Saturday, July 27, 2024
Homeदेश-समाजहर अपमान SC/ST अधिनियम का उल्लंघन नहीं, जब तक वह 'सार्वजनिक रूप से' जातिगत...

हर अपमान SC/ST अधिनियम का उल्लंघन नहीं, जब तक वह ‘सार्वजनिक रूप से’ जातिगत न हो: सर्वोच्च न्यायालय

"किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कानून के तहत अपराध नहीं होगा जब तक कि इस तरह का अपमान या धमकी पीड़ित के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने के कारण नहीं है।"

देश की सबसे बड़ी अदालत ने गुरुवार (5 नवंबर 2020) को एक अहम टिप्पणी की। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के तहत दर्ज की जाने वाली शिकायतें सिर्फ इस आधार पर पंजीकृत नहीं की जा सकती हैं क्योंकि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय से आता है। कृत्य के तहत उठाए गए सवाल व्यक्ति की जाति के लिए निर्देशित होने चाहिए। 

यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब पिछड़े वर्ग/समुदाय से आने वाले कई लोग अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम का दुरुपयोग करते हैं। यहाँ तक कि अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने वाले किसी व्यक्ति के साथ होने वाले ‘गैर जातीय’ अपमान के मामले में भी कठोर कार्रवाई होती है।   

जातिगत अपमान होने पर ही कर सकेंगे शिकायत 

सर्वोच्च न्यायालय के 3 न्यायाधीशों की पीठ (एल नागेस्वरा राव, हेमंत गुप्ता और और अजय रस्तोगी) ने इस मुद्दे पर टिप्पणी की। पीठ ने टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कानून के तहत अपराध नहीं होगा जब तक कि इस तरह का अपमान या धमकी पीड़ित के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने के कारण नहीं है।”

अपमान का सार्वजनिक होना ज़रूरी

न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी शिकायत को सिर्फ इसलिए अनुसूचित जाति अनुसूचित जाति अधिनियम का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है क्योंकि उस समुदाय का सदस्य है। पीठ ने यह भी कहा कि किसी भी मामले में सबसे ज़रूरी आधार यही है कि पीड़ित व्यक्ति को उसकी जाति के आधार पर अपमानित किया गया हो, सिर्फ तभी उस शिकायत को अनसूचित जाति अनुसूचित जनजाति का उल्लंघन माना जाएगा। इसके अलावा इस तरह के मामलों में एक और ज़रूरी बात यह है कि मामला सार्वजनिक या कई लोगों के बीच में होना चाहिए, इसके बाद ही अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (1)(r) के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। 

क्या है मामला

सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी हितेश वर्मा नाम के युवक द्वारा दायर की गई याचिका पर  सुनवाई करते हुए की। हितेश वर्मा ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम की सीआरपीसी (CrPC) धारा 482 और 3 (1)(r) के तहत खुद पर दायर की गई चार्जशीट को नष्ट करने के लिए यह याचिका दायर की थी। हितेश की याचिका इसके पहले उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी। सर्वोच्च नायालय ने इस बात का उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया अपमान की घटना पीड़ित के आवास पर हुई थी, यानी आम लोगों की गैरमौजूदगी में। 

क्योंकि जाँच में यह बात भी सामने आई कि मामला संपत्ति से संबंधित विवाद से जुड़ा हुआ था इसलिए इस पर अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति की धारा 3 (1)(r) लागू नहीं की जा सकती है। न्यायालय ने कहा, “इस मामले में दोनों पक्ष संपत्ति पर स्वामित्व को लेकर पैरवी कर रहे हैं। अपशब्द कहने और अपमान करने का आरोप उस व्यक्ति पर लगाया गया है जो संपत्ति पर अपना दावा कर रहा है। अगर वह व्यक्ति अनुसूचित जाति से आता है तब भी इस मामले में अधिनियम की धारा 3 (1) (r) लागू नहीं की जा सकती है।          

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘ममता बनर्जी का ड्रामा स्क्रिप्टेड’: कॉन्ग्रेस नेता अधीर रंजन ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र, कहा – ‘दिल्ली में संत, लेकिन बंगाल में शैतान’

अधीर ने यह भी कहा कि चुनाव हो या न हो, बंगाल में जिस तरह की अराजकता का सामना करना पड़ रहा है, वो अभूतपूर्व है।

जैसा राजदीप सरदेसाई ने कहा, वैसा ममता बनर्जी ने किया… बीवी बनी सांसद तो ‘पत्रकारिता’ की आड़ में TMC के लिए बना रहे रणनीति?...

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कुछ ऐसा किया है, जिसकी भविष्यवाणी TMC सांसद सागरिका घोष के शौहर राजदीप सरदेसाई ने पहले ही कर दी थी।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -