Saturday, May 4, 2024
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आठवें अवतार, 64 कलाओं के ज्ञाता… पूर्ण पुरुष कहलाते हैं श्रीकृष्ण, जानिए माखनचोरी और रासलीला के पीछे क्या हैं रहस्य

इस लीला से यह सन्देश मिलता है कि यदि किसी व्यक्ति को समाज का मक्खन अर्थात् शिक्षा, सम्मान, यश, वैभव, धन-दौलत, प्राप्त हुआ है तो उसका कर्त्तव्य बनता है कि समाज के हर वर्ण के साथ वह उसे बाँटे। क्योंकि उसने जो भी पाया है समाज के हर वर्ग से पाया है।

भारतवर्ष ने जहाँ एक ओर विदेशी आक्रांताओं का दंश झेला, अत्याचार सहे वहीं दूसरी ओर इस पुण्यभूमि पर अनेकों महापुरुषों, ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया। इस देवभूमि को तो साक्षात ईश्वर की माता कहलाने का भी गौरव प्राप्त है और हम भरतवंशियों को ईश्वर का वंशज कहलाने का परम सौभाग्य मिला है। भारतीय संस्कृति में अनेक अवतार हुए परन्तु श्रीकृष्ण उनमें सबसे लोकप्रिय हैं। भक्तवत्सल भगवान श्रीहरि विष्णु जी के आठवें अवतार श्रीकृष्ण 64 कलाओं के ज्ञाता थे। इसी कारण उन्हें पूर्ण पुरुष भी कहा जाता है।

श्रीकृष्ण प्रेम की मूरत हैं। उनके नटखट बालस्वरूप की तो दुनिया दीवानी है। उनके जन्म के हजारों वर्षों पश्चात भी प्रभु की सुमधुर बाल लीलाएँ इतनी प्रसिद्ध हैं कि भारत की हर माता वात्सल्य में अपने लाल को कान्हा ही पुकारती है। आज भी ‘मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो’ जनमानस का प्रिय भजन है।

आज भी राधाजी और श्रीकृष्ण की प्रेम कहानी प्रेमियों के लिए आदर्श है। मित्रता की जब भी चर्चा होती है तो यहाँ सर्वप्रथम द्वारिकाधीश और सुदामा का ही उदाहरण दिया जाता है। उनकी मित्रता की करुण कथा से सबकी आँखें नम हो जाती हैं। स्त्री अस्मिता पर जब आँच आती है तो सुदर्शन चक्रधारी का न्याय याद आता है। श्रीकृष्ण के नारीवाद के समक्ष संसार के समस्त तथाकथित नारीवाद फीके पड़ जाते हैं। प्रभु ने हर रिश्ते को जी भर जिया है और समाज के समक्ष श्रेष्ठ आदर्श प्रस्तुत किया है।

जब श्रीकृष्ण धरती पर मनुज रूप में अवतरित हुए तब साधारण मनुष्य की भाँति ही उनका भी जीवन कष्टों, संघर्षों और पग-पग पर चुनौतियों से भरा हुआ था। उनके जन्म से पूर्व ही उन्हें मारने का षड्यंत्र रच दिया जाता है। राजकुमार होते हुए भी कारागृह में जन्म और तत्क्षण अपने माता-पिता से वियोग सहना पड़ता है। प्रतिक्षण मृत्यु का सामना करने वाले बाल गोपाल सदैव आनंदित ही रहते थे। वह जो भी कार्य करते उसमें जनकल्याण का भाव छिपा रहता। यही कारण है कि ‘माखनचोरी से लेकर महाभारत युद्ध’ को भी प्रभु की लीला ही कहा जाता है।

माखनचोरी का उद्देश्य

भक्तगण तो माखनचोरी को मात्र अपने कन्हैया की लीला समझकर वात्सल्य रस में डूब जाते हैं, परन्तु गुणिजनों ने इस संदर्भ की विविध प्रकार से व्याख्या की है। तत्कालीन परिस्थिति यह थी कि मथुरा में अत्याचारी कंस का शासन था। नंदगाँव, बरसाना, गोकुल, वृंदावन और आसपास के इलाकों में अहीर अथवा यादव दुग्ध का व्यापार करते थे, पशुपालन, गौ पालन करते थे। अपने क्रूर राजा के आदेशानुसार वे लोग घी, दही, छाछ, मक्खन, मलाई बनाते थे, परन्तु उसका एक छटांक भी वे अपने परिवार के लिए नहीं रख पाते। भयवश मक्खन आदि के पात्र को मटके में भरकर बच्चों की पहुँच से दूर, रस्सी में बाँध कर लटका दिया जाता। समय आने पर सभी वस्तुओं को मथुरा भेज दिया जाता, जहाँ बड़े-बड़े घरों में लोग दूध पान करते, कंस की दोनों रानियाँ अपने सौन्दर्य के लिए मक्खन का लेप करती, दुग्ध स्नान करती।

