Tuesday, January 7, 2025
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‘ब्राह्मणवादी सोच है मदिरों में दर्शन के समय कमीज नहीं पहनना’: केरल में हिंदू आस्था पर प्रहार के लिए ‘सुधारक मठ’ और वामपंथी सरकार ने मिलाए हाथ

बिना कमीज मंदिर जाने की परंपरा को 'ब्राह्मणवाद' से जोड़ने वाले इस मठ द्वारा संचालित कई मंदिरों में भी प्रवेश के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से को खुला रखना पड़ता है।

भारत के सबसे पढ़े-लिखे लोगों का राज्य कहा जाने वाला केरल अपनी धार्मिक आजादी को लेकर जागरुक रहा है। हालाँकि केरल की वामपंथी सरकार पर एक बार फिर हिंदू परंपराओं में हस्तक्षेप का आरोप लग रहा है। ताजा विवाद मंदिरों में ड्रेस कोड से जुड़ा है, जिसमें पुरुषों को बिना शर्ट के मंदिर में प्रवेश करना पड़ता है। शिवगिरी मठ के प्रमुख सच्चिदानंद स्वामी ने इस परंपरा को खत्म करने की माँग की है और इसे जातिवाद का हिस्सा बताया है। उनकी इस माँग को लेकर विवाद बढ़ चुका है, जिसमें कूदते हुए केरल की वामपंथी सरकार अब हिंदू परंपराओं को निशाना बनाने की कोशिश कर रही है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, शिवगिरी मठ के प्रमुख सच्चिदानंद स्वामी ने शिवगिरी पीठ के सालाना कार्यक्रम के दौरान केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की उपस्थिति में एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने पुरुषों के लिए मंदिरों में बिना शर्ट के जाने की परंपरा को खत्म करने की माँग की। इस दौरान मुख्यमंत्री विजयन ने सच्चिदानंद स्वामी की बात को सकारात्मक बताते हुए समर्थन दिया, लेकिन कहा कि इसे लागू करने के लिए सभी संबंधित पक्षों के बीच सहमति बनाना जरूरी है। उन्होंने यह बयान बेहद सावधानी रखते हुए दिया, क्योंकि इससे पहले उनकी सरकार ने सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने की कोशिश की थी, जो बड़े विवाद में बदल गया था।

दरअसल, सच्चिदानंद स्वामी का कहना है कि ड्रेस कोड ब्राह्मणवादी सोच का प्रतीक है और इसका मकसद गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों से दूर रखना है। उन्होंने यह आरोप लगाया कि यह परंपरा पुजारियों और धर्मगुरुओं द्वारा थोपे गए नियमों का हिस्सा है। मुख्यमंत्री ने इस परंपरा को खत्म करने के लिए सहमति बनाने की बात कही है।

यहाँ ये बताना जरूरी है कि साल 1982 में भी गुरुवायूर मंदिर में ‘ब्राह्मण भोजन’ प्रथा के खिलाफ इसी तरह का विवाद हुआ था। उस समय समाज सुधारक नारायण गुरु के शिष्य आनंद तीर्थन ने इस प्रथा को चुनौती दी थी, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरन ने इसे समाप्त कर दिया था। आज फिर वही इतिहास दोहराया जा रहा है। हिंदू संगठनों का आरोप है कि यह मुद्दा ड्रेस कोड से अधिक गहरा है। यह हिंदू समाज को उसकी परंपराओं और संस्कृति से अलग करने का एक सुनियोजित प्रयास है।

नायर सर्विस सोसाइटी (NSS) ने सच्चिदानंद स्वामी की माँग और सरकार के रुख का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मंदिरों की परंपराएँ किसी सरकार या बाहरी व्यक्ति के कहने पर नहीं बदली जा सकतीं। NSS महासचिव जी. सुकुमारन नायर ने सवाल उठाया कि सच्चिदानंद स्वामी को किस अधिकार से मंदिर की परंपराओं को चुनौती देने का हक है। उनका कहना है कि हर मंदिर की अपनी परंपराएँ होती हैं, और ड्रेस कोड भी उनमें से एक है।

