कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के ताजा बयान से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्य में कॉन्ग्रेस-जेडीएस (JDS) गठबंधन में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। अपनी पार्टी के विधायकों और विधान-पार्षदों की बैठक को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे हर क्षेत्र में कॉन्ग्रेस के हस्तक्षेप के कारण एक मुख्यमंत्री नहीं बल्कि एक क्लर्क के तौर पर काम करने को मजबूर हैं। इस बैठक में कुमारस्वामी भावुक हो गए और गठबंधन को लेकर उनका दर्द छलक आया।
इस बैठक में कुमारस्वामी ने गठबंधन चलाने में उन्हें आ रही कठिनाइयों का भी जिक्र किया और कहा कि राज्य सरकार में गठबंधन साथी कॉन्ग्रेस के नेता उनसे हर काम अपने पक्ष में कराना चाहते हैं और मज़बूरन उनकी बात सुनने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं है। उन्होंने खुद को बहुत दबाव में बताया और कहा कि कॉन्ग्रेस के नेता उन्हें अपने इशारों पर नचाना चाहते हैं।
साथ ही कुमारस्वामी ने कॉन्ग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी उन पर कैबिनेट विस्तार करने के लिए भी दबाव बना रही है। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर ‘बिग ब्रदर’ की तरह बर्ताव करने का भी आरोप मढ़ा। सीएम ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने राज्य की सभी निगमों और बोर्ड्स में अध्यक्ष के रूप में अपने लोगों को बैठा दिया है।
कई लोगों का मानना है कि इस साल होने वाले आम चुनावों में JDS राज्य की एक तिहाई सीटों पर दावेदारी ठोकना चाहती है, जिसके कारण पार्टी द्वारा ऐसे बयान दे कर कॉन्ग्रेस पर दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन खुद मुख्यमंत्री की तरफ से ऐसे बयानों का आना ये बताता है कि प्रदेश में गठबंधन सरकार के टिकने की सम्भावना बहुत ही कम है। बीते दिनों JDS अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा ने भी कहा था उनके बेटे कुमारस्वामी को गठबंधन सरकार चलाने के लिए काफी पीड़ा उठानी पड़ रही है और साथ ही उन्हें ये पीड़ा बर्दाश्त करने की सलाह भी दी थी।
ताज़ा बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनावों तक वो गठबंधन के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाएंगे। JDS सुप्रीमो ने कहा कि वो फ़िलहाल राज्य की आधा दर्जन सीटों को जीतने का लक्ष्य बना रहे हैं और गठबंधन के ख़िलाफ़ कोई भी कदम उठाने से पार्टी की सम्भावना खतरे में पड़ सकती है।
वहीं कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री ने कॉन्ग्रेस द्वारा शुरू की गई RTE योजना को भी बोगस बताया था। कुमारस्वामी ने कहा था कि RTE को सबको शिक्षा का अधिकार देने के लिए अस्तित्व में लाया गया था लेकिन अब यह निजी विद्यालयों के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने का जरिया बन रहा है और इसकी कीमत सरकारी स्कूलों को चुकानी पड़ रही है।
पीएम नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं के बारे में, उनके आलोचकों द्वारा कई बार उनका मज़ाक उड़ाया जाता है। उनके विदेश यात्राओं को देश के पैसे की बर्बादी कहकर सोशल मीडिया पर अक्सर हो-हल्ला मचाया जाता है। जबकि मोदी की विदेश यात्राएँ ज़्यादातर ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाने के लिए होती हैं। उनके आलोचकों का यहाँ तक दावा है कि यात्राओं में बिना किसी ठोस लाभ के बहुत से पैसे खर्च किए जाते हैं।
29 दिसंबर 2018 को, द टेलीग्राफ ने प्रधानमंत्री को ‘एक्सीडेंटल टूरिस्ट’ कहते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
रिपोर्ट में, यह उल्लेख किया गया है कि प्रधानमंत्री की अब तक की विदेश यात्राओं में सरकारी ख़जाने से 2,021 करोड़ रुपए ख़र्च हुए हैं। रिपोर्ट में 2009-14 के अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच विदेशी यात्राओं के ख़र्चों की तुलना की गई है। जहाँ नरेंद्र मोदी ने 48 यात्राओं में 55 से अधिक देशों का दौरा किया, वहीं मनमोहन सिंह ने 38 यात्राओं में 33 देशों का दौरा किया, जिनकी लागत 1,346 करोड़ रुपए है।
रिपोर्ट में मोदी विरोधी पूर्वग्रह बहुत स्पष्ट है। रिपोर्ट में दो प्रधानमंत्रियों की विदेश यात्राओं के बारे में उपलब्ध आँकड़ों की तुलना करने का बेहद सतही काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) में तेज वृद्धि हुई है, इस तथ्य की पूरी रिपोर्ट में अनदेखी की गई है।
इनकी तुलना में न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने खर्चों की तुलना बेहतर तरीके से किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने विदेशी दौरों के लिए अनावश्यक आलोचना के घेरे में आते हैं। जबकि उनके पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह भी विदेशी दौरों में बहुत पीछे नहीं हैं, न सिर्फ़ यात्राओं की संख्या बल्कि उन पर होने वाले खर्चों में भी।
रिपोर्ट में ख़र्चों को ग्राफ़ के रूप में चित्रित किया गया है, जिसमें साफ़ देखा जा सकता है कि ख़र्च का बड़ा हिस्सा विमान के रखरखाव पर हुआ है। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान विमान के रखरखाव पर 1,583.18 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए, जबकि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में विमान के रखरखाव पर 842.6 करोड़ रुपए। मनमोहन सिंह की विदेश यात्राओं के दौरान 446.59 करोड़ रुपए उड़ानों पर खर्च किए गए थे, जबकि नरेंद्र मोदी के लिए यह अब तक रु429.29 करोड़ है।
टेलीग्राफ के पक्षपाती रिपोर्ट ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने वालों को नया हथियार दे दिया है।
Shri Modiji has spend public money to the tune of RS 2100 crores on foreign trip. In no country head is incurring huge expenses . Modi government is missing public funds for their image building & other propaganda. Our PM is very frustrated person. He speaks lies. PM is corrupt
Mr. Modi has spent only INR 2021 Crore on his foreign trips as India’s prime minister, according to @ttindia. A very good headline: “Meet the accidental tourist. Modi’s foreign trip bill: Rs 2021 crore”. Where is the ‘vikas’ by the way? Or they now name it as LYNCHING?
जब उनके पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह की तुलना में उड़ान के खर्च की बात आती है, तो पूरा मामला आँकड़ों से स्पष्ट हो जाता है। विमान के रखरखाव की लागत को छोड़कर, प्रधानमंत्री मोदी वास्तव में अधिक किफ़ायती रहे हैं। मनमोहन सिंह के लिए उड़ान का ख़र्च लगभग 11.75 करोड़ रुपए प्रति यात्रा जबकि नरेंद्र मोदी के लिए ये आँकड़ा लगभग 8.94 करोड़ रुपए है। स्पष्ट दिख रहा है, प्रधानमंत्री के लिए टेलीग्राफ की रिपोर्ट वास्तविक तथ्यों के बजाय पक्षपातपूर्ण राजनीतिक हितों से प्रेरित है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेंद्र मोदी ने अधिक देशों का दौरा किया है और विदेशों में अधिक दिन बिताए हैं क्योंकि प्रधानमंत्री ने दुनिया में ‘ब्रांड इंडिया’ की मार्केटिंग करने और विश्व राजनीति में भारत की स्थिति को मजबूत करने पर ज़ोर दिया है। 2014 के चुनावों में जीत के बाद से ही कूटनीति एनडीए सरकार के लिए एक प्रमुख क्षेत्र रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का विदेशी दौरा चीन की साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों को विफल करने के लिए उठाया गया एक महत्वपूर्ण क़दम है। ऐसी यात्राओं के कई बहुपक्षीय अनुसूचित फ़ायदे हैं, जिनके लिए प्रधानमंत्री विदेशी यात्राएँ करते हैं, चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में क्यों न हो।
जैसा कि हमने पहले बताया है, एनडीए सरकार विदेशी यात्राओं पर किए अपने ख़र्च पर व्यापक नज़र रखती है। 2014-15 से अब तक हर साल कैबिनेट मंत्रियों और राज्यों के मंत्रियों के ख़र्चों में तेजी से गिरावट आई है। पीएम मोदी ने लंबी उड़ानों के लिए केवल रात के समय यात्रा करने की प्रथा शुरू की थी, जो विदेशों में बिताए दिनों की संख्या को कम कर देता है और होटलों में ठहरने की अवधि में भी कटौती करता है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू के बाद ऐसा लगता है, जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन एक ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं जो झूठ बोलने में, अस्पष्टता फैलाने में और डर का माहौल बनाने में महारथी हैं।
10 जनवरी को दिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया के छोटे से इंटरव्यू में अमर्त्य सेन ने बहुत सारे मुद्दों पर बात की, जिसमें मोदी सरकार द्वारा गरीबों के लिए पास किए जाने वाला आरक्षण बिल का मुद्दा भी शामिल था। संविधान में 124वाँ संशोधन करके ये आरक्षण लोक सभा और राज्य सभा दोनों से पास किया गया ।
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में अमर्त्य सेन ने ढेरों झूठ बोले। हैरान करने वाली बात है कि साक्षात्कार करने वाली पत्रकार ने उनकी किसी भी बात पर सवाल नहीं किए।
साक्षात्कार में अमर्त्य सेन ने कहा कि भाजपा द्वारा लाया गया ऊँची जाति वालों के लिए ये आरक्षण ‘अव्यवस्थित सोच’ (Muddled thinking) का नतीज़ा है, इसके साथ ही उन्होंने आशंका जताते हुए इसे गंभीर राजनैतिक और आर्थिक प्रतिघात का उदहारण बताया।
इसके बाद वो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहने लगे कि ये आरक्षण बिल बीजेपी ने ऊँची जाति वालों के वोट पाने के लिए किया है।
इस इंटरव्यू की सबसे खास बात ये रही कि नोबेल पुरस्कार विजेता ने इस महत्वपूर्ण नीति पर दो-टूक अस्पष्टता को बनाए रखा। इस बिल को लेकर जब बार-बार ये बात कही जा रही है कि इस बिल का लाभ सामान्य कैटेगरी में आने वाले गरीब लोगों के लिए है। तो उसमें ऊँची जाति को बार बार क्यों हाईलाईट किया जा रहा है, जबकि बिल में ये शब्द तक नहीं लिखा गया है। आपको फिर बता दें कि इस बिल में उन लोगों को लाभ मिलेगा जो अभी सामान्य वर्ग से हैं और आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं या जिनके परिवार की सालाना आय ₹8 लाख से कम है।
इसके बाद राष्ट्रीय पंजीकरण और नागरिकता बिल पर बात करते हुए अमर्त्य सेन ने ज़ोर देकर कहा कि यह बिल मूल रूप से मुस्लिमों के ख़िलाफ़ है। उनकी मानें तो इस तरह का भेदभाव भारत के संविधान के आत्मा के भी ख़िलाफ़ है। न जाने क्यों अमर्त्य सेन इस बात को भूल रहे हैं कि NRC और नागरिकता बिल देश में असंवैधानिक तौर से घुसे लोगों की छँटाई करने के लिए हैं।
ध्यान रहें जब हम असंवैधानिक तौर से देश में घुसे लोगों के बारे में बात करते हैं तो इसमें केवल वो शामिल होते हैं जो बिना किसी वैध दस्तावेज़ के साथ देश में रह रहे हैं और देश के नागरिक भी नहीं हैं। बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी एक धर्म के व्यक्ति तो टार्गेट किया जाए।
ये देखने की बात है कि किस तरह नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री पाठकों को अलग, लेकिन तथ्यात्मक तौर पर गलत, नज़रिया देकर बरगलाना चाहते हैं। वो सरकार की बेवजह आलोचना करने में इतने अस्त-व्यस्त हैं कि उन्हें इस बात से भी भान नहीं हैं कि जो देश के नागरिक नहीं हैं उन्हें ग़ैरक़ानूनी रूप से देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
