप सहज और अपने नैसर्गिक रूप में रह सकते हैं।
इस तस्वीर की ख़ास बात है कि तस्वीर जिस ‘यंत्र’ से ली जा रही है, वो कोई कैमरा नहीं बल्कि चप्पल है। चप्पल से ‘सेल्फी’ ले रहे इन बच्चों ने आज हर किसी को अपने बचपन के गलियारों में दौड़ लगाने के लिए मजबूर किया है। अमिताभ बच्चन से लेकर बोमन ईरानी ने भी इसे ट्विटर पर शेयर किया है।
अमिताभ बच्चन ने अपने ट्वीट में लिखा है कि यह तस्वीर शायद ‘फोटोशॉप्ड’ हो सकती है, जिस पर मशहूर फ़ोटोग्राफ़र अतुल कसबेकर ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि ये ‘ओरिजिनल’ तस्वीर है और वो इन बच्चों को कुछ गिफ़्ट देना चाहते हैं।
.. with due respect and apology .. i feel this is photoshopped .. notice that the hand that holds the chappal is different than the rest of his body in size .. to his other hand by his side !!
“You’re only as happy as you choose to be”. A saying that holds true for one and all!! And I’m sure this selfie deserves more likes than most. pic.twitter.com/KafEzq3mg8
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के खींचतान के बीच बीजेपी के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ मुलाकात करते हुए, राज्य में बिगड़ती हुई कानून-व्यवस्था की जानकारी दी। पत्रकारों से बात करते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि टीएमसी के सहयोग से जो पश्चिम बंगाल में जो नाटक चल रहा है, उसके बारे में हमने चुनाव आयोग को बताया कि किस तरह से टीएमसी राज्य में लोकतंत्र की हत्या कर रही है।
बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, पार्टी के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र यादव, भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री एस एस अहिरवालिया शामिल थे। बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी सरकार जानबूझकर राज्य में बीजेपी के नेताओं की “रैलियों को रोक रही है”।
Delhi: BJP delegation including Defence Minister Nirmala Sitharaman, Mukhtar Abbas Naqvi & Bhupendra Yadav met Election Commission today on West Bengal issue. pic.twitter.com/hYIbAyf6RI
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘चुनाव आयोग से बैठक के दौरान हमने पश्चिम बंगाल में खतरनाक स्थिति का आकलन करने के लिए अपील की। हमने चुनाव आयोग से राज्य सरकार के उन अधिकारियों को हटाने के लिए भी कहा है जो राज्य सरकार के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र और निष्पक्ष 2019 लोकसभा चुनाव के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों के तैनाती की माँग की है।’
Nirmala Sitharaman: In interest of wanting free & fair environment in which LS polls can be conducted,we have come to bring to the notice of EC certain happenings in WB which has complete cooperation of TMC.Instances we highlighted point out that TMC doesn’t believe in democracy pic.twitter.com/9sVZ0yDBkb
रविवार (फरवरी 3, 2019) को शारदा चिटफंड घोटाला मामले में CBI की टीम कोलकाता में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के निवास स्थान पर उनसे पूछताछ के लिए पहुँची थी। जिसपर CBI टीम को पुलिसकर्मियों ने अन्दर नहीं जाने दिया था और ऑफिसरों को गिरफ़्तार किया था। हालाँकि कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा भी कर दिया गया था। अब विवाद इस बात को लेकर बढ़ गया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी कमिश्नर के घर पहुँच गईं और केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला और धरने पर बैठ गईं।
CBI ने यह दावा किया है कि, राजीव कुमार की गिनती मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के क़रीबियों में है। राजीव कुमार 2013 में शारदा चिटफंड घोटाले मामले में राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी के प्रमुख थे। उनके ऊपर जाँच के दौरान गड़बड़ी करने के आरोप लगे हैं। बतौर एसआईटी प्रमुख राजीव कुमार ने जम्मू कश्मीर में शारदा के चीफ़ सुदीप्त सेन गुप्ता और उनके सहयोगी देवयानी को गिरफ़्तार किया था।
जिनके पास से डायरी भी बरामद की गई थी। ऐसा कहा जाता है कि इस डायरी में चिटफंड से रुपये लेने वाले नेताओं के नाम दर्ज थे। और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर इसी डायरी को ग़ायब करने का आरोप है।
