Sunday, October 13, 2024
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दिल्ली का ‘कूड़े का पहाड़’: अगले साल ताजमहल से भी हो जाएगा ऊँचा

साल 2018 में कूड़े के इस पहाड़ का एक हिस्सा बारिश में ढह गया था। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी और पाँच लोग घायल हो गए थे। इस घटना के बाद यहाँ कचरा डालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। मगर कुछ दिन बाद ही यह क्रम फिर शुरू हो गया।

दिल्ली के गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है। राजधानी दिल्ली का यह सबसे बड़ा कचरे का ढेर अगले साल यानी 2020 तक ताजमहल से भी ज्यादा ऊँचा हो जाएगा। शहर के पूर्वी इलाके गाजीपुर के इस लैंडफिल साइट पर पक्षी, बाज, गाय, कुत्ते, चूहे जानवर खाने के लिए हमेशा मंडराते रहते हैं।

पूर्वी दिल्ली के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर अरुण कुमार का कहना है कि यह कूड़े का ढेर पहले से ही 65 मीटर (213 फीट) से अधिक ऊँचा है। यदि यह इसी गति से बढ़ता रहा तो 2020 में यह करीब 73 मीटर ऊँचा हो जाएगा। यह ऊँचाई आगरा के ताजमहल से भी ज्यादा होगी। बता दें कि फुटबॉल के करीब 40 मैदान के आकार में फैला यह कूड़े का पहाड़ हर साल करीब 10 मीटर ऊँचा हो जाता है।

गौरतलब है कि गाजीपुर का यह लैंडफिल साइट साल 1984 में शुरू किया गया था। इसकी क्षमता 2002 में ही पूरी हो गई थी। इसे तब ही बंद किया जाना था। मगर इसे बंद नहीं किया गया। अभी भी शहर का मलबा सैकड़ों ट्रकों के जरिए यहाँ डाला जा रहा है। दिल्ली नगर निगम एक अधिकारी ने बताया कि गाजीपुर में हर दिन लगभग 2 टन कचरा डाला जाता है। 

साल 2018 में कूड़े के इस पहाड़ का एक हिस्सा बारिश में ढह गया था। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी और पाँच लोग घायल हो गए थे। इस घटना के बाद यहाँ कचरा डालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। मगर कुछ दिन बाद ही यह क्रम फिर शुरू हो गया, क्योंकि अधिकारियों को इसका कोई विकल्प नहीं मिल पाया। पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने पिछले 16 वर्षों से साइट का उपयोग करना जारी रखा है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की सीनियर रिसर्चर शांभवी शुक्ला ने कहा कि कचरे से निकलने वाली मिथेन गैस हवा में घुलने के बाद और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है। पर्यावरण रक्षा समूह चिंतन की प्रमुख चित्रा मुखर्जी ने कहा कि यह सब कुछ तुरंत बंद होना चाहिए। लगातार कचरा डालने के कारण हवा और पानी दोनों प्रदूषित हो रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जहरीली बदबू की वजह से उनका जीवन नर्क बन गया है। लोग हमेशा बीमार रहने लगे हैं। लोग अपने परिवार के साथ यहाँ से पलायन कर रहे हैं।

स्थानीय डॉक्टर कुमुद गुप्ता का कहना है कि उनके यहाँ प्रतिदिन 70 से अधिक लोग आते हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकतर लोग प्रदूषित हवा के कारण होने वाली साँस और पेट की बीमारियों से पीड़ित होते हैं।

सरकार ने 2013 से 2017 के बीच सर्वे करवाया। इसमें कहा गया कि दिल्ली में 981 लोगों की मौत साँस के इन्फेक्शन के कारण हुई, जबकि 1.7 मिलियन से ज्यादा लोग संक्रमण के शिकार हुए। कथित तौर पर भारतीय शहर दुनिया के सबसे बड़े कचरा उत्पादकों में से है, जो सालाना 62 मिलियन टन कचरा पैदा करता है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार यह 2030 तक 165 मिलियन टन तक बढ़ सकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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