उत्तर प्रदेश के बहराइच में इस्लामी आक्रान्ता सैयद सलार मसूद गाजी की दरगाह पर होने वाले जेठ मेला को लेकर अनुमति देने से प्रशासन ने मना कर दिया है। इसके विरोध में इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुँची मस्जिद कमिटी को भी कोई राहत नहीं मिली है। इस मेले में लाखों की भीड़ हर साल जुटा करती थी। इससे पहले उत्तर प्रदेश के संभल में सालार मसूद के नाम पर होने वाले मेले को भी अनुमति देने से प्रशासन ने इनकार कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश के बहराइच में इस्लामी आक्रान्ता सालार मसूद की बड़ी दरगाह है। यहीं पर उसे वीर हिन्दू राजा सुहेलदेव ने मौत के घाट उतार दिया था। सालार मसूद की इसी दरगाह पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने (मई-जून) में एक बड़ा मेला लगता आया है। यह मेला एक महीने चलता है। इस मेले में लगभग 15 लाख लोग शामिल होते रहे हैं।
इस मेले में इस एक महीने के भीतर हर शनिवार को सालार मसूद की बारात देश-विदेश के अलग-अलग हिस्से से जायरीन लाते हैं और रविवार को दरगाह पर जाते हैं। इसके बाद वह सोमवार को लौटते हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि ऐसी लगभग 200 प्रतीकात्मक बारातें आक्रान्ता सालार मसूद की दरगाह पर लाई जाती हैं।
कई और भी दरगाहों से यहाँ आक्रान्ता मसूद की बारात आती है। इन बारातों में मुस्लिम शेरवानी, पलंग और शादी से जुड़ा और भी सामान लाते हैं। यहाँ आने से पहले लोग बाराबंकी में स्थित एक बूढ़े बाबा की मजार पर जाते हैं जो असल में सालार मसूद के बाप की मजार है। उसका नाम सैयद सालार साहू गाजी उर्फ बूढ़े बाबा की दरगाह है।
हिन्दू संगठन इस मेले का लगातार विरोध करते आए हैं। हिन्दू संगठन इस मेले के दौरान पास में ही महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करते हैं। वह इस दौरान हिन्दुओं को इस आक्रान्ता की सच्चाई से भी अवगत करवाते हैं। हिन्दू संगठन माँग करते आए हैं कि इस मेले पर रोक लगाई जाए।
प्रशासन ने नहीं दी अनुमति
2025 में भी दरगाह वालों ने मेले का आयोजन करने का प्लान बनाया था। हालाँकि, हिन्दू संगठनों के विरोध और स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने इससे मना कर दिया। प्रशासन ने हवाला दिया कि संभल में पहले ही एक ऐसे ही मेले की अनुमति नहीं दी गई थी और यहाँ भी विरोध चल रहा है।
बहराइच प्रशासन ने स्पष्ट किया कि स्थानीय लोग भी इस मेले के आयोजन के पक्ष में नहीं हैं। उसने हाल ही में हुई हिंसक घटनाओं के विषय में भी जानकारी देते हुए मेले ना करवाने का निर्णय लिया है। प्रशासन ने इसे कानून व्यवस्था के लिए एक समस्या बताया है। इसी के चलते दरगाह कमिटी को इसकी अनुमति नहीं दी गई।
हाई कोर्ट से भी झटका
प्रशासन के इनकार करने के बाद बाद दरगाह कमिटी इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुँची थी। इस मामले पर बुधवार (7 मई, 2025) को इस मामले में सुनवाई हुई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में दरगाह कमिटी को अंतरिम तौर पर राहत देने से इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि वह अब सब पक्षों को सुनने के बाद ही कोई आदेश देगा।
अब इस मामले में 12 मई, 2025 को सुनवाई होगी। हाई कोर्ट में प्रशासन ने स्पष्ट किया कि दरगाह कमिटी ने उनसे कोई अनुमति नहीं माँगी बल्कि सिर्फ सुरक्षा इंतजाम करने को ही कहा। प्रशासन ने स्पष्ट तौर पर बताया कि स्थिति को देखते हुए वह आयोजन करवाने में अभी सक्षम नहीं है।
प्रशासन ने कहा, “दरगाह परिसर के अंदर मजहबी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है… जिस चीज को अनुमति नहीं दी गई है, वह है दरगाह परिसर के बाहर मेला आयोजित करने की अनुमति, जिसमें मुख्य रूप से व्यावसायिक गतिविधियाँ शामिल हैं। प्रशासन ने स्पष्ट किया कि उसने किसी भी संवैधानिक या कानूनी अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया है।
इससे पहले संभल में मार्च, 2025 में संभल में आयोजित होने वाले नेजा मेला को भी अनुमति नहीं दी गई थी। यह मेला भी सालार मसूद गाजी के लिए होता था। इसकी अनुमति माँगने पर ASP श्रीश चन्द्र दीक्षित भड़क गए थे और स्पष्ट किया था कि आक्रान्ताओं की याद में लगने वाले किसी मेले को अनुमति नहीं दी जाएगी।
कौन था सैयद सालार मसूद गाजी
सैयद सालार मसूद गाजी का जन्म 11वीं सदी में सन 1014 ईस्वी में राजस्थान के अजमेर में हुआ था। हालाँकि, सालार के जन्म को लेकर भी संशय है और इतिहासकारों में एकमत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सालार का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था और वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। खैर, उसका जन्म जहाँ कहीं भी हुआ हो, लेकिन वह बेहद ही क्रूर और हिंदुओं से नफरत करने वाला था।
यह प्रमाणित सत्य है कि अफगानिस्तान के गजनी के शासक महमूद गजनवी का भाँजा था। इसके साथ ही वह गजनवी के सेना का सेनापति भी था। यह वहीं गजनवी है, जिसने सबसे पहले सन 1001 में भारत पर हमला किया था। इसके बाद उसने एक-के-बाद एक करके लगातार 17 बार हमले किए और भारत के सोमनाथ मंदिर सहित भारत के कई मंदिरों को लूटा और उन्हें ध्वस्त कर दिया था।
सन 1930 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ सुल्तान महमूद ऑफ गाजना’ नाम की पुस्तक में इतिहासकार मोहम्मद नाजिम ने इसके बारे में बताया है। उन्होंने लिखा है कि वह गजनी के नेतृत्व में सन 1026 ईस्वी में सैयद सालार मसूद गाजी ने सबसे बड़ा हमला सोमनाथ मंदिर पर किया था। रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों, रियासतों और हिंदुओं का नरसंहार करता आया।
‘अनवार-ए-मसऊदी’ नाम की अपनी किताब में बहराइच के रहने वाले और इतिहासकार मौलाना मोहम्मद अली मसऊदी ने लिखा है कि सोमनाथ और आसपास की रियासतों पर लूटने-पाटने केबाद सैयद सालार गाजी आगे बढ़ा। वह 1030 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के सतरिख पहुँचा। वहाँ से वह श्रावस्ती पहुँचा और वहाँ के राजा सुहेलदेव से उसका मुकाबला हुआ।
सन 1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के पास सालार मसूद का मुकाबला महाराजा सुहेलदेव से हुआ। कहा जाता है कि महाराजा सुहेलदेव ने 21 अन्य छोटे-बड़े राजाओं के साथ मिलकर उसका सामना किया और आखिरकार इस गाजी का उपाधि धारण करने वाले इस आक्रांता को मार गिराया। इसके बाद स्थानीय मुस्लिमों ने उसके शव को दफना दिया।
इसके बाद उस जगह पर मेला लगने लगा जिसे अब रोक दिया गया है।