पश्चिम बंगाल की चिटफंड कंपनी शारदा ग्रुप द्वारा लोगों को ठगने के लिए कई लुभावने अवसर दिए गए। कुछ ही महीनों में रक़म दोगुनी करने का सब्ज़बाग दिखाया। क़रीब 10 लाख लोगों से पैसे लिए गए और जब लौटाने की बारी आई तो कंपनी पर ताला लगा दिया। चलिए आपको इस घोटाले को शुरुआत से बताते हैं…
शुरुआत में, शारदा ग्रुप ने सुरक्षित डिबेंचर और रिडीमेबल अधिमान्य बॉन्ड जारी करके लोगों से धन इकट्ठा किया।
इसके बाद साल 2009 में बाज़ार नियामक सेबी का ध्यान शारदा ग्रुप पर गया। इसके बाद इसने कई निवेश योजनाओं को बढ़ावा देकर पैसा इक्ट्ठा करना शुरू किया, जिसमें पर्यटन पैकेज, फॉरवर्ड ट्रैवल, होटल बुकिंग, क्रेडिट ट्रांसफर, रियस एस्टेट, इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस और मोटरसाइकिल निर्माण से जुड़ी कई योजनाएँ शामिल थीं।
साल 2009 में ही तत्कालीन सांसदों, सोमेंद्र नाथ मित्रा और अबू हसीम खान चौधरी और तत्कालीन राज्य उपभोक्ता मामलों के मंत्री साधना पांडे की ओर से चेतावनी दी गई थी।
बंगाली फिल्म उद्योग में निवेश किया: स्थानीय टेलीविज़न चैनलों और समाचार पत्रों का अधिग्रहण और उसकी स्थापना की।
2011 में, ग्लोबल ऑटो, लैंडमार्क सीमेंट कम्पनी ख़रीदी। इसके अलावा कई टीवी चैनल जिनमें तारा न्यूज़, म्यूज़िक बांग्ला, पंजाबी, टीवी साउथ ईस्ट एशिया, चैनल 10, एक एफएम स्टेशन शामिल थे।
दिसंबर 2012 में ग्रुप द्वारा निवेश योजनाएँ शुरू की गई।
2013 में एक पोंजी योजना का पता चला जो 239 से अधिक कंपनियों के सहयोग से शारदा ग्रुप के द्वारा चलाई जा रही थी।
शारदा ग्रुप ने अप्रैल 2013 में ध्वस्त होने से पहले जमाकर्ताओं द्वारा 1.7 मीलियन से अधिक धनराशि इकट्ठी की।
शारदा ग्रुप ने कई स्कीम चलाईं और अपनी पंजीकृत 239 कंपनियों में से 4 कंपनी जिसमें शारदा टूर एंड ट्रैवल्स , शारदा रॉयल्टी, शारदा हाउसिंग और शारदा गार्डन रिज़ार्टस के माध्यम से लोगों का पैसा इकट्ठा किया।
2013 तक अपने ख़ुद के मीडिया डिवीज़न में लगभग 988 करोड़ रुपए का निवेश किया। इसमें लगभग 1500 पत्रकार और 8 अख़बार शामिल थे।
17 अप्रैल 2013 को 600 शारदा कलेक्शन एजेंट तृणमूल कॉन्ग्रेस के कार्यालय के सामने इकट्ठे हुए और घोटाले पर कार्रवाई की माँग की।
18 अप्रैल 2013 को सुदीप्तो सेन को गिरफ़्तार करने के लिए वारंट जारी किया गया। घोटाला सामने आने पर सुदीप्तो सेन लापता हो गए।
22 अप्रैल 2014 शारदा ग्रुप के ख़िलाफ़ 222 मामले दर्ज किए गए। सेबी के एक अधिकारी ने शारदा ग्रुप से कहा कि वह किसी भी तरह की जमा धनराशि इक्ट्ठा करने पर विराम लगाए और तीन महीने के अंदर जमा किया गया धन लोगों को वापस करे।
23 अप्रैल 2013 को जम्मू-कश्मीर से सुदीप्तो सेन और उनकी राइट-हैंड कहलाने वाली देबजानी मुखर्जी को गिरफ़्तार किया गया।
फरवरी 2014 में शारदा ग्रुप के मालिक सुदीप्तो सेन को पीएफ बकाया भुगतान न करने के लिए दोषी ठहराया गया।
मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पूरे घोटाले के मामले की जाँच के आदेश दिए।
2014 में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) में पीएमएलए के तहत, फ़र्म और उसके अध्यक्ष गौतम कुंडू समेत अन्य के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की।
2015 में सीबीआई ने सुदीप्तो सेन के ख़िलाफ़ एक अन्य चार्जशीट फाइल की।
11 फरवरी 2015 को तृणमूल कॉन्ग्रेस के मंत्री मदन मित्रा की जमानत याचिका ख़ारिज हुई। परिवहन मंत्री रहे मदन मित्रा पर सीबीआई ने शारदा ग्रुप के क़रीबी होने का अंदेशा जताया था।
मार्च 2016 में ईडी ने शारदा चिट फंड मामले में पहली चार्जशीट फाइल की।
सितंबर 2016 में सीबीआई द्वारा 90 दिनों के भीतर आरोप पत्र दाखिल न किए जाने की वजह से कोलकाता हाईकोर्ट ने शारदा ग्रुप के मालिक सुदीप्तो सेन को ज़मानत दी।
9 सितंबर 2016 कोलकाता हाईकोर्ट ने मतंग सिंह और मनोरंजना सिंह की जमानत याचिका ख़ारिज की। बता दें कि मतंग सिंह और मनोरंजना सिंह के ख़िलाफ़ चिट फंड घोटाले के तहत पैसों के गबन का आरोप लगा था। इसके अलावा सीबीआई द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब मनोरंजना ने ठीक प्रकार से नहीं दिया था।
21 अक्टूबर 2016 को न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की एक खंडपीठ ने मतंग सिंह और मनोरंजना सिंह के ज़मानत संबंधी आवेदन पर ईडी और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया।
2017 में टीएमसी के सांसद कुणाल घोष को शारदा घोटाले में संलिप्तता के चलते पार्टी से निलंबित किया गया।
11 जनवरी 2019 को सीबीआई ने शारदा घोटाले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया।
31 जनवरी 2019 को सीबीआई ने ममता सरकार द्वारा शारदा चिट फंड घोटाले की जाँच में बाधा उत्पन्न करने का आरोप लगाया।
3 फरवरी 2019 की रात, प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शारदा चिट फंड मामले पर कोलकाता के पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने संबंधी सीबीआई की कार्रवाई के ख़िलाफ़ धरना दिया।
जो जाग चुके हैं, TV या अख़बारों के ख़बरों को घोंट-घोंट के पी चुके हैं… उन्हें शुरू के तीन पैराग्राफ़ के बाद ख़बर पढ़नी है बस। सब समझ में आ जाएगा। जो पाठक अभी-अभी इंटरनेट कनेक्ट कर नींद तोड़ रहे हैं, उनके लिए ख़बर शुरू होती है कुछ ऐसे।
पश्चिम बंगाल (जो भारत में ही है, कोई अज्ञात टापू नहीं) की राजधानी कोलकाता में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए CBI की टीम पहुँचती है। मामला होता है पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का शारदा चिट फंड घोटाले में गड़बड़ी करने का। लेकिन वहाँ की मुख्यमंत्री (जो ‘लोकतंत्र’ की रक्षा के लिए धरना पर बैठ गईं) को यह बात अच्छी नहीं लगी और अपनी पुलिस से सीबीआई ऑफिसरों को ही अरेस्ट करवा दिया।
सीबीआई को इससे धक्का लगा और वो आज मतलब 4 फरवरी 2019 को पहुँच गई सुप्रीम कोर्ट। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के लिए कल यानी 5 फरवरी की तारीख़ दे दी है। लेकिन सीबीआई को सबूत लाने की बात कह कर पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दे दी है, अगर उन्होंने चिट फंड मामले में कुछ गलत किया होगा तो।
कल से लेकर आज तक यह था शारदा चिट फंड घोटाला-सह-CBI-सह-केंद्र सरकार-सह-राजनीति की मोटा-मोटी ख़बर। अब ख़बरें वो, जिसे ममता बनर्जी अपने चश्मे के बावजूद देख नहीं पा रही हैं। खबरें वो जिनका जिन्न आज नहीं तो कल उनका राजनीतिक करियर खत्म करे न करे, ब्रेक ज़रूर लगा देगी।
शारदा चिट फंड घोटाला
रोज़ वैली घोटाला
नारद स्टिंग ऑपरेशन
शारदा चिट फंड घोटाला
शारदा चिटफंड घोटाला एक बड़ा आर्थिक घोटाला है। बड़ा मतलब – NDTV के अनुसार 4000 करोड़ रुपए, फ़र्स्ट पोस्ट के अनुसार 10,000 करोड़ रुपए और अमर उजाला के अनुसार 40,000 करोड़ रुपए की हेर-फेर। मतबल कोई निश्चित आँकड़ा नहीं। निश्चित आँकड़ा इसलिए नहीं क्योंकि इस घोटाले के तार न सिर्फ पश्चिम बंगाल बल्कि निकटवर्ती राज्य ओडिशा, असम, झारखंड और त्रिपुरा तक से जुड़े हैं।
इस घोटाले में TMC सहित कई बड़े नेताओं, उनकी बीवियों और ऑफिसरों के नाम भी जुड़े हैं। तृणमूल सांसद कुणाल घोष और श्रीजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक रजत मजूमदार, पूर्व खेल और परिवहन मंत्री मदन मित्रा और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी – ये कुछ हाई प्रोफ़ाइल नाम हैं। और यह कोरी-कल्पना नहीं है। शारदा समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुदीप्त सेन ने 23 अप्रैल, 2013 को अपनी गिरफ्तारी के बाद इन लोगों की संलिप्तता कबूल की थी।
मसला इतना बड़ा और इतने लोगों के खून-पसीने की कमाई से जुड़ा कि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जाँच के आदेश दिए। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम पुलिस को मामले से जुड़ी जाँच में सहयोग करने का आदेश भी दिया था।
मजे़दार बात यह है कि शारदा घोटाला मामले में ही जो कॉन्ग्रेस और कॉन्ग्रेस के युवराज आज ममता बनर्जी के साथ खड़े हैं और CBI तथा केंद्र सरकार के विरोध में लप्पो-चप्पो कर रहे हैं, वही 2014 में ममता के ख़िलाफ़ ज़हर उगल चुके हैं। इंटरनेट के इतिहास में सब कुछ दर्ज़ है।
20 Lakh people lost their money in Chit fund scam in West Bengal : #RahulGandhi
यह शारदा चिट फंड घोटाले से भी बड़ा है। फ़र्स्ट पोस्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल, असम और बिहार के लोगों से ठगी कर लगभग 15,000 करोड़ रुपए जमा किए गए थे। BBC की रिपोर्ट मानें तो रोज़ वैली ने आम जनता से 17,000 करोड़ रुपए इकट्ठा किए। वहीं ऑल इंडिया स्मॉल डिपॉजिटर्स असोसिएशन का मानना है कि यह घोटाला 40,000 करोड़ रुपए का है।
