विश्व के दृष्टिपटल पर अपने अस्तित्व को मज़बूती से रख पाना किसी भी देश के लिए अपने आप में एक सबसे बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में प्रत्येक देश को अपने चहुमुखी विकास की गति में तेज़ी लाने और ख़ुद को एक मज़बूत साझेदार के रूप में साबित करने के लिए देश के मुखिया और अन्य उच्च पदासीनों को अनेकों विदेश यात्राएँ करने की आवश्यकता होती है, फिर चाहे वो देश विकासशील हो या विकसित।
ये विदेश यात्राएँ देश की भविष्य निर्माता भी साबित होती हैं। दौर किसी भी सरकार का रहा हो, ये यात्राएँ उनके कार्यकाल का एक अभिन्न हिस्सा होती हैं, इसमें कोई दोराय नहीं कि हर सरकार अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बुनने में अपना योगदान देती आयी हैं लेकिन हर सरकार अपने इस कर्तव्य को कितनी ईमानदारी से निभाती हैं उसके बारे में हम यहां विस्तार से चर्चा करेंगे।
भूटान, नेपाल और श्रीलंका में भारत की मज़बूत होती बुनियाद
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान लगभग 41 बार विदेश यात्राएँ की हैं और इस दौरान उन्होंने लगभग 50 देशों का दौरा किया। प्रधानमंत्री मोदी ने पदभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरे के लिए भूटान का रुख़ किया और ये दौरा भूटान नरेश और भूटानी प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर हुआ था।
इस यात्रा पर जाने से पूर्व प्रधानमंत्री ने भूटान को प्राथमिकता देते हुए कहा था कि भारत और भूटान के बीच अद्वितीय और ख़ास संबंध हैं जिन्हें भविष्य में और अधिक विकसित करना है। इस विदेश यात्रा के दौरान दोनों देश एक-दूसरे को सामाजिक, आर्थिक और और सांस्कृतिक रूप से सहयोग देने पर कटिबद्ध हुए। निष्कर्ष के तौर पर हम ये देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भूटान को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुनना एक साकारात्मक पहल थी जो प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता को प्रदर्शित करता है।
प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल और श्रीलंका की यात्रा भी इस ओर इशारा करती हैं कि भारत अपनी विदेश नीति के तहत मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संबंधो को आगे बढ़ाने में अग्रणी है। अगर बात करें नेपाल की तो नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का रहा है और बीते कुछ वर्षों से नेपाल और भारत के रिश्तों में दूरी आने लगी थी। ऐसे में यह यात्रा भारत के लिए नए रिश्ते बुनने का काम कर रही है। परवान चढ़ते इस रिश्ते का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को ही जाता है जिन्होंने नेपाल को अपने अभिन्न अंग के रूप में समझा और भविष्य में संबंधों को मधुर बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी जताई।
भारत का नेपाल के साथ अच्छे रिश्ते बनाने का दूसरा कारण चीन का नेपाल की सड़क, बिजली जैसी अन्य मूलभूत संरचना में बढ़ती भागीदारी को रोकना है। पाकिस्तान का नेपाल के साथ मैत्रीपूर्ण प्रयासों के संदर्भ में भारत के लिए यह आवश्यक भी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि चीन-नेपाल-पाकिस्तान का भारत के विरोध में सामूहिक गंठजोड़ न हो पाये।
भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों ने 2018 में अपने दूसरे द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन को चिह्नित करते हुए, 11 मई 2018 को प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता आयोजित की, जो अत्यंत गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण माहौल के माहौल में संपन्न हुई। यह वार्ता दोनों देशों के बीच की गहरी दोस्ती और समझ को दर्शाती है। विभिन्न स्तरों पर दोनों देशों के बीच मौजूद घनिष्ट और बहुमुखी संबंधों की समीक्षा करते हुए, दोनों प्रधान मंत्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर सहयोग को मजबूत करने के साथ-साथ समानता, आपसी विश्वास, सम्मान और पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक-आर्थिक विकास साझेदारी का विस्तार कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाने के लिए मिलकर काम करने के अपने संकल्प को दोहराया।