भारतीय संविधान में हमेशा से भारत के हर नागरिक को समानता का अधिकार है, चाहे फिर वो किसी भी जाति का हो, रंग का हो, पंथ का हो या फिर किसी भी धर्म का हो। लेकिन, किसी को ये अधिकार नहीं है कि वो सरकार पर इस बात का बात का दबाव बनाए कि वो अप्रवासियों को भी देश में अवैध ढंग से रहने की अनुमति दें। अमर्त्य सेन जैसे लोग देश की सुरक्षा पर बार-बार सरकार से सवाल करते हैं, और जब सरकार देश की सुरक्षा के लिए फ़ैसला लेती है, तो ऐसे ही लोग सरकीर की आलोचना भी करते हैं ।
इस मामले पर, और सेन साहब के कथनों पर, ग़ौर किया जाए तो मालूम पड़ेगा कि किस तरह धर्म को आधार बना कर कानून व्यवस्था की ओर मोड़ना सिर्फ इसलिए किया जा रहा है, ताकि इससे राजनैतिक बदलाव आ सकें और जिस पार्टी का वो समर्थन करना चाहते हैं वो उनकी इस तरह मदद कर पाएं।
असहिष्णुता का रोना-गाना आज भी है चालू
अमर्त्य सेन के इस साक्षात्कार के ज़रिए एक बात और पता चली कि असहिष्णुता का रोना रोने वालों का विलाप अब भी ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। उनका कहना कि अगर आप हिन्दू या फिर ईसाई हैं तो आपको टिप्पणी करने का अधिकार होता है लेकिन अगर आप कहें कि आप मुस्लिम हैं तो आपको ये अधिकार नहीं हैं। अमर्त्य के अनुसार संविधान की आत्मा पर ये बहुत हिंसात्मक हमला है। इसके बाद उन्होंने नसीरुद्दीन शाह के मत का भी जिक्र किया।
कमाल की बात तो है कि अमर्त्य सेन भूल रहे हैं कि नसीरुद्दीन शाह को भारतीय लोगों द्वारा ही अपनाया गया था, जिनके बारे में आज वो इस तरह की बात करते हैं। आज वो जब भी बात करते हैं तो लगता है जैसे देश की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हों। यहाँ तक नसीरुद्दीन शाह नक्सलियों की भी तरफदारी करते हैं जिनका मकसद देश के टुकड़े-टुकड़े करना है। इससे भी ज़्यादा अजीब बात तो ये है कि नसीरुद्दीन शाह ने कभी भी उन मुस्लिम गाय व्यापारियों का साथ नहीं दिया है जिनपर मुस्लिम तस्करों द्वारा हमला किया गया। अब नसीरुद्दीन शाह के सामने आए बयान तो यही बताते हैं कि उनका एजेंडा सिर्फ राजनैतिक है और उनका मुस्लिमों या सामान्य नागरिकों से कोई सरोकार नहीं हैं।
इससे पहले भी अमर्त्य सेन ने असहिष्णुता का मुद्दा कई बार उठाया है। 2014 में लोकसभा चुनावों से कुछ दिन पहले 30 अप्रैल 2014 को उनका दावा था कि अल्पसंख्यकों के पास बहुत सी वज़हें हैं, जिसके कारण वो मोदी से डरते हैं। इस तरह के बयानों का उस समय आना जब लोकसभा के चुनाव नज़दीक हों साफ दर्शाता है कि वो व्यावहारिक स्तर पर एक निश्चित व्यक्ति के ख़िलाफ़ कैम्पेनिंग कर रहे हैं। इनसे ये भी पता चलता है कि अमर्त्य सेन ईमानदार बुद्धिजीवी होने से ज्यादा राजनीति से प्रभावित हैं।
जबसे कॉन्ग्रेस की सरकार ने तीन राज्यों में किसान कर्ज़माफ़ी की घोषणा की है तबसे अर्थशास्त्री उसी बात पर अपने बुद्धिजीवी होने का (यानि आपके पास शब्द हों तो आप कुछ भी साबित कर सकते हैं) प्रमाण दिए जा रहे हैं। एक तरफ जहाँ ये बात है कि किसानों की कर्ज़माफ़ी से देश में महँगाई बढ़ती है वहीं पर उनका कहना है कि ‘हो सकता है कर्ज़माफ़ी से दिक्कतें आती है, लेकिन ये बात भी बिलकुल सच है कि इससे कई फ़ायदे भी हैं।’
एक अर्थशास्त्री होने के तौर पर अमर्त्य सेन से इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वो इन बातों पर बात करते हुए उस चीजों पर भी ग़ौर करें, जिनपर काम करने पर कॉन्ग्रेस लगातार फ़ेल हो रही है, जिसके कारण अनेकों किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कर्नाटक में केवल 800 ही ऐसे किसान हैं, जिन्हें लाभ मिला है। इसके अलावा अमर्त्य सेन ने कभी इस बात पर भी ध्यान नहीं किया कि कई किसानों को आज भी दुबारा से भुगतान करने के नोटिस आ रहे हैं और ऐसा ही मध्य प्रदेश में भी लगातार हो रहा है।
अमर्त्य सेन द्वारा किया गया हर कार्य और बयान इस बात को दर्शाता है कि मोदी को वोट नहीं देने के लिए वो अपने पाठकों से ठीक उसी तरह अपील कर रहें हैं जैसा उन्होंने 2014 में किया था।
छोटे व्यापारियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार (जनवरी 10, 2019) को कहा कि जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) परिषद ने कॉम्पोज़िशन स्कीम के लिए वार्षिक टर्नओवर की छूट सीमा दोगुनी कर दी है। निश्चित तौर पर वित्त मंत्री का यह क़दम छोटे व्यापारियों के लिए बड़ी राहत देने का काम करेगा।
वित्त मंत्री के मुताबिक़ परिषद द्वारा उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए जीएसटी छूट की सीमा ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹20 लाख कर दी है और बाक़ी देश के लिए ₹20 लाख से बढ़ाकर ₹40 लाख कर दी गई।
