डेमोग्राफी में बदलाव के भयंकर परिणाम होते हैं। भारत में कई ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं, जहाँ किसी इलाके में मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक हो जाने के बाद सारे नियम-कानून उनके ही मुताबिक चलने लगे हैं। स्पष्ट है, जोर-जबरदस्ती के दम पर ऐसा कराया जा रहा है। यहाँ तक कि स्कूल-कॉलेजों को भी वो अपने हिसाब से ही चलाना चाह रहे हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे भारत के इन हिस्सों में शरिया लागू हो गया हो। जैसे भारत में कई छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गए हों।’
आइए, सबसे पहले इस तरह की कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं, जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक होने पर उस इलाके में रह रहे हिन्दुओं को भी उनके ही हिसाब से चलने के लिए बाध्य होना पड़ा। अगर किसी ने आनाकानी की, तो इसका दुष्परिणाम हिंसा के रूप में भुगतना पड़ा। भारत से अलग हुए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति बदतर है ही, अब भारत में भी हालात कुछ उसी तरफ जाते दिख रहे हैं।
नया मीडिया रिपोर्ट: अब रविवार नहीं, झारखंड के कई स्कूलों में जुमे के दिन छुट्टियाँ
झारखंड के जामताड़ा जिले के कुछ सरकारी स्कूलों में रविवार के बजाय शुक्रवार की छुट्टी दिए जाने की खबर है। दावा किया गया है कि स्कूल के नोटिस बोर्ड पर बाकयदा शुक्रवार को जुमे का दिन घोषित कर के अवकाश लिखा गया है। वहीं शिक्षा विभाग द्वारा उन स्कूलों को उर्दू स्कूल बताते हुए ऐसा कदम शिक्षकों की सुविधा को देख कर उठाया जाना बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार की छुट्टी उन स्कूलों में हो रही है, जहाँ मुस्लिम छात्रों की संख्या 70% से अधिक है।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने इस व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा, “पहले गढ़वा में हाथ जोड़ कर प्रार्थना की पद्धति को रोकने की खबर। अब जामताड़ा ज़िले में रविवार के बदले जबरन शुक्रवार को स्कूल बंद कराने के साथ ही सामान्य विद्यालयों पर खुद से उर्दू विद्यालय का बोर्ड लिखवा देना। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी, आप झारखंड को किस ओर ले जा रहे हैं?” ‘दैनिक जागरण’ की रिपोर्ट का कहना है कि शुक्रवार को बंद होने वाले स्कूलों की संख्या 100 से भी अधिक है।
75 हो गए गाँव में, बदलवा रहे स्कूलों के नियम-कानून
ये घटना ताज़ा है, झारखंड की है। घटना गढ़वा के मध्य विद्यालय की है, जहाँ स्कूल प्रिंसिपल युगेश राम के ऊपर क्षेत्र की बहुल आबादी ने स्कूल प्रार्थना बदलने का दबाव बनाया। मुस्लिम समुदाय ने प्रिंसिपल को कहा कि क्षेत्र में उनकी आबादी 75% है। इसलिए नियम भी उन्हीं के हिसाब से होंगे। समुदाय के दबाव के चलते स्कूल की प्रार्थना बदल गई। प्रिंसिपल ने कहा कि लंबे समय से मुस्लिम समुदाय के लोग 75 फीसदी आबादी का हवाला देकर स्कूलों के नियमों में बदलाव का दबाव बना रहे थे।
कुछ समय पहले इन लोगों ने मिलकर स्कूल में प्रार्थना का ढंग बदलवा दिया। उन्होंने इसकी जानकारी कोरवाडीह पंचायत के मुखिया और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दी। हालाँकि, हम सब जानते हैं कि झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो, कॉन्ग्रेस और राजद की सरकार है। ये दल मुस्लिम तुष्टिकरण में दक्ष हैं। जब गढ़वा के मुस्लिम युवक स्कूल में आकर हंगामा करते थे तो इस बारे में मुखिया शरीफ अंसारी को जानकारी दी गई थी। दावा किया गया कि उन्होंने आकर ग्रामीणों को समझाया भी था लेकिन न मानने पर स्कूल को ही मजबूर कर दिया गया।
झारखंड में सरस्वती पूजा विसर्जन में हिंसा
वैसे तो रामनवमी से लेकर दुर्गा पूजा तक, कई त्योहारों के दौरान हिन्दुओं के जुलूस पर हमले की खबरें आती हैं। अब तो हिन्दू नव वर्ष मनाने पर भी आफत है। इस साल सरस्वती पूजा विसर्जन के दौरान हजारीबाग, कोडरमा और जामताड़ा – इन तीन जिलों में अशांति रही। हजारीबाग में 17 साल के रूपेश कुमार की हत्या कर दी गई। कोडरमा जिले में मरकच्चो नाम का एक थाना है। यहीं के कर्बलानगर से सरस्वती माता का विसर्जन करने जा रहे जुलूस के साथ कट्टरपंथी मुस्लिम भीड़ ने झड़प की।
जिला जामताड़ा, करमाटांड़ थाना, गाँव फिटकोरिया। सरस्वती माता की मूर्ति का विसर्जन करने इस गाँव के लोग जाने वाले थे – सरकारी सड़क से सरकारी तालाब की ओर। बीच रास्ते में मस्जिद पड़ती है। कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा धमकी दी गई कि विसर्जन के लिए मस्जिद का रास्ता चुना गया तो अच्छा नहीं होगा। रास्ता बदल दिया गया, डीजे नहीं बजा – कट्टरपंथी मुस्लिम भीड़ इतने पर भी लेकिन नहीं मानी। मस्जिद से अलग हट कर जो रास्ता तय हुआ था, विसर्जन के लिए जब उस गली की तरफ से सरस्वती माता की मूर्ति छायटांड मोड़ पहुँची तो फिर से बवाल कर दिया गया।
मुस्लिम ये माँग लेकर उच्च न्यायालय पहुँच गए कि ‘उनकी’ गलियों से हिन्दुओं के जुलूस न निकलें
तमिलनाडु के पेरंबलुर जिले के मुस्लिम बहुल इलाके वी कलाथुर में इलाके के कुछ स्थानीय मुस्लिम 2012 से हिंदू जुलूसों को निकाले जाने का विरोध कर रहे थे। इन इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदू त्योहारों को ‘पाप’ करार दे रखा था। यहाँ का बहुसंख्यक समुदाय हिंदू मंदिरों से जुलूस या भ्रमण निकालने का लंबे समय से विरोध करता रहा है। इसी को लेकर मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हालाँकि, वहाँ से उन्हें निराशा मिली।
मई 2021 में मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान टिप्पणी की, “केवल इसलिए कि एक धार्मिक समूह विशेष इलाके में हावी है, इसलिए दूसरे धार्मिक समुदाय को त्योहारों को मनाने या उस एरिया की सड़कों पर जुलूस निकालने से नहीं रोका जा सकता है। अगर धार्मिक असहिष्णुता की अनुमति दी जाती है, तो यह एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए अच्छा नहीं है। किसी भी धार्मिक समूह द्वारा किसी भी रूप में असहिष्णुता पर रोक लगाई जानी चाहिए।”
अलीगढ़ का नूरपुर: हिन्दुओं के बरात पर हमले की घटनाएँ, AIMIM नेता का भड़काऊ बयान
जून 2021 में एक कट्टरपंथी नेता का बयान भी इस पैटर्न की ओर इशारा करता है कि जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक होगी, वहाँ सारे नियम-कानून उन्हीं के हिसाब से चलेंगे। उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ के टप्पल के नूरपुर गाँव में 150 हिंदू परिवारों के पलायन की खबर के बाद AIMIM ओवैसी की यूथ ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष सैयद नाजिम अली ने धमकी देते हुए कहा कि नूरपुर में नमाज तो होगी, लेकिन हिंदुओं को वहाँ बारात नहीं निकालने दिया जाएगा।
