Monday, April 7, 2025
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अंग्रेज जमाने के जिस पम्बन ब्रिज से बह गई ट्रेन, उसकी जगह मोदी सरकार ने खड़ा किया नया पुल: रामनवमी पर PM ने राष्ट्र को किया समर्पित, जानिए इसकी खासियतें

इस योजना पर काम करते हुए साल 1870 में पम्बन ब्रिज बनाने का प्लान तैयार किया गया। विभिन्न कारणों से इस पम्बन ब्रिज बनाने का काम 41 साल बाद यानी साल 1911 में शुरू हुआ। आखिरकार तीन साल में बाद 143 खंभों पर 2.2 लंबा एक ब्रिज बनकर तैयार हो गया और 24 फरवरी 1914 को इस पर रेल सेवा शुरू हुई। उस समय पम्बन पुल को बनाने की कुल लागत 20 लाख रुपए आई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चैत्र रामनवमी के दिन यानी रविवार (6 अप्रैल 2025) को तमिलनाडु के रामेश्वरम में पम्बन ब्रिज का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने सड़क पुल से एक ट्रेन और एक जहाज को हरी झंडी दिखाई। इसके साथ ही उन्होंने इसके संचालन को और इसके बारे में जानकारी ली। यह ब्रिज भारत की शानदार इंजीनियरिंग का नमूना है।

पीएम मोदी ने साल 2019 में इसका शिलान्यास किया था। इसे डबल ट्रैक और हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए डिजाइन किया गया है। इसे 2022 में बनना था, लेकिन कोविड के कारण इसमें देर हो गई। अब यहाँ से इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र रामेश्वरम के प्रसिद्ध रामनाथस्वामी मंदिर जाएँगे और वहाँ रामनवमी के शुभ अवसर पर पूजा-अर्चना करेंगे।

रामायण में कहा गया है कि लंका में आततायी रावण का वध करने जाने के लिए भगवान राम ने रामेश्वरम के पास धनुषकोडी से ही सेतु निर्माण का काम शुरू किया था। बता दें कि पीएम मोदी श्रीलंका से लौटकर सीधे तमिलनाडु पहुँचे हैं। यहाँ वह राज्य में 8,300 करोड़ रुपए से अधिक की रेल और सड़क परियोजनाओं का भी शिलान्यास एवं उद्घाटन करेंगे।

नए पम्बन ब्रिज की खासियत

पम्बन ब्रिज रामेश्वर के पम्बन द्वीप को भारत की मुख्य भूमि तमिलनाडु के मंडपम से जोड़ता है। यह भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट सी ब्रिज है, जिसकी ऊँचाई 3 मीटर है। समुद्र तल से इसकी नेविगेशनल एयर क्लीयरेंस 22 मीटर है। ब्रिज की लंबाई 2.08 किलोमीटर (यानी 2,070 मीटर या 6790 फीट) है। इसे सरकारी कंपनी रेल विकास निगम लिमिटेड ने 535 करोड़ रुपए की लागत से बनाया है।

पम्बन ब्रिज में समुद्र के पार 100 स्पैन (यानी अलग-अलग हिस्से) हैं। इनमें से 99 स्पैन 18.30 मीटर का और एक प्रमुख लिफ्ट स्पैन 72.5 मीटर का है। समुद्री जहाज गुजरते समय यह स्पैन ऊपर उठ जाएगा। ऊपर उठने वाले ‘लिफ्ट स्पैन’ 16 मीटर चौड़ा है और इसका कुल वजन 550 टन है। पम्बन ब्रिज एक रेलवे ब्रिज है, जो बांद्रा-वर्ली सी लिंक के बाद देश का दूसरा सबसे लंबा रेलवे ब्रिज है।

दक्षिण रेलवे ने कहा कि यह ब्रिज 58 साल तक सुरक्षित है। पुराने पुल की तुलना में इसकी ऊँचाई को भी बढ़ाया गया है। इससे ज्यादा ऊँचाई वाले जहाज पुल के नीचे से गुजर पाएँगे। पुराना पुल 19 मीटर ऊँचाई तक खुलता था, लेकिन नए पुल में 22 मीटर खुलता है। इसके अलावा, इस पुल पर रेलवे का दोहरा ट्रैक बिछाया गया है। इसके साथ ही ट्रैक का इलेक्ट्रिफिकेशन भी किया गया है।