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि कॉम्पोज़िशन स्कीम का वार्षिक कारोबार ₹1 करोड़ से बढ़ाकर ₹1.5 करोड़ कर दिया गया है, जो 1 अप्रैल, 2019 से प्रभावी होगा।
जेटली ने कहा कि स्कीम के तहत कारोबार करने वाले अब तिमाही आधार पर कर का भुगतान करेंगे, लेकिन रिटर्न प्रतिवर्ष दाखिल किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि परिषद ने सेवा क्षेत्र के लिए कॉम्पोज़िशन स्कीम को मंज़ूरी दे दी है। बता दें कि जीएसटी परिषद की अध्यक्षता वित्त मंत्री ही करते हैं।
केरल के विषय में वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य अब अंतर-राज्य व्यापार का हक़दार है और दो साल की अवधि के लिए अधिकतम 1 प्रतिशत का उप-कर (Cess) लगा सकता है।
जेटली ने कहा कि जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के तहत अचल संपत्ति और लॉटरी को शामिल करने पर परिषद ने 7 सदस्यीय समूह के गठन का फ़ैसला किया।
तमिलनाडु में भाजपा कार्यकर्ताओं की मीटिंग को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्ता वेस्टलैंड मामले में कॉन्ग्रेस पर जोरदार हमला किया। प्रधानमंत्री ने सभा को संबोधित करते हुए कहा “अगस्ता वेस्टलैंड के मामले में आरोपित बिचौलिया मिशेल को रक्षा मामले में कैबिनेट की मीटिंग और रक्षा से जुड़ी सरकार की गुप्त फ़ाइलों के बारे में कैसे पता चल जाता था?”
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि देश की जनता कॉन्ग्रेस से यह जानना चाहती है कि मिशेल ने देश की सुरक्षा से जुड़े इन मामलों में कैसे हस्तक्षेप किया। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि कॉन्ग्रेस इस बात का भी जवाब दे कि रक्षा सौदे में बिचौलिया मिशेल की क्या भूमिका रही है। वैश्विक ताकतें अक्सर यह चाहती हैं कि अपने देश की सैन्य ताकत मजबूत नहीं हो। ऐसे में रक्षा सौदे में एक विदेशी बिचौलिए की भूमिका निश्चित रूप से देश के लिए खतरनाक है।
PM: People of country deserve to know how did middleman Michel know about the time of a meeting of cabinet on security, about status of a govt file, what role he played in delaying procurement of Rafale for 10 long yrs, what role he played in putting national security in danger” pic.twitter.com/yjpLDoum8E
भारतीय वायुसेना के लिए 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टरों की खरीद के लिए इटली की कंपनी अगस्ता-वेस्टलैंड के साथ साल 2010 में करार किया गया था। 3,600 करोड़ रुपए के करार को जनवरी 2014 में भारत सरकार ने रद्द कर दिया था। जानकारी के लिए बता दें कि इस करार में 360 करोड़ रुपए के कमीशन के भुगतान का आरोप लगा था। इटली की कंपनी और भारत सरकार के बीच के इस करार में कमीशन की ख़बर सामने आते ही 12 एडब्ल्यू-101 वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की सप्लाई पर सरकार ने फ़रवरी 2013 में रोक लगा दी थी।
अगस्ता मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वीकारी रक्षा मंत्रालय की याचिका
रक्षा मंत्रालय ने दिल्ली हाई कोर्ट में अगस्ता-वेस्टलैंड के खिलाफ़ मध्यस्थता की कार्रवाई के लिए याचिका दायर की। सरकार के पक्ष को सुनने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की याचिका को स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख़ 28 फ़रवरी तय कर दी है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को हलफ़नामा दायर करने के लिए 5 सप्ताह का समय भी दिया है।
क्रिश्चियन मिशेल को अगस्ता मामले में हिरासत में लिया गया था
दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट अदालत ने 3,600 करोड़ रुपये के अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर मामले में सीबीआई
द्वारा गिरफ्तार किए गए क्रिश्चियन मिशेल को 22 दिसंबर को
ईडी की 7 दिन की हिरासत में भेज दिया था। विशेष न्यायाधीश
अरविंद कुमार ने मामले में कथित बिचौलिए मिशेल की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
रूस के उप विदेश मंत्री सर्जे रयाब्कोव ने बुधवार (जनवरी 9, 2019) को कहा कि रूस भारत को S-400 एयर डिफ़ेन्स मिसाइल सिस्टम पूर्व निर्धारित समय पर ही देगा तथा डिलीवरी में किसी भी प्रकार की देर नहीं की जाएगी।
गत सप्ताह सरकार ने लोक सभा में यह सूचना दी कि भारत को अगले वर्ष अक्टूबर से S-400 एयर डिफेन्स मिसाइल सिस्टम मिलना आरंभ हो जाएगा तथा वर्ष 2023 तक डिलीवरी पूरी कर दी जाएगी। भारत-रूस के मध्य 40,000 करोड़ रुपये में S-400 ट्रायंफ खरीदने का समझौता गत वर्ष सम्पन्न हुआ था जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आए थे।
