Monday, October 7, 2024
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किसी के लिए ‘परोपकारी’, किसी के लिए ‘करिश्माई’: जो नसरल्लाह मरा वह आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह का सरगना था, पर ‘सम्मानित’ बता मातम मना रहा है मीडिया

जैसे ही खबर आई कि इजरायल ने हसन नसरल्लाह का आतंक दुनिया से खत्म कर दिया है उसके बाद मीडिया पोर्टलों में उसके कुकर्मों का ब्योरा छापने की जगह उसकी तारीफ करने की होड़ लग गई।

इस्लामी आतंकियों के मरने पर मार्मिक एंगल ढूँढकर उनके लिए संवेदना बटोरना मीडिया के लिए कोई नया काम नहीं है। वामपंथी मीडिया की आदत है कि आतंकी कितना ही बड़ा क्यों न हो, मगर वो उसके आतंक को धो-पोंछने में कोई कसर नहीं छोड़ते। हाल में मीडिया का ये चरित्र तब देखने को मिला जब इजरायल ने हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह को मौत के घाट उतारा।

अमेरिका से लेकर सीरिया तक में लोग इस कार्रवाई पर खुश हुए लेकिन वामपंथी मीडिया में मातम पसर गया। जैसे ही खबर आई कि इजरायल ने हसन नसरल्लाह का आतंक दुनिया से खत्म कर दिया है उसके बाद मीडिया पोर्टलों में उसके कुकर्मों का ब्योरा छपने की होड़ लग गई। धीरे-धीरे वैसे ये काम कई समाचार साइटों ने किया लेकिन न्यूयॉर्क पोस्ट, द गार्जियन, बीबीसी ने दो कदम उठकर ये ऐसा प्रोपगेंडा फैलाया कि पढ़ने में लगे नरसल्ला कितना भला आदमी था, जिसने हमेशा मुस्लिमों के साथ यहूदियों और ईसाइयों का अच्छा चाहा।

NYT का प्रोपगेंडा

पहले बात करते हैं न्यूयॉर्क टाइम्स की। नीचे दिए स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं कि कैसे न्यूयॉर्क टाइम्स ने हिज्बुल्लाह चीफ को महान दिखाने के लिए बताया कि वो हमेशा से मुस्लिमों, यहूदियों और ईसाइयों के लिए समान फिलीस्तीन की कामना करता था। NYT ने आगे उसके लिए संवेदना बटोरने का काम किया।

अपने आर्टिकल में NYT ने नसरल्ला को एक शक्तिशाली ‘वक्ता’ बताया। साथ ही ये दिखाया कि कैसे वो शिया मुसलमानों में प्रिय था और हिज्बुल्लाह संगठन को खड़ा करके लेबनान में अपनी सामाजिक सेवाएँ देता था। इसके अलावा अपने आर्टिकल में नसरल्लाह की छवि एक ऐसे नेता के तौर पर दिखाई गई जिसकी प्रतिष्ठा मिडल ईस्ट के देशों तक फैली हुई थी।

एसोसिएटिड प्रेस के लिए करिश्माई था नसरल्लाह

न्यू यॉर्क टाइम्स के बाद ‘द एसोसिएटिड प्रेस’ ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने तो अपनी हेडलाइन से ही नसरल्लाह को इस तरह पेश किया जैसे वो आतंकी संगठन को चलाने वाला सरगना न होकर मानवता को बचाने वाला मसीह हो। शीर्षक में उसके लिए Charismatic and shrewd जैसे शब्द प्रयोग किए गए।

आगे उसके जीवन से जुड़े किस्सा बताए गए। लेख के भीतर उसे चतुर रणनीतिकार बताकर उसकी वाहवाही की। इतना ही नहीं ये भी बताया गया कि कैसे लेबनानी उसे सम्मान देते थे। उसके पास सैयद की उपाधि थी और वो एक प्रखर वक्ता भी था

जब लोगों ने इन विशेषणों को नसरल्ला के लिए देखा तो वो भड़क गए। AP की मंशा पर सवाल उठने शुरू हुए, लेकिन तब उन्होंने बिन कोई सफाई दिए चुपचाप आर्टिकल की हेडलाइन बदल दी। हेडलाइन में लिखा गया- लंबे समय से हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह कौन हैं? (Who is longtime Hezbollah leader Hassan Nasrallah?)

बीबीसी ने नसरल्लाह को दिखाया आंदोलनकारी और परोपकारी

न्यू यॉर्क पोस्ट और एपी की तरह बीबीसी गुजराती ने भी नसरल्लाह के लिए लिखा कि वो मिडल ईस्ट का सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक था। अपने लेख में बीबीसी ने दिखाया कि नसरल्लाह इतना प्रभावशाली आदमी था कि उसके ईरान से घनिष्ठ संबंध थे, जिसने हिजबुल्लाह को आज की राजनीतिक और सैन्य शक्ति में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस समूह का वो सम्मानित व्यक्ति था।

