Wednesday, May 1, 2024
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पूर्व IAS अधिकारी हर्ष मंदर के घर और ऑफिस पर CBI की रेड, एनजीओ में विदेशी फंडिंग से जुड़ा है मामला: यूपीए सरकार में NAC के थे सदस्य

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने शुक्रवार (2 फरवरी 2024) को FCRA उल्लंघन के मामले में IAS से कथित सामाजिक कार्यकर्ता बने हर्ष मंदर के आवास और कार्यालय पर छापेमारी की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय जाँच एजेंसी ने इस मामले में कई लोगों से पूछताछ भी की है। हर्ष मंदर यूपीए सरकार के दौरान सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य भी थे।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने शुक्रवार (2 फरवरी 2024) को FCRA उल्लंघन के मामले में IAS से कथित सामाजिक कार्यकर्ता बने हर्ष मंदर के आवास और कार्यालय पर छापेमारी की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय जाँच एजेंसी ने इस मामले में कई लोगों से पूछताछ भी की है। हर्ष मंदर यूपीए सरकार के दौरान सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य भी थे।

दरअसल, सितंबर 2021 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हर्ष मंदर के एनजीओ ‘अमन बिरादरी’ से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जाँच शुरू की थी। उस दौरान भी हर्ष मंदर के आवास पर छापा मारा गया था। दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्रालय की शिकायत के बाद विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के लिए अमन बिरादरी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।

नियम के मुताबिक, विदेशी फंडिंग प्राप्त करने वाले सभी एनजीओ को गृह मंत्रालय के एफसीआरए के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है। एनजीओ की वेबसाइट के अनुसार, अमन बिरादरी एक ‘जमीनी स्तर का आंदोलन’ है जो एक धर्मनिरपेक्ष, शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और दयालु दुनिया बनाने के लिए समर्पित है।

वेबसाइट का कहना है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए गाँव और जिला स्तर पर समुदाय-आधारित संगठनों की स्थापना करना था, जिसमें विभिन्न पृष्ठभूमि और धर्मों के युवा एवं महिलाएँ शामिल हों। इसमें आगे कहा गया है कि इन संगठनों का लक्ष्य विभिन्न धर्मों, जातियों और भाषाई समूहों के व्यक्तियों के बीच सहिष्णुता, भाईचारा, सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना है।

गृह मंत्रालय ने साल 2023 में एफसीआरए उल्लंघन को लेकर हर्ष मंदर की एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जाँच की सिफारिश की थी। हर्ष मंदर खुद को वामपंथी ‘कार्यकर्ता’ बताते हैं। भारत की न्यायपालिका को बदनाम करने और देश के खिलाफ मुस्लिम भीड़ को उकसाने का उनका इतिहास रहा है।

हर्ष मंदर का मार्च 2020 में भारत और देश की न्यायपालिका के खिलाफ मुस्लिम भीड़ को उकसाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इसके बाद वे विवादों में आ गए थे। इस वीडियो में मंदर ने कहा था कि भारत के मामलों से संबंधित निर्णय सुप्रीम कोर्ट या संसद द्वारा नहीं, बल्कि सड़कों पर दिए जाएँगे।

इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने हर्ष मंदर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामे में हर्ष मंदर पर न केवल हिंसा भड़काने, बल्कि न्यायपालिका को बदनाम करने का आरोप लगाया था। हर्ष मंदर के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की भी माँग की गई थी।

कौन हैं हर्ष मंदर

हर्ष मंदर ने लगभग दो दशकों तक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में काम किया था। साल 2002 में गुजरात में उन्होंने ‘राज्य प्रायोजित दंगों’ का आरोप लगाकर सेवा छोड़ दी थी। आईएएस छोड़ने के बाद से हर्ष मंदर ने ‘सिविल सोसायटी’ संगठनों में काफी रंगीन जीवन बिताया। उन्होंने अपने कई योगदानों में से एक, उन्होंने एक्शनएड इंडिया के कंट्री डायरेक्टर के रूप में काम किया है।

आगे चलकर हर्ष मंदिर कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए शासन में महत्वपूर्ण भूमिका में आ गए। यूपीए शासन के दौरान तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) की स्थापना की गई थी। हर्ष मंदर इसके सदस्य थे। इस दौरान अपनी सेवा के लिए सबसे प्रसिद्ध हुए। NAC ने ही हिंदू विरोधी सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया था।

दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले अक्टूबर 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने FCRA कानूनों के उल्लंघन के लिए कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाले दो गैर-सरकारी संगठनों- राजीव गाँधी फाउंडेशन (RGF) और राजीव गाँधी चैरिटेबल ट्रस्ट (RGCT) का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया था।

हर्ष मंदर द्वारा न्यायिक हस्तक्षेप

हर्ष मंदर लश्कर-ए-तैयबा की आतंकी इशरत जहाँ के समर्थक थे। इशरत को गुजरात में अपराध शाखा के अधिकारियों ने तीन अन्य लोगों के साथ एक मुठभेड़ में मार गिराया था। हर्ष मंदर उन व्यक्तियों में से एक थे, जिन्होंने मुंबई हमले के आतंकवादी याकूब मेमन के लिए दया याचिका पर हस्ताक्षर किए थे। वह उन 203 व्यक्तियों में से थे जिन्होंने पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब के लिए दया याचिका पर हस्ताक्षर किए थे।

इतना ही नहीं, हर्ष मंदर ने संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु के लिए भी दया याचिका पर हस्ताक्षर किए थे। बाद में अजफल को फाँसी दे दी गई थी। मंदर ने कई मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप भी किए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को डिटेंशन की स्थिति और असम से अवैध प्रवासियों के निर्वासन से संबंधित मामले की सुनवाई से अलग करने की माँग की थी।

हर्ष मंदर उन 40 ‘कार्यकर्ताओं’ में से एक थे, जिन्होंने अयोध्या फैसले के खिलाफ अदालत में समीक्षा याचिका दायर की थी। सुप्रीम के इस फैसले से ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ था। वह उस मंडली का भी हिस्सा थे, जिसने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ याचिका दायर की थी। हर्ष मंदर ने यह सब कुछ विदेशी वित्त पोषित एनजीओ से जुड़े रहते हुए किया।

CAA को लेकर हुए बवाल में हर्ष मंदर की भूमिका

हर्ष मंदर ने अपने संगठन ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ के साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में हुई हिंसा पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें वहाँ के छात्रों को सभी दोषों से मुक्त कर दिया गया था और उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ कई झूठ फैलाए गए थे। बाद में यह पूरी रिपोर्ट ही झूठी निकली।

हर्ष मंदर ने CAB पारित होने पर खुद को मुस्लिम के रूप में पंजीकृत करने का वादा किया था, लेकिन ऑपइंडिया अभी तक इसकी पुष्टि नहीं कर पाया है कि CAB के CAA बनने के बाद उन्होंने अपना वादा पूरा किया है या नहीं। उन्होंने अतीत में एनआरसी और असम में विदेशी न्यायाधिकरण के बारे में भी बड़ा झूठ फैलाया है।

इससे पहले हर्ष मंदर उस मंडली का हिस्सा थे, जिसने CAB के खिलाफ पत्र लिखा था। हर्ष मंदर और उनका एनजीओ ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन में सक्रिय थे। CAA विरोधी प्रदर्शन का मास्टरमाइंड कुख्यात कट्टरपंथी शरजील इमाम था। दिलचस्प बात यह है कि हर्ष मंदर के कारवां-ए-मोहब्बत ने लोगों से कुख्यात शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का भी आग्रह किया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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