बता दें कि सैमुअल कमलेसन ने पेंशन और ग्रेच्युटी के बिना सेना से निरस्त किए जाने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। साथ ही माँग की थी कि उनकी सेवा फिर से बहाल की जाए, लेकिन हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखने का फैसला लिया है।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शलिंदर कौर की बेंच ने अफसर की याचिका पर सुनवाई की। बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सशस्त्र बलों में रेजिमेंटों के नाम अक्सर धर्म या क्षेत्र से जुड़े होते हैं, लेकिन इससे सेना की धर्मनिरपेक्षता और इन रेजिमेंटों में तैनात सैनिकों की छवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
आगे कहा, “हमारे सशस्त्र बलों में सभी धर्मों, जातियों, पंथों, क्षेत्रों और आस्थाओं के कर्मी शामिल हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य देश को बाहरी आक्रमणों से बचाना है और इसलिए वे अपने धर्म, जाति या क्षेत्र से विभाजित होने के बजाय अपनी वर्दी से एकजुट हैं।”
कोर्ट ने अफसर को फटकारते हुए कहा, “कमांडिंग अधिकारी का काम विभाजन नहीं बल्कि उदाहरण पेश करना होता है। यूनिट में धार्मिक गतिविधियों को सबसे ऊपर रखना चाहिए। खासकर जब वे सैनिकों की कमान संभालते हैं, जिनका नेतृत्व वे युद्ध की स्थितियों और युद्ध में करेंगे।”
धार्मिक परेड में शामिल होने से किया था इनकार
सैमुअल कमलेसन मार्च 2017 में भारतीय सेना की 3 कैवलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के तौर पर नियुक्त किया गया था। इस यूनिट में सिख, जाट और राजपूत सैनिकों के 3 स्क्वाड्रन शामिल होते हैं। उन्हें स्क्वाड्रन बी का ट्रूप लीडर बनाया गया था, जिसमें अधिकतर सिख जवान शामिल थे। कमलेसन ने कहा कि उनकी रेजिमेंट में केवल मंदिर और गुरद्वारे में धार्मिक परेड होती है। परिसर में कोई सर्व धर्म स्थल नहीं है और न ही उनकी आस्था अनुसार कोई चर्च है।
कमलेसन का कहना था कि उन्होंने मंदिर के गर्भग्रह में प्रवेश करने से छूट माँगी थी। इस पर दूसरी ओर के वकीलों ने तर्क दिया कि रेजिमेंट में शामिल होने के बाद से ही अफसर परेड में शामिल नहीं होते थे। उन्हें कमांडेट और अन्य अधिकारियों ने भी समझाया, लेकिन उन्होंने किसी की न सुनी।
कोर्ट में दलील दी गई कि कमलेसन को समझाने के बावजूद उनका व्यवहार ठीक नहीं हुआ। उनका आचरण सेना के अनुशासन और रेजिमेंट के हिसाब का नहीं था। जब सारे विकल्प समाप्त हो गए थे, तब उनके कदाचार के कारण उन्हें सेवा से बर्खास्त किया गया।