रोज़ वैली के मालिक गौतम कुंडू हैं। शारदा घोटाले की ही तरह, इसमें भी गरीबों ने ही निवेश किया, या यूं कहें कि गरीबों को ही टारगेट किया गया। पैसों के कलेक्शन के लिए रोज़ वैली ने फ़र्ज़ी तौर पर कुल 27 कंपनियाँ खड़ी कर ली थीं। पैसे लौटाने की बात तो दूर, कुंडू पर आरोप है कि उसने तृणमूल के कुछ नेताओं की मदद से इकट्ठा किए हुए पैसे का एक हिस्सा देश के बाहर भी भेजा। बदले में कुंडू उन लोगों को गाड़ियाँ, फ़्लैट और महंगे गिफ़्ट देता था।
तृणमूल सांसद और बीते जमाने में बांग्ला फ़िल्मों के सुपर स्टार तापस पाल रोज़ वैली के निदेशक भी थे। उन्हें सीबीआई ने गिरफ़्तार किया था। हालाँकि गिरफ़्तारी से पहले ही तापस पाल ने निदेशक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इनके अलावा TMC सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय को भी इस मामले में CBI गिरफ़्तार कर चुकी है। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने मार्च 2015 में गौतम कुंडू को गिरफ़्तार किया था।
नारद स्टिंग ऑपरेशन
एक फ़र्ज़ी कंपनी से लाखों रुपए घूस के बदले उसे बिजनेस में मदद का आश्वासन देना – यही इस स्टिंग ऑपरेशन का मूल था। इस स्टिंग ऑपरेशन में TMC के सात सांसद, तीन मंत्री और कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी उस फ़र्ज़ी कंपनी का काम कराने के बदले में पैसे लेते नज़र आ रहे थे।
स्टिंग में नज़र आए बड़े चेहरों की बात करें तो मुकुल राय, सुब्रत मुखर्जी, सुल्तान अहमद, शुभेंदु अधिकारी, काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बनर्जी, शोभन चटर्जी, मदन मित्र, इक़बाल अहमद और फिरहाद हकीम शामिल थे।
इस पूरे मामले को ममता बनर्जी ने राजनीतिक साज़िश बताया था। मुख्यमंत्री की अपनी सीमा से पार जाते हुए ममता ने इस मामले पर कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले को पक्षपातपूर्ण तक बता डाला था। ममता के तीख़े तेवर कब कम हुए थे जब इस मामले में सीबीआई जाँच के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई थी।
राजनीति में परमानेंट कुछ भी नहीं – न दोस्त, न दुश्मन
सत्ता में बने रहने के लिए ममता बनर्जी राहुल या अन्य विपक्षी पार्टियों का साथ चाह रही हैं जबकि राहुल या अन्य विपक्षी पार्टियाँ सत्ता में आने के लिए। ऐसे में चुनाव बाद समीकरण किसके पक्ष में होगा, कौन किसको आँखें दिखाएगा – कहना मुश्किल है। क्योंकि मूल में कुर्सी है। नाम लोकतंत्र का लिया जा रहा है। ऊपर-नीचे का ट्वीट पाठकों (ज्यादा उपयुक्त वोटरों के लिए) को याद रखना चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र नेताओं और महागठबंधन से नहीं, बल्कि मतदाताओं से सशक्त होता है।
Mamata ji said that she would stop corruption. But, instead of taking action, she’s protecting those looting Bengal pic.twitter.com/1Osxhnaayb
हाल ही में संसद में पेश किए गए चालू वित्त वर्ष के बजट में सरकार ने 12 करोड़ किसानों को किसान सम्मान योजना के तहत धन देने के लिए ₹ 75,000 करोड़ का प्रावधान किया है।
पहले ख़बर थी कि तय राशि की पहली किस्त चुनाव घोषणा के साथ किसानों के खाते में आएगी। लेकिन, अब आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र ने इस बात की जानकारी दी है कि सरकार इसी महीने से किसानों के खातों में रुपए भेजना शुरू कर देगी।
सुभाष ने बताया है कि किसान को न्यूनतम आय समर्थन इसी महीने से मिलना शुरू हो जाएगा, क्योंकि लाभार्थियों के आँकड़े सरकार पर पहले से ही तैयार है। बता दें कि जन-धन योजना के तहत खुले खातों की वजह से किसानों के खाते खुलवाने और उनकी जानकारी लेने में भी समय नहीं लगेगा।
साल 2018, 1 दिसंबर से इस योजना को क्रियान्वित करने का फ़ैसला किया गया था। सुभाष ने बताया है कि सरकार द्वारा पिछले साल कृषि गणना 2015-2016 जारी की गई थी। आज अधिकतर राज्य इलेक्ट्रॉनिक तरीके से रिकॉर्ड रख रहे हैं। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग अब इन्हीं रिकॉर्डों की मदद से उन परिवारों की पहचान करेगी जिन्हें किसान सम्मान योजना का लाभ मिलेगा।
बजट पेश करते हुए कृषि पर अपना ध्यान रखते हुए कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कई घोषणाएँ की थी। उन्होंने कहा , “PM किसान योजना के अंतर्गत छोटे किसानों को सीधा उनके आय ₹6000 प्रति वर्ष देने का निर्णय सरकार ने किया है। 100% भारत सरकार द्वारा भुगतान किया जाएगा, 3 किश्तों में भुगतान होगा। इस प्रोग्राम का खर्चा ₹75,000 करोड़ सालाना सरकार भरेगी।”
