Sunday, November 17, 2024
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BJP सरकार की दो धुरी- विकास और विरासत: जिस संस्कृति को भारतीय राजनीति मानती रही अछूत, उसे PM मोदी ने बना दिया कूटनीति का हिस्सा भी

हम राजनीति के उस दौर में जी रहे हैं जब वोटों के लिए हिंदू से लेकर किसान तक दिखने का चलन है। ऐसे समय में भारतीय संस्कृति को लेकर मोदी सरकार की प्रतिबद्धता सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का रास्ता दिखाती है।

मैंने लाल किले से कहा था ये समय गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर, अपनी विरासत पर गर्व करने का है। आज देश विकास और विरासत दोनों को साथ लेकर चल रहा है। एक ओर भारत डिजिटल टेक्नोलॉजी में नए रिकॉर्ड बना रहा है तो साथ ही सदियों बाद काशी में विश्वनाथ धाम का दिव्य स्वरुप भी देश के सामने प्रकट हुआ है। आज हम वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं तो साथ ही केदारनाथ और महाकाल महालोक जैसे तीर्थों की भव्यता के साक्षी भी बन रहे हैं। सदियों बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का हमारा सपना पूरा होने जा रहा है…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 जुलाई 2023 को गोरखपुर में गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समापन समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। भारतीय धर्म ग्रंथों को घर-घर तक पहुँचाने वाले गीता प्रेस लिबरलों को नहीं सुहाता है। कारण आप समझ सकते हैं। लिबरल गैंग का यह दर्द पिछले दिनों तब भी प्रकट हुआ, जब गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गाँधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई।

दरअसल भारत के प्रधानमंत्री का गीता प्रेस जाना, वहाँ के लीला मंदिर में अर्चना करना, भारतीय राजनीति की वह लकीर है जो 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने खींची है। इससे पहले भारत की राजनीति हिंदू, मंदिर, सनातन संस्कृति, भारतीय विरासत की बात करने वाले को ‘सांप्रदायिक’ और टोपी-चादर वाली इफ्तार पार्टियों में शिरकत करने वालों को ‘सेकुलर’ मानने की अभ्यस्त रही है। लेकिन मोदी सरकार का कार्यकाल विकास और गरीब कल्याण की योजनाओं के साथ-साथ सांस्कृति विरासत को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने, सांस्कृतिक कूटनीति के जरिए भारतीय विरासत का वैश्विक प्रसार करने, स्वदेशी विचारों को सम्मान और मान्यता देने, चोरी कर विदेश ले गई भारतीय कलाकृतियों को वापस लाने की गाथा का भी कार्यकाल है।

पीएम मोदी
गीता प्रेस के लीला मंदिर और वारंगल के भद्रकाली मंदिर में पूजा अर्चना करते पीएम मोदी (फोटो साभार: pib.gov.in)

जिस दिन प्रधानमंत्री गीता प्रेस गए, उसी दिन गोरखपुर से उन्होंने दो वंदे भारत एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाई। 498 करोड़ रुपए की लागत से गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास की आधारशिला रखी। कॉन्ग्रेस शासित छत्तीसगढ़ को 7 हजार करोड़ रुपए से अधिक की परियोजनाएँ देकर प्रधानमंत्री गोरखपुर आए थे। गोरखपुर के बाद वे वाराणसी गए और वहाँ ₹12,110 करोड़ की 29 परियोजनाओं का लोकार्पण/शिलान्यास किया। PM आवास योजना (ग्रामीण) के तहत लाभुकों को 4.51 लाख आवास सौंपे। अगले दिन वे तेलंगाना के वारंगल में थे। 6100 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया। माँ भद्रकाली की पूजा की। यह केवल गोरखपुर, वाराणसी या वारंगल की ही बात नहीं है। मोदी सरकार के पूरे कार्यकाल में विकास और संस्कृति एक साथ देश के हर कोने में इसी तरह गतिमान रही है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंचों से बार-बार इस बात को दोहराते हैं कि यह समय अपनी विरासत पर गर्व करने का है।

