भाजपा सरकार ने लोकसभा में 323/3 की बहुमत से सामान्य वर्ग के वंचित और ग़रीब लोगों के लिए 10% आरक्षण की सुविधा देने वाले बिल को पारित करा दिया है। राज्यसभा में इस आरक्षण बिल का पारित होना अभी बाक़ी है। मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर अपनी राय ज़ाहिर करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने मोदी को देश का दूसरा अंबेडकर बताया है।
अपने बयान में मुख्यमंत्री त्रिवेंन्द्र सिंह रावत ने कहा “प्रधानमंत्री मोदी 21वीं सदी में पैदा होने वाले दूसरे अंबेडकर हैं। उन्होंने देश के आर्थिक रूप से गरीब लोगों के लिए शानदार फ़ैसला लिया है।” रावत ने सरकार के इस फ़ैसले के लिए प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए कहा कि आज एक गरीब के घर में पैदा होने वाले प्रधानमंत्री ने देश के गरीबों के दर्द को समझा है।
Uttarakhand CM Trivendra Singh Rawat on The Constitution (124th Amendment) Bill: Another Ambedkar is born in the 21st century. And he has taken this decision for the economically weak people. I want to congratulate PM, son of poor has today thought about all the poor people pic.twitter.com/9jVFSDrYV9
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भले ही 10 फ़ीसदी आरक्षण को कैबिनेट और लोकसभा में मंज़ूरी मिल गई हो, लेकिन इसे लागू करने की डगर अभी भी मुश्किल है। इस फ़ैसले को ठोस स्वरूप देने के लिए सरकार यह बिल राज्यसभा में भी पारित कराना होगा। इसके बाद संविधान में संशोधन करने की ज़रूरत पड़ेगी।
संविधान
संशोधन के तहत अनुच्छेद 15 और 16
संशोधित
होंगे। अनुच्छेद 15 क्लॉज़ 4
के
अनुसार सरकार किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए विशेष
प्रावधान कर सकती है।
संभव
है कि इसी क्लॉज़ में संशोधन हो और उसमें आर्थिक पिछड़ेपन को भी जोड़ा जाए।
अनुच्छेद 16 क्लॉज़ 4
के
अनुसार भी सरकारी नौकरियों में सरकार किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की
व्यवस्था कर सकती है जिसे संशोधित कर इसमें आर्थिक पिछड़ेपन का प्रावधान किया जा
सकेगा।
हालाँकि, सरकार के इस फ़ैसले का कई पार्टियों ने स्वागत किया है जिसमें बीजेपी की धुर विरोधी पार्टी कॉन्ग्रेस भी शामिल है। इसके अलावा एनसीपी (राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी) और आम आदमी पार्टी ने भी इस फ़ैसले का समर्थन किया है।
बता दें कि केंद्र और राज्यों में पहले ही अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फ़ीसदी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 22 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है। कई राज्यों में आरक्षण का प्रतिशत 50% से भी ज़्यादा है।
मंगलवार को ‘नागरिकता संशोधन विधेयक 2016’ लोकसभा में पास हो गया है। इस बिल को लेकर असम की सड़कों से लेकर संसद तक काफी विरोध प्रदर्शन हो रहा है। भाजपा ने इस विधेयक को पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश से विस्थापन की पीड़ा झेल रहे हिन्दू, पारसी, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अहम फ़ैसला बताया है। बिल के पारित होने पर गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में अपने भाषण में कहा, “नागरिक संशोधन विधेयक सिर्फ असम के लिए नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में रह रहे प्रवासियों पर भी लागू होता है। यह कानून देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। असम का भार सिर्फ असम का नहीं है, पूरे देश का है।”
#CitizenshipAmendmentBill सिर्फ असम के लिए नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में रह रहे प्रवासियों पर भी लागू होता है।
यह कानून देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। असम का भार सिर्फ असम का नहीं है, पूरे देश का है: गृहमंत्री श्री @rajnathsinghpic.twitter.com/mN9uUfo17J
नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद भाजपा प्रवक्ता मेहदी आलम बोरा पहले व्यक्ति बन गए हैं जिन्होंने अपना विरोध दर्ज़ करने के लिए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफ़ा भी दे दिया है। उनका कहना है कि वो इस बिल का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह असम समाज के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को प्रभावित कर समाज को नुकसान पहुँच सकता है।
विधेयक और इससे जुड़े विरोध की कुछ अहम बातें
सोमवार से ही इसके खिलाफ कुछ राजनीतिक दल और संगठन असम में जोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। असम में सोमवार से ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) समेत 30 संगठनों ने बंद की घोषणा की था। मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने संसद में इस विधेयक पर प्रदर्शन किया। असम के लोगों को डर है कि बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थी उनकी संस्कृति और भाषाई पहचान के लिए खतरा हो सकते हैं। दूसरी ओर, तृणमूल कॉन्ग्रेस ने इसे बाँटने वाली राजनीति बताया है। केन्द्रीय भाजपा मंत्री एस एस आहुलवालिया का कहना है कि यह विधेयक उन देशों के अल्पसंख्यकों के लिए लाया गया है जो बांग्लादेश, पश्चिमी पाकिस्तान से अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं। वहीं अक्सर साम्प्रदायिक और भड़काऊ बयान देने वाले एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक को संविधान के ख़िलाफ़ बताया है। उनका कहना है कि भारत में धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।
नागरिक संशोधन विधेयक: एक नज़र में टाइमलाइन
राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद से समझौता हुआ था कि 1971 के बाद असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों को निकाला जाएगा। 1985 के असम समझौते (‘आसू’ और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता) में नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च 1971 थी। नागरिकता बिल में इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है। यानी नए बिल के तहत 1971 के आधार वर्ष को बढ़ाकर 2014 कर दिया गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई शरणार्थियों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर नागरिकता मिल जाएगी।
ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य के अनुसार इस विधेयक से असम के स्थानीय समुदायों के अस्तित्व पर खतरा हो गया है। वे अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बन गए हैं। कैबिनेट द्वारा नागरकिता संशोधन बिल को मंजूरी देने से नाराज असम गण परिषद ने राज्य की एनडीए सरकार से अलग होने का ऐलान किया है।
यह संशोधन विधेयक 2016 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि ये विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा। इसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई हो।
नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। भाजपा ने 2014 के चुनावों में इसका वादा किया था। कॉन्ग्रेस, तृणमूल कॉन्ग्रेस, सीपीएम समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना और जेडीयू ने भी ऐलान किया था कि वह संसद में विधेयक का विरोध करेंगे। बिल का विरोध कर रहे बहुत से लोगों का कहना है कि यह धार्मिक स्तर पर लोगों को नागरिकता देगा। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी के अनुसार केंद्र के इस फैसले से करीब 30 लाख लोग प्रभावित होंगे। विरोध कर रही पार्टियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावनाओं के खिलाफ है।
नागरिकता बिल पर भाजपा का विज़न क्या हो सकता है?
राजनितिक क़यास कहीं न कहीं ये मान कर लगाए जा रहे हैं कि भाजपा द्वारा असम में नागरिकता बिल पारित करने के पीछे यहाँ पर अल्पसंख्यक समुदाय की बड़ी तादाद के साथ हिन्दू धर्म के नागरिकों को भी संरक्षण देने की मंशा है। हो सकता है कि ऐसे प्रस्ताव से असम को मुस्लिमों के एकाधिकार में आने से रोका जा सकेगा। कुछ लोगों का मानना है कि असम राज्य मेंमुस्लिम बड़ी राजनीतिक ताकत न बन सकें यह सुनिश्चित करने के लिए असम को अतिरिक्त हिन्दू आबादी की ज़रूरत है। असम में मुस्लिम आबादी 34% से ज्यादा है। इनमें से 85% मुस्लिम ऐसे हैं जो बाहर से आकर बसे हैं। ऐसे लोग ज्यादातर बांग्लादेशी हैं। पूर्वोत्तर में असम सरकार में मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा उन्हें ‘जिन्ना’ कह कर बुलाते हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, 1951 से असम की जनगणना के आंकड़ों बताते हैं कि यहाँ पर 1951-61 के दौरान हिंदू 33.71% और मुस्लिम 38.35% बढ़े। जबकि 1961 से 71 के बीच हिंदू 37.17% और मुस्लिम 30.99% बढ़े। 1971 से 1991 के बीच असम की जनसँख्या में हिंदू 41.89% और मुस्लिम 77.41% बढ़े (1981 में असम में जनगणना नहीं हुई थी)। 1991 से 2001 के दौरान हिन्दुओं की जनसंख्या में असम में वृद्धि नहीं हुई, जबकि मुस्लिम 29.30% बढ़े। इसके अलावा 2001 से 2011 के दौरान हिंदू 10.9% और मुस्लिम आबादी 29.59 बढ़ी। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के अंतिम ड्राफ्ट में असम में रह रहे 40 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। ड्राफ्ट में 2.89 करोड़ नाम हैं, जबकि आवेदन मात्र 3.29 करोड़ लोगों ने किया था।फिलहाल असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया जारी है।
अप्रैल 2018 में कुछ दंगाई नेताओं ने, जो खुद को दलितों के हिमायती बताते हैं, एक जातीय आग लगाई थी जिसकी भेंट 14 लोग चढ़ गए। व्हाट्सप्प पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST एक्ट पर दिए गए निर्देश को नेताओं ने यह कहकर फैलाया कि सरकार आरक्षण की व्यवस्था हटा रही है। उसके बाद जो जान-माल की हानि हुई वो सबके सामने है।
चूँकि आगजनी हुई, ग़रीब सब्ज़ीवालों के दुकान तोड़े गए, हिंसा चरम पर पहुँचकर 14 लोगों को लील गई, तो इस आंदोलन को मोदी-विरोधी नेताओं ने ‘सफल’ कहा। लेकिन कुछ ही दिनों में सच सामने आया और सरकार भी परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को नकार बैठी।
इस हिंसक आंदोलन से सीख लेकर अरविन्द केजरीवाल और जिग्नेश मवानी जैसे नेता फिर से जातीय हिंसा को हवा देने पर तुले हुए हैं। कल जब लोकसभा में संविधान संशोधन के ज़रिए सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण का विधेयक पास हो गया, और आज राज्य सभा में इस पर चर्चा हो रही है, तब ये दंगाई नेता इस तरह के बयान दे रहे हैं जिसका कोई सिर-पैर नहीं है।
फ़िलहाल जिग्नेश मेवानी का ट्वीट पढ़िए जिसमें वो, हमारी मुख्यधारा की मीडिया की तरह ‘विश्वस्त सूत्रों’ से बात करते हुए फ़र्ज़ी बात लिख रहे हैं:
“RSS के लोगों से बात हुई- भाजपा 10% ग़रीबों को आरक्षण क्यों दे रही है? जो पता चला वो बेहद ख़तरनाक है। RSS जाति आरक्षण के हमेशा से ख़िलाफ़ रही है। अभी पहले चरण में संविधान संशोधन करके आर्थिक आधार शुरू करेंगे। फिर SC, ST और OBC का सारा आरक्षण ख़त्म करके केवल आर्थिक आधार रखेंगे।”
RSS के लोगों से बात हुई- भाजपा 10% ग़रीबों को आरक्षण क्यों दे रही है? जो पता चला वो बेहद ख़तरनाक है। RSS जाति आरक्षण के हमेशा से ख़िलाफ़ रही है। अभी पहले चरण में संविधान संशोधन करके आर्थिक आधार शुरू करेंगे। फिर SC, ST और OBC का सारा आरक्षण ख़त्म करके केवल आर्थिक आधार रखेंगे
ज्योंहि ये ट्वीट आया, गैंग के टुटपुँजिए जीव दौड़ पड़े। इसी फ़र्ज़ी ख़बर फैलाने वाले इस गिरोह के सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने भी बता दिया की उन्होंने भी ‘कई लोगों’ से बात कर ली है। सुपरलेटिव विशेषणों का प्रयोग करना तो वो काफ़ी समय से जानते हैं, तो यहाँ भी ‘बेहद ख़तरनाक’ लिखते हुए उन्होंने जिग्नेश के ट्वीट को मेंशन करते हुए ट्वीट किया:
“मेरी कई लोगों से बात हुई। सब लोगों को लग रहा है कि भाजपा कि यही चाल है। बेहद ख़तरनाक।”
मेरी कई लोगों से बात हुई। सब लोगों को लग रहा है कि भाजपा कि यही चाल है।
ऐसा विश्लेषण और तार्किकता सिर्फ़ इनके ख़ुराफ़ाती दिमाग़ में ही आ सकती है जहाँ मोदी सरकार द्वारा इस बात को स्वीकारने पर कि सामान्य वर्ग में भी वंचित और ग़रीब हैं, इन्हें लगने लगता है कि आरक्षण ख़त्म कर दिया जाएगा। ट्वीट पढ़ने से एक ही बात समझ में आती है कि जिग्नेश अपनी कल्पना को यथार्थ मानते हुए बेबुनियाद आरोप मोदी पर मढ़कर भीमा कोरेगाँव या अप्रैल वाले जातीय दंगों की तरह कुछ नई आग लगाना चाहता है।
