दिल्ली हाई कोर्ट की जज प्रतिभा एम सिंह ने बुधवार (10 अगस्त 2022 ) को कहा कि भारत महिलाओं के लिए सबसे सम्मानजनक जगह है। इसके लिए उन्होंने मनुस्मृति का हवाला दिया। हालाँकि, इसके लिए उन्हें महिला वामपंथी नेताओं के आलोचना का भी शिकार होना पड़ा।
दरअसल, हाई कोर्ट की जज प्रतिभा एम सिंह बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रही थीं। इस कॉन्फ्रेंस का विषय ‘विज्ञान, तकनीक, एंटरप्रेन्योरशिप और गणित के क्षेत्र में महिलाओं की चुनौतियाँ’ था। कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि भारतीय महिलाएँ भाग्यशाली हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों में महिलाओं का स्थान बेहद सम्मानजनक बताया गया है।
उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज अच्छी तरह जानते थे कि महिला का सम्मान कैसे किया जाता है। मनुस्मृति ही कहती है कि यदि आप महिलाओं का सम्मान नहीं करते हैं तो आपके द्वारा किए जाने वाले सभी पूजा पाठ का कोई मतलब नहीं है। एशियाई देश महिलाओं का सम्मान करना काफी अच्छी तरह से जानते हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि नेतृत्व के मामले में भी भारतीय महिलाओं की भूमिका बेहद प्रगतिशील है।
आगे उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं कह रही हूँ कि हमें निचले स्तर पर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और गलत बर्ताव को नजरअंदाज करने की जरूरत है, लेकिन हाँ, उच्च स्तर और मध्यम स्तर पर, हम महिलाओं को आगे बढ़ते देख रहे हैं।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि संयुक्त परिवारों में पुरुष महिलाओं को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वे समझदार होती हैं।
वामपंथी महिला नेताओं ने की आलोचना
मनुस्मृति की महिमा का बखान करने के लिए वाम दलों और संगठनों से जुड़ी महिला नेताओं ने जज प्रतिभा सिंह की गुरुवार (11 अगस्त 2022) को आलोचना की। नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन वुमेन (NFIW) की महासचिव एनी राजा ने कहा कि जज प्रतिभा शायद भारतीय महिलाओं की दयनीय दशा से ठीक से परिचित नहीं हैं। उनका बयान जातिवाद के साथ-साथ वर्गवाद को भी दर्शाता है।
NFIW ने एक बयान में कहा, “उनके द्वारा मनुस्मृति का उल्लेख करना महिलाओं और उनके विचारों पर पूर्ण अनुशासन और दंड के संस्थागत तरीकों को नजरअंदाज करना है। इसमें जाति के घृणित वर्णनात्मक मानदंडों का भी उल्लेख किया गया है।”
माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने कहा कि जस्टिस प्रतिभा के निजी विचार चाहे जो हों, उन्हें हाई कोर्ट की जज होने के नाते भारतीय संविधान को सर्वोपरि रखना चाहिए। करात ने कहा, “उन्होंने जिन ग्रंथों का हवाला दिया है वे सीधे तौर पर संविधान और भारत की महिलाओं तथा विशेष रूप से दलित और आदिवासी महिलाओं को संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का घोर विरोधी बयान है।”