Monday, July 14, 2025
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बिहार की जाति जनगणना के बाद क्यों हो रही रोहिणी आयोग की चर्चा, कैसे OBC के नाम पर सब कुछ खा रही हैं गिनती की जातियाँ: जानिए सब कुछ

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रोहिणी आयोग ने नौकरियों और शिक्षा में 97 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का लाभ ओबीसी की 25 प्रतिशत जातियाँ उठा रही हैं। शेष 75 प्रतिशत जातियों की भागीदारी 3 प्रतिशत ही है। इसमें भी 983 ओबीसी जातियों की हिस्सेदारी शून्य है।

बिहार सरकार ने जातीय जनगणना के आँकड़े जारी कर दिए हैं। नीतीश कुमार हों या लालू यादव या फिर राहुल गाँधी, सभी लोग एक ही सुर में गाना गा रहे हैं, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’। वैसे, हल्ला खूब मचा हुआ है। दो अक्टूबर को गाँधी जयंती के दिन इस जनगणना के आँकड़े जारी किए गए तो विपक्षी फुदकने लगा।

राहुल गाँधी ने तो ऐलान कर दिया कि कॉन्ग्रेस की सरकार बनी तो पहला काम पूरे देश में जातीय जनगणना का ही होगा। हालाँकि, इन दिनों रोहिणी आयोग की भी चर्चा है, जिसका गठन कालेलकर आयोग और मंडल आयोग की तर्ज पर मोदी सरकार ने किया था।

क्या है रोहिणी आयोग?

दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर्ड चीफ जज जस्टिस जी. रोहिणी की अध्यक्षता में भारत सरकार यानि मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर 2017 को एक कमीशन का गठन किया था। इसे रोहिणी आयोग के रूप में भी जाना जाता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत किए गए इस आयोग का काम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उप-वर्गीकरण का था।

अब आप पूछेंगे कि अनुच्छेद 340 क्या बला है? तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों में सुधार हेतु जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है। राष्ट्रपति भारत के पिछड़े वर्गों की स्थितियों और पृष्ठभूमि की जाँच के लिए एक आयोग नियुक्त करने का आदेश दे सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत ये सिर्फ तीसरा मौका था, जब किसी आयोग का गठन किया गया। इसके पहले साल 1953 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ा आयोग बनाया था, जो पिछड़े लोगों पर सरकार को अपनी रिपोर्ट दी थी। इस डाटा का इस्तेमाल आरक्षण इत्यादि में होना था। हालाँकि, नेहरू सरकार ने इस आयोग के सुझावों को मानने से इनकार कर दिया था।

इसका दूसरी बार इस्तेमाल 1979 में हुआ, जब मंडल कमीशन बनाया गया। मंडल कमीशन के बारे में तो जानते ही होंगे आप? नहीं, तो बता देते हैं कि मंडल कमीशन ने ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने की सलाह दी थी। 1980 से 1989 तक इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की सरकारों ने इसे लटकाए रखा, लेकिन साल 1990 में वीपी सिंह ने इसे लागू कर दिया। इसके बाद देश में मंडल-कमंडल की राजनीति ऐसी आगे बढ़ी कि जाति के बिना भारत में राजनीति संभव नहीं है।

अब, साल 2017 में मोदी सरकार ने तीसरी बार अनुच्छेद 340 का इस्तेमाल किया। क्यों किया, ये ऊपर बताया जा चुका है। 31 जुलाई 2023 को रिपोर्ट पेश करने से पहले इस आयोग का कार्यकाल 13 बार बढ़ाया गया। रिपोर्ट को राष्ट्रपति के पास भेजा जा चुका है। इसे अभी तक संसद में नहीं रखा गया है। मोटा-मोटी मान लेते हैं कि सरकार इस रिपोर्ट को अब स्वीकार कर चुकी है, जिसे लागू करने के लिए उसे कुछ कदम उठाने भर की देर है।

रोहिणी आयोग का फायदा-नुकसान?

आरक्षण का लाभ उठा रहे वर्गों जैसे एससी, एसटी, ओबीसी में कुछ मजबूत वर्ग इसका ज्यादा फायदा पा रहे हैं। वहीं, कुछ जातियों को बिल्कुल भी इसका फायदा नहीं मिल रहा है। अगर ओबीसी वर्ग की बात करें तो इसमें शामिल ऐसी कुछ जातियाँ हैं, जो सबसे ज्यादा फायदा उठा रही हैं, तो हजारों जातियों को इसका बिल्कुल भी लाभ नहीं मिल रहा है।

मोटा-मोटी ओबीसी वर्ग में 2700 जातियाँ शामिल हैं। इन जातियों की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने और उसी अनुपात में कोटे के अंदर कोटा सिस्टम पर सलाह देने के लिए इस आयोग का गठन किया गया था। चूँकि इस आयोग के आँकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, इसलिए पक्का नहीं बता सकते कि आयोग ने क्या सिफारिशें की हैं और किस तरह के डाटा का इस्तेमाल किया गया है।

रोहिणी आयोग में हो सकती हैं कैसी सिफारिशें?