इसी तरह अपने लेख में एक आतंकी संगठन के लिए बीबीसी ने बातें इतनी बढ़ा-चढ़ा कर लिखीं कि पता ही नहीं चला कि हिज्बुल्लाह एक आतंकी संगठन है। ऐसा लगता है कि जैसे ये कितनी बड़ी सेना है जो अपने देश की रक्षा के लिए बनाई गई। हकीकत जबकि ये है कि इजरायल के विरुद्ध लड़ने के लिए हिज्बुल्लाह संगठन का जन्म हुआ था ताकि उत्तरी सीमा से इजरायल कमजोर रहे।

बीबीसी ने अपने लेख में नसरल्लाह के नेतृत्व में खड़े किए गए हिज्बुल्लाह को मानवतावादी दिखाने के लिए ये तक बताया कि हिज्बुल्लाह की सेना आधिकारिक लेबनानी सेना से भी अधिक शक्तिशाली हैं। इसका लेबनानी राजनीति में इतना प्रभाव है कि यह स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सेवा प्रदान करने में सबसे आगे हैं।

यूरो न्यूज के लिए हसन नसरल्लाह इस्लामी नेता

इसी तरह यूरो न्यूज की हेडलाइन देखिए। यूरो न्यूज ने घोषित आतंकी हसन नसरल्लाह को इस्लामी नेता लिखा है और ऐसे दिखाया है जैसे इजरायल आतंकी संगठन है जिसका विरोध वो दशकों से करता आया है।

जबकि, सच्चाई तो ये है कि हिज्बुल्लाह का अस्तित्व ही इजरायल के विनाश के लिए हुआ था। 7 अक्टूबर 2023 को जब हमास ने इजरायल पर हमला बोला था उसके अगले ही दिन हिज्बुल्लाह ने भी हमला किया था। क्या इजरायल अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक्शन भी न ले।

आतंकियों से संवेदना वामपंथी मीडिया का पुराना धंधा

कुल मिलाकर ऐसे तमाम मीडिया संस्थान हैं जिन्होंने 28 सितंबर को हसन नसरल्लाह की मौत के बाद उसके आतंकी बैकग्राउंड को पूरी तरह ढाँकने का काम किया और उसे एक आतंकी संगठन का सरगना न दिखाकर एक परोपकारी इस्लामी नेता दिखाने की कोशिश की। उसके बचपन के हालातों को खबरों के तौर पर मुख्य रूप से ऐसे चलाया गया जैसे गरीबी के हालातों से निकलकर उसने मानवता को बढ़ावा देने में उसने कितना बड़ा योगदान दिया हो।

हकीकत जबकि ये है कि आतंकी संगठन का सरगना नसरल्लाह के ऊपर न जाने कितनी आतंकी गतिविधियों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने का आरोप है। वहइजरायलियों पर किए जाने वाले अत्याचार का वो पुरजोर समर्थन करता था। उसके संगठन हिज्बुल्लाह में इस्लामी कट्टरपंथी और आतंकी थे न कि समाजसेवी। आतंकी संगठन को खड़े रखना एक सामान्य समाज के लिए सम्मानजनक काम नहीं है जो मीडिया अपने लेखों में बता रहा है कि वो सम्मानित व्यक्ति था।

हिज्बुल्लाह- एक आतंकी संगठन

मालूम हो कि हिज्बुल्लाह को अमेरिका, यूरोपीय संघ, इजराइल समेत 60 से ज्यादा देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा था, लेकिन फिर भी उसके लिए संवेदना वामपंथी मीडिया में बराबर है। ठीक उसी तरह जैसे कभी बगदादी के लिए थी, हमास के चीफ के लिए थी, लादेन के लिए थी…।

1983 में हिज्बुल्लाह ने बेरूत में अमेरिकी दूतावास पर हमला कराया था। उस समय करीबन 49 लोगों की मौत हुई थी और 30 से ज्यादा घायल थे। इसके बाद उसी साल इस संगठन ने बेरूत में फिर हमला किया जिसमें 240 अमेरिकियों की जान गई।

1989 में इस संगठन ने बैंगकॉक में सऊदी अरब के सेक्रेट्री को मौत के घाट उतारने का काम किया। 1992 में ब्यूनोस (Buenos) के इजरायली दूतावास पर पर बमबारी की जिसमें 29 लोग मरे और 240 से ज्यादा लोग घायल हुए। 2 साल बाद ब्यूनोस में ही यहूदियों के सेंटर पर बम विस्फोट किए गए जिसमें 85 की मौत हुई और 300 से ज्यादा घायल हुए।

जिस हिज्बुल्लाह को मात्र एक इस्लामी संगठन बनाकर मीडिया दिखा रहा है वो हकीकत में आतंकी संगठन है जिसके बारे में मीडिया को खुलकर बताना आना चाहिए। इस्लामी प्रोपगेंडे से पत्रकारिता सालों से त्रस्त रही है। इजरायल जब खुलकर अपने देश के नागरिकों को बचाने के लिए डटकर आतंकियों को सामना कर रहा है तो क्या ये मीडिया का फर्ज नहीं है वो भी अपने पाठकों को… जिनसे उनका अस्तित्व है उन्हें सच दिखाने के लिए खड़े हों न कि लीपा-पोती के लिए।

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