जब आरक्षण की बात हो रही हो तो बिहार को बर्बाद करनेवाली पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, कैसे पीछे रह जाती! लालू यादव की पार्टी ने फ़रमाया:
“सवर्ण पैदा हुए मोदी ने पहले गुजरात में अपनी जाति को पिछड़ा बनाया फिर 14 में खुद की जाति के नाम दलित पिछड़ों को मूर्ख बना कर खूब वोट लूटा! अब मोदी ने अपना असली मनुवादी जातिवादी रंग दिखा दिया! जिनमें सिर्फ 5% गरीब हैं उन्हें देश की आबादी का 10% आरक्षण में दे बहुजनों को लूट लिया!”
सवर्ण पैदा हुए मोदी ने पहले गुजरात में अपनी जाति को पिछड़ा बनाया फिर 14 में खुद की जाति के नाम दलित पिछड़ों को मूर्ख बना कर खूब वोट लूटा!
अब मोदी ने अपना असली मनुवादी जातिवादी रंग दिखा दिया! जिनमें सिर्फ 5% गरीब हैं उन्हें देश की आबादी का 10% आरक्षण में दे बहुजनों को लूट लिया!
राजद ने इस पूरे मसले में अलग स्तर की जासूसी कर दी कि सवर्णों में 5% ही ग़रीब हैं और आरक्षण 10% को दे दिया गया है। ये क्वांटम लेवल का कैलकुलेशन है जिसका गणित सिर्फ़ लालू यादव या उनकी पार्टी ही जानती है कि इस 10% को जब 50% के ऊपर रखा गया है तो बहुजन कैसे लुट गए?
चुनाव आ रहे हैं और इस तरह की अफ़वाहें अब आम हो जाएँगी। वैसे भी आदत से मज़बूर लोग हर बात में जातिवाद, मनुवाद और तमाम वाद ले आते हैं और फिर इन वादों का वाद्य बजाते रहते हैं। केजरीवाल और इनके गिरोह की पूरी कोशिश रहती है कि ऐसे अफ़वाह फैलाकर अपने मतलब की बात करें। बिहार चुनावों के समय भी इन्होंने यही काण्ड किया था और अफ़वाह उड़ाई थी की भाजपा आरक्षण के विरोध में हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज महाराष्ट्र के सोलापुर पहुँचे जहाँ उन्होंने कई विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखी और साथ ही एक विशाल जनसभा को भी सम्बोधित किया। इस दौरान पीएम ने नागरिकता संशोधन विधेयक और सामन्य वर्ग के गरीब लोगों को आरक्षण देने संबंधी निर्णय पर भी अपनी बात रखी। इस से पहले पीएम ने 3,168 करोड़ रुपयों के मूल्य की ढांचागत और आवासीय परियोजनाओं का उद्घाटन किया। पीएम ने 1,811 करोड़ रुपए की आवासीय परियोजनाओं का शुभारम्भ किया जिसके अंतर्गत लोगों को करीब तीस हज़ार मकान उपलब्ध कराए जाने हैं।
मोदी ने महाराष्ट्र के पश्चिमी शहर सोलापुर में एक भूमिगत सीवरेज प्रणाली और तीन सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्रों की भी शुरुआत की। इसके अलावे उन्होंने सोलापुर स्मार्ट सिटी इलाके में एक जलापूर्ति और सीवेज प्रणाली की आधारशिला भी रखी। इस से वहाँ की आम जनता को बड़े फायदे मिलने की उम्मीद है। इस से शहर की जलापूर्ति में भी सुधार आएगा। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 211 (नया राष्ट्रीय राजमार्ग 52) पर सोलापुर (तुलजापुर) उस्मानाबाद खंड में चार लेन के सड़क मार्ग का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर आम जनता को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आरक्षण को लेकर विपक्षी दलों द्वारा जनता को गुमराह करने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कल रात को लोकसभा में पास हुआ सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने वाला बिल ऐतिहासिक है। पीएम ने इसे अपने नारे ‘सबका साथ-सबका विकास’ से जोड़ कर देखने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि इसी तंत्र को मजबूत करने के लिए ये विधेयक लाया गया है।
नागरिकता संशोधन बिल पर बोलते हुए पीएम ने कहा, “पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आये माँ भारती के बेटे-बेटियों को, भारत माता की जय बोलने वालों को भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ़ हुआ है। उन्होंने कहा कि ये लोग हमारे भाई-बहन हैं और इन्हे भारत माँ के आँचल में जगह देने का रास्ता साफ़ किया गया है।”
इंफ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अपनी सरकार द्वारा किये गए बड़े कार्यों का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि सबसे बड़ा पुल हो, सबसे बड़ी सुरंग हो, सबसे बड़े एक्सप्रेसवे हों, सब इसी सरकार में या तो बन चुके हैं या फिर काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि इन प्रोजेक्ट्स के बड़े होने से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका लोकेशन है क्योंकि ये सभी ऐसी जगहों पर बन रहे हैं या बन गए हैं जहाँ की परिस्थितियाँ पहले काफ़ी मुश्किल थी।
आवासीय योजनाओं के बारे में पीएम ने लोगों को जानकारी देते हुए कहा कि आज गरीब, कामगार परिवारों के 30 हज़ार घरों के प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास यहां हुआ है। उन्होंने बताया:
