Wednesday, November 6, 2024
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कॉन्ग्रेस ने सत्ता में बने रहने के लिए संविधान के साथ खिलवाड़ किया?

25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण के दौरान डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा “अध्यक्ष महोदय किसी देश का संविधान कितना अच्छा या बुरा है, यह सिर्फ संविधान की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है। किसी देश का संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसके अनुसरण करने वाले लोग बुरे हो जाएँ।”

इस ऐतिहासिक भाषण के दौरान डॉ अंबेडकर ने जो कुछ भी कहा देश की आजादी के बाद आम जनता को वैसा ही कुछ देखने और सुनने को मिला। आजादी के बाद देश की बागडोर कांग्रेस पार्टी के हाथों में चली गई।

कांग्रेस सरकार ने सत्ता में बने रहने के लिए संविधान को औजार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसके बाद कईयों बार जनता के मौलिक अधिकार को कुचला गया। यही नहीं वक्त पड़ने पर संविधान की मूल आत्मा को भी नजरअंदाज कर दिया गया। आम जनता को कईयों बार अपने मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़े।

आजादी के बाद देश की भोली-भाली जनता को संविधान के बारे में बताकर सही मायने में संविधान को सार्थक बनाने का प्रयास सत्ता में काबिज कांग्रेस पार्टी के नेता नेहरू हो या शास्त्री किसी ने भी नहीं किया। 

समाजवादी नीति के लिए संविधान संशोधन

यह जरूरी नहीं है कि संविधान का संशोधन सिर्फ जनता के हितों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है। कई बार सरकारें विचारधारा के आधार पर अपने फायदे के लिए जो फैसला लेती है, उसके रास्ते की रूकावटों को दूर करने के लिए भी संविधान का संशोधन करती है। उदाहरण के लिए संविधान लागू होने के पहले ही साल 1951 में नेहरू सरकार ने संविधान में पहला संशोधन कर दिया। इस संशोधन के जरिये नेहरू ने स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यवहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया। यही नहीं इस संशोधन में नेहरू सरकार द्वारा पहली बार आम लोगों के अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर उचित प्रतिबंध की व्यवस्था भी की गई। नेहरू के इस फैसले का श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध किया था।

दरअसल कोर्ट ने नेहरू सरकार के जमींदारी उन्मूलन कार्यक्रम में मौलिक अधिकारों का हनन बताकर सरकार के फैसले को अस्वीकार कर दिया था। कोर्ट के मुताबिक नेहरू सरकार अपने फैसले को जिस तरह से लागू करना चाहती थी, उससे संविधान में दर्ज आर्टिकल 19 व 31 के तहत लोगों के मौलिक अधिकारों की अवहेलना होती। क्योंकि इस समय संपत्ति के अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों में शामिल थे। इस तरह कोर्ट द्वारा सरकार के खिलाफ सुनाए गए फैसले के बाद नेहरू सरकार ने अपने रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए संविधान में संशोधन किया। इस संशोधन के जरिये संविधान के 9वें शेड्यूल का फायदा उठाकर नेहरू ने आमलोगों से सरकार के खिलाफ कोर्ट जाने के अधिकार को छीन लिया। इस तरह अधिकारों के हनन होने की स्थिति में भी सरकार के खिलाफ न्यायिक समीक्षा का रास्ता बंद कर दिया गया।

1951 में मुख्यमंत्रियों को भेजे गए एक पत्र में नेहरू ने लिखा कि संविधान के मुताबिक न्यायपालिका की भूमिका चुनौती देने से बाहर है। लेकिन अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए। नेहरू ने सत्ता में आने के बाद सत्ता में बने रहने के लिए पत्र में लिखे बातों का अक्षरशः पालन करते हुए संविधान को हथियार के रूप में ही इस्तेमाल किया। नेहरू के इस फैसले ने न सिर्फ गलत मिसाल पेश की बल्कि इसने संविधान में नई अनुसूची को भी जन्म दिया।

तब नेहरू के इस फैसले का विरोध करते हुए एसपी मुखर्जी ने कहा था कि देश के संविधान के साथ रद्दी काग़ज़ जैसा व्यवहार किया जा रहा है। इस संशोधन के तीन साल बाद 1954 में एक बार फिर अपनी विचारधारा की सनक पर आधारित विकास मॉडल को जमीन देने के लिए नेहरू ने संविधान में चौथा संशोधन कर दिया। इस बार सरकार की कोशिश इस बात की थी कि अगर सरकार निजी संपत्तियों का अधिग्रहण करती है, तो मुआवजे को लेकर सरकार से सवाल पूछने का कोई हक कोर्ट के पास नहीं हो।

इस तरह एक बार फिर नेहरू सरकार ने न्यायपालिका के अधिकार को कम कर दिया। नेहरू ने संविधान में संशोधन के जरिये लोगों के मौलिक अधिकारों को कम करने की एक गलत परिपाटी शुरू की। इसका बुरा परिणाम यह हुआ कि आगे आने वाले समय में कई सरकारों ने संविधान संशोधन के जरिये न्यायपालिका समेत आम लोगों के अधिकारों को कम करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप 1973 में केशवानंद केस में 13 जजों की बेंच ने नेहरू और बाद में इंदिरा सरकार के फैसलों को एक तरह से गलत साबित कर दिया। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई भी सरकार संविधान के मौलिक स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं कर सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में कोर्ट को न्यायिक समीक्षा करने से भी कोई नहीं रोक सकता है।

क्या आप जानते हैं ?

दुनिया भर के दूसरे देशों की तुलना में भारतीय संविधान का आकार काफी बड़ा है। वर्तमान समय में हमारे देश का संविधान 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 22 भागों में विभाजित है। इतनी सारी चीजों को एक साथ अपने अंदर समेटने की वजह से आमलोगों के लिए संविधान को समझ पाना बेहद जटिल हो गया है। इस जटिलता की वजह से ही संविधान को वकीलों का स्वर्ग भी कहा जाता है। जटिलता का फायदा उठाकर कई बार सरकारें अपने फायदे के लिए संविधान संशोधन कर देती है। लेकिन इस संशोधन के बाद जनता के हिस्से में क्या आया? यह न तो जनता जानना चाहती है और न ही सरकार बताना चाहती है। जनता के संवैधानिक अधिकारों के साथ छलावा न हो इसके लिए पहली बार नरेंन्द्र मोदी की सरकार ने 26 नवंबर 2015 से देश भर में संविधान दिवस मनाने का फैसला किया। संविधान दिवस मनाने का मकसद नागरिकों में संविधान के प्रति जागरूकता पैदा करना है।

वो पाँच संशोधन जिसने संविधान को नेस्तनाबूद कर दिया

नेहरू ने संविधान संशोधन के जरिये न्यायपालिका के अधिकारों क सीमित करने की शुरूआत की। लेकिन इस मामले में इंदिरा गाँधी अपने पिता से भी आगे निकल गयीं। राम मनोहर लोहिया ने जिस इंदिरा के लिए कई बार ‘गूंगी गुड़िया’ शब्द इस्तेमाल किया, उस इंदिरा ने संविधान के पांच कानून को बदलकर ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ को ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा’ बना दिया।

1975 में जयप्रकाश नरायण के नेतृत्व में इंदिरा के खिलाफ लोग सड़क पर आ गए। ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा देश भर में गूँजने लगा। इसी समय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा के चुनाव को गलत बताते हुए रद्द कर दिया। फिर क्या था देश में 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित कर दिया। यही नहीं 22 जुलाई 1975 को संविधान का 38वाँ संशोधन करके आपातकाल पर न्यायिक समीक्षा का रास्ता बंद कर दिया। सत्ता में बने रहने के लिए इतना ही नहीं किया, बल्कि आगे चलकर प्रधानमंत्री पद पर खुद को बनाए रखने के लिए इंदिरा गाँधी ने संविधान में 39वाँ संशोधन किया।

इसके बाद सरकार द्वारा 40वें व 41वें संशोधन के जरिये 42वां संशोधन लाया गया। इस तरह संविधान में इन पाँच बड़े बदलाव के जरिये देश के पूरे प्रशासनिक तंत्र को इंदिरा ने अपने हाथों की कठपुतली बना दिया। इंदिरा ने 42वें संशोधन के दौरान संविधान के प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को जोड़ दिया। इंदिरा द्वारा संविधान के प्रस्तावना में किए गए बदलाव के खिलाफ कई बार भाजपा समेत दूसरी पार्टी के नेताओं ने विरोध किया है। यही नहीं इंदिरा के इन फैसलों ने देश के न्यायिक व्यवस्था को एक तरह से पंगू बना दिया। इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार ने 43वें संशोधन के जरिये उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय को उनके अधिकार वापस दिलाए।