S-400 एक इंटीग्रेटड मिसाइल सिस्टम है जो दूर और पास दोनों प्रकार के लक्ष्यों को भेद सकता है। युद्धनीति के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक प्रतिरक्षात्मक प्रणाली है अर्थात इसका प्रयोग पहले हमला करने के लिए नहीं किया जाता।
S-400 सतह से हवा में मार करने वाला एयर डिफेन्स मिसाइल सिस्टम है जिसका अर्थ होता है ऐसी मिसाइल जो हवा से आक्रमण कर रहे किसी भी हथियार को मार गिराने में सक्षम हो। कुछ मिसाइलें बैलिस्टिक प्रणाली पर कार्य करती हैं अर्थात वे पृथ्वी के वायुमंडल में बहुत ऊपर तक जाकर फिर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण लक्ष्य पर गिरती हैं। अंतर्महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) इसी श्रेणी की मिसाइलें हैं।
कुछ मिसाइलें रिमोट द्वारा नियंत्रित की जाती हैं जिन्हें गाइडेड मिसाइल कहा जाता है। S-400 बैलिस्टिक और गाइडेड दोनों प्रकार की मिसाइलों से हमारी रक्षा कर सकने में सक्षम है। यही नहीं S-400 मानव रहित विमानों और लड़ाकू विमानों को भी मार गिराने में भी सक्षम है।
यह एयर डिफेन्स मिसाइल सिस्टम 30 किमी की ऊँचाई तक चार अलग रेंज की मिसाइलें एक ही लॉन्चर से दाग सकता है। S-400 की इन चार मिसाइलों की रेंज है: 40 किमी, 120-150 किमी, 200-250 किमी और 400 किमी। S-400 को कहीं भी ले जाया जा सकता है और इसकी एक बैटरी में आठ लॉन्चर होते हैं।
यह एयर डिफेन्स मिसाइल सिस्टम 30 किमी की ऊँचाई तक चार अलग रेंज की मिसाइलें एक ही लॉन्चर से दाग सकता है। S-400 की इन चार मिसाइलों की रेंज है: 40 किमी, 120-150 किमी, 200-250 किमी और 400 किमी
S-400 के रडार L और UHF फ़्रिक्वेन्सी बैंड पर काम करते हुए एक साथ सौ लक्ष्यों पर निगरानी रख सकते हैं। इसके रडार इतने उन्नत हैं कि वे आती हुई मिसाइल या विमान की रेंज में आने से पूर्व ही उस पर हमला कर सकते हैं।
अल्माज़ आंतेय (Almaz Antey) नामक कम्पनी द्वारा निर्मित अतिउन्नत S-400 मिसाइल सिस्टम के बारे में विशेषज्ञों की राय है कि यह क्रूज़ मिसाइलों के आक्रमण को भी असफल कर सकता है। S-400 को तुलनात्मक रूप से THAAD और पैट्रियट PAC3 मिसाइल सिस्टम से बेहतर माना जाता है।
भारत के एयर डिफेन्स सिस्टम पुराने हो चुके हैं अतः अब हमें नए उन्नत हथियारों से अपने आयुध भंडार को लैस करने की आवश्यकता है ऐसे में रूस द्वारा S-400 की समय पर डिलीवरी देने का आश्वासन देना शुभ संकेत है।
सुप्रीम कोर्ट में आज अयोध्या विवाद के केस पर सुनवाई हुई है। ये सुनवाई इससे पहले 4 जनवरी को होनी थी, लेकिन पिछली बार पीठ में कम सदस्य होने के कारण ये सुनवाई 10 जनवरी पर टाल दी गई थी। आज 10 जनवरी को सुनवाई शुरू होने के कुछ देर बाद ही एक बार फिर अयोध्या मामला 29 जनवरी तक स्थगित कर दिया गया।
आज हाई कोर्ट में पाँच जजों की संविधान पीठ ने सालों से चले आ रहे बेहद संवेदनशील अयोध्या मामले पर सुबह 10:30 बजे से सुनवाई शुरू की। पाँच जजों की इस संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ शामिल थे।
इस पाँच न्यायाधीशों की पीठ से जब न्यायमूर्ति यूयू ललित ने खुद को अलग करने का आग्रह किया तो कोर्ट ने फैसला लिया, कि अब इस मामले पर सुनवाई 29 जनवरी को नई पीठ के गठन के साथ की जाएगी। वकील राजीव धवन ने न्यायाधीश यूयू ललित पर टिप्पणी की थी कि 1994 में वो कल्याण सिंह के वकील रह चुके हैं, जिसके बाद उन्होंने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। हालाँकि, धवन का कहना है कि उन्हें यूयू ललित से कोई समस्या नहीं हैं।
इस मामले की सुनवाई आगे टलने की वज़ह से कई हिंदू संगठन बेहद नाराज़ हुए, जिसकी वजह से उन्होंने कोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया है।
आपको इस मामले पर जानकारी देते हुए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर रजिस्ट्री दस्तावेज़ों की कॉपी मांगी है। इस मामले से संबंधित कई मूल दस्तावेज़ अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू और गुरमुखी में लिखे हुए हैं। वकीलों का इसपर कहना है कि इन दस्तावेज़ों के अनुवाद की भी पुष्टि की जानी चाहिए।
अब इस पूरे मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नई बेंच के साथ होगी।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के ताजा बयान महिलाओं के प्रति उनकी छोटी सोच को दर्शाते हैं। वैसे ये इतिहास में पहली बार नहीं है, जब राहुल गाँधी ने सार्वजनिक तौर पर ऐसी गलतियाँ की हैं। इस से पहले वो अलग-अलग तौर-तरीकों से ऐसी कई हरकतें कर चुके हैं जिस से उनकी पार्टी और पार्टी के नेताओं को उनका बचाव करने में भी शर्मिंदगी महसूस हुई है। लेकिन उनकी हर एक फूहड़ हरकत का बचाव करने के लिए टीवी पर प्रवक्ताओं की टोली खड़ी रहती है। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ है। राहुल गाँधी अक्सर झूठ बोलते रहे हैं, अपने द्वारा गिनाए जाने वाले आँकड़ों को बार-बार बदलते रहे हैं, संवेदनशील मौकों पर भी ग़ैर -ज़िम्मेदाराना ढंग से मुस्कराते रहे हैं, गली के छिछोड़ों की तरह संसद में आँख मारते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने ट्रेंड से थोड़ा सा शिफ्ट किया है।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने 9 जनवरी को एक बयान देते हुए कहा कि 56 इंच वाले मोदी को एक महिला के पीछे छिपना पड़ा। राहुल गाँधी ने जयपुर की एक चुनावी सभा में कहा;