पीयूष गोयल ने पीएम किसान योजना की घोषणा के साथ बताया कि इसके तहत छोटे किसानों के (2 हेक्टयर तक मालिकाना हक रखने वाले) खाते में हर साल 6 हजार रुपये देने का फैसला किया गया है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ करीब 70% लोगों की आजीविका आज भी कृषि पर निर्भर है। आँकड़ों के मुताबिक़ देश में लगभग 70% किसान हैं। किसान सही मायने में देश के रीढ़ की हड्डी है। कृषि का देश की मौजूदा जीडीपी में लगभग 17% का योगदान है।
सरकार का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय दोगुनी करने का है। साथ ही उन्हें कई चीजों मेंं रियायत देने के बारे में भी सरकार विचार कर रही है। रिपोर्ट की मानें तो किसानों को उनकी उपज की सही कीमत नहीं मिल रही है। ज्ञात हो कि पिछले बजट में सरकार ने किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी। लेकिन, इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सका।
बता दें कि, बिचौलियों के चलते किसानों को काफ़ी नुकसान उठाना पडता है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें उनकी मेहनत की पूरी लागत नहीं मिल पाती है। सरकार इसे लेकर गंभीर है। बजट में किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने की योजना से किसानों को बहुत मदद मिलेगी।
इसके साथ ही आपको बता दें कि किसान सम्मान योजना में मिलने वाली धन राशि पर जेटली ने अपनी बातों में संकेत दिए हैं कि किसानों को मिलने वाली राशि ₹6000 को आने वाले समय में बढ़ाया भी जा सकता है।
महाराष्ट्र में गन्ना किसानों की मुश्किलें अब कम होती नज़र आ रहीं हैं। सरकार के दबाव के बाद चीनी मिलों ने किसानों के खाते में पैसा जमा करना शुरू कर दिया है। बता दें कि सरकार की ओर से कहा गया था कि अगर किसानों का भुगतान नहीं किया जाता है, तो चीनी मिलों के चीनी के स्टॉक को जब्त किया जा सकता है।
सरकार की चेतावनी के बाद कोल्हापुर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय, कोल्हापुर और सांगली जिले में कारखानों ने किसानों के खातों में ₹2,000 करोड़ से अधिक जमा करवाए हैं। ख़ब़र की मानें तो मिलों ने ₹2300 प्रति टन के हिसाब से किसानों के ख़ातों में पैसा जमा किया है, लेकिन यह रकम फेयर एंड रेमुनरेशन प्राइस (एफआरपी) से ₹600 कम है।
बता दें कि, कोल्हापुर और सांगली जिले के 36 चीनी कारखानों ने किसानों के बैंक खातों में ₹2,207 करोड़ जमा किए हैं। वहीं दो जिलों की फैक्ट्रियों पर अभी भी किसानों का ₹1,207 करोड़ का बकाया है। कोल्हापुर और सांगली जिले में किसानों को दी जाने वाली कुल राशि 31 जनवरी तक ₹3,114 करोड़ है।
कई मिलों ने नहीं किया है किस्त का भुगतान
सरकार की फटकार के बाद भी अभी कई चीनी मिलों ने भुगतान नहीं किया है। पेराई शुरू होने में लगभग तीन महीने होने पर भी अभी तक इन्होंने पहली किस्त का भुगताना नहीं किया, जबकि नियम के अनुसार एफआरपी राशि किसानों के बैंक खातों में गन्ना फसल की कटाई के 14 दिनों के भीतर दे दी जानी चाहिए।
वहीं इस पर चीनी मिलों का तर्क है कि बकाया भुगतान करने में वह फिलहाल असमर्थ हैं। क्योंकि उनके पास पड़े पुराने स्टॉक बाजार के कम माँग और न्यूनतम बिक्री मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होने से, पड़े हैं। ख़बरों के मुताबिक, गन्ने के बकाए ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के दो प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में ₹11,000 करोड़ से अधिक का कारोबार किया है।
आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री के सरकारी कार्यक्रमों से लगातार नज़रअंदाज़ की जा रही आम आदमी पार्टी की तेजतर्रार विधायक अलका लांबा आजकल बेहद आहत हैं। उनकी बेचैनी तब और बढ़ गई जब AAP अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया।
ट्विटर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री और AAP अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल के द्वारा ‘अनफॉलो’ किए जाने पर अलका लांबा ने बताया कि उन्हें पार्टी से इस्तीफ़ा देने के लिए कहा गया था।
रविवार (फरवरी 03, 2019) शाम ट्विटर पर अलका लंबा ने एक ट्वीट किया कि “उसने (केजरीवाल) मुझे अनफॉलो कर लिया है, मुझे इसे किस तरह से लेना चाहिए?” इसके बाद उन्होंने एक मीडिया समूह से बात करते हुए कहा कि उनका इशारा आम आदमी पार्टी अध्यक्ष केजरीवाल की तरफ ही था।
Just Noticed, #HE has unfollowed me on Twitter ?. How should I take this now ???