राजीव ने भी पद के लिए संविधान संशोधन किया

नेहरू और इंदिरा के बाद राजीव गाँधी ने भी सत्ता में आते ही संविधान संशोधन के जरिये अपना मकसद पूरा करने का प्रयास किया। 23 अप्रैल 1985 को  मोहम्मद अहमद खान वर्सेस शहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने 60 वर्षीय महिला शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके फैसले में शाहबानो और उसके पाँच बच्चों को भरण पोषण के लिए उसके पति द्वारा भत्ता दिए जाने की बात कही गयी।

लेकिन मुस्लिम धर्म गुरूओं के दवाब में राजीव गाँधी ने सदन में मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 लाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया। राजीव गाँधी के इस फैसले का हिंदूवादी संगठनों ने मुस्लिम तुष्टिकरण कहकर आलोचना करना शुरू किया। इस तरह मौका हाथ से निकलते देख हिंदूओं को अपनी तरफ झुकाने के लिए राजीव सरकार ने अयोध्या मंदिर के ताला को खुलवाने में अहम भूमिका निभाई। इस तरह अपनी माँ और नाना के तरह ही राजीव गाँधी ने भी सत्ता पर बने रहने के लिए संविधान को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।

सबरीमाला: बढ़ते तनावों में 52 साल के एक बुज़ुर्ग की दर्दनाक मौत, केरल मुख्यमंत्री का बेकार-सा बचाव

सबरीमाला मामला दिन पर दिन तूल पकड़ता जा रहा है। कुछ दिन पहले 40 वर्ष से ऊपर की दो महिलाओं के मंदिर में घुस जाने की वजह से केरल में काफी हिंसा देखने को मिली। ऐसे हालातों में सबरीमाला कर्म समिति ने केरल बंद बुलाया, साथ में तमिलनाडु से केरल में प्रवेश करने वाली सभी सरकारी बसों को रोका जाने लगा। इन सबकी वजह से स्थिति बेहद बिगड़ने लगी।

विरोध प्रदर्शन के दौरान सबरीमला कर्म समिति और सीपीएम समर्थकों के बीच पंडालम में काफ़ी कहा-सुनी हुई। जिसमें 52 वर्षीय चंद्रन उन्नीथन नाम के शख़्स की चोट लगने से मौत हो गई, इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को हिरासत में भी लिया। लेकिन मामले में पारदर्शिता नहीं बन पाई क्योंकि अस्पताल कुछ और कहता रहा और मुख्यमंत्री जी कुछ अलग ही बयान देते रहे।

जानें पूरा मामला

चंद्रन उन्नीथन नाम के इस व्यक्ति को चोट लगने के बाद बुधवार देर रात अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उनकी मौत हो गयी। शव परीक्षण के बाद चंद्रन की मौत का कारण डॉक्टर ने सिर पर चोट लगना और शरीर से ज्यादा खून बह जाना बताया है। ये शव परीक्षण गुरुवार (3 जनवरी 2019) की सुबह कोट्टायम सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में किया गया।

हैरान करने वाली बात ये है कि शव परीक्षण करने वाले डॉक्टरों का बयान मुख्यमंत्री पिनरई विजयन से बिल्कुल अलग है। पिनरई विजयन के बताए अनुसार चंद्रन की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई है। वहीं डॉक्टरों का कहना है कि मौत का कारण सिर पर गहरी चोट लग जाने के कारण हुई है।

विजयन ने गुरुवार की सुबह मीडिया से हुई बातचीत में कहा कि पंडलाम में बुधवार को शाम 6:30 बजे के करीब काफी तनाव का माहौल था, जिसमें चन्द्रन उन्नीथन घायल हुए थे। मुख्यमंत्री जी की यदि मानें तो दिल का दौरा पड़ने की वज़ह से रात 11:00 बजे बिलिवर चर्च अस्पताल में चंदन की मौत हो गयी।

हालाँकि, कोट्टायम सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल और बिलिवर चर्च अस्पताल दोनों की रिपोर्ट्स की मानें तो चंद्रन की मौत की वज़ह केवल सर पर गहरी चोट लगने के बाद निकले खून की वजह से हुई है। ये बात और है कि कोट्टायम मेडिकल कॉलेज के स्त्रोतों से मालूम पड़ा है कि यूँ तो चंद्रन दिल के रोगी थे, लेकिन ये एक ऐसी चोट थी जिसके लगने से खून बहा और मौत हुई।

बिलिवर चर्च अस्पताल द्वारा दिए गए विवरण में- चंद्रन के सीधे कान, नाक से और मुँह से लगातार खून बह रहा था। करीब 9:50 पर उन्हें दिल का दौरा भी आया। चिकित्सीय रूप से उनकी मौत रात 10:48 मिनट पर हुई।

आपको बता दें कि चंद्रन, सबरीमाला कर्म समिति के सदस्य थे। इस समिति का कार्य माहवारी होती महिलाओं को मंदिर में जाने से रोकना था। इस पूरे मामले में सीपीएम के दो कैडर्स को गिरफ्त में लिया गया है। चंद्रन के घरवालों के कहना है कि सीपीएम के ये कैडर ऑफिस में मौजूद थे।

इन्होंने किसी के बिन उकसाये ही रैली पर पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी थी। जबकि सीपीएम के कैडर्स ने समारा समिति के लोगों पर आरोप लगाया है कि रैली में मौजूद लोगों द्वारा पहले पथराव किया गया था। इसके साथ ही पुलिस ने मीडिया को बताया कि समारा समिति द्वारा किया गया प्रदर्शन बिना अनुमति के था। इसलिए परिस्थितियाँ इतनी ज्यादा बिगड़ीं।

हम जहाज़ का दाम बताते रहे, आप जहाज़ उड़ाते रहे : राहुल पर रक्षा मंत्री का तंज

राफेल डील पर बहस जारी है और सिसायत गर्म, अरुण जेटली के बाद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने विपक्ष के आरोपों और सवालों का जवाब देने की जिम्मेदारी संभाल ली है। दरअसल, विपक्ष द्वारा लगातार यह बात उठाई जा रही थी कि रक्षा विभाग से संबंधित राफेल के मुद्दे पर रक्षा मंत्री क्यों कुछ नहीं बोल रहीं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को भी लोकसभा शुरू होने से पहले राफेल डील पर कुछ सवाल उठाए थे और कहा था कि वह चाहेंगे कि पीएम मोदी की जगह आज निर्मला सीतारमण इन सवालों के जवाब दें।

रक्षा मंत्री जैसे ही जवाब देने के लिए खड़ी हुई विपक्ष के लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया जिसके बाद वे नाराज होकर बैठ गईं। बाद में स्पीकर के आग्रह पर दोबारा बोलने के लिए खड़ी हुईं। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण राफेल डील पर विपक्ष के सवालों का जवाब दे रही हैं।

राफेल देश के लिए कितना ज़रूरी है इस पर रक्षा मंत्री ने कहा, “भारत हमेशा शांति चाहता है और कभी युद्ध की पहल नहीं करता है। लेकिन हमारे पड़ोस में इस तरह का माहौल नहीं है, ऐसे में हमारा तैयार रहना जरूरी है। देश के चारो तरफ खतरनाक माहौल है, हमें हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना जरूरी है। चीन ने अपनी सेना में 4 हजार के करीब विमानों को जोड़ा, लेकिन कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान क्या किया? आखिर जिन 126 विमानों का जिक्र करते हैं वे कहां हैं? आखिर कांग्रेस 2014 तक इस डील को पूरा क्यों नहीं कर पाई? यूपीए को बताना चाहिए कि वे अपनी कार्यकाल में राफेल का एक भी विमान क्यों नहीं ला सके?”