इससे कुछ दिन पहले ही हिन्दू बारातियों पर हमले की खबर सामने आई थी। 26 मई 2021 को एक दलित घर में दो बेटियों की एक साथ बारात जा रही थी। आरोप है कि बारात लाते वक्त बीच में मस्जिद पड़ी। वहाँ मुस्लिम समुदाय से जुड़े कुछ लोगों ने बारातियों के साथ मारपीट शुरू कर दी। बारातियों से कहा कि अगर बारात ले जाना है तो मस्जिद से पैदल ही जाना होगा। इस पर बारात वापस लौट गई। घटना के बाद से नूरपुर में रहने वाले 150 हिंदू परिवारों ने अपने घर बेचकर पलायन का ऐलान कर दिया।
इसी गाँव से अब एक ताज़ा घटना भी सामने आई है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक बार फिर हिंदू लड़की की शादी में मस्जिद के सामने बारातियों पर अंडे फेंकने की घटना मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से सामने आई है। इतना ही नहीं, बारातियों से गाली-गलौज की गई और जातिसूचक शब्द कहे गए। कट्टरपंथी मुस्लिमों की इस करतूत के बाद गाँव में तनाव का माहौल बन गया। स्थिति को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात है। जाटव समाज के धर्मवीर अपनी दोनों बेटियों की शादी एक साथ ही कर रहे थे। आरोप है कि मुस्लिमों ने अपनी छतों से अंडे फेंके।
भरूच का एक सोसायटी हुआ मुस्लिम बहुल तो घर बेचने को विवश हुए हिन्दू
हर गुरुवार को, जलाराम बापा मंदिर में शाम की आरती होती थी। फिर एक दिन शौकत अली ने मंदिर के ठीक सामने एक घर खरीदा। उसने आरती का विरोध करना शुरू किया। धीरे-धीरे सोसाइटी के 28 घरों को मुसलमानों ने खरीद लिया और अब मंदिर में आरती बंद हो गई है। इतना ही नहीं, मंदिर को भी बेचने की भी तैयारी शुरू हो गई। ये मामला अक्टूबर 2021 में सामने आया था। भरूच के कुछ हिस्सों में 2019 में अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू किया गया था, लेकिन प्रशासन सहित कुछ लोगों ने इसमें छिपी खामियों का फायदा उठाते हुए कुछ क्षेत्रों में पूरी जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) ही बदल डाला।
तब इलाके के एक व्यक्ति ने बताया था, “जब वहाँ के निवासियों ने इन खामियों का फायदा उठाकर मुस्लिमों द्वारा संपत्ति पर कब्जा करने का विरोध किया, तो पुलिस और प्रशासन ने उन पर शांति भंग करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ ही मामला दर्ज करने की धमकी दी। सरकार हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए चुनी गई थी, यही वजह है कि वे जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून, अशांत क्षेत्र अधिनियम जैसे कानून भी लाए, लेकिन इस तरह की खामियों का फायदा उठाया जा रहा है और प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है।”
मुस्लिम कट्टरपंथियों के कारण 50 साल से गाँव में नहीं हुई सरस्वती पूजा