अलका लाम्बा के अनुसार, “अगर मुझे पार्टी से वह सम्मान और प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, जिसकी मैं हकदार हूँ, तो मैं पार्टी के लिए काम करना बंद कर दूँगी”।
देखा गया है कि विगत वर्ष दिसंबर माह में अलका लांबा द्वारा दिल्ली विधानसभा में राजीव गाँधी के भारत रत्न वापसी के प्रस्ताव लेकर आने के बाद से आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल के साथ उनका मनमुटाव बढ़ गया था।
अरविन्द केजरीवाल के इस व्यवहार से अलका लाम्बा इतनी आहत हुई है कि वो ट्विटर पर शायरी भी कर रही हैं। एक ट्वीट में लिखा है, “मेरी राजनीति की उम्र हो इतनी साहेब, तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे ख़त्म।”
मेरी राजनीति की उम्र हो इतनी साहेब, तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे ख़त्म !!! ?
कुछ लोगों के लिये राजनीति देश #सेवा नही, केवल #मेवा मात्र है.
AAP में अलका लाम्बा की स्थिति वर्तमान में बहुत दुखद चल रही है। उनका कहना है, “आम आदमी पार्टी कम से कम मेरी स्थिति को लेकर स्टेंड तो क्लियर करे। मेरे चांदनी चौक इलाके के AAP कार्यकर्ताओं और आम लोगों का ‘मोरल डाउन’ हो रहा है। वे पूछते हैं कि पार्टी का आपसे अचानक व्यवहार क्यों बदल गया है।”
अलका का कहना है कि पार्टी के नेता उनसे क्यों नाराज हैं, इसका कारण तो कम से कम सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति तो न रहे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पूछे जाने पर कि वह विधानसभा चुनाव किस पार्टी से लड़ेंगी, उन्होंने कहा कि वह पिछले 25 साल से राजनीति में हैं, वह किसी पार्टी के टिकट की मोहताज नहीं है।” यह पूछे जाने पर कि क्या वह पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल हो रही हैं? उन्होंने कहा, “जब मुझे बुलाया ही नहीं जा रहा है तो कार्यक्रमों में किस हैसियत से जाऊँगी?”
ममता बनर्जी का रवैया भारत में इस्लामिक शासन की याद दिलाता है। जब इस्लामिक आक्रांता किसी राज्य या क्षेत्र को जीत लेते थे, तो वहाँ एक गवर्नर बिठा कर आगे निकल लेते थे। समय-समय पर गवर्नर बाग़ी हो उठते थे और अपना अलग राज्य कायम कर लेते थे। कई बार उन्हें इसके लिए अपने आका से युद्ध करनी पड़ती, तो कई बार वो चोरी-छिपे ऐसा करने में सफल हो जाते थे। ममता बनर्जी आज उसी इस्लामिक राज व्यवस्था की प्रतिमूर्ति बन खड़ी हो गई है, जो आंतरिक कलह, गृहयुद्ध और ख़ूनख़राबे को जन्म देता है, लोकतंत्र को अलग-थलग कर अपनी मनमर्जी चलाने को सुशासन कहता है।
पूरी घटना: एक नज़र में
आगे बढ़ने से पहले उस घटना और उसके बैकग्राउंड के बारे में जान लेना ज़रूरी है, जिसके बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं। दरअसल, शारदा चिटफंड और रोज़ वैली चिटफंड घोटाले वाले मामले में CBI को कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की तलाश थी। हालाँकि, एजेंसी पहले से ही कहती आई है कि पश्चिम बंगाल सरकार जाँच में सहयोग नहीं कर रही है। चिट फंड घोटालों में ममता के कई क़रीबियों के नाम आए हैं और यही कारण है कि राफ़ेल पर चीख-चीख कर बोलने वाली ममता बनर्जी अपने लोगों को बचाने के लिए इस हद तक उत्तर आई है।
रविवार (फरवरी 3, 2019) को जब CBI के अधिकारीगण राजीव कुमार के बंगले पर पहुँचे, तब बंगाल पुलिस ने न सिर्फ़ केंद्रीय एजेंसी की कार्यवाही में बाधा पहुँचाई, बल्कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया और अपराधियों की तरह उठा कर थाने ले गए। सैंकड़ों की संख्या में पुलिस फ़ोर्स ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आधिकारिक परिसरों को घेर लिया। पुलिस यहीं नहीं रुकी, जाँच एजेंसियों के अधिकारियों के आवासीय परिसरों को भी नहीं बख़्शा गया।
स्थिति की गंभीरता को भाँपते हुए ममता बनर्जी सक्रिय हुई और उन्होंने राज्य पुलिस की इस निंदनीय कार्रवाई को ढकने के लिए इसे राजनीतिक रंग से पोत दिया। सबसे पहले वो राजीव कुमार के आवास पर गई और उसके बाद केंद्र सरकार पर ‘संवैधानिक तख़्तापलट’ का आरोप मढ़ धरने पर बैठ गई। ख़ुद को अपनी ही न्याय-सीमा में असहाय महसूस कर रहे केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारीयों ने राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद तनाव थोड़ा कम हुआ और एजेंसियों के दफ़्तरों को ‘गिरफ़्त’ से आज़ाद किया गया। महामहिम त्रिपाठी ने राज्य के मुख्य सचिव को तलब कर रिपोर्ट माँगी।