“इसके जो लाभार्थी हैं वो कारखानों में काम करते हैं, रिक्शा, ऑटो चलाते हैं, ठेले पर काम करते हैं। मैं आप सभी को विश्वास दिलाता हूं कि बहुत जल्द आपके हाथों में आपके अपने घर की चाबी होगी।”
कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में शामिल बिचौलिए मिशेल का नाम लेते हुए अख़बारों के हवाले से कहा कि वो सिर्फ इसी घोटाले में शामिल नहीं था बल्कि पहले की सरकार के समय फ़्रांस से लड़ाकू विमान का जो सौदा किया जा रहा था, उसमें भी उसकी भूमिका थी। उन्होंने सवाल दागा कि कहीं वो डील भी मिशेल ‘मामा’ के कारण ही तो नहीं रुक गई थी? उन्होंने कहा कि जाँच एजेंसियों के साथ-साथ देश की जनता भी इन बातों का जवाब ढूंढ रही है।
प्रधानमंत्री अगस्त 2014 के बाद दूसरी बार सोलापुर के दौरे पर हैं। रैली के मद्देनजर चार हज़ार पुलिसकर्मियों, 10 आईपीएस अधिकारियों और अर्धसैनिक बलों की कई कंपनियों को तैनात किया गया था। वहाँ प्रधानमंत्री की रैली को लेकर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रधानमंत्री का स्वागत किया। गडकरी ने कहा कि पिछले साढ़े चार सालों में पीएम मोदी के नेतृत्व में महाराष्ट्र के विकास को नई रफ़्तार दी गई है।
ईरान में चाबहार के बाद अब म्यांमार में भी भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट चालू हो चुका है जिसके बाद दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक एवं व्यापारिक साख़ मज़बूत होनी निश्चित है। इसे चीन के बेल्ट एन्ड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
राज्य सभा में केंद्रीय राज्यमंत्री मनसुख मंडविया ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि म्यांमार में भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट अब काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। ध्यातव्य है कि सित्वे पोर्ट का निर्माण कालादान मल्टी मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के अंतर्गत हुआ है जिसके बहुआयामी उद्देश्य हैं।
कालादान प्रोजेक्ट भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों और कलकत्ता को म्यांमार के रखाइन और चिन राज्यों से जल तथा भूमि मार्ग से जोड़ने के लिए 2008 में प्रारंभ किया गया था। भारत ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर लगभग ₹3170 करोड़ का निवेश किया है जिसमें से सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में अंतर्देशीय जलमार्ग पर लगभग ₹517 करोड़ व्यय हुए हैं।
भारत और म्यांमार ने 22 अक्टूबर 2018 को सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में जलमार्ग के संचालन हेतु एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान में चाबहार के साथ म्यांमार में सित्वे पोर्ट का संचालन प्रारंभ होने से यह पहली बार होगा जब भारत अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर किसी पोर्ट पर कार्य करेगा।
भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अंतर्गत सित्वे पोर्ट चालू होने से दक्षिण एशिया में व्यापारिक प्रभुत्व तथा शक्ति संतुलन के आयामों में भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखा जाएगा। सैन्य, सुरक्षा एवं रणनीतिक पक्ष देखें जाएँ तो साढ़े चार वर्ष पूर्व प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चीन म्यांमार को अपना ‘दूसरा तट’ बनाने की योजना बना रहा था।
भारतीय महासागर को घेरने की चीन की तथाकथित ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ रणनीति का एक मोती सित्वे पोर्ट भी था। इंस्टिट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज़ एंड एनालिसिस में प्रकाशित नम्रता गोस्वामी की रिपोर्ट के अनुसार अंडमान सागर में चीन सिगनल इंटेलिजेंस एकत्र करने के उपकरण लगा रहा था जिससे भारत की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके।
चीन ने कालादान परियोजना को बाधित करने के भरसक प्रयास किए थे। यदि चीन म्यांमार स्थित सित्वे पोर्ट पर अपना अधिकार स्थापित कर लेता तो बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना को अपनी प्रभावी क्षमता पुनः प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता। चीन ने म्यांमार के आतंकी गुटों से भी सम्पर्क स्थापित किए थे ताकि उन्हें बांग्लादेश और म्यांमार के मार्ग से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में घुसपैठ कराया जा सके।
सित्वे पोर्ट चालू होने से भारत और म्यांमार के मध्य सांस्कृतिक संबंध भी प्रगाढ़ होंगे। एक समय में तत्कालीन बर्मा के राजा मनुस्मृति के अनुसार राजकाज चलाते थे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी बर्मा में रह रहे भारतीयों ने सहयोग किया था। दोनों देशों के मध्य नागरिक संबंध और मजबूत करने के लिए भारत सरकार मिज़ोरम-म्यांमार कालादान सड़क भी बना रही है जिसमें ₹1,600 करोड़ निवेश किए गए हैं।