रक्षा मंत्री के जवाब के दौरान कांग्रेस सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि 20 दिन का समय मिलने के बावजूद भी अपने सवालों के प्रति कितने गंभीर हैं। स्पीकर सुमित्रा महाजन उनको समझाने की लगातार कोशिश करती रहीं। पुनः निर्मला सीतारमण ने बोलना शुरू किया तो बताया, “काँग्रेस ने सेना की जरूरत को नहीं समझा जबकि इस मामले में हमें पड़ोसी देशों से सीखना चाहिए। सरकार और मैं राफेल पर हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हैं, लेकिन काँग्रेस राफेल के तथ्यों से डर रही है।”

रक्षा मंत्री ने सदन को आश्वस्त किया, “सितंबर 2019 में देश को पहला राफेल विमान मिल जाएगा और 2022 तक सभी 36 राफेल विमान देश को मिल जाएंगे। हमारी सरकार ने महज 14 महीनों में ही सौदे की प्रक्रिया पूरी कर ली, वहीं राफेल की डिलिवरी तय समय से 5 महीने पहले हो रही है। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि रक्षा सौदा और रक्षा में सौदेबाजी में फर्क होता है। हमारी सरकार ने देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया। हमने डील में तेजी दिखाई।”

राहुल के इस तर्क पर कि ‘जानबूझकर देरी की जा रही है’, रक्षा मंत्री ने जवाब देते हुए कहा, “दरअसल, यूपीए चाहती ही नहीं थी कि रक्षा सौदा हो। अगर यूपीए वाली डील होती तो विमान आने में 11 सालों का समय लग जाता। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है और काँग्रेस ने सिर्फ बातचीत करने में ही 8 साल निकाल दिए।”

राहुल गाँधी द्वारा बार-बार लगाए जा रहे इस आरोप पर कि ‘HAL को विमान बनाने की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई’, उन्होंने काँग्रेस को याद दिलाया, “कमिशन नहीं मिला तो आपने डील ही नहीं की। देश की सुरक्षा से समझौता किया। अगर यहाँ AA का जिक्र है तो वहाँ RV और Q है और RV प्रधानमंत्री के नहीं, देश के दामाद हैं। दसॉ ने HAL के बनाए विमानों की गारंटी नहीं ली। आज काँग्रेस HAL के लिए घड़ियाली आँसू बहा रही है।”

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट को पढ़ते हुए रक्षा मंत्री ने कहा, “दसॉ ने स्पष्ट तौर पर बताया कि HAL राफेल विमान बनाने में सक्षम नहीं है। कांग्रेस HAL को बस रियायत देती रही। HAL के सुधार के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। स्टैंडिंग कमिटी ने HAL की क्षमता पर सवाल उठाए थे और उस कमिटी में मल्लिकार्जुन खड़गे जी भी थे। हमारी सरकार आने के बाद HAL के हालात सुधर रहे हैं। अब HAL का प्रॉडक्शन 8 एयरक्रॉफ्ट से 16 एयरक्रॉफ्ट हो गया है।”

निर्मला सीतारमण ने राहुल गाँधी से सवाल किया, “राहुल गाँधी ने बेंगलुरु में जाकर HAL के हालात पर घड़ियाली आँसू तो बहा दिया लेकिन क्या कभी अमेठी के HAL गए? आज क्रिश्चन मिशेल इंडिया आ गया है और वह कौन से खुलासे करनेवाला है, जिसके कारण आप इतना उत्तेजित हो रहे हैं। राफेल पर चल रहा यह पूरा हंगामा गैर-जिम्मेदाराना है। काँग्रेस पूरी तरह से झूठ बोल रही है और कह रही है कि सत्य बोल रहे हैं।”

सीतारमण ने विपक्ष से सवाल किया, “अब मैं पूछना चाहती हूँ, काँग्रेस प्रवक्ता ने एक जगह कहा था कि हम राफेल पर बात नहीं कर सकते क्योंकि यह आंतरिक मामला है। मैं किसी का नाम कोट नहीं कर रही हूँ। काँग्रेस प्रवक्ता ने कहा था कि काँग्रेस दूसरे राष्ट्र प्रमुख से डिफेंस डील के मुद्दे पर न चर्चा करेगी और न ही कोई मुलाकात इस मुद्दे के लिए होगी। सम्मानित सदस्य राहुल गाँधी ने 20 जुलाई को अपने बयान में कहा कि ‘मैंने फ्रेंच प्रेजिडेंट से इस राफेल सीक्रेसी पैक्ट पर चर्चा की।’ कौन सच बोल रहा है, काँग्रेस प्रवक्ता या फिर काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी? दोनों में से कोई एक झूठ बोल रहा है और देश को गुमराह कर रहा है। आप सदन के पटल पर एक बात कहें और आपके प्रवक्ता दूसरे मंच से कुछ और बात कहें। आप ऐसा नहीं कर सकते, आप सदन में और सदन के बाहर देश को गुमराह कर रहे हैं। मैं सीधे चुनौती देती हूँ कि या तो आप उस बातचीत की प्रमाणिक कॉपी सदन के पटल पर पेश करें या फिर आप देश को गुमराह करने की बात मानें।”

निर्मला सीतारमण के बयान पर भड़के राहुल गांधी बोले, “मुझे अपना पक्ष रखने का स्पीकर मैडम पूरा हक है। उन्होंने मेरा नाम लिया है और कल आप मुझे कह रही थीं कि मैं किसी का नाम नहीं ले सकता।”

स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा, “आप सदन में उपस्थित हैं इसलिए आपका नाम लिया गया। आपको भी मौका मिलेगा कि आप अपना पक्ष रख सकें। मैं आपको भी अपना पक्ष रखने का मौका दूंगी।”

निर्मला सीतारमण ने आगे राहुल गाँधी के सवालों का जवाब देते हुए ये आरोप लगाया, “राफेल को लेकर यह पूरा कैंपेन भ्रामक है और झूठ की बुनियाद पर खड़ा है। मैं जब भी जवाब देने के लिए प्रस्तुत हुई, इन्होंने कभी सुनना नहीं चाहा। आपने एयरफोर्स चीफ को झूठा बोला, आपने प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री के लिए भी यही कहा। काँग्रेस के सीनियर नेता जो इस सदन के सदस्य भी हैं। यह काँग्रेस का कितना गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव है कि एक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पाकिस्तान ही मदद माँगने चले गए कि इस मोदी सरकार को हटाने में मदद करिए। मैं याद दिलाना चाहती हूँ काँग्रेस को कितनी बार आपने कहा कि यह देश हित में है और सुरक्षा से जुड़ा है और हम इसकी गोपनीयता की रक्षा करेंगे। मैंने बार-बार कहा कि कीमतों की बुनियादी जानकारी साझा की जा सकती है, लेकिन हम इसे पूरी तरह से ओपन नहीं कर सकते। हम डिबेट के लिए तैयार हैं, हम जवाब देने के लिए तैयार हैं।”

आगे सीतारमण ने राहुल गाँधी पर तंज करते हुए कहा, “इस सदन में अगर यह जवाब के लिए गंभीर होते तो क्या विपक्ष की सीट पर बैठकर फोटो खींचते रहते, एक-दूसरे को कागज पास करते। इस सदन में वित्त मंत्री के ऊपर भी जहाज उड़ाते रहे! मुझ पर आरोप लगाया कि मैं एआईएडीएमके सदस्यों के पीछे डरकर छिपकर बैठी हूँ। आज जब मैंने उनका नाम लिया तो उन्हें सफाई देने के लिए मौका चाहिए।”

राहुल गाँधी द्वारा हर रैली में राफेल की कीमत अलग-अलग बताए जाने पर सीतारमण ने चुटकी लेते हुए कहा, “राफेल की कीमत भी क्या काँग्रेस अध्यक्ष जानते हैं, जनआक्रोश रैली में अलग दाम बताए, हैदराबाद में अलग। काँग्रेस पार्टी को हमें बताने से पहले अपना होमवर्क करना चाहिए। काँग्रेस ने राफेल के प्राइस को लेकर कोई बातचीत कभी रक्षा मंत्री से नहीं की है। राफेल का बेसिक दाम हमने प्रति एयरक्राफ्ट ₹670 करोड़ बताया है। राफेल का कुल दाम ₹737 करोड़ था, लेकिन हमने ₹670 करोड़ में खरीदा जो 9 फीसदी कम है और इस देश के लिए हमने ज्यादा बेहतर डील की है।”