#WATCH West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee continues dharna over CBI issue after a short break early morning. West Bengal CM began the ‘Save the Constitution’ dharna last night. #Kolkatapic.twitter.com/DBoS0GC1MJ
शनिवार (फ़रवरी 2, 2019) की रात को जब पुलिस ने घेराबंदी हटाई, तब केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) ने केंद्रीय जाँच एजेंसियों के अधिकारियों के निवास एवं दफ़्तर (निज़ाम पैलेस और CGO कॉम्प्लेक्स) को अपनी सुरक्षा में ले लिया। CRPF के वहाँ तैनात होने के बाद अब अंदेशा लगाया जा रहा है कि भविष्य में भी तनाव कम होने की उम्मीद नहीं है और बंगाल सरकार ने दिखा दिया है कि वो किस हद तक जा सकती है। जिस तरह से डिप्टी पुलिस कमिश्नर मिराज ख़ालिद के नेतृत्व में पुलिस ने CBI अधिकारियों को पकड़ कर गाड़ी के अंदर डाला और उन्हें थाने तक ले गई, उसे देख कर तानाशाही भी शरमा जाए।
मीडिया में एक फोटो काफ़ी चल रहा है, जिसमे बंगाल पुलिस CBI के एक अधिकारी को हाथ और गर्दन पकड़ कर उसे गाड़ी के अंदर ढकेल रही है, जैसे वह कोई अपराधी हो। अपने ही देश में, देश की प्रमुख संवैधानिक संस्था के अधिकारी के साथ एक अपराधी वाला व्यवहार देश के हर नागरिक के रोंगटे खड़े करने की क्षमता रखता है। यह जितना दिख रहा है, उस से कहीं ज्यादा भयावह है। यह एक ऐसे ख़तरनाक चलन की शुरुआत है, जिसे आदर्श मान कर अन्य तानाशाही रवैये वाले नेता भी व्यवहार में अपना सकते हैं।
संवैधानिक संस्था की कार्रवाई का राजनीतिकरण
वैसे यह पहला मौक़ा नहीं है, जब CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का राजनीतिकरण किया गया हो। ऐसी कार्रवाइयों का पहले भी विरोध हो चुका है और इनके राजनीतिकरण के प्रयास किए जा चुके हैं। लेकिन, इनकी कार्यवाही में इतने बड़े स्तर पर बाधा पहुँचाने की कोशिश शायद पहली बार की गई है। और, सबसे बड़ी बात यह कि ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर ही तानाशाही का आरोप मढ़ धरने पर बैठ कर, नया नाटक शुरू कर दिया है।
इस बात पर विचार करना जरूरी है कि ममता बनर्जी ने अपनी इस पटकथा का मंचन क्यों किया? दरअसल, राज्य पुलिस सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस से वफ़ादारी की हद में इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने CBI अधिकारियों की बेइज्जती की। वो अधिकारी, जो भारतीय न्याय-प्रणाली के अंतर्गत अपना कार्य कर रहे थे। बंगाल पुलिस और राज्य सरकार ने ऐसा व्यवहार किया, जैसे पश्चिम बंगाल भारतीय गणराज्य के अंतर्गत कोई क्षेत्र न होकर एक स्वतंत्र द्वीपीय देश हो।
CBI के अधिकारियों के साथ मिल-बैठ कर भी बात किया जा सकता है। लेकिन, बंगाल पुलिस ने ममता बनर्जी के एजेंडे के अनुसार कार्य किया क्योंकि उन्हें पता था कि कुछ भी गलत-शलत होता है तो मैडम डैमेज कण्ट्रोल के लिए खड़ी हैं। जब ममता बनर्जी ने देखा कि राज्य पुलिस ने ऐसा निंदनीय कार्य किया है, तो वो तुरंत डैमेज कण्ट्रोल मोड में आ गई और और उसी के तहत चुनावी माहौल और कथित विपक्षी एकता के छाते तले इस घटना को राजनीतिक रंग दे दिया।
The highest levels of the BJP leadership are doing the worst kind of political vendetta. Not only are political parties their targets, they are misusing power to take control of the police and destroy all institutions. We condemn this 1/2
ममता बनर्जी जानती थी कि उनके एक बयान पर विपक्षी नेताओं के केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ट्वीट्स आएँगे। ममता बनर्जी जानती थी कि अगर वो धरने जैसा कुछ अलग न करें तो सारे मीडिया में बंगाल पुलिस की किरकिरी होनी है। ममता बनर्जी जानती थी कि अगर इस घटना का इस्तेमाल कर केंद्र सरकार और मोदी को 10 गालियाँ बक दी जाए, तो पूरी मीडिया और पब्लिक का ध्यान उनके बयान और धरने पर आ जाएगा। अपनी नाकामी, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल और बंगाल में तानाशाही के इस अध्याय को छिपाने के लिए ममता ने ये स्वांग रचा। लालू यादव, राहुल गाँधी, उमर अब्दुल्लाह, देव गौड़ा सहित सभी विपक्षी दलों का समर्थन उन्हें मिला भी।
लोकतंत्र में अदालत है तो डर कैसा?