घटना झारखंड की ही है। जिस देश में माँ सरस्वती को विद्या की देवी माना जाता हो और सरस्वती पूजा हर एक विद्यार्थी के लिए सबसे बड़ा त्योहार हो, वहाँ इस तरह की घटना डेमोग्राफ़ी में बदलाव के भयंकर परिणामों की ओर इशारा करती हैं। झारखंड के गिद्धौर में एक हाई स्कूल में लगभग 50 साल बाद धूमधाम से सरस्वती पूजा मनाई गई। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल को मौजूद रहना पड़ा। इस विद्यालय में सालों से सरस्वती पूजा को लेकर दो समुदायों के बीच विवाद चल रहा था।
स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र मुस्लिम थे। इस वजह से हिंदू छात्र सालों तक सरस्वती पूजा नहीं मना सके। विद्यालय के बच्चों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर 28 जनवरी 2020 को ब्लॉक ऑफिस और स्थानीय पुलिस स्टेशन में आवेदन दिया। जिसके बाद प्रशासन ने सरस्वती पूजा के एक दिन पहले ही विद्यालय में पुलिस के जवान तैनात कर दिया। तब जाकर कड़ी सुरक्षा के बीच हिन्दू छात्रों की माँग पूरी हुई और सरस्वती पूजा का आयोजन हो पाया।
हिन्दू परिवार को दिवाली मनाने से रोका: प्रताड़ित किया, घर की लाइट्स तोड़ीं
ये घटना अक्टूबर 2019 की है। एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म उद्योग से जुड़े मुंबई के मलाड पश्चिम के रहने वाले विश्व भानू ने फेसबुक पर अपने पड़ोसियों, जो कि दूसरे मजहब से हैं, की असहिष्णुता के बारे में लिखा। अपनी फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि दिवाली के मौक़े पर सोसायटी के लोग उन्हें और उनकी पत्नी को घर में दीये जलाकर रोशनी करने और रंगोली बनाने की अनुमति नहीं दे रहे थे। नकी सोसायटी के लोगों ने न सिर्फ उनके घर की लाइट्स को नष्ट किया बल्कि बाक़ी लगी लाइट्स को हटाने के लिए मजबूर भी किया।
तब भानु ने बताया था कि वह मलाड पश्चिम की सोसायटी में रहते हैं, जो मालवानी पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता है। जिस सोसायटी में वो रहते हैं वो कथित अल्पसंख्यक बहुल इलाका है वहाँ सिर्फ़ उसी का एकमात्र हिन्दू परिवार रहता है। कट्टरपंथियों के अत्याचार का यह सिलसिला तब शुरू हुआ जब भानु की पत्नी दिवाली के त्योहार पर घर सजाने के लिए नई लाइट्स ख़रीद कर लाईं। लेकिन जैसे ही उन्होंने घर सजाने के लिए लाइट्स लगाईं, वैसे ही इलाक़े के कट्टरपंथी उसी जगह पर आ गए और जलती हुई इलेक्ट्रिक लाइट्स हटा दीं।
कॉलोनी में रहना है, तो असलम भाई कहना है, समझ गए ना, यहाँ मोदी जी नहीं आएँगे: बंद कराया भजन
ये घटना भी 2019 के अक्टूबर महीने की ही है। महाराष्ट्र के मलाड से एक वीडियो सामने आया था, जहाँ एक मुस्लिम युवक असलम अपने कुछ साथियों के साथ दुर्गा पंडाल में बज रहे भजन को न सिर्फ़ बंद करने का हुक़्म दिया बल्कि पंडाल में मौजूद लोगों को धमकीभरे लहज़े में चेतावनी देते हुए कहा, “कॉलोनी में रहना है, तो असलम भाई-असलम भाई कहना है, समझ गए ना। यहाँ मोदी जी नहीं आएँगे, यहाँ असलम भाई ही आएँगे…बस।”
इलाक़े के लोगों पर असलम का काफ़ी दबदबा था क्योंकि जैसे ही उसने भजन बंद करने को कहा तो उन्होंने बज रहे भजन को डरकर तुरंत बंद कर दिया। और यह पूछे जाने पर कि क्या कहना तो डरकर जवाब दिया कि ‘असलम भाई-असलम भाई कहना है’। क्या यही है भारत के सेक्युलरिज्म, जहाँ एक मुस्लिम गुंडा किसी इलाके में देश के सबसे बड़े त्योहारों में से एक हिन्दुओं को नहीं मनाने देगा? भजन-कीर्तन भी अब उनसे पूछ कर होगा?
जगह-जगह से आती हैं हिन्दुओं के पलायन की खबरें, क्योंकि मुस्लिम बहुसंख्यक बन कर करते हैं परेशान
कैराना से हिन्दुओं के पलयान की खबरें सुर्खियाँ बनी थीं, लेकिन ऐसा भारत के कई हिस्सों में हो रहा है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मुस्लिम बहुल मोहल्ले ‘महाजनी टोला’ में हिन्दुओं पर पत्थरबाजी करने का मामला प्रकाश में आया। पीड़ितों का आरोप था कि इलाके में मुस्लिम कट्टरपंथी आए दिन ऐसा करते हैं। इसी कारण से इससे पहले भी कई हिन्दू परिवार मजबूरन पलायन कर गए हैं। कई हिन्दू परिवार वहाँ से घर बेच कर निकल गए।
हाल ही में कानपुर में हुई हिंसा के पीछे भी डेमोग्राफी में बदलाव को भी वजह माना जा सकता है। पीड़ितों ने बताया था, “हम गिने-चुने हिन्दू इस एक खास क्षेत्र में हैं। हमारे मोहल्ले का नाम चंद्रेश्वर है, जहाँ कुछ सौ हिन्दू रहते हैं। घटना के दिन प्रदर्शन के नाम पर हमारे मोहल्ले को निशाना बनाने की कोशिश की गई थी। वो तो फ़ोर्स की सक्रियता थी कि हम बच गए। 3% हिन्दू ही हैं यहाँ, लेकिन इलाके के 97% मुस्लिमों की आँखों में वो चुभ रहे हैं।”
जहाँगीरपुरी में हुए दंगों के बाद मीडिया वहाँ गई तो पता चला कि किस तरह कबाड़ का कारोबार करने वाले मुस्लिमों ने सरकारी जमीनों से लेकर सड़कों तक को कबाड़ से भर दिया है और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। ‘हनुमान जयंती’ के जुलूस पर हमले वाले इस इलाके में पीड़ितों का कहना था कि अगर पुलिस घटना के दिन सक्रिय न होती तो शायद यहाँ लाशें बिछ जातीं। महिलाएँ आभूषण पहन कर घर से नहीं निकलती हैं। उनके हाथों से मोबाइल भी छीन लिया जाता है। मस्जिद से लेकर कई घर अतिक्रमण कर के बने हैं।
रामनवमी पर गुजरात के हिम्मतनगर में मुस्लिम भीड़ की हिंसा के बाद वहाँ के हिंदू परिवार जान बचाने के लिए वो जगह छोड़ दी। कई ने मंदिरों में शरण ली। होली में बदायूँ के अल्लापुर भोगी में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच विवाद के बाद पुलिस पर एकतरफा कार्रवाई के आरोप लगा। 30 हिन्दू परिवारों के पलायन की खबर आई। मध्य प्रदेश में रतलाम के सुराना गाँव के हिंदू समुदाय के पलायन की खबरों के सामने आने के बाद मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने रिपोर्ट माँगी। राजस्थान के टोंक में 600 हिन्दू परिवारों के पलायन का मुद्दा विधानसभा तक में गूँजा।
इसका खामियाजा अधिकतर दलित हिन्दुओं को भुगतना पड़ता है। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में एक मुस्लिम समाज की लड़की गायब हो गई, जिसके बाद कोरी समुदाय के लोगों ने अपने घर के बाहर पलायन के पोस्टर लगाए। उन्हें प्रताड़ित किया गया। उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित कर्नलगंज में 10 हिन्दू परिवारों ने अपने घर छोड़ने का निर्णय लिया, क्योंकि उन पर इस्लाम अपनाने या इलाका छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा था। याद कीजिए, कश्मीर से पंडितों का नरसंहार कर उन्हें पलायन को मजबूर किया गया था। आज भी वहाँ हत्याएँ हो रही हैं।