Thursday, March 27, 2025
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‘बिना बुर्का के थाने क्यों ले गई पुलिस, उन पर एक्शन लो’: दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की मुस्लिम महिला की याचिका, कहा – सुरक्षा और न्याय सबसे ऊपर

जब मुस्लिम महिला के 3 भाई मिल कर 2 लोगों को मार रहे थे, तब वो बिना बुर्के के तमाशा देख रही थी। जब पुलिस थाने ले गई तो 'बुर्का क्यों नहीं पहनने दिया' वाली याचिका हाई कोर्ट में दायर की। कोर्ट ने खारिज कर दी याचिका।

दिल्ली हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला को बिना बुर्का पहनाए थाने ले जाने के मामले में दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में किसी मुस्लिम महिला को बिना बुर्का के थाने ले जाने की कार्रवाई को संवेदनशील मामला बताते हुए पुलिस पर कार्रवाई के साथ भविष्य के लिए निर्देश देने की माँग की गई थी। याचिकाकर्ता रेशमा ने खुद को पर्दानशीं बताते हुए पुलिस पर खुद को बिना बुर्का के पकड़ कर ले जाने का आरोप लगाया था। मामला की सुनवाई शुक्रवार (1 मार्च 2024) को हुई।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मामला दिल्ली के थानाक्षेत्र चांदनी महल में पड़ने वाले रकाबगंज का है। यहाँ 2 लोगों ने खुद को पीड़ित बताते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत में उन्होंने 3 लोगों पर आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता रेशमा इन तीनों आरोपितों की बहन हैं। बताया जा रहा है कि रेशमा ने बालकनी से सारा झगड़ा होते देखा था। दावा यह भी है कि जब रेशमा अपने भाइयों (जो मारपीट के आरोपित हैं) द्वारा 2 लोगों (जो मार खाए, पीड़ित हैं) को पीटते देख रही थीं, तब उन्होंने बुर्का नहीं पहना था।

रेशमा के वकील ने हाईकोर्ट में आरोप लगाया कि सुबह 3 बजे दिल्ली पुलिस उनकी मुवक्किल के घर में घुसी थी। याचिका में इस कार्रवाई के दौरान पुलिस पर अभद्रता करने के साथ रेशमा को घसीट कर थाने ले जाने की भी शिकायत की गई थी।

रेशमा का यह कहना था कि पुलिस पहले से जानती थी कि वह बुर्कानशीं महिला है लेकिन उन्हें पर्दा करने का भी टाइम नहीं दिया गया। याचिका में बुर्का को रेशमा ने अपनी व्यक्तिगत पसंद बताया था और पुलिस पर कार्रवाई की माँग की थी। इस दौरान भविष्य में भी पुलिस को बुर्का वाली महिलाओं के मामलों को संवेदनशील मान कर दिशा-निर्देश देने की माँग उठाई गई थी।

रेशमा के इन तमाम आरोपों पर पुलिस ने भी अपना पक्ष अदालत में रखा। तब पुलिस ने रेशमा द्वारा लगाए गए प्रताड़ना के तमाम आरोपों को गलत बताया था। पुलिस ने यह भी दावा किया था कि खुद रेशमा ने उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए बुलाया था। पुलिस के मुताबिक तब रेशमा को यह डर था कि कहीं वो लोग उन पर हमला न कर दें, जिन्हे रेशमा के 3 भाइयों ने मिल कर पीटा है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और उनके द्वारा पेश किए गए सबूतों पर गौर किया।

याचिका की सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने अपना फैसला सुनाया। जस्टिस शर्मा ने कहा कि पुलिस की जाँच में गोपनीयता जैसी बातों के लिए जगह नहीं हो सकती। अदालत ने सुरक्षा और न्याय को ही सबसे पहली प्राथमिकता बताते हुए कहा कि इन दोनों को सुनिश्चित करने के लिए पहचान आवश्यक होती है। अदालत ने कहा कि धार्मिक या व्यक्तिगत चॉइस के नाम पर प्राइवेसी का अधिकार मिल जाने से इसके दुरूपयोग की आशंका बढ़ेगी और जाँच में रुकावट खड़ी होगी।

अंत में अदालत ने रेशमा की याचिका ख़ारिज कर दी। रेशमा की तरफ से वकील एम सूफियान सिद्दीकी, आलिया, नियाजुद्दीन और राकेश भुंगरा ने बहस की जबकि दिल्ली पुलिस का पक्ष एडिशनल स्टैंडिंग काउंसिल रुपाली बंधोपाध्याय ने रखा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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