दोनों प्रधानमंत्रियों ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और लोगों के आवागमन को बढ़ावा देने में संपर्कों की उत्प्रेरक भूमिका को रेखांकित किया। वे वायु, भूमि और पानी से आर्थिक और भौतिक संपर्क बढ़ाने के लिए कदम उठाने पर सहमत हुए। लोगों के आपसी जीवंत संपर्कों और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को पहचानते हुए, दोनों प्रधानमंत्रियों ने संबंधित अधिकारियों को संबंधित तकनीकी टीमों द्वारा नेपाल में अतिरिक्त हवाई प्रवेश मार्गों पर प्रारंभिक तकनीकी चर्चा सहित नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए निर्देश दिया।
श्रीलंका से भारत का रिश्ता प्राचीन काल से है और अपनी इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज श्रीलंका को बौद्धों का एक प्रमुख स्थल होने पर उन्हें गर्व है। बौद्ध धर्म की शुरूआत भले ही भारत में हुई हो लेकिन श्रीलंका ने इस धर्म की पवित्र शिक्षाओं को यहां संरक्षित रखा है और इस कारण भारत को अपनी जड़ों की तरफ लौटने की प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के चक्र को बौद्ध धर्म से लिया गया है।
इन देशों की यात्रा का सीधा असर अन्य गतिविधियों पर भी पड़ता है जैसे एक तरफ चीन का बढ़ता हाथ जो पाकिस्तान से होकर नेपाल और श्रीलंका तक जा पहुंचा था उस पर इन विदेशी दौरो ने विराम लगाने का काम किया है।
भारत-कनाडा के बीच विश्वास का नया माहौल बना
भारत-कनाडा के बीच रिश्तों को सुदृढ़ करने में प्रधानमंत्री मोदी का एक अहम रोल था। अपनी इस विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और कनाडा के बीच अपने बढ़ते संबंधों पर खुलकर बात की और इस बात को स्पष्ट तौर पर जगज़ाहिर किया कि भारत की राष्ट्रीय विकास प्राथमिकता के सभी क्षेत्रों में कनाडा एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच हुए कई प्रकार के समझौतों के फलस्वरूप भारत और कनाडा के मध्य आपसी विश्वास का एक नया माहौल तैयार हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित भारत के अपने सपने का उल्लेख करते हुए इस बात का भी ज़िक्र किया कि यहां युवाओं के लिए भरपूर अवसर उपलब्ध हैं।
खालिस्तानी और इस्लामी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ भारत और कनाडा एकमत हैं और इनके ख़िलाफ़ साझा तौर पर लड़ने का संकल्प भी लिया गया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे पर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ने के लिए अलग से सहयोग का एक ढ़ांचा जारी किया था। इसके अलावा दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने साझा बयान जारी कर मालदीव के हालात पर ना केवल चिंता व्यक्त की बल्कि दक्षिण चीन सागर में भी समुद्री क़ानून का पालन करने पर ज़ोर दिया। इसके अलावा दोनों देशों ने आपसी रक्षा सहयोग बढ़ाने संबंधी 6 समझौतो पर भी हस्ताक्षर किए गए थे।
कनाडा ने भारत का पक्ष लेते हुए आतंकवाद और उग्रवाद के मुक़ाबले के लिए सहयोग के दस्तावेज़ में दोनों देशों ने खालिस्तान समर्थक संगठनों बब्बर खालसा इंटरनैशनल और इंटरनैशनल सिख यूथ फेडरेशन को आतंकवादी संगठन बताया और इनकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए दोनों देश एकजुट हुए। इसके अलावा इस्लामी गुटों अलक़ायदा, आईएस, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मौहम्मद का भी आतंकवादी संगठनों के तौर पर नाम लेकर इनसे साझा मुक़ाबला करने की बात कही गई।
प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी एशियाई देशों की ऐतिहासिक यात्रा
पश्चिमी एशियाई देशों की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक क़दम उठाने की बात कही। इन देशों में फिलिस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ओमान शामिल हैं।
ओमान के सुल्तान से कई विषयों पर चर्चा होने साथ-साथ रक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग सहित आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिसका असर भविष्य में देखने को मिलेगा। ऐसे में ये विदेश यात्राएं प्रधानमंत्री मोदी की सूझबूझ को दर्शाता है।