भारतीय लोकतंत्र के तीन खम्भों में से न्यायपालिका ही वह आधार है, जिस पर विपक्षी दल भरोसा करते हैं (या भरोसा करने का दिखावा करते हैं)। हालाँकि, पूर्व CJI दीपक मिश्रा के मामले में उनका ये भरोसा भी टूट गया था। वर्तमान CJI रंजन गोगोई के रहते जब आलोक वर्मा को हटाया गया, तब उन्हें भी निशाना बनाया गया था। अगर लोकतंत्र पर भरोसा करने का दिखावा करना है, तो आपको अदालत की बात माननी पड़ेगी। अगर ऐसा है, तो फिर ममता बनर्जी किस से भय खा रही है?
दरअसल, इस भय की वज़ह है। प्रधानमंत्री के बंगाल में हुए ताज़ा रैलियों, रथयात्रा विवाद प्रकरण, अमित शाह का बंगाल में हुंकार भरना और फिर भाजपा द्वारा वहाँ स्मृति ईरानी को भेजना- इस सब ने ममता को असुरक्षित कर दिया है। बंगाल को अपना एकतरफा अधिकार क्षेत्र समझने वाली ममता बनर्जी को मृत वाम से वो चुनौती नहीं मिल पा रही थी, जो उन्हें उनके ही राज्य में भाजपा से मिल रही थी। वो मज़बूत विपक्षी की आदी नहीं है, इसी बौखलाहट में उन्होंने केंद्रीय संवैधानिक एजेंसियों को डराना-धमकाना शुरू कर दिया है।
West Bengal Chief Minister @MamataOfficial sat on a dharna to “save the constitution” after a huge showdown between the police and CBI officials.
भाजपा को राज्य में मिल रहे जनसमर्थन ने ममता की नींद उड़ा दी है। उन्हें अपना सिंहासन डोलता नज़र आ रहा है। तभी वो CBI और ED के अधिकारियों के निवास-स्थान तक को अपने घेरे में लेने वाले बंगाल पुलिस की तरफदारी करते हुए खड़ी है। यह भी सोचने लायक है कि जिस तरह से अधिकारियों के घरों को पुलिस द्वारा घेरे के अंदर लिया गया, उस से उनके परिवारों पर क्या असर पड़ा होगा? सोचिए, उनके बीवी-बच्चों के दिलोंदिमाग पर पश्चिम बंगाल की सरकार की इस कार्रवाई का क्या असर पड़ा होगा?
पहले से ही लिखी जा रही थी पटकथा
जो पश्चिम बंगाल और वहाँ चल रहे राजनीतिक प्रकरण को गौर से देख रहे हैं, उन्हें पता है कि शनिवार को जो भी हुआ, उसकी पटकथा काफ़ी पहले से लिखी जाने लगी थी। इसे समझने के लिए हमें ज़्यादा नहीं, बस 10 दिन पीछे जाना होगा, जब बंगाली फ़िल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत मोहता को सीबीआई ने कोलकाता से गिरफ़्तार किया था। ममता के उस क़रीबी को गिरफ़्तार करने में CBI को कितनी मशक्कत करनी पड़ी थी, इस पर ज़्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया। लेकिन जिन्होंने उस प्रकरण को समझा, उन्हें अंदाज़ा लग गया था कि आगे क्या होने वाला है?
उस दिन जब CBI मोहता को गिरफ़्तार करने उसके दफ़्तर पहुँची, तब उसने पुलिस को फोन कर दिया। सबसे पहले तो उसके निजी सुरक्षाकर्मियों ने CBI को अंदर नहीं जाने दिया, उसके बाद क़स्बा थाना की पुलिस ने CBI की कार्यवाही में बाधा पहुँचाई। पुलिस ने उस दिन भी जाँच एजेंसी के अधिकारियों से तीखी बहस की थी। कुल मिला कर यह कि ममता राज में बंगाल सरकार की पूरी मशीनरी सिर्फ़ और सिर्फ़ मुख्यमंत्री और उनके राजनैतिक एजेंडे को साधने के कार्य में लगी हुई है।
अगर ममता बनर्जी सही हैं, तो उन्हें अदालत से डर कैसा? जब सुप्रीम कोर्ट भी राजीव कुमार को फ़टकार लगा कर ये हिदायत दे चुका है कि वो सुबूतों से छेड़छाड़ करने की कोशिश न करें, तब बंगाल सीएम सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के पालन करने की बजाय अपने विपक्ष के साथियों की बैसाखी के सहारे क्यों आगे बढ़ रही है? क्या अब केंद्रीय एजेंसियाँ और अन्य संवैधानिक संस्थाएँ सत्ताधारी पार्टियों से जुड़े दोषियों पर कार्रवाई न करें, इसके लिए उन्हें इस स्तर पर डराया-धमकाया जाएगा? अगर यही तृणमूल कॉन्ग्रेस का लोकतंत्र है, तो उत्तर कोरिया की सरकार इस से बेहतर स्थिति में है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपने राज्य में सीबीआई को न घुसने देने का निर्णय लिया था। ममता बनर्जी ने भी यही निर्णय लिया था। कहीं न कहीं ममता को इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि जिस तरह से चिट फंड घोटालों में एक-एक कर तृणमूल नेताओं के नाम आ रहे हैं, उस से उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसी क्रम में उन्होंने सीबीआई को राज्य में न घुसने देने की घोषणा कर ये दिखाया कि वो कितना लोकतंत्र के साथ है, लेकिन शायद ही किसी को पता हो कि ममता विपक्षी दलों के साथ में ही अपना भी भविष्य देख रही थी।