गत वर्ष 2018 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने म्यांमार सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जिसके बाद मणिपुर और मिज़ोरम से भारतीय नागरिक अपना वैध पासपोर्ट दिखाकर सीमापार जा सकेंगे।
वर्ल्ड बैंक ने हाल में एक रिपोर्ट ज़ारी करके भारत को दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बताया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 वित्तीय वर्ष में भारत का विकास दर 7.3% रहने की संभावना है। वर्ल्ड बैंक की मानें तो 2018-19 के दौरान देश की जीडीपी 7.3% के दर से बढ़ेगी। वहीं, अगले दो साल में देश की जीडीपी 7.5% तक पहुँच जाएगी। इस रिपोर्ट में इस बात की भी चर्चा है कि देश की अर्थव्यवस्था इसी रफ़्तार से आगे बढ़ती रही तो अपने आजादी के 100 साल पूरा होने से पहले 2,030 तक भारत उच्च-मध्यवर्गीय आया वाला देश बन जाएगा।
भारत की स्थिति चीन से बेहतर
वर्ल्ड बैंक ने अपने रिपोर्ट में यह दावा किया है कि आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था पड़ोसी देश चीन से बेहतर स्थिति में होगी। विश्व बैंक के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में चीन की विकास दर 6.2% रहने की संभावना है। यही नहीं 2021 में चीन की विकास दर 2019-20 की तुलना में 0.2% के दर से घटकर महज 6% रह जाएगी। वर्ल्ड बैंक के इस डेटा के हवाले हम कह सकते हैं कि आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था चीन से बेहतर और मज़बूत स्थिति में होगी।
नोटबंदी-जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था को मिला फ़ायदा
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में नोटबंदी और जीएसटी का भी ज़िक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के कारण अस्थाई मंदी के बाद देश की अर्थव्यस्था में आश्चर्यजनक वृद्धि हो रही है। वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट ने नोटबंदी पर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों को गलत साबित किया है। यही नहीं अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मोदी सरकार द्वारा जो साहसी कदम उठाया गया, उस सराहनीय प्रयास के परिणाम की एक झलक वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट में देखने को मिल रही है।
कृषि व विनिर्माण क्षेत्र में सुधार
वर्ल्ड बैंक के रिपोर्ट से पहले केंन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने एक रिपोर्ट जारी करके वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश की जीडीपी 7.2% रहने की संभावना ज़ाहिर की है। जीडीपी में वृद्धि के लिए सीएसओ ने कृषि व विनिर्माण क्षेत्र को सराहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कृषि व विनिर्माण सेक्टर में अच्छे प्रदर्शन की वजह से 2017-18 की तुलना में 2018-19 में जीडीपी में वृद्धि हुई है।
रायसीना संवाद में पैनल चर्चा के दौरान बिपिन रावत सोशल मीडिया की तरफ़ ध्यान खींचते हुए कहा कि हमें सोशल मीडिया पर नियंत्रण पाने की जरूरत है, क्योंकि सोशल मीडिया के ज़रिए ही आज के समय में सबसे ज़्यादा कट्टरता फैलाई जा रही है।
उनका कहना था कि तरह-तरह की कट्टरता के प्रमाण हमें भारत के कई जगहों पर और जम्मू-कश्मीर में देखने को मिल सकते हैं। आज का युवा झूठी खबरों की वज़ह से, दुष्प्रचार के कारण और कई धार्मिक बातों को गलत बताकर बरगलाए जाने के कारण कट्टरता का शिकार होता जा रहा है, इसलिए हम देखते हैं कि आतंकवाद का हिस्सा सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे युवा बन रहे हैं।
आतंकवाद को युद्ध का एक नया रूप बताते हुए आर्मी चीफ़ जनरल बिपिन रावत ने बुधवार को कहा कि हमारे ऊपर आतंकवाद का खतरा ठीक उसी तरह बढ़ रहा है जैसे दसमुखी रावण का सिर (Multi-headed monster) और ये तब तक बढ़ता ही रहेगा जब तक देश इसे ‘स्टेट पॉलिसी’ की तरह इस्तेमाल करते रहेंगे। उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ़ था। बिना पाकिस्तान का नाम लेते हुए आर्मी चीफ जनरल ने कहा कि आतंकवाद तब तक बना ही रहेगा जब तक देश इसे अपनी नीतियों का हिस्सा बनाते रहेंगे।
आगे उन्होंने कहा कि आतंकवाद एक नए तरह के युद्ध के रूप में उभरा है। कमज़ोर समुदाय आज के समय में अपने प्रतिनिधि के रूप में आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं, ताकि वो दूसरे देशों पर दबाव बना सकें। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आतंकवाद की इस प्रक्रिया को उन्होंने कहा कि ये ख़तरा अपने सर उसी तरह पसार रहा है जैसे कोई अनेक सर वाला दानव हो।
अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया पर उन्होंने कहा कि तालिबान के साथ बातचीत ज़रूर होनी चाहिए, लेकिन बिना किसी शर्त के। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पाकिस्तान हमेशा से ही तालिबान को अपने आँगन में जगह देता आया है ऐसे में हमें चिंताशील रहना चाहिए।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जारी किए गए नवीनतम अनुमानों के अनुसार एक भारतीय नागरिक की औसत प्रति व्यक्ति आय, नरेंद्र मोदी सरकार के पहले चार वर्षों में 45 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है।
साथ ही, 2011-12 से 2018-19 के बीच, सात वर्षों में प्रति व्यक्ति औसत आय दोगुनी हो गई है। पहले यही आय प्रति वर्ष 63,642 रुपए थी जो कि बाद में बढ़कर 1.25 लाख रुपए हो गई।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार 2018-19 के दौरान प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय अनुमानित रूप से 11.1 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1,25,397 रुपए है, जो 2017-18 के दौरान 8.6 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ 1,12,835 रुपए थी।
हालाँकि, 2018-19 के दौरान, वास्तविक रूप से प्रति व्यक्ति आय (2011-12 की कीमतों में) 91,921 रुपए के स्तर को छूने की संभावना है। वास्तविक प्रति व्यक्ति आय का आँकड़ा मुद्रास्फीति की कटौती के बाद प्राप्त होता है।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2014-15 और 2016-17 के बीच भारत की प्रति व्यक्ति आय वृद्धि भूटान, नेपाल, चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे उसके पड़ोसियों की तुलना में कम थी। भारत केवल श्रीलंका से आगे था।
कॉन्ग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर के अपने नये साल की शुरुआत एक ट्रोल से हुई। इस ट्रोल के पीछे उनका वो साक्षात्कार था जो उन्होंने Gulfnews को दिया। बता दें कि इस साक्षात्कार में वो कुछ ऐसा कह गए जिससे उनके झूठ का पर्दाफ़ाश हो गया।
साल 2015 में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के 57 दिनों के रहस्यमय अवकाश को ‘विपश्यना’ के रूप में संदर्भित करने के अलावा, थरूर को भारत में गाय संबंधी हिंसा के बारे में झूठ बोलते हुए भी पकड़ा गया था।
पत्रकार और आदत से लाचार ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी ने लिया था साक्षात्कार
ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी द्वारा लिए गए इस साक्षात्कार में शशि थरूर को यह दावा करते पाया गया कि साल 2014 के बाद से स्वतंत्र भारत में गाय के प्रति 97% हिंसा हुई। जिसके लिए इस जानकारी का स्रोत वो गृहमंत्री राजनाथ सिंह के गृह मंत्रालय को मानते थे।
‘97%’ से संबंधित यह संदिग्ध डेटा पुलिस रिकॉर्ड को देखकर नहीं, बल्कि कुछ कीवर्ड के साथ Google पर सर्च करने पर संकलित किया गया था! इससे भी बदतर तो यह था कि उन्होंने केवल अंग्रेज़ी भाषा के मीडिया से चिपके रहने का फ़ैसला किया और यह कहते हुए गर्व महसूस किया कि हिंदी मीडिया के माध्यम से एक “सरसरी निगाह” के ज़रिये उन्हीं घटनाओं को दिखाने के लिए “प्रदर्शित” किया गया।
बीबीसी और न्यूयॉर्क टाइम्स को भी मिली फ़र्ज़ी जानकारी
मुख्यधारा की मीडिया द्वारा तीव्र गति से इस फ़ेक न्यूज़ को चर्चित किया गया और जल्द ही बीबीसी एवं न्यूयॉर्क टाइम्स सहित कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को भी इसकी सूचना दी गई। हमने 2014 के चुनावों से पहले गाय से संबंधित अपराधों की कमी पर IndiaSpend की फ़र्जी रिपोर्ट को व्यवस्थित रूप से ध्वस्त कर दिया था।
थरूर का दूसरा दावा था कि यह जानकारी राजनाथ सिंह के गृह मंत्रालय द्वारा दी गई, जो कि पूरी तरह से ग़लत साबित हुआ। वास्तव में, IndiaSpend की बहुत-सी रिपोर्ट जिसमें इसे विचित्र और तथ्यात्मक रूप से ग़लत दावे का उल्लेख किया गया, गलत ही है क्योंकि गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो गाय संबंधी अपराध रिकॉर्ड एकत्र नहीं करता।
इसलिए, न केवल एक कॉन्ग्रेस नेता (कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा) ने झूठ बोला, बल्कि भ्रम पैदा करने वाले इस आँकड़े को साक्षात्कारकर्ता स्वाति चतुर्वेदी द्वारा ठीक भी नहीं किया गया, जो कि निंदनीय है।
कॉन्ग्रेस के पास BJP को बदनाम करने के अलावा कोई काम नहीं
आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब शशि थरूर या स्वाति चतुर्वेदी द्वारा झूठ बोला गया हो, ये इससे पहले भी ऐसे भ्रामक काम करते रहे हैं।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को ढाल देने की अपनी कोशिश में, शशि थरूर ने फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के साक्षात्कार के बारे में भी झूठ बोला था। उन्होंने मोदी सरकार पर हमला करने के लिए एक इस्लामवादी वेबसाइट से एक फ़र्जी ख़बर भी साझा की थी।