“राफेल पर 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री जवाब नहीं दे पाए और उन्होंने एक महिला को आगे कर दिया। उन्होंने निर्मला सीतारमण से कहा कि आप मेरी रक्षा करो, मैं खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकता।”
बयान के मायने और सन्दर्भ
राहुल गाँधी के इस बयान के कई मायने निकाले जा सकते हैं लेकिन उन सभी के पीछे उनकी एक ही सोच दिखती है और वो है महिलाओं के प्रति उनका छोटा नजरिया। ये नजरिया इतना ओछा है, इतना महिलाविरोधी है कि इसका हर एक महिला और महिलाधिकार के लिए लड़ने वाले संगठन को विरोध करना चाहिए। राहुल गाँधी के इस बयान का किसी भी फेमिनिस्ट और लिबरल व्यक्ति को इसीलिए विरोध करना चाहिए क्योंकि ये बयान किसी गली-मोहल्ले के नेता का नहीं बल्कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के मुखिया का है। इस बयान के लिए उस हर एक व्यक्ति को आपत्ति जतानी चाहिए, जो महिला-पुरुष समानता की बातें करता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या ऐसा होगा? इस से पहले आइए जानते हैं कि आखिर राहुल गाँधी के बयान के क्या अर्थ निकलते हैं और उसका सन्दर्भ क्या था।
दरअसल, देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने 4 जनवरी को संसद में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने राहुल गाँधी द्वारा राफेल पर पूछे गए हर एक सवाल का बिंदुवार जवाब दिया और कॉन्ग्रेस पार्टी की एक तरह से धज्जियाँ उड़ाते हुए उनके सारे झूठे दावों की पोल खोल दी। निर्मला सीतारमण भाजपा की प्रवक्ता रही हैं और न्यूज़ चैनल पर चर्चाओं में उनकी वाक्पटुता और विषयों पर उनकी पकड़ के कारण बड़े-बड़े नेता भी उनसे उलझने से पहले बड़ी तैयारियाँ कर के आया करते थे। ऐसे में अपनी ट्विटर टीम के बलबूते फलने-फूलने वाले राहुल गाँधी उनसे उलझ गए। परिणाम प्रत्याशित रहा और संसद में रक्षा मंत्री ने राहुल गाँधी की बखिया उधेड़ दी।
लेकिन राहुल गाँधी तो राहुल गाँधी हैं। उन्होंने निर्मला सीतारमण के फैक्ट्स और आँकड़ों से सजे डेढ़ घंटे लम्बे भाषण को एक लाइन में ख़ारिज करते देर नहीं लगाई। उन्होंने ट्विटर पर फिर से वही सब प्रश्नों की झड़ी लगा दी, जिसका बिंदुवार जवाब सीतारमण ने संसद में दिया था। लेकिन मुद्दा यह नहीं है। ये तो सिर्फ राहुल द्वारा जयपुर में दिए गए बयान के पीछे का बैकग्राउंड था। मुद्दा ये है कि राहुल ने जयपुर की जनसभा में क्या कहा और क्यों कहा।
महिलाओं के प्रति राहुल का ओछा नजरिया
राहुल गाँधी कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने एक ‘महिला’ को आगे कर दिया। अगर राहुल इसके बजाय ये भी कहते कि पीएम ने एक ‘केंद्रीय मंत्री’ को आगे कर दिया तो ये चल जाता क्योंकि केंद्रीय मंत्री प्रधानमंत्री के मातहत काम करते हैं। अगर राहुल गाँधी ये भी कहते तो चल जाता कि पीएम अपनी पार्टी के नेताओं के पीछे छिप रहे हैं। लेकिन उन्होंने जो कहा वो एक बेहूदा औरसेक्सिस्ट बयान था। राहुल के इस बयान से झलकता है कि किसी भी पुरुष द्वारा किसी महिला को आगे करना सही नहीं है क्योंकि पुरुष मजबूत होते हैं और महिलाएँ कमजोर होती हैं। राहुल का यह महिलाविरोधी बयान उनके इस सोच को दर्शाता है कि एक महिला को आगे आने का हक़ नहीं है, एक महिला किसी पुरुष की जगह कभी नहीं ले सकती।
आश्चर्य यह कि राहुल के इन बयानों का खुद को फेमिनिस्ट और लिबरल कहने वाले लोगों के एक बड़े वर्ग द्वारा किसी भी प्रकार का विरोध नहीं किया गया, ना ही उनसे माफ़ी मांगने की मांग की गई। और जैसा कि प्रत्याशित था, राहुल अपने इस बयान के लिए माफ़ी मांगना तो दूर, उलटा इसके बचाव में खड़े हो गए। राहुल गाँधी के बयान का तात्पर्य है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक ‘महिला’ से कहा कि आप मेरी रक्षा करो। इस बेतुके बयान को लेकर राहुल गाँधी से पूछा जाना चाहिए कि क्या एक महिला इतनी कमजोर होती है कि वो किसी की रक्षा या किसी के बचाव के लिये आगे नहीं आ सकती? हालाँकि राहुल के इन दावों में कोई सच्चाई नहीं है कि प्रधानमंत्री ने निर्मला सीतारमण से कहा कि आप मेरी रक्षा करो, रक्षा मंत्री ने राहुल के सवालों का जवाब दिया क्योंकि ये उनके मंत्रालय से सम्बन्धित था। राहुल गाँधी पर यह सवाल भी दागा जाना चाहिए कि अगर कोई पुरुष किसी महिला को अपना बचाव करने को कहे तो क्या उसे हीन दृष्टि से देखा जाना चाहिए?