रक्षा मंत्री ने काँग्रेस की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, “आखिर बेसिक एयरक्राफ्ट के दाम की तुलना हथियारों से लैस विमानों की दाम से क्यों की जा रही है? काँग्रेस राफेल विमानों की कीमत प्रति विमान 526 करोड़ किस आधार पर बता रही है? काँग्रेस हर बार राफेल के अलग-अलग दाम बताती है। राफेल सौदे के लिए कुल 74 बैठकें की गई उसके बाद जाकर सौदा फाइनल हुआ। 526 करोड़ की तुलना 1600 करोड़ से करना सेब की तुलना संतरे से करने जैसा है। काँग्रेस राफेल के अलग-अलग दाम बताकर लोगों को गुमराह कर रही है।”

काँग्रेस राफेल मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भी अवहेलना कर रही है, जिस पर रक्षा मंत्री सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट पढ़ते हुए राहुल गाँधी को याद दिलाया, “सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 34 में कहा गया कि सभी तथ्यों की जांच के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि डील में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है। किसी का व्यक्तिगत धारणा के आधार जांच नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 33 में कहा गया कि डील में सरकार की भूमिका कहीं भी ऐसी नहीं दिख रही कि सरकार ने किसी को कॉमर्शियल फायदा पहुंचाने की कोशिश की है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 26 में कहा गया कि एयरक्राफ्ट की कीमत सार्वजनिक करने का कोई औचित्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 25 में कहा गया कि सरकार ने एयरक्राफ्ट की कीमत नहीं बताई क्योंकि यह संवेदनशील मुद्दा है। यह दो देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन होता। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को माना कि संवेदनशीलता के चलते एयरक्राप्ट के दाम को सार्वजनिक करना ठीक नहीं है। दाम का खुलासा करना सौदे की प्रक्रिया और शर्तों का उल्लंघन होता लेकिन काँग्रेस के लोग इस बात को समझ नहीं रहे हैं और लगातार देश को गुमराह करने में लगे हुए हैं।”

लोक सभा में रक्षा मंत्री के जवाब का पूरा वीडियो

भगोड़े मेहुल चोकसी की थाई कंपनी ज़ब्त; ED द्वारा कुल ज़ब्त संपत्ति ₹4,765 करोड़

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मनी लॉंड्रिग क़ानून के तहत बड़ी कार्रवाई करते हुए कारोबारी मेहुल चोकसी के गीतांजलि समूह की थाईलैंड स्थित कंपनी एबीक्रेस्ट लिमिटेड को ज़ब्त कर लिया गया है। जानकारी के मुताबिक इस कंपनी की कुल क़ीमत 13.14 करोड़ रुपये है। इस प्रकार अब तक की गई कार्रवाईयों के तहत प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पीएनबी घोटाले से संबंधित लगभग 4,765 करोड़ रुपये की संपत्ति ज़ब्त की जा चुकी है।

ईडी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार मेहुल चोकसी की थाईलैंड स्थित एबीक्रेस्ट लिमिटेड कंपनी को ज़ब्त करने के लिए अंतरिम आदेश जारी कर दिया गया है। जाँच एजेंसी से पता चला है कि हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी ने पीएनबी द्वारा अनाधिकृत तरीक़े से जारी 92.3 करोड़ रुपये के एलओयू से इस कंपनी को भी लाभ पहुंचाया था। इसका पुख़्ता सुबूत जुटाने के बाद कि यह कंपनी गीतांजलि समूह की ही है, इसे ज़ब्त करने का फ़ैसला लिया गया। मनी लांड्रिंग क़ानून के तहत प्रवर्तन निदेशालय इस मामले की जांच कर रहा है। अधिकारियों ने कहा कि विदेश स्थित संपत्ति ज़ब्त करने को कानूनी मान्यता देने के लिए जल्द ही न्यायिक अनुरोध पत्र जारी कर दिया जाएगा।

ईडी ने अपनी जांच में इस बात का भी उल्लेख किया कि हीरा व्यापारी चोकसी अपनी हॉन्ग-कॉन्ग स्थित कंपनी के माध्यम से चीन से नक़ली हीरे ख़रीदकर उन्हें भारत भेजता था। उन हीरों को भारत में भेजने से पहले अपनी थाईलैंड स्थित कंपनी के कारखाने में तैयार करवाता था। फिर उनके असली होने का दावा किया जाता था, और बड़ी क़ीमत पर बेचा जाता था।

चोकसी ने अपनी भारतीय कंपनियों – ‘गीतांजलि जेम्स’, ‘गिल इंडिया’ और ‘नक्षत्र’ के बढ़े हुए आयात संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत करके पीएनबी बैंक को धोखा दिया। चोकसी द्वारा बैंक से कई बार एलओयू राशि को बढ़ाने की मांग भी की गई और दावा किया गया कि उनके विदेशी निर्यातकों से अच्छे संबंध है जिसके तहत यह दर्शाया गया कि विदेशी निर्यातकों से संबंधित एलओयू राशि के माध्यम से बैंक की बक़ाया राशि का भुगतान कर दिया जाएगा।

पिछले साल, ईडी ने हैदराबाद स्थित चोकसी की ज्वैलरी प्रोसेसिंग यूनिट से अधिकतर रंगीन स्टोन्स और मोतियों की क़ीमत संबंधी बिल बुक ज़ब्त की थी जिसके अनुसार उनकी क़ीमत 3,800 करोड़ रुपये के लगभग थी, लेकिन जांच एजेंसी ने पाया कि उसकी क़ीमत केवल 100 करोड़ रुपये से अधिक नहीं थी।

आपको बताते चलें कि मेहुल चोकसी, नीरव मोदी और अन्य के ख़िलाफ़ 14,000 करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाले में विभिन्न आपराधिक क़ानूनों के तहत जांच की जा रही है। ईडी और सीबीआई द्वारा यह मामला दर्ज करने के बाद से ही मेहुल चोकसी और नीरव मोदी देश से फ़रार हैं।

NIA का वांटेड नईम गिरफ्तार; इस्लामिक स्टेट को सप्लाई करता था हथियार

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मेरठ से 21 साल के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है जिस पर दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठन आइएस को हथियार सप्लाई करने का आरोप है। गुरुवार की रात गिरफ्तार किये गए उस युवक का नाम नईम है। ख़बरों के अनुसार कुछ दिनों पहले एनआईए ने जिस आतंकी रैकेट का पर्दाफाश कर दस लोगों को गिरफ्तार किया था, नईम ही उन सब को हथियार सप्लाई करने का काम किया करता था।

आपको याद होना चाहिए कि 26 दिसम्बर को एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए एनआईए ने आतंकी संगठन आईएस से जुड़े एक रैकेट का पर्दाफाश कर दस लोगों को दिल्ली और यूपी से गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार आतंकियों में एक मौलवी भी शामिल था। इस छापेमारी में बड़ी तादाद में गोला-बारूद और सिम कार्ड्स जब्त किये गए थे। ये सभी जगह-जगह बम विस्फोट और बड़े नेताओं को निशाना बनाने की तैयारी कर रहे थे। इस सफल ऑपरेशन के बाद एनआईए ने बयान देते हुए कहा था;

“10 संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया गया है। वो सभी आतंकी हमले की साजिश रचने के उन्नत चरण में थे। जो चीजें जब्त की है उसमे देश में बने राकेट लांचर और 12 पिस्तौल शामिल हैं। उनकी योजना 100 से ज्यादा बम तैयार करने की थी जिसका आतंकी हमलों में इस्तेमाल किया जा सके।”

ताजा गिरफ़्तारी भी उसी सिलसिले में की गई है। नईम को गिरफ्तार करने के बाद जांच एजेंसी ने उसे अदालत के सामने पेश किया जिसके बाद उसे दस दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। बीते 26 दिसम्बर को भी नईम की तालाश में मेरठ के राधना गाँव में छापेमारी की गयी थी लेकिन वो किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गया था। बताया जाता है कि राधना गाँव में अवैध हथियारों के निर्माण और सप्लाई के मामले बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं और जांच एजेंसियां इस पर कड़ी नजर रख रही थी। जब नईम पिछली छापेमारी में नहीं मिला था तभी एनआईए ने उसे वांटेड घोषित कर दिया था।