अपने अधिकार को जताने हेतु ही श्रीकृष्ण ने बाल-सखाओं के साथ मिलकर माखनचोरी की लीला की थी। इस लीला में चार मण्डल बने। सबसे पहले हृष्ट-पुष्ट बालकों का समूह खड़ा होता, जो आज के संदर्भ में मजदूर वर्ग हैं। अर्थात शारीरिक श्रम करने वाले लोग जिनमें अथाह बल होता है। उसके ऊपर सबकी सुरक्षा करने वाला क्षत्रिय वर्ग, उसके ऊपर वैश्य वर्ग जिनके व्यापार के कारण ही हमें तमाम आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं और अंत में ब्राह्मण वर्ग जो अमूमन शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ नहीं होता। इन सबके ऊपर सबकी रक्षा और सम्मान करने वाले भगवान श्रीकृष्ण चढ़ते और मटकी फोड़कर जो भी नवनीत प्राप्त होता वह सबमें बाँट देते। इसीलिए तो उन्हें योगेश्वर भी कहा जाता है।

इस लीला से यह सन्देश मिलता है कि यदि किसी व्यक्ति को समाज का मक्खन अर्थात् शिक्षा, सम्मान, यश, वैभव, धन-दौलत, प्राप्त हुआ है तो उसका कर्त्तव्य बनता है कि समाज के हर वर्ण के साथ वह उसे बाँटे। क्योंकि उसने जो भी पाया है समाज के हर वर्ग से पाया है। सरलतम शब्दों में इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यदि अन्नदाता किसान खेती करना छोड़ दे तो अपार धन-संपदा का स्वामी होने के पश्चात भी क्या अन्न का एक दाना भी नसीब हो सकता है? यदि सफाई कर्मचारी हमारे द्वारा फैलाई गंदगी को साफ करने से मना कर दे तो क्या उस परिवेश में जीवित रहा जा सकता है? यदि सेना राष्ट्र रक्षा करना छोड़ दे तो क्या कोई चैन की नींद सो पाएगा? यदि शिक्षक ज्ञान धारा को रोक दे तो क्या कोई ज्ञानी बन सकता है?

स्वामी विवेकानंद कहते थे, “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं; तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार मानता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित हुआ और अब वह उनकी ओर ध्यान नहीं देता।” स्पष्ट है कि हम सब अपने समाज के ऋणी होते हैं। अपने देश का ऋण सबसे बड़ा ऋण होता है, यदि इसका एकांश भी चुका पाए तो बाकी सब ऋण स्वतः ही उतर जाता है। अतः हमें अपने भीतर सेवा, करुणा और संवेदनशीलता और दायित्वबोध को बढ़ाना होगा। ‘जीवने यावदादानं स्यात्प्रदानं ततोऽधिकम्’ जैसे महामंत्र को मन में धारण कर परमार्थ में जुटना होगा। यही हमारा कर्म भी है और धर्म भी।

रासलीला का सन्देश

सदैव स्थितप्रज्ञ रहने वाले योगेश्वर श्रीकृष्ण परमानंद की मूर्ति थे। वह कहते थे कि जीवन को उत्सव के समान जीना चाहिए। रासलीला का परिदृश्‍य ऐसा है कि चारों ओर संकटों के बादल मँडराए हुए थे। दुराचारी कंस, जरासंध और उसके आसुरी मित्रों का आतंक अपने चरम पर था। नित नवीन षड्यंत्र रचकर श्रीकृष्ण की हत्या का प्रयास किया जाता। ऐसी विकट परिस्थिति में भी मुरलीधर ने अपनी बँसी पर तान छेड़ कर गोपियों के साथ आनंदित हो नृत्य किया। कान्हा जी हमें छोटे-छोटे क्षणों का आनन्द उठाना सिखलाते हैं। भविष्य की चिंता न कर वर्तमान में जीना सिखलाते हैं। हर प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं पर नियंत्रण, विधाता पर विश्वास, सकारात्मकता, शांति और आनंद बनाए रखना ही रास कहलाता है। हम सब गोपियाँ ही तो हैं जो कुंठित हैं और यदि ईश्वर में चित्त लगा लें तो सदा के लिए आनंद की अमृतधारा में डूब जाएँगे और यह समझ जाएँगे की संकट अस्थायी है और बिना विचलित हुए भी उसका सामना किया जा सकता है।