एक गलती के बचाव में दूसरी गलती करने का नाम हैं राहुल गाँधी
कहते हैं, व्यक्ति गलतियों से सीखता हैं। अखंड भारत के सूत्रधार चाणक्य ने कहा था कि समझदार व्यक्ति दूसरों की गलतियों से सीखते हैं क्योंकि आपकी अपनी ज़िंदगी इतनी छोटी है कि आप सारी गलतियाँ कर के उनसे सीखने में अपना समय नहीं गंवा सकते। राहुल गाँधी का किस्सा एकदम उलट है क्योंकि उन्होंने सारी गलतियाँ करने की ठानी है। इतना ही नहीं, उन्होंने सभी गलतियों को ज्यादा से ज्यादा दोहराने का ट्रेंड भी पाल रखा है। सोने पे सुहागा तो ये कि उनके द्वारा दोहराई गई इन गलतियों के बचाव के लिए न्यूज़ चैनलों पर प्रवक्ताओं की एक पूरी फ़ौज खड़ी रहती है। इस मामले में भी राहुल गाँधी ने यही ट्रेंड अपनाया और इसका बचाव करते हुए एक दूसरी गलती की।
जैसा कि सभी लोग वाकिफ़ हैं, हमे दो राहुल गाँधी देखने को मिलते हैं। एक वो हैं जिन्हें मानसरोवर यात्रा से वापस आने के बाद भी उसके बारे में कुछ नहीं पता होता, और दूसरे वो जिन्हें सब कुछ पता होता है- यहाँ तक कि मानसरोवर में खींचे गए चित्र की विवेचना भी वो इस तरह से कर सकते हैं, जो उनके राजनीतिक एजेंडे में भी फिट बैठ जाए। एक वो जिन्हें NCC के बारे में भी कुछ जानकारी नहीं होती और दूसरे वो जिन्हें सेना द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले फाइटर जेट की भी बारीकियाँ पता होती हैं। एक वो जो विदेशों में छुट्टियाँ मनाते हैं और दुसरे वो जो किसानों के हितैषी होने का दावा करते हैं। जी हाँ, अब तक आप समझ गए होंगे कि पहले वाले वो राहुल गाँधी हैं, जो रियल वर्ल्ड में पाए जाते हैं जबकि दूसरे वाले वो हैं जो वर्चुअल वर्ल्ड में मिलते हैं। इसका अर्थ ये कि वो सिर्फ ट्विटर पर मिलते हैं।
लेकिन ये भी जानने लायक बात है कि पहले वाले राहुल गाँधी अगर एक गलती करते हैं तो दूसरे वाले उनके बचाव में दूसरी गलती करते हैं। अगले चरण में कुछ यूं हुआ कि दूसरे वाले राहुल गाँधी ने पहले के बचाव में ट्वीट किया। इस ट्वीट में वो खुद से ही प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। इस ट्वीट में दिए गए उनके बयान जयपुर में उनके द्वारा कहे गए महिला-विरोधी शब्दों के साथ प्रतियोगिता कर रहे थे। इस ट्वीट में राहुल गाँधी ने कहा;
“पुरुष बनें और मेरे सवालों का जवाब दें।“
With all due respect Modi Ji, in our culture respect for women begins at home.
Stop shaking. Be a man and answer my question: Did the Air Force and Defence Ministry object when you bypassed the original Rafale deal?
राहुल के ये बयान पितृसत्तात्मकता की सारी हदें पार कर जाते हैं। याद हो कि जब ट्विटर के CEO जैक के हाथ में ‘smash Brahminical Patriarchy’ लिखा पोस्टर देकर महिलाधिकारों और सामाजिक समानता के कुछ स्वयंभू ठेकेदारों ने फोटोशूट कराया था, तब राहुल की कॉन्ग्रेस पार्टी ने इसका समर्थन किया था। वो अलग बात है कि समानता के लिए लड़ने का दावा करने वाले ये स्वयंभू ठेकेदार आज राहुल के इस बयान को लेकर उनसे सवाल नहीं पूछ रहे क्योंकि ये उनके एजेंडे को सूट नहीं करता है। पितृसत्ता को बिना किसी डाटा या सबूत के सिर्फ व्यक्तिगत विचारों के आधार पर जाति के दायरे में बाँधने वाले ठेकेदारों ने राहुल गाँधी के इन बयानों को नजरअंदाज़ कर दिया।
महिलाओं के प्रति ऐसी सोच रखना राहुल की गलती है। अपनी इस सोच को बार-बार ज़ाहिर करना उस से भी बड़ी गलती है। और, अपनी इन गलतियों का बचाव करना, माफ़ी तक नहीं माँगना- ये सबसे बड़ी गलती है। लेकिन राहुल की इन गलतियों से भी बड़ी गलती वो लोग कर रहे हैं, जो इन सबके बावजूद सब कुछ देख-सुन कर भी चुप हैं क्योंकि इस पर बोलना उनके नैरेटिव के ख़िलाफ़ हो जाता है।
ख़ैर, राष्ट्रीय महिला आयोग ने राहुल की टिप्पणी का संज्ञान लिया है और उन्हें नोटिस भेजते हुए कहा है कि उनकी टिप्पणी महिला-विरोधी, आक्रामक, अनैतिक है तथा सामान्य रूप से महिलाओं के मान एवं प्रतिष्ठा के विरुद्ध असम्मान ज़ाहिर करती है।
सिक्किम की रूलिंग पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम की घोषणा की है। एसडीएफ ने विधानसभा व लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखते हुए 2022 से राज्य में यूबीआई स्कीम को शुरू करने की घोषणा की है। यूबीआई स्कीम को एसडीएफ ने अपने चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया है। राज्य सरकार ने इस स्कीम को लॉन्च करने की पूरी तैयारी कर ली है।
यदि सिक्किम में सरकार बनने के बाद एसडीएफ इस घोषणा को पूरा करने में सफ़ल हो जाती है, तो सिक्किम इस महत्वपूर्ण योजना को शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।
सिक्किम दूसरे राज्यों के लिए रह चुका है रोल मॉडल
यूबीआई की घोषणा से पहले भी सिक्किम सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की है। इन सभी योजनाओं की सफ़लता के ज़रिए सिक्किम सरकार देश के दूसरे राज्यों के लिए रोल मॉडल रह चुकी है। सिक्किम में सरकार बनाने के बाद एसडीएफ ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था में कई अहम बदलाव किए थे।
सरकार के इस प्रयास के बाद सिक्किम में साक्षरता दर 68.8 प्रतिशत (साल 2001 में) से बढ़कर 82.2 प्रतिशत पर पहुँच गई है। यही नहीं, 2004-05 की तुलना में वर्तमान समय में राज्य की जीडीपी लगभग दोगुनी हो गई है। इसके अलावा 2004-05 में सिक्किम में रहने वाले लगभग 1.7 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, जबकि 2011-12 में यह आँकड़ा घटकर महज 51,000 रह गया था। सिक्किम ने 2018 में पूर्ण जैविक राज्य बनने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया। सिक्किम को यह अवॉर्ड संयुक्त राष्ट्र के द्वारा दिया गया था।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम?