वहीं, एसएनडीपी योगम जैसे संगठन जो खुद को सुधारवादी कहते हैं, वो वामपंथी सरकार के इस रुख के समर्थन में दिखाई दे रहे हैं। एसएनडीपी योगम के महासचिव वेल्लप्पली नटेसन ने वहीं, एसएनडीपी योगम के महासचिव वेल्लप्पली नटेसन ने नायर सर्विस सोसायटी के इस रुख की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे मुद्दों को हिंदू समाज को विभाजित करने का जरिया नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि परंपराओं में बदलाव आवश्यक हो सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया सोच-समझकर और सभी से सलाह-मशविरा करके होनी चाहिए।

इतिहासकार एम. जी. ससिभूषण ने बताया कि यह ड्रेस कोड संभवतः इसलिए बनाया गया था ताकि लोग मंदिरों में अनुशासन बनाए रखें और उन्हें पर्यटन स्थल न समझें। हालाँकि यह प्रथा केवल केरल और कुछ चुनिंदा मंदिरों खासतौर पर कर्नाटक के श्री मूकाम्बिका मंदिर (Sri Mookambika Temple in Karnataka) तक सीमित है। अधिकांश भारतीय मंदिरों में ऐसे ड्रेस कोड नहीं हैं।

इतिहासकारों का साफ कहना है कि यह ड्रेस कोड अनुशासन बनाए रखने के लिए लाया गया था, लेकिन वामपंथी सरकार इसे ब्राह्मणवाद और जातिवाद का रंग देकर हिंदू आस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। हिंदू धर्म में विविधता और परंपराओं की गहरी जड़ें हैं, लेकिन बार-बार वामपंथी सरकार इन्हें आधुनिकता के नाम पर निशाना बनाती रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार: X_Bharatiyan108)

यह पहली बार नहीं है जब केरल की वामपंथी सरकार हिंदू परंपराओं पर हस्तक्षेप कर रही है। इससे पहले सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा, गुरुवायूर मंदिर की प्रथाओं को खत्म करने की कोशिश और अब शिवगिरी मठ का प्रस्ताव – सभी घटनाएँ एक पैटर्न को दिखाती हैं। यह सरकार बार-बार हिंदू परंपराओं और आस्थाओं को तोड़ने के लिए सक्रिय नजर आती है।

वैसे, इस पूरे विवाद की जड़ को समझने के लिए आपको शिवगिरी मठ और सच्चिदानंद स्वामी के बारे में भी जानना आवश्यक है। शिवगिरी मठ की स्थापना साल 1904 में नारायण गुरु ने की। वे मंदिरों में पुजारियों के रूप में ब्राह्मणों की नियुक्ति के खिलाफ थे। हालाँकि वे खुद जिस एझावा समाज (Ezhava Community) से आते थे, वह भी ऊँची जाति है और मालाबार क्षेत्र में प्रभावी है।

खुद को सुधारवादी बताने वाले नारायण गुरु का रूख हमेशा से ब्राह्मण विरोधी रहा और बाद में यह शिवगिरि मठ की परंपरा भी बन गई। यह दूसरी बात है कि बिना कमीज मंदिर जाने की परंपरा को ‘ब्राह्मणवाद’ से जोड़ने वाले इस मठ द्वारा संचालित कई मंदिरों में भी प्रवेश के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से को खुला रखना पड़ता है। ऐसे ही वामपंथी भी हमेशा से हिंदू परंपराओं को रूढ़िवादी और पिछड़ा बताकर उसका विरोध करते रहे हैं। लिहाजा इस बार भी सच्चिदानंद स्वामी के प्रस्ताव के समर्थन में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का झट से खड़ा हो जाना आश्चर्यजनक नहीं है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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