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रोहिणी आयोग ने नौकरियों और शिक्षा में 97 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का लाभ ओबीसी की 25 प्रतिशत जातियाँ उठा रही हैं। शेष 75 प्रतिशत जातियों की भागीदारी 3 प्रतिशत ही है। इसमें भी 983 ओबीसी जातियों की हिस्सेदारी शून्य है।

चूँकि भारत सरकार के पास जनसाँख्यिकी का आँकड़ा 2010-2011 तक का ही है। ऐसे में मान सकते हैं कि अभी के हिसाब से जनसंख्या का डाटा रोहिणी आयोग ने इस्तेमाल ही होगा। मोटा-मोटी मीडिया रिपोर्ट्स की मान भी लें, तो रोहिणी आयोग की रिपोर्ट करीब 1100 पन्नों की है, जिसे दो भागों में बाँटा गया है।

पहले हिस्से में आरक्षण का फायदा पा रही जातियों में उनकी हिस्सेदारी से जुड़ी बात है तो दूसरे हिस्से में मौजूदा समय में ओबीसी में शामिल 2633 पिछड़ी जातियों की पहचान, जनसंख्या में उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व और अब तक आरक्षण नीतियों से उन्हें मिले लाभों की जानकारी है। हालाँकि कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, 3000 जातियों की जानकारी इस रिपोर्ट में है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रोहिणी आयोग ने ओबीसी की 3000 जातियों को 4 वर्गों में विभाजित करने का सुझाव दिया है। इन वर्गों में आरक्षण का पूरा लाभ, अधूरा लाभ, बिल्कुल लाभ नहीं ले पाने वाली और एक दम अक्षम जातियों का 4 वर्ग तैयार हो सकता है, जिन्हें 10 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 8 प्रतिशत, जो भी डाटा इस आयोग की सिफारिश के साथ होगा, उन्हें मिल जाएगा।

क्या होगा असर?

अभी ओबीसी जातियों की राजनीति को लेकर मुखर रहने वाली ताकतवर ओबीसी जातियों का कोटा इस सिस्टम की वजह से घट जाएगा। ऐसे में संभव है कि ये जातियाँ अपने पुराने रहनुमाओं को छोड़कर नए विकल्प तलाशें। वहीं, जिन जातियों को आरक्षण का लाभ अब तक नहीं मिल पाया है, या बहुत कम मिला है, रोहिणी आयोग की सिफारिशों की वजह से उनका कोटा बढ़ जाएगा।

वो आगे बढ़कर अपनी हिस्सेदारी क्लेम भी कर पाएँगे। चूँकि अभी ओबीसी वर्ग में दो वर्ग है- एक क्रीमी लेयर और दूसरा गैर-क्रीमी लेयर। इनमें से क्रीमी लेयर वाले आरक्षण का फायदा ज्यादा उठा पाते हैं, क्योंकि वो आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर मजबूत होते हैं। ऐसे में इन वर्गों का 4 वर्गों में विभाजन होते ही उन कमजोर जातियों का फायदा होगा, जो वंचित हैं।

राजनीति पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

बिहार में जेडीयू, आरजेडी, हम, वीआईपी जैसी पार्टियाँ, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, रालोद, अपना दल, सुभासपा, हरियाणा में इनेलो, जेजेपी जैसी पार्टियाँ और अन्य राज्यों में जो भी ऐसी पार्टियाँ हैं, अब तो पूरे देश में कॉन्ग्रेस भी है, जो ओबीसी आरक्षण के नाम पर हल्ला काट रही हैं। इसके अलावा जाट, पटेल (पाटीदार आंदोलन के बाद भी ओबीसी आरक्षण नहीं), यादव जैसी जातियाँ और इनकी उपजातियाँ भी छटपटाएँगी, क्योंकि इसमें से कुछ को ज्यादा फायदा मिलता है।

ऐसे में इन जातियों की राजनीति करने वाली पार्टियों को रोहिणी आयोग की सिफारिशें झटका देने वाली साबित हो सकती हैं, क्योंकि इस आयोग की सिफारिश के बाद जो ओबीसी वोटर एक साथ बड़े समूह में दिखते हैं, वो कई वर्गों में दिखने लगेंगे। ऐसे में जातीय राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए आगे की राह मुश्किल हो सकती है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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