साहित्यिक चोरी की आरोपित स्वाति चतुर्वेदी नियमित रूप से फ़र्जी ख़बरें फैलाने का काम करती हैं। कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता द्वारा एक के बाद एक इस तरह के झूठे दावे ये साबित करते हैं कि जैसे पार्टी के आलाकमान के पास मोदी सरकार को बदनाम करने के अलावा और कोई काम न हो।
सबसे खतरनाक वो लोग हैं जिनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं होता है। अपने दोषपूर्ण आँकड़ों और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग, जिसे कि समय-समय पर एक्सपोज़ किया जा चुका है, IndiaSpend के पास शायद ही कोई विश्वसनीयता बाकी रह गई है। जो कि उन्हें एक खतरनाक एजेंडा फ़ैलाने वाला प्लेटफॉर्म साबित करता है।
अपनी नवीनतम रिपोर्ट में ‘स्वराज्य’ ने उनके ‘भ्रामक और सेलेक्टिव रिपोर्टिंग’ के माध्यम से अपने ‘Hate Crime Watch’ लिस्ट में पीड़ित मुस्लिमों की संख्या को बढ़ाकर दिखाने के, उनके एक और प्रयास को एक्स्पोज़ किया है।
अक्टूबर 2018 में, दक्षिण दिल्ली में रहने वाले आठ साल के अज़ीम की खेल के मैदान में हाथापाई के दौरान मृत्यु हो गयी थी। ‘लिबरल्स’ ने उसकी मृत्यु को पुलिस के नकारने के बाद भी ‘घृणा-जन्य अपराध’ साबित कर दिया था। इस घटना के एक महीने बाद, उसी स्थान पर एक दूसरी घटना में मस्जिद जाने वाले लोगों ने दावा किया कि लोगों ने उनपर पत्थरबाज़ी की। IndiaSpend के अनुसार यह घृणा-जन्य अपराध है।
सच्चाई IndiaSpend के दावे से बहुत अलग है। स्वराज्य की रिपोर्ट के अनुसार, ऊपर दी गई रिपोर्ट में वर्णित दोनों युगल, मुमताज़ तथा उसकी पत्नी शबाना और लियाक़त तथा उसकी पत्नी सरोज की आपस में लड़ाई हुई और उन्होंने एक-दूसरे को घायल कर दिया। निश्चित है कि यहाँ पर पीड़ित ही अपराधी हैं और अपराधी ही पीड़ित भी हैं। इसे वास्तव में किसी दूसरी तरह से पेश नहीं किया जा सकता है।
हौज़ ख़ास के नज़दीक बेगमपुर में ही दक्षिण दिल्ली का सबसे बड़ा मदरसा स्थित है। यहाँ पर स्थित जामिया फरीदिया और जामा मस्जिद वाल्मीकि समाज की झुग्गियों से घिरी हुई है, जहाँ लगभग वाल्मीकि समाज (अनुसूचित जाति) के 500 परिवार और लगभग 20-25 मुस्लिम परिवार रहते हैं। इसके पास ही एक मैदान है, जिसे लोग सार्वजनिक बताते हैं और मदरसा इसे अपनी जमीन बताता है। इन दोनों समुदायों के बीच तनाव का यह एक प्रमुख कारण है। इस मामले में पुलिस ने हताक्षेप किया और विवादास्पद प्रवेश को स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया, साथ ही निवास करने वालों के लिए एक अलग रास्ता बनाया गया।
नवम्बर के आख़िरी सप्ताह में स्थानीय निवासी और मदरसा के मालिकों के बीच एक दूसरा विवाद सामने आया। IndiaSpend ने अपने कहानी बनाने के आदतानुसार, इंस्पेक्टर विजय सिंह के बयान को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से उठाकर अपना विशेष कलेवर दे दिया।
इंस्पेक्टर विजय सिंह ने कहा, “मुमताज़ और उसकी पत्नी शबाना, लियाक़त और उसकी पत्नी सरोज और उसकी बेटियों को कुछ मामूली चोटें आई हैं, और उन्हें अस्पताल पहुँचा दिया गया है। झगड़े की वजह एक आम रास्ता है।” IndiaSpend ने इस घटना से सुविधानुसार चारों को पीड़ित तो बता दिया, लेकिन यह नहीं बताया कि झगड़े की वज़ह एक आम रास्ता है।
स्वराज्य की रिपोर्ट के अनुसार, लियाक़त अली और उसकी पत्नी शबाना (दूसरा नाम सरोज) वाल्मीकि कॉलोनी में रहते हैं। मोहम्मद मुमताज़ मदरसा में शिक्षक और संरक्षक है। मूलरूप से विवाद इन दोनों के बीच का ही है।
वाल्मीकि कॉलोनी के निवासियों के अनुसार, कुछ महिलाएँ निर्माणाधीन नए रास्ते की जानकारी लेने गई थीं। वहाँ पर इन दोनों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया और मदरसा संरक्षक मुमताज़ ने उन पर लाठी से हमला कर दिया। लियाक़त के अनुसार, उसे मोहम्मद मुमताज़ के हाथों से चोट लगी, जब वो महिला और खुदको बचाने के लिए आगे आया। लियाक़त ने कहा, “मुल्ला महिला पर हमला कर रहा था। जब मैंने बीच-बचाव की कोशिश की तो उन्होंने मुझे ये कहकर मारा कि मैं हिन्दुओं के साथ खड़ा रहता हूँ, इसलिए मेरी पिटाई ज़रूर की जानी चाहिए।”
लियाक़त ने आगे कहा कि वो मदरसे के पक्ष में सिर्फ इसलिए खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि उनका एक ही धर्म है। उसने कहा कि वो सिर्फ अपने पड़ोसियों और सही लोगों का ही साथ देगा।
This is same place where 8-yr-old madrassa boy Azeem died in scuffle with minors from colony
In subsequent tweets, will post video statements by “victims”.
