Sunday, November 17, 2024
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कर्नाटक उपचुनाव पर कुमारस्वामी का बयान- हम दुःखी थे, लेकिन हमसे ज़्यादा दुःखी 3 और लोग थे

कुमारस्वामी ने जनता को डाँटते हुए पहले ही कहा था- "मोदी के पास जाओ, उन्हें अपनी समस्याएँ सुनाओ।" जनता ने उनकी बात सुन ली है। वो मोदी के पास चली गई है।

कर्नाटक में उपचुनाव हुए। 4 महीने पहले बनी येदियुरप्पा सरकार के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी। भाजपा को 6 सीटें जितनी ही जितनी थी, वरना सरकार चली जाती। फिर सवाल भी उठते। आरोप लगता कि कॉन्ग्रेस और जेडीएस की सरकार को गिरा कर भाजपा ख़ुद भी बहुमत साबित नहीं कर पाई और ‘चाणक्य’ अमित शाह एक बार फिर से विफल रहे। वो तो अच्छा हुआ कि कॉन्ग्रेस की जीत नहीं हुई वरना सिद्दारमैया के रूप में मीडिया के पास एक नया ‘चाणक्य’ मिल जाता। ठीक वैसे ही, जैसे महाराष्ट्र में शरद पवार के रूप में एक पुराना ‘चाणक्य’ खड़ा हो गया और संजय राउत रूप में शिवसेना को भी एक शायरी-प्रेमी ‘चाणक्य’ मिला।

इन सारे चाणक्यों के चक्कर में याद दिलाना ज़रूरी है कि असली चाणक्य विष्णुगुप्त थे। कहीं ऐसा न हो कि कल को इतने चाणक्य हो जाएँ कि विष्णुगुप्त अथवा कौटिल्य के बारे में किसी को पता ही न हो। खैर, आगे बढ़ने से पहले आँकड़ों पर नज़र डालना ज़रूरी है। कर्नाटक में 15 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 12 सीटों पर अपनी जीत लगभग सुनिश्चित कर ली है। कॉन्ग्रेस को 2 सीटें आईं और 1 सीट स्वतंत्र उम्मीदवार के पाले में गई। जहाँ तक जेडीएस की बात है, देवगौड़ा और कुमारस्वामी कब रोने आएँगे, इसका मीडिया को बेसब्री से इंतज़ार है।

पिता-पुत्र दुःखी ज़रूर होंगे। कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के ‘चाणक्य’ डीके शिवकुमार भी दुःखी होंगे। लेकिन उन्हें ‘थ्री इडियट्स’ का वो डायलॉग ज़रूर याद आ रहा होगा। तभी तो दोनों सोच रहे होंगे कि वो तो दुःखी हैं ही लेकिन उनसे ज्यादा दुःखी 3 और लोग हैं। उन तीन लोगों में ठाकरे, जो सीएम बेटे को बनाना चाहते थे लेकिन अंत में ख़ुद बन गए। दूसरे हैं आदित्य ठाकरे, जो भाई-बहन-चाचा-कजन-फूफा-मौसा सबके साथ सरकारी बैठकों में शामिल होते हैं। तीसरे दुःखी व्यक्ति होंगे शरद पवार, क्योंकि बकियों के मुक़ाबले उनकी प्रतिष्ठा ज्यादा दाँव पर है।

हाँ, प्रधानमंत्री ज़रूर ख़ुश हैं। उधर संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक के लिए हंगामा मचा हुआ है, इधर पीएम झारखण्ड में चुनाव प्रचार करने निकले हुए हैं। जब शाह वहाँ मौजूद हैं तो भला टेंशन कैसे लेना? तभी तो मोदी ने झांरखंड के निवासियों को कर्नाटक उपचुनाव के परिणाम याद दिलाया और कहा कि देखो कैसे वहाँ लोगों ने कॉन्ग्रेस को करारा सबक सिखाया है। हज़ारीबाग में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि जिन्होंने जनादेश के साथ धोखा किया था, उन्हें जनता ने लोकतान्त्रिक तरीके से सज़ा दे दी। इस बयान की गूँज बंगलौर तो नहीं लेकिन मुंबई में ज़रूर एक सन्देश पहुँचा रही होगी।

जनादेश के साथ धोखा- यही वो वक्तव्य था, जिसका प्रयोग केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस के गठबंधन के लिए किया था। पीएम मोदी के बयान के बाद मुंबई के सियासी हलकों में ये चर्चा ज़रूर चल रही होगी अब वहाँ के 3 दलों को ‘लोकतान्त्रिक सज़ा’ कब मिलेगी? मोदीजी ने कहा कि जो-जो जनता के साथ धोखा करेगा, उसे ऐसे ही पाठ पढ़ाया जाएगा। अब मुंबई के लिए शाह और मोदी का क्या सिलेबस होगा, उसमें कौन सी पुस्तकें होंगी और कौन सा पाठ पढ़ाया जाएगा, ये देखने वाली बात है। और हाँ, सिलेबस में ‘अर्थशास्त्र’ नहीं होगा क्योंकि ये असली चाणक्यों का खेल नहीं है। एक बार फिर दोहराइए- चाणक्य विष्णुगुप्त ही थे। वैसे कुमारस्वामी ने उद्धव को भेजे अपने पत्र में पहले ही लिखा था:

“प्रिय उद्धव, अंत में क्या हुआ? हम भी रेले गए, आप भी रेले जाएँगे। याद रखिए, मुख्यमंत्री तो मैं था लेकिन पावर सेंटर सिद्दारमैया था। ख़ुद के हालात देखिए। भले मुख्यमंत्री मातोश्री का हो लेकिन सत्ता तो ‘सिल्वर ओक’ से ही चलेगी न। मेरे पिता की कुछ महत्वाकांक्षाएँ थीं तो आपके बेटे की है। मेरा कार्यकाल रोते-रोते बीता और मैं 5 साल तो क्या, डेढ़ वर्ष भी पूरे नहीं कर पाया। फिर आपकी तीन पहिए वाली सरकार का संतुलन कब तक बना रहेगा, ये सोचने वाली बात है। हमने डीके शिवकुमार पर भरोसा किया था, आपने संजय राउत पर किया है।”

कॉन्ग्रेस का बयान आया है कि जनता ने दलबदलुओं पर भरोसा जताया। पार्टी की ये पुरानी आदत रही है। सोनिया-राहुल को बचाने के लिए जनता, ईवीएम और चुनाव आयोग को ढाल बना कर खड़ा किया जाता रहा है। पीएम मोदी का राँची में बयान, बंगलौर में विधानसभा के आँकड़े बदलना, मुंबई में नई सरकार की सियासी हलचल और दिल्ली में संसद में नागरिकता बिल- ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। कुमारस्वामी ने जनता को डाँटते हुए पहले ही कहा था- “मोदी के पास जाओ, उन्हें अपनी समस्याएँ सुनाओ।” जनता ने उनकी बात सुन ली है। वो मोदी के पास चली गई है।

ये भी पढ़ें: हम भी रेले गए थे, तुम भी रेले जाओगे: उद्धव ठाकरे को मिली कुमारस्वामी की चिट्ठी

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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