यूनिवर्सल बेसिक इनकम एक तरह से बेरोजगारी बीमा है। इस योजना के अंतर्गत किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को उस क्षेत्र की सरकार के ज़रिए भत्ता के रूप में कुछ निश्चित रकम दिए जाते हैं। अपने देश में 2016-17 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यूबीआई की चर्चा की गई थी। जिसके बाद इस बात का अंदेशा लगाया जाने लगा कि केंन्द्र सरकार यूबीआई स्कीम लागू कर सकती है। लेकिन बाद में सरकार ने साफ़ किया कि केंन्द्र सरकार इस स्कीम को लागू करने में अभी सक्षम नहीं है।
शिवराज सरकार यूबीआई तर्ज पर ला चुकी है एक योजना
2011-13 के दौरान मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने यूबीआई की तर्ज पर एक योजना की शुरुआत की थी। इस योजना का नाम मध्य प्रदेश अनकंडिशनल कैश ट्रांसफ़र प्रोजेक्ट दिया गया था। इस योजना के तहत राज्य के हर युवाओं को 300 रुपए जबकि बच्चों को 150 रुपए प्रति माह के दर से दिया जाने लगा था। इस योजना से राज्य के युवाओं और बच्चों के जीवन स्तर में बेहतरीन सुधार देखने को मिला था।
शिवसेना के वरिष्ठ नेता रामदास कदम ने गठबंधन के विषय पर कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए बीजेपी को ‘दफ़ना’ देने की धमकी दी है। बता दें कि शिवसेना की यह प्रतिक्रिया बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान के बाद आई है जिसमें उनके द्वारा कथित तौर पर यह कहा गया था कि अगर लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन ना हुआ, तो उनकी पार्टी अपने पूर्व सहयोगियों को क़रारी शिक़स्त देगी।
“मंगलवार (जनवरी 8) की शाम को रामदास कदम ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा, “वे पाँच राज्यों में पहले ही चुनाव हार चुके हैं, न तो वे महाराष्ट्र में आएँ और न ही हमें धमकाएँ वरना हम आपको दफ़ना देंगे। मत भूलिए कि मोदी लहर के बावजूद हमने कुल 288 सीटों में से 63 सीटें जीतीं थी।””
इससे पहले का वाक़्या यह था कि बीते रविवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना को कड़े शब्दों में कहा था कि अगर गठबंधन हुआ तो पार्टी अपने सहयोगियों की जीत सुननिश्चित करेगी, और ऐसा न होने पर पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें शिक़स्त देगी।
थोड़ा और पहले की बात करें तो इससे पहले भी
शिवसेना के तल्ख़ तेवर सामने आ चुके हैं। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने तो ‘चौकीदार चोर है’ तक कह डाला था,
जिस पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने प्रतिक्रिया दी थी कि समय आने पर इसका जवाब
दिया जाएगा।
संवाददाताओं से बातचीत के दौरान, एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कदम ने कहा कि अभी बीजेपी के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं हुआ है, लेकिन दोस्ती लगभग टूटने की कग़ार पर है। इसके लिए उन्होंने बीजेपी से अपने प्रेम और अपनत्व के ख़त्म हो जाने को मुख्य वजह बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि जब शिवसेना अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ने में सक्षम है तो बीजेपी गठबंधन के लिए क्यों दबाव की स्थिति पैदा कर रही है।
ख़बरों के अनुसार, यह भी पता चला है कि बीजेपी नेता चन्द्रकांत पाटील ने कदम द्वारा इस्तेमाल की गई अभद्र भाषा पर कड़ी आपत्ति दर्ज की, कहा कि हम उनके जैसी भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते और शिवसेना की इस तीखी आलोचना का जवाब देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि गठबंधन को लेकर बीजेपी की कोई मजबूरी नहीं है बल्कि यह पार्टी की सहनशीलता है।
बीजेपी और शिवसेना की विचारधारा एक है इसलिए इस तरह की कोशिशें की जा रही हैं कि दोनों साथ मिलकर आगे आएँ और आगामी लोकसभा चुनाव लड़ें। अगर किन्हीं कारणों से शिवसेना और बीजेपी के बीच सीटों के बँटवारे को लेकर गठबंधन नहीं हो पाया, तो ऐसी सूरत में दोनों पार्टियाँ अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगी, जिसके लिए बीजेपी पूरी तरह से सक्षम है।