मेरठ के एसपी ने नईम की गिरफ्तारी की पुष्टि की। ताजा सूचना के अनुसार एनाइए उसी रात नईम को लेकर दिल्ली रवाना हो गयी जहां न्यायिक हिरासत में उस से पूछताछ की जाएगी। मालूम हो कि बीते महीने की गयी छापेमारी में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उसमे हापुड़ से एक शाकिब नाम का आतंकी भी पकड़ा गया था। परसों गिरफ्तार किया गया नईम उसका रिश्तेदार बताया जा रहा है। गिरफ्तारी के बाद नईम ने खुद को बेगुनाह बताया। उस से होने वाले पूछताछ में कई बड़े राज खुलने की संभावना है।

फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने राम मंदिर पर दिया बेहद भावनात्मक बयान- कहा इजाज़त मिलने पर खुद लगाऊँगा मंदिर की ईंट

एक तरफ जहां कुछ लोग राम मंदिर बनने पर विवाद खड़ा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के नेता फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने एक ऐसा बयान दिया है, जो भड़कते हुए रामभक्तों को सुकून देने वाला है।

जी हाँ, फारूक अब्दुल्लाह का कहना है कि राम मंदिर एक ऐसा मसला है, जिसे बातचीत करके सुलझाया जा सकता है। उनकी मानें तो राम मंदिर मसले को कोर्ट तक कभी जाना ही नहीं चाहिए था। फ़ारुख़ अब्दुल्ला के कथानुसार प्रभु राम सिर्फ हिंदुओं के नहीं हैं, बल्कि भगवान राम सभी के हैं।

अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि भगवान राम से किसी को बैर नहीं है और न ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें इस मामले को सुलझाने की और मंदिर को बनाने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने इस बात को भी कहा कि जिस दिन भी राम मंदिर बनने के लिए तैयार होगा, उस दिन राम मंदिर की ईंट वो स्वयं रखेंगे।

फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने बीते साल नवंबर में एएनआई को दिए इंटरव्यू में राम मंदिर पर एक और बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो मंदिर के खिलाफ नहीं है, लेकिन राम मंदिर सिर्फ अयोध्या में ही क्यों बनाया जाए? भगवान राम पूरे विश्व के हैं, ऐसे में अयोध्या में ही मंदिर क्यों बनें?

फ़ारूख़ अब्दुल्ला का ये बयान उस समय आया है, जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या मामले पर सुनाई की जाने वाली थी, लेकिन आज उसे 10 जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया गया। 10 जनवरी को इस मामले पर नई पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी। दरअसल, इस मामले पर पहले पूर्व चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की तीन अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही थी। जिसकी वजह से इस मसले पर दो सदस्यों की बेंच विस्तार से सुनवाई नहीं कर सकती है, इसलिए इस मुद्दे पर तीन या फिर उससे अधिक जजों की बेंच ही सुनवाई करेगी।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट 30 सिंतबर 2010 को इलाहाबाद हाइकोर्ट में सुनाए गए फैसले के खिलाफ दायर की गई 14 अपीलों पर सुनवाई करेगा। इस मामले में राम मंदिर मामले पर वकील हरिनाथ राम और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने रोज़ाना के आधार पर सुनवाई करने की भी मांग की है।

नेस्ले इंडिया ने सरकार के मैगी में लेड की अत्यधिक मात्रा के दावे को स्वीकारा

नेस्ले इंडिया ने वृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस बात को स्वीकार कर लिया है कि उनके मशहूर उत्पाद मैगी में लेड यानि सीसे की मात्रा मानकों से ऊपर पायी गयी है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में लंबित नेस्ले इंडिया के उत्पाद मैगी के मामले में कार्रवाई की अनुमति दे दी है।

ज्ञात हो कि मैगी में तय मानक से अधिक लेड (सीसा) मिलने पर सरकार ने एनसीडीआरसी में केस दर्ज़ किया था। जिसके बाद नेस्ले इंडिया ने हाईकोर्ट के आदेश की बात रखकर सरकारी दावों का विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने ही साल 2015 में एनसीडीआरसी की सुनवाई पर रोक लगा दी थी।

हाल ही में इस मामले पर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूढ़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने अपनी सुनवाई के दौरान कहा, केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकीय अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) मैसूरू की रिपोर्ट को इस कार्यवाही के लिए आधार बनाया जाएगा।

सीएफटीआरआई मैसूरू द्वारा की गयी मैगी की जाँच में लेड की मात्रा अधिक पाई गई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नेस्ले इंडिया के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता वाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में सरकार के मामले में आगे कार्यवाही की अनुमति प्रदान कर दी है। सरकार का दावा है कि नेस्ले इंडिया ने अपने उत्पाद के लिए झूठे व्यापार के तरीकों, झूठी लेबलिंग और भ्रामक विज्ञापनों का सहारा लिया है तथा इसके बदले 640 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति की माँग की है।

क्या है यह विवाद

शीर्ष अदालत ने इससे पूर्व 2015 में एनसीडीआरसी (NCDRC) द्वारा नेस्ले को चुनौती देने से पहले कार्यवाही पर 16 दिसंबर 2015 को रोक लगा दी थी। ‘टेस्टी भी हेल्दी भी’ जैसे विज्ञापनों का दावा करने वाली नेस्ले इंडिया कम्पनी पर उपभोक्ता मामले मंत्रालय द्वारा उपभोक्ताओं को गुमराह करने का आरोप लगाया था, जिसे नेस्ले इंडिया ने  2015 में सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था।

इसके बाद नेस्ले इंडिया को अपने उत्पाद मैगी में एम.एस.जी. (MSG) ‘मोनोसोडियम ग्लूटामेट’ पाये जाने के कारण अपने इस उत्पाद को बाजार से हटाना पड़ा था। यह MSG मैगी में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। खाद्य सुरक्षा नियामक (The food safety regulator) ने लेड की अत्यधिक मात्रा पाये जाने पर मैगी को बाज़ारों से प्रतिबंधित कर दिया तथा इसे मानव उपयोग के लिए ‘असुरक्षित और खतरनाक’ घोषित कर दिया था।

किस तरह हानिकारक है मैगी में इस्तेमाल होने वाला लेड (सीसा)

डॉक्टर्स के अनुसार लेड हमारे शरीर के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है, जिसके प्रयोग से तंत्रिका तंत्र यानी नर्वस  सिस्टम खराब होने की प्रबल संभावनाएं रहती हैं और किडनी खराब होने का भी भय रहता है। लेड की 2.5 पीपीएम तक की मात्रा को ही खाद्य पदार्थों में मानक माना गया है, जबकि जाँच में मैगी में यह मात्रा इस से अधिक थी।

सबरीमाला: सोनिया ने लगाई अपने ही सांसदों को फ़टकार, विरोध प्रदर्शन करने से भी कर दिया साफ़ मना

सबरीमाला विवाद इस समय देश के बड़े विवादों में से एक बन चुका है। केरल के सबसे पुराने सबरीमाला मंदिर में हाल ही में 40 वर्षीय दो महिलाओं ने प्रवेश कर लिया था। जिसका विरोध जगह-जगह किया गया। जिसमें केरल में कांग्रेस सांसदों ने तो इस बात का विरोध करने के लिए काले दिवस का भी आह्वान किया था।

कांग्रेस के सांसद इस दिशा में लोकसभा में काली पट्टी को बांध कर संसद भी पहुंचे थे, लेकिन यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन सबको विरोध प्रदर्शन करने से मना कर दिया। सोनिया गांधी का मानना है कि उनकी पार्टी एक ऐसी पार्टी है, जो महिलाओं के अधिकार के बारे में बात करती है। इसलिए कांग्रेस के किसी भी शख्स को ऐसे विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना पार्टी के खिलाफ जा सकता है।

आपको बता दें कि फिलहाल लोकसभा में केरल के 7 सांसद हैं। अब से तीन महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी उम्र वाली महिलाओं के लिए एंट्री खोल दी थी। इस दौरान मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की सरकार ने औरतों को मंदिर में प्रवेश देने के फैसले का समर्थन किया था, जबकि अब केरल कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने सीएम पर आरोप लगाते हुए कहा है कि मंदिर में दो महिलाओं का इस तरह प्रवेश कर लेना एक साजिश है, जिसको रचने वाले खुद सीएम महोदय हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष की यदि मानें तो वह ये सब करके हिंदू वोट बैंक को बाँट देना चाहते हैं। वहीं, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने सबरीमाला केस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था। लेकिन अब दो महिलाओं के मंदिर में घुसने के कारण काला दिवस का आह्वान उनके दो रूपों को जनता के समक्ष लेकर आता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राएँ और भारत का बढ़ता क़द