श्रीभगवान गीता में स्वयं ही अपने जन्म का कारण बताते हुए कहते हैं,

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

महाभारत काल में जब युद्ध से पहले ही भटके हुए योद्धा अर्जुन ने हथियार डाल दिए थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मार्ग पर लाने के लिए जो ज्ञान की गंगा बहाई उसे हम गीता कहते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है, वरन् प्राणिमात्र के कल्याण का दुर्लभ ग्रंथ है। संसार भर के विभिन्न क्षेत्र के दिग्गजों, विद्वानों और महापुरुषों ने इस ग्रंथ को अपना जीवन आदर्श और प्रेरणा माना है।

जीवन रूपी महासमर में हम सब भी उसी भटके हुए अर्जुन के समान हैं। परन्तु हम वीर, पराक्रमी योद्धा अर्जुन की तरह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत नहीं हैं। अतः प्रत्यक्ष रूप से तो ईश्वर हमारे लिए प्रकट नहीं हुए तथापि गीता के रूप में अवश्य हमारे सारथी बनकर आए हैं। यह ग्रंथ समस्त वेद, पुराणों का सार है। इसे विश्व का पहला मनोवैज्ञानिक ग्रंथ कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। अतः इसमें जीवन के हर रहस्य, हर प्रश्न का उत्तर व्याप्त है। जिस प्रकार कलियुग के प्रत्येक पात्र को महाभारत में ढूँढा जा सकता है, उसी प्रकार इस युग की हर समस्या का निदान गीता जी में व्याप्त है।

गोपियों की भाँति एक दिन के लिए नृत्य करके, सज-सँवर के सोशल मीडिया पर सेल्फी डालकर, लड्डू गोपाल जी को झूला झुलाकर, स्वयं के स्वाद हेतु केक, चॉकलेट, बिस्कुट, कोल्ड ड्रिंक आदि अशोभनीय पदार्थों का तथाकथित भोग लगाने जैसा अशास्त्रीय आचरण करके भगवद् प्राप्ति हो या न हो किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता पढ़कर निश्चित रूप से परमब्रह्म की अनुभूति की जा सकती है। जीवन जीने की कला गीता पढ़कर ही आएगी, सफल और सार्थक जीवन का मंत्र हमें उसी से प्राप्त होगा। अतः इस जन्माष्टमी संकल्प लें कि दैनिक जीवन में नित्य गीता का पाठ करेंगे और एक सार्थक जीवन की ओर अग्रसर होंगे।

(लेखिका शुभांगी उपाध्याय, कलकत्ता विश्वविद्यालय में पी.एच.डी शोधार्थी हैं। )

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Shubhangi Upadhyay
Shubhangi Upadhyay
Shubhangi Upadhyay is a Research Scholar in Hindi Literature, Department of Hindi, University of Calcutta. She obtained Graduation in Hindi (Hons) from Vidyasagar College for Women, University of Calcutta. She persuaded Masters in Hindi & M.Phil in Hindi from Department of Hindi, University of Calcutta. She holds a degree in French Language from School of Languages & Computer Education, Ramakrishna Mission Swami Vivekananda's Ancestral House & Cultural Centre. She had also obtained Post Graduation Diploma in Translation from IGNOU, Regional Centre, Bhubaneswar. She is associated with Vivekananda Kendra Kanyakumari & other nationalist organisations. She has been writing in several national dailies, anchored and conducted many Youth Oriented Leadership Development programs. She had delivered lectures at Kendriya Vidyalaya Sangathan, Ramakrishna Mission, Swacch Bharat Radio, Navi Mumbai, The Heritage Group of Instituitions and several colleges of University of Calcutta.

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