Wednesday, October 9, 2024
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जब 20000 की फ़ौज पर भारी पड़े 1000 मराठा सैनिक: उंबरखिंड का युद्ध और छत्रपति शिवाजी की रणनीति, मुगलों को ऐसे दी मात

करतलब खान पहाड़ से निकल कर नाचे आने की कोशिश में था, इस बात से अनभिज्ञ कि महान छत्रपति शिवाजी महाराज की मराठा सेना उंबरखिंड की पहाड़ियों को चारों तरफ से घेर कर पहले से ही घेर कर उसका इंतजार कर रही है।

हमारा इतिहास काफी समृद्ध रहा है, लेकिन अंग्रेजों द्वारा चलाई गई शिक्षा व्यवस्था के अभी तक चले आने का नतीजा ये रहा है कि हमारे भीतर गुलामी की मानसिकता भर दी गई है। हमें ये तो पढ़ाया गया कि महाराणा प्रताप या छत्रपति शिवाजी महाराज कब हारे, लेकिन ये नहीं पढ़ाया गया कि उन्होंने कैसे इस्लामी आक्रांताओं को हराया। कई ऐसे राजाओं के तो हमें नाम तक नहीं मालूम। ऐसा ही एक ‘उंबरखिंड का युद्ध’ है, जिसके बारे में आज महाराष्ट्र के कई बच्चों को भी नहीं पता होगा।

करतलब खान ने बनाया शिवाजी पर ‘सरप्राइज अटैक’ का प्लान

इस युद्ध के बारे में बता दें कि इसे छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व वाली मराठा सेना और करतलब खान के नेतृत्व वाली मुग़ल फ़ौज के बीच लड़ा गया था। करतलब खान ने चिंचवड़, तालेगाँव, वडागाँव और मालवाली होकर पुणे से होकर शिवाजी पर चढ़ाई की। आज भी भारतीय रेलवे लाइन सामान्यतः यही रास्ता होकर गुजरती है। वहाँ से वो बाएँ लोहागढ़ के किले की तरफ मुड़ गया, जहाँ का किला दक्कन के पठार और कोंकण की सीमा पर स्थित था। लोहागढ़ को विसपुर के बीच स्थित संकरी गलियों से कोंकण के भीतर बढ़ चला।

उसकी योजना थी कि वो तुंगारण्य के घने जंगलों में घुसे, जिसकी दोनों तरफ से पहाड़ियाँ थीं। इसके बाद वो उंबरखिंड होकर कोंकण में आमजनों के इलाके में घुसना चाहता था। जानकारी के लिए बता दें कि जब अंग्रेजों ने वहाँ रेलवे लाइन बनाई तो उन्होंने मुंबई से पुणे जाने के लिए खंडाला घाट को चुना, उंबरखिंड को नहीं। इसका कारण है कि खंडाला घाट, जिसे बोरघाट भी कहते हैं – वो काफी चौड़ा और खुला-खुला सा है। वहीं उंबरखिंड वाला इलाका अचानक हमले के लिए उपयुक्त था।

करतलब खान भले ही उंबरखिंड की तरफ से बढ़ रहा था, लेकिन छत्रपति शिवाजी को पता था कि वो उधर से आ रहा है और निश्चिंत भी है। भले ही करतलब खान एक गुप्त हमले की साजिश रची थी, लेकिन शिवाजी के जासूस कहीं ज्यादा सक्रिय और दक्ष थे। खान को पता चला था कि क़ुरावण्डा में शिवाजी अपनी सेना के साथ होंगे, जो लोनावला से 3 मील (4.8 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है। लेकिन, जब वो वहाँ पहुँचा तो उसे गहरा धक्का लगा।

ये इसीलिए, क्योंकि वहाँ न तो शिवाजी थे और न ही उनकी सेना का कोई नामोनिशान था। उसके जासूसों ने आकर सूचना दी कि शिवाजी पेन में हैं, घाट के नीचे। इसका परिणाम ये हुआ कि करतलब खान ने अचानक हमले के लिए आगे बढ़ना शुरू कर दिया। वो पहाड़ से निकल कर नाचे आने की कोशिश में था, इस बात से अनभिज्ञ कि महान छत्रपति शिवाजी महाराज की मराठा सेना उंबरखिंड की पहाड़ियों को चारों तरफ से घेर कर पहले से ही घेर कर उसका इंतजार कर रही है।

करतलब खान के साथ एक नुकसान ये भी था कि उसकी फ़ौज कोंकण की जिन नदियों के आसपास से गुजर रही थी, उनमें पानी नहीं था। वो फरवरी का ही महीना था। पीने के पानी की भारी कमी थी। शिवाजी की सेना में कई घुड़सवार भी थे। वो सब छोटे-बड़े पत्थरों के अलावा राइफल और तीन-धनुष से भी लैस थे। शिवाजी की सेना में उस समय 1000 सैनिक थे, लेकिन जंगलों के कारण वो करतलब खान को नहीं दिख रहे थे। 4 घंटे में जब उसकी फ़ौज पहाड़ से नीचे उतरी, तब तक उसे किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ा।

उसी दौरान शिवाजी की सेना के कुक सैनिक ऊपर चढ़ गए और उन्होंने करतलब खान की फ़ौज की संरचना को तोड़ने की। जैसे ही करतलब खान की फ़ौज नीचे आई, उन पर बड़े-बड़े पत्थर बरसने लगे। करतलब खान की फ़ौज नीचे थी और अब शिवाजी की सेना को ऊपर होने का फायदा था। दुश्मन उसे दिख नहीं रहा था, लेकिन उसकी फ़ौज बिखर गई थी। अब आगे बढ़ने से पहले आपको तब की परिस्थितियाँ और इस युद्ध के कारण को भी समझा देते हैं।

क्या था उंबरखिंड के युद्ध का कारण

दरअसल, 10 नवंबर, 1659 को शिवाजी ने अफजल खान को मार डाला था, जो साजिश कर के मुलाकात के बहाने उन्हें मारने के लिए मिला था। प्रतापगढ़ के इस युद्ध के लगभग एक महीने बाद शिवाजी पन्हाला किले के पास प्रकट हुए और बीजापुर के रुस्तम जमान को पराजित किया। शिवाजी के सेनापति नेताजी पालकर ने बीजापुर को दिला डाला, जिस कारण वहाँ के आदिल शाह ने मुग़ल बादशाह से मदद माँगी। मुगलों ने शाइस्ता खान के नेतृत्व में एक बड़ी फ़ौज पुणे भेजी।

बीजापुर से चले सिद्दी जौहर ने पन्हाला को घेर लिया, जिसके बाद शिवाजी फँस गए। लेकिन, फिर वो किसी तरह वहाँ से निकलने में कामयाब रहे। शाइस्ता खान ने उज्बेक फौजदार करतलब खान को कोंकण में शिवाजी के प्रभाव को कम करने की जिम्मेदारी दी और उसके साथ एक बड़ी फ़ौज भेजी। और अब वापस वहाँ आते हैं, जब करतलब खान ने शिवाजी पर ‘सरप्राइज अटैक’ की साजिश तो रच ली लेकिन गच्चा खा गया और उसकी फ़ौज तितर-बितर होने लगी।

पहाड़ के ऊपर से करतलब खान की फ़ौज पर शिवाजी की सेना ने तगड़ा हमला बोला। इस तरह 20,000 की एक फ़ौज को शिवाजी की 1000 की सेना ने रणनीतिक तरीके से हरा दिया और उसके पास आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई चारा न रहा। मात्र 2-3 घंटे में ही इस युद्ध का परिणाम आ गया। उसके माफ़ी माँगने के बाद शिवाजी ने उसे वापस तो जाने दिया, लेकिन उनके सारे हथियार, घोड़े, भोजन और सारे साजोसामान ले लिए। साथ ही उनमें से जो भी शिवाजी की सेना में आना चाहता था, उन्हें ले लिया गया।

इस युद्ध के बाद बढ़ा मराठा सेना का हौसला

शिवाजी और उनकी फ़ौज ने एक-एक कर के सभी फौजियों की तलाशी ली, ताकि शर्तों का पालन हो रहा है इसे सुनिश्चित किया जा सके। जब उसकी फ़ौज वहाँ से चली गई, तब शिवाजी की सेना ने बाकी दिन साजोसामान की पैकिंग करने में लगाया। इसके बाद वो राजगढ़ की तरफ निकल गए। इस युद्ध की जीत ने मराठों को मानसिक रूप से एक बड़ी शक्ति दी। उनके साहस को बल मिला। मुगलों ने भी रणनीति बदल ली और कोंकण पर कब्जे की अपनी योजना को बदल डाला।

इसके बाद एक और युद्ध की चर्चा आती है, जिसमें रात के समय शाइस्ता खान पर शिवाजी ने हमला बोला और उसे वहाँ से घायल अवस्था में भागना पड़ा। उंबरखिंड के युद्ध में मिली जीत के बाद उत्साहित होकर ही ये योजना तैयार की गई थी। जहाँ मराठा सैनिकों में से 50 को बलिदान देना पड़ा, इस युद्ध में मुगलों के 400 फौजी मारे गए। लेकिन, हमें सिर्फ यही पढ़ाया गया कि औरंगजेब ने कैसे शिवाजी को कैद किया था। इन युद्धों के बारे में हमें अगली पीढ़ियों को भी बताने की ज़रूरत है।

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अनुपम कुमार सिंह
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