अफ्रीकी देशों के साथ बढ़ते रिश्तों को मिला नया आयाम
प्रधानमंत्री अपने अफ्रीकी देशों के दौरे के वक़्त दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल हुए जहां उन्होंने चीन, दक्षिण अफ्रीका, तुक्री और रूस के राष्ट्रपतियों सहित कई वैश्विक स्तर के नेताओं से द्विपक्षीय बैठकें कीं। इस दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने न्यू वर्ल्ड ड्रीम की योजना ब्रिक्स सदस्यों से साझा की थी। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी के न्यू वर्ल्ड का सपना टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन पर टिका है जिसका सीधा सा मतलब ये है कि काम करने की तक़नीक को बेहतर और आसान बनाया जाए यानि शिक्षा से लेकर मार्केट और दफ़्तर तक सभी काम ऑनलाइन माध्यम से संपन्न हों।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा से यही निष्कर्ष निकलकर आया कि अब भारत दुनिया में टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन लाने के लिए ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया में विकसित की जा रही नई टेक्नोलॉजी और परस्पर संपर्क के डिजिटल तरीके हमारे लिए अवसर भी हैं और चुनौती भी। टेक्नोलॉजी रिवॉल्यूशन के जरिए रोबोटिक, आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉक चैन, नैनो-टेक्नोलॉजी, क्वांटम कम्प्यूटिंग, बायो-टेक्नोलॉजी, थ्रीडी प्रिंटिंग और ऑटोनोमस व्हिकल्स को बढ़ावा दिया जाएगा।
जर्मनी, रूस, फ्रांस और स्पेन का दौरा कई मायनों में मील का पत्थर साबित
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हर विदेश यात्रा में इस बात का ख़ासा ध्यान रखा कि दुनिया भारत को एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप देखे। जर्मनी को मूल्यवान सहयोगी बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जर्मन स्किल्स भारत के रूपांतरण के लिए उनकी दृष्टि के साथ सटीक बैठती है। अपनी जर्मनी की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने शीर्ष उद्योगपतियों के साथ बातचीत की जिससे व्यापार और निवेश संबंधों को और मज़बूत बनाया जा सके।
अपने स्पेन के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक सहयोग, द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने समेत अन्य वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। इस चर्चा का एक अहम हिस्सा मेक इन इंडिया योजना के तहत भारत में निवेश करने का न्योता देना था जिससे भारत में रोज़गार के अवसरों का सृजन हो सके। इसके अलावा स्पेन-भारत के बीच द्विपक्षीय, आर्थिक और निवेश संबंधी समझौते शामिल थे। इन समझौतों में इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और पर्यटन संबंधी करार शामिल थे, साथ ही ऐसे कई क्षेत्र शामिल थे जिनमें भारत और स्पेन की आपसी साझेदारी देखी गई।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रूस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 18वें भारत-रूस वाषिर्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और उसके बाद सेंट पीटर्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच में भी शिरकत की। अपनी रूस यात्रा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रिश्तों में गर्मजोशी बनाए रखने पर वचनबद्धता को दोहराया। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैन्युल मैक्रां के साथ भारत-फ्रांस रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के उद्देश्य से आधिकारिक वार्ता में हिस्सा लिया। फ्रांस को भारत का अहम रणनीतिक साझेदार बताते हुए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पश्चिम यूरोप) रणधीर जायसवाल ने कहा था कि दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु, रक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में मजबूत सहयोग है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस की सबसे आधुनिक वायु रक्षा प्रणाली को खरीदने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। भारत ने करीब 39000 करोड़ की लागत से 5 एस-400 ‘ट्रायंफ’ वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की खरीद के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