सफेद रंग में दिख रहा नया पम्बन ब्रिज (साभार: इंडिया टुडे)

नए पम्बन ब्रिज पर ट्रेन की गति 75 किलोमीटर प्रतिघंटा रहेगी। इससे पहले यह गति सीमा सिर्फ 10 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। हालाँकि, लिफ्ट स्पैन वाले हिस्से पर ट्रेन की अधिकतम गति की सीमा 50 किलोमीटर प्रति घंटा रखी गई है। यह वर्टिकल लिफ्ट स्पैन देश का पहला और दुनिया में दूसरा है। इस स्टील ब्रिज का डिजाइन अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टेंट TYPSA ने किया है।

इसे यूरोपीय और भारतीय कोड के साथ डिजाइन किया गया है। टिकाऊ एवं मजबूती के लिए इसमें स्टेनलेस स्टील का प्रयोग किया गया है। इस पर जंग या समुद्र की नमकीन पानी से बचाने के लिए ब्रिज पर पॉलीसिलोक्सेन कोटिंग की गई है। इससे पहले वाले पुल में जंग लगने के कारण उसे साल 2022 में बंद कर दिया गया था। इससे रामेश्वरम और मंडपम के बीच रेल संपर्क खत्म हो गया था।

हालाँकि, रेलवे ब्रिज के समानांतर ही एक सड़क पुल है। इस सड़क पुल से मंडपम और रामेश्वरम का संपर्क बना रहा। पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन करने से पहले दक्षिण रेलवे ने नए पम्बन ब्रिज का कई चरणों में ट्रायल किया। सबसे पहले 12 जुलाई 2024 पर हल्के इंजन का ट्रायल रन किया गया। सुरक्षा की पुष्टि होने के बाद 4 अगस्त 2024 को इस पर टावर कार ट्रायल रन किया गया।

इस ट्रायल में रामेश्वरम स्टेशन तक ओवरहेड इक्विपमेंट टावर कार चलाई गई थी। इस ब्रिज का अंतिम ट्रायल 31 जनवरी 2025 को हुआ। इस ट्रायल में रामेश्वरम एक्सप्रेस ट्रेन को ब्रिज पर दौड़ाया गया। यह ट्रायल पूरी तरह सफल रहा था। ट्रेन को मुख्य भूमि मंडपम से रामेश्वरम स्टेशन तक ले जाया गया था। इस दौरान इंडियन कोस्ट गार्ड की पेट्रोलिंग बोट के लिए लिफ्ट स्पैन को पहली बार ऊपर उठाया गया था।

कैसे काम करता है यह ब्रिज

नए पम्बन ब्रिज के नीचे से जब समुद्री जहाज को निकलना होगा तो इसका नेविगेशन ब्रिज यानी लिफ्ट स्पैन (समुद्री जहाजों के लिए खुलने वाले ब्रिज) ऊपर उठ जाएगा। इसके बाद इसके नीचे से समुद्री जहाज या क्रूज निकल सकेंगे। इस लिफ्ट स्पैन को ऊपर उठने में 5 मिनट का समय लगेगा। इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम पर काम करने वाला यह स्पैन 5 मिनट में ही 22 मीटर तक ऊपर उठ सकता है।

पुराना और उसके बगल में नया पम्बन ब्रिज (साभार: द हिंदू)

समुद्री जहाज को पार कराने के लिए नए पम्बन ब्रिज के लिफ्ट स्पैन को ऊपर करना होगा। इसके लिए सिर्फ एक आदमी की जरूरत होती है। यह आदमी बटन दबाएगा और लिफ्ट स्पैन में ऊपर उठ जाएगा। यानी यह पूरी तरह ऑटोमेटिक है। वहीं, इसके पहले वाला पम्बन पुल कैंटिलीवर पुल था। इसे लीवर के जरिए खोला जाता था। पुल को ऊपर की ओर उठाकर खोलने के लिए 14 आदमी मिलकर लीवर घुमाते थे।

नए पम्बन ब्रिज की खास बात यह है कि यह समुद्री हलचल या चक्रवात का भी ध्यान रखता है। अगर समुद्री हवा की गति 58 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे ज्यादा हो जाती है तो यह वर्टिकल सिस्टम काम नहीं करेगा। यहाँ पर ऑटोमैटिक रेड सिग्नल हो जाएगा। यानी हवा की गति सामान्य होने तक पुल पर ट्रेन की आवाजाही बंद रहेगी। तूफान, चक्रवात जैसी आपदा में सुरक्षा को ध्यान में रखकर यह सिस्टम तैयार किया गया है।