विश्व के दृष्टिपटल पर अपने अस्तित्व को मज़बूती से रख पाना किसी भी देश के लिए अपने आप में एक सबसे बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में प्रत्येक देश को अपने चहुमुखी विकास की गति में तेज़ी लाने और ख़ुद को एक मज़बूत साझेदार के रूप में साबित करने के लिए देश के मुखिया और अन्य उच्च पदासीनों को अनेकों विदेश यात्राएँ करने की आवश्यकता होती है, फिर चाहे वो देश विकासशील हो या विकसित।

ये विदेश यात्राएँ देश की भविष्य निर्माता भी साबित होती हैं। दौर किसी भी सरकार का रहा हो, ये यात्राएँ उनके कार्यकाल का एक अभिन्न हिस्सा होती हैं, इसमें कोई दोराय नहीं कि हर सरकार अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बुनने में अपना योगदान देती आयी हैं लेकिन हर सरकार अपने इस कर्तव्य को कितनी ईमानदारी से निभाती हैं उसके बारे में हम यहां विस्तार से चर्चा करेंगे।

भूटान, नेपाल और श्रीलंका में भारत की मज़बूत होती बुनियाद

बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान लगभग 41 बार विदेश यात्राएँ की हैं और इस दौरान उन्होंने लगभग 50 देशों का दौरा किया। प्रधानमंत्री मोदी ने पदभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरे के लिए भूटान का रुख़ किया और ये दौरा भूटान नरेश और भूटानी प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर हुआ था।

इस यात्रा पर जाने से पूर्व प्रधानमंत्री ने भूटान को प्राथमिकता देते हुए कहा था कि भारत और भूटान के बीच अद्वितीय और ख़ास संबंध हैं जिन्हें भविष्य में और अधिक विकसित करना है। इस विदेश यात्रा के दौरान दोनों देश एक-दूसरे को सामाजिक, आर्थिक और और सांस्कृतिक रूप से सहयोग देने पर कटिबद्ध हुए। निष्कर्ष के तौर पर हम ये देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भूटान को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुनना एक साकारात्मक पहल थी जो प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता को प्रदर्शित करता है।

प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल और श्रीलंका की यात्रा भी इस ओर इशारा करती हैं कि भारत अपनी विदेश नीति के तहत मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संबंधो को आगे बढ़ाने में अग्रणी है। अगर बात करें नेपाल की तो नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का रहा है और बीते कुछ वर्षों से नेपाल और भारत के रिश्तों में दूरी आने लगी थी। ऐसे में यह यात्रा भारत के लिए नए रिश्ते बुनने का काम कर रही है। परवान चढ़ते इस रिश्ते का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को ही जाता है जिन्होंने नेपाल को अपने अभिन्न अंग के रूप में समझा और भविष्य में संबंधों को मधुर बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी जताई।

भारत का नेपाल के साथ अच्छे रिश्ते बनाने का दूसरा कारण चीन का नेपाल की सड़क, बिजली जैसी अन्य मूलभूत संरचना में बढ़ती भागीदारी को रोकना है। पाकिस्तान का नेपाल के साथ मैत्रीपूर्ण प्रयासों के संदर्भ में भारत के लिए यह आवश्यक भी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि चीन-नेपाल-पाकिस्तान का भारत के विरोध में सामूहिक गंठजोड़ न हो पाये।

भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों ने 2018 में अपने दूसरे द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन को चिह्नित करते हुए, 11 मई 2018 को प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता आयोजित की, जो अत्यंत गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण माहौल के माहौल में संपन्न हुई। यह वार्ता दोनों देशों के बीच की गहरी दोस्ती और समझ को दर्शाती है। विभिन्न स्तरों पर दोनों देशों के बीच मौजूद घनिष्ट और बहुमुखी संबंधों की समीक्षा करते हुए, दोनों प्रधान मंत्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर सहयोग को मजबूत करने के साथ-साथ समानता, आपसी विश्वास, सम्मान और पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक-आर्थिक विकास साझेदारी का विस्तार कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाने के लिए मिलकर काम करने के अपने संकल्प को दोहराया।

दोनों प्रधानमंत्रियों ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और लोगों के आवागमन को बढ़ावा देने में संपर्कों की उत्प्रेरक भूमिका को रेखांकित किया। वे वायु, भूमि और पानी से आर्थिक और भौतिक संपर्क बढ़ाने के लिए कदम उठाने पर सहमत हुए। लोगों के आपसी जीवंत संपर्कों और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को पहचानते हुए, दोनों प्रधानमंत्रियों ने संबंधित अधिकारियों को संबंधित तकनीकी टीमों द्वारा नेपाल में अतिरिक्त हवाई प्रवेश मार्गों पर प्रारंभिक तकनीकी चर्चा सहित नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए निर्देश दिया।

श्रीलंका से भारत का रिश्ता प्राचीन काल से है और अपनी इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज श्रीलंका को बौद्धों का एक प्रमुख स्थल होने पर उन्हें गर्व है। बौद्ध धर्म की शुरूआत भले ही भारत में हुई हो लेकिन श्रीलंका ने इस धर्म की पवित्र शिक्षाओं को यहां संरक्षित रखा है और इस कारण भारत को अपनी जड़ों की तरफ लौटने की प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के चक्र को बौद्ध धर्म से लिया गया है।

इन देशों की यात्रा का सीधा असर अन्य गतिविधियों पर भी पड़ता है जैसे एक तरफ चीन का बढ़ता हाथ जो पाकिस्तान से होकर नेपाल और श्रीलंका तक जा पहुंचा था उस पर इन विदेशी दौरो ने विराम लगाने का काम किया है।

भारत-कनाडा के बीच विश्वास का नया माहौल बना

भारत-कनाडा के बीच रिश्तों को सुदृढ़ करने में प्रधानमंत्री मोदी का एक अहम रोल था। अपनी इस विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और कनाडा के बीच अपने बढ़ते संबंधों पर खुलकर बात की और इस बात को स्पष्ट तौर पर जगज़ाहिर किया कि भारत की राष्ट्रीय विकास प्राथमिकता के सभी क्षेत्रों में कनाडा एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच हुए कई प्रकार के समझौतों के फलस्वरूप भारत और कनाडा के मध्य आपसी विश्वास का एक नया माहौल तैयार हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित भारत के अपने सपने का उल्लेख करते हुए इस बात का भी ज़िक्र किया कि यहां युवाओं के लिए भरपूर अवसर उपलब्ध हैं।

खालिस्तानी और इस्लामी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ भारत और कनाडा एकमत हैं और इनके ख़िलाफ़ साझा तौर पर लड़ने का संकल्प भी लिया गया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे पर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ने के लिए अलग से सहयोग का एक ढ़ांचा जारी किया था। इसके अलावा दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने साझा बयान जारी कर मालदीव के हालात पर ना केवल चिंता व्यक्त की बल्कि दक्षिण चीन सागर में भी समुद्री क़ानून का पालन करने पर ज़ोर दिया। इसके अलावा दोनों देशों ने आपसी रक्षा सहयोग बढ़ाने संबंधी 6 समझौतो पर भी हस्ताक्षर किए गए थे।

कनाडा ने भारत का पक्ष लेते हुए आतंकवाद और उग्रवाद के मुक़ाबले के लिए सहयोग के दस्तावेज़ में दोनों देशों ने खालिस्तान समर्थक संगठनों बब्बर खालसा इंटरनैशनल और इंटरनैशनल सिख यूथ फेडरेशन को आतंकवादी संगठन बताया और इनकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए दोनों देश एकजुट हुए। इसके अलावा इस्लामी गुटों अलक़ायदा, आईएस, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मौहम्मद का भी आतंकवादी संगठनों के तौर पर नाम लेकर इनसे साझा मुक़ाबला करने की बात कही गई।

प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी एशियाई देशों की ऐतिहासिक यात्रा

पश्चिमी एशियाई देशों की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक क़दम उठाने की बात कही। इन देशों में फिलिस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ओमान शामिल हैं।