एस-400 मिसाइल सिस्टम 400 किलोमीटर के दायरे में क़रीब 300 निशानों को ट्रैक कर सकता महै और एक साथ क़रीब दर्जन को मार गिरा सकता है। इस मिसाइल का संवेदनशील रडार स्टील्थ विमानों का भी पता लगाने में सक्षम ना जाता है। ग़ौरतलब है कि स्टील्थ विमान प्राय: पकड़ में नहीं आते हैं।
भारत द्वारा ख़रीदी जा रही 5 मिसाइलों से सामरिक महत्व के बड़े ठिकानों जिनमें परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों की सुरक्षा में मदद मिलेगी। ये मिसाइलें भारत के लिए एक तरह से शील्ड का काम भी करेंगी जो पाकिस्तान और चीन की परमाणु शक्ति संपन्न बैलेस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करेगी।
अमेरिका, इज़रायल और जापान यात्रा ने भारत की दशा और दिशा सुधारने में योगदान दिया
भारत के अमेरिका से प्रगाढ़ होते रिश्ते कहीं ना कहीं पाकिस्तान और चीन को अपनी हद याद दिलाने में सहायक साबित होते हैं। दबाव की स्थिति जो भारत की ओर से बनती है उसमें प्रधानमंत्री मोदी के ये विदेशी दौरे काफी हद तक मायने रखते हैं। अमरीका ने भारत को एक ख़ास दर्जा देकर ना सिर्फ़ दुनिया में भारत की धाक बढ़ाई है, बल्कि चीन को एक कड़ा संदेश भी दिया है। एनएसजी में भारत के शामिल होने पर आपत्ति करने वाले चीन के लिए एक तरह से ये एक बड़ा झटका है क्योंकि मरीका ने भारत को रणनीतिक व्यापार अधिकरण-1 (एसटीए-1) का दर्जा दिया जाता है और ये दर्जा पाने वाला दक्षिण एशियाई देशों में भारत इकलौता राष्ट्र बन गया है।
इस बात को इस नज़रिये से भी समझा जा सकता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को रोकन के लिए भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर जिस चतुर्भुज की स्थापना की है उससे चीन का चिंतित होना स्वाभाविक है और चिंतित होना भी चाहिए। इसी संदर्भ में भारत और जापान ने एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर बनाने की बात कही जिसके लिए अफ्रीका के कई देशों ने इस कॉरिडोर के लिए अपनी सहमति भी दे दी है। इस कॉरिडोर के बन जाने के बाद अफ्रीका समुद्री रास्तों से सीधे-सीधे दक्षिण-पूर्वी एशिया से जुड़ जाएगा। इन परिस्थितियों में ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह एक प्रकार से चीन की मेरीटाइम सिल्क रोड के द्वारा यूरोप और अफ्रीकी देशों से व्यापार करके उन पर दबदबा कायम करने की उसकी नीति का व्यावहारिक जवाब साबित होगा। वैसे भी भारत चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ की नीति का विरोध करने वालों में पहला देश रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़राइल यात्रा के दौरान उन्होंने इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को समुद्र में एक विशेष प्रकार की जीप में बैठे देखा था। इस विशेष प्रकार की जीप का काम समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में परिवर्तित करने का था, जो काफी अश्चर्यजनक था। इसके बाद जब दोनों प्रधानमंत्रियों ने उस खारे पानी को पिया तो ऐसा वास्तव में था कि समुद्र का खारा पानी मीठे पानी में तब्दील हो चुका था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उस जीप को प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपने भारत दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी को बतौर भेंट स्वरूप प्रदान कर दिया। 71 लाख की क़ीमत वाले इस संयंत्र से एक दिन में 20, 000 लीटर पानी शुद्ध किया जा सकता है।
दुनिया में इज़रायल ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में परिवर्तित करने का अदम्य साहस किया है। दुनिया में इज़रायल इकलौता देश है, जिसने समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने की तकनीक ईजाद की है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2050 तक जब विश्व की 40 फीसदी आबादी जल संकट भोग रही होगी, तब भी इज़रायल में पीने के पानी का संकट नहीं होगा।
इज़रायल न सिर्फ़ हथियारों, बल्कि पानी के मामले में भी महाशक्ति बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर संयुक्त रूप से कार्य करने को लेकर सहमति बनी। साइबर सुरक्षा के अलावा फिल्म निमार्ण, पेट्रोलियम, ‘इनवेस्ट इंडिया इनवेस्ट इजरायल को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है। इसके अलावा दोनों देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी मिलकर काम करने को वचनबद्ध हुए हैं साथ ही दोनों देशों के बीच फिल्म, स्टार्ट अप इंडिया, रक्षा और निवेश को लेकर सहमति बनी है। वैश्विक स्तर पर भारत के प्रगाढ़ होते संबंध निश्चित तौर पर एक अच्छे संदेश के रूप में देखे जा सकते हैं जिसका फलीभूत होना आने वाले समय में तय है।
आज भारत डिजिटल संसाधनों के क्षेत्र में शानदार तरीके से प्रगति कर रहा है। ब्राडबैंड की कनेक्टिविटी गांव-गांव तक पहुंच रही है। डिजिटल माध्यम एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। बुलेट ट्रेन से लेकर स्मार्ट सिटी तक न्यू इंडिया का नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है, उसमें जापान की भूमिका एक अहम् भूमिका है। भारत को जापान की स्किल का भरपूर लाभ मिल रहा है।
जापान ने 29 अक्टूबर 2018 को अनुमोदन पत्र जमा कराते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में शामिल होने की घोषणा की। आईएसए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (आईएसए एफए) पर अब तक 70 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और 47 देशों ने इसका अनुमोदन किया है। जापान आईएसए एफए पर हस्ताक्षर करने वाला 71वां देश और इसे मंजूरी देने वाला 48वां देश होगा।
येन में ऋण वाली सात परियोजनाओं से संबंधित प्रावधानों के दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया गया। इन परियोजनाओं में मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल के निर्माण के लिए परियोजना, उमियम-उमत्रूस्टेज-III पनबिजली संयंत्र के नवीनीकरण एवं आधुनिकीकरण के लिए परियोजना, दिल्ली मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम प्रोजेक्ट (चरण-3), पूर्वोत्तर सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजना, टरगा पंप्ड स्टोरेज के निर्माण के लिए परियोजना, चेन्नई पेरिफेरल रिंग रोड के निर्माण के लिए परियोजना और त्रिपुरा में स्थायी जलग्रहण वन प्रबंधन के लिए परियोजना शामिल हैं। (कुल ऋण प्रावधान 316.458 अरब येन तक)
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के उज्ज्वल भविष्य को संवारने का काम किया
निष्कर्ष के तौर पर हम ये कह सकते हैं कि निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तमाम विदेशी दौरे के ज़रिये देश की साख को मज़बूत करने सार्थक प्रयास किया है। भारतवासियों के मान और अभिमान को नई ऊंचाईयां देने की कोशिश की है जिसका लाभ आने वाले समय में देखने को मिलेगा। भारत के भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होने वाली विदेश नीति का उचित पालन कर प्रधानमंत्री मोदी ने अपना साकारात्मक योगदान दिया है इसलिए ये कहना उचित नहीं होगा कि भारतीय प्रधानमंत्री तो विदेशी दौरो पर ही रहते हैं।
वहीं अगर तुलना की जाए कांग्रेस के शासनकाल की तो ये सच है कि उस समय में इतने विदेशी दौरे तो नहीं हुए है, लेकिन अगर परिणाम की बात की करें तो वर्तमान में भारत विश्वभर में एक उभरती शक्ति के रूप में ख़ुद को प्रदर्शित कर चुका है। बात अगर मनमोहन सरकार की करें तो उनका अधिकांश फोकस अमरीका या एशियाई देशों तक ही सीमित रहा वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विस्तारवादी नीति के अंतर्गत इनोवेशन दिखाते हुए कई देशों का चयन किया, जहां वर्षों तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गए।
भारत देश विश्व-विख्यात तो पहले भी था लेकिन आज के युग में भारत का बदलता स्वरूप ना सिर्फ़ इसकी आभा को चारों तरफ फैला रहा है बल्कि तमाम तरह के विकास कार्यों की बदौलत अपने वजूद को और मज़बूत कर रहा है, फिर चाहे वो तक़नीकी तौर पर हो या आध्यात्मिक। ऐसे में विरोधियों और आलोचकों का ये कहना अनुचित ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केवल विश्व भ्रमण पर ही रहते हैं या भाजपा सरकार की नेतृत्व क्षमता क्षीण हो रही है।