7 जुलाई 2023 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में पीएम मोदी (फोटो साभार: pib.gov.in)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद, घर हो या बाहर अपनी सरकार की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने की रणनीति के ध्वजवाहक बने हुए हैं। मोटे तौर पर चार तरीकों से इस कार्य को पूर्ण किया जा रहा है।

  • भारतीय कला का वैश्विक स्तर पर प्रसार
  • चोरी हुई कलाकृतियों की घर वापसी
  • संस्कृति का संरक्षण करने वालों को सम्मान
  • बजटीय आवंटन में लगातार वृद्धि

जून 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी G-7 शिखर सम्मेलन के लिए जर्मनी गए थे। यहाँ उन्होंने भारत के सांस्कृतिक हुनर को कैसे वैश्विक मंच पर स्थापित किया, इसे राष्ट्राध्यक्षों को दिए भेंट से समझिए। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति को डोकरा कला से बनी नंदी तो दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति को इसी कला से बनी रामायण भेंट की। छत्तीसगढ़ की डोकरा कला अलौह धातु की ढलाई कला है। ऐसी धातु की ढलाई का उपयोग भारत में 4,000 से अधिक वर्षों से होता आ रहा है। जापान के पीएम को उत्तर प्रदेश के निजामाबाद के बने काली मिट्टी के बर्तन भेंट किए। कनाडा के पीएम को हाथ से बुनी गई सिल्क की चटाई भेंट की। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को लैक्वेरेंस कला से निर्मित राम दरबार भेंट की। सेनेगल के राष्ट्रपति को मूंज से बनी टोकरियाँ और कपास की दरियाँ भेंट की। इसका निर्माण उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, सुल्तानपुर और अमेठी में होता है। जर्मनी की चांसलर को निकेल कोटेड पीतल का मटका भेंट किया। यह मटका यूपी की पीतल नगरी मुरादाबाद की पहचान है। इटली के पीएम को संगरमर से बना टेबल टॉप भेंट किया। यह कलाकृति आगरा की पहचान है। फ्रांस के राष्ट्रपति को जरदोजी बॉक्स में इत्र भेंट किए। अमेरिकी राष्ट्रपति को वाराणसी में बना गुलाबी मीनाकारी ब्रोच और कफलिंक सेट उपहार में दिया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को यूपी के बुलंदशहर में बना प्लेटिनम पेंटेड हैंड पेंटेड टी सेट गिफ्ट किया।

अब 2022 के नवंबर में हुए जी 20 देशों के सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए उपहारों पर गौर करिए;

  • अमेरिका के राष्ट्रपति को भगवान श्रीकृष्ण और राधा की पेंटिंग गिफ्ट की। इसे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के चित्रकारों ने बनाया था। कांगड़ा की पेंटिंग में श्रृंगार रस और प्राकृतिक प्रेम का चित्रण किया जाता है। इसकी खासियत ये है कि इसे बनाने में सिर्फ प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग किया जाता है।
  • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को ‘माता नी पछेड़ी’ उपहार के रूप में दिया। यह गुजरात का एक हस्तनिर्मित कपड़ा है। इसमें देवी माँ का चित्र बना होता है। नवरात्रि के समय और अन्य पूजन के दौरान इसे देवी मंदिर में चढ़ाया जाता है।
  • इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री को ‘पाटन पटोला दुपट्टा’ (स्कार्फ) गिफ्ट किया। यह स्कार्फ उत्तरी गुजरात के पाटन क्षेत्र में बनाया जाता है। इसमें आगे और पीछे का हिस्सा एक जैसा दिखता है। इसे अलग-अलग पहचानना मुश्किल है।
  • गुजरात के छोटा उदयपुर के राठवा कारीगरों द्वारा निर्मित जनजातीय लोक कला का चित्र ‘पिथौरा’ ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को उपहार में दिया गया।
  • इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को सूरत का चाँदी का कटोरा और हिमाचल प्रदेश की किन्नौरी शॉल उपहार में दिया।
  • स्पेन के प्रधानमंत्री को मंडी और कुल्लू का कनाल ब्रास सेट (वाद्ययंत्र) गिफ्ट किया। यह हिमाचल के आयोजनों में बजाए जाने वाला प्रमुख बाजा है, जिसका उपयोग अब सजावट के सामान के तौर पर किया जाने लगा है।

