Sunday, October 6, 2024
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ट्रेन के जनरल बोगी जैसे हो गया आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट के दलित जज ने समझाई SC/ST कोटा की हकीकत, कहा- जो भीतर आ जाता है वह दूसरे को घुसने नहीं देता

जस्टिस गवई ने कहा, "सरकार को क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए कोई नीति बनानी चाहिए और लाभ पा चुके लोगों को उससे बाहर करना चाहिए। समानता को पाने का यही एकमात्र तरीका है।"

SC-ST वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण के मामले पर 1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट की 7 न्यायधीशों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुत से ऐतिहासिक फैसला दिया। पीठ ने इस दौरान आरक्षण के भीतर आरक्षण तय करने पर मुहर लगाई। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत है ताकि समानता आ सके। इस फैसले के दौरान 7 जजों में से एक मात्र दलित जस्टिस बीआर गवई ने पूरे मामले पर बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की।

जस्टिस बीआर गवई ने कहा आरक्षण का सही उद्देश्य है कि देश में समानता को समझा जाए। असमानता वाले समूह में आखिर कैसे सबको एकसमान माना जाता है। इस दलील के आधार पर बेंच ने कहा कि एससी और एसटी में भी क्रीमी लेयर को लागू करना चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा, “सरकार को क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए कोई नीति बनानी चाहिए और लाभ पा चुके लोगों को उससे बाहर करना चाहिए। समानता को पाने का यही एकमात्र तरीका है।”

जस्टिस गवई ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या एक आईएएस और आईपीएस के बच्चे या किसी सिविल सर्विस अधिकारी के बच्चे की तुलना एक ऐसे शख्स से करना उचित है जिसे आरक्षण का लाभ न मिला हो या वो ग्राम पंचायत या जिला परिषद के स्कूल में पढ़ता हो। उन्होंने कहा कि किसी अधिकारी बन चुके व्यक्ति के बच्चे को जाहिर है कि अच्छी शिक्षा मिलेगी। शायद उन्हें अतिरिक्त कोचिंग आदि भी मिले और घर का माहौल भी अच्छा मिले। वहीं दूसरे बच्चे को हर चीज उसके मुकाबले कम मिलेगा या उसके पास अच्छी शिक्षा उपलब्ध के स्रोत ही उपलब्ध नहीं होंगे। वह ऐसे माता-पिता के साथ रहेगा जो खुद इतने पढ़े-लिखे नहीं है कि बच्चे को पढ़ा सकें।

उन्होंने यह गौर भी कराया कि असमानताएँ और सामाजिक भेदभाव आज के समय में ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक प्रचलित हैं। शहर और महानगरों में इनका असर कम होने लगता है। उन्होंने अपनी टिप्पणी के दौरान स्पष्ट कहा, “मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि सेंट पॉल हाई स्कूल और सेंट स्टीफन कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे और देश के पिछड़े और दूरदराज के क्षेत्र के एक छोटे से गाँव में पढ़ने वाले बच्चे को एक ही श्रेणी में रखना संविधान में निहित समानता के सिद्धांत को नकार देगा।”

उन्होंने यह कहा कि अगर आज ये कहा जाए कि एससी-एसटी समुदाय से आने वाले दोनों श्रेणी के बच्चे एक समान हैं तो गलत होगा। वो बच्चा जिसके माता-पिता में से कोई आरक्षण के लाभ से उच्च पद पर पहुँच गया है और सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं है उसे गाँव में मजदूरी करने वाले के बेटे से तुलना करना संवैधानिक आदेश को पराजित करेगा।

आगे उन्होंने इस बात को भी ध्यान में रखा कि संविधान स्वयं अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग मानता है इसलिए इस श्रेणी में आने वाले व्यक्ति को आरक्षण से अलग करने के मापदंड एक जैसे नहीं हो सकते। ऐसे में यदि इस श्रेणी का कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ पाकर चपरासी या शायद सफाई कर्मचारी का पद प्राप्त कर लेता है, तो वह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग से संबंधित रहेगा। साथ ही, इस श्रेणी के लोग, जो आरक्षण का लाभ उठाकर जीवन में उच्च पदों पर पहुँच गए हैं, उन्हें सकारात्मक कार्रवाई का लाभ उठाने के लिए सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता। वे पहले ही उस स्थिति में पहुँच चुके हैं जहाँ उन्हें अपनी मर्जी से विशेष प्रावधानों से बाहर निकल जाना चाहिए और योग्य और जरूरतमंद लोगों को रास्ता देना चाहिए।

आदेश में जस्टिस गवई की टिप्पणी

इस दौरान जस्टिस गवई ने एक उदाहरण देकर कहा कि आज के समय में एससी-एसटी कोटे में वर्गीकरण का विरोध करना ऐसा ही है जैसे ट्रेन के जनरल कोच में संघर्ष होता है कि जो पहले बाहर रहता है वह भीतर आने के लिए संघर्ष करता है और अंदर आने के बाद फिर हर संभव प्रयास करता है कि बाहर वाला अंदर न आ पाए।

जस्टिस बीआर गवई के इन तर्कों को सुन जस्टिस पंकज मिथल ने कहा आरक्षण सच में केवल एक पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिए। अगर पहली पीढ़ी में कोई सदस्य आरक्षण पाकर ऊँचे पद पर पहुँच गया है तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। वहीं जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने भी जस्टिस गवई की बातों पर सहमति दी। उन्होंने कहा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिए संवैधानिक अनिवार्यता बनता जा रहा है। वहीं न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने भी कहा कि वो जस्टिस बीआर गवई के मत से सहमत हैं। क्रीमी लेयर’ सिद्धांत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर भी लागू होता है, तथा सकारात्मक कार्रवाई के उद्देश्य से क्रीमी लेयर को बाहर करने के मानदंड अन्य पिछड़ा वर्गों पर लागू मानदंडों से भिन्न हो सकते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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