ओमान के सुल्तान से कई विषयों पर चर्चा होने साथ-साथ रक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग सहित आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिसका असर भविष्य में देखने को मिलेगा। ऐसे में ये विदेश यात्राएं प्रधानमंत्री मोदी की सूझबूझ को दर्शाता है।

अफ्रीकी देशों के साथ बढ़ते रिश्तों को मिला नया आयाम

प्रधानमंत्री अपने अफ्रीकी देशों के दौरे के वक़्त दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल हुए जहां उन्होंने चीन, दक्षिण अफ्रीका, तुक्री और रूस के राष्ट्रपतियों सहित कई वैश्विक स्तर के नेताओं से द्विपक्षीय बैठकें कीं। इस दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने न्यू वर्ल्ड ड्रीम की योजना ब्रिक्स सदस्यों से साझा की थी। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी के न्यू वर्ल्ड का सपना टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन पर टिका है जिसका सीधा सा मतलब ये है कि काम करने की तक़नीक को बेहतर और आसान बनाया जाए यानि शिक्षा से लेकर मार्केट और दफ़्तर तक सभी काम ऑनलाइन माध्यम से संपन्न हों।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा से यही निष्कर्ष निकलकर आया कि अब भारत दुनिया में टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन लाने के लिए ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया में विकसित की जा रही नई टेक्नोलॉजी और परस्पर संपर्क के डिजिटल तरीके हमारे लिए अवसर भी हैं और चुनौती भी।  टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन के जरिए रोबोटिक, आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉक चैन, नैनो-टेक्नोलॉजी, क्वांटम कम्प्यूटिंग, बायो-टेक्नोलॉजी, थ्रीडी प्रिंटिंग और ऑटोनोमस व्हिकल्स को बढ़ावा दिया जाएगा।

जर्मनी, रूस, फ्रांस और स्पेन का दौरा कई मायनों में मील का पत्थर साबित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हर विदेश यात्रा में इस बात का ख़ासा ध्यान रखा कि दुनिया भारत को एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप देखे। जर्मनी को मूल्यवान सहयोगी बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जर्मन स्किल्स भारत के रूपांतरण के लिए उनकी दृष्टि के साथ सटीक बैठती है। अपनी जर्मनी की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने शीर्ष उद्योगपतियों के साथ बातचीत की जिससे व्यापार और निवेश संबंधों को और मज़बूत बनाया जा सके।

अपने स्पेन के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक सहयोग, द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने समेत अन्य वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। इस चर्चा का एक अहम हिस्सा मेक इन इंडिया योजना के तहत भारत में निवेश करने का न्योता देना था जिससे भारत में रोज़गार के अवसरों का सृजन हो सके। इसके अलावा स्पेन-भारत के बीच द्विपक्षीय, आर्थिक और निवेश संबंधी समझौते शामिल थे। इन समझौतों में इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और पर्यटन संबंधी करार शामिल थे, साथ ही ऐसे कई क्षेत्र शामिल थे जिनमें भारत और स्पेन की आपसी साझेदारी देखी गई।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रूस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 18वें भारत-रूस वाषिर्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और उसके बाद सेंट पीटर्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच में भी शिरकत की। अपनी रूस यात्रा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रिश्तों में गर्मजोशी बनाए रखने पर वचनबद्धता को दोहराया। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैन्युल मैक्रां के साथ भारत-फ्रांस रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के उद्देश्य से आधिकारिक वार्ता में हिस्सा लिया। फ्रांस को भारत का अहम रणनीतिक साझेदार बताते हुए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पश्चिम यूरोप) रणधीर जायसवाल ने कहा था कि दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु, रक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में मजबूत सहयोग है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने रूस की सबसे आधुनिक वायु रक्षा प्रणाली को खरीदने के लिए समझौते पर हस्‍ताक्षर कर दिए हैं। भारत ने करीब 39000 करोड़ की लागत से 5 एस-400 ‘ट्रायंफ’ वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की खरीद के लिए समझौते पर हस्‍ताक्षर किए थे।

एस-400 मिसाइल सिस्टम 400 किलोमीटर के दायरे में क़रीब 300 निशानों को ट्रैक कर सकता महै और एक साथ क़रीब दर्जन को मार गिरा सकता है। इस मिसाइल का संवेदनशील रडार स्टील्थ विमानों का भी पता लगाने में सक्षम ना जाता है। ग़ौरतलब है कि स्टील्थ विमान प्राय: पकड़ में नहीं आते हैं।

भारत द्वारा ख़रीदी जा रही 5 मिसाइलों से सामरिक महत्व के बड़े ठिकानों जिनमें परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों की सुरक्षा में मदद मिलेगी। ये मिसाइलें भारत के लिए एक तरह से शील्ड का काम भी करेंगी जो पाकिस्तान और चीन की परमाणु शक्ति संपन्न बैलेस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करेगी।

अमेरिका, इज़रायल और जापान यात्रा ने भारत की दशा और दिशा सुधारने में योगदान दिया

भारत के अमेरिका से प्रगाढ़ होते रिश्ते कहीं ना कहीं पाकिस्तान और चीन को अपनी हद याद दिलाने में सहायक साबित होते हैं। दबाव की स्थिति जो भारत की ओर से बनती है उसमें प्रधानमंत्री मोदी के ये विदेशी दौरे काफी हद तक मायने रखते हैं। अमरीका ने भारत को एक ख़ास दर्जा देकर ना सिर्फ़ दुनिया में भारत की धाक बढ़ाई है, बल्कि चीन को एक कड़ा संदेश भी दिया है। एनएसजी में भारत के शामिल होने पर आपत्ति करने वाले चीन के लिए एक तरह से ये एक बड़ा झटका है क्योंकि मरीका ने भारत को रणनीतिक व्यापार अधिकरण-1 (एसटीए-1) का दर्जा दिया जाता है और ये दर्जा पाने वाला दक्षिण एशियाई देशों में भारत इकलौता राष्ट्र बन गया है।

इस बात को इस नज़रिये से भी समझा जा सकता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को रोकन के लिए भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर जिस चतुर्भुज की स्थापना की है उससे चीन का चिंतित होना स्वाभाविक है और चिंतित होना भी चाहिए। इसी संदर्भ में भारत और जापान ने एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर बनाने की बात कही जिसके लिए अफ्रीका के कई देशों ने इस कॉरिडोर के लिए अपनी सहमति भी दे दी है। इस कॉरिडोर के बन जाने के बाद अफ्रीका समुद्री रास्तों से सीधे-सीधे दक्षिण-पूर्वी एशिया से जुड़ जाएगा। इन परिस्थितियों में ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह एक प्रकार से चीन की मेरीटाइम सिल्क रोड के द्वारा यूरोप और अफ्रीकी देशों से व्यापार करके उन पर दबदबा कायम करने की उसकी नीति का व्यावहारिक जवाब साबित होगा। वैसे भी भारत चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ की नीति का विरोध करने वालों में पहला देश रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़राइल यात्रा के दौरान उन्होंने इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को समुद्र में एक विशेष प्रकार की जीप में बैठे देखा था। इस विशेष प्रकार की जीप का काम समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में परिवर्तित करने का था, जो काफी अश्चर्यजनक था। इसके बाद जब दोनों प्रधानमंत्रियों ने उस खारे पानी को पिया तो ऐसा वास्तव में था कि समुद्र का खारा पानी मीठे पानी में तब्दील हो चुका था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उस जीप को प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपने भारत दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी को बतौर भेंट स्वरूप प्रदान कर दिया। 71 लाख की क़ीमत वाले इस संयंत्र से एक दिन में 20, 000 लीटर पानी शुद्ध किया जा सकता है।

दुनिया में इज़रायल ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में परिवर्तित करने का अदम्य साहस किया है। दुनिया में इज़रायल इकलौता देश है, जिसने समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने की तकनीक ईजाद की है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2050 तक जब विश्व की 40 फीसदी आबादी जल संकट भोग रही होगी, तब भी इज़रायल में पीने के पानी का संकट नहीं होगा।

