Thursday, April 25, 2024
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नेहरू ने नेताजी पर द्वीप का नाम रखने का प्रस्ताव ठुकरा दिया, संसद में कॉन्ग्रेस ने बोस को बताया था ‘आतंकी’: PM मोदी दे रहे सम्मान

जब चर्चा आगे बढ़ी तो कॉन्ग्रेस (आई) के सदस्य राम गोपाल रेड्डी ने सुभाष चन्द्र बोस, श्री अरविन्द और विनायक दामोदर सावरकर को ‘आतंकवादी’ कहकर संबोधित कर दिया।

आमतौर पर महात्मा गाँधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बीच तनाव और तल्खी भरे रिश्तों की चर्चा की जाती है। महात्मा गाँधी के सम्पूर्ण वांग्मय में नेताजी का सर्वप्रथम उल्लेख 1921 में आता है और आखिरी जिक्र उन्होंने अपनी मृत्यु से मात्र एक सप्ताह पहले सुभाष बाबू के जन्मदिन, यानी 23 जनवरी, 1948 को किया था। उस दिन एक प्रार्थना सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “सुभाष बाबू बड़े देश-प्रेमी थे। उन्होंने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी।”

मुद्दा सिर्फ महात्मा गाँधी और नेताजी के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों का नहीं है, बल्कि यह एक सीख है। खासकर उन लोगों के लिए, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद महात्मा गाँधी के बताए रास्ते पर न सिर्फ चलने का निर्णय लिया बल्कि उसकी सार्वजनिक कसमें भी खाई थीं। एक नेता जो नेताजी के निधन के बाद सार्वजनिक मंच पर सहजता से उन्हें याद करता है और सभी तरह की कड़वाहट को दरकिनार कर उनकी तारीफ में कम-से-कम चार शब्द तो कहता है! तो क्या उनके अनुयायियों को भी इसी परंपरा को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए था?

दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। जब स्वतंत्रता के कुछ ही सालों के बाद देश की पहली लोकसभा का गठन हुआ तो वास्तविकता भी सामने आ गई। लोकसभा में 2 अगस्त, 1952 को कोल्हापुर-सतारा से निर्दलीय निर्वाचित सदस्य हनुमंतराव बालासाहेब खर्ड़ेकर ने एक सवाल पूछा था, “स्वतंत्रता का मंदिर कैसे बना है?” इसमें निश्चित रूप से गाँधी या नेहरू के रूप में गुंबद है। वे मार्गदर्शक, और प्रकाश-स्तंभ हैं, लेकिन स्वतंत्रता के मंदिर में दीवारें और स्तंभ भी होने चाहिए। अतः, दादाभाई नौरोजी, तिलक से लेकर सुभाष बोस तक, जैसे सभी स्तंभों को हमारे दोस्त भूल गए हैं।”

यह कोई साधारण बात नहीं थी कि मात्र चार सालों के अंतराल में ही तत्कालीन सरकारों पर क्रांतिकारियों अथवा स्वतंत्रता सेनानियों को भुला देने के आरोप लगने शुरू हो गए थे। ऐसा भी नहीं है कि नेहरू सरकार को समय-समय पर याद नहीं दिलाया गया हो। कुछ ही महीनों बाद, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 19 फरवरी 1953 को अंडमान द्वीप का नाम परिवर्तित कर उसे सुभाष चन्द्र बोस के नाम पर ‘सुभाष-द्वीप’ रखने का सुझाव पेश किया, जिसे नेहरू सरकार ने एकदम अनदेखा कर दिया।

फिर 24 अप्रैल, 1953 को तालासेरी (तेलिचेरी) से लोकसभा सदस्य पी.एन. दामोदरन ने शिक्षा मंत्री से प्रश्न किया कि क्या स्वतंत्रता लेखन के इतिहास में सुभाष चन्द्र बोस और INA को शामिल किया जाएगा? सरकार की तरफ से इस प्रश्न का उत्तर के.डी. मालवीय द्वारा टालमटोल कर दिया गया। यह सिर्फ कुछ गिने-चुने मौके नहीं थे, बल्कि दर्जनों बार ऐसा हुआ कि देशभर से सुभाष चन्द्र बोस सहित अन्य क्रांतिकारियों को सम्मान देने के प्रस्ताव पेश किए गए लेकिन हर बार तत्कालीन सरकारों की तरफ से ‘जानबूझकर’ उदासीनता ही दिखाई गयी।

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ पर नजर डालें तो क्रांतिकारियों की अनदेखी का प्रमुख कारण व्यक्तिगत एवं पक्षपाती ही ज्यादा नजर आता है। उस पुस्तक में उन्होंने सुभाष बाबू के कॉन्ग्रेस अध्यक्षीय कार्यकाल को मात्र आधे पन्ने में समेट कर बहुत ही नकारात्मक रूप से पेश किया है। जबकि अन्य कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष विशेषकर अबुल कलम आजाद की दर्जनों बार तारीफ की गई है। जब इस पक्षपात को लेकर संविधान सभा के सदस्य, हरि विष्णु कामथ ने जवाहरलाल नेहरू से शिकायत की तो उन्होंने माफी माँगते हुए कहा कि पुस्तक के अगले संस्करण में वे इस गलती को ठीक करेंगे।