पुराना पम्बन ब्रिज का इतिहास

पम्बन का पुराना रेलवे पुल अंग्रेजों ने 111 साल पहले बनवाया था। रेलवे बोर्ड के सूचना एवं प्रकाशन के कार्यकारी निदेशक दिलीप कुमार ने बताया कि पम्बन के पुराने पुल को 24 फरवरी 1914 को शुरू किया गया था। दरअसल, ब्रिटिश शासन ने सन 1850 में भारत और श्रीलंका को जोड़ने के लिए समुद्री मार्ग बनाने की योजना बनाई थी। इसके लिए पाल्क स्ट्रेट में एक नहर बनाने पर विचार किया गया।

नहर बनाना आसान नहीं है। इसके लिए आर्थिक सहित भौगोलिक कारण जिम्मेदार थे। जब अंग्रेजों को लगा कि यह योजना असंभव है तो अंग्रेजों ने अन्य विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया। नए प्लान में अंग्रेजों ने तमिलनाडु के मंडपम और पम्बन द्वीप के बीच रेलवे लाइन बिछाने का फैसला किया। इसके बाद धनुषकोडी से श्रीलंका की राजधानी कोलंबो तक नाव से जोड़ने की योजना बनाई।

इस योजना पर काम करते हुए साल 1870 में पम्बन ब्रिज बनाने का प्लान तैयार किया गया। विभिन्न कारणों से इस पम्बन ब्रिज बनाने का काम 41 साल बाद यानी साल 1911 में शुरू हुआ। आखिरकार तीन साल में बाद 143 खंभों पर 2.2 लंबा एक ब्रिज बनकर तैयार हो गया और 24 फरवरी 1914 को इस पर रेल सेवा शुरू हुई। उस समय पम्बन पुल को बनाने की कुल लागत 20 लाख रुपए आई थी।

पुराना पम्बन ब्रिज (साभार: जागरण)

पुराने पुल का डिजाइन जर्मन इंजीनियर शेरजर तैयार किया था। इसलिए इसे ‘कैंटिलीवर शेरजर रोलिंग लिफ्ट ब्रिज’ भी कहा जाता था। इसे समुद्र के खारे पानी और तेज हवाओं से बचाने के लिए खास किस्म के लोहे से बनाया गया था। यह ब्रिज इंग्लैंड की राजधानी लंदन की टेम्स नदी पर बने ‘ट्रावर ब्रिज’ की तर्ज पर बनाया गया था। टावर ब्रिज का उद्धाटन 1895 में हुआ था और यह ब्रिज आज भी चालू है।

पम्बन का पुराना ब्रिज बेहद मजबूत था। वह साल 1964 के चक्रवात को भी झेल गया था। हालाँकि, ब्रिज को काफी नुकसान पहुँचा था, लेकिन मरम्मत के बाद इसे फिर से चालू कर दिया गया था। दरअसल, 23 दिसंबर 1964 को 240 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चक्रवात आया था। इस भयानक चक्रवात में धनुषकोडी पूरी तरह बर्बाद हो गया था। वहीं, इस ब्रिज को भी भारी नुकसान पहुँचा था।

उस दिन रात 11 बजे 6 डिब्बों वाली 653 पम्बन-धनुषकोडी पैसेंजर ट्रेन पुल पार कर रामेश्वरम से धनुषकोडी की ओर जा रही थी। चक्रवात के कारण यह ट्रेन समुद्र में पलट गई और बह गई। इसमें सवार लगभग 150 लोगों की मौत हो गई। अगली सुबह सिर्फ ट्रेन का सिर्फ इंजन मिला, बाकी हिस्से समुद्र में बह गए थे। तब यह ट्रेन धनुषकोडी तक जाती थी।

उस चक्रवात में पुराने ब्रिज के हुए नुकसान का मरम्मत करने की जिम्मेदारी दिल्ली मेट्रो को शुरू कराने वाले प्रसिद्ध इंजीनियर ई. श्रीधरन को दी गई थी। उन्होंने सिर्फ 46 दिनों में ही इसकी मरम्मत करके इस पुल को फिर से शुरू कर दिया था। साल 1988 तक यह ब्रिज मंडप को रामेश्वरम से जोड़ने का एक मात्र संपर्क-सूत्र था। बाद में यहाँ सड़क पुल बनाया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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