Friday, April 26, 2024

विचार

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के जलसे में भारत के वामपंथियों की ता थैया, पीछे-पीछे कॉन्ग्रेसी भी कह सकते हैं- हम भी आ गए भैया!

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता करने वाली कॉन्ग्रेस, वामपंथियों की कला सीख चीनी दूतावास के समारोहों में खुलेआम दिखाई दे तो चौंकिएगा मत।

बंगाल की गद्दी किसे सौंपेंगी? गाँधी-पवार की राजनीति को साधने के लिए कौन सा खेला खेलेंगी सुश्री ममता बनर्जी?

ममता बनर्जी का यह दौरा पानी नापने की एक कोशिश से अधिक नहीं। इसका राजनीतिक परिणाम विपक्ष को एकजुट करेगा, इसे लेकर संदेह बना रहेगा।

कराहते केरल में बकरीद के बाद विकराल कोरोना लेकिन लिबरलों की लिस्ट में न ईद हुई सुपर स्प्रेडर, न फेल हुआ P विजयन मॉडल!

काँवड़ यात्रा के लिए जल लेने वालों की गिरफ्तारी न्यायालय के आदेश के प्रति उत्तराखंड सरकार के जिम्मेदारी पूर्ण आचरण को दर्शाती है। प्रश्न यह है कि हम ऐसे जिम्मेदारी पूर्ण आचरण की अपेक्षा केरल सरकार से किस सदी में कर सकते हैं?

उत्तर-पूर्वी राज्यों में संघर्ष पुराना, आंतरिक सीमा विवाद सुलझाने में यहाँ अड़ी हैं पेंच: हिंसा रोकने के हों ठोस उपाय  

असम के मुख्यमंत्री नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं। उनके और साथ ही अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए यह अवसर है कि दशकों से चल रहे आंतरिक सीमा विवाद का हल निकालने की दिशा में तेज़ी से कदम उठाएँ।

जाति है कि जाती नहीं… यूपी में अब विकास दुबे और फूलन देवी भी नायक? चुनावी मेंढक कर रहे अपराधियों का गुणगान

किसी को ब्राह्मण के नाम पर विकास दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला तो किसी को निषाद के नाम पर फूलन देवी याद आ रही है। वोट के लिए जातिवाद में अपराधियों को ही नायक क्यों बनाया जाता है?

‘कारगिल कमेटी’ पर कॉन्ग्रेस की कुण्डली: लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा राजनीतिक दृष्टिकोण का न हो मोहताज

हमें ध्यान में रखना होगा कि जिस लोकतंत्र पर हम गर्व करते हैं उसकी सुरक्षा तभी तक संभव है जबतक राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय किसी राजनीतिक दृष्टिकोण का मोहताज नहीं है।

रूठे कॉन्ग्रेसियों के लिए मौसम अच्छा… पर सचिन पायलट न सिद्धू हैं और न राजस्थान की आबोहवा पंजाब जैसी

पंजाब में सिद्धू की लड़ाई पार्टी के भीतर अपना 'कद' हासिल करने की थी, जबकि राजस्थान में पायलट अपना 'हक' हासिल करने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

कीचड़ मलती ‘गोरी’ पत्रकार या श्मशानों से लाइव रिपोर्टिंग… समाज/मदद के नाम पर शुद्ध धंधा है पत्रकारिता

श्मशानों से लाइव रिपोर्टिंग और जलती चिताओं की तस्वीरें छापकर यह बताने की कोशिश की जाती है कि स्थिति काफी खराब है और सरकार नाकाम है।

जिस भास्कर में स्टाफ मर्जी से ‘सूसू-पॉटी’ नहीं कर सकते, वहाँ ‘पाठकों की मर्जी’ कॉर्पोरेट शब्दों की चाशनी है बस

"भास्कर में चलेगी पाठकों की मर्जी" - इस वाक्य में ईमानदारी नहीं है। पाठक निरीह है, शब्दों का अफीम देकर उसे मानसिक तौर पर निर्जीव मत बनाइए।

16 अगस्त को ममता बनर्जी मना रहीं ‘खेला होबे दिवस’, 1946 की इसी तारीख को मुस्लिम लीग ने लॉन्च किया था ‘डायरेक्ट एक्शन डे’

16 अगस्त 1946 को हिंदुओं का कत्लेआम शुरू हुआ था, उसी तारीख को 'खेला होबे दिवस' मना क्या संदेश देना चाहती हैं ममता बनर्जी?

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