हालाँकि, न तो पुस्तक में और न ही सार्वजनिक जीवन में उन्होंने कभी इस गलती को ठीक किया। प्रधानमंत्री नेहरू की मृत्यु के बाद नेताजी को सम्मान दिलाने की कवायद ने दुबारा जोर पकड़ा। इस बार 3 दिसंबर, 1965 को हरि विष्णु कामथ ने ही लोकसभा सदस्य के नाते एक सविधान (संशोधन) अधिनियम पेश किया, जिसके अंतर्गत उन्होंने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का नाम ‘शहीद एवं स्वराज द्वीप समूह’ रखने का प्रस्ताव रखा। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर द्वीप का नाम सुभाष द्वीप भी किया जाता है तो भी कोई आपत्ति नहीं है।

इसी चर्चा के दौरान मधु लिमये ने कहा, “राष्ट्रपति भवन के सामने एक बड़ा चौड़ा राज पथ है। उसी राज पथ के एक कोने पर आज भी पंचम जॉर्ज की मूर्ति कायम है। यह कितनी शर्मनाक चीज है। अगर वहाँ पर सुभाष बाबू के नाम से प्रतिष्ठापना की जाती तो मैं कहता कि वाकई यह हमारे प्रजासत्तात्मक राज्य की राजधानी है, गुलामबाद नहीं है। लेकिन जब तक पंचम जॉर्ज की मूर्ति रहेगी और नेताजी सुभाष जैसे नेताओं की इज्जत नहीं की जाएगी तब तक मुझे कहना पड़ेगा कि आज भी हम गुलामबाद में रहते है और लोकसभा भी गुलामाबाद में बँटती है।”

हंगामा मचने के बाद पंचम जॉर्ज की मूर्ति को तो वहाँ से हटा दिया गया लेकिन नेताजी की मूर्ति वहाँ स्थापित नहीं की गई। एक के बाद एक कई दशक बीतते चले गए लेकिन किसी सरकार ने उस स्थान की सुध नहीं ली। अतः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उस स्थान पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा का अनावरण करना सुभाष बाबू के प्रति वह उचित सम्मान है जिसकी कई सालों से राह देखी जा रही थी। यही नहीं, इस बात का भी परिचायक है कि भारत अब सदियों पुरानी गुलामी की मानसिकता से बाहर आ रहा है।

सरकार के दबाव के चलते कामथ द्वारा विधेयक वापस ले लिया गया लेकिन 17 नवम्बर, 1972 को इस सम्बन्ध में एक अन्य संविधान (संशोधन) विधेयक पेश किया गया। कांग्रेस के सदस्य बिनॉय कृष्णा दासचौधरी ने उक्त विधेयक पेश करते हुए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का नाम ‘शहीद एवं स्वराज द्वीप समूह’ रखने का प्रस्ताव रखा। विधेयक पर 1 दिसंबर 1972 को विस्तृत चर्चा के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के सदस्य झारखंडे राय ने कहा, “मैं एक बात और कहना चाहता हूँ। यह इस सरकार (प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी) के ऊपर मेरा दूसरा आरोप है। पता नहीं क्यों पिछले पच्चीस सालों से इन लोगों ने क्रांतिकारी या दूसरे स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों का वह सम्मान नहीं किया जो करना चाहिए था।”

जब चर्चा आगे बढ़ी तो कॉन्ग्रेस (आई) के सदस्य राम गोपाल रेड्डी ने सुभाष चन्द्र बोस, श्री अरविन्द और विनायक दामोदर सावरकर को ‘आतंकवादी’ कहकर संबोधित कर दिया। उनके इस अपमानजनक शब्दों को लेकर विरोध हुआ तो रेड्डी ने कहा था, “मुझे उन्हें आतंकवादी कहने में कोई आपत्ति नहीं है।” इससे बड़ी क्या विडम्बना होगी कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों को सम्मान देना तो दूर, अब संसद के अंदर ही उन्हें आतंकवादी तक कहा जाने लगा था।

केंद्र सरकार द्वारा लगातार उपेक्षा और अपमान के बावजूद भी नेताजी को सम्मान दिलाने के प्रयासों में कभी ठहराव देखने को नही मिलता है। साल 1996-1997 में एक ‘अंडमान और निकोबार द्वीप विधेयक’ लोकसभा में पेश किया गया। इस दौरान भी द्वीप समूह के नाम को परिवर्तित करने की पेशकश की गयी लेकिन यह सपना यहाँ भी पूरा नहीं हो सका। आखिरकार, साल 2018 में जाकर वह दिन आया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के तीन द्वीपों का नामांकरण नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वीप, शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप किया। इस प्रकार उन्होंने तमाम दिवंगत लोकसभा सदस्यों की माँग को पूरा करने के साथ-साथ उस सपने को साकार किया जिसकी शुरुआत स्वयं नेताजी ने की थी।

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Devesh Khandelwal
Devesh Khandelwal
Devesh Khandelwal is an alumnus of Indian Institute of Mass Communication. He has worked with various think-tanks such as Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation, Research & Development Foundation for Integral Humanism and Jammu-Kashmir Study Centre.

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