This is Shabnam Ali aka Saroj, who told me it’s all about the madrassa encroaching public land (details in report)
Here she’s saying Mumtaz is popularising her as Hindu using her other name to make it a religious issue and get away with encroachment pic.twitter.com/onyIhDOZ83
लियाक़त ने अपने कथन में आगे कहा कि उसकी पत्नी शबनम भी घटनास्थल पर पहुँची और उसे भी पीटा गया। शबनम ने बताया की उनकी 13 साल की लड़की को भी ज़ख़्मी किया गया।
शबनम उसी कॉलोनी में पली-बढ़ी है और उसका कहना है कि 30 साल पहले ये कुछ परिवारों के लिए ही सिर्फ एक छोटी सी मस्जिद हुआ करती थी। लेकिन समय के साथ इसका अवैध तरीके से एक मदरसे के रूप में विस्तार किया गया, जिसमें 40 कमरे हैं।
वर्तमान में, इस मदरसे का भी अपनी ही अलग स्वरुप है। मुमताज़ और उसका भाई इजाज़ अली, जो कि मदरसे में पढ़ाते हैं और उसका संरक्षण भी करते हैं, का दावा है कि झगड़ा लियाक़त और उसकी पत्नी द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने उन पर पथराव किया था। मुमताज़ का कहना है कि क्योंकि उन्होंने मुमताज़ को गुंडा और आतंकवादी कहा था, इसीलिए उसने छड़ी उठाई थी (लेकिन किसी पर उससे हमला नहीं किया था)। ये लोग वहाँ पर भड़काने और लड़ने के लिए गए थे, न कि रास्ते का काम देखने।
मुमताज़ ने आगे जोड़ा कि यहाँ पर मस्जिद विवादित जगह पर वाल्मीकि समाज के लोगों के आने से पहले से थी। उसने एक क़ब्रिस्तान भी दिखाया और दावा किया कि पूरी ज़मीन कब्रिस्तान हुआ करती थी और उन्होंने ही बाद में आकर झुग्गियाँ बनाकर जमीन पर अतिक्रमण किया।
दोनों समूह नए रास्ते के तैयार हो जाने के बाद दावा कर रहे हैं कि मामला समाप्त हो गया है। लेकिन जमीन विवाद के थमने के अभी आसार नहीं हैं।
ज़ुबैर, वाल्मीकि कॉलोनी के दूसरे निवासी, मदरसे द्वारा रास्ता रोककर सार्वजनिक ज़मीन के हड़पे जाने के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट चले गए हैं। मुमताज़ का कहना है कि ज़ुबैर ही है जिसने इलाके में हिन्दू-मुस्लिम तनाव को हवा दी और वास्तव में वो खुद मदरसे की जमीन में हस्तक्षेप चाहता था।
इस मामले से अब तक ये तो स्पष्ट है कि विवाद की वजह ज़मीन है, न कि घृणा-जन्य अपराध। स्पष्ट रूप से, अपराध पीड़ितों की धार्मिक और जाति जैसे मुद्दों से पैदा नहीं हुआ था। सवाल ये है कि IndiaSpend लगातार अपनी आदतानुसार किस कारण फ़र्ज़ी ख़बरों को तैयार कर रहा है? ऐसा प्रतीत होता है कि अब IndiaSpend अपने हिन्दू-विरोधी पूर्वग्रहों को छुपाने तक की भी कोशिश नहीं कर रहा है।
यह एकमात्र वाकया नहीं है जब प्रोपगेंडा वेबसाइटों ने अपने कथित विश्लेषण में हिंदू-विरोधी पूर्वग्रह को दिखाया है। हमने पहले भी रिपोर्ट में बताया है किस तरह हिन्दुतान टाइम्स ने भी एक पक्षपातपूर्ण ‘हेट ट्रेकर’ जारी किया था, जिसमें इसी तरह से तथ्यों में त्रुटि और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग मौजूद थी। IndiaSpend की ‘फैक्ट-चेकर’ वेबसाईट ने भी एक ‘ट्रेकर’ शुरू किया था, जिसने गाय से सम्बंधित अपराधों पर नज़र रखने की कोशिश की थी, उसमें दिया गया डेटा भी त्रुटिपूर्ण और पक्षपाती था।
अभिषेक बनर्जी ने, जो कि Opindia पर कॉलम लिखते हैं, IndiaSpend के बारे में पहले भी लिखा है कि किस तरह IndiaSpend रोजाना इस तरह की कहानी को बनाने में मशगूल रहता है। उन्होंने पहले भी एक रिपोर्ट लिखी है कि किस तरह से एक गाय से सम्बंधित हिंसा में 87 लोग मारे गए, जिनमें से 97 प्रतिशत अपराध नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए हैं। ऊपर दी गई रिपोर्ट उसी एक रिपोर्ट का चित्रण है। जैसा कि देखा जा सकता है, उनकी ‘रिसर्च’ गूगल सर्च भी कुछ विशेष ‘कीवर्ड्स’ पर आधारित थी। पाठकों को यह भी मालूम होना चाहिए कि Indiaspend का संस्थापक ट्रस्टी, factchecker.in का मूल ऑर्गनाइजेशन, अब कॉन्ग्रेस पार्टी में डेटा अनालिस्ट प्रमुख बन चुके हैं। क्या हमें इन कड़ियों को जोड़ना चाहिए?