इज़रायल न सिर्फ़ हथियारों, बल्कि पानी के मामले में भी महाशक्ति बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर संयुक्त रूप से कार्य करने को लेकर सहमति बनी। साइबर सुरक्षा के अलावा फिल्म निमार्ण, पेट्रोलियम, ‘इनवेस्ट इंडिया इनवेस्ट इजरायल को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है। इसके अलावा दोनों देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी मिलकर काम करने को वचनबद्ध हुए हैं साथ ही दोनों देशों के बीच फिल्म, स्टार्ट अप इंडिया, रक्षा और निवेश को लेकर सहमति बनी है। वैश्विक स्तर पर भारत के प्रगाढ़ होते संबंध निश्चित तौर पर एक अच्छे संदेश के रूप में देखे जा सकते हैं जिसका फलीभूत होना आने वाले समय में तय है।

आज भारत डिजिटल संसाधनों के क्षेत्र में शानदार तरीके से प्रगति कर रहा है। ब्राडबैंड की कनेक्टिविटी गांव-गांव तक पहुंच रही है। डिजिटल माध्यम एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। बुलेट ट्रेन से लेकर स्मार्ट सिटी तक न्यू इंडिया का नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है, उसमें जापान की भूमिका एक अहम् भूमिका है। भारत को जापान की स्किल का भरपूर लाभ मिल रहा है।

जापान ने 29 अक्टूबर 2018 को अनुमोदन पत्र जमा कराते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में शामिल होने की घोषणा की। आईएसए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (आईएसए एफए) पर अब तक 70 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और 47 देशों ने इसका अनुमोदन किया है। जापान आईएसए एफए पर हस्‍ताक्षर करने वाला 71वां देश और इसे मंजूरी देने वाला 48वां देश होगा।

येन में ऋण वाली सात परियोजनाओं से संबंधित प्रावधानों के दस्‍तावेजों का आदान-प्रदान किया गया। इन परियोजनाओं में मुंबई-अहमदाबाद हाई स्‍पीड रेल के निर्माण के लिए परियोजना, उमियम-उमत्रूस्टेज-III पनबिजली संयंत्र के नवीनीकरण एवं आधुनिकीकरण के लिए परियोजना, दिल्‍ली मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्‍टम प्रोजेक्‍ट (चरण-3), पूर्वोत्‍तर सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजना, टरगा पंप्‍ड स्‍टोरेज के निर्माण के लिए परियोजना, चेन्नई पेरिफेरल रिंग रोड के निर्माण के लिए परियोजना और त्रिपुरा में स्‍थायी जलग्रहण वन प्रबंधन के लिए परियोजना शामिल हैं। (कुल ऋण प्रावधान 316.458 अरब येन तक)

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के उज्ज्वल भविष्य को संवारने का काम किया

निष्कर्ष के तौर पर हम ये कह सकते हैं कि निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तमाम विदेशी दौरे के ज़रिये देश की साख को मज़बूत करने सार्थक प्रयास किया है। भारतवासियों के मान और अभिमान को नई ऊंचाईयां देने की कोशिश की है जिसका लाभ आने वाले समय में देखने को मिलेगा। भारत के भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होने वाली विदेश नीति का उचित पालन कर प्रधानमंत्री मोदी ने अपना साकारात्मक योगदान दिया है इसलिए ये कहना उचित नहीं होगा कि भारतीय प्रधानमंत्री तो विदेशी दौरो पर ही रहते हैं।

वहीं अगर तुलना की जाए कांग्रेस के शासनकाल की तो ये सच है कि उस समय में इतने विदेशी दौरे तो नहीं हुए है, लेकिन अगर परिणाम की बात की करें तो वर्तमान में भारत विश्वभर में एक उभरती शक्ति के रूप में ख़ुद को प्रदर्शित कर चुका है। बात अगर मनमोहन सरकार की करें तो उनका अधिकांश फोकस अमरीका या एशियाई देशों तक ही सीमित रहा वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विस्तारवादी नीति के अंतर्गत इनोवेशन दिखाते हुए कई देशों का चयन किया, जहां वर्षों तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गए।

भारत देश विश्व-विख्यात तो पहले भी था लेकिन आज के युग में भारत का बदलता स्वरूप ना सिर्फ़ इसकी आभा को चारों तरफ फैला रहा है बल्कि तमाम तरह के विकास कार्यों की बदौलत अपने वजूद को और मज़बूत कर रहा है, फिर चाहे वो तक़नीकी तौर पर हो या आध्यात्मिक। ऐसे में विरोधियों और आलोचकों का ये कहना अनुचित ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केवल विश्व भ्रमण पर ही रहते हैं या भाजपा सरकार की नेतृत्व क्षमता क्षीण हो रही है।

लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में अकेले उतरेगी BJP; अमित शाह का शिवसेना को कड़ा सन्देश

ख़बरों के अनुसार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र में पार्टी के सांसदों से अकेले चुनाव में उतरने की तयारी करने को कहा है। शाह ने दिल्ली में महाराष्ट्र के भाजपा सांसदों की एक बैठक बुलाई थी जहां उन्होंने ये बातें कही। एक सांसद ने बताया कि अमित शाह ने बैठक में कहा कि राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारियां शुरू कर दीजिये क्योंकि इसकी जरूरत पड़ सकती है। सूत्रों के अनुसार भाजपा अध्यक्ष ने बैठक में कहा कि इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों में शिवसेना से गठबंधन के लिए बातचीत चल रही है और इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन अगर चीजें सही नहीं रही तो हमे अकेले चुनाव में उतरने की तैयारी भी शुरू कर देनी चाहिए।

बता दें कि अभी केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना गठबंधन साथी हैं लेकिन शिवसेना भाजपा के खिलाफ काफी मुखर रही है। कुछ दिनों से शिवसेना के नेता लगातार भाजपा के खिलाफ बयान दे रहे हैं और राफेल, नोटबंदी जैसे मुद्दों पर भी शिवसेना केंद्र सरकार के खिलाफ रुख अख्तियार करती रही है। गुरुवार को राम मंदिर को लेकर भी शिवसेना ने भाजपा पर निशाना साधा था और कहा था कि अगर भाजपा के शासनकाल में भी मंदिर नहीं बना तो फिर अब कब बनेगा? इसके अलावे राफेल सौदे की जांच के लिए जेपीसी का गठन किये जाने के विपक्ष की मांग पर भी शिवसेना ने संसद में उनका साथ दिया। इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रख कर अमित शाह ने महाराष्ट्र की सभी 48 लोकसभा सीटों पर चुनावी समर में अकेले उतरने की बात कही है।

अगर सीटों की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और शिवसेना साथ-साथ मैदान में उतरी थी और दोनों से क्रमशः 23 और 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा और शिवसेना दोनों का ही स्ट्राइक रेट काफी बेहतर रहा था क्योंकि भाजपा को कुल 24 सीटों में से सिर्फ एक पर हार मिली थी वही शिवसेना ने 20 सीटों पर जोर आजमाया था और उसे सिर्फ दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। पीटीआई ने एक भाजपा नेता के हवाले से बताया कि अमित शाह ने इस मामले में अपना रुख साफ़ कर दिया है कि अगर 2019 आम चुनावों में शिव्व्सेना के साथ गठबंधन न भी हो तो भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।

बता दें कि पांच राज्यों में पिछड़ने के बाद अमित शाह ने बैठकों का सिलसिला शुरू कर दिया है जिसमे वो आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में लगे हैं। महाराष्ट्र के लिए हुए तजा बैठक में भी इसी पर चर्चा की गई। इस बैठक में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, प्रकाश जावड़ेकर और पीयूष गोयल उपस्थित थे। जी न्यूज़ ने अपने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि दिलीप गाँधी द्वारा गठबंधन पर पूछे गए सवाल पर अमित शाह ने कहा;

“आप सभी अपने-अपने चुनाव क्षेत्र में काम करो। विधानसभा में शिवसेना के साथ हमारा गठबंधन टूट गया। तब हमने तैयारी की और सबसे ज्यादा सीटें लेकर सत्ता में आ गए। ऐसी ही तैयारी इस बार करनी है। शिवसेना के साथ चर्चा चल रही है, लेकिन कुछ खोकर गठबंधन नही करेंगे।”

शाह के इस बयान से यह साफ़ हो जाता है कि भाजपा अपनी सीटें खोएगी नहीं यानी कि वो शिवसेना द्वारा ज्यादा सीटों की मांग पर झुकने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं। इसके अलावे शाह ने सांसदों को कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने का भी आदेश दिया। उन्होंने सांसदों से कहा कि कार्यकर्ताओं को भोजन पर आमंत्रित करें और उनकी समस्याओं को सुन कर समाधान करें।