बीते जून में प्रधानमंत्री अमेरिका गए थे। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को 10 दान के प्रतीक भेंट कर भारतीय संस्कृति में ‘दस दानम’ के महत्व को चर्चा में ला दिया। दस दानम के प्रतीक जिस विशेष बक्से में बंद थे, उसे मैसूर के चंदन की लकड़ी से जयपुर के कारीगरों ने तैयार किया था। इसमें भगवान गणेश की मूर्ति और एक दीया भी था। साथ ही राष्ट्रपति बायडेन को ’10 प्रिंसिपल्स ऑफ उपनिषद’ नामक किताब भी दी। दूसरी ओर, जब सितंबर 2021 में प्रधानमंत्री अमेरिका से लौटे थे तो 11वीं से 14वीं शताब्दी के बीच 157 मूर्तियाँ-कलाकृतियाँ साथ लेकर आए थे। इन्हें चोरी से देश के बाहर ले जाया गया था। अमेरिका द्वारा भारत को सौंपी गई इन कलाकृतियों में सांस्कृतिक पुरावशेष, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म से संबंधित मूर्तियाँ शामिल थीं।

भारत सरकार के पोर्टल MyGov के आधिकारिक ट्विटर हैंडल के मुताबिक 2014 के बाद से 238 से अधिक ऐसी कलाकृतियाँ भारत वापस आई हैं, जो चोरी कर देश से बाहर ले जाई गईं थी। 2014 से पहले ऐसी केवल 13 कलाकृतियों को ही देश वापस लाने में सरकार सफल रही थी। स्वदेशी विचारों के सम्मान की संस्कृति भी मोदी सरकार में विकसित हुई है। चाहे वह गीता प्रेस का सम्मान हो या फिर दुनिया के एकमात्र संस्कृत के अखबर ‘सुधर्मा’ को पद्मश्री से सम्मानित करना। इसी तरह जो पद्म पुरस्कार अब तक एलीट वर्ग तक सीमित माने जाते रहे थे, वे उन लोगों तक भी पहुँच रहे हैं जो सुदूर इलाकों में लोक कलाओं को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं।

इसके अलावा धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ‘प्रसाद योजना’ है तो संस्कृत भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में 200 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। खादी का पुनरुद्धार इसी सरकार में संभव हुआ है। अभिलेखागार और पुस्तकालयों का विकास किया जा रहा है। 2013-14 के मुकाबले 2023-24 तक संस्कृति संरक्षण के लिए बजट आवंटन में 65 फीसदी तक वृद्धि हो चुकी है।

स्वतंत्र भारत में विकास के साथ भारतीय विरासत को आगे बढ़ाने की जो प्रतिबद्धता मोदी सरकार दिखा रही है, वह इससे पहले कभी नहीं देखी गई। यह केवल हिंदुओं के धार्मिक स्थलों के विकास तक ही सीमित नहीं है। यह एक ऐसी यात्रा है, जिसमें विलुप्त हो रही भारतीय भाषाओं, लोक संस्कृतियों, परंपराओं, वाद्य यंत्रों, कलाओं को न केवल आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें वैश्विक पहचान देकर इनसे जुड़े लोगों के जीवन में बदलाव लाने के भी प्रयास हो रहे हैं। अपने अब तक के कार्यकाल में मोदी सरकार ने यह भी बार-बार प्रमाणित किया है भारतीयता और भारतीय संस्कृति उसके लिए कोई चुनावी मुद्दा नहीं है।

हम राजनीति के उस दौर में जी रहे हैं जिसमें नेता चुनाव के समय मंदिरों की प्रदक्षिण करने लगते हैं। अपने जनेऊ दिखाने लगते हैं। अपना गोत्र बताने लगते हैं। वे वोटों के लिए हिंदू से लेकर किसान तक दिख रहे हैं। ऐसे दौर में संस्कृति को लेकर एक सरकार की ऐसी प्रतिबद्धता न केवल सुखद है, बल्कि सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का रास्ता भी इससे ही निकलेगा।

